शुभकामनाएँ, शुभकामनाएँ, दीपावली की आप सब को शुभकामनाएँ। दीपावली का यह त्योहार आप सब के जीवन में सुख शांति और समृद्धि लाए। आप यूँ ही सृजन पथ पर चलते रहें। खूब रचनाएँ आपके क़लम से झरती रहें। आंनद करें, मंगलमय हो जीवन।
कुमकुमे हँस दिए रोशनी खिल उठी
भकामनाएँ, शुभकामनाएँ, दीपावली की आप सब को शुभकामनाएँ। आइये आज दीपावली का यह पर्व मनाते हैं रजनी नैयर मल्होत्रा जी , गिरीश पंकज जी, मन्सूर अली हाश्मी जी, राकेश खंडेलवाल जी, सौरभ पाण्डेय जी और श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी के साथ। आज कुछ छोटे कमेंट मेरी तरफ से आएँगे, दीपावली की व्यस्तता के कारण।
रजनी नैयर मल्होत्रा
कुमकुमे हँस दिए रोशनी खिल उठी
तुम मिले हमसफ़र ज़िंदगी खिल उठी
मेरे मिसरों में यूँ रातरानी घुली
महकी महकी मेरी शायरी खिल उठी
यूँ मिज़ाज अपने मौसम बदलने लगा
बाग में बेला चम्पाकली खिल उठी
मुद्दतों पहले बिछड़ी थी जो राह में
मिल के फिर उस सखी से सखी खिल उठी
जो उलझती रही पेंचो ख़म में सदा
ज़िन्दगी की पहेली वही खिल उठी
भावनाओं को शब्दों ने आकर छुआ
सूनी सूनी मेरी डायरी खिल उठी
वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। हर रंग के शेरों से सजी हुई यह ग़ज़ल दीपवाली के माहौल को और ज्यादा खुशनुमा बना रही है। अलग अलग रंगों की रंगोली सी बना दी है अपनी ग़ज़ल से। रातरानी से लेकर चम्पाकली तक और सखी से मिलती सखी से लेकर सूनी डायरी के खिल उठने तक पूरी ग़ज़ल बहुत ही भावप्रवण बन पड़ी है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
गिरीश पंकज
आप आए इधर शाइरी खिल उठी
जैसे सूरज दिखा हर कली खिल उठी
द्वार पे एक दीपक जलाया तभी
देख मन की खुशी ज़िंदगी खिल उठी
मन-अन्धेरा मिटा जिस घड़ी बस तभी
''कुमकुमे हँस दिए रौशनी खिल उठी''
एक भूखे को भरपेट भोजन दिया
बिन कहे आपकी बंदगी खिल उठी
दीप मुस्कान के जब अधर पे सजे
रूप निखरा तेरा सादगी खिल उठी
कल तलक जो अँधेरे में डूबी रही
दीप जैसे जले हर गली खिल उठी
आओ मिल के अँधेरे से हम सब लड़ें
सुन के चंदा सहित चांदनी खिल उठी
गिरीश जी की ग़ज़लें वैसे भी जीवन के दर्शन का साक्षात्कार करवाती हैं। आज भी वे पूरे रंग में हैं। मतले में ही सूरज के दिखते ही कली के खिल उठने का प्रयोग बहुत सुंदर है। और उसके बाद द्वार पर दीपक जलाने से लेकर भूखे को भोजन करवाने तक तथा मुस्कान से सजती सादगी और अँधेरे से लड़ने के संकल्प के साथ समापन, सब कुछ बहुत सुंदर बना है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल। वाह वाह वाह।
मन्सूर अली हाश्मी
आये अच्छे जो दिन! शायरी खिल उठी
चीर कर 'फेसबुक', खुल उठी खिल उठी।
आग की लो बढ़ी, तिलमिलाने लगी
जब इमरती गिरी चाशनी खिल उठी।
तीरगी शर्म से पानी-पानी हुई
कुमकुमे हँस दिए, रोशनी खिल उठी।
उनकी फ़ितरत में ही मेहरबानी न थी
ग़मज़दा देख रुख़ पर खुशी खिल उठी।
दिल में इकरार लब पर तो इंकार था
इसी तकरार ही में हँसी खिल उठी।
मह्वे आग़ोश थे, तन भी मदहोश थे
इन्तिहा पर पहुँच, ज़िन्दगी खिल उठी।
मेहरबानी 'रदीफ' की कहिये इसे
'हाश्मी' बंद चीज़ें सभी खिल उठी।
हाशमी जी का कमाल यह होता है कि वे हास्य और व्यंग्य का तड़का ग़ज़ब लगाते हैं। आज भी मतले में ही गहरा व्यंग्य कसा गया है। उसके बाद तीरगी का शर्म से पानी पानी होना और तकरार में हँसी का खिल उठना तथा इन्तिहा पर पहुँच कर जिंदगी की खिल उठना और उसके बाद अनोखा मकते का शेर। सब कुछ रंगे हाशमी से सराबोर है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह ।
राकेश खंडेलवाल जी
ऐ सुख़नवर कहो बीते कितने बरस
एक ही बस गजल को सुनाते हुए
बढ़ रही कीमतें बेतहाशा यहां
अपने अल्फ़ाज़ में नित सजते हुए
पर ये सोचा कभी, इसकी बुनियाद क्या
चढ़ रही सीढ़ियों पर सभी कीमतें
आओ इसका समाधान ढूंढें, तो फिर
रोशनी खिल उठे, कुमकुमे हँस पड़ें
जो विरासत में हमको नियति से मिली
सम्पदायें सभी हमने दी है गंवा
भोर में बनती परछाई को देखकर
हम बढ़ाते रहे नित्य अपनी क्षुधा
चादरों की हदों में अगर पांव हम
अपने रखने का थोड़ा जतन यदि करें
मुश्किलें आप ही दूर हो जाएंगी
रोशनी खिल उठे कुमकुमे हंस पढ़ें
सूत भर श्रम का चाहा सिला गज भरा
मांगते हैं समझ कर, ये अधिकार है
किन्तु उत्पादकों, वितरकों को मिले
हम से हो न सका ऐसा स्वीकार है
मांग के, पूर्ति के जितने अनुपात है
ताक पर हमने जाकर उठा रख दिए
आज उनको समझ सोच बदलें अगर
कुमकुमे हंस पड़े रोशनी खिल उठे
जअब भी दीपावली आई, फरियाद की
मां की अक्षय कृपायें हमें मिल सकें
अवतरित हो हमारे घरों में बसे
ताकि जीवन समूचा खुशी से कटे
किन्तु दीपित हुई घर में लक्ष्मी, वही
अपने हाथों में तड़पी, सदा को बुझी
तो बताओ कहोगे भला किस तरह
कुमकुमे हँस दिए, रोशनी खिल उठा
आओ संकल्प की आजुरी हम भरें
आआज इस पर्व पर मन भी दीपित करें
अपना व्यवहार, वातावरण, आचरण
अपने आदर्श से ही समन्वित करें
तो बिखेरेगी कल भोर अंगनाई में
चाहतों से भरी झोलियों में खुशी
और उमड़ी उमंगे यह कहने लगें
कुमकुमे हंस दिए रोशनी खिल उठी
रचनाकारों को चुनौती देता हुआ राकेश खंडेलवाल जी का यह गीत मानों तमसो मा ज्योतिर्गमय का आह्वान है। सूत भर श्रम और गज भर का अधिकार, मांग और पूर्ति का अंतर, हमारी माँ लक्ष्मी की अक्षय कृपा पाने की कामना और हाथों में तड़पी दीपित हुई लक्ष्मी से लेकर संकल्प की अंजुरी भरने का संकल्प लेकर समापन के साथ एक सकारात्मक स्थिति में छोड़ता है गीत। बहुत ही सुंदर वाह वाह वाह।
सौरभ पाण्डेय
फिर जगी आस तो चाह भी खिल उठी
मन पुलकने लगा नगमगी खिल उठी
दीप-लड़ियाँ चमकने लगीं, सुर सधे..
ये धरा क्या सजी, ज़िन्दग़ी खिल उठी
वो थपकती हुई आ गयी गोद में
कुमकुमे हँस दिये, रोशनी खिल उठी
लौट आया शरद जान कर रात को..
गुदगुदी-सी हुई, झुरझुरी खिल उठी
उनकी यादों पगी आँखें झुकती गयीं
किन्तु आँखो में उमगी नमी खिल उठी
है मुआ ढीठ भी.. बेतकल्लुफ़ पवन..
सोचती-सोचती ओढ़नी खिल उठी
चाहे आँखों लगी.. आग तो आग है..
है मगर प्यार की, हर घड़ी खिल उठी
फिर से रोचक लगी है कहानी मुझे
मुझमें किरदार की जीवनी खिल उठी
नौनिहालों की आँखों के सपने लिये
बाप इक जुट गया, दुपहरी खिल उठी
सौरभ जी की ग़ज़लें पढ़ने और सुनने दोनों का आनंद लिए होती हैं। दीप लड़ियाँ चमकने लगीं से लेकर किसी मासूम बच्ची के गोद में आने से कुमकुमों के जल उठने तक और शरद के आगमन से होती हुई रात की झुरझुरी तो जैसे कमाल के बिम्ब हैं। यादों में पगी आँखें, और मुआ ढीठ पवन सौरभ जी की विशिष्टता है इन प्रतीकों में। नौनिहालों की आँखों के सपनों के लिए बाप का जुटना सुंदर प्रयोग है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
श्रीमती लावण्या दीपक शाह
हँस ले दिए, हँस ले मुस्कुरा ले
आया सुमंगल है त्यौहार अपना
ले कुमकुम चरण, आईं माँ लछमी
रौशन हुआ घर का कोना, कोना !
मन से मन की हो दूरी, ना ये जरूरी
खुशियाँ लिए आया त्यौहार अँगना !
तेरी रौशनी से जगमगाता सुहाना
उमंगों सभर, हँस रहा चारों कोना !
हँस ले दिए , हँस ले मुस्कुरा ले !
रौशन हुआ घर का कोना, कोना !
हर तूफ़ानों से लड़ता है तू हरदम
तेरी रौशनी को न कोइ छीन पाया !
दिया तुझको है बल, किसने दिए ऐ
बतला किस से पाया है विश्वास अपना ?
है रचना ये उसकी, ब्रह्माण्ड - भूतल
उसे कोइ अब तक, न है जान पाया !
हँस ले दिए , हँस ले मुस्कुरा ले !
रौशन हुआ घर का कोना, कोना !
उसी ने बनाए हैं फूल रंगीन प्यारे
उसीने बनाए जुगनू, चाँद औ सितारे
वही रोशन करता, है हर एक निशानी
कहती ज्योति सुन, अब मेरी कहानी
रौशन कर दिए को ये दुनिया है फानी !
हँस इंसान, हो रौशन दिए की तरहा
अपने मन से मिटा दे हर एक परेशानी !
सुन बात जोत की हँस दिए, फिर दिए
खील उठी रौशनी, आ गई दीपावली !
लावण्या जी ने इस अवसर पर शुभकामनाओं हेतु अपना यह गीत भेजा है। बहुत ही सुंदर और भावनाओं से भरा हुआ गीत है यह। बड़ी बहनों की शुभकामनाएँ यदि त्योहार के दिन सुबह मिल जाएँ तो और क्या चाहिए जीने को। रोशनी से भरी हुई हर पंक्ति मानों आशावाद से भरी हुई है और दीपक की ज्योति का मान बढ़ा रही है। बहुत ही सुंदर गीत है यह वाह वाह वाह।
शुभकामनाएँ, शुभकामनाएँ, दीपावली की आप सब को शुभकामनाएँ। आनंद और मंगल से पर्व को मनाएँ, आज रचनाकारों को भी दाद देने का समय बीच में निकालें। सबको बहुत बहुत शुभ हो दीपावली।
शानदार. आभार। और सभी कवि मित्रों को उनकी सुंदर शाइरी के लिए बधाई। भाई पंकज सुबीर जैसे वीर का अभिनंदन। सबको दिवाली की बधाई
जवाब देंहटाएंमेरे मिसरों में यूँ रातरानी घुली
जवाब देंहटाएंमहकी महकी मेरी शायरी खिल उठी
वाहः क्या बात है। बहुत खूब।
जो उलझती रही पेंचो ख़म में सदा
ज़िन्दगी की पहेली वही खिल उठी
क्या बात है, वाहः, वाहः।
दीपोत्सव की बधाई।
मन-अन्धेरा मिटा जिस घड़ी बस तभी
जवाब देंहटाएं''कुमकुमे हँस दिए रौशनी खिल उठी''
क्या खूबसूरत गिरह है, वाहः।
एक भूखे को भरपेट भोजन दिया
बिन कहे आपकी बंदगी खिल उठी
वाहः, उम्दा ख्याल, खूबसूरत।
दीप मुस्कान के जब अधर पे सजे
रूप निखरा तेरा सादगी खिल उठी
वाहः, मुस्कान ही तो चेहरे की ज़िंदगी है वर्ना मुर्दनी छाई रहती है।
बहुत बहुत बधाई दीपोत्सव की।
तीरगी शर्म से पानी-पानी हुई
जवाब देंहटाएंकुमकुमे हँस दिए, रोशनी खिल उठी।
वाहः, क्या खूबसूरत गिरह है, वाह।
उनकी फ़ितरत में ही मेहरबानी न थी
ग़मज़दा देख रुख़ पर खुशी खिल उठी।
वाहः, क्या कंट्रास्ट पैदा किया है। वाहः।
राकेश जी का आधार प्रश्नों पर खड़ा खूबसूरत गीत एक उदाहरण है कि कैसे दीपोत्सव की उमंग से भरे माहौल में भी मूलभूत प्रश्नों को पिरोया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंसभी शायरों व कवियों को अच्छी रचनाओं के लिए बधाइयां ।
जवाब देंहटाएंवो थपकती हुई आ गयी गोद में
जवाब देंहटाएंकुमकुमे हँस दिये, रोशनी खिल उठी
बहुत खूबसूरत कोमल कल्पना, वाहः।
उनकी यादों पगी आँखें झुकती गयीं
किन्तु आँखो में उमगी नमी खिल उठी
वाहः क्या चित्रण है, बहुत खूब, वाहः।
है मुआ ढीठ भी.. बेतकल्लुफ़ पवन..
सोचती-सोचती ओढ़नी खिल उठी
वाहः क्या बात कही, वाहः।
नौनिहालों की आँखों के सपने लिये
बाप इक जुट गया, दुपहरी खिल उठी
खूब जिया है एक पालनहार को। वाहः।
नारी मन की कल्पनाओं का दायरा कितना विस्तीर्ण होता है उसका एक उदाहरण है यह गीत।
जवाब देंहटाएंहँस ले दिए , हँस ले मुस्कुरा ले !
रौशन हुआ घर का कोना, कोना !
की मूल भावना से ओतप्रोत मनोहारी गीत। वाहः।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"दीवाली पर देवता, रहते सदा समीप" (चर्चा अंक 2763)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कुमकुमे हँस दिए रोशनी खिल उठी
जवाब देंहटाएंतुम मिले हमसफ़र ज़िंदगी खिल उठी
रजनी जी वाह ,आपका मतला ज़ोरदार है
कल तलक जो अँधेरे में डूबी रही
दीप जैसे जले हर गली खिल उठी
वाह पंकज जी ज़ोरदार शेर है ।
दिल में इकरार लब पर तो इंकार था
इसी तकरार ही में हँसी खिल उठी।
हाशमी साहब क्या बात है ,बहुत खूब
जो विरासत में हमको नियति से मिली
सम्पदायें सभी हमने दी है गंवा
वाह राकेश जी गहरी बात ।
फिर से रोचक लगी है कहानी मुझे
मुझमें किरदार की जीवनी खिल उठी
वाह सौरभ भाई ,कमाल कर दिया आपने इस शेर में ।
मन से मन की हो दूरी, ना ये जरूरी
खुशियाँ लिए आया त्यौहार अँगना !
तेरी रौशनी से जगमगाता सुहाना
उमंगों सभर, हँस रहा चारों कोना !
हँस ले दिए , हँस ले मुस्कुरा ले !
रौशन हुआ घर का कोना, कोना !
बहुत खूब । लावण्या जी की रचना में सुन्दर भाव हैं
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏 पंकज भईया को बहुत बहुत आभार । पूरे दिन व्यस्त रही देर से बधाई स्वीकारें सभी 🙏
जवाब देंहटाएंमेरी प्रस्तुति को सम्यक स्थान मिला, इस हेतु मंच का सादर आभार. सुधीजनों के साथ मुझे स्थान मिला है, मन मुग्ध है. आजकी व्यस्तता हेतु क्षमा. कल पुनः लौटता हूँ.
जवाब देंहटाएंसादर
दीप पर्व आप सभी के जीवन मेँ प्रकाश हर्ष व उल्लास लेकर आये ये शुभकामनाएँ .....
जवाब देंहटाएं