मित्रो समय का कुछ पता नहीं चलता कि वो कब कैसे बीत जाता है। हम ठगे से रह जाते हैं कि अरे ! अभी तो कल की ही बात थी और साल भर बीत भी गया। असल में हर बीतता हुआ साल हमारे ही बीतने का संकेत होता है। संकेत होता है कि गति के पंखों पर सवार होकर हम बीतते जा रहे हैं। बस एक बात जो हमें हर पल जीवन में बनाए रखती है वो यह होती है कि हम भले ही बीत रहे हों, लेकिन हमें रीतना नहीं चाहिए। बीतना तो हम सबकी नियति है, लेकिन रीतना तो हमारे हाथ में होता है। जो रीतेगा नहीं, वही रचेगा। और एक बात कि जिस चीज़ को हमेशा इस बीतने और रीतने के क्रम में बचाए रखना चाहिए वो होता है हमारा स्वाभिमान। कभी भी किसी भी हालत में अपने स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं करना चाहिए। हमारे अंदर का स्वाभिमान ही हमारी पूँजी होता है, वह कभी इतना नहीं बढ़े कि हम अभिमान के ख़तरनाक क्षेत्र में प्रवेश कर जाएँ। और विनम्र होने के चक्कर में इतना न घटे कि हम कायरता के मरुथल में पहुँच जाएँ। आज धन तेरस के दिन आप सबको यही शुभकामनाएँ कि आप सब अपने स्वाभिमान रूपी धन को बचा कर रखें। आप अपनी रचना प्रक्रिया के द्वारा अपने आपको रीतने से बचाते रहें। शुभ हो यह दीपों का पर्व।
कुमकुमे हंस दिए ,रोशनी खिल उठी
आइये आज धनतेरस के दिन प्रारंभ करते हैं दीपावली का तरही मुशायरा। आज सुनते हैं तीन रचनाकारों राकेश खंडेलवाल जी, अश्विनी रमेश जी और बासुदेव अग्रवाल 'नमन' जी से उनकी रचनाएँ। मैं जानता हूँ कि अब इस ब्लॉग को दस साल हो चुके हैं और आप सब अपने जीवन में व्यस्त हो गए हैं, लेकिन पता नहीं क्यों यहाँ यह तरही का सिलसिला बंद करने की इच्छा नहीं होती, ऐसा लगता है कि एक चौपाल है, जिस पर दीपक जलते रहना चाहिए।
राकेश खंडेलवाल जी
बादलो के कहारों के कांधे चढ़ी
जा चुकी पालकी दूर बरसात की
चांदनी से धुली गंध को ओढ़कर
कांति बढ़ती हुई चंदनी गात की
मखमली मलयजे झूमती नाचती
ओस से पांव रख द्वार पर आ रुकी
देख कर ऋतु की ऐसी सजीली छटा
कुमकुमे हंस दिए रोशनी खिल उठी
चल पड़ी गुनगुनाते हुए इक किरण
छोड़ प्राचीर अरुणाचली भोर की
सज गई अल्पनाओं से हर इक डगर
बाँसुरी की बजी गूँज झकझोरती
दोपहर रेशमी पाग पहने हुए
साँझ को भेजती एक पाती रही
डाकिया दिन उतरते का आगे बढा
कुमकमे हंस दिए रोशनी खिल उठी
द्वार पर लटकी कंदील ने मुस्कुरा
पास अपने सितारे निमंत्रित किये
स्वस्ति चिह्नों ने उच्चार कर मंत्र तब
पल थे जितने सभी कर असीमित दिए
हर्ष उल्लास की बदलियां, हर दिशा
से उमड़ घेरने तन को मन को लगी
मौसमो का तकाजा था, मावस सजी
कुमकुमे हंस दिए रोशनी खिल उठी
राकेश जी इस ब्लॉग पर तरही के चलते रहने को लेकर सबसे बड़े प्रेरक हैं, इस बार भी उन्होंने तीन-तीन रचनाएँ भेजी हैं जो आपको आगे के अंकों में पढ़ने को मिलेंगी। आज का गंध और उजास से भरा यह गीत तो मानों दीपावली के त्योहार को आज ही देहरी पर लाकर खड़ा कर रहा है। विदा ले चुकी बरसात के साथ प्रारंभ होता यह गीत मौसम की सारी आहटें समेटे हुए है। बादल, चाँदनी, ओस, मलयज सब मिलाकर जैसे मौसम का एक पूरी चित्र है। जो कुछ हमारे सामने से गुज़र रहा है, बीत रहा है उस सब को पहले ही छंद में सुंदर शब्दों के साथ पिरोया है। अगले छंद में प्राची से उजाले का संदेश लेकर चली किरण के स्वागत में बनी अल्पनाएँ तथा बाँसुरी तो कमाल है। और अंतिम छंद में दीपावली का पूरा दृश्य सामने आ जाता है। कंदील ने मुस्कुरा कर सितारों को आमंत्रण भेजा और स्वस्ति चिह्नों ने स्वयं मंत्र उच्चारे हों तो हर दिशा में हर्ष और उल्लास घुलना तो स्वभाविक सी बात है। सजी हुई मावस के सुंदर दृश्यों से सजा एक सुंदर गीत। वाह वाह वाह।
अश्विनी रमेश जी
कुमकुमे हंस दिए ,रोशनी खिल उठी
दीप जब जल उठे हर ख़ुशी खिल उठी
लो फ़िज़ा रोशनी की यहां छा गयी
रात दुल्हन बनी बन कली खिल उठी
दीप चारों तरफ झिलमिला अब रहे
है खुशी मन में यूं फुलझड़ी खिल उठी
अबके दीपावली खुशनुमा यों मने
हो खुशी यूं लगे ज़िन्दगी खिल उठी
नफरतों का अँधेरा मिटा जब तो फिर
हर तरफ प्रेम की बस हँसी खिल उठी
चाहे कविता रची या रची फिर ग़ज़ल
दिल ने पाया सुकूँ शायरी खिल उठी
प्यार का वो उजाला चहूँ ओर हो
रोशनी यूं हुई ज़िन्दगी खिल उठी
अश्विनी जी की ग़ज़ल भी सबसे पहले प्राप्त होने वाली ग़ज़लों में होती है हर तरही मुशायरे में। उनकी ग़ज़लों में निरंतर विकास का एक क्रम दिखाई देता है। इस बार भी उनकी ग़ज़ल दीपावली के सारे रंग समेटे हुए है। मतले में ही गिरह के मिसरे के साथ अच्छे से तरही मिसरे को गूँथा गया है। यह पूरी ग़ज़ल दीपावली के अलग-अलग रंगों को अपने में समेटे हुए आगे बढ़ती है। जब दीप चारों ओर झिलमिला रहें हों तो खुशी भी मन में फुलझ़डी की ही तरह खिल उठती है। बहुत ही सुंदर प्रयोग। दीपावली को इस प्रकार खुशनुमा मनाने की बात कि जिंदगी के खिल उठने पर जाकर समाप्त हो, तभी तो दीपावली है। बहुत उम्दा बात कही है। नफरतों का अँधेरा जब मिट जाता है तो उसके बाद जो बचता है वह प्रेम होता है और प्रेम की हँसी होती है। बहुत ही सुंदर बात कही है। सही बात है कि जब भी कोई रचनाकार अपनी रचना को रचता है तो उसे एक प्रकार का सुकून मिलता है, इस सुकून का कोई मोल नहीं होता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, क्या बात है वाह वाह वाह ।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
जगमगाते दियों से मही खिल उठी,
शह्र हो गाँव हो हर गली खिल उठी।
लायी खुशियाँ ये दीपावली झोली भर,
आज चेह्रों पे सब के हँसी खिल उठी।
आप देखो जिधर नव उमंगें उधर,
हर महल खिल उठा झोंपड़ी खिल उठी।
सुर्खियाँ सब के गालों पे ऐसी लगे,
कुमकुमे हँस दिये रोशनी खिल उठी।
दीप उत्सव पे ग़ज़लें सभी की 'नमन'
ब्लॉग में दीप की ज्योत सी खिल उठी।
जगमगाते दीपकों से पूरी पृथ्वी को जैसे शायर ने अंतरिक्ष में बैठ कर देखा है। और वहाँ से नज़र आ रहा है कि शहर, गाँव, गली सब जगह प्रकाश ही प्रकाश है। सब कुछ खिला हुआ सा है। बहुत ही सुंदर मतला। दीपावली का पर्व क्रिसमस के सांता क्लाज की तरह होता है जब आता है तो सबकी झोलियाँ भर देता है सबके चेहरों पर खुशियाँ खिल उठती हैं। और जिस तरफ भी नज़र जाती है उस तरफ सब कुछ खिला हुआ दिखाई देता है। महल से लेकर झोंपड़ी तक सब कुछ खिला खिला सा हो जाता है। जब दीपावली का त्योहार आता है तो उल्लास के कारण सबके गालों पर ऐसा ही प्रतीत होता है जैसे दीपकों के हँसने से रोशनी खिल उठी हो। बहुत ही सुंदर बात कही है। और अंत में मकते का शेर हमारे इस ब्लॉग को और यहाँ पर पिछले दस वर्षों से चल रहे इस सिलसिले को अच्छी तरह से अभिव्यक्ति दे रहा है। सभी सदस्यों को शुभकामनाओं की सुंदर थाली लिए भावनाओं का मंगल तिलक कर रहा है यह मकता। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है। वाह वाह वाह।
तो मित्रो यह है आज का शुभारंभ। तीनों रचनाकारों की ग़ज़लों का आप आनंद लीजिए और दाद देने में कहीं कोई कंजूसी मत कीजिए। मिलते हैं अगले अंक में।
प्रणाम sir
जवाब देंहटाएंधनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें।
लीजिये, दीपावली भी आ गयी, और अपने साथ रौशनी के फूल भी ले आयी। और इन फूलों से महकती ये प्यारी रचनाएँ। क्या बात है।
राकेश खण्डेलवाल sir से हर तरही में प्रेरित होता हूँ। इनका अंदाज़ेबयां कमाल का होता है, और positivity से भरपूर होता है। मौसमों के रंगों से सराबोर गीत से हुए तरही के शानदार आगाज़ के लिए बधाई।
अश्विनी sir की भी बहुत प्यारी ग़ज़ल हुई है।
दिल ने पाया सुकूं शायरी खिल उठी
क्या अहसास है। वाह वाह वाह।
"हर महल खिल उठा, झोंपड़ी खिल उठी"
वासुदेव sir का यह मिसरा दीपावली के वास्तविक अर्थ को दर्शाता है। यही वो समय होते हैं जब वास्तव में हर देशवासी उमंगों से भर जाता है। अपने सामर्थ्य के हिसाब से सब इस त्यौहार में अपने जीवन के कुमकुमों को जगमगाने का प्रयास करते हैं। क्या बात है। वाह वाह वाह।
एक बार फिर, ब्लॉग के सभी सदस्यों को दीपावली के पर्व की हार्दिक बधाई। यह पर्व आपके जीवन को प्रेम से सराबोर करे।
सादर,
नकुल
नकुल जी , ग़ज़ल पर दाद के लिए दिली शुक्रिया !
हटाएंनकुल,
हटाएंपंकजजी, मिसरा तरह इस अंदाज़ में ढूँढ़ कर लाते है कि शब्द अपने आप ही बुनते चले जाते हैं.
आभार.
वाह, दीपावली के तरही आयोजन की शुरुआत हो गई,, और क्या धमाकेदार अंदाज़ से हुई है/
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी के गीत ने एक उल्हास भर दिया है. सचमुच रौशनी बिखेर दी है,, गीत में हमेशा की तरह अध्भुत बिम्बों से उन्होंने ने जो कहना चाहा है, उसका सजीव चित्र खींच दिया है, , इस ब्लॉग की वजह से हर बार उनका नया गीत पढ़ने का अवसर मिल जाता है
आदरणीय अश्विनी रमेश जी ने बहुत ही खूबसूरत मतले से ग़ज़ल की शुरुआत की है. हर शियर में दीपावली के खिलने की और उसके साथ ज़िन्दगी खिलने की ख़ुशी खुल कर बाहर आ रही है. और फिर ये शियर
चाहे कविता रची या रची फिर ग़ज़ल
दिल ने पाया सुकूं शायरी खिल उठी
वाह वाह बहुत खूब.
आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी ने भी दीपावली की उमंग और उत्साह को चित्रित करती बहुत सुंदर ग़ज़ल कही है। सारी ग़ज़ल ही बहुत शानदार हुई है ,और इन मिसरों ने इसमें चार चाँद लगा दिए हैं
- शहर हो गाँव हो हर गली खिल उठी
- हर महल खिल उठा झोंपडी खिल उठी
वाह वाह, वाकई ख़ुशी तब कई गुना बढ़ जाती है जब उसमें सभी शामिल हों , और इस ब्लॉग को समर्पित अंतिम शियर भी बाकमाल हुआ है.
आज के तीनों रचनाकारों ने धूमधाम से शुरुआत कर दी है ,,इस के लिए उन को बहुत बहुत बधाई , अब आगे आने वाली रचनाओं का बेसब्री से इंतज़ार है,,,
और साथ ही इस ब्लॉग के 10 साल पुरे होने पर हम सब को बधाई ,, भगवान करे हम आगे भी हमेशा ऐसे ही साथ में हर त्यौहार मानते रहें
गुरप्रीत जी , ग़ज़ल पर दाद के लिए दिली शुक्रिया !
हटाएंआभार गुरप्रीतजी
हटाएंप्रकृति से तालमेल कर कुमकुमों की रोशनी को सहस्त्र गुना कर दिया है राकेश जी ने। यही तो शायरी है। बहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंहुज़ूर,
हटाएंतरही में शिरकत और दाद देने के आपके अंदाज़ से तो सभी वाकिफ़ हैं. अब मैं कैसे शुक्रिया करूं.
दीप चारों तरफ झिलमिला अब रहे
जवाब देंहटाएंहै खुशी मन में यूं फुलझड़ी खिल उठी
झिलमिलाते दीपो से मन की फुलझड़ी खिल उठना! सुन्दर विचार । बधाई , अश्विनी रमेश जी।
(नयन से ले चमक,और मुख से दमक
हाथ में उनके यूँ, फुलझड़ी खिल उठी)
मन्सूरअली हाशमी जी , ग़ज़ल पर दाद के लिए दिली शुक्रिया !
हटाएंलायी खुशियाँ ये दीपावली झोली भर,
जवाब देंहटाएंआज चेह्रों पे सब के हँसी खिल उठी।
वाक़ई, अपार ख़ुशियाँ लायी है दीपावली, चेहरे ख़शियों से क्यों न खिले!
'नमन' जी के मिसरए सानी को हालाते हाज़ेरा से यूँ जोड़ा है:
(नोटबंदी, जीएसटी को बाजू में रख
आज चेहरों पे सब के हँसी खिल उठी)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"मधुर-मधुर मेरे दीपक जल" चर्चामंच 2761
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
तीनों रचनाकारों को अपनी अपनी मनभावन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ।
जवाब देंहटाएंदिली शुक्रिया संजय दानी जी ।
हटाएंऋतु की सजीली छटा देखकर और दिन उतरते ही साँझ के स्वागत में मावस का कुमकुमों से खिल उठना, वाहः।
जवाब देंहटाएंराकेश जी को बधाई।
लो फ़िज़ा रोशनी की यहां छा गयी
रात दुल्हन बनी बन कली खिल उठी
वाहः क्या बात कही रमेश जी वाहः। बधाई।
आप देखो जिधर नव उमंगें उधर,
हर महल खिल उठा झोंपड़ी खिल उठी।
वाहः, क्या बात कही नमन जी, वाहः। महलों के साथ झोपड़ी भी खिले तभी तो सच्ची दीपावली होगी। बधाई।
दाद के लिए दिली शुक्रिया तिलकराज कपूर साहब ।
हटाएंआदरणीय राकेश भाईजी की भावाभिव्यक्ति दीपावली की प्रकृतिजन्य सात्विकता उकेरती हुई कितनी गरिमामय है !
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह !
आदरणीय अश्विनी रमेश जी की प्रस्तुति त्यौहार और तरही की मनोदशा के अनुरूप है. हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय
आदरणीय बासुदेव नमन जी को इधर लगातार सुन रहा हूँ. आपकी लेखिनी और प्रस्तुति दोनों के बीच का सामंजस्य आश्वस्तिकारी है. हार्दिक शुभकामनाएँ
दीपों का त्यौहार प्रत्येक मन में उजियारा लाये.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ भाई, आपके आने का इंतज़ार था और आप आ गए और सिर्फ आये ही नहीं आपने अपने मधुर स्वभाव अनुरूप मेरी रचना पर जो टिप्पणी की है, उसके लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएंवाह आदरणीय राकेश जी,उम्दा. हमेशा की तरह अव्वल, बधाई।
जवाब देंहटाएंअश्विनी जी का फुलझड़ी.... प्रयोग अति सुंदर।
बासुदेव जी की ग़ज़ल का मतला वाह
दाद के लिए दिली शुक्रिया सुधीर त्यागी जी ।
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