गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

होली के तरही मुशायरे के बारे में आपका क्या विचार है ? हो जाए ?

मित्रों यह सच है कि हम सबकी व्यस्तताएँ इन दिनों बढ़ी हुई हैं लेकिन इन व्यस्तताओं के बीच ही हमें अपने लिए, अपने शौक़ के लिए समय तो निकालना ही होगा। जीवन की तो अपनी गति होती है और वह उसी गति से चलता रहेगा। उस गति के बीच-बीच से हमें अपने लिए समय के टुकड़े चुराने होंगे। पहले हम साल भर में चार या पाँच मुशायरे करते थे फिर धीरे-धीरे कम होते हुए यह हुआ कि साल भर में एक ही हो पा रहा था। अब चूँकि आपने देखा होगा कि शिवना साहित्यिकी में हमारा यह मुशायरा जस का तस प्रकाशित हो रहा है और शिवना साहित्यिकी त्रैमासिक पत्रिका है तो अब हमें साल भर में कम से कम चार मुशायरे तो करने ही होंगे। चलिए इसी बहाने से निरंतरता बनी रहेगी। चूँकि प्रकाशन का मामला है तो यह भी हो जाएगा कि इस बहाने आप सबकी ग़ज़लें ऑन द रिकार्ड भी आती जाएँगी।

होली को लेकर हमने पूर्व में कई आनंद उत्सवों का आयोजन किया है। इस ब्लॉग के होली के मुशायरे आभासी दुनिया का एक बहुत ही लोकप्रिय आयोजन हुआ करते हैं। होली के मुशायरे में ग़ज़लों से ज़्यादा आनंद कमेंट्स में आता रहा है। कई- कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि सौ से भी ज़्यादा रोचक और दिलचस्प कमेंट्स आए। होली का त्यौहार होता ही ऐसा है, आनंद से भरा हुआ, ख़ुशियों से छलकता हुआ। एक ऐसा त्यौहार जो बहुत ख़र्च नहीं करवाता, बस अंदर से प्रसन्न हो लीजिए तो होली हो जाती है। इस ब्लॉग के होली आयोजनों की कई ग़ज़लें सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं होली पर। नीरज जी की एक ग़ज़ल तो पिछली दो होलियों से धूम मचा रही है सोशल मीडिया पर। कई समाचार पत्रों ने अपने होली अंकों में इस ब्लॉग की ग़ज़लों को जस का तस प्रकाशित किया है। हमारी सफलता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है।

होली के मुशायरे को लेकर इस बार दो-तीन दिन से मिसरे को लेकर मशक़्क़त चल रही थी। असल में कोई ऐसा मिसरा देने की इच्छा थी जिस पर होली के साथ-साथ प्रेम भी हो। हास्य या व्यंग्य लिखना थोड़ा मुश्किल होता है ऐसे में यदि कोई होली पर सीधी-सादी प्रेम की ग़ज़ल भी कहना चाहे तो उसे भी परेशानी नहीं आए। बहुत सोचने के बाद लगा कि सुरीली बहर को लिया जाए। सुरीली बहर की बात चली तो याद आ गई मुतदारिक बहर। सोचा क्यों न मुतदारिक मुसमन सालिम पर ही इस बार होली का मुशायरा आयोजित किया जाए। हमने पहले इस पर दीपावली को मुशायरा आयोजित किया था। 212-212-212-212 फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन-फाएलुन। होली तो वैसे भी गीत-संगीत का उत्सव है तो ऐसे में सुरीली और गाई जाने वाली बहर का अलग आनंद आएगा। तो इस बार हम इसी बहर पर मुशायरा आयोजित करते हैं। मिसरा यह रहा

आओ रँग दें तुम्हें इश्क़ के रंग में

इसमें “के” में जो “ए” की मात्रा है वह हमारे क़ाफ़िये की ध्वनि होगी और “रंग में” रदीफ़ होगा। मतलब कि नए, हरे, साँवले, के, जैसे क़ाफ़ियों का उपयोग ​किया जा सकता है। नए रंग में, हरे रंग में, साँवले रंग में, मद भरे रंग में जैसे टुकड़े जोड़े जा सकते हैं।

जैसा कि पूर्व में सूचित किया कि यह मुशायरा जस का तस शिवना सहित्यिकी के अप्रैल अंक में प्रकाशित किया जाएगा तो अपनी ग़ज़लों के साथ अपने फोटो भी भेजिए। साथ ही अपना डाक का पता भी भेजिए ताकि आपको पत्रिका भेजी जा सके। समय कम है इसलिए आज से ही कार्य प्रारंभ कीजिए। जो आप लिखना चाहें यदि होली के अवसर पर हास्य व्यंगय का तड़का लगाना चाहें तो आपका स्वागत है। क़ाफ़िया और रदीफ़ का कॉम्बिनेशन कुछ कठिन है इसलिए सोच-समझ कर क़ाफ़ियों का चयन कीजिएगा। तो उठाइए क़लम और शुरू कीजिए कार्य, होली में अब बहुत कम दिन बचे हैं। मेरे बहुत अच्छे मित्र तथा बहुत अच्छे गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना का इसी बहर पर लिखा हुआ यह गीत सुनिये। गीत बहुत लोकप्रिय हुआ और इसे एक फ़िल्म में भी उपयोग किया गया है। सुनिए डॉ. विष्णु सक्सेना के मधुर स्वर में, धुन को गुनगुनाइए और धुन पर ग़ज़ल कहिए यदि मुश्किल हो तो

27 टिप्‍पणियां:

  1. समय मिलता नहीं उसे निकलना पड़ता है , करते हैं कोशिश क्या पता इस नेक काम को करने को निकल जाए , हमारा निकल गया तो आनंद आएगा न निकला तो जिनका निकल गया उसे देख कर आनंदित हो लेंगे !!

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह गुरु जी... आखिर इंतज़ार ख़त्म हो ही गया.... होली के लिए मिसरा मिल गया.... एक बार तो (2122-2122-2122-2122) ने कन्फ्यूज़ कर दिया था। ..लेकिन फिर (फाएलुन- फाएलुन-फाएलुन- फाएलुन) ने क्लियर कर दिया..
    और गुरु जी ये भी आज पता चला की 'रंग' जैसे श शब्दों को '2' और '21' दोनों तरह इस्तेमाल किया जा सकता है... बहुत बहुत धन्यवाद्

    जवाब देंहटाएं
  4. हाँ टाइपो एरर हो गई थी अंक में अब ठीक कर दी गई हे

    जवाब देंहटाएं
  5. जब चँद्र बिन्दु के साथ लिखा जाएगा तो 2 का वज़न होगा और जब बिंदी के साथ होगा तो 21 का वज़न होगा रंग और रँग । जैसे हंस और हँस

    जवाब देंहटाएं
  6. इसीलिए पहले रँग और रङ्ग इस प्रकार लिखा जाता था

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. समझ गया. विस्तार से बताने के किए शुक्रिया

      हटाएं
  7. वाह, पढ़ कर हुआ मन मेरा बावरा
    मौन कैसे रहे मन अरे रंग में

    जवाब देंहटाएं
  8. स्वागत है। प्यारी बह्र है। रदीफ़ का बंधन कठिन तो है पर मंच भी कमज़ोर नहीं है।
    मज़ा आयेगा।

    जवाब देंहटाएं
  9. जय-जय ! .. होली तो वाकई होली है !
    कार्यालयी, व्यावसयिक या दैनिक व्यस्तताओं से छुटकारा पाने की छटपटाहट वसंत के मौसम में फ्गागुन के महीने में न होगी तो आखिर कब होगी ? यही तो समय है रंग और विरंग को दैनिकचर्या में समायोजित करने का ! .. :-))
    शुभ-शुभ

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह....मजा ही आ गया। .बहुत ही जवाब मिसरा है। .. मजा ही आने वक है इस बार तो. बहुत दिनों से प्रतीक्षा थी इस आयोजन की.
    होली पे धमका होने वाला है इस बार। मेला रंग और प्रेम का है तो बात ही क्या ...

    जवाब देंहटाएं
  11. पंकज जी होली पर तरही तो बनती ही है। साथ ही नीरज जी और तिलक जी की नोंक-झोंक का मज़ा भी आयेगा। एक छोटा सा सुझाव है उचित लगे तो विचार करें। यह ज़ुबान का मसअला हरगिज़ नहीं है; बस होली के माहौल को देखते हुये 'इश्क़' की बजाय शायद 'प्रीत' अधिक मुफ़ीद लगता है। जैसा आप को उचित लगे।

    जवाब देंहटाएं
  12. आओ रँग दें तुम्हें प्रीत के रंग में

    दोनों घुलमिल हो जायँ एक से रंग में
    यह भी ख़ूब रही, होली के साथ और कई रंग महफ़िल को रंगीन कर रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  13. अब हम तो होली के रँगों में रंग जायेंगे
    उम्मीद कि इस तरह ग़ज़ल कर जायेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  14. इन्तजार ही कर रहे थे कि मिसरा आ गया। होली की तैयारियों और मार्च के महीने के मौसम का मजा सुबीर संवाद सेवा के मुशायरे के साथ घुलमिल गया है। यंहा आने वाली बेहतरीन ग़ज़लों को गुनगुनाते रहिये,और गुंजिये बनाते रहिये। मिठास और प्रेम भरी गुंजियो की रेसिपी है ये अपने लिए तो।
    कोशिश करेंगे कुछ कहने की इस बार प्रेम पर। हास्य व्यंग्य तो हमसे क्या ही होगा।

    जवाब देंहटाएं
  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. आदरणीय तिलक राज कपूर जी ने ठीक कहा कि यहां रदीफ़ का बंधन कठिन है क्योंकि फिर हाथ खुलता नहीं जैसा खुलना चाहिए ।

      हटाएं
    3. एक पक्ष और है कि यहाँ ग़ज़ल का इतना अनुभव लगभग सभी को हो गया है कि यह चुनौती अच्छे शेर देगी। इससे भरती के शेर कम आयेंगे ऐसी आशा है।

      हटाएं
  16. गुरू जी इस बार तो लगता है फँसा दिया है आपने...कुछ खास सूझ नही रहा है....लेकिन हम भी आपके शिष्य हैं....कुछ ना कुछ तो कर के दिखायेंगे

    जवाब देंहटाएं
  17. क्या "बेरंग" को काफिए के तौर पर लिया जा सकता है ??

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

      हटाएं
    2. गुरप्रीत जी,
      ऊपर पोस्ट में ये बात स्पष्ट कर दी गयी है कि काफिये की अंतिम ध्वनि "ए"की ध्वनि यानि मात्रा होगी ।

      हटाएं
  18. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय अश्विनी रमेश जी...लेकिन मैं यह जानना चहता था कि क्योंकि "बे-रंग" का "रंग" तो रदीफ ही है...तो क्या यहाँ पर "बेरंग में" लेना जायज होगा..मुझे याद नही आ रहा लेकिन शायद मैने कही इस के बारे में कुछ पढ़ा है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मेरे ख्याल से ये सही नहीं लग रहा ,वज़न के हिसाब से बहर बिगड़ जायेगी । बाकी और भी राय दे सकते हैं।

      हटाएं
    2. अगर बेरंग बॉंध सके तो अनूठा शेर होगा। प्रयास करें।

      हटाएं

परिवार