बुधवार, 4 मार्च 2015

होली नहीं ये होला है, ये बोफोर्स का गोला है । ढिंक चिका, ढिंक चिका, ढिंक चिका, ढिंक चिका होली है। होली की ये पहली किश्‍त भांग पी कर पिरस्‍तुत हेगी।

लो कल्‍लो बात, होली तो जे आन ठाड़ी हेगी माथे पे। इभी तक तो हमारे इते पानी गिर रओ है, ने ठंड भी पड़ रई है। कां से मनाएं होली। ऊपर से सुवाइन फूलू के कारण ओर डर लग रओ है। कजाने कब किधर से आके सुवाइन फूलू का भाई-रस  चेंट जाए। अपनी मानो तो जे दफा होली की जगे अपन लोग दिवाली मना लेते ह‍ेंगे। चोंकि मौसम भी तो बेसा ही हो रिया है। मगर नी नी नी, दिवाली में तो भोत ही खरचा होता हेगा। अपनी तो होली ही अच्‍छी हेगी कि कुछ मत करो और मना लो। तो जनाब पिरस्‍तुत हेगी होली की पहली पिरस्‍तुती । आज कुछेक जन आ रए हेंगे और फिर उसके बाद कल बाकी के लोग लुगाई आएंगे।

holi-cartoons 

आज के दिन सबसे पेले जो आ रिये हेंगे उनको पेले तो नइ आना चइये पर आ रय हैं। चोंकि उनको दो तीन रचना पेलने की बुरी आदत हेगी। तो आज एक पेलेंगे और सियाद कल भी एक पेलेंगे और भगवान आपको नेकी दे कि हो सकता है बासी होली में भी एकाध पेल दें।

राकेश खंडेलवाल

rakesh ji

जनाब श्री पंकज सुबीरजी गज़लों वाले श्री गिर्राज महाराज की जय. भईये किताबन की नुमाईश की भागा दौड़ी में भूल गये कि ई होली कौ त्योहार ठेठ ब्रज कौ है. जभी तो रसिया की जगह गज़ल घुसा दयी और तो और सबहीं कू लपेट लियो कि गज़ल लिखो. नांय हम तो न लिखें गज़ल फ़ज़ल. हम तो खालिस रसिया ही लिख भेजिन्गे

जय श्री पंकज जी महाराज, गज़लन की कथा उवाच रहे
नीरज तो ले भगो काफ़िया, तिलक संगठित करें माफ़िया
सौरभ गज़ल घोटवे कूँ सिल बट्टा अपनो जाँच रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

पाँच सेर की चढ़ी कढ़ैय्या, हाशिम के पौ बारह भईया
मोहड़े  पे मल रंगे मोहब्बत, सबहों दिखावत काँच रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

गौतम लिखिवे दुई अढैय्य्या, डिम्पल नाचै ता ता थैय्या
अंकित कोशिश करे शेर गिनती में केवल पाँच रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

पूजा लायै बना के डोसा, लाई पारुल बीस समोसा
सब के सब खा कै पंडित जी, पान मसालौ फ़ाँक रहे
गज़लन की कथा उवाच रहे

एक बार फिर बोलो गिर्राज महाराज की जय. बोल श्री राधे.
हमारे ब्रज में होली पे कहो जात है:-
बोल गिर्राज महाराज की जय
जो नहिं बोले, वई में दै
फिर खा लड्डू   चार कचौड़ी छह.

कसम से री गंगा मैया की इत्‍ती बुरी तो कविता लिखी हेगी कि कानन में से रात भर से उल्‍टी हे रइ हेगी। रात भर जेइ कविता कानन में से हीटती रइ है। चोंकि इनसे कोई कुछ बोल नहीं सकत है तो चाए जो पेल दो। हमऊं सुने रहे कि कोई जब भरिष्‍ठ हो जाए हे तो वो गरिष्‍ठ भी हो जाए है । हमाओ डाकटर कह है कि जियादा गरिष्‍ठ खाबे से पेट खराब होए है। राम जाने अब जियादा गरिष्‍ठ सुनबे से कजने का होगा। पर भैया अपनी जे कविता फविता जो है वो सब उदर ही रखो अपने अमरिका में । काय कि भारत के लोग लुगाई को अच्‍छी बुरी की समझ है। तो आगे से इत्‍ती बुरी कविता लाए तो समझो कि 'वई में दै' ।

होली की सूचना : हमाए इते के परधानमंत्री को केबो है कि बुरी कविता को कचरो भी साफ करबे लाने अभियान चलेगो। अब हम जे बात इस कविता के बाद चौं लिखे जे बात आप खुदई समझदार लोग जान लो।

dharmendra

घूंघट की आड़ से चश्‍मे का दीदार अधूरा रेता हेगा, जब तक ना पड़े आयकर की नजर काला धन अधूरा रेता हेगा। कोन के रिया हेगा कि काफिया भी नी मिला और बहर भी खराब हो गई हेगी। नहीं हुई हेगी। हमने लिखी है ।

धर्मेन्द्र कुमार सिंह

तुमको भी जरा सी मैं ये भाँग पिला दूँ तो
दिल ने जो कहा मुझसे तुमको भी बता दूँ तो

ये रंग ये पिचकारी सबकुछ मैं छुपा दूँ तो
होंठों की तरफ तेरे मैं गाल बढ़ा दूँ तो

गोदाम है रंगों का हर अंग तेरा गोरी
होंठों से उठाकर कुछ गालों पे लगा दूँ तो

क्या अपनी मुहब्बत में मुझको न डुबो दोगी
तुमको ही ख़ुदा कहके मैं सर को झुका दूँ तो

ग्रन्थों में पढ़ा तुमने मरने पे मिले जन्नत
जन्नत मैं यहीं तुमको जीते जी दिखा दूँ तो

क्या आज ही मल मल के इसको भी छुड़ा दोगी
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो

अब भैया अपन को तो जे घझल कुछ खास नी लगी। ( बुरी लगी ऐसा केने से आदमी नराज हो जाता हेगा) काय कि पूरी ग़जल में के रय हैं कि रंग लगा दूं, रंग लगा दूं, पर लगा नइ पा रय हैं। काय हमें तो जे लग रओ है कि जे कछु थोक के भ्‍योपारी हैं, चोंकि गोदाम की बात तो थोक बाले ही करते हेंगे। अब इत्‍ती सी बात के लिए पूरी गजल के दी। काय रे लोग लुगाइयों, अपने इते अपने भारत में लोग जने कित्‍ती तो फुरसत में हो रय हेंगे। झटाक से सोचा ने फटाक से गजल लिख दी। काय कि अब जियादा किछु तो करना नइ है। अपने इते तो थोक में सब लोग लुगाई बैठे ही हैं वाह वाह करबे के लाने । कछु भी पेलो कभी भी पेलो।

सूचना - सिबना परकाशन की तरफ से सभी को सूचति किया जाता है कि इस बार जो भी सबसे अच्‍छी कभिता पेलेगा उसको सिबना की ओर से 'डाली धतूरे की' और 'पाल ले इक स्‍वाइन फूलू नादां' के कभर पेज की फोटो कॉपी भेजी जाएगी। सूचना समापत।

Digamber Dinesh 2

दिगंबर नासवा , दिनेश कुमार

अपने इदर होली पे जब तक किसी की लगन नी होय, सादी नी होय तो अपने को तो भैया मिजा ही नी आए है । तो इस बार जो सियादी हो रइ हेगी वो इन दोनों जनों की हेगी।  

दिगंबर नासवा

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूं तो
ये मांग तेरी जाना तारों से सज़ा दूं तो

तुम इश्क की गलियों से निकलोगे भला कैसे
मैं दिल में अगर सोए अरमान जगा दूं तो

लहरों का सुलग उठना मुश्किल तो नहीं इतना
ये ख़त जो अगर तेरे सागर में बहा दूं तो

कुछ फूल मुहब्बत के मुमकिन है के खिल जाएं
यादों के पिटारे से इक लम्हा गिरा दूं तो

उलफ़त के परिंदे तो मर जाएंगे ग़श खा कर
मैं रात के आँचल से जो चाँद उड़ा दूं तो

बातों में तेरी सरसों, खुशबू में तेरी सरसों
मैं सांस न ले पाऊँ गर तुझको भुला दूं तो

तुमको भी मुहब्बत है हमको भी मुहब्बत है
ये राज भरी महफ़िल में सब को बता दूं तो

अब इनको कोन सिमझाए कि मांग को तारों से सजाना तो दूर की बात हेगी, तुम पेले इनकी मांग ही पूरी कर दो। ये जो सादी होती हेगी जे दरअसल में मांग पूरी करने का ही ठेका है। जो आपने मांग भरी है अभी अभी सिंदूर से तो आपका समझाया गया हेगा कि अब आपको मांग भरते ही रेना है। ओर जे सरसों उते धुबई में कां से आ गई रेत में । रेत में सरसों खिला के लोग लुगाइन को भेकूफ बना रय हो। काय का हमें नई पता, हमने फोटो में धुबई देखी हेगी। धुबई में को ई सरसों फरसों नइ खिलती। मियां घर में से चमगादड़ उड़ा रय हो और दुनिया को बता रय हो कि उल्‍फत के परिंदे उड़ा रय हो। काय क्‍या हम शकल से ऐसे दिखते हैं। और दिखते हैं तो दिखते हैं पर ऐसे हैं नहीं । और चलो हों भी तो क्‍या दुनिया को बताओगे। हां नहीं तो।

सूचना : जा बारे को ज्ञानपीठ सिम्‍मान उते भोपाल के कोउ तिलकराज को दओ जा रओ हेगो। काय कि बे जो हेंगे बे कभ्‍भी से ज्ञान की तरफ पीठ करके बैठे हेंगे। और ज्ञान को पीट पीट के भगा भी रय हैं। सूचना सिमापत ।

Digamber Dinesh 3

काय के जिनका बड़ा फोटू ते ऊपर लगो हेगो पर पैचान के लिये एक पासपोर्ट साइज को फोटू इतइ भी लगा दओ हेगो कि पैचानने में आसानी रए आपको कि कविता सुनने को बाद किसको मारबो हेगो।

दिनेश कुमार

मैं रंग मुहब्बत का इस दिल पे लगा दूँ तो
अहसास जवाँ रुत का तुमको भी करा दूँ तो

यौवन के मैं आँचल को हल्के से हवा दूँ तो
बादाए जवानी को नज़रों से पिला दूँ तो

फागुन का महीना है, दस्तूर है मौका भी
मैं प्यार के शरबत में कुछ भांग मिला दूँ तो

बेचैन बहुत करती होंठों की तेरे लाली
इस लाली को मैं अपने होंठों से मिटा दूँ तो

तुम सामने हो मेरे मदहोश मेरा दिल है
बाँहों में तुम्हें भरकर दुनिया ही भुला दूँ तो

आँखों में तुम्हारी भी इज़हारे मुहब्बत है
आईना मैं बन जाऊँ और सच को दिखा दूँ तो

रुसवाई तो मुमकिन है महबूब मगर फिर भी
जो तुझ पे ग़ज़ल लिक्खी सर-ए-बज़्म सुना दूँ तो

काय के हमको तो कुछेक लाइनों पे जम के सरम आई हेगी। हमाइ तो इच्‍छा हेगी कि कुछेक लाइनों को हम कोइ सो सर्टिफिकेट दे दें कि इन लाइनों को केवल भयस्‍क लोग ही सुन सकते हैं। सुन सकते हैं और सकते में आ सकते हैं। जे बात तो हमको समझनी ही पडेगी के अगले ने अपना कोई पुराना पत्र निकाला है जो जिवानी के दिनों में ( अगर जिवानी आई थी तो) लिखा होगा । पत्र में रदीफ और काफिया फिट कर घझल बना के पेल दिया गया हेगा। आप सब लोग लुगाइन के गले की कसम इत्‍ती बुरी घझल हेगी कि हमें तो झां तक बदबू आ रइ हेगी। मगर अपने को क्‍या अपने को तो सुनना है। काय की सजा जो मिली हेगी।

सूचना : अपने इते को खजेलो कुत्‍तो टॉमी कल से पगरा कओ हे। गुम भी गओ हे। जिस किसी लोग लुगाइन को टॉमी मिले वो टॉमी को लेके इते ना आएं, जब टॉमी दिखे तो बा से अपनी टांग कटवा लें और फिर चौदह इंजेक्‍शन लगवा लें काय कि जेई टॉमी को इलाज हेगो। सूचना खतम भई।

ganesh ji

ज्‍ज्‍ज्‍जे ब्‍ब्‍ब्‍बात, गनेज्‍जी सियाद अपने इते पेली बार आ रय हेंगे। भोत सारा काम करते हेंगे। इत्‍ते काम करबे के बाद जब सुस्‍ताते हेंगे तो ऐसे फोटू खिंचवा लेते हैं।

ई. गणेश जी "बागी"

पत्थर से तेरे दिल को मैं मोम बना दूँ तो
चिंगारी दबी है जो फिर उसको हवा दूँ तो.

इस शहर में चर्चे हैं तेरे रूप के जादू के
मैं अपनी मुहब्बत का इक तीर चला दूँ तो.

क्या नाज़ से बैठी हो फागुन के महीने में
मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूँ तो.

तुम कहते हो होली में इस बार न बहकूँगा
गुझिया व पुओं में मैं कुछ भंग मिला दूँ तो.

गर जेल मुहब्बत है, आजाद नहीं होना
ता उम्र सजा दे दो जो नींद उड़ा दूँ तो.

ये बात समझ लेना चाहत है मेरी सच्ची
सपनों में अगर आकर रातों को जगा दूँ तो.

तू रात की रानी है मैं फूल कनेला हूँ
कैसा वो समां होगा, दोनों को मिला दूँ तो ?

गनेज्‍जी ने नूं केने तो अच्‍छी कई है घझल पर अपनी तो किछु भी सिमझ में नइ पड़ी हेगी। काय कि अपने बड़े लोग केते हैं कि जदी कोई बात सिमझ में नहीं आ रइ है तो सिमझो क‍ि कोई भोत बड़ी बात हेगी। तो अपन भी सिमझ रय हैं कि कोई न कोई बडी बात गनेज्‍जी ने कइ हेगी। अब जे बड़ी बात कोन सी हेगी जे समझने के लिए अपन ने अपने इते के पुलिस बारे को ठेका दे दओ है। काय कि हमे बस जे समझा दो कि गनेज्‍जी ने कोन सी बड़ी बात के दई है । काय कि कोउ हमउं से पूछ ले कि बताओ तो हम का बताएंगे। हमें किछू किछू लग तो रओ है कि हम किछू बन गए हेंगे। का बन गए हेंगे वो इते नइ बता सकते हैं। पर कोई बात नहीं घझल सुनो और मजे करो ।

सूचना : जा दफा अपने इते को चुनाव हो रओ हैगो कि कौन को जा बार होली पे गधे पर बिठा कर जलूस निकालनो हेगो। हम भी खड़े हैं और हमाओ निसान है खच्‍चर। तो खच्‍चर को बटन दबा के गधे को........ हमाओ मतलब है हमें जिताओ। सूचना सिमापत भई ।

sanjay

उते छत्‍तीसगढ़ के डाक्‍टर लोगों ने सुवाइन फूलू से बचबे को नओ तरीको निकालो हेगो। डाक्‍टर साब भी बा तरीके को ही डेमो आप सभन को दे रय हैं।

डा संजय दानी

मैं हुस्न की इज़्ज़त इस होली में बढा दूं तो
औ अपनी जबीं उनके पैरों पे झुका दूं तो।

मैं रंग मुहब्बत का थोड़ा सा लगा दूं तो,
या इश्क़ का चखना तुमको आज चटा दूं तो।

माना तेरा भाई भी इस शहर का गुंडा है,
मैं उसको शराफ़त की बंदूक थमा दूं तो।

गो तेरा मुहल्ला ये  सदियों से शराबी है,
मैं भांग की अच्छाई लोगों को बता दूं तो।

तुम शादी की बातें सुन डर जाती हो क्यूं आखिर 
मैं तुमको सुखी, हंसते जोड़ों से मिला दूं तो।

तुम सुख की हवाओं से करती हो मुहब्बत क्यूं,
मैं ग़म के चराग़ों का गर जलवा दिखा दूं तो।

क्यूं होली के दिन तुम यूं  आती हो मेरे आगे
दानी मैं नशे में गर ईमां ही डिगा दूं तो।

डाकटर साब को कोउ ने बताओ नहीं हेगों कि पांव में भोत सारे भाइरस होते हैंगे। पैरों में जबीं झुकाओगे तो कोनो भाइरस चिपक जाएगो। और आपके गले की कसम इलाज कराने दूसरे डाकटर के पास जानो परेगो, काय कि आप से तो किछु होबे से रओ। आप तो मरीज को इलाज भी दूसरे डाकटर से मोबाइल पे पूछ पूछ के करते हो। और ईमान से आपको इलाज तो दूसरे डाक्‍टर भी नहीं करबे बारे, काय कि उनको जे तो पता ही हेगा कि फीस वीस तो किछु मिलने से रही। तो भैया हमें तो आपको जेई सिमझाना है कि पैरों पे ज़बीं वबीं मत झुकाओ ( एक तो कोई हमें पेले जे ज़बीं को मतलब सिमझाए) जहां पे भी आपकी ज़बीं हेगी उसे भंई रेबे दो। काय नुसकान करवा चाय रय हो।

सूचना : सिबना परकासन ने निरनय लियो हेगो कि जो कोई भी सबसे पेले होली पे दाद खाज खुजली देबे टिप्‍पणी में आएगो उसको सिबना की पुस्‍तक 'अंधेरी रात की चिमनी' दी जाएगी। चिमनी अलग से दी जाएगी और किताब अलग से। सूचना समापित।

sarvjeet

काय कि जे भी पेली बार आ रइ हेंगीं तो जा लाने जे तलवार लेके आईं हैं कि कोऊ अगर दाद खाज ना दे तो तलवार दिखा दिखा के अपनी घझल पे दाद खाज ले लेंगीं।

सर्वजीत सर्व

भीगी हुई आँखों को, मैं हंसना सिखा दूँ तो..?
ग़म सबसे छुपाने की, तरकीब बता दूँ तो ..?

है नूर सा उस रुख पर ,शोखी भी हया भी है
मैं रंग मुहब्बत  का, थोड़ा सा लगा दूँ तो ..?

फागुन की हुई आहट ,दर खोल दिया मैंने
फूलों से भरी चादर, आँगन में बिछा दूँ तो ..?

जिन आँखों ने शायद, कोई ख़्वाब नहीं देखा
इक ख़्वाब तिरे जैसा, इनको भी दिखा दूँ तो ..?

कुछ बोल न पाऊं मैं , जब पास हो वो मेरे , 
धड़कन मैं मेरे दिल की, तब उसको सुना दूँ तो..?

क्यूँ चाँद ये शरमीला, अब छत पे नहीं आता
आँचल से अगर अपना, चेहरा मैं छुपा दूँ तो..?

रख रात के शाने पे, सर अपना वो सोया है 
चुपके से कहो आ कर, गर इसको जगा दूँ तो ..?

हमें तो इत्‍ती सी बात पता हेगी कि आपने उते ''दुनिया भर की किताब मेला'' में भोत ही अच्‍छा सरसों का साग और मक्‍का की रोटी खिलाई थीं। अब झूठ तो हम कभी बोलते नहीं सो जे बात कि सरसों की साग जो थी वो इस घझल से लाख गुना अच्‍छी थी। नइ नइ जे बात नइ है कि घझल में कोनो खराबी है। नइ नइ आप तो बुरा मान रहीं हेंगीं। हमने नहीं कहा कि घझल ख्‍राब है हमने तो इत्‍ती सी बात कही है कि सरसों को साग जियादा अच्‍छा था। अब देखो जा में बुरा मानने की कोनो बात नहीं हेगी। आपकी घझल पे दाद खाज खुजली हम सब कुछ दे रए हैं पर बात क्‍या है कि सरसों की साग की तो बात ही अलग थी। तो हम मन में सोच सरसों के साग को रए हैं और दाद घझल पे दे रए हैं।

सूचना - काय कि हमाए गांव के लोग हमसे के रए हैं कि हम अपने गांव के सबसे सुंदर भ्‍यक्ति हेंगे। पर फिर भी आप सबके आसिर्वाद की जिरूरत हेगी। हम जो हैं हम फिल्‍मों में काम करबे जा रय हेंगे। एक फिल्‍म में हमको काम भी मिला है। भोत सारे घोड़ों के सीन में हम खाल पहन के घोड़े बनेंगे।

तो जे तो हो गई आज की बात । कल मिलते हैं कुछ और लोग लुगाइन के साथ । तब तक देखते रहिए खाज तक।

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22 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय पंकज जी
    होली का रंग रंगीला सादर प्रणाम आपको और इस ब्लॉग से जुड़े सभी प्रबुद्ध जनों को
    हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही ,पेट के साथ साथ जबड़े भी दुखने आ गए हैं। लोग दोहरे होते होंगे हँस हँस के, मैं जाने कितनी हरी हो गयी हूँ। आपने जिन जिन महोदयों की तस्वीरों में होली का रंग भर उन्हें मोहतरमा बना दिया है। मालवा की कसम ग़ज़्ज़्ज़ब खूबसूरत लग रहे हैं । आपके sense of humer को सलाम।
    ग़ज़ल फज़ल तो हमसे भी ना हुई। हम तो इस बार टिप्पणियॉ लिख लिख तमाम फोटुकापियाँ बटोर ले जायेंगे।
    ढेर सारी शुभकामनाओं,दुआओंऔर मुस्कुराहटों के साथ आप सभी को ,पूरे शिवना परिवार को लाल गुलाबी नीली पीली
    नमस्कार
    सादर
    पूजा...:):):)

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    1. चिमनी कछुए की पीठ पे धर के भेजी जा रही हेगी। मिलने पर सूचना दें। सूचना का पत्र उसी कछुए की पीठ पर रख कर भिजवा दें।

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    2. ये जानकर कि पहली टिप्‍पणी उत्‍तर दिशा से आई है कछुआ दक्षिण दिशा को रवाना किया गया है। अगर रस्‍ते में दक्षिण घ्रुव पर नहीं जमा तो उत्‍तर ध्रुव पर तो परिवार बसा लेगा ऐसी संभावना है । मिल जाये तो बतायें।

      हटाएं
  2. हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा, हा

    मिल गएली अँधेरी रात की चिमनी।

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    उत्तर
    1. न, न, पूजा जी ले गईं अँधेरी रात की चिमनी। बधाई हो पूजा जी को

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    2. हमउ हंसब कोउ से ना डरब ही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही हीही ही ही ही ही

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  3. मन बहका रे बहका ’फाग की’ रात को.. !!
    जैसी ना लोगा-लुगइअन, घझल घिसइयन, के भीड़ बिटुराई है अबकी जे ई कहना मुस्किल है, जे घझलिया मस्तानी हुई के सभका रूप निखार चमक आया है !
    ग़ज़ब का खूँटा भभ्भड़.. जमे रह पट्ठा !!.. .

    घोसित भई सभ सूचना में से कई सूचनायें पूरा भोपूंवाची हैं, उन्हें तुरन्ते अकासबानी के माइक पर दूर से दर्सनियाया जाये.

    कल तक के लिये मसाला मिल गया.. हम चले अपनी घझलिया को सिल-बट्टा पर घिसने.. बतर्ज़ श्रद्धेय राकेश भाईजी.. .
    शुभ-शुभ

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    1. अकासबानीया पे हम झरूर पिरसारित करेंगे रात के साढ़े पिचहत्‍तर बजे, आप अबस्‍य सुनियेगा अपने कानन में कड़वा तेल डाल के । अने सिर में चमेली का तेल डाल के काहे के कहावत भी तो सही करनी है।

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  4. सर्वजीत सर्व जी ,नासवा साहब,दिनेश जी,धर्मेन्द्र जी,डॉ दानी जी,बागी जी,और राकेश जी.....भाई होली की शुरुआत ही इतनी रंगारंग की है आप लोगों ने की होली आज ही से शुरू हुई जानो।
    खूब क़लम को पिचकारी बनाया है और ख्यालों से भर भर के जो रंगीन रदीफ़ काफ़िये की रंगोलियां बनायीं है। कमाल है
    सभी को ढेर सारी दाद खाज़ खुज़ली......
    ढेरों ढेर तालियों के साथ दिली बधाइयां आप सभी कलमकारों के नाम
    सादर
    पूजा

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    1. दाद खाज खुजली देने हेतु आपका सुक्रिया । काय के हमाए पास दाद खाज की दवा की पूरे इंडिया में भितरण की एजेंसी है। आप जेतना दाद खाज बांटेंगे उतना हमारा दवा बिकेगा और बिक्री पर आपका कमीशन पक्‍का है।

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  5. ये जानकर कि पहली टिप्‍पणी उत्‍तर दिशा से आई है कछुआ दक्षिण दिशा को रवाना किया गया है। अगर रस्‍ते में दक्षिण घ्रुव पर नहीं जमा तो उत्‍तर ध्रुव पर तो परिवार बसा लेगा ऐसी संभावना है । मिल जाये तो बतायें।

    जवाब देंहटाएं
  6. हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु,, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु,, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु, ह, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु,, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु,, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु,हु. हु, हु, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु. हु, हु, हु, हु. हु, हु, हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,हु,

    हमने तो आज से ही भांग पीना शुरू कर दिया तो कछु समझ नहीं आ रिया ... बस रंग ही रंग दिखाई दे रहा है ... और जाने क्यों सब हंस रहे हैं ... पगलिया गए हैं सब ... कछु लाइने सबने पेल दीं और मिल के हा हा, ही ही, हु हु करन लागरे हैं ...इब पेट में दर्द हो गया तो डाकतार का बिल सीहोर भिजवा देंगे ...

    जवाब देंहटाएं
  7. पहली बार पोस्ट पढ़ी -हंस लिए , दूसरी बार पोस्ट पढ़ी हंस लिए, तीसरी बार पोस्ट पढ़ी -हंस लिए मतलब ये की पढ़े जा रहे हैं हँसे जा रहे हैं लोग समझ रहे हैं सठिया गए हैं कंप्यूटर खोल के हँसे जा रहे हैं। सारी ग़ज़लों के सीनो पे सांप सी लोट रही है आपकी कमेन्टरी। भाई कमाल कर दिए हैं क्या पता क्या खा के पोस्ट लिखी है। कित्ती भी प्रशंशा करें बहुत कम सी जान पड़ रही है। पंकज जी के बिलोग के सभी लोग लुगइन को होली की राम राम सा।

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  8. ई अँधेरी रात की चिमनी हमार होली को दीवाली बनाय गयी। हम आप लोगन को बताय नहीं सकत की हम कित्ते खुस हो रिये हैं। हमार उत्तरी पूरबी ध्रुब पे उजाला करने का आप सभी का बहुतेंहि सुक्रिया।
    हमार होली तो बन गयी। बल्ले बल्ले
    :):):):)

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  9. होली और ठिठोली दोनों से ही दूर रहते हैं होली पर ,पर इस पोस्ट को पढ़ कर होली खेलने का मन हो गया बाक़ायदा | हा हा हा हा हा हा कंहा से शुरू करे एक एक लाइन ने हंसा मारा | लोग लुगाईन के गले की कसम?????? हा हा हा हा हा मरे तो मरे हम | झटाक से सोचा ने फटाक से गज़ल लिख दी | हा हा हा हा हा हा ....जे जो सादी होती हेगी ये दरअसल में मांग पूरी करनी का ही ठेका है ......है तो सही बात ये खैर |
    निसान खच्चर पे बटन दबा दिया है ....|
    बहुत सारे घोड़ो के सीन में खाल पहन कर घोडा बनने के लिए गाँव के सुन्दर आदमी को जाना पड़ेगा हा हा हा हा हा हा हा |

    सभी की इतनी अच्छी गजले और रचनाएं हैं कि क्या कहूँ तो पता है कैसे कहूँ नहीं समझ आ रहा | इस पोस्ट को पढ़ते ये इंतजार रहा हर बार कि कब गज़ल खत्म हो और कब व्याख्या शुरू |
    राकेश जी से कहना है की बीस नहीं पच्चीस समोसे थे | आपने बीस बोला बू हु हु बू हु हु |
    हास्य और श्रृंगार में रची सब गजले कमाल हैं|धर्मेन्द्र जी ने भी राकेश जी के साथ खूब हसाया |दिगम्बर जी और दिनेश जी की गजलें रोमांस परिपूर्ण हैं | गणेश जी कि गज़ल तो पर कमाल है बहुत बहुत सुन्दर | पत्थर से तेरे दिल को ....पहले मिसरे से आख़िरी मिसरे तक गज़ल खुद को कई कई बार पढवा गयी | सर्व जी कि गज़ल वैसी ही हैं खुबसूरत कहन वाली जो कि उनकी खासियत हैं एक दम नर्म मुलायम लफ़्ज सादगी के साथ लहराते आते हैं | सभी को शुभकामनाये |

    वो जो फैशन फोटो सेशन के डर से गजले लिख लिख कर डायरी में दबाये बैंठे हैं और कह रहे हैं की इस बार नहीं कही वो जान ले कि उन्हें धतूरे की एक भी डाली नहीं मिलने वाली क्यूंकि वो अच्छी कविता भेजने वाले को मिलेगी हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे हे ......और होली पर आज की अच्छी कविता के लिए राकेश जी की हम भी सिफारिश करते है|

    बहुत बहुत सुन्दर पोस्ट खूब हँसे आज काफी दिनों बाद शुक्रिया |

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  10. चौथाई बढ़ा देती जब बीस गिना करती
    पारुल को अगर गिनती मैं फ़िर से सिखा दूँ तो

    सौरभ ने गज़लैया को बूटी में मिला छाना
    उसको मैं अगर पाव भर रबड़ी भी खिला दूँ तो

    सज्जान की देख उल्फ़त दानी भी हुये बागी
    ये भेद अगर जाकर सजनी को बता दूँ तो

    कहते हैं कि गोली है, गिरती है बरफ़ बाहर
    छह इंच गिर चुकी है, दो और बढ़ा दूँ तो

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  11. कहते हैं कि होली है--- खिड़की के बाहर बर्फ़ गिर रही है.कल शाम तक पूरे दस इंच गिरने की संभावना है तो टायपो हो ही जायेगा.

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  12. हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा, ,जी बिल्कुल सीखाएं राकेश जी। पर बडी मुश्किल होगी, मैं तो ये गाने वालों मे से हूं--
    आखिर इस जहान मे होती है ये बात क्यूं
    दो और दो जमा करें तो बनते नही साथ क्यूं
    दो और दो चार किसने बनाएं हैं?
    मैने तो नही, मैने तो नही ।

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  13. कल पढ़ पढ़ के हंस रहे थे आज हंस हंस के पढ़ रहे हैं मतलब हंसने से है सो हंस रहे हैं। अब ये हंसना भी हर किसी के बस की बात नहीं होती , पता नहीं लोग खुल कर क्यों नहीं हँसते ? हंसने में भी कंजूसी ? अरे यार तुम नंदी बैल नहीं हो जिसके सींग पे धरती टिकी है तुम्हारे हंसने से प्रलय नहीं आ जाएगी इसलिए हंसो। इस पोस्ट को पढ़ कर भी अगर नहीं हँसे तो फिर तुम जी के क्या करोगे ? मत हंसो यार बैठे रहो चेहरे लटकाये हमें क्या ?

    राकेश जी की का ग़ज़लन की कथा उवाचने का अंदाज़ सबसे अलग और अनोखा है वो हमेशा वो करते हैं जो दूसरे सोच भी नहीं पाते। भाई ने कमाल का दिमाग पाया है तभी अमेरिका में हैं वरना तो हमारी तरह जयपुर में न पड़े होते। हम तो गिर्राज महाराज की जय बोल रहे हैं अगर न बोले और उन्होंने वयी में देदी तो भैय्ये अपनी तो खटिया ही खड़ी हो जाएगी होली पे लेटने का तो सवाल ही पैदा नहीं होगा।

    धर्मेन्द्र भाई ने प्रेमिका को गोदाम है रंगों का बता कर एक नयी ही बात कह दी है। इत्ती शायरी की किताबें पढ़ी इत्ते शायरों को सुना पर भैय्ये किसी ने माशूका को रंगों का गोदाम न बताया। होली के रंग चढ़ने का अर्थ अब समझ में आया जैसे सावन के अंधे को हरा ही हरा नज़र आता है वैसे होली के बन्दे को प्रेमिका में रंगों का गोदाम नज़र आता है - जय हो।

    दिगंबर भाई से पुस्तक मेला में मिले थे हम, बो भी दुबई से मिलने ही आये थे। बहुत पढ़े लिखे हैं फिर भी मजे के इंसान हैं हमरे साथ एक आध फोटु वोटु भी खिचाए।यूँ तो समझदार हैं पर ढेढ़ समझदार हैं , दुबई जा के वैसे भी इंसान ढेढ़ समझदार हो जाता है अब इन्हें कौन समझाए की प्रेमिका की मांग कोई आकाश गंगा या गेलेक्सी थोड़ी है जिसमें तारे सजायेंगे ? हैं ? प्रेमिका की मांग उसके सिर का छोटा सा हिस्सा है जिसमें तारे छोड़ एक आध जूं भले सज जाए। होली है थोड़ी सी चढ़ा ली होगी तभी आएं बाएं शाएं बक रहे हैंगे। छोड़ो जी माफ़ किया उन्हें वो होली पे अपनी प्रेमिका की मांग में तारे सजाएँ या यूनिवर्स हमें क्या ? हमारी प्रेमिका तो टकली है सो नो टेंशन।

    सदाशिव अमरापुरकर टाइप के दिनेश जी को कौन समझाए कि दिल पर रंग न लगता हैगा स्टेंट लगता हैगा ना माने तो तो किसी दिल के डाक्टर से पूछ लें , रंग लगाएंगे तो ब्लोकेज ना हो जायेगा - बात करते हैं। ऊपर से प्रेमिका के शरबत में भांग मिलाने की बात कर रहे हैं , लाली को होंटों से मिटाने की बात कर रहे हैं सरे आम बाहों में भरने की बात कर रहे हैं अरे कोई इनसे पूछे ये अमिताभ हैं क्या जो ताल ठोक के कहे "सोवे गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे " इत्ते जूते पड़ेंगे भैय्या की आँखों में रंग तैरने लगेंगे। होली की आड़ में दिलबर की काया के मर्दन का विचार त्यागें प्रभु।

    गणेश जी घाघरा चोली पैन के समझ रहे हैंगे की वो बागी हैं अब जनाब को कौन समझाए की बागी बनने के लिए भिंड मुरैना के बीहड़ में हाथ में बन्दूक लिए घूमना पड़ता हैगा।ये भाई साब किसी के आकर उसे रात को जगाने की बात कर रहे हैंगे लेकिन उनका क्या करेंगे जो दिन में सो कर ख्वाब देखते हैं ? रात्रि पारी में काम करने वालों को आ कर ये नहीं जगायेंगे ये भावार्थ हैगा उनके शेर का। भोत दूर की कौड़ी लाये हैं रे।

    डा संजय दानी जी शादी के जोड़ा पहनने के साथ अपनी मूंछे भी कटवा देते तो उफ़ यु माँ टाइप लगने लगते। मूंछों ने ब्यूटी का कीमा बना दिया हैगा। इन्हें बताना पड़ेगा की होली की पिनक में इंसान अपनी जबीं कहीं पे भी पटक देता है उसे पता ही नहीं होता के सामने प्रेमिका है या गधी। हम तो अपना अनुभव आपसे बाँट रहे हैं फायदा उठा लो वरना जब जबीं झुकाओगे और दुल्लती पड़ेगी तो बोलोगे च च च च गलती हो गयी हैगी।

    सर्व जी की ग़ज़ल की क्या चर्चा करना आपने सही कहा हैगा पंकज जी उनका तो नाम आते ही सबसे पहले सरसों का साग और मक्का की रोटी सामने आ जाती हैगी बल्कि अब तो जहाँ भी मैं सरसों का साग और मक्का की रोटी देखता हूँ मुझे उसमें सर्व जी नज़र आ जाती हैंगी। जितनी वाह वाही लोग उन्हें उनकी ग़ज़ल पढ़ के देंगे उस से हज़ार गुना वाह वाही लोग उनके हाथ का सरसों का साग और मक्के की रोटी खा के देंगे। अभी तो उनके हाथ मक्की की रोटी नहीं है तलवार है सो मारे डर के ग़ज़ल की तारीफ़ कर देते हैंगे जब तलवार थक के रख देंगीं तो कहेंगे हमारी तारीफ़ को सीरियसली ना लिया जाय बल्कि होली का मज़ाक समझा जाय।

    नीरज

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    1. कमाल कमाल कमाल .... नीरज जी की व्याख्या पढने बाद कुछ कहने का तो मातलब ही नहीं ... और इतनी तारीफ़ तो किसी ने आज तक करी भी नहीं हमारी ... इसलिए बन्दे का सलाम तहे दिल से शुक्रिया ... नीरज जी जिंदाबाद .... जिंदाबाद ...

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  14. वाह वाह वाह वाह वाह । मजा आ गया । रंगों में भिगो कर खूबसूरत चित्रों के माध्यम से आपने जो तरही मुशायरे की शुरुआत की , वो बेहद शानदार है । सबके बदले बदले रूप-रंग । बड़ा मोहक है और गुदगुदाता भी है ,ऊपर से ग़ज़ल तो एक से बढ़कर एक बेहतरीन । रंग और मस्ती में सराबोर यह प्रस्तुति देखकर और ग़ज़ल पढ़ कर होली का खुमारी आज से ही छाने लगा ।

    बहुत बढ़िया पंकज जी , सुन्दर मुशायरे के लिए आपको बधाई । साथ ही साथ सभी ग़ज़लकारों को बधाई व शुभकामनायें । हैप्पी होली

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