मित्रों इस ब्लाग की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां सब कुछ आत्मीयता से ही होता है । क्योंकि इसे सब अपना ही मान कर चलते हैं । जैसे इस बार ही हुआ कि दीपावली के ठी तीन दिन पहले सोचा कि दीपावली का आयोजन तो होना ही चाहिये और देखिये हो भी गया । ये ही तो होता है एक परिवार का गुण । ये हमारा परिवार है । और इस दीपावली पर यही प्रार्थना है कि इस परिवार में स्नेह और अपनापन यूं ही बना रहे ।
दीपावली की बहुत बहुत मंगल कामनाएं ।
आइये आज दीपाली का ये त्यौहार मनाते हैं काव्य की सतरंगी रौशनी के साथ। कविता की ये रोशनी समाज और देश में फैला हर अंधकार मिटाने में समर्थ है ।
अभिनव शुक्ला
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.
ये है सच आज अंधेरों का बोल बाला है,
रोशनी पर लगा इलज़ाम भी निराला है,
पर अमावस में ही सजती हैं शहर की गलियां,
प्यासे सपनों में महकती हैं सुहानी कलियां,
कोई तुमसे कहे जीवन की रात काली है,
तुम दिया एक जलाकर कहो दिवाली है,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.
खेल मिटटी का दिखाया है दुबारा इसनें,
चाक पर घूम के है रूप संवारा इसनें,
आग में तपता रहा सिर्फ ज़माने के लिए,
आया बाज़ार में फिर बिकने बिकाने के लिए,
रोशनी देगा तो एहसान तेरा मानेगा,
वरना मिटटी से इसे फिर कुम्हार छानेगा,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.
फिर अयोध्या किसी मन की नहीं सूनी होगी,
फिर चमक वक्त के चेहरे पे भी दूनी होगी,
फिर से सरयू भी झूम झूम गीत गाएगी,
फिर से मुस्कान सितारों की झिलमिलाएगी
स्वर्ण मृग सीता को लंका में नहीं भाएंगे,
मन में विश्वास अगर हो तो राम आएंगे,
अपने हाथों से दिया एक जला कर देखो.
मन में विश्वास अगर हो तो राम आएंगे यही तो वो भावाना है जो हमें बरसों बरस से जीवन से संघर्ष करने की प्रेरणा देती है । बहुत सुंदर गीत ।
श्री अशोक 'अकेला' जी
लो इक बार फिर से आ गई दीवाली
पर न बदली यहाँ की कुरीति निराली
वही दिल में गुस्सा है लबों पे गाली
न कहीं सुकून न छाये चेहरे पे लाली
लो एक बार फिर से आ गई दीवाली....
सुंदर पंक्तियां बुराई को बदल देने की भावना लिये हुए और उस के साथ ही अंधकार को न मिटा पाने पर गुस्सा लिये । बहुत सुंदर ।
श्री गिरीश पंकज जी
ग़ज़ल
अंधकार आता है आए, उससे कब घबराता है
इक नन्हा-सा दीप सामने आ कर सबक सिखाता है
अंधकार की फितरत है अपने पंजे फैलाएगा
लेकिन अदना-सा दीपक उससे जाकर भिड जाता है
'बहुत अँधेरा, बहुत अँधेरा' यह रोना कब तक रोएँ?
यह ज़ालिम तो इक दीपक से अक्सर मुँह-की खाता है
अंधकार होता है कायर फिर भी इतराना देखो
दीपक जलते ही घमंड सब मिट्टी में मिल जाता है
किसम-किसम के यहाँ अँधेरे मिल जायेंगे बस्ती में
मन का दीप जले तो हर इक अंधकार मिट जाता है
अरे अँधेरे, मत इतरा तू मौत तेरी अब निश्चित है
हर इक तानाशाह मरा है यह इतिहास बताता है
धनवाले अपने ही घर को रौशन करते रहते है
दिलवाला इंसान अँधेरे दर पर दीप जलाता है
आखिर सच्ची दीवाली का पंकज ने देखा सपना
हर दरवाजा हँसता है और हर आँगन मुस्काता है
गीत
हर आँगन में दीप जले
हर आँगन में दीप जले
हर दिन हो सबकी दीवाली,
दीप ध्यान यह रखना तुम
सिर्फ अमीरों के अंगने में,
जा कर के ना जलना तुम।
खुशी एक बेटी है प्यारी
हर घर फूले और फले।।
सबके हिस्से में हो उत्सव,
नहीं रहे कोई निर्धन।
धन की खातिर कोई न तरसे,
धनतेरस में हो 'खन-खन'.
वो सपना साकार रहे जो,
सपना बारम्बार पले।।
कुछ लोगों की दीवाली है,
बाकी का दीवाला क्यों ?
समझ न आये कुछ लोगों का,
अंतर्मन है काला क्यों ?
कसम हमें इस बार अन्धेरा,
झोंपड़ियों को नहीं छले।।
हर आँगन में दीप जले।
सबके हिस्से में हो उत्सव यही वो भावना है जिसे हम सर्वे भवन्तु सुखिन: कहते हैं उस का बहुत ही सुंदर तरीके से व्यक्त किया है । बहुत खूब ।
आदरणीया लावण्या शाह जी
ॐ
दीपावली २०१३ शुभ हो !
सभी को परिवार जन सहित अनंत शुभकामनाएं !
' सुख सुहाग की दीव्य-ज्योति से, घर-आंगन मुस्काये,
ज्योति चरण धर कर दीवाली, घर-आंगन नित आये '
दो पंक्तियों में गागर में सागर भरने की कहावत को चरितार्थ किया गया है । और ज्योति के चरण धरती दीपावली की तो बात ही क्या है । आनंद ।
आदरणीय मंसूर अली हाश्मी जी ,
दीपावली की बधाई और शुभ कामनाएं आपको और सभी साथियों को।
कुछ दुआइयां जुमले पेश है, आपकी महफ़िल में जगह मिल सके तो।
ये खेत, चमन, ये नील गगन, इठलाती हवा, सूरज की किरण,
हर दिन हो यहाँ सावन-सावन , हर रात दिवाली सी रौशन
रंगोली सजे हर घर आँगन, सेहत में रहे सब तन और मन
ख़ुश हाल रहे तू मेरे वतन, ऐ मेरे वतन, ऐ मेरे वतन.
सचमुच यही तो कामना है हम सबकी कि हमारे देश में हर तरफ खुश हाली हो हर तरफ भाई चारा हो और हर आंगन में प्रेम की रांगोली हो । परमानंद ।
श्री नवीन सी चतुर्वेदी जी
विगत दिनों जीवन के आनन्द में सराबोर समय जी कर लौटे पंकज भाई आप का स्वागत है। किसी शोधार्थी के सत्कर्मों का सम्मान यदि उस के जीवन काल में ही हो जाये तो उस की साधना अन्य उद्यमियों के लिये प्रेरणा का काम करती है।
गीत
हर साल मेरी रूह को,
कर डालती है बावली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥
इक वजह है ये मुस्कुराने की।
फलक से,
आँख उट्ठा कर मिलाने की।
घरों को,
रोशनी से जगमगाने की।
गले मिलने मिलाने की।
वो हो मोहन,
कि मेथ्यू,
या कि हो ग़ुरबत अली।
दीपावली दीपावली दीपावली॥
हृदय-मिरदंग बजती है,
तिनक धिन धिन।
छनकती है ख़ुशी-पायल,
छनक छन छन।
गली में फूटते हैं बम-पटाखे भी,
धना धन धन।
अजब सैलाब उमड़ता है घरों से,
हो मगन, बन ठन।
लगे है स्वर्ग के जैसी,
शहर की हर गली।
दीपावली दीपावली दीपावली
तनक धिन धिन की थाप पर हर तरफ मंगल गीत गाये जा रहे हों तो ही खुशियां पायल पहनती हैं । अहा ।
श्री समीर लाल ’समीर’ जी
यही बधाई और यही दीवाली के ब्लॉग का मुक्तक, एक पंथ दो काज:
जलाना एक दीपक तुम, अँधेरे गर नजर आयें
उजाला ही उजाला हो, जो सब इतना सा कर आयें
दीवाली का सही मतलब तो इसी में है मेरे हमदम
खुशियाँ हर तरफ बिखरें, खुशियाँ सबके घर आयें.
दीपावली के पर्व पर आप और आपके परिवार के लिए मंगलकामनाएँ..
-समीर लाल ’समीर’, साधना लाल एवं समस्त लाल परिवार
सच में एक ही तो दीपक जरूरी होता है अंधकार हटाने के लिये । और वो एक ही दीपक पूरी दीपावली का सच्चा प्रहरी होता है । फिर भले वो दीप भारत में हो चाहे कैनेडा में । आनंद ।
श्री सौरभ पाण्डेय जी
नवगीत
सामने द्वार के तुम रंगोली भरो
मैं उजाले भरूँ दीप ओड़े हुए.. .
क्या हुआ शाम से आज बिजली नहीं
दोपहर से लगे टैप बिसुखा इधर
सूख बरतन रहे हैं न मांजे हुए
जान खाती दिवाली अलग से, मगर --
पर्व तो पर्व है आज कुछ हो अलग
आँज लें नैन सपने सिकोड़े हुए... .
क्या हुआ हम दुकानों के काबिल नहीं
भींच कर मुट्ठियाँ क्या मिलेगा मगर !
मैं कहाँ कह रहा-- हम बहकने लगें ?
पर कभी तो जियें ज़िन्दग़ी है अगर.. !
नेह रौशन करे ’मावसी साँझ को,
हम भरोसों भरें भाव जोड़े हुए.. .
सामने द्वार के तुम रंगोली भरो मैं उजाले भरूं दीप ओड़े हुए । क्या कामना है । यही तो जीवन है । दो लोगों के हाथ में हाथ हों तो दीपावली तो होती है । सुंदर
श्री तिलक राज कपूर जी
मुस्कुराहट मिली ज़माने से
द्वार पर दीप दो सजाने से।
छुप गया चॉंद भी अमावस में
दीपमाला तुम्हारे आने से ।
दीप आकाश से मिला देखो
सिर्फ़ कंदील भर लगाने से।
चॉंद तारों का रक्स उतरा है
फुलझड़ी साथ मिल जलाने से।
खिल रहे हैं अनार यूँ , जैसे
मनचले कुछ चले दिवाने से।
देख आकाश वल्लरी चमकी
एक राकेट भर चलाने से।
चल रहे हैं ज़मीन पर चक्कर
और तुम खुश हुए चलाने से।
शोर कम कीजिये पटाखों का
ये चलन हो गये पुराने से।
दीप उत्सव है आज रोको मत
मुस्कुराहट अधर पे आने से।
मुक्तक
हमने हर इक रात काटी गीत गा कर
जिन्दगी की पीर पी है मुस्कुरा कर
आईये उत्सव से दीपों का मनायें
तिमिर में इक दीप आशा का जला कर।
दीप उत्सव है ओर रोको मत मुस्कुराहट अधर पे आने से । सच में आज तो रोकना ही नहीं चाहिये भई आज तो मुस्कुराहट के दीपक जलाने का दिन है । सुंदर ।
डॉ शौर्य मलिक
सबसे पहले तो आपको इंदु शर्मा कथा सम्मान के लिए ढेरो शुभकामनाये , मैं आपको अपना परिचय देता हूँ , मैं डॉ शौर्य मलिक,जिला शामली ,उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, लेखन कि शुरुआत अब से २ साल पहले की थी , बस जो दिल में आया वो लिख लेता था, इस वर्ष श्री नीरज गोस्वामी जी के सम्पर्क में आने के पश्चात मैंने उनसे गजल के बारे में काफी कुछ सिखा है, लेकिन अभी मेरे शेरो में भाव कि काफी कमी है, समय के आभाव के कारण बस ये एक छोटा सा मुक्तक ही लिख पाया हूँ, वो मैं आपको भेज रहा हूँ , और आपको मेरे और मेरे परिवार कि और से दीपावली कि ढेरो शुभकामनाये ,,,,,,,,,,,
भूले बिसरे यार बुला लूँ
यादों के मैं दीप जला लूँ
नफरत गम सब बैर मिटा कर
भेद दिलो के आज भुला लूँ
दीपावली की एक सच्ची प्रार्थना और वे कुछ काम जो यदि हम हर दीवाली पर कर लें तो हमारा पूरा साल मंगलमय हो जाये । खूब ।
पारुल सिंह जी
सुबीर संवाद सेवा ब्लॉग पर नयी पोस्ट के संदर्भ में एक रचना आपके विचारार्थ भेज रही हूँ
दिल्ली(एन सी आर) से मै एक हाउसवाइफ हूँ दो प्यारी सी बेटियां हैं. पति एक कंपनी में सीनियर मैनेजर हैं खाली वक़्त में किताबे पढ़ती हूँ और काम के वक़्त संगीत सुनना पसंद है
दीवाली के दीपक मेरी आँखों में हैं झिलमिलाये
अब मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
पुलकित साँसे, कम्पित अधर हुए
जब देखा तुम्हे आते हुए
द्धार खड़े तुम ढूँढ रहे हो
ज्यूँ मोती मेरी आँखों में
मैं भ्रमित सी पूछ रही
देर हुई क्यूँ आने में
अब मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
कौनसा अम्बर है वो जिसकी
धनको के रंग ही ऐसे हैं
रंग देते हैं सब नीरसता
वो जादू टोने जैसे हैं
उन रँगो से चौक पूर दूँ
मन को, 'समर्पित देहरी' करूँ
अब मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
सज जाएँ बंदनवार में
रूह के रेशे रूह के मोती
रखना स्मरण तुम ये प्रिये
स्त्री कोई वस्तु नहीं होती
प्यार में पूरापन खोती है
वो स्वाभिमान नहीं खोती
अब मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
दीवाली के दीपक मेरी आँखों में हैं झिलमिलाये
अब मेरे ही रहने को साँझ ढले तुम लौट आये
बहुत सुंदर गीत है । स्त्री के स्वाभिमान की सुंदरता से भरा गीत । और उस स्वाभिमान में प्रणय के तारे भी सफाई से गूंथे गये हैं । बहुत ही सुंदर गीत ।
श्री धर्मेन्द्र कुमार सिंहकविता : लौट आओ राम
रावण ऐसे नहीं मरता
रावण को मारने के लिए जरूरी है
कि उसकी नाभि का अमृत सोखकर
उसे स्वाभाविक मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाय
रावण की जान ले लेने पर
वो अमर हो जाता है
और राम को कभी लौटने नहीं देता लंका से
अहिल्या को पवित्र करने वाले
गिद्ध का अंतिम संस्कार करने वाले
शबरी के जूठे बेर खाने वाले
बंदरों से सहायता माँगने वाले
सौतेली माँ की खुशी के लिए चौदह वर्ष वन में रहने वाले
शरणागत को राज्य देने वाले
पत्नी की रक्षा के लिए रावण का वध करने वाले, राम....
वो राम कहाँ वापस लौट सके लंका से?
लंका से वापस लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम अयोध्या नरेश
जो राजा तो बहुत अच्छे थे
मगर राम नहीं थे
राजा तो रावण भी बुरा नहीं था
तब से लगातार पैदा हो रहे हैं मर्यादा पुरुषोत्तम
लेकिन धरती को हमेशा जरूरत रही है राम की
जो स्त्रियों और मजलूमों का ही नहीं
पशु पक्षियों का भी दुख दर्द समझ सकें
दुनिया का सबसे पुराना और सबसे अच्छा धर्म मर रहा है
इसका गला घोंट रहे हैं सैकड़ों मर्यादा पुरुषोत्तम
हर दीपावली की रात
मैं सुनता हूँ धरती की सिसकियाँ
और एक मरते हुए धर्म की कराहें
लौट आओ राम..... लौट आओ राम.....
सच कहा कि राम के आने पर ही दीपावली मनतीहै क्योंकि राम उजाले का प्रतीक हैं और अंधेरे से लड़ने के लिये एक उजाला आना ही होता है । राम तुम आ जाओ । सुंदर अति सुंद र।
आदरणीय देवी नागरानी जी
दिवाली है आई.
बधाई, बधाई, बधाई बधाई
मुबारक सभी को दिवाली है आई.
दशहरा गया अब दिवाली जो आई
अंधेरों से रौशन उजाले है लाई
हैं शुभ शुभ सुन्हरा ये त्यौहार लोगो
जलाकर दिये सबने किस्मत जगाई
जो श्रधा से पूजन करें लक्ष्मी जी का
वहीं धन की बरसात ले के वो आई
सदा माँ सरस्वत कृपा धारणी बन
दे वर ज्ञान का हर किसी को है भाई
खिलोओ और खाओ दिवाली मनाओ
बने अच्छे पकवान और रस मलाई
करे विघ्न का नाश गणनाथ देवी
हरे कष्ट सारे करे है भलाई.
हर किसी के लिये मंगल की कविता । हर पंक्ति में दुआओं की कविता । हर किसी के लिये कुछ न कुछ मांगने के लिये । बहुत ही सुंदर ।
मन बहुत पुलकित है इतने छोटे से नोटिस पर आप सबने अपनी अपनी रचनाएं भेजीं और दीपावली के पर्व को आज उजास से भर दिया । आप सबके जीवन में दीपावली का ये पर्व प्रकाश और उल्लास लाये यही मंगल कामना है ।
इतनी अल्पावधि में यह संग्रहणीय पोस्ट; बधाई ही बधाई।
जवाब देंहटाएंये सब आप सबकी सक्रियता से तथा स्नेह से ही हो सकता है ।
हटाएंमनोहारी रंग, मंगलकारी रौशनियों और सात्विक स्वर के इस उत्साह भरे मौसम में हार्दिक शुभकामनाओं के साथ दीपोत्सव की वेला में आत्मिक सुख देती रचनाओं की अनुपम रंगोली हृदय को आह्लादित कर रही है.
जवाब देंहटाएंपंकज भाई, आप सपरिवार सुखी, सानन्द और स्वस्थ रहें तथा सनातन स्मृद्धि सभी के कदम चूमे.
सभी रचनाकारों और सुधी पाठकों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ.. .
आपको भी दीपावली की मंगल कामनाएं । आपके द्वारा इस देहरी पर प्रकाशित दीपकों का प्रकाश खूब खिल रहा है ।
हटाएंआपकी मेहनत रंग लायी। हो गयी एक साहित्यिक दिवाली। रचनाएं पढ़ कर आनंद आया .
जवाब देंहटाएंगिरीश जी प्रणाम सचमुच साहिित्यिक दीपाव ली का अपना आनंद है ।
हटाएंबहुत सुंदर ....दिवाली की सब को मुबारक और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआप सब खुश रहें स्वस्थ रहें!!
आपको भी दीपावली की मंगलकामनाएं ।
हटाएंइस ब्लॉग परिवार के सभी नए पुराने सदस्यों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं. इतने अल्प समय में इतनी खूबसूरत पोस्ट का करिश्मा सिर्फ यहीं सम्भव है . गीत ग़ज़ल कि अनोखी जगमगाती पोस्ट पढ़ कर पर्व का आनन्द दुगना हो गया . ये ब्लॉग सदा सर्वदा यूँ ही हम सब के जीवन में खुशियां बरसाता रहे।
जवाब देंहटाएंरंगबिरंगी रौशनी से सजे ब्लॉग की सजावट त्यौहार का मज़ा दुगना कर रही है .... ऊपर इन लाजवाब रचनाओं के पटाखे ... मज़ा आगया ...
जवाब देंहटाएंसभी को .. इस ब्लॉग के हर सदस्य को ... पंकज सुबीर जी को ... दीपावली की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनायें ...
बेहतरीन मन गई दीवाली यहाँ- आनन्द आ गया- दीपावली की सभी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
प्रकाशोत्सव के महापर्व दीपादली की हार्दिक शुभकानाएँ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (04-11-2013) महापर्व दीपावली की गुज़ारिश : चर्चामंच 1419 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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दीपावली के पंचपर्वों की शृंखला में
अन्नकूट (गोवर्धन-पूजा) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
भई वाह! इतने कम समय में ऐसी शानदार रचनाएँ। वाकई इस ब्लॉग से लोग दिल से और ले ब्लॉग लोगों के दिल से जुड़ चुका है। इस ब्लॉग से जुड़े सभी लोगों को दीपावली की ढेरों शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंऔर अब इंतजार अगली तरही का............
बहुत चाहा, फिर भी कुछ ना भेज पाया | लेकिन ब्लौग की छटा और इन तमाम रचनाओं का कोलाज देखकर ये अफसोस जाता रहा | दिपावली की सबको विलंब से ही सही, इस तेरह हजार फुट की बर्फीली ऊँचाई से तमाम शुभकामनायें भेज रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंउपस्थित सभी साथियों ने अपनी सक्रिय सहभागिता से दीवाली के इस आयोजन को सफल बनाया है. आप सभी को बहुत बहुत बधाई। बहुत निराला है अपना ये परिवार।
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत सुन्दर...सचमुच मन को मोहने वाला आकर्षण औ रचनाएं एक से बढ़कर एक... बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी जली है बहू जली है
अच्छा संकलन हो लिया। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंइसमत जैदी जी को मुबारकबाद।
जवाब देंहटाएं