सभी का आदेश है कि लंदन यात्रा की चित्रमय झांकी दिखाई जाये । तो आदेश के पालन में आज कुछ और चित्र पेश किये जा रहे हैं । कुछ लोगों ने टिप्पणी में कहा है कि 'ये आपका ब्लॉग है' तो मैं ये कहना चाहूंगा कि ये आप सब का ब्लॉग है मेरा नहीं है । मेरा इसमें केवल इतना है कि आप सब के आदेश पर मैं इसमें बीच बीच में कुछ लिख देता हूं । बाकी तो सब आपका ही है ।
( हीथ्रो हवाई अड्डे पर तेजेन्द्र जी द्वारा आत्मीय स्वागत )
तो मेरे विचार में कुछ ऐसा करना चाहिये कि हम कम से कम एक एक मुक्तक तो दें ही सही । चूंकि इस बार हम भागते दौड़ते यहां पर आयोजन में एकत्र हो रहे हैं तो कम सक कम मुक्तक की ही बात की जाए । हां यदि कुछ लोग गीत या ग़ज़ल देना चाहें तो उनका तो स्वागत है ही ।
( कैलाश बुधवार जी के घर सुश्री पद्मजा जी को प्रति भेंट )
अब प्रश्न उठता है कि क्या किसी मिसरे पर मुक्तक लिखा जाए । मेरे विचार में इस बार मिसरे से मुक्त रहा जाए । क्योंकि समय कम है । फिर भी यदि सब की इच्छा हो तो एक मिसरा दिया जा सकता है । जिसे मिसरे पर लिखना हो वो उस पर मुक्तक लिखे, ग़ज़ल लिखे या गीत लिखे और जिसे स्वतंत्र रहना हो वो अपना ही मुक्तक लिखे ।
( अपनी ड्रीम ब्लैक मर्सीडीज़ का आनंद)
लेकिन फिर भी मुझे ऐसा लगता है कि कम से कम बहर या मात्रिक विन्यास की बाध्यता तो हम रखें ही सही । अरे हां अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का तराना कुछ ऐसे है ' ये मेरा चमन, है मेरा चमन, मैं अपने चमन, का बुलबुल हूं' । अंतिम रुक्न में सारी मात्राएं शुद्ध दीर्घ हो गईं हैं इस मिसरे में ।
ये मेरा चमन है मेरा चमन, मैं अपने चमन का बुलबुल हूँ
सरशार-ए-निगाह-ए-नरगिस हूँ, पा-बस्ता-ए-गेसू-संबल हूँ
जो ताक-ए-हरम में रोशन है, वो शमा यहाँ भी जलती है
इस दश्त के गोशे-गोशे से, एक जू-ए-हयात उबलती है
ये दश्त-ए-जुनूँ दीवानों का, ये बज़्म-ए-वफा परवानों की
ये शहर-ए-तरब रूमानों का, ये खुल्द-ए-बरीं अरमानों की
फितरत ने सिखाई है हम को, उफ्ताद यहाँ परवाज़ यहाँ
गाये हैं वफा के गीत यहाँ, चेहरा है जुनूँ का साज़ यहाँ
( किसी मॉल में )
तो मेरे विचार में हमको सोलह दीर्घ की ही बाध्यता रखनी चाहिये । अब ये दीर्घ कैसे आते हैं इस पर हम ये कर सकते हैं कि यदि हम सीधे सीधे अभी सोलह मात्राओं को चार रुक्नों में बांट लें सुविधा के लिये तो हर रुक्न का तीसरा दीर्घ हम चाहें तो लघु लघु से आये या शुद्ध दीर्घ हो । मतलब 22112 भी हो सकता है और 2222 भी ।
( काउंसलर जकिया जुबैरी जी ने शापिंग में खूब मदद की )
हालांकि ये भी बस इसलिये कि जो लोग किसी खास बहर पर ही लिखना चाहें उनके लिये । क्योंकि समय कम है इसलिये यदि आप दीपावली पर कोई भी मुक्तक भेजेंगे तो उसे भी शामिल किया जाएगा । बस शर्त ये है कि वो किसी न किसी बहर में हो और दूसरा ये कि वो 2 तारीख की रात तक मिल जाए ।
( ये जवाहरलाल नेहरू जहां पढ़े थे वो स्कूल है )
अगर आप पूर्ण दीर्घ वाले विन्यास पर लिखना चाहते हैं तो बस ये करें कि ' ओ मेरे सनम' गीत की तरह हर मिसरे में चार स्पष्ट टुकड़े अवश्य दिखाई दें । ओ मेरे सनम- ओ मेरे सनम- दो जिस्म मगर- इक जान हैं हम । इस प्रकार के चार खंड स्पष्ट हों । मतलब ये कि हर खंड स्वतंत्र हो ।
( सिर के पीछे लंदन की आंख )
चूंकि इस ब्लॉग पर हर त्योहार मनाने की परंपरा रही है । बीच में व्यस्तता के कारण इस बार राखी, ईद, जैसे त्योहार नहीं मनाए जा सकते । मगर दीपावली ये शुरुआत हो जाए तो अच्छा है । उसके बाद हम विधिवत मिसरे पर कोई मुशायरा करेंगे ।
( बिग बेन और ब्रिटिश संसद )
हम दीपावली के दिन इस उत्सव को पारंपरिक रूप से मनाएंगे जैसे कि इस ब्लॉग पर मनाते हैं । और उसके बाद अगले कार्यक्रमों की घोषणा भी करेंगे । चूंकि ये ब्लॉग एक सार्वजनिक चौपाल है जहां सब लोग एक साथ बैठते हैं चर्चा करते हैं इसलिये आप सब ही तय करेंगे कि आगे किस प्रकार से कार्यक्रम तय होंगे ।
( रेल्वे स्टेशन पर )
दीपावली के आयोजन में जितने ज्यादा से ज्यादा लोग अपना योगदान देंगे उससे हमें आगे काम करने के लिये ऊर्जा मिलेगी । चूंकि काफी समय हो गया है ठहरे हुए सो ऊर्जा की आवश्यकता है । और ये आवश्यकता ही आप सब से कुछ न कुछ अवश्य लिखवा लेगी ।
( खरीददारी के क्षण )
तो ठीक है फिर आप सब अपना योगदान दीजिये । वो चाहे जिस भी रूप में हो मेरा मतलब है कि कविता, मुक्तक, गीत या ग़ज़ल । काव्य की किसी भी विधा में अपना योगदान दीजिये । और दीपावली आयोजन को विविध रंगी बनाइये । आपकी रचनाओं का इंतज़ार है ।
( किसी स्टेशन पर यूं ही )
( लेबर पार्टी के लिये चुनाव प्रचार )
ये बहुत इंसाफ़ी है।
जवाब देंहटाएंजी हॉं जब नाइंसाफ़ी का डायलाग हो सकता है तो इंसाफ़ी का क्यों नहीं।
आपकी लंदन विजि़ट की डिजिटल कापी लेने किसी को भेजता हूँ और फि़र आपको वो चीज मिलेगी कि कल्पना भी न की होगी।
टिप्पणियां क्यों नहीं पोस्ट हो पा रही हैं इस पर देखा जा रहा है । कोई तकनीकी अड़चन है ।
जवाब देंहटाएंटिप्पणीयों से लगता है तिलक जी ने सांठ गाँठ कर रखी है इसीलिए सिर्फ उन्हीं कि टिपण्णी नज़र आ रही है। ये सरकारी अफसर जो चाहे कर सकते हैं .टिप्पणीयों कि इनके सामने क्या बिसात ?
हटाएंआपकी आज्ञा सर माथे पर , सुबह से जोर लगा रहा हूँ लेकिन रह रह कर दिमाग में सिर्फ ओ मेरे सनम ....गाना ही घूमे जा रहा है और कुछ घुस ही नहीं रहा ---क्या करें क्या न करें ये कैसी मुश्किल सोचा न हाय कोई तो बता दे इसका हल तो मेरे भाई ----दीवाली पे दिमाग का यूँ दिवाला निकलेगा कभी सोचा न था --- जहाँ दीपक जलने चाहियें वहीँ ससुरा घनघोर अँधेरा छाया हुआ है .
जवाब देंहटाएंआपको भी मानना पड़ेगा। इस उम्र में भी ओ मेरे सनम.....। मुझे तो लगता सनम वनम सब भूल जाता होगा आदमी इस उम्र में और उन्हें छेड़ता होगा जिनके लिये कह सके 'ओ इसके सनम', 'ओ उसके सनम', दिखते हैं भले किस-किसके सनम, दो जिस्म मगर इक जान हैं वो, इक दिल के...'
हटाएंअब मेरी टिप्पणी ..
जवाब देंहटाएंकुछ हुआ तो साझा.. :-)))
सुबीर जी आपको बहुत बहुत मुबारकबाद एवं शुभकमनयें। नीरज आप ये तो न कहें दिवला निकाल रहा है, रब करे आप की ऐसी रेमार्क्स आगे और इसी तरह बल्कि इससे बहतर पढ़ने को मिलती रहें।
जवाब देंहटाएंतुम अपने दिल को दिवाली से नूर नूर करो
उगाओ प्रेम और नफ़रत को दिल से दूर करो
*
जलाकर श्रधा प्रेम विश्वास के दीप
उजालों से जीवन को रौशन करो तुम !
देवी नागरानी 2013
With BEST WISHES
मुझे एक कवि मित्र ने तरही ग़जल के लिए एक मिसरा दिया - “कोंख में धरती के सोना है बहुत”। मैंने इसपर जो कहने की कोशिश की वह प्रस्तुत है। गुरू जी अपने मूल्यांकन से जरूर अवगत कराने का कष्ट करें :
जवाब देंहटाएंखोजने का हुनर होना है बहुत
कोंख में धरती के सोना है बहुत
दफ़्तरों में काम कैसे हो भला
बेबसी का रोना-धोना है बहुत
मांगता हमदम से मैं कुछ भी नहीं
उनके दिल का एक कोना है बहुत
कैसे कह दें होशियारी आ गयी
गाँव में तो जादू - टोना है बहुत
क्यों शराबी हो रहा है आदमी
इसमें पाना कम है खोना है बहुत
सरहदों पर जागता था यह शहीद
अब लिटा दो इसको सोना है बहुत
शाहजादे को न यूँ धिक्कारिए
कितना भोला है सलोना है बहुत
जप रहे माला नमो के मंत्र से
मज़हबी दंगा जो होना है बहुत
भागता वह जा रहा है चीरघर
आज उसको लाश ढोना है बहुत