मित्रों बहुत बहुत दिनों के बाद यहां पर कुछ हलचल हो रही है । असल में कुछ ऐसा होता गया कि यहां पर आने के लिये जितना समय चाहिये होता है उतना समय उपलब्ध नहीं होता था । और बस इस कारण या उस कारण से यहां का सन्नाटा धीरे धीरे बढ़ता चला गया। इस बीच बहुत कुछ घट गया। हम पिछली बार होली पर मिले थे और अब दीवाली सामने आ गई है । दोनों ही पर्व दो अलग अलग ऋतुओं के पर्व होते हैं । वसंत से चल कर हम शरद तक आ गये और हमारा सन्नाटा जस का तस बना रहा।
इस बीच बहुत कुछ हुआ । इन्दु शर्मा कथा सम्मान की पहले घोषणा हुई और फिर उसके बाद लंदन की यात्रा । घोषणा से यात्रा के बीच में बस केवल भागदौड़ थी । और उसी बीच में हिन्दी चेतना के विशेषांक का सम्पादन भी पूरा करना था । दोनों कार्य ठीक प्रकार से सम्पन्न हो गये । जब इन्दु शर्मा कथा सम्मान की घोषणा की गई थी तो मन में बड़ी दुविधा थी । पहली विदेश यात्रा को लेकर मन उलझन में था कि क्या किया जाए और क्या न किया जाए । नीरज जी ने जरूर ये आश्वस्त किया था निश्चिंत रहें सब कुछ ठीक ठाक होगा । और वीजा की भागदौड़ के बीच उनका ये कहना मन को बड़ा सुकून देता रहा । लंदन यात्रा के ठीक एक सप्ताह पूर्व हिन्दी चेतना का अंक जारी कर दिया गया । और प्रिंट संस्करण का विमोचन लंदन यात्रा के ठीक एक दिन पूर्व किया गया। इस बीच परिवार में कुछ सदस्यों की अस्वस्थता भी मन को अशांत करती रही ।
किन्तु कहा जाता है कि सकारात्मक सोच ही सब कुछ ठीक करती है । सो नीरज जी ने जो कहा था निश्चिंत रहिये सब कुछ ठीक होगा । सो हो गया । लंदन की यात्रा और वहां का अवार्ड फंक्शन सकुशल संपन्न हुआ । फंक्शन को लेकर कभी विस्तार से बातें होंगीं । क्योंकि वह ग्रांड फंक्शन उतने विस्तार की संभावना लिये हुए है । बस ये कि आप सबकी शुभकामनाएं मिलती रहीं । कई गैरों की शुभकामनाएं मिलीं तो कई अपनों ने शुभकामनाएं देना या कुछ और कहना मुनासिब नहीं समझा । कुछ नये बने रिश्तों ने उनको ऐसा करने से रोक दिया । बहुत अजीब हो जाते हैं रिश्ते जब हम ये देख कर काम करने लगते हैं कि हमारे द्वारा ऐसा करने से हमारे नये बने रिश्तों पर कोई प्रभाव तो नहीं पड़ेगा । खैर रिश्तों की भी उम्र होती है और उनको भी रीतना और बीतना होता है । ''खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा............'' ।
बचपन में इस टॉवर ब्रिज की एक तसवीर हमारे सरकारी घर में दीवार की दरारों को छिपाने के लिये लगाई गई थी । बड़ी सी तस्वीर जो पूरी दीवार को ढंके हुई थी । हम बच्चे इसी तस्वीर के सामने खड़े होकर अपने जन्मदिन पर चित्र खिंचवाते थे । तब हम बातें करते थे कि एक दिन सचमुच के लंदन ब्रिज ( तब हम इसका नाम लंदन ब्रिज ही समझते थे) पर भी खड़े होकर चित्र खिंचवाएंगे । जब नहीं पता था कि ये कब और कैसे सच होगा । लेकिन 2013 के जन्मदिन पर ये सच हो गया । और याद आ रहे थे बचपन के वे सारे जन्मदिन ।
खैर तो बात ये कि दीपावली पर ब्लॉग के सन्नाटे को तोड़ने की इच्छा है । तरही का आयोजन तो इतनी जल्दी में नहीं हो सकता है किन्तु इच्छा है कि बरस बरस के दिन ब्लॉग पर सूनापन नहीं रहे । यहां पर ग़ज़लों के गीतों के दीपक जलें और जगमगाते रहें । कैसे किया जाए ये समझ में नहीं आ रहा है । एक तरीका तो मुक्तकों का है कि किसी मिसरे पर मुक्तक लिखे जाएं । एक तरीका ये कि कोई मिसरा न हो बस आप सबकी दीपावली पर लिखी कोई रचना हो । और जो कुछ न हुआ तो पिछले दीपावली मुशायरों में से ही कुछ लिया जाए । निर्णय आप सब को करना है । मैं तो बस ये देखना चाहता हूं कि इतने दिनों की चुप्पी ने इस ब्लॉग परिवार पर प्रभाव तो नहीं डाल दिया है ।
तो आप बताइये कि क्या करना है । क्योंकि करने वाले तो आप लोग ही हैं । और ब्लॉग भी आपका ही है । हां पिछले दिनों एक गीत मन में रह रह कर गूंजता रहा ।
ओ मेरे सनम, ओ मेरे सनम, दो जिस्म मगर, इक जान हैं हम
पता नहीं क्यों, क्या इस बहर पर कुछ काम किया जा सकता है । मगर उसके लिये तो पहले ये जानना होगा कि इसकी बहर क्या है रुक्न क्या हैं । आप लोगों को पता होगा शायद। क्या पता क्या है । बड़ी हैरत की बात है । सुनते हैं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का तराना भी इससे कुछ कुछ मिलता जुलता है । क्या कहते हैं । मेरा दिमाग तो कुछ काम नहीं कर रहा ।
तो ये देखिये और सोचिये
बधाई।
जवाब देंहटाएंपाठशाला के गुरूजी को ही तय करना है कि कया ठीक रहेगा। छात्रों को तो अभ्यास करना है। कम समय को देखते हुए मुक्तक का विचार उत्तम लग रहा है।
जो आप सब तय करें तिलक जी वहीं फायनल होगा । सन्नाटे को तोड़ना तो है ।
हटाएंसभी टिप्पणियॉं पढ़कर जो सार निकला है वह तो यही कहता है कि या तो फ़्री फ़ार्मेट रहे या दी गयी बह्र पर जितने शेर हो जायें उतने ही सही। तरही हो जाये दूज से देव-उठान तक।
हटाएंएक विचार मात्र है, जो पंचों को मंज़ूर।
मुझे तो 221 12 221 12 समझ आ रहा है।
हटाएंगुरुदेव," इंदु शर्मा कथा सम्मान" के लिए इक बार फिर से हार्दिक शुभकामनाएं. ब्लॉग पर इतने समय के बाद पोस्ट देख कर बहुत अच्छा लगा. आपकी लन्दन यात्रा का समाचार फेसबुक द्वारा मिल रहा था. तस्वीरें बहुत सुन्दर आई हैं. और तस्वीरों का एवं विस्तृत विवरण का इंतज़ार है.
जवाब देंहटाएंजल्द ही विवरण प्रस्तुत होगा । बस वहां से वीडियो आ जाए । ये वीडियो तो मेरे मोबाइल का है ।
हटाएंबधाई बधाई बधाई ...
जवाब देंहटाएंइस वीडियो को तो कुछ दिन पहले ही देख लिया था ... ओर गर्व से सीना भी फुला लिया था ...
इतने दिनों के सूनेपन के बाद आज की हलचल वो भी दीप माला के साथ बहुत फब रही है ... क्या करना है क्या नहीं ये तो गुरुजन तय कर ही लेंगे ... हमें तो विद्यार्थियों की तरह पालन करना है ...
सम्मान आप सब का सम्मान है मेरा कुछ नहीं है क्योंकि मुझे तो आप सब लोगों ने ही गढ़ा है बनाया है ।
हटाएंवाह .......
जवाब देंहटाएंगुरुदेव वाकई बहुत वक़्त हो गया था। आपको पुन: बहुत बहुत बधाई या कहूँ सुबीर संवाद सेवा से जुड़े हर शख्स को बधाई। फोटो तो आपकी हर समय झक्कास ही आती हैं।
बच्चू अब देखते हैं कि जनवरी के बाद तुम्हारी फोटो कैसी आती है । वो घोषणा तो मैंने आज की ही नहीं है ।
हटाएंगुरुदेव कहीं ये बहरे सगीर तो नहीं
जवाब देंहटाएं2211-2221-12
मैंने कहा न मुझे कुछ नहीं पता ( गब्बर का डायलाग 'हमको कुछ नहीं पता' )
हटाएंअंकित भाई ये भी तो हो सकता है?
हटाएं22 22 22 22 22 22 22 22
क्या कहते हैं गुरुदेव?
शायद तुम दोनों उसी झगड़े में फंस रहे हो जिसमें इस बहर को लेकर बरसों से हिंदी और उर्दू वाले फंसे हुए हैं ।
हटाएंहिन्दी और उर्दू वाले फँसे हुए हैं तो टिप हो गयी। अब अपने पास तो सर खुजाने की भी गुँजाईश नहीं बची वरना जो कुछ है सर पर वो भी हवा हो जायेगा।
हटाएंअपनी सार्थक उपस्थिति से आत्मीयजनों को ऊर्जस्वी करने तथा मंच पर व्याप गयी ’अपरिहार्य’ तन्द्रा को तोड़ने के लिए आपने बहुत ही सटीक शब्द लिया है-- ’हलचल’.
जवाब देंहटाएंइस हलचल में आवृतियुक्त झंकार हो जो दीपावली को प्रकाश और स्वर से अनुगूँजित कर दे, इस हेतु सामुहिक रूप से सोचना है.
क्या सभी सुधीजन दिवाली पर हुई अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करें, ताकि विधाओं का एक सुगढ़ कोलाज बन सके ? यह मेरा कहना मात्र है. सामुहिक निर्णय का सादर स्वागत करूँगा.
विशिष्ट क्षणों को भरपूर जी पाने के लिए आपको पुनः हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ
सौरभ जी इस बीच में आपकी भी सीहोर यात्रा हुई और काफी बातें हमने कीं ( शायद मैंने ही अध्ािक कीं थीं उस दिन बीमारी के चलते )
हटाएंजो आ सब तय करेंगे वही होगा ।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव
जवाब देंहटाएंब्लॉग का सन्नाटा तोड़ कर आपने हमारी दिवाली से पहले ही दिवाली मनवा दी , होली तो आपकी लन्दन यात्रा की ख़ुशी में मना ही चुके हैं . सौरभ जी का कहना काबिले गौर है , अगर सभी गुणीजन दिवाली से सम्बंधित कोई रचना भेजें तो विविध आनंद आएगा .
आप सब की सूचना के लिए बता दूं के मैं गुनीजनों की श्रेणी में नहीं आता क्यूँ की मैं दुर्जन जो हूँ ---- दीपावली कैसे मनाते अगर रावण न होता ? हा हा हा हा
नीरज
आपको अपना परिचय देने की जरूरत नहीं है हम सब जानते हैं कि आप क्या हैं ।
हटाएंम्होदय आपसे अनुरोध है कि मामले को सुलझााने के लिये अपने बहुमूलय सुझााव प्रदान करें ।
हटाएंआपके शब्दो में "मेरा दिमाग तो कुछ काम नहीं कर रहा "
हटाएं( वैसे मैं सोचता हूँ आप अगर बिना दिमाग को काम में लिए इतने कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं तो खुदा न करे , अगर आप अपने दिमाग को काम में लेंगे तो क्या कहर बरपाएंगे सोच कर ही रूह काँप जाती है )
कह तो दिया था कि सौरभ जी कि इस बात का हम आदर करते हैं "सभी अपनी दिवाली पे लिखी रचनाएं भेजें ताकि विधाओं का एक सुगढ़ कोलाज बन सके ." अब और क्या कहें ? बस इसे फायनल करें . तरही के लिए समय कम है और दिमाग में इतना भूसा भरा है के दीवाली तक का समय तो उसे साफ़ करने में ही निकल जाएगा .इत्ते इत्ते दिन में ब्लॉग कि सुध लोगे तो ये ही हो पायेगा श्रीमान .(हमसे )
हटाएंनीरज
पहले तो बारंबार बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंदूसरे इस ब्लॉग का सन्नाटा, सन्नाटा नहीं, सन्नाटे की ग़ज़ल है। (अज्ञेय जी की आत्मा से क्षमायाचना सहित)।
तीसरे हम तो वो ही करेंगे जो सब करेंगे। बह्र तो अंकित भाई ने जो बताई वही लग रही है बस रुक्न दोगुने हैं।
हर कोई कह रहा है कि हम वही करेंगे जो सब कहेंगे । तो ये 'सब' है कौन ।
हटाएंहे हे हे....सब वो है जिसके पीछे सब छुपने की जगह ढूँढ रहे हैं।
हटाएंवैसे इस बार सबको मुक्त भी कर सकते हैं। बस दीपावली हो जो जैसे चाहे मनाये। मुक्तक में, छंद मुक्त में, गीत में, दोहे में, ग़ज़ल में, लघु कथा में जिसमें जो चाहे। बाकी तो सब जो करेंगे वही हम भी करेंगे। :)))))))))))
बहुत बहुत बधाई हो गुरुदेव।
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर पुनरागमन पर हार्दिक बधाई, धन्यवाद, स्वागत। विलायत का सफ़र भी मुबारक।
जवाब देंहटाएंMadame Tussaud के पोस्टर के आगे की आपकी तस्वीर प्यारी लगी। Sherlock Holmes लग रहे है !
-- मंसूर अली हाश्मी
हा हा हा......... मंसूर भाई कभी कभी कपड़े भी कमाल कर देते हैं ।
हटाएंशुक्रिया सुबीरजी, एक बात कहना चाहता हूँ ? 'तरही' मिसरा हो तो लिखने की प्रेरणा मिलती है……एक छुपी हुई प्रतिस्प्रधा भी होती है। शायरो/कवियो के बीच। अब कम समय में कम से कम २०-२० वाले तो कूद ही जायेंगे। .... फिर जैसी बहुमत की मर्ज़ी !
हटाएं-- mansoor ali hashmi
बहुत बहुत बधाई!!
जवाब देंहटाएंआखिरकार टूटा ये सन्नाटा...जाने क्यों दुष्यंत का शेर याद आया "न हो संगीत सन्नाटा तो टूटे..." वाला | स्वागतम गुरूदेव ! कुछ फोटू तेजेन्द्र शर्मा की बदौलत देख पाया था...और अब मेरे नेट की स्पीड इस पोस्ट की दो तस्वीर दिखा रही है ...एक को देख के जल-भून रहा हूँ कि उस काली जैकेट से ज्यादा स्मार्ट ये ओवरकोट कैसे और क्यों दिख रहा है ? गुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र !!!
जवाब देंहटाएंगीत की बहर तो शर्तिया आठ फ़ेलुन पर है बिला शक ! मेरे ख़्याल से कोई मिसरा देना ज्यादा बेहतर रहेगा | ज़रूरी थोड़ी ना है कि दीवाली पर ही हो ... दीवाली पर एक पोस्ट बनाइये लंदन यात्रा की एक्सक्लुसिव और उसी मेन तरही मिसरा घोषित किया जाये...मध्य नवंबर तक का वक़्त दिया जा सकता है | चूंकि गीत आठ फ़ेलुन पर है, लेकिन उस पर रिदम उतना अच्छा नहीं बैठता तो साढ़े सात फ़ेलुन वाला कोई मिसरा बुना जा सकता है | थीम आने वाली सर्दी हो सकती है ....
और हाँ ये कौन अपने हैं जिन्होंने शुभकामना देना वाजीब नहीं समझा...ज़रा दीजिये तो फ़ेहरिश्त, देखता हूँ सबको...सुपाड़ी दी जायेगी बाकायदा !
बच्चे जब पहनने वाला सुंदर हो तो सब कुछ सुंदर लगता है । जोक था ये । खैर कोई बात नहीं इस प्रकार की छोटी छोटी बातें होती रहती हैं । कुछ नाम हैं जो अनुपस्थित थे ।
हटाएंसुबह १२ बजे से रात एक बज गये, मैं बस उसी शख्स की तलाश में हूँ, जिसने जाने किसके प्रभाव में आ कर हमारे बिगबी को शुभकामना देने या कुछ कहने से खुद को रोक लिया।
जवाब देंहटाएंइंदु शर्मा पुरस्कार की घोषणा वाले दिन से ११ अक्टूबर तक की फेसबुक हिस्ट्री देख ली, अपनी डायरी के पन्ने पलट लिये। छोटे से दिमाग पर ज़ोर डाल कर सारे अपनो की लिस्ट बनायी और फिर उनकी उपस्थिति दर्ज़ की तारीख मिला ली। सारे खास लोगों की अटेंडेस तो लगी हुई है और बड़े जोश ओ खरोश से लगी है।
येल्लोऽऽ ! अब रात के एक बजे जा कर मेरे टेंशन का प्वाइंट ही दूसरा हो गया कि जब सब अपने दिख रहे हैं, तो ऐसा कौन सा अपना है, जो हम सब से भी ज्यादा खास है और फिर भी हमें उसका नाम नही पता, और उसपे वो इतना खास है कि सारी खुशी की पूर्णता पर ग्रहण बन कर अपना बेनामी नाम लिखवा रहा है।
उफ्फफ्फ्फ... बड़ा टेंसन है भाई, जिसे नाम पता चले कृपया संपर्क करे हमसे। हम बहुतै टेसन में हैं।
दीपावली पर जो भी हो हम हर बार की तरह अच्छे पाठक और दर्शक की भूमिका निभायेंगे।
हम्म्म अब लगा कि सुबीर संवाद सेवा पर कुछ शुरूआत हो गई है क्योंकि जब तक रात बारह बजे कंचन सिंह चौहान की टिप्पणी न आ जाए तब तक कुछ कम कम सा लगता है ।
हटाएंधन्यवाद इस हेतु
जवाब देंहटाएंCongrats Pankaj Bhai.
जवाब देंहटाएंगुरुदेव,
जवाब देंहटाएंहम तो नेट पर आपके जलवे देख रहे थे। ख़ुशी इस बात की है कि आपके प्रशंसक इतने हो गए है कि हमारे जैसे लेट लतीफ़ चेले भी दो पायदान उतरकर फैन की भीड़ में गुरुदेव गुरुदेव आवाज लगा रहे है। सन्नाटा ख़ामोशी को तोड़े तो अँधेरे पर विजय का जगमगाता पर्व सबसे उपयुक्त अवसर है। पुन:सम्मानों की बधाईयाँ और दीपावली की बधाईयाँ। सुबीर सम्वाद सेवा के हरे भरे और दिन प्रतिदिन पल्लवित हो वाले परिवार के सभी सदस्यों और उनके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंइस आमद पर सभी को बधाइयां ! दिवाली पर हो तरही मैं भी इसके पक्ष में नहीं हूँ गुरु देव ! एक फ्रेश स्टार्ट हो इस ब्लॉग पर तरही के रूप में ! सो दिवाली के बाद ही तरही सुनिश्चित की जाय ! और फेलुन से अलग कुछ लम्बी बह्र पर हो ! इतने दिन बाद भी सभी का इस तरह से सुबीर संवाद ब्लॉग को हाथों हाथों लेना सुखद है ! कितना अपनपण है सभी का इस ब्लॉग के प्रति ! फिर आप इस तरह से किसी को नहीं कह सकते की लोग आपको बधाई नहीं दिए ! बीती बातें बिसारने के लिए है गुरूवर ! वहां की कुछ और तस्वीरें दिवाली पर पोस्ट करें और वहां से क्या क्या लाये हैं हम सभी के लिए जाने से पहले जो लिस्ट दी गई थी ! इंतज़ार है एक कमाल की तरही के लिए ! सभी को दिवाली की अग्रिम शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंअर्श
ॐ
जवाब देंहटाएंगुणी अनुज पंकज भाई
नमस्ते
आपको ढेरों आशिष और समस्त परिवार को दीपावली की
स्नेहभरी शुभकामनाएं !
हमारा विश्व वास्तव में ' वसुधैव कुटुम्बकम ' हुआ है। ये पल हमारे
लिए हार्दिक खुशी का पल है।
लन्दन में श्रीमती इंदु जी की स्मृति में दिए जानेवाले
१९ वें अंतर्राष्ट्रीय इन्दु शर्मा कथा सम्मान समारोह में
लन्दन के हाउस ऑफ़ कॉमन्स में , सांसद विरेन्द्र शर्मा, सुश्री संगीता बहादुर (मंत्री-संस्कृति, भारतीय उच्चायोग), काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी एवं भारतीय उच्चायोग की सुश्री पद्मजा की उपस्थिति में दिया गया सम्मान अत्यंत गौरवमय , यशस्वी आयोजन रहा।
यह प्रतिष्ठित समारोह सफलता से सम्पन्न हुआ। इस शुभ अवसर की हर हलचल और गतिविधि से हम [ फेस बुक के जरीये दर्शक बने हुए ] हम सभी हार्दिक प्रसन्नता का अनुभव करते रहे।
एक अनोखी यादगार संध्या और उत्तम साहित्यकारों की प्रतिभा को
साधुवाद।
लन्दन में हिन्दी साहित्यकारों को सुश्री इंदु कथा सम्मान मिलना हर
भारतीय और हिन्दी भाषा प्रेमी के लिए सुखद है।
- लावण्या शर्मा शाह / Lavanya Shah.
यु एस ए से
- Lavanya D. Shah
बधाई। दिवाली की पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंसन्नाटा तोड़ने का शुक्रिया। आप जो आयोजन चाहें कर डालें। यह गुरुकुल आपका है।
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो स्थिर नहीं होता इस ब्रह्माण्ड में।
जवाब देंहटाएंबहरहाल, पुनः बधाई! जानदार और शानदार तस्वीरों के लिए धन्यवाद ! लन्दन और मैडम टुसाड मेरे लिए रोमांच के टॉपिक रहे हैं।
त्यौहार के मौके पर तरही हमेशा की तरह आनंदायक होगा।