नीरज जी के सम्मान के लिये रचा गया कार्यक्रम वास्तव में एक आनंद का कार्यक्रम हो गया । आनंद जिसमें हर कोई सहभागी था । नीरज जी से सभी लोगों की पहली मुलाकात थी, किन्तु, गौतम के शब्दों में कहा जाये तो ऐसा लग ही नहीं रहा था । वैसे तो सीहोर इन दिनों भोपाल वालों के लिये संडे पिकनिक स्पाट हो चुका है । किन्तु हमने सोचा कि पिकनिक के लिये कहीं और जाने के बजाय घर के आंगन में ही आम, आंवले, हरसिंगार, चीकू, सीताफल और अमरूदों के पेड़ों के झुरमुट के नीचे चटाइयों पर जाड़े की गुनगुनी दोपहर में पिकनिक जमाई जाये । सो बस तुलसी के चौरे के आसपास जम गई भोजन की महफिल ।
आंगन जिसको कुछ ही दिनों पूर्व संपन्न हुए त्यौहारों के कारण गोबर से लीपा गया था और गेरू खडि़या से जिस पर मांडने बनाये गये थे । उसी में पेडों के झुरमुट में चल रही है पिकनिक । एक एरियल व्यू ।
उसी आंगन में लकड़ी कोयले का पोर्टेबल चूल्हा रखकर नानीजी के मार्गदर्शन में ज्वार की रोटी और पकोड़े की कढ़ी का आनंद अन्य सहयोगी वस्तुओं के साथ लिया गया । और तत्पश्चात पेड़ से ताज़ा तोड़े गये अमरूदों के साथ भोज का समापन हुआ । इस फोटो में नानीजी अपनी बेटी के बेटे की बेटी के साथ हैं ।
ज्वार की गर्मा गर्म रोटियां सेंक कर देने का काम नानीजी की बेटीजी अर्थात माताजी ने संभाला । माताजी जिनको सारा घर मां कह कर बुलाता है । घर क्या पूरी कालोनी उनको मां कहती है ।
अंकित के ताज़ा ताज़ा खरीदे गये कैमरे से पूरे कार्यक्रम की फोटो लेने का काम पंखुरी ने संभाला, ये सारी फोटो जो आप देख पा रहे हैं ये उसीके द्वारा ली गईं हैं । अच्छी लगें तो ठीक नहीं तो बुराई सुनना उसे पसंद नहीं है । आपकी मजबूरी है कि आपको प्रशंसा करनी ही होगी ।
पंखुरी ने हमेशा की तरह आसान काम संभाला तो मुश्किल काम परी ने संभाला जो था पिकनिक के दौरान प्लेटों में भोजन की उचित मात्रा बनाये रखने का । यह काम उसने अपनी मम्मी और बड़ी मम्मी के मार्गदर्शन में संभाला । इस फोटो में भी वो अपनी ड्यूटी पर मुस्तैदी से तैनात है ।
और इस प्रकार से शुरू हुआ ये दोपहर भोज जिसमें भांति भांति की देशज वस्तुएं शामिल थीं । नींबू के रस में भीगी हुई मिर्चियों से लेकर ज्वार की रोटियों में शकर और घी मिलाकर नानी द्वारा बनाये गये चूरमे तक । नानी जो ऊपर चबूतरे पर बैठीं व्यवस्थाओं का निरीक्षण कर रही थीं ।
ज्वार की रोटियों को बेलन और तवे पर नहीं सेंका जा सकता उनको हाथों से ही बनाना होता है क्योंकि मोटा आटा होने के कारण टूटता है । आपको पता है हमारे स्वास्थ्य के लिये सबसे नुकसानदायक क्या है, गेहूं । इसलिये कि उसका आटा चिपचिपा होता है ।
और गोला बन गया । गोला जिसमें शामिल हैं नीरज जी अंकित, गौतम, सुलभ, सनी, सुधीर और एक किसी की चांद भी नजर आ रही है पीछे से ।
इधर से ज्वार की रोटियों की सप्लाई का काम शुरू हो चुका था । ज्वार की रोटियों के लिये आटा भी तुरंत गूंथा जाता है । पहले से गूंथ कर रखने की आवश्यकता नहीं होती है । इन रोटियों पर लगाया जा रहा है घर का बना ताज़ा शुद्ध घी ।
इस समय सब पूरी तन्मयता के साथ अपने अपने प्लेटों पर कन्सन्ट्रेट कर रहे हैं । बाकी दुनिया से पूरी तरह से बेखबर होकर । कर्नल साहब नींबू की मिर्ची पर दुश्मनों की फौज की तरह अपना गुस्सा निकाल रहे हैं ।
शायर साहब मुंह में कौर ले जा रहे हो या किसी के द्वारा दी गई दाद पर शुक्रिया दे रहे हो । पास में जो देश के महत्वपूर्ण शायर हरी टी शर्ट में बैठे हैं उनके सफेद बाल पंखुरी ने बड़ी मेहनत से फोटो में उभारे हैं ।
मिला जो वक्त तो जुल्फें तेरी सुलझा दूंगा, अभी उलझा हूं मैं हालात को सुलझाने में । नीरज जी की तन्मयता यही बता रही है कि प्लीज डोंट डिस्टर्ब ।
खाते खाते अचानक फोटोग्राफर ने एक पोज़ देने को कहा सो कौर को थाली में छोड़ कर पोज देने लगे नीरज जी ।
भोजन सप्लाई व्यवस्था को सुचारू बनाये रखने वाला पक्ष । जिसमें उतने ही लोग लगे हैं जितने खाने वाले हैं ।
इस्माइल प्लीज । खाने के बीच बीच में पोज देने का काम करना कितना मुश्किल होता है लेकिन करना है तो करना है मंखा सरदार का आदेश है ।
शायर अंकित सफर अपना आधा मिसरा किसी अन्य को दे रहे हैं । पूरा शेर उनके बस का नहीं रहा तो ऐसा करना पड़ा । आप ये मत पूछिये कि इस संडे की पिकनिक में श्री सफर इतना सज धज के नहा धो कर क्यों बैठे हैं ।
नींबू के अचार पर शायर साहब का दिल आ गया है । उनका कौर बार बार उसी तरफ बढ़ रहा है । नींबू का अचार चीज़ ही ऐसी है कि जो खाये वो ही जाने उसका स्वाद ।
कर्नल साहब, पास बैठ सुधीर को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि ज्वार की रोटी बहरे हजज मुसमन पर थी । सुधीर वाला समझने की कोशिश कर रहा है कि कर्नल साहब किस भाषा में बात कर रहे हैं ।
परसइया ( भोजन परसने वाला) पीछे किसी सैनिक की तरह मुस्तैद खड़ा है ।
कर्नल साहब की आंखें फोटो खिंचवाते समय बंद हो जाती हैं तो उसमें उनका क्या कसूर । होता है होता है । दुनिया की शर्म से गुनाहगारों की आंखें झपक न जाएंगी तो क्या होगा ।
रोटियों का काम तमाम हो चुका है अब प्लेट में रखी हुई कढ़ी की बारी है ।
है कोई और एक रोटी लेने वाला या फिर इस रोटी का चूरमा बनवा दिया जाये । लोग धीरे धीरे अपनी प्लेटों को समापन की ओर बढ़ाने में जुटे हैं । और इधर कम खाने वालों के बीच फंस गया खाने का शौकीन सनी कम खाने वालों के साथ बैठ कर पछता रहा है ।
ये ज्वार की रोटी और शुद्ध घी का बनाया हुआ चूरमे का लड्डू है जिसे अभी अभी चबूतरे पर बैठी नानीजी ने बना कर दिया है ।
बम भोले, हो गया भोजन अब पानी की बारी है ।
हो चुका भोजन आइये अब उठते हैं ।
अब भोजन करवाने वालों के भोजन की बारी है । फोटो में चार पीढि़यां दिख रही हैं । चबूतरे पर नानीजी, उनकी बेटी, उनकी बहुएं और उन बहुओं की बेटियां । ये जो ढेर सारी मूलियां सामने रखे खाना खा रही हैं ये हमारी धर्मपत्नी हैं । चम्मच से कुछ खाने के प्रयास में लगीं हमारी भाभीजी हैं ।
फोटोग्राफर का शुक्रिया अदा किया जाये जिसने भोजन के कार्यक्रम के शानदार फोटो लिये ।
एक और फोटो फोटोग्राफर के साथ ।
और ये फोटो आनंदमय ।
आइये सुलभ भैया मैं आपको मगही पान खिला कर लाती हूं ।
एक और पोज हो जाये ।
आइये सामूहिक पोज के साथ आज के आनंद को पूरा करते हैं । जय हो, जय हो ।
अविस्मरनीय अनुभव। ऐसा अनुभव जिसे "ये दिल मांगे मोर" . नानीजी की चुटीली बातें, धर्म और रूढ़ियों के प्रति उनके आधुनिक और प्रगतिशील विचार, नर्मदा और गाँव के रोचक किस्से मन करता है सुनते ही चले जाएँ। इस उम्र में भी ज़िन्दगी का भरपूर आनंद लेने वाली नानी किसी के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत्र हो सकती हैं। अम्मा का स्नेह, बहुओं द्वारा की गयी सेवा और बच्चों का दुलार किसी किस्मत वाले को ही नसीब होता है। आदरणीय गुरुदेव के माध्यम से जो मिला वो जीवन की अमूल्य धरोहर है। अद्भुत। मैं सबका आभारी हूँ नहीं कहूँगा क्यूंकि आभारी कहने से आत्मीयता में कमी आती है ये बहुत औपचारिक शब्द है इसलिए जहाँ औपचारिकता का नामो निशान ही नहीं था वहां इसका उपयोग उचित नहीं इसलिए मैं कहूँगा वहां जो मिला उस से गदगद हूँ।
जवाब देंहटाएंइस भोज का आनंद शब्दों में बयां करना असंभव है। " लुत्फ़-ए-मय तुझसे क्या कहूँ जाहिद : हाय कमबख्त तूने पी ही नहीं।"
गुरुदेव हम तो सीहोर आ गए, अब आप खोपोली आयें सपरिवार तो बात बने।
नीरज
आपसे मिल लेने के बाद खपोली आने को उत्सुक लोगों की संख्या काफी बढ़ गई है ।
हटाएंनेकी और पूछ पूछ सभी का तहे दिल से स्वागत है...कोई आये तो.
हटाएंजहाँ मंखा सरदार ने एक से बढ़ कर एक फोटो लिए वहीँ परी ने खाना इतने प्यार से खिलाया कि एक की जगह दो मोटी ज्वार की रोटी खा गया...(एक तो खाने में बला का स्वाद दूसरे अनवरत चलती पुरस्गारी अब ऐसे में मैं खाता नहीं तो क्या करता ?) आलम ये हुआ के अगले तीन दिनों तक भूख ही नहीं लगी. हमारे इतने फोटो तो फोटोग्राफर ने हमारी अपनी शादी पे भी नहीं खींचे थे. मंखा सरदार और परी की जय हो.
हटाएं
हटाएंमैंने फुल कंसंट्रेशन के साथ हर कौर को कायदे से चबाया, पुरे साल भर के लिए विटामिन अ से ज तक सब सहेज लिया है। नीरज सर की जिन्दादिली का जवाव नहीं। अब अगले बरस खोपोली में रस पान करने का इरादा है।
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सेनापति परी और सरदार मंखा, आपके दरबार को शत शत नमन। मैंने लौटते ही नानी जी कहानी बहनों को सुनाया। शायद इसे ही कहते हैं एक में दर्जन का मजा। लाजवाब फोटो,,,, यही है जीवन की मुस्कान ....
पंकज,बहुत सुन्दर फोटोज़ हैं। पंखुरी,परी को स्नेह और नानी और सभी बड़ो को सदर नमस्ते। अपनी दीदी को कैसे भूल गये पंकज। मेरे मुंह में तो पानी आ रहा है।
जवाब देंहटाएंपंकज,बहुत सुन्दर फोटोज़ हैं। पंखुरी,परी को स्नेह और नानी और सभी बड़ो को सदर नमस्ते। अपनी दीदी को कैसे भूल गये पंकज। मेरे मुंह में तो पानी आ रहा है।
जवाब देंहटाएंजीते रहिये, किसी की नज़र न लगे! आज ब्लॉग में निर्मल आनंद की धारा बह रही है! मन भीतर तक भीग गया तस्वीरें देख कर! मंखा सरदार और मंडली को कितने दिनों बाद देखा :) बड़ों को प्रणाम और बच्चों को स्नेह! शुभाशीष, शार्दुला
जवाब देंहटाएंआदरणीय पंकज सर ऐसा दृश्य देख कर तो मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है की खाना सामने रखा है परन्तु उठा कर खा नहीं सकता हूँ, मुख मंडल में पानी ही पानी आदरणीय नीरज सर को हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंतस्वीरें तो बहुत अच्छी आई हैं। तस्वीरों से लग रहा है कि सभी ने दबा कर खाया है। नींबू की मिर्ची का तो स्वाद ही अलग होता है मुँह में पानी आ गया। :)
जवाब देंहटाएंजब पूरा माहोल ही आनद से सरोबर हो तो हर चीज़ का मज़ा आता है ...
जवाब देंहटाएंतस्वीरें प्रत्यक्ष गवाह हैं .. लज़ीज़ खाने, खुशनुमा माहोल ओर कुनकती सर्दी का ... जो खा रहे हैं उनको ओर जो दिल मसोस के बैठे हैं फोटो देखने के बाद ... सभी को शुभकामनाएं ... महफ़िलें ऐसे ही सजती रहें ...
जय हो
जवाब देंहटाएंजय हो
जवाब देंहटाएंManisha Kulshreshtha ओह ये अवसर खो दिया, शायर होना था मुझे, नानी जी, माँ, परी, पंखुरी का साथ और फलदार पेड़ों के नीचे की ये गोठ किसी भी ज्ञानपीठ पुरस्कार पर भारी!
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मन दी आप होतीं तो सचमुच बहुत आनंद आता । खैर जब भी आपको भोपाल आना होगा तो सीहोर आना तो होगा ही । उस समय गोठ कर ली जायेगी !
हटाएंजो लोग गोठ समझ नहीं पा रहे हों उनके लिये ये कि मालवा में और राजस्थान में भोजन के साथ की जाने वाली पिकनिक को 'गोठ' या गोट कहते हैं ।
हटाएंगुरुदेव ये "गोठ" कहीं गोष्ठी से तो नहीं निकला है :)))
हटाएंॐ
जवाब देंहटाएंनमस्ते
आहा ...आनंद आ गया ...
आप, परिवार के सभी सदस्य
आनंद मंगल मनाते रहें और आगामी वर्ष 2013 में
आप अधिकाधिक यश व् अभिनव सृजन निर्माण में व्यस्त रहें
ये मंगल कामनाएं भेज रही हूँ ...
स ~ स्नेह आशिष ..
- लावण्या
वो सारे स्वाद यक-ब-यक फिर से जवान हो गए कमबख़्त....!!!
जवाब देंहटाएंआह ! ये कालजयी पोस्ट रहेगी इस पोस्ट की, वर्षों वर्षों तक पलट कर आ दुबारा देखने के लिए, एक-एक स्वाद, एक-एक लम्हे को फिर फिर से जीए जाने के लिए !
बैठकर यूँ प्यार से, भोजन खिलाना भा गया।
जवाब देंहटाएंदोपहर थी यार भी थे हम न थे तो क्या हुआ
जवाब देंहटाएंजानता हूँ एक लमहा यार मेरे नाम था.. . :-))
इतने से ही संतोष करना क्या बुरा है !? इह-लोक में अलौकिक होना यही तो है. बार-बार मिस कर रहा हूँ.
अभी फिर आया तो ध्यान गया है कि हेडर पर आपने जो ग्रुप फोटू लगाई है उसमें इनारे-किनारे के दोनों गबरू जवान किस मुहब्बत भरी नज़रों से एक दूसरे को निहार रहे हैं ....
जवाब देंहटाएंऔर इसे इत्तेफाक कहने को दिल नहीं करता की दोनों गबरुओं की कमीज सेम -टू- सेम है
;) ;) ;)
हाय हुसैन हम न भये..... :(
जवाब देंहटाएंहर बार ऐसी रिपोर्ट्स में ढूँढ़ती हूँ कि कोई तो आ कर कहे कि " तुम्हें मिस किया ?" और हम हैं कि इसी मुग़ालते में जान लगा देते हैं कि अगर नही पहुँची, तो...
जवाब देंहटाएंअरे कंचन दी, क्या कहूँ मैं। आपकी चर्चाओं के बगैर इन चौपालों में कभी काव्य रस बंटता है क्या? सुख और दुःख दोनों साथ साथ चलते हैं और हमें इन्ही में आनन्द ढूँढना होता है।
हटाएंउफ्फ्फ ये नाराजगी।
हटाएंहर बैठक जब जम रही थी तो आपका ही ज़िक्र आ रहा था कि अगर आप होती तो ये बातें और चटक भरी हो जाती, ये लम्हें कुछ और महक उठते।
दो दिन के अंतराल पर लौटा हूँ भोपाल तो यह पोस्ट ल्रीपाई,लेट हो गया।
जवाब देंहटाएंआत्मीयता ही शायद वह शब्द है जो बताता है कि पंकज भाई ही नहीं सारे परिवार में यही गुण है। मैं आदतन नये लोगों से कुछ समय में खुलता हूँ लेकिन आपके परिवार का हर सदस्य यूँ लगा जैसे घनिष्ट है। इस आत्मीयता से मिलन को मन हमेशा व्याकुल रहता है। दोपहर की महफिल तो मुझसे चूकी लेकिन रात्रि-भोज का आनेद कुछ कम नहीं था।
नानी जी और माताजी के साथ गुजरे पल विशेष धरोहर रहेंगे।
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जवाब देंहटाएंमैं तो बस यहाँ पुणेमें बैठके हर तरही का इंतजार करता रहता हूं..
ये संतसमागमभी काफी रोचक है !
अच्छी तस्वीरें और अच्छा कथाकथन..
"मिला जो वक्त तो जुल्फें तेरी सुलझा दूंगा, अभी उलझा हूं मैं हालात को सुलझाने में ।"
ये बहुतही बढिया..
लगता है आप सब ने इस कार्यक्रम और उसके बाद भोजन का बड़ा ही लुत्फ़ उठाया है, अफ़सोस हम वहां न पाये।
जवाब देंहटाएंहर तस्वीर अपने में एक मुकम्मल लम्हा है। पंखुरी ने उन सुनहरे लम्हों को इतने अच्छे से संजोया है कि आगे कभी भी अगर इन मिसरी से पलों से गुजरने का जी करेगा तो तुरंत यहाँ हाजिरी लगा दी जाएगी। सीहोर में हर बार कुछ न कुछ नए पकवान खाने को मिलते हैं और इस बार तो आनंद की चरमसीमा थी, ज्वार की रोटी और लड्डू ........अहा। लिख देने भर से फिर से खाने की तृप्ति जैसा कुछ लग रहा है।
जवाब देंहटाएंनीरज जी का साथ तो सोने पे सुहागा था। रात की बैठकी कमाल की रही, तीन कातिल और एक मासूम क़त्ल होने वाला।