शनिवार, 1 दिसंबर 2012

सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान हिंदी के महत्‍वपूर्ण ग़ज़लकार श्री नीरज गोस्‍वामी जी को प्रदान किया जा रहा है । आप सब भी सादर आमंत्रित हैं ।

16-20

सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान

सम्‍मानित कवि : श्री नीरज गोस्‍वामी

दिनांक 2 दिसम्‍बर 2012

समय शाम 7:30 बजे

स्‍थान : ब्‍ल्‍यू बर्ड स्‍कूल सभागार, सिंधी कॉलोनी सीहोर म.प्र.

वर्ष 2012 का सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान हिंदी के सुप्रसिद्ध शायर तथा बहुत अच्‍छे इन्‍सान आदरणीय श्री नीरज गोस्‍वामी जी को प्रदान किया जा रहा है । नीरज जी के बारे में या उनकी ग़जल़ों के बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है क्‍योंकि उनका बड़ा पाठक वर्ग उनकी कहानी आप कहता है । नीरज जी की ग़ज़लों में सबसे बड़ी विशेषता होती है उनकी बोधगम्‍यता । उनकी ग़ज़लें आम आदमी के लिये हैं । सरल और सहज भाषा में अपने ही अंदाज़ में कही गई ग़ज़लें । मैं एक बात को लेकर हर जगह चिंता व्‍यक्‍त करता हूं कि हम ये तो कहते हैं कि हिंदी का पाठक कम हो रहा है, किन्‍तु, उस आम पाठक की भाषा में साहित्‍य रचने की कोशिश नहीं करते हैं । आज ये हाल है कि साहित्‍यकार लिखता है, साहित्‍यकार छापता है और साहित्‍यकार ही पढ़ता है । शायद समझ तीनों को नहीं आता कि क्‍या लिखा गया है किन्‍तु, जो समझ में नहीं आये वो ही तो महान होता है । नीरज जी की ग़ज़लें उस तथाकथित महानता का दावा नहीं करतीं । वे अपने समय के साथ संवाद करती हैं । उनकी ग़ज़लें आम आदमी से उसी की भाषा में बात करती हैं । मैं आम बोलचाल की भाषा और साहित्‍य की भाषा अलग अलग रखने का सबसे बड़ा विरोधी हूं । नीरज जी की ग़ज़लें इस मामले में मेरे साथ खड़ी नज़र आती हैं । ये ग़जल़ें आम बोलचाल की भाषा में कही गईं हैं ।

Copy of neeraj ji

नीरज जी की एक ग़ज़ल

हजारों में किसी इक आध के ही गैर होते हैं
वगरना दुश्मनी करते हैं जो होते वो अपने हैं
कभी मेरे भी दिल में चांदनी बिखरा जरा अपनी
सुना है लोग तुझको चौदहवीं का चाँद कहते हैं
कोई झपका रहा आंखें है शायद याद कर मुझको
अंधेरी रात में जुगनू कहां इतने चमकते हैं
हमें मालूम है घर में नहीं हो तुम मगर फिर भी
यूं ही आंगन में जा जा कर तुम्हें आवाज़ देते हैं
ज़रूरी तो नहीं के फूल हों या फिर लगे हों फल
ये क्या कम है मेरी शाखों पे फिर भी कुछ परिंदे हैं
मनाते हैं बहुत लेकिन नहीं जब मानता है तो
हमीं थक हार कर हर बात दिल की मान लेते हैं
कहीं चलते नहीं दुनिया में फिर भी नाज़ है इनपर
विरासत में ये हमने प्यार के पाए जो सिक्के हैं
दिखाई दे रहा है जो, हमेशा सच नहीं होता
कहीं धोखे में आंखें हैं, कहीं आंखों के धोखे हैं
भले थे तो किसी ने हाल त़क 'नीरज' नहीं पूछा
बुरे बनते ही देखा हर तरफ अपने ही चरचे हैं

नीरज जी का स्‍वयं के बारे में लिखा गया यह आलेख आदरणीया रश्मि प्रभा जी के ब्‍लाग 'शख्‍स मेरी कलम से' से साभार लिया गया है

अपने बारे में कुछ लिखने को ऐसा कुछ उल्लेखनीय है ही नहीं. एक आम इंसान के जीवन में ऐसा कुछ खास नहीं होता जिस पर गर्व किया जा सके. पार्टीशन के समय अपना भरा पूरा घर छोड़ कर जब दादाजी भारत आये तब पिता शायद बीस बाईस वर्ष के थे. तभी से उनकी जद्दोजहद भरी ज़िन्दगी की शुरुआत हुई. अनजान जगह पर फिर से अपने पाँव जमा कर खड़े होना हंसी खेल नहीं होता. ऐसी विकट परिस्थितियों में साधारण इंसान टूट जाता है. लेकिन उन्होंने न खुद को स्थापित किया बल्कि पूरे परिवार की जिम्मेवारी भी उठाई. उनकी शादी के एक साल बाद याने सन उन्नीस सौ पचास की चौदह अगस्त को मेरा जन्म हुआ. शादी के समय माता जी दसवीं पास थीं .परिवार को सँभालने की खातिर पिताजी के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चलने के ज़ज्बे ने उन्हें और पढने को प्रेरित किया. अपनी लगन और मेहनत से पढ़ते हुए उन्होंने इतिहास में एम् ऐ के बाद बी एड भी किया और सरकारी स्कूल में सेवा निवृति तक पढ़ाती रहीं. परिवार में सबको साहित्य से प्रेम था. मेरी दादी अस्सी वर्ष की अवस्था में भी बिना कोई पुस्तक पढ़े सोने नहीं जाया करती थीं. हमारे घर में पुस्तकों का अद्भुत भण्डार था. पिताजी को संगीत में भी रूचि थी जिसके चलते उन्होंने अनेकों वाद्य यंत्र शौकिया सीखे और फिर बाद में सितार वादन में विधिवत शिक्षा ले कर स्नातक की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में उतीर्ण की. माताजी का रुझान गायन की तरफ अधिक रहा जो आज भी वैसा का वैसा है. अपनी गायकी से वो आज भी सुनने वाले को अपना दीवाना बना लेती हैं. शास्त्रीय संगीत हो,लोक गीत हों या फिर आज के तेज फ़िल्मी गीत सभी को गाने में उन्हें मजा आता है. येही कारण है के आजकी युवा पीढ़ी भी उनकी उतनी ही दीवानी है जिनती के हमारे बच्चों की पीढ़ी थी. साहित्य, संगीत और सिनेमा से रचे बचे घर परिवार में मुझमें इन विधाओं से स्वतः ही अनुराग हो गया.

चाहते हैं लौ लगाना आप गर भगवान से
प्‍यार करना सीखिये पहले हर इक इंसान से
खार के बदले में यारो खार देना सीख लो
गुल दिया करते हैं जो, वो लोग हैं नादान से
जब तलक उनको जरूरत थी मुझे अपना कहा
और उसके बाद फिर वो हो गए अनजान से
आजकल हैं लोग ऐसे क्यूँ जरा बतलाइये
सांस तो लेते हैं पर लगते हैं बस बेजान से,
एक दिन तन्हा वही पछताएंगे तुम देखना
तौलते रिश्‍तों को हैं जो फायदे नुकसान से
आप बेहतर है कि मेरे काम ही आएं नहीं
गर दबाना चाहते हैं बाद में एहसान से
बढ़ के कोई पांव छूता है बुजुर्गों के अगर
लोग रह जाते हैं उसको देख कर हैरान से
ढूंढते ही हल रहे हम उन सवालों का सदा
जो हमें लगते रहे हरदम बड़े आसान से
खेलने के गुर सिखाना तब तलक आसान है
जब तलक हो दूर ‘नीरज’ खेल के मैदान से

मैं सिर्फ पांच साल का था जब हमारा परिवार जयपुर आ कर बस गया. अब पिछले पचपन सालों से जयपुर में रहने के कारण हम जयपुर के ही हो गए हैं. प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर इंजिनीयरिंग की पढाई जयपुर में की. इसी दौरान जयपुर के रंग मंच से जुड़ गए और नाटकों से प्रेम दीवानगी की हद तक बढ़ गया. घरवालों को चिंता हुई के इंजीनियरिंग करने के बाद लड़का बजाय नौकरी करने के नाटकों में दिलचस्पी ले रहा है. नाटकों से ध्यान हटाने के लिए मेरी नौकरी की व्यवस्था जालंधर कर दी गयी जहाँ मैंने तीन सालों तक काम किया और फिर जयपुर की एक प्रसिद्द फैक्ट्री में काम मिलने पर जयपुर आ गया. अब पिछले दस सालों से मुंबई के पास खोपोली में स्थित भूषण स्टील में कार्यरत हूँ. नौकरी के साथ साथ पढने और सिनेमा देखने का शौक भी चलता रहा. पढने और सिनेमा देखने में समय की कमी कभी महसूस नहीं की. मेरा ये मानना है के अगर आपकी किसी चीज़ में रूचि है तो उसके लिए समय अपने आप निकल आता है.जो लोग कोई काम न कर पाने के लिए समय की कमी की शिकायत करते हैं वो शायद उस काम को करना ही नहीं चाहते.

फिर परिंदा चला उड़ान पे है
तीर हर शख्स की कमान पे है
फ़स्ल की अब खुदा ही खैर करे
पासबाँ आजकल मचान पे है
तब बदलना नहीं ग़लत उसको
जब लगे रहनुमां थकान पे है
हैं निगाहें बुलन्दियों पे मेरी,
क्या हुआ पाँव गर ढलान पे है
धार शमशीर पर करो अपनी
ज़ुल्म का दौर फिर उठान पे है
शहर के घर में यूं तो सब कुछ है’
पर सुकूँ, गाँव के मकान पे है
बात “नीरज” तेरी सुनेंगे सभी
जब तलक चाशनी ज़बान पे है

शायरी से लगाव भी बरसों पुराना है. मुझे याद है पिताजी अक्सर जयपुर में होने वाले अखिल भारतीय मुशायरों और कवि सम्मेलनों में मुझे अपने साथ लेजाया करते थे जहाँ मैं रात रात भर बैठ कर बड़े बड़े शायरों कवियों को सुना करता था. शायरी की समझ तो खैर क्या आती होगी लेकिन तब शायरों के शायरी सुनाने का ढंग और फिर दाद पर लोगों की वाह वाह रोमांचित किया करती थी. पिछले चार पांच सालों से याने जब से ब्लॉग खुला तब से लिखने का कर्म शुरू हुआ. ग़ज़ल लिखने को प्रोत्साहित मेरी धर्म पत्नी ने किया जो पत्नी कम और मित्र अधिक है. तब शायरी कैसे की जाती है और ग़ज़ल कैसे कही जाती है इसका मुझे बिलकुल इल्म नहीं था. ग़ज़ल की टेढ़ी बांकी पगडंडियों पर बिना किसी सहारे के चलना मुश्किल काम है. ग़ज़ल का ये सफ़र बिना गुरु जनों की मदद से तय करना असंभव था . मुझे अपने पाठकों से अब तक जितना भी प्यार मिला है वो सब इन्हीं की बदौलत है.

अजल से है ये बशर की आदत, जिसे न अब तक बदल सका है
ख़ुदा ने जितना अता किया वो, उमीद से कम उसे लगा है

किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख्‍़त जब तक हरा भरा है
जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
रहा चरागों का काम जलना, मगर हमीं ने कभी तो उनसे
किया है घर को किसी के रौशन, किसी के घर को जला दिया है
जरा सी बदलोगे सोच अपनी तो फिर सभी से यही कहोगे
इसे समझते रहे बुरा हम, जहां ये लेकिन बहुत भला है
किसे दिखाए वो दाग दिल के, किसे दुखों की कथा सुनाये
अज़ाब ऐसा है ये कि जिससे अदीब तनहा तड़प रहा है
जो सुब्ह निकले कमाने घर से, थके हुए दिन ढला तो लौटे
तुम्हारा मेरा, सभी का नीरज, यही तो बस रोज़नामचा है

पाठकों का असीम प्यार ही मेरी एक मात्र उपलब्धि है. इन्टरनेट के माध्यम से लोगों से इतना प्यार मिला है के "आँचल में न समाय" वाली स्तिथि है. ग़ज़लें हिंदी की अधिकांश वेब साइट्स पर मौजूद हैं एक आध राष्ट्रिय स्तर और स्थानीय अखबारों में भी ग़ज़लें छपी हैं. कभी अपनी ग़ज़लों को किसी अखबार या पत्रिका में छपवाने का भागीरथी प्रयास किया भी नहीं. अलबत्ता मुंबई और जयपुर की साहित्यिक गोष्ठियों में कोई बुलाता है तो चला जाता हूँ. किसी मान सम्मान की चाह भी नहीं है जो लिखता हूँ सिर्फ अपनी ख़ुशी के लिए लिखता हूँ. ब्लॉग और ग़ज़ल लेखन का सबसे बड़ा फायदा हुआ ये हुआ कि मेरा सम्बन्ध कुछ ऐसे लोगों से हुआ जो विलक्षण हैं. सोचता हूँ के अगर उनसे न मिला होता तो जीवन में बहुत कुछ अधूरा रह जाता. सम्बन्ध बिना किसी पूर्व परिचय के भी बनते हैं और प्रगाढ़ हो जाते हैं ये मैंने ब्लॉग लेखन के दौरान मिले लोगों से ही जाना. जब तक ऊर्जा रहेगी लिखता रहूँगा, अभी तक तो ये ही सोचा है आगे भगवान् जाने.

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दिनांक 2 दिसम्‍बर 2012 को सुकवि रमेश हठीला सम्‍मान श्री नीरज गोस्‍वामी जी को प्रदान किया जा रहा है । इस अवसर पर एक मुशायरे का भी आयोजन है । मुशायरे में श्री तिलकराज कपूर, श्री डॉ सूर्या बाली, श्री गौतम राजरिशी, श्री अंकित सफर, श्री प्रकाश अर्श आद‍ि ने अभी तक आने की स्‍वीकृति प्रदान की है । आप भी अवश्‍य पधारें ।

25 टिप्‍पणियां:

  1. नित बदली जाती...आज के ब्लॉग के हैडर में उपर दो तस्वीरें देखी...
    एक मेरे भाई नीरज की और दूसरी दिवंगत हठीला जी की...
    नीरज भाई के साथ एक मंच पर होना मेरे कवि को पूर्णता प्रदान करने का क्षण था जब मुझे यह सौभाग्य मुंबई के अणु शक्ति नगर में मिला था कुछ बरस पहले...यूँ कुछ वजहों से मैं अध्यक्ष्ता कर रहा था उस सम्मेलन की...मगर दरअसल कृतज्ञ था उस एतिहासिक क्षण के लिए....जब हुई एक क्षणिक मुलाकात, जिसने एक कसक जगा दी थी इस खुशदिल इन्सान के साथ एक अरसा गुजराने की. अरसा वो जिसके आगे मेरी उम्र छोटी लगी पहली बार...
    दौर आने जाने का सिलसिला चला- मेरी पहली किताब का विमोचन और मौका मिला कि रमेश हठीला सुबह मुझसे मिलने आयें अपना सहज और सरल व्यक्तित्व स्वयं के कांधे पर लिए..उनके खुद के शहर- सिहोर में..मेरे गुरु पंकज के घर...हमेशा के लिए अंकित कर गये अपना आना- मेरे मानस पटल पर...वो गये इस जहाँ से..खबर मिली ऐसे जैसे कि मिट गया हो एक हिस्सा मेरे अस्तित्व का..वो भी अपने मित्र, भाई, गुरु..पंकज के काँपती कलम से,,..कोशिश की कि मिट जाये स्मृतियाँ...जो देती हैं तकलीफ मुझे...बिछड़ जाने की अनायास..इतने कम मिलन की...उस अद्भुत प्रतिभा से...जो बंजारा था...जिसके गीत बंजारे थे...जिसकी कृति बंजारे गीत थे..जिसकी खुद की सच्ची कृति....उसकी पूर्णा..उसकी बिटिया..आज गीत और गज़लों की आवाज की पहचान है युवा भारतीय कवित्त मंच की...
    जोड़ता हूँ उस हठीले व्यक्तित्व के हठीला की सुरमई और लहरती आवाज के बंजारे तार को..सुने उस गज़ल के ठहरते भावों और उतर कर दिल में समाते शब्द शब्द अशआरों को..जिसे हासिल था एक मरियम आपा का प्यार....जिसे मानते थे नीरज अपना रहनुमा...न मरियम आपा रही...न रहे हठीला.....तो बच रहा सच्चा हकदार पूरी वसीयत का...नाम धरता है जो नीरज गोस्वामी का...
    कौन हो सकता था सुकवि रमेश हठीला सम्मान का सच्चा हकदार सिवाय मेरे अपने नीरज गोस्वामी के..
    असली हकदार का हक उसे हासिल हुआ..यह एक अद्भुत घटना है भारत कें उस दौर में जिससे देश गुजर रहा है...जहँ ऐसा होना एक स्वपन सा लगता है...और इसके लिए साधुवाद भाई पंकज सुबीर को...जिन्होंने यह कर दिखाया...
    यह एक दिशा है...जो दिखाई गई है और आने वाली पीढ़ी को इस पर चलना है...
    समस्त शुभकामनाएँ...
    अद्भुत दिवस-आनन्दमयी छटा!

    -समीर लाल ’समीर’

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    1. बहुत धन्‍यवाद समीर जी इसके लिये कि आपने वो लिख दिया जो मैं लिखना चाह रहा था । इस टिपपणी को कार्यक्रम में पढ़ा जायेगा ।

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  2. अरे नीरज जी को बधाई कहना तो रह ही गया!! :)

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  3. नीरजजी को मुबारकवाद...उन्हें पढ़ना हमेशा मन को मोहता है...

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  4. साहित्यजीवी व काव्य-प्रेमी सुकवि रमेश हठीलाजी के सम्मान में आयोजित समारोह और उनके नाम से वार्षिक सम्मान प्रदान किया जाना एक कृतज्ञ सहयोगी के भावनात्मक आग्रह का सुद्योतक है.
    पंकजभाईजी आपकी विनम्रता के प्रति हम नत हैं.

    जिस लिहाज और इत्मिनान से आदरणीय नीरजभाई जी से संबन्धित बातें साझा हुई हैं और उनकी कतिपय परिचयात्मक ग़ज़लों को प्रस्तुत किया गया है, उससे मन संतुष्टि और हृदय आत्मीयता से लगातार आप्लावित होता जा रहा है. अग्रज नीरज जी को मेरी पुनः सादर बधाइयाँ और हार्दिक शुभकामनाएँ तथा समारोह में उपस्थित हो रहे समस्त भाई-बंधुओं को मेरा यथोचित अभिनन्दन.

    पंकज भाईजी मेरा इस समारोह में उपस्थित न हो पाना मुझे कुछ अधिक ही कचोट रहा है. कारण कि मैं इस समारोह में अपनी उपस्थिति को लेकर एक तरह से आश्वस्त-सा था. किन्तु, कहते हैं न, मेरे मन कछु और है, विधना के कछु और.

    चलिये परिवार में हूँ, फिर कभी.

    सादर
    सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  5. नीरज भाई जी ,
    बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें!
    शुभकामनायें!

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  6. नीरज जी को ढेर सारी बधाई। भविष्य के लिए शुभकामनाएँ। उनके व्यक्तित्व एवं लेखन को नमन।

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  7. नीरजजी को हार्दिक बधाई ...
    शुभकामनायें...

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  8. जहाँ ऐसे दिग्गज लोग मौजूद हों उस कार्यकर्म में सम्मिलित न हो पाना मेरा व्यग्तिगत नुक्सान है जिसकी भरपाई आने वाले कुछ दिनों में होती नहीं दिख रही :(

    आदरणीय नीरज जी को ढेरों ढेर बधाईयाँ
    कार्यक्रम की सफलता के लिए असीम शुभकामनाएं
    सादर

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  9. आदरणीय नीरज जी को हार्दिक बधाई! तरही में उनकी ग़ज़ल हक हमेशा इंतज़ार रहता है। उनका परिचय पढ़ा, लेखक को थोड़ा बहुत जानती थी। व्यक्ति के बारे में जानना अच्छा लगा। दादा-दादी , पिताजी-माँ और हमारी भाभी जी के बारे में पढ़ के तो बहुत ही अच्छा लगा। यूं सदैव सुन्दर से सुन्दरतम लिखते रहें!
    "आप बेहतर है की मेरे काम आये ही नहीं
    गर दबाना चाहते हैं बाद में अहसान से" -- वाह! बहुत ही अहम् प्यारी बात, बड़ी सरल सी भाषा में !
    "खेलने का गुर सिखाना" --- वाला शेर भी शाश्वत बात, सहजता से कही गई!
    सुबीर भैया, आपको और संवाद सेवा परिवार को इस आयोजन के लिए शुभकामनाएं ।
    सादर शार्दुला

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  10. सबसे पहले आदरणीय नीरज गोस्वामी जी को पुरस्कार के लिए हार्दिक बधाई।बधाई श्रद्धेय पंकज सुबीर जी को भी क्योंकि साहित्य की इस ब्लॉग और अन्य माध्यमों से भी वे जैसी खिदमत कर रहे हैं वह अपने आप में अनूठा है।नीरज जी के व्यक्तित्व के बारे ऊपर जितना कुछ कहा गया है उसमे आज मैं अपना एक निजी प्रसंग जोड़ना चाहूँगा।शायद इसके बारे में स्वयं नीरज जी को भी याद न हो।बात कोई 2 साल पहले की है जब मैंने अपना ब्लॉग शुरू किया था।मैं ग़ज़लों में काफी पहले से हाथ पैर मारता था।लेकिन उसके शिल्प से कतई अनजान था।कोई बताने वाला नहीं था इसलिए बेबह्र चीज़ें भी धड़ाधड़ ब्लॉग पर डाल रहा था।अदब की दुनिया का रिवाज़ ही कुछ ऐसा है कि किसी अनचीन्हे को कोई देखता भी नहीं,उसे उसकी गलतियां बताना तो दूर।बहरहाल,नीरज जी नियमित मेरे ब्लॉग पर आते और उत्साहवर्धक टिप्पणियां करते थे।फिर शायद जब उनसे मेरी अधीरता देखी न गई तो उन्होंने स्नेहसिक्त शालीनता के साथ मुझे एक दो मेल किये और ग़ज़ल का शिल्प सीखने की सलाह दी।मेरे पूछने पर उन्होंने न सिर्फ कुंवर बेचैन साहब की पुस्तक 'ग़ज़ल का व्याकरण' का नाम बताया बल्कि प्रकाशक के नंबर भी दिए।और इस प्रकार ग़ज़ल की पाठशाला में मेरा दाखिला हुआ।आज के घनघोर स्वपरक समय में ऐसी सदाशयता सचमुच विरल है।और इसलिए मैं ह्रदय से उन्हें सदैव गुरु का दर्ज़ा देता हूँ।आज इस मौके पर मैं उन्हें पुनः प्रणाम करते हुए कहना चाहूँगा कि इस पुरस्कार के लिए शायद इससे बेहतर चयन नहीं हो सकता था।काश मैं भी इस अवसर पर उपस्थित हो पाता!

    -सौरभ शेखर।

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  11. नीरज भाई जी ,
    बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें!
    शुभकामनायें!

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  12. नीरज जी को हार्दिक बधाई. नीरज जी के कलाम का मैं भी बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ. सहज में आसान शब्दों में बहुत ही प्रभावशाली गज़ल कहते हैं. एक बार पढ़ कर शेर घंटों दिमाग में गूंजते रहते हैं. यही सच्चे शेरों की पहचान है. नीरज जी इस सम्मान के सच्चे हकदार हैं.

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  13. नीरज जी को हार्दिक बधाई तथा शुभकामनाएं !

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  14. आ. नीरज जी को बहुत बहुत बधाई इस ब्लॉग के ज़रिये ! शेष कल मिल कर !
    बस यही कि नीरज जी के लिए जितना कहा जाए कम है !

    कोई झपका रहा आँखें है शायद याद कर मुझको ,
    अँधेरी रात में जुगनू कहाँ इतने चमकते हैं !

    ऐसा शे'र सिर्फ नीरज जी ही लिख सकते हैं ! वाह वा

    अर्श

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  15. नीरज भाई को हार्दिक बधाई, खुशी और गर्व का अहसास हो रहा है उनकी इस उपलब्धि पर.

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  16. इस सम्मान को नीरज जी और नीरज जी को यह सम्मान मिलने पर दोनों को बराबर की बधाई और शुभकामनाएं। नीरज जी एक शाइर होने से पहले एक बहुत बेहतरीन इंसान हैं जो कि अच्छे शाइर होने के लिए मूलभूत योग्यता है, साथ ही उनका शाइरी का ज्ञान और उम्दा कहन उन्हें आला दर्जे का ग़ज़लगो और इस सम्मान का सर्वथा योग्य पात्र बनाता है।

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  17. आदरणीय पंकज जी.

    मेरा आपसे सादर प्रश्न है कि इस वर्ष क्या आप स्व ० श्री रमेश हठीला जी स्मृति मुशायरा ब्लॉग पर आयोजित नहीं कर रहे !

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  18. ब्लाग जगत के माध्यम से जिन महान लोगों से परिचित होने का सौभाग्य मुझे मिला, उनकी सूची में सबसे पहला नाम आदरणीय भाई साहब श्री नीरज गोस्वामी जी का ही है, कुछ वर्ष पहले किसी ब्ळाग में छपी मेरी रचनाओं पर नीरज गोस्वामी जी की अत्याधिक उत्साहवर्धक टिप्पणी से हमारे परिचय की शुरुआत हुई, और अब जब भी मैं कुछ लिखता हूँ सबसे पहले मैं उन्हें सूचित करता हूँ. मुझे लगता है मैंने वो रचना लिखी ही नहीं जिस पर भाई साहब नीरज गोस्वामी की टिप्पणी न आई हो.

    पंकज भाई साहब बिल्कुल सही फ़रमाते हैं कि कई महान लोग खुद का लिखा खुद ही पढ़ते हैं, इधर नीरज भाई बहुत ही सादा और सुन्दर भाषा में बहुत सुन्दर ग़ज़लें रचते हैं, और अपने असंख्य पाठकों के साथ सीधा संवाद स्थापित करते हैं. मैं भी उन्हीं पाठकों में से एक हूँ और मुझे गर्व है कि वे मेरे भी बहुत अपने हैं.

    साहित्य जगत की इस विभूति को इस सम्मान / इस पुरस्कार के लिए हार्दिक बधाई.और बधाई भाई पंकज सुबीर जी को भी.

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  19. नीरज जी को बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं, नीरज जी की गजलों को पढ़ कर उन ही के हमनाम शायर का
    एक शेर याद आता है

    जो सादगी है ' कहन ' में हमारे नीरज की
    किसी प' और भी क्या ऐसा बांकपन देखा।

    सम्मान सहित
    पारुल सिंह

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  20. कल नीरज जी ने जो समॉं बॉंधा उसके लिये यहॉं से ऐ बार फिर बधाई।
    कार्यक्रम जिस गरिमा से सम्‍पन्‍न हुआ वह स्‍मरणीय रहे्गा।
    बहुत कम जगह ऐसे श्रोता मिलते हैं,सीहोर के काव्‍य प्रेमियों का विशेष आभार और उसपर दाल-बाटी काआयोजन तो लगभग 25 वर्ष के अंतराल पर प्राप्‍त आनंद है।
    बधाई।

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    उत्तर
    1. सौरभ ! दिल जलता है तो जलने दे.. .

      पंकजभाईजी से निवेदन : फ्रिज हुए क्षणों को साझा करने में कृपया विलम्ब न हो.. .

      हटाएं

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