बुधवार, 2 नवंबर 2011

दीपावली का मुशायरा कुछ और रचनाएं जो कि बाकी रह गईं हैं उनके साथ चलते हैं देव प्रबोधनी एकादशी तक अर्थात दीपपर्व के समापन तक । श्री द्विजेन्‍द्र द्विज जी का एक गीत, दिगम्‍बर नासवा तथा अंकित सफर की एक और ग़ज़ल ।

इस बार की दीपावली का त्‍यौहार बहुत व्‍यस्‍तता में बीता । कई सारे काम एक साथ करने को थे । कुछ हुए कुछ नहीं हुए । खैर, अधूरे कामों को पूरा करने का ही तो नाम जिंदगी है । जो काम अधूरे हैं वे फिर पूरे करने का अवसर मिलता है और उनको पूरा करने की कोशिश की जाती है । इस बार का तरही बहुत सुंदर तरीके से हुआ । कुछ और ग़ज़लें, गीत जो कि बाकी रह गये हैं उनके साथ आइये हम चलते हैं देव उठनी ग्‍यारस की ओर जो कि दीपपर्व का अधिकारिक समापन होता है ।

deepavali_lampदीप ग़ज़लों के जल उठे हर सू deepavali_lamp

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पंखुरी का मध्‍यप्रदेश दिवस पर किया गया कत्‍थक नृत्‍य

और आइये अब सुनते हैं श्री द्विजेन्‍द्र द्विज जी का एक गीत,  दिगम्‍बर नासवा तथा अंकित सफर की एक और ग़ज़ल जो दूसरे भावों के साथ है ।

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श्री द्विजेन्‍द्र द्विज जी

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हर नया दिन हो एक दीप-उत्सव
गो अमावस की रात काली है
सर बुलन्द आज है उजाले का
घुप्प , काले, घने अँधेरे ने
अपनी गर्दन झुका- झुका ली है
फिर दियों की छटा निराली है
अब के फिर आ गई दिवाली है
जगमगाया है आज हर कोना
जैसे कण-कण चमक रहा सोना
दीपमाला पहन ली गलियों ने
आँगन-आँगन में अल्पनाएँ हैं
अल्पनाओं की इन लकीरों में
प्रिय के आने की कल्पनाएँ हैं
फूल ओढ़े हुए हैं दीवारें
द्वार-आँगन सजे-सजाये हैं
सारी दुनिया ने ऐसे मिलजुल कर
आज घी के दिए जलाये हैं
काट बनवास जैसे चौदह बरस
राम अयोध्या को लौट आये हैं
हैं उमंगों की मन में फुलझड़ियाँ
हौसले हैं हवाईयों जैसे
रॉकेटों की उड़ान तो देखो
फुलझड़ी की ये शान तो देखो
इन अनारों की जान तो देखो
रोशनी के मचान तो देखो
ज्योतिपुंजों की आन तो देखो
पर्व के वलवले निराले हैं
लौ के ये सिलसिले निराले हैं
मुँह छिपाता फिरे है अँधियारा
नाच उट्ठा है आज उजियारा
फिरकियाँ रोशनी की नाची हैं
रात के घुप्प काले सीने पर
पुतलियाँ रोशनी की नाची हैं
ज्योति की जीत है अँधेरे पर
तितलियाँ रोशनी की नाची हैं
घी उमंगों का धैर्य की बाती
जगमगाए सदा ही मन-दीपक
तेल जीवट का लक्ष्य की बाती
खिलखिलाए सदा ही मन-दीपक
हर क़दम हर घड़ी रहे रौशन
आपकी ज़िन्दगी उजालों से
रहती दुनिया तलक रहे कायम
दोस्तो ! दोस्ती उजालों से
हर अँधेरे को जीतने के लिए
धैर्य की नग़्मगी रहे मन में
आस की चाँदनी रहे मन में
सत्य की रौशनी रहे मन में
आस्था की जड़ी रहे मन में
आँगन-आँगन में अल्पनाएँ हों
जिनकी चित्रावली रहे मन में
हर नया दिन हो एक दीप-उत्सव
हर्ष की इक नदी रहे मन में
अगली दीपावली के आने तक
रोज़ दीपावली रहे मन में

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श्री दिगम्‍बर नासवा

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आसमां से लहू गिरे हर सू
मौत का झुनझुना बजे हर सू
आज इंसान क्यों नहीं मिलता   
आदमी आदमी मिले हर सू
कौन बारूद ले उड़ा देखो
धूल दहशत की है उड़े हर सू
बुखमरी का यहाँ ये आलम है
मौत चेहरे पे है दिखे हर सू
चाँद गोली से हो गया जख्मी 
शबनमी चाँदनी झरे हर सू
 
तेरे आने की की सुगबुगाहट है
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

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अंकित सफ़र

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क़र्ज़ रातों का तार के हर सू
एक सूरज नया उगे हर सू
तेरे हाथों का लम्स पाते ही
एक सिहरन जगे जगे हर सू
मेरे स्वेटर की इस बुनावट में
प्यार के धागे हैं लगे हर सू
खेल दुनिया रचे है रिश्तों के
जिंदगानी के वास्ते हर सू

ख़त्म आखिर सवाल होंगे क्या?
मौत के इक जवाब से हर सू

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तीनों की नये रंगों की रचनाओं का आनंद लीजिये और दाद देते रहिये । अगले अंक में श्री तिलकराज जी की तीन ग़ज़लों के साथ समापन करेंगे हम दीपावली की तरही का अधिकारिक रूप से ।

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पंखुरी के कत्‍थक से प्रसन्‍न मंत्री श्री करण सिंह वर्मा ने उसे दुलार किया ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. दीवाली काव्योत्सव की ढेरों बधाईयाँ।

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  2. आनंद के निर्झर तले नहा लिए हम तो...तीनों दिग्गजों की अनूठी रचनाएँ एक साथ पढने को मिल गयीं...तीनो अपने अपने फन के उस्ताद हैं इसलिए इन की शान में नया कुछ कहना बहुत मुश्किल सा काम है...
    द्विज जी के गीत की हर पंक्ति में जैसे दिवाली साक्षात् उतर आई है...कमाल है...उनमें प्रतिभा किस कदर कूट कूट कर भरी हुई है उसकी एक बानगी इस रचना से दिखाई दे जाती है...
    दिगंबर जी की ग़ज़ल बिलकुल अलग से रंग में रंगी नज़र आई है..एक ऐसे रंग में जो उनका नितांत निजी रंग है..."कौन बारूद ले उदा देखो..."चाँद गोली से हो गया ज़ख़्मी..." जैसे अशआर सिर्फ और सिर्फ वो ही लख सकते हैं...
    अंकित के बारे में क्या कहूँ...जैसे होनहार बिरवान के होत चीकने पात...वैसे ही इस होनहार शायर के हर शेर चमकदार होते हैं...गज़ब की प्रतिभा है इस सीधे सादे से बच्चे में...देखने में निहायत मासूम और शेर कहने में भयंकर मारक क्षमता वाला ये बालक आने वाले समय में शायरी का परचम उठा कर सबसे आगे चलने वालों में से होगा...देख लेना.
    अंत में प्रतिभा वान "पंखुरी" को गोद में उठा कर धन्य होते हुए मंत्री जी को देख कर अच्छा लगा.
    नीरज

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  3. द्विज जी के गीत ने मन खुश कर दिया. बहुत ही खूबसूरत गीत है. दिगंबर जी की गज़ल बहुत बढ़िया है. अंकित के "तेरे हाथों का लम्स पाते ही.." और "मेरे स्वेटर की इस बुनावट में.." बहुत प्यारे लगे... बधाई.

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  4. द्विज भाई का मोहक गीत पूरा दीप-दृश्‍य प्रस्‍तुत करता सा लगता है।
    पर्व के वलवले निराले हैं
    लौ के ये सिसिले निराले हैं मुँह छिपाता फिरे है अंधियारा
    नाच उट्ठा है आज उजियारा फिरकिया रौशनी की नाची हैं
    रात के घुप्‍प काले सीने पर
    पुतलियॉं रौशनी की नाची हैं।
    ज्‍योति की जीत है अंधेरे पर तितलियॉं रौशनी की नाची हैं।
    वाह साहब वाह।
    दिगम्‍बर नासवा जी का चॉंद गोली से हो गया ज़ख्‍़मी शबनमी चॉंदनी झरे हर सू। नायाब सोच है।

    अंकित के स्‍वेटर का अहसास बहुत खूबसूरत बन पड़ा है। मध्‍यप्रदेश स्‍थापना दिवस के सांस्‍कृति आयोजन में पंखुरी को मिले कत्‍थक नृत्‍य अवसर की बधाई। बच्‍चे की नाज़ुक सोच में ये अवसर बहुत महत्‍वपूर्ण होते हैं और विकास में सहायक। ऐसा कोई अवसर न चूकें।
    पँखुरी नृत्‍य हो हवाओं में
    थाप कत्‍थक की यूँ उठे हर सू।
    और आप क्‍यूँ आन्‍दोलन की स्थिति पैदा कर रहे हैं। भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के के बिना कौन इस तरही का समापन स्‍वीकार करेगा। सोच लें, अपना काम तो चेताने का है सो कर दिया।

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  5. दीप उत्सव का इतना सुंदर नजारा दिखा है इस बार कि हमने आनंद की अनुभूति को स्वयं मे किस प्रकार प्राप्त किया है ये वर्षों तक याद रखने वाली घटना है. आज विभिन्न पिढियों के अपने अपने फन के माहिर रचनाकारों ने दीप उत्सव के समापान श्रींख्ला मे चार चाँद लगाया है. द्विज जी, दिगंबर जी और अंकित भाई को बहुत बहुत बधाई !

    और छुटकी पंखुरी ने मौके पर दिल जीत लिया. बहुत सुंदर!! अगली मुलाकात मे उपहार तो बनता है सबसे छोटी गुडिया के लिये.

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  6. द्विज जी के गीत ने समा बाँध दिया. दीपावली तो बस दीपावली है.
    आपको हार्दिक बधाई.

    दिगम्बर नासवाजी की ग़ज़ल अच्छी लगी.
    ’बुखमरी’ की अक्षरी को दुरुस्त करवा दें.
    और ये क्या कमाल है .. ’चाँद गोली से हो गया ज़ख्मी..’ !!?
    ख़ैर आखिरी शेर बातों को सम्भाल लिया. :-))
    बधाई है.

    लेकिन चमत्कृत किया है तो अंकित सफ़र की ग़ज़ल ने.
    ’तेरे हाथों की..’ और ’मेरे स्वेटर..’ ने मुग्ध किया है.
    ’ख़त्म आखिर सवाल..’ पर ढेरमढेर बधाइयाँ अंकित. क्या कहन क्या अंदाज़ !.. वाह ज़नाब !!

    -सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)

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  7. पंखुरी की उपलब्धियाँ निश्चिंत करती हैं. बिटिया को स्नेहाशीष.
    आज के नन्हें-नन्हें थाप कल के आश्वस्तिकारक कदम होंगे. ..

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  8. ये तो ऐसा लग रहा है कि सचिन और सहवाग स्लॉग ओवर में बैटिंग कर रहे हैं। द्विज जी के गीत की बात ही निराली है, दिगंबर नासवा जी और अंकित सफर जी ने भी दमदार अश’आर कहे हैं। तीनों लोगों को बहुत बहुत बधाई। अब सात गुणा सात वाली ग़ज़ल का इंतजार है।

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  9. द्विज जी का गीत .गज़ल सभी दिल को छूते हैं सुन्दर गीत के लिये उन्हें बधाई नास्वा जी और अंकित का भी जवाब नही। बहुत अच्छा चल रहा है मुशायरा\ स्य्हुभकामनायें।

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  10. वाह ... द्विज जी के गीत ने तो समां ही बाँध दिया ... दिवाली के बाद भी दिवाली का मज़ा दोगुना कर दिया ...
    पंखुरी बिटिया को बहुत बहुत बधाई ... बहुत प्यारी लग रही है ...
    अंकित जी ने दुबारा से चकित किया है इस लाजवाब गज़ल में ... कमाल की शेर हैं सभी ...
    पर अब असली इन्तेज़ार सात गुना सात का है ...

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  11. गुरुदेव यह दीपावली तो "बोनसमय" हो गई

    द्विज जी के गीत ने मोहित किया
    तो दिगंबर साहब और अंकित भाई की ग़ज़लों के बोनस नें चौंका दिया

    अंकित भाई ने तो भनक भी नहीं लगाने दी की एक और गज़ल लिख रहे हैं

    सभी को हार्दिक बधाई

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  12. पंखू को बहुत बहुत प्यार. ये छुटकी कमाल की है, इसके साथ समय कब बीतता है पता नहीं चलता. हुनर तो देखो इसका, अभी से बड़ों को पिछाड दे रही है जैसे जैसे आगे बढेगी उपलब्धियों के शिखर को चूमेगी. आमीन.
    दीपावली का खुमार अभी उतरा ही नहीं कि ये प्रस्तुतियां और नशा चढाने पर उतारू हैं.

    द्विज जी के गीत ने दीपावली की पूरी छटा को शब्दों में बहुत खूबसूरती से संयोजित कर लिया है. हर रंग, हर ख़ुशी सब कुछ तो है. वाह वा. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर गीत के लिए.

    दिगम्बर जी, आजकल ब्लॉग जगत में खलबली मचाये हुए हैं. बहुत खूब ग़ज़लें कह रहे हैं. खूबसूरत मिसरे गढ़ रहे हैं. ये ग़ज़ल तो बोनस है.

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  13. गीत पसन्द करने के लिए आपसब का बहुत बहुत आभार.
    नेट की समस्या के कारण मैं बहुत सक्रिय रूप से टिप्पणी नहीं दे सका.
    आप सब का हार्दिक आभार.

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