शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

अब तो दीपावली में लगभग एक माह रह गया है सो आइये दीपावली के तरही मुशायरे की तैयारियां प्रारंभ कर देते हैं । आज मिसरा-ए-तरह तय किया जाए ।

दीपावली, संधिकाल का दूसरा त्‍यौहार । संधिकाल का मतलब होता है जब दो ऋतुएं आपस में मिलती हैं । ये संधिकाल हमारे जीवन में भी आते हैं । जब दो अवस्‍थाएं आपस में मिलती हैं । संधिकाल का अपना ही महत्‍व होता है । मेरे विचार में हमारे देश में मौसम की दो अवस्‍थाएं होती हैं, गर्मी और ठंड । बारिश को मैं अवस्‍था नहीं मानता क्‍योंकि बारिश के दौरान भी गर्मी की ही अवस्‍था रहती है । तो ये दोनों अवस्‍थाएं दो बिंदुओं पर आकर मिलती हैं । पहला बिंदु होता है फाल्‍गुनी पूर्णिमा और दूसरा बिंदु होता है शरद पूर्णिमा । इन दोनों ही पूर्णिमाओं पर हमारे यहां मौसम सबसे सुखद होता है । न गर्मी होती है और न ठंड होती है । बीच का मौसम होता है । बीच के इस मौसम में न आपको गरम ऊनी कपड़े पहनने होते हैं और न पतले झीने कपड़े । पृथ्‍वी को पांच रेखाओं द्वारा आड़ा बांटा गया है । भूमध्‍य रेखा, कर्क रेखा, मकर रेखा, आर्कटिक रेखा और अंटार्कटिक रेखा । ठीक मध्‍य से निकलती है भूमध्‍य रेखा, जो केन्‍द्रीय रेखा है । उसके ऊपर अर्थात हमारे भारत ( सीहोर जिले के ऊपरी हिस्‍से से होकर ) निकली है कर्क रेखा । और भूमध्‍य रेखा से नीचे दूसरी रेखा होती है मकर रेखा । सूरज एक पूरे वर्ष में कर्क रेखा से भूमध्‍य रेखा और वहां से मकर रेखा पर  केन्द्रित होता है और फिर उसी रास्‍ते लौटता है। जून क्रांति ( 21-22 जून) के समय सूर्य कर्क रेखा अर्थात हमारे सिर पर 90 डिग्री से केन्द्रित होता है, फिर वहां से हटना शुरू होता है और सितम्‍बर क्रांति ( 22-23 सितम्‍बर)  के समय भूमध्‍य रेखा पर 90 डिग्री का कोण बना लेता है । तब ये हमसे न बहुत दूर होता है और न पास इसलिये हमारे यहां शरद का खुशनुमा मौसम होता है ये हमारी कर्क रेखा पर तब 66.5 डिग्री के कोण से गिरता है । फिर ये और दूर जाता है और दिसम्‍बर क्रांति ( 21-22 दिसम्‍बर) के समय ये हमसे दूरस्‍थ बिंदु मकर रेखा पर 90 डिग्री का कोण बना कर उसे जलाता है तपाता है । तब ये हमारी कर्क रेखा पर 43 डिग्री के कोण से गिरता है सो हम उसके ताप का सबसे कम हिस्‍सा प्राप्‍त करते हैं और हमारे यहां ठंड हो जाती है । फिर वहां से ये लौटना प्रारंभ करता है तो हम कहते हैं सूरज उत्‍तरायण हो गया है । फिर ये मार्च क्रांति (21-22 मार्च) के समय वापस भूमध्‍य रेखा पर 90 डिग्री से केन्द्रित होता है फिर हम पर 66.5 डिग्री का कोण बनाता है और हमारे यहां वसंत का खुशनुमा समय होता है । और फिर धीरे धीरे हमारे सर पर 90 डिग्री का कोण बनाता जाता है । पृथ्‍वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री का कोण बना कर झुकी है इसलिये जब सूर्य की तीन मुख्‍य स्थितियां हमें मिलती हैं । जब सूर्य कर्क रेखा अर्थात हमारे सिर पर 90 डिग्री का कोण बनाता है, फिर जब वो भूमध्‍य पर 90 डिग्री होता है तो हम पर 90 माइनस 23.5 अर्थात 66.5  डिग्री तिरछा होता है फिर जब वो मकर पर केन्‍द्रित होता है तो हम पर 90 माइनस 23.4 माइनस 23.5  अर्थात 43 डिग्री तिरछा होता है ।

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तो मार्च क्रांति के उसी समय में आती है होली और सितम्‍बर क्रांति के समय में आती है दीपावली । ये दोनों ही संधि पर्व हैं । जब सूरज भूमध्‍य रेखा पर साल में दो बार आता है तो फसलों को पकाता है और उल्‍लास छा जाता है । उसी उल्‍लास में मनाई जाती है होली और दीपावली । ये दोनों धार्मिक त्‍यौहार नहीं हैं, ये तो प्राकृतिक त्‍यौहार हैं । धार्मिक त्‍यौहार तो रामनवमी, जन्‍माष्‍टमी आदि हैं । जिनका संबंध धर्म से हो वो धार्मिक और जिनका प्रकृति से हो वो प्राकृतिक । प्रकृति के उपकारों के प्रति आभार व्‍यक्‍त करने के लिये हैं ये दोनों पर्व । तो आइये हम भी प्रकृति के उपकारों के प्रति उपकार व्‍यक्‍त करें । उपकार जो वर्षा के रूप में पिछले तीन माह से हमको मिल रहे हैं । वर्षा बीत रही है और दीपावली की आहट सुनाई देने लगी है । आइये हम भी तैयारी करते हैं दीपावली के मुशायरे की ।

बहरे खफ़ीफ़: इसके बारे में हमने पिछली बार चर्चा की थी कि ये मुरक्‍कब बहर है । जो कि दो भिन्‍न प्रकार के रुक्‍नों के मिलने से बनी है । दो भिन्‍न प्रकार के रुक्‍न फाएलातुन और मुस्‍तफएलुन के संयोग से । इस प्रकार से फाएलातुन-मुस्‍तफएलुन-फाएलातुन । ये बहरे खफ़ीफ़ की सालिम बहर है । मगर इस बहर का उर्दू में उपयोग नहीं होता ये अरबी फारसी में ही प्रयोग होती है । प्रचलन में बहरे खफ़ीफ़ की मुज़ाहिफ़ बहरें ही प्रयोग में लाई जाती हैं और खूब लाई जाती हैं । बहरे खफ़ीफ़ में काफी सारी स्‍वतंत्रताएं लिखने वाले को मिलती हैं इसलिये इसे काफी उपयोग किया जाता है । स्‍वतंत्रताएं ये कि इसका पहला और अंतिम रुक्‍न परिवर्तित किया जा सकता है । बहरे खफ़ीफ़ में ये सुविधा है कि आप पहले रुक्‍न फाएलातुन ( 2122) को अपनी सुविधा के अनुसार फएलातुन (1122 ) कर सकते हैं । और एक ही शेर के दो मिसरों में अलग अलग प्रयोग कर सकते हैं । जैसे गा़लिब साहब ने किया है ।

दिले नादां तुझे हुआ क्‍या है ( 1122-1212-22)

आखिर इस दर्द की दवा क्‍या है ( 2122-1212-22)

पहले रुक्‍न की ये स्‍वतंत्रता काफी काम आती है । इसके अलावा एक स्‍वतंत्रता आखिरी के रुक्‍न की भी स्‍वतंत्रता मिलती है । दरअसल में जो भी मुजाहिफ बहरें खफ़ीफ़ की हमारे यहां प्रचलित हैं उनमें अंतिम रुक्‍न में काफी स्‍वतंत्रता मिलती है । अंतिम रुक्‍न फएलुन (112), फालुन (22), फालान (221) या फाएलान (2121) कुछ भी हो सकता है । ये स्‍वतंत्रता काफी काम आती हैं । बहरे खफ़ीफ़ में मुसद्दस बहरें ही हैं अर्थात तीन रुक्‍न वाली बहरें ही हैं । उन तीन रुक्‍नों में से आपको दो रुक्‍न फ्लेक्‍सीबल मिल गये । अब केवल बीच के ही रुक्‍न को स्थिर रखना है । तो इसी कारण इस पर काफी काम होता है । दूसरा कारण ये भी है कि बहरे खफ़ीफ़ भी एक गाई जाने वाली ही बहर है । और गाये जाने के कारण मशायरों में काफी चलती है । सो ये दो कारण हैं इसकी लोकप्रियता के । जो भी लोकप्रिय मुज़ाहिफ़ बहरें इस बहर की हैं उनमें बीच का रुक्‍न सबमें मुफाएलुन (1212) ही है । दोनों तरफ के रुक्‍नों को अपने हिसाब से सजा कर अलग अलग बहरें हो जाती हैं । इसमें से भी चूंकि दूसरा रुक्‍न जो कि मूल रूप से मुस्‍तफएलुन था उसको ख़ब्‍न  करके मुफाएलुन किया गया है इसलिये ये मख़बून रुक्‍न हो गया । ख़ब्‍न  का मतलब ये कि जब पहली मात्रा दीर्घ 2 हो तो उसमें से एक लघु को कम करके उसे एक लघु बना देना और उसके कारण जो रुक्‍न बने वो चूंकि खब्‍न की पैदाइश है सो मख़बून रुक्‍न  । इसके अलावा फिर आपने अंतिम रुक्‍न जो जैसा लिया उस हिसाब से उसका नाम हो जाता है । फाएलातुन से फएलुन, फालुन, फालान, फाएलान ये चारों अलग अलग तरीके से पैदा होते हैं और उस हिसाब से इनका नाम होता है । और दो प्रकार के परिवर्तन से बनते हैं तो कई बार एक ही रुक्‍न के दो नाम भी होते हैं ।

तो ये तय हुआ कि बहरे खफ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून पर ही दीपावली का मुशायरा किया जायेगा । ये बहर हमारे मुशायरे में पहली बार उपयोग में लाई जा रही है शायद । तो इस पर ही इस बार ग़ज़ल कहना है । तो पहले मिसरा ए तरह, रदीफ तथा काफिया तय कर लिये जाएं । जैसा कि हमारी परंपरा है हम कोई पहले से कही गई ग़ज़ल का मिसरा नहीं लेकर अपना ही मिसरा बना कर उस पर तरही मुशायरा करते हैं सो इस बार कुछ कठिन सा मिसरा ( जो अब किसी सूरत बदला नहीं जाएगा ) ।

''दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू''

( 2122-1212-22) फाएलातुन-मुफाएलुन-फालुन

इसमें भी वही बात कि पहला रुक्‍न 2122 ( फाएलातुन ) के स्‍थान पर 1122 (फएलातुन) ले सकते हैं और अंत का रुक्‍न 22 के स्‍थान पर 112,  221 भी किया जा सकता है । रदीफ होगा ''हर सू'' ( सू का अर्थ दिशा ) और क़ाफिया होगा 'ए' अर्थात रहे, मिले, खिले, दिखे, जले, बहे आदि आदि आदि । ठीक है काफिये कम हैं लेकिन हमें एक ग़ज़ल में जितने काफिये चाहिये उतने मिल जाएंगें । कठिन हैं ये पता है । दीपावली के लिये मुसलसल ग़ज़ल नहीं कहनी है मगर एक दो शेर दीपावली पर हों और यदि आप मुसलसल लिख सकें तो उसको तो स्‍वागत है ही । 15 अक्‍टूबर तक ग़ज़लें प्राप्‍त हो जानी चाहिये । 16 अक्‍टूबर को इस बात की घोषणा कर दी जाएगी कि किस किस की ग़ज़ल मिल गई है और फिर उस सूची में शामिल रचनाकारों की ही ग़ज़ल तरही में शामिल रहेगी । मतलब पूरा एक माह है । मुक्‍तकों का भी स्‍वागत है यदि आपको लगता है कि आप इस मिसरे पर मुक्‍तक लिख सकते हैं तो ज़रूर लिखें ।

राबिया: कई लोगों ने राबिया के बारे में जानना चाहा है तो ये कि वो पुस्‍तक राधाकृष्‍ण प्रकाशन, 2 दरिया गंज, नई दिल्‍ली से 1980 में प्रकाशित हुई थी और उसके लेखक मुम्‍बई के श्री आनंद कुमार गुप्‍ता हैं । पुस्‍तक का कवर कुछ इस प्रकार है ।

rabiyaतो चलिये लिखना शुरू कीजिये दीपावली ग़ज़ल । और हां एक अनुरोध, फेस्टिव मूड की कोई तस्‍वीर आपकी हो तो उसे भी भेजिये उससे आनंद दुगना हो जाएगा । अच्‍छा तो हम..........। 

23 टिप्‍पणियां:

  1. बचपन में पढ़ा भूगोल एक बार फिर आँखों में घूम गया...वो न तब समझ में आया था और न अब...ये सूरज और पृथ्वी भी ना इतनी मुश्किल गणित के नियमानुसार क्यूँ चलते हैं? सीधे सीधे नहीं घूम सकते...हर समय कोण बनाये रखने की क्या जरूरत है...??? इन्हें कौन समझाए?

    इस बार तरही बहुत मुश्किल लग रही है और धमकी भरी भी...अभी से घुटने टेकने का मन हो रहा है...

    नीरज

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  2. और एक बात ये कि जल उठे में उठे के ए पर अं की बिंदी नहीं है वो प्‍लेन उठे ही है ।

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  3. @नीरज गोस्वामी जी, दर’असल जो सुबीर जी ने बताया है वह परिणाम है जो प्राप्त किया जाता है आइनस्टान की फील्ड समीकरणों को हल करके। ग्रहों इत्यादि के रास्तों की गणना आइनस्टाइन के सामान्य सापेक्षिकता के सिद्धांत द्वारा की जाती है। जिसके अनुसार द्रव्यमान के कारण दिशाएँ और समय वक्र हो जाते हैं, जैसे तनी हुई झिल्ली पर गेंद रख दीजिए। तो सबसे पहले सूरज के लिए एक बड़ी सी गेंद रखिए, फिर बाकी सारे ग्रहों के लिए एक एक गेंद रखते जाइए उनकी दूरी और आकार के हिसाब से, तो इस तरह से झिल्ली जैसे जैसे मुड़ेगी वैसे ही सूर्य और अन्य ग्रहों के कारण दिशाएँ और समय भी मुड़े हुए हैं और सारे ग्रह अपनी टेढ़ी मेढ़ी गर्तों में परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा ग्रह जब घूमते हैं तो दिशाओं को अपने साथ साथ घुमाने का प्रयास करते हैं जैसे तनी झिल्ली पर रखी गेंद घूमना शुरू कर दे। यदि सूर्य घूर्णन न कर रहा होता और सिर्फ पृथ्वी ही एक ग्रह होता और वह भी घूर्णन न कर रहा होता तो फिर उसकी कक्षा एकदम गोलाकार होती और समझने में सबसे आसान। मगर ऐसा है नहीं।

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  4. गुरुदेव प्रणाम,

    ''दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सूं ''
    ( जो अब किसी सूरत बदला नहीं जाएगा )

    अभी संशय में हूँ कि इस मिसरे को कठिन कि श्रेणी में रखूँ कि सरल कि श्रेणी में,,, क्योकि देखने में तो सरल लग रहा है मगर लिखते समय क्या हाल होगा, पता नहीं
    .... कोई बात नहीं, लिखेंगे और बढ़िया लिखेंगे

    आल इज वेल
    आल इज वेल :))))))))))

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  5. काश,,, भूगोल विषय को और ध्यान से पढ़ा होता तो आज पोस्ट के पहले भाग को पढ़ कर सर न खुजा रहा होता

    धर्मेन्द्र जी ने तो ऐसा कमेन्ट लिख दिया है कि सर के ऊपर से जा रहा है :)))))))))

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  6. सूर्य और पृथ्वी पर आज जो महत्वपूर्ण जानकारी है, इसी जानकारी के फलस्वरूप मेरी भूगोल में रूचि बढ़ी थी.
    पृथ्वी २३ डिग्री झुककर, थोडा कष्ट सहकर ही सभी पृथ्वी वासियों को मौसम का आनंद देता है. अन्यथा यहाँ इतने मौसम नहीं होते.
    शेष जल्द लौटता हूँ.... बहरे खफीफ आदि पर.

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  7. क्‍या पता कुछ कहें, न कह पायें
    गुनगुनाते हुए न रह जायें।
    सामने देख कर उसे लोगों
    होश ही ग़ुम कहीं न हो जायें।

    अब देखते हैं कोशिश का क्‍या परिणाम निकलता है।
    नीरज भाई को गंभीरता से न लें, इस उम्र में आदमी ऐसा ही हो जाता है (विनम्र)।

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  8. आदरनीय मान्यवर, वाह! मिसरा प्रेरित कर रहा है, मेरे जैसे कम इल्म को भी। वाह रंगीन होने वाली है दिवाली!

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  9. गुरू जी ! फेस्टिव मूड की तो कई फोटू धरी हैं हमारे पास...वो तो हम आप जब्बै कहें, तब्बै भेज दें लेकिन ये जो सूं है ना उस पर रदीफ ढूढ़ना मेरे लिये मुश्किल ही नाममुकिन है। तो एक अलग से मेरे लिये पोस्ट लगाईयेगा फेस्टिव मूड वाली कंचन...... इससे ज्यादा उम्मीद हमें खूद से है नही। :( :(

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  10. राह तके बैठे हैं,
    पूंछ रहे, कैसे हैं?

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  11. सुबह से सोच रहा हूँ मगर अब तक एक भी मिसरा नहीं निकला। वीनस भाई, मेरे विचार में इस बार भूगोल से इसीलिए शुरुआत की गई है कि पहले इसे समझो, अगर समझ गए तो मिसरे भी निकल आएँगे।

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  12. लीजिए फैसला हो गया

    मिसरा तो सरल निकला :)

    मुझे लग रहा है कि भूगोल इसलिए पढाया गया है कि, जब भूगोल कठिन लगेगा तो कठिन मिसरा अपने आप सरल लगने लगेगा :)

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  13. भूगोल ... आज तो सर भी घूम रहा है गोल गोल ... बड़ा ही कठिन विषय था इस समय भी जब पढते थे ... आज भी जब पढ़ा ...
    पर तरही की शुरुआत हो रही है ये जान कर आनंद आ गया ... एक बार फिर से नया कुछ जानने और सीखने को मिलेगा ...

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  14. गुरु जी,
    मिसरा अच्छा है. बह्र आसान लग रही है. काफियों की भी कमी तो नहीं होनी चाहिए. कोशिश करता हूँ.

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  15. प्रणाम पंकज जी,

    बढ़िया तरही मिसिरा है, बहुत दिन से कलम खामोश भी है..अब तैयारी करनी पड़ेगी..आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस बार और भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....धन्यवाद

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  16. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  17. प्रणाम गुरुवर,
    ख़फ़ीफ़ की जब भी बात करता हूँ, स्वर्गीय महावीर जी याद आ जाते हैं , न जाने क्यूँ...
    खैर ख़फ़ीफ़ हमेशा से शालीन बह'र लगी है मुझे.. हो सकता है इसके धुन के कारण या फिर अपने वज्न को लेकर..
    उम्मीद करता हूँ बहुत सारे लोग हिस्सा लेंगे इस दफा भी और पिछली बार की तरह ये तरही मुशायरा भी खूब उफान पे रहेगा ...
    अछा मिसरा है ..

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  18. गुरूजी में भी कोशिश करुगा इस बार के तहरी मुशायरे में भाग लेने की , अगर कुछ तकनिकी गलतिया हो तो माफ़ कीजियेगा, बहुत देर से इस कक्षा के बारे में पता चला है, कोशीश करुगा जल्द से जल्द सिख जाऊ , और १ सवाल है अपनी रचना यही पोस्ट करनी है या आपको मेल करनी है .

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  19. भौगोलिक व्याख्यान ने अलग ही टच दे दिया है इस पोस्ट को....

    एक और तरही .... उफ़्फ़....वोभी खफ़ीफ वाली ....हुण की होगा?

    वीनस की नयी ताजी ग़ज़ल की ज़मीन भी ऐसी ही तो है कुछ

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  20. ये पोस्ट तो जानकारियों का खज़ाना है, इसमें बहुत सारी बातें हैं. धीरे-धीरे ज़ेहन में उतार रहा हूँ. तरही का मिसरा, खफीफ बहर पे..........थोडा मुश्किल, थोडा आसान दिख रहा है, देखिये कैसी ग़ज़ल बनती है!. कई ग़ज़ल-धुरंधर तो ताल भी ठोक गए हैं.

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  21. Acha ha aaj misra note kiya. th ct mumbai pahunchkar samay par bhejne ki koshish zaroor karoongi. Is pathashala ka har paath uttam aur yadagaar rahta hai.
    ssneh
    Devi Nangrani

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  22. vaah mujhe to aaj arsh se pata chala is mushayare ka maine kafi der se apani mail chech nahin ki thi aaj kuch der ke liye ijajat mili to arsh ne bataya. dekhati hoon lekin lagata hai sab kuch bhool gayee hoon. ise samajhane ki koshish bhi kar rahi hoon lekin aaj kal dimag ne kaam karana band kar rakha hai. aapaki dua aur shubhakamana se shayad fir se kuch kar paoongi. dhanyavaad.

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  23. बहुत ख़ूब!

    विजयदशमी मुबारिक हो .
    आप दीपावली को शेरो-सुख़न की फुलझड़ियों से और भी ख़ूबसूरत बनाने जा रहे हैं..
    मैं भी कोशिश करूँगा आने की ..
    सादर
    द्विज

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