2007 से लेकर 2011 पूरे चार साल बीत गये । पता ही नहीं चला कि कैसे समय पंख लगा कर उड़ गया । बचपन में क़लम मित्र बनाने का बड़ा शौक था । लेकिन कभी कोई मित्र नहीं बना । और आज ये हाल है कि अब जो भी हैं वे क़लम मित्र ही हैं । हालांकि अब इसे मित्र न कह कर परिवार कहा जाये तो ज्यादा ठीक होगा । परिवार धीरे धीरे बढ़ता चला गया और लोग जुड़ते गये । ग़ज़ल के व्याकरण को सुलझाने का काम शुरू हुआ था और मित्रता के कई नये व्याकरण, परिभाषाएं गढ़ता चला गया । आज जब अपने ही शहर में श्री रमेश हठीला जी के जाने के बाद बहुत अकेला महसूस करता हूं तो यही मित्रता का वो परिवार है जो मुझे संबल देता है। हठीला जी के जाने के बाद मैं अपने शहर में ठीक से घूमने भी नहीं निकला हूं । पिछले चार साल में एक बात और जो मुझे मेहसूस हुई वो ये कि जाने क्यों कई सारे लोग मुझसे नाराज भी हैं । हालांकि यदि नाराज़ हैं तो ये भी तय है कि कहीं न कहीं कुछ न कुछ उनको बुरा लगा होगा या ठेस लगी होगी । मगर मैं अपने तई ये प्रयास करता हूं कि किसी को कुछ बुरा न लगे । खैर ये होता ही है, आप एक साथ कई सारे लोगों को खुश नहीं रख सकते ।
स्वर्गीय जे सी जोशी स्मृति शब्द साधक जनप्रिय सम्मान दो माह के इस अवकाश में काफी कुछ हुआ । कुछ खट्टा और कुछ मीठा, सब कुछ होता रहा । पाखी पत्रिका द्वारा स्वर्गीय जे सी जोशी स्मृति शब्द साधक जनप्रिय सम्मान उपन्यास ये वो सहर तो नहीं को देने की घोषणा की गई तो अच्छा लगा । अच्छा इसलिये कि सम्मान रचना को दिया गया, रचनाकार को नहीं । रचना को सम्मान मिलना वैसा ही होता है जैसे किसी पिता के सामने उसके बच्चों को सम्मान मिले । कार्यक्रम में बहुत अच्छा लगा । और अच्छा तब लगा जब आदरणीया मन्नू भंडारी जी ने मुझे बुलवाया और कहा कि पंकज तुम्हारा उपन्यास बहुत अच्छा लगा मैं फोन करना चाहती थी लेकिन तुम्हारा नंबर नहीं था । अपूर्व जोशी जी, प्रेम भारद्वाज जी ने जो स्नेह और मान दिया वो अविस्मरणीय है ।
पिछले दो माह में काफी सारे काम करने को थे । एक कहानी संग्रह तैयार करके पब्लिशर के पास भेजना था । कुछ साक्षात्कार, कुछ कहानियां और कुछ और ऐसे काम थे जो बहुत दिनों से लंबित चल रहे थे । सो बस उन पर काम करता रहा । इस बीच एक दो बार ब्लाग का ध्यान आया लेकिन फिर लगा कि अभी जो काम हाथ में हैं उन पर ही ध्यान दिया जाये । कई सारे वादे थे, कुछ लोगों से थे और कुछ अपने आप से थे । सो सब पूरे करने थे । सितम्बर आते आते उनमें से अधिकांश पूरे कर दिये । पूरे कर दिये लोगों से किये गये वादे, अभी अपने से किये गये वादे तो बाकी हैं ।
चलिये बातों के लिये तो बहुत समय है आइये कुछ काम की बातें करें । काम की बातें मतलब वे बातें जिनके लिये ये ब्लाग है ।
बहरे ख़फ़ीफ़- ये तो आप जानते ही हैं कि बहरों को दो प्रकारों में बांटा गया है । मुफ़रद और मुरक़्क़ब बहरें । मुरक़्क़ब बहरें वो होती हैं जो एक से अधिक प्रकार के रुक्नों के संयोग से बनती हैं । मतलब ये कि जिनकी सालिम में एक से अधिक प्रकार के रुक्न होते हैं । मगर इनमें भी सालिम बहर में वही 8 स्थाई रुक्न होते हैं जो हमने देखे हैं । मुफरद में आठवां रुक्न 'मफऊलातु' सालिम में नहीं आता मगर यहां पर उसका भी उपयोग होता है ( बहरे मुक्तजब में ) । मुरक़्क़ब बहरों के बारे में जल्द ही एक दो दिन में जानकारी ग़ज़ल का सफ़र पर उपलब्ध होगी । सो बाकी की बातें वहीं पर होंगीं । फिलहाल ये कि बहरे खफ़ीफ़ जो है वो दो प्रकार के रुक्नों से बनी है रमल के सालिम और रजज के सालिम से । आस पास रमल बीच में रजज । फाएलातुन-मुस्तफएलुन-फाएलातुन । इसके सालिम में तीन ही रुक्न हैं मुसद्दस है । इसका सालिम रूप उर्दू शायरी में प्रयोग नहीं किया जाता है । इसकी मुजाहिफ बहरों पर ही शाइरी उर्दू में की जाती है और खूब की जाती है । बाकी की बातें एक दो दिन में ग़ज़ल का सफ़र पर । फिलहाल तो ये कि आप ये सोचें कि आज इस बहर की बात क्यों की जा रही है ।
बहरे खफ़ीफ़- सालिम फाएलातुन-मुस्तफएलुन-फाएलातुन
बात राबिया की- राबिया के बारे में क्या कहूं । हालांकि बुलाया तो किसी और को था लेकिन राबिया भी साथ आ गई । जिसे बुलाया वो तो पीछे रह गया लेकिन राबिया सिर पर चढ़ कर बैठ गई । उफ़ कितना कुछ है अभी जानने को । तीन चार दिनों तक राबिया वहीं सिर पर चढ़ी रही । और अब जब उतर गई है तो दिमाग़ के अंदर घुस गई है । अरे अरे........ क्या सोचने लगे आप लोग, दरअसल में राबिया एक उपन्यास है । एक दुर्लभ उपन्यास जो कि नीरज गोस्वामी जी द्वारा पढ़कर सकुशल वापसी की शर्त पर भेजा गया था । मैंने उनसे एक किताब को पढ़ने की मांग की थी । उन्होंने उस किताब के साथ राबिया को भी भेज दिया । सो पहले राबिया को ही पढ़ लिया । उफ क्या उपन्यास है । क्या पात्र हैं । विशेषकर हिम्मत बाई और हजरत ईसा का पात्र । हांटिंग पात्र, रोंगटे खड़े कर देने वाले पात्र । कैसे गढ़े जाते थे ये पात्र । दो बार पढ़ चुका हूं और नीरज जी को लौटाने के पहले उसकी पूरी फोटोकॉपी करवाई जायेगी । जैसा कि कहा कि उपन्यास दुर्लभ है और आजकल मिलता नहीं है । हिम्मत बी के डॉयलाग, उफ काट काट जाने वाले डॉयलाग । उपन्यास को लेकर बहुत कुछ लिखना है लेकिन विस्तार से । और हां जल्द ही मैं नीरज जी को उपन्यास लौटा दूंगा, आप अपनी बुकिंग करवा लें । ''ये पुस्तक न देखी तो हसरत रहेगी, जुबां पे हमेशा शिकायत रहेगी''।
एक शेर: ये शेर वीनस का है, मुझे इस शेर की बेसाख़्तगी बहुत पसंद आई । बड़ी ही सादगी से बात कही गई है । बहुत मासूम शेर है । आप भी आनंद लीजिये ।
काश वो ख़्वाब में मिलें मुझसे
उनसे पूछूं, अरे ! यहाँ कैसे ?
और अंत में एक गीत जो पिछले दिनों मन को बहुत शांति देता रहा और लड़ने का, कुछ नया लिखने का रचने का हौसला भी देता रहा । हर बार जब लगा कि अब क्या लिखें तो इस गीत ने मन को कहा जो अच्छा लगे वो लिखो । एक संदेश कि सुख और दुख मन की स्थितियां हैं । जीवन में हर मौसम अपने समय पर आता है और जाता है । बहारें भी उसी प्रकार आती जाती हैं । गीत बहुत साधारण है लेकिन संदेश बड़ा देता है ।
अच्छा हुआ आपने हमें अपने परिवार वाला खुद ही बता दिया, वरना मेरी तरह और भी कई सारे परिवारी जन क्षुब्ध हो सकते थे।
जवाब देंहटाएंएक ही पोस्ट में कई सारी बातें बतिया देना आप की ख़ूबी है।
'ग़ज़ल का सफ़र' पर अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा। कल फेसबुक की लिंक से दैनिक जागरण द्वारा प्रकाशित आप की कहानी 'खिड़की' का लिंक देखा, इसे ज़ूम कर के पढ़ना बाकी है।
कई दिनों बाद आये इस पोस्ट के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंगज़ल के सफर के पोस्ट का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.
ब्लॉग जगत में आपकी वापसी सुखद लगी...आप आते रहा करें...अच्छा लगता है....सीखने को मिलता है...आपसे जो नाराज़ है उनके बारे में विचार करना बंद करें क्यूँ की आपके प्रशंषकों की संख्या आपसे नाराज़ रहने वालों की अपेक्षा बहुत अधिक है..
जवाब देंहटाएं"राबिया" पर आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर बहुत अच्छा लगा...सन अस्सी में पढ़ा ये उपन्यास अभी तक ज़ेहन से उतरा नहीं...हाल ही में जयपुर गया था वहाँ इसे अपनी अलमारी से निकाल कर फिर से पढ़ा...बरसों बाद पढने पर ये और भी अच्छा लगा..."राबिया" जैसा चरित्र चित्रण दुर्लभ है....आप उस उपन्यास को जब तक चाहें अपने पास रखें...मुझे भेजने में जल्दी न दिखाएँ...
वीनस को इतने खूबसूरत शेर के लिए बधाई...बहुत होनहार बालक है...
नीरज
प्रणाम गुरु देव,
जवाब देंहटाएंआपकी रचनाओं के सम्मान की फेहरिश्त यूँ ही बढती रहे.........आमीन
आपके नए कहानी संग्रह का इंतज़ार है.
इस बहर पे बात करने का कारण शायद ये हो कि .......अगली तरही की बहर कहीं ये तो नहीं!
"राबिया"........पढना पड़ेगा.
वीनस का ये शेर लाजवाब है, इसमें अंदाज़-ए-बयां बहुत खूबसूरत है. इसके लिए तो उसे पहले ही ढेरों मुबारकबाद दे चुका हूँ, मगर शेर कहता है जितनी भी तारीफ करो कम ही है लेकिन आखिर ये लिखा किसके लिए गया है? और किसके तसुव्वर में लिखा है? ये बात भी जानना रोचक होगा.
दो महीने बाद दुबारा आपके ब्लॉग को पढ़ना बहुत ही अच्छा लगा ... अगला उपन्यास तैयार है ये जान कर तो और भी मजा आया ...जल्दी ही कुछ अलग हट के पढ़ने को मिलने वाला है ... वीनस जी आपके शिष्य हैं तो गुरु का असर तो रहने वाला ही है शेरों में ...
जवाब देंहटाएंराबिया की आपने अगर तारीफ़ की है तो कुछ खास ही होगी वो किताब ... पढनी पढेगी ... देखें कब किस्मत में पढ़ना लिखा है ...
एक नयी बहर के बारे में पढ़ने को मिलेगा जान कर बहुत खुशी हो रही है ... इसी बहाने कुछ नया सीक लेते अहिं हम भी ... पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा और तरही का भी ... लगता है बहर की जानकारी के साथ तरही की शुरुआत भी होने वाली है जिसका बेसब्री से इन्तेज़ार है ...
बहुत जलन हो रही है मुझे वीनस भाई से, सुबीर जी ने स्वयं उनका शे’र कोट किया। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है। वैसे शे’र भी कमाल का है। इस समारोह के दौरान मेरी मुलाकात सुबीर जी से हुई दिल्ली में। सादगी ने शायद कलियुग में सुबीर जी के रूप में अवतार लिया है। इस पुरस्कार के लिए उन्हें एक बार फिर बधाई।
जवाब देंहटाएंसब कुछ पढ़ना अच्छा लगा, गीत सुन रही हूँ, लेकिन वो जो बोल फिल्म का गीत था ना, वो और भी अच्छा था.....हेलो ट्यून बनाने को ढूढ़ रही हूँ, मिल नही रहा है।
जवाब देंहटाएंऔर आप से कोई नाराज़ ??? हमें तो लग रहा था कि आप नाराज़ हैं हमसे।
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जवाब देंहटाएंऔर हाँ वीनस का शेर माशा अल्लाह.... एक ऐसा ही शेर और है मुझे कुछ कुछ याद आ रहा है
जवाब देंहटाएंइश्क़ है तो क्या हुआ
सोने ना दोगे चैन से ??
किसका शेर है ये गुरु जी
aapke dwara likhi kahani "khidki" ka link aaya , padha use. bahut bahut aabhar aise hi hamen link post karte rahen subeer ji. bahut khuchh sikhne ko milta hai ...
जवाब देंहटाएंधर्मेंद्र जी आपकी शिकायत दूर कर दी है । कंचन ये शेर नहीं है मिसरा है जो मैंने तुमको और गौतम को दिया था सिद्धार्थ नगर से लौटते समय कि इस पर ग़ज़ल कहो । ये मिसरा काफी समय से मुझे परेशान कर रहा है, जाने कब दिमाग में आया था और डायरी में अटका लिया था । ग़ज़ल तो लिखी नहीं अब मिसरे को शेर कह के नाक अलग कटवा रही हो ।
जवाब देंहटाएं:( :( :(
जवाब देंहटाएंजी सर, ये हुई न बात ख़ास. राबिया के संग बहर भी है.
जवाब देंहटाएंवीनस तो छा गए फिर से.
गुरुदेव प्रणाम,,
जवाब देंहटाएंअगली तरही खफीफ पर होगी ... हुर्रे
सभी फोटो देख कर बहुत अच्छा लगा
ग़ज़ल का सफ़र पर नई पोस्ट आने वाली है पढ़ कर ही रोमांचित हूँ
कल आपकी मेल पाने के बाद से उड़ रहा हूँ
आज ये पोस्ट पढ़ने के पहले अंकित भाई की मेल मिली, फिर पोस्ट पढ़ी तो मेल का कारण समझ में आया
एक नई उड़ान ....:)
एक गाना मुझे भी याद आ रहा है >>>
आज फिर जीने कि तमन्ना है.... ओ ओ ओ ओ ओ $$$$$
उपन्यास तो आप का लाजवाब है। उसे अभी और पुरस्कार मिलने शेष हैं।
जवाब देंहटाएंआजकल व्यक्त कर नहीं पाता
जवाब देंहटाएंयूँ न समझें कि मैं नहीं आता।
वापसी सुखद लगी
जवाब देंहटाएंकुछ लेकर आये ही।
जवाब देंहटाएंपुनरपि स्वागतम्,
जवाब देंहटाएंसंयुक्ताक्षर में समस्या आ रही है।
कंचन ने मिसरे को शेर कहने की गलती की और हम जैसे अनाड़ी शिष्य हिम्मत करके कक्षा में दाख़िल हो गए..चाहे एक कोने में बैठे तारीफ़ की नज़र से फ़क़त निहारेंगे...:)
जवाब देंहटाएंआपके बहुत बधाई पुरस्कार पाने की । गज़ल का सफर पढना है अभी मुझे तो इससे पहले के आलेख भी अच्छे से पढने हैं । शेर वाकई मासूम है ।
जवाब देंहटाएंइश्क़ है तो क्या हुआ सोने ना दोगे चैन से ??
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ इस मिसरे पर तो मेरे शेर कुर्बान (थोक के भाव)
बड़े दिनों बाद एक पोस्ट| हाय रे..... जमीन तैयार हो रही है एक तरही के लिए|
जवाब देंहटाएंराबिया के लेखक और प्रकाशन की भी चर्चा हो जाती तो हम ढूंढ लेते किताब|
व
वीनसबा का शेर तो माशाल्लाह ...
और गुरूदेव कंचन द्वारा कोटेड मिसरा वैशाली के उस फर्स्ट क्लास कूपे की याद आ गई|
भाई कई परिवारजन ऐसे भी हैं जो फ़ोन पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर लेते हैं | संयुक्त परिवार के ये मसले तो चलते रहेगें | ब्लाग खिल उठा बधाई |
जवाब देंहटाएंएक लम्बे वक़्त के बाद ये ब्लोग मे जैसे रौनक सी छा गई है .... बहुत अछा लग रहा है... राबिया के बारे मे कल पता करने पर पता चला कि ये बहुत ही पूरानी किताब है ... इंतज़ार मैं बी करूंगा अगर उसके प्रकाशक का पता चल जाए तो... वीनस का यह शे'र वाकई बहुत अछा बना है ... वो फर्स्ट क्लास ह्म्म्म याद आया ....
जवाब देंहटाएंइंतज़ार करूंगा इस बह'र के बारे मे और विस्तार से ..
बेशक पिछला सब कुछ भूल गयी हूँ लेकिन अगली पोस्ट के सफर का इन्तजार फिर भी है साथ ही पिछला याद करूँगी मेरा सरर जहां से छूटा था उसे शुरू करती हूँ1 परिवार मे रहना है तो भाई का कहा याद तो रखना ही पडेगा1 शुभकामनायें1
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