सोमवार, 7 मार्च 2011

सौती मुशायरे को लेकर या यूं कहें कि होली के मुशायरे को लेकर काफी विचार विमर्श हुआ । और मुझे ऐसा लगता है कि काफी ज्ञानवर्द्धक रहा ये पूरा सत्र । और आज भभ्‍भड़ कवि के द्वारा प्रस्‍तुत कई सारे मिसरा-ए-तरह ।

होली का मुशायरा एक ऐसा अवसर होता है जिसको लेकर मैं काफी दिनों पहले से ही रोमांचित होता रहता हूं । होली मेंरा सबसे पसंदीदा त्‍यौहार जो ठहरा । होली को लेकर मेरे मन में एक विशेष उमंग होती है । उसके पीछे कारण बचपन की काफी सारी यादों का है । वे यादे जो किसी खास जगह और किसी खास के साथ जुड़ी हैं । खैर इस बार तो होली का ये मुशायरा काफी सारी चर्चाओं को लेकर आया है । सौती मुशायरे को लेकर कहीं से कुछ भी बहुत साफ जानकारी नहीं मिल पा रही है । दो तरह के विचार सामने आ  रहे हैं । पहले तरह के विचारों में अश्‍क साहब के लेख का समर्थन हो रहा है तो दूसरे तरह के विचार वही हैं जो श्री धीर ने कमेंट में व्‍यक्‍त किये हैं । दरअसल में सौती शब्‍द से ही मायने निकाले जा रहे हैं क्‍योंकि उसके अलावा प्रमाणिक रूप से कहीं कुछ नहीं मिल रहा है । सौत ( ध्‍वनि) सौती ( ध्‍वनि संबंधी) जैसे शब्‍दों से ही अनुमान निकाले जा सकते हैं । कहीं न कहीं कोई ऐसी कड़ी है जो छूट रही है । खैर उसकी तलाश जब तक नहीं होती है तब तक हम सौती का आयोजन लंबित करते हैं तथा फिलहाल होली पर मज़ाहिया मुशायरे से ही काम चलाते हैं ।

बहरे वाफर -  जब मैंने इस पर काम करना शुरू किया तो पहले तो लगा कि बहुत मुश्किल होगी ये बहर तभी तो इस पर काम नहीं हुआ है । लेकिन जब कुछ काम किया तो लगा कि उतनी मुश्किल नहीं है जितना समझा जा रहा था । जो बीच में दो स्‍वतंत्र लघु आने हैं वे अतने मुश्किल नहीं हैं जितने कामिल में थे । क्‍योंकि कामिल में वो रुक्‍न के शुरू में ही आ रहे थे । यहां पर बीच में आ रहे हैं इसलिये आपको ये स्‍वतंत्रता है कि आप एक शब्‍द जो कि लघु पर समाप्‍त हो रहा है के बाद दूसरा शब्‍द जो लघु से शुरू हो रहा है  को लेकर रुक्‍न बना सकते हैं । कहीं कुछ रवानगी की कमी इस बहर में मुझे लग रही है । शायद यही कारण है कि इस पर काम कम हुआ है । लेकिन रवानगी की कमी के पीछे एक कारण ये भी हो सकता है कि हमको अभी तक बहरे हजज पर गाने की आदत है तथा ये बहर उस प्रकार प्रवाह में नहीं है , हालांकि उसकी जुड़वां बहर है फिर भी । बीच में जहां पर दो लघु आते हैं वहां पर रवानगी में कुछ हल्‍की सी कमी दिखाई देती है । हो सकता है ये कमी अरबी में नहीं आती हो और इसीलिये इस पर वहीं ज्‍यादा काम हुआ हो । खैर ।

मिसरा-ए-तरह  तो बात हो रही है मिसरा-ए-तरह की । क्‍या लिया जाये मिसरा ये काफी दिनों से चर्चा चल रही है । मुझे भी लगा कि कुछ ऐसा हो जो कि होली की बात कहता हो, कहीं कुछ हल्‍का सा हास्‍य का पुट हो और बाकी जैसा होता है ग़ज़ल का मिसरा वैसा तो हो ही सही । होली शब्‍द हमारी बहर में कैसे भी उपयोग नहीं हो सकता है क्‍योंकि होली में न तो हो  गिर कर लघु हो सकता है और ना ही ली  । तथा बहर में कहीं भी दो दीर्घ एक साथ नहीं आ रहे हैं जो होली कि मात्रिक मांग को पूरा कर सकें । यही हालत फागुन की भी है क्‍योंकि उसमें भी दो दीर्घ हैं । मगर फिर भी हम रंग  जैसे शब्‍दों का तो उपयोग कर ही सकते हैं । 

भभ्‍भड़ कवि भौंचक्‍के द्वारा प्रस्‍तु कुछ मिसरा-ए-तरह 

उठा के नज़र, मिला के नज़र, कभी तो हमें, शराब पिला
कुटे भी बहुत, पिटे भी बहुत, ठुके भी बहुत, गली में तेरी
सनम की गली, में रंग लिये, हैं हम भी खड़े, उमंग लिये
ये खूने जिगर, लगे जो अगर, तो गाल तिरे, गुलाब लगें   
ये रंग मिरा, लगे जो अगर, तो गाल तिरे, गुलाब लगें
दिमाग़ मेरा, बना के दही, सनम ने कहा, लो हम तो चले
भटक के मिला, वो मिल के जुला, जुला तो खिला, खिला तो फटा
चढ़ा जो नशा, तो दिल ने कहा, जिगर को जला, नज़र से पिला
भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र
तू है कि नहीं, पता तो चले, कहीं से मुझे, झलक तो दिखा
न छत पे सनम, यूं बाल सुखा, न रूठे कहीं, सलोनी घटा
ये हंस के कहा, सनम ने मिरे, मुझे न सता, तू भाड़ में जा
कमर पे है तिल, है तिल में लचक, लचक में कसक, कसक में मसक
दही में बड़ा, बड़े में दही, दही है बड़ा, बड़ा है दही
चली है हवा, उठी है घटा, मिलन के लिये, सुहानी फ़ज़ा
बदल के नज़र, कहे है सनम, तू कौन भला, बता तो ज़रा
झटक भी दिया, झिड़क भी दिया, कभी तो हमें, गले भी लगा
उड़ो न सनम, हवाओं में यूं, ख़ुदा के लिये, ज़मीं पे चलो
लगा के नमक, मसल के ज़रा, तू दिल का मेरे, अचार बना
इंधेरी बहुत, है रात घुपक, जुलफ को हटा, मुखड़वा दिखा
जिगर का मेरे, तू भुरता बना, बना के उसे, अदू को खिला
न रंग लगा, न अंग लगा, अदू को मेरे, गधे पे बिठा 
ये सारे मिसरे हैं जिनमें से जनमत संग्रह के द्वारा परसों शाम अर्थात बुधवार शाम तक मिसरा तय करना है ताकि काम शुरू हो सके । जनमत का अर्थ टिप्‍पणियों में अपने मिसरे को पसंद करें और उसके पक्ष में वोट करें । एक व्‍यक्ति एक ही मिसरा पसंद करे । एक से ज्‍यादा नहीं करें । क्‍योंकि उस स्थिति में और दुश्‍वारियां हो जाएंगीं । दो दिन का समय है अत: दो दिन में आप लोग मिसरा ए तरह तय कर लें क्‍योंकि उसके बाद फिर तरही मुशायरे पर काम शुरू होना है ।
nusrat mehdi
और हां एक और जनमत संग्रह में वे सभी जो साथ देना चाहें वे दें, आदरणीया नुसरत मेहदी दीदी को प्रदेश के प्रमुख समाचार पत्र नईदुनिया ने नायिका अवार्ड 2011 के लिये नामांकित किया है यदि आप भी उनको वोट देना चाहें तो SMS में NVB26 टाइप करके 53434 पर भेज दें अंतिम तिथि 11 मार्च है ।
 

34 टिप्‍पणियां:

  1. दही में बड़ा बड़े में दही,दही है बड़ा बड़ा है दही

    ये मिसरा अपने आपमें पूरी ग़ज़ल है और सौती के पैमाने पे फिट बैठ रही है...क्यूँ की इस मिसरे का कोई अर्थ नहीं है और होली पर अर्थ हीन बातों में से अर्थ निकाला जाता है...मैं पिछले दस दिनों से जयपुर था और सोच रहा था के इस बार होली पे क्या गुल खिलने वाला है...आज वापस आया तो देखा तो गुल क्या अभी तो कलि ही नहीं खिली है...इस बार होली पर अहमदाबाद जा रहा हूँ...इक्षु के संग होली खेलने...इसलिए अबकी बार मुशायरे का सिर्फ मजा लूटूँगा दूर से...शिरकत नहीं करूँगा...सच्ची...

    नीरज

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  2. दही में बड़ा बड़े में दही,दही है बड़ा बड़ा है दही


    हम भी नीरज जी के साथ हैं ... आखिरकार दही तो होनी ही है दिमाग की ... तो क्यों न हो जाए ....

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  3. गुरु जी जय हिंद

    "भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र"

    यही मुझे सबसे आसान लगा|

    वीनस भाई ...अभी से भगवान???

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  4. # सबसे पहले तो इस पोस्ट को एक सौ एक आदाब अर्ज ! अभी काफी देर से कार्यालय में गंभीर मुद्रा में था, अचानक चेहरे पे मुस्कान खिल उठी.

    # दूजे, मैंने आज ही सुबह इस बहार पर कलम चालान की थोड़ी सी कोशिश की तो पाया ये बहरे कामिल की तरह ही है. थोडा सा आसान थोडा सा मुश्किल. मतलब मुझे पसंद आया. बहुत लिखा जा सकता है सिर्फ वक़्त खर्चने की जरुरत है. और मेरी स्थिति ये है की बहुत मुश्किल से ब्लॉग पढने और टिपण्णी करने का वक़्त निकाल पाटा हूँ. असल में इस साल मेरे बहुत से लक्ष्य हैं, फिलहाल मेहनत उधर है.

    # चूँकि होली मुझे बहुत प्रिय है, विशेष कर होली के अवसर पर पारंपरिक, गीत संगीत, फकरा, मजाहिया शेरो शायरी, रंग, भंग, तरंग इत्यादि इत्यादि... तो मैं तो जैसे तैसे मुशायरे में घुस ही जाऊँगा.

    # मिसरा-ए-तरह : भभ्भर कवि ने हमें निहाल कर दिया, एक पर एक लाइन.. क्या कहें, कसम से आज होली वाला मजा आ गया.

    -
    चूँकि जनमत संग्रह है - एक ही वोट देना है - तो - तो - तो - इसे दिया -

    लगा के नमक, मसल के ज़रा, तू दिल का मेरे, अचार बना

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  5. ...और हाँ आदरणीया नुसरत दीदी को मुबारकबाद. अभी वोट करता हूँ.

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  6. जो भी मुशायरे को दूर से बैठ कर सुनने की हिमाकत करेगा उसे ससम्‍मान उसी वाहन की सवारी करनी होगी जिसका जिक्र आखिरी मिसरे में आया है । इसलिये दूर से मुशायरा सुनने की घोषणा करने वालों का सावधान किया जाता है ।

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  7. Hum to pass se sunenge, bas 45 km door se. so hume sawari maaf. Neeraj Bhai Apni Dekhen.

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  8. धन्यवाद क्विलपॅड वरना आज लग रहा था के टिप्पणी रोमन में ही जाएगी! अपना वोट तो बहुमत के साथ रहेगा! बाकी देखते हें क्या होता है!
    मिसरों की इस बारात में कोई तो सेलेक्ट होगा, उसीको पटाएँगे!

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  9. "बदल के नज़र , कहे है सनम, तू कौन भाल, बता तो ज़रा"
    तरही मिसरे के लिए मुझे यह उचित लगा है.

    Regaards.
    -- mansoorali hashmi
    http://aatm-manthan.com

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  10. ये रंग मिरा लगे जो अगर तो गाल तिरे गुलाब लगे।
    इस पंक्ति में "रंग" पहले से विद्यमान है और अगर गुलाब को काफ़िया तथा लगे को रदीफ़ मुकम्मल करें तो शायद गज़ल ल्खने में सबको सहुलियत होगी।

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  11. सोच रहा हूं किस तरह से आपने एक झटके में इतने सारे मिस्रे बुन लिये....

    जहाँ तक वोट की बात है तो मेरी मंशा तो आपको फोन पर बता ही चुका हूँ कि इन सारे मिस्रों का सम्मान करते हुये हर शायर को एक-एक मिस्रा सौंप दिया जाये...मजा आ जायेगा, इतनी सारी ग़ज़लें मिलेंगी।

    फिर भी एक को चुनना हो तो मैं राणा की पसंद के साथ जाऊंगा कि उसपे लिखना सबसे आसान होगा। तो मेरा वोट "भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र" को...

    gurukul, you bette vote for this misra else watch out!

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  12. गुरु जी प्रणाम,

    मेरा वोट

    "भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र,सटकती नज़र"

    को...

    सबसे सरल सबसे बढ़िया :)

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  13. मेरे लिये तो आपकी आग्या ही सिर माथे पर\ अभी तक ये समझ नही आता कि आसान कौन सा है और मुश्किल कौन सा बस जिस पर चुनौती मिलती है उस पर ही चल पडती हूँ अंजाम कुछ भी हो। नुसरत जी को वोट भेजती हूँ उन्हें अग्रिम बधाई। शुभकामनायें।

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  14. कुटे भी बहुत, पिटे भी बहुत, ठुके भी बहुत, गली में तेरी.

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  15. अपना दिल तो शराब पिला, उमंग लिये, गुलाब लगें, अचार बना पर समाप्‍त होने वाले मिसरों पर आ रहा है, रदीफ़ और काफि़या में मात्रा गिराने से बचे रहें तो एक अच्‍छी चुनौती रहेगी।

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  16. वाफिर बह्र में न जाने क्‍यों ये लग रहा है कि ओम प्रकाश 'आदित्‍य' जी और सोम ठाकुर जी के पढ़ने का अंदाज़ यही होता था।
    अगर कोई मित्र होली संबंधी ब्रज भाषा के शब्‍द दे सके तो एक अच्‍छी संभावना दिख रही है इस बह्र में फिट होने की।

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  17. प्रणाम गुरु जी,
    ये मिसरा तो मुझे पहली नज़र में भा गया था फिर चाहे गौतम भैय्या को पसंद आता या ना आता, मैं तो बगावत कर देता, मगर अच्छी बात है कि उन्हें भी पसंद आ गया. इस मिसरे में भिन्न भिन्न प्रकार की नज़रों के बारे में जब ज़िक्र होगा तो मज़ा आ जायेगा.............अहा.
    मेरा वोट है,
    "भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र" को.

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  18. कुछ मिसरे को छोड़ कर चलने को जी नहीं चाहता. होरी का मौका है तो थोडा ढील दे दिया जाय.

    जैसे समान अंतरा/रदीफ़ वाले दो-तीन मिसरे में से जिसे जो पसंद आए उस पर ग़ज़ल भेजने की व्यवस्था, क्या उचित रहेगा...? इससे जायका संग वेरायटी बढ़ जायेगी. ये मेरे विचार मात्र हैं.

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  19. मेरा भी वोट राणा जी के मिसरे को ही है देखें जरा नजरें क्या क्या गुल खिलाती हैं।
    "भटकती नजर, अटकती नजर, खटकती नजर, सटकती नजर"

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  20. गौतम जी,

    यह तो कोई बात नही हुई कि हैं तो ये नही तो ये......

    खैर बात अच्छी है और मैं भी बिना किसी जाति/बात के गौतम जी के साथ हूँ.....

    भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र, सटकती नज़र

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  21. अरे रे रे रे.........

    बात तो पूरी हुई ही नही.......

    हम तो सिर्फ पढ़ेंगे और सुनेंगे.....

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  22. आदरणीया नुसरत मेंहदी जी को बहुत बहुत शुभ कामनाएँ|

    राणा की चोइस में वेरायटी ज़्यादा आने की संभावना हैं|

    बाद बाकी जो फाइनल होगा, क़ुबूल होगा|

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  23. @ अनुवादक बहना से निवेदन है गौतम भैया के इस कथन का हिंदी अनुवाद क्या है बताने का कष्ट करें


    gurukul, you bette vote for this misra else watch out!

    इसका कोई दूर का सम्बन्ध इस मिसरे से तो नहीं है ?

    "भटकती नज़र, अटकती नज़र, खटकती नज़र,सटकती नज़र" ;)

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  24. वैसे सारे मिसरे ला जवाब है पर वोट -
    दिमाग मेरा बना के दही,सनम ने कहा लो हम तो चले.

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  25. @गौतम भाई-सारी ..!आपकी टिप्पणी की लास्ट लाइन टिप्पणी के बाद पढ़ी...वोट पहले दे दिया..हा!हा! -:)

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  26. हम्म्म..! ये तो गौतम भईया का ही स्टाईल है कि उन्हे जब कोई बात अनसुनी करनी होती है, तो वो बात उन्हे समझ में आनी ही बंद हो जाती है। लेकिन कार्यान्वयन के बाद बात समझ में आनी क्यों बंद हो गई, ये नही समझ में आया वीनस :)

    फिलहाल..! सवारी चाहे जो भी मिले, हम तो मुशायरा, दूर से ही देखेंगे। दिमाग की जगह वैसे भी कुछ मिसफिट है, उसे भी गँवाना......!!:( :(

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  27. @

    वो इसलिए की ये मिसरा मैंने किसी के दबाव में नहीं चुना है ;)

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  28. चलिए भटकती नज़र के साथ मैं भी इस सौती में शामिल हो जाता हूँ , जब गुरुकुल की बात है तो फिर क्या कहने ...

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  29. इस बार तरही के लिए कुछ लिख पाना मुश्किल ही नहीं असंभव लग रहा है....

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  30. हाँ जी

    मिसरा तो मिल गया

    अब ये सोचना है की इसे लिखा कैसे जाये

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  31. और वो भी परसों १७ मार्च के पहले :(

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  32. हम तो सवारी कर रहे हैं...क्यूँ के इस प्राणी विशेष, जिसका जिक्र आपने अंतिम मिसरे में किया है, कि सवारी करना ग़ज़ल लिखने से आसान है...कोई रोक सके तो रोक ले...इसके मुंह के आगे गाज़र लटका दी है...भाई मेरा बिना रुके चला जा रहा है...तरही मुशायरे की सबको अग्रिम शुभकामनाएं.

    नीरज

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