तरही मुशायरा अपने क्रम से चल रहा था कि उसके बीच में ही शिवना प्रकाशन के आधार स्तंभ और बहुत अच्छे साहित्यकार समीक्षक श्री रमेश हठीला हाथ छोड़ कर चले गये । कई बार ऐसा होता है कि आपको किसी घटना के होने का भय होता है लेकिन मन कहता है कि सब ठीक हो जायेगा कुछ नहीं होगा । किन्तु फिर समय अपनी चाल चल जाता है । श्री रमेश हठीला जी जैसे जिंदादिल आदमी के नाम के आगे स्वर्गीय लगाने की हिम्मत नहीं होती है । अलमस्त और फक्कड़ तबीयत का वो आदमी मानो मौत की हंसी उड़ाने के लिये जिंदा था । जन्म से शरीर में एक किडनी थी । लगभग सात ( जी हां सात ) बार हार्ट अटैक आ चुका था अब तक । तीन बार दिल की शल्य क्रिया हो चुकी थी । शुगर का लेबल मजाल है जो कभी तीन सौ से नीचे गिर जाये । दिन भर सिगरेट फूंकते रहना । एक बार किसी ने कोशिश करके मध्यप्रदेश सरकार से इलाज का एक लाख रुपया स्वीकृत करवा दिया, जैसे ही चैक मिला उसे सधन्यवाद जिला कलेक्टर को वापस कर आये, कि ये मेरी तरफ से लौटा देना मुख्यमंत्री को, किसी गरीब के काम आ जायेगा । रोज एक कुंडली ( विशेष प्रकार की कविता ) लिखते और रोज वो समाचार पत्र में छपती । कभी ठलुवा कवि के नाम से ठलुवाई स्तंभ में, कभी चुरकट कवि के नाम से चुरकटाई स्तंभ में तो कभी बिच्छु कवि के नाम से तो कभी सर्किट कवि के नाम से । खैर जैसा कि वे ही कहते थे कि किसी के जाने पर कोई काम नहीं रोकना चाहिये । तो हम भी ये मुशायरा फिर से शुरू करते हैं ।
नव वर्ष तरही मुशायरा
नए साल में, नए गुल खिलें, नई खुश्बुएं, नया रंग हो
श्रद्धांजलि श्री रमेश हठीला जी को
आज का ये तरही मुशायरा सात समंदर पार की यात्रा पर है । और आज ये दुबई से कनाडा होता हुआ अमेरिका पहुंच रहा है । आज तीन ऐसे शायर हैं जो बहुत प्रतिभावान हैं । दिगंबर नासवा, निर्मल सिद्धु और राजीव भरोल ये तीनों ही नाम ग़ज़ल की दुनिया के अब जाने पहचाने नाम होते जा रहे हैं । तो आज इनकी ग़ज़लों के माध्यम से ही हम देते हैं श्री रमेश हठीला जी को काव्यमय श्रद्धांजलि ।
एक बात जो पहले भी कही जा चुकी है वो ये कि इस बार सारी ग़ज़लें उसी रूप में लगाई जा रहीं हैं जिस रूप में प्राप्त हुईं हैं । ये नये साल का नया प्रयोग है । गौतम के कहने पर नये साल में ये प्रयोग किया गया है ।
दिगंबर नासवा
नये साल में नये गुल खिलें, नई हो महक नया रंग हो
यूं ही खिल रही हो ये चांदनी यूं ही हर फिजां में उमंग हो
तेरी सादगी मेरी ज़िंदगी, तेरी तिश्नगी मेरी बंदगी
मेरे हम सफ़र मेरे हमनवा, मैं चलूं जो तू मेरे संग हो
न तो धूल हो, न बबूल हो, न ही शूल हो, हो जो फूल हो
यूँ ही साथ साथ रहें सदा, ये सफ़र तेरा नवरंग हो
जो तेरे करम की ही बात हो, न मैं ख़ास हूँ न वो ख़ास हो
तेरे हुस्न पर हैं सभी फिदा, तेरे नूर में वो तरंग हो
न तो नफ़रतों की बिसात हो, न तो मज़हबों की ही बात हो
न उदास कोई भी रात हो, न चमन में कोई भी जंग हो
जो कभी हुवे थे गुलाम हम, मेरे साथिया उसे याद रख
न तो बेवफा ही रहे कोई, न कभी निज़ामे-फिरंग हो
कहीं खो न जाऊं शहर में मैं, मेरे हक़ में कोई दुआ करे
न तो रास्ते मेरे गाँव के, मेरे घर की राह न तंग हो
निर्मल सिद्धू
नये साल में नये गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
नये हम बनें नये तुम बनो नई ज़िन्दगी नया ढंग हो
नई हो चमक नई हो धनक नये दौर में नई हो लचक
महके ज़मीं महके गगन मेरे साथ जब तेरा संग हो
कि ये ज़िन्दगी बने सादगी, बने आदमी नया आदमी
न रोये चमन रहे यूं अमन, नहीं फिर कभी कोई जंग हो
चले वो लहर मिटे सब ज़हर लुटे फिर कभी न कोई शहर
न हो बेबसी न हो बेकली न जीवन कोई भी बेरंग हो
न हो फ़ासले कभी दरमियां करे हम दुआ नये साल में
मिले ज़िन्दगी हमें इस तरह जिसे देख जग ज़रा दंग हो
कहीं प्यार का दिया जल रहा कि आने लगी नई रोशनी
मिली है ख़ुशी तुझे आज वो कि निर्मल न अब कभी तंग हो
राजीव भरोल
नई सोच हो नया आसमां, नए हौसलों की उमंग हो,
नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक नया रंग हो.
मेरे दर पे आये फ़कीर को मेरी झोंपड़ी से ना कुछ मिले,
मेरा हाथ ऐ मेरे आसमां कभी इस कदर भी ना तंग हो,
कई दिन हुए मैं उठा नहीं, कहीं पर्वतों से भिड़ा नहीं,
मेरे हौसलों में पड़े पड़े ही न लग गया कहीं ज़ंग हो.
तेरे तल्ख़ लहज़े कि चोट से किसी दिल का कांच चटख गया,
कहाँ लाज़िमी है तू हाथ ही में लिए हुए कोई संग हो?
मैं बुलंदियों की मिसाल था, मेरी ईंट ईंट बिखर गई,
है उरूज तो है जवाल भी, मुझे देख कर यूँ न दंग हो.
मुझे आसमां का सफर मिले, हाँ रहें ज़मीं से भी निस्बतें,
तेरे हाथ में मेरी डोर हो, मेरी जिंदगानी पतंग हो.
इस बार के मुशायरे में टिप्पणी नहीं करने का भी निर्णय लिया है । वो तो आपको करना है । लेकिन एक बात कहूंगा, वो ये कि आज के मुशायरे में एक शेर ऐसा है जो तीर की तरह आकर लगा है । आप तलाशिये कि वो शेर कौन सा है । इसी बीच शिवना प्रकाशन की नई पुस्तक श्री समीर लाल जी की देख लूं तो चलूं का जबलपुर में वरिष्ठ कथाकार श्री ज्ञानरंजन जी के हाथों अंतरिम विमोचन हो गया, उनको बधाई ।
मैं बलंदियों की मिसाल था,
जवाब देंहटाएंमेरी ईंट ईंट बिखर गयी
है उरूज तो, है ज़वाल भी ,
मुझे देख कर यूं न दंग हो
वाह !
वाह-वा !!
अभी इतना ही ,,,
बाक़ी सब पढने फिर आता हूँ .
रमेश हठीला जी को स्मृति-श्रद्धांजलि। रचनायें बड़ी सुन्दर हैं।
जवाब देंहटाएंसब से पहले तो आदरणीय रमेश हठीला जी को विनम्र श्रद्धाँजली। उसके बाद समीर जी की पुस्तक के लोकार्पन पर बधाई। आज इन तीन दिग्ज्जों की गज़ल मे से कोई एक शेर कोट करना मुश्किल लग रहा है। फिर भी नासवा जी की गज़ल का हर शेर कुछ खास है--
जवाब देंहटाएंतेरी सादगी मेरी ज़िन्दगी---- वाह
न नफरतों की बिसात हो---- नासवा जी हमेशा ही प्रेम भाईचारे का सन्देश गज़लों नज़्मों के माध्यम से देते हैं।
जो कभी हुये थे गुलाम हम ---- गणतन्त्र दिवस आने वाला है समसामौइक शेर इतना लाजवाब बना है कि कई बार पढ कर भी मन नही भरा। इस नायाब गज़ल के लिये नास्वा जी को बधाई।
सिद्धू जी की गज़ल भी बहुत अच्छी लगी--
चले वो लहर मिटे--- सिद्धू जी के मन मे दुनिया भर मे शान्ति देखने की चाह इस शेर मे बखूबी दिख रही है।
न हो फासले कभी--- सुन्दर सन्देश देती गज़ल के लिये सिद्धू जी को बधाई
राजीव जी देखते देखते ही कुछ अरसे मे गज़ल के बादशाह बन गये। उनकी लगन और सोच काबिले तारीफ है। अमेरिका मे उनसे मिला सनेह और आदर कभी भूल नही पाऊँगी।
मेरे दर पे आये फकीर को------ सच मे उनका स्वभाव भी ऐसा ही है। दिल को छू गया ये शेर।
कई दिन हुये मै उठा नही---- जंग का बहुत सुन्दर प्रयोग हुया है।
मै बुलन्दिओं की मिसाल था---- बेमिसाल ।
मुझे आसमा का ---- वाह बहुत खूब। अगर सच कहूँ तो पूरी गज़ल ही लाजवाब है। राजीव को बहुत बहुत बधाई। ये मुशायरा शायद पहले सभी मुशायरों सेच्छा रह। एक से एक बढ कर गज़लें। इसके लिये सुबीर भाई को भी बधाई।
श्रद्धांजलि श्री रमेश हठीला जी को. एक बहुत ही ख़ास और अनोखे अंदाज वाले गीतकार को श्रद्धांजलि!!
जवाब देंहटाएंतीनो ग़ज़लें एक पर एक है.ग़ज़ल एक बार फिर से पढनी होगी फिर कुछ कह पाऊंगा.
रमेश हठील जी: "उसे रास आती है ज़िन्दगी जो कबीर जैसा मलंग हो"....फक्कड़ता में जिए और वैसे सब कुछ छोड़ छड कर चले गए...जहाँ गए होंगे वहां भी अपनी मस्ती में ही होंगे...वैसे उनके अचानक चले जाने की उम्मीद नहीं थी...मुझे पूरा विश्वास था के अभी वो हमारे बीच रहने वाले हैं...ऐसे फक्कड़ मस्त मौला इंसान से न मिल पाने का गम मुझे हमेशा सालता रहेगा...उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ.
जवाब देंहटाएंअब बात ग़ज़ल की: भाई दिगंबर जी की लेखनी से मैं सदा प्रभावित रहा हूँ और उनकी ताज़ा ग़ज़ल पढ़ कर यकीन हो गया है के उनकी लेखनी से प्रभावित होना कोई गलत बात नहीं है क्यूँ की वो है ही ऐसी...आप उस से प्रभित हुए बिना रह ही नहीं सकते..."न तो धूल हो न बबूल हो..."... वाह क्या मिसरा है..."और कहीं खो न जाऊं शहर में मैं..." सुभान अल्लाह...मेरी दिली दाद उन तक पहुंचाइएगा....
सिद्धू जी की शायरी सादगी से अपनी बात कहती है और बहुत खूब कहती है...सीधे सीधे अलफ़ाज़ सीधी सीधी बात दिल से कहते हैं जो पढने वाले के दिल तक पहुँचते है..."नयी हो चमक नयी हो धनक..."..वाह...क्या मिसरा है...कितनी मिठास है...और "चले वो लहर मिटे सब ज़हर..." से वो अमन और खुशहाली का सन्देश निहायत सादगी से देते हैं...कमाल करते हैं सिद्धू जी ...बधाई...
भाई राजीव जी का कहने का अंदाज़ बहुत दिलकश है "कई दिन से मैं उठा नहीं..." शेर में ताजगी है और उनका " मैं बुलदियों की मिसाल था...." शेर तो हासिले मुशायरा है...तालियाँ... तालियाँ...तालियाँ...क्या खा है और भाई खूब कहा है...जियो राजीव भाई जियो...जिंदाबाद...हमारी दुआ है के दिन दूनी रात चौगनी तरक्की करो और ऐसी खूबसूरत ग़ज़लें अपने चाहने वालों तक पहुंचाते रहो...
तरही में आनंद की गंगा बहनी शुरू हो गयी है...
नीरज .
रमेश हठीला जी को मेरी श्रद्धांजलि, वे स्वर्गवासी हों ऐसा कहने को दिल नहीं करता, क्योंकि ऐसे व्यक्तित्वों को धरती पर बार बार आना चाहिए।
जवाब देंहटाएंयूँ तो तीनों ग़ज़लें और सारे ही शे’र बेहद खूबसूरत हैं मगर जो शे’र सीधे दिल पर चोट करता है वो ये है।
मेरे दर पे आये फ़कीर को मेरी झोंपड़ी से ना कुछ मिले
मेरा हाथ ऐ मेरे आसमाँ कभी इस कदर भी न तंग हो।
पंकज भाई, आप जिस तीर की बात कर रहे हैं वो मुझे तो राजीव भारोल के तरकश का दूसरा तीर दिख रहा है।
जवाब देंहटाएंतीनों ग़ज़लों में एक से बढ़कर एक शेर हैं और तीनों शायरों की शायरी में खूबसूरत निखार भी स्पष्ट दिख रहा है।
पंकज भाई आपने सही कहा ऐसी जिंदादिली और साहित्य के लिए ऐसा समर्पण विरल ही देखने को मिलत है| सभी के दिलों पर राज करने वाले आदरणीय रमेश हठीला जो की शत शत नमन|
जवाब देंहटाएंमुशायरे का ये अंक भी रुचिकर है| सभी शायरों को बहुत बहुत बधाई| मैं आप लोगों से दूसरी बार ही जुड़ रहा हूँ, फिर भी सभी के सभी रचनाधर्मी काफ़ी प्रभावित कर रहे हैं|
भाई दिगंबर नासवा जी:-
तेरी सादगी मेरी जिंदगी.............वाह क्या दिलचस्प सादाबयानी है दिगंबर भाई, बहुत खूब|
न बबूल हो..........ओहोहोहो क्या पकड़ के लाए हैं, वाकई|
न तो नफ़रतों की बिसात हो.............भाईचारे को समर्पित इन पंक्तियों को नमन|
भाई निर्मल सिद्धू जी:-
चमक-धनक-लचक..............वाह! क्या सजाया है इस शे'र को निर्मल भाई|
बने आदमी नया आदमी............आमीन|
न हों फ़ासले कभी दरमियाँ.............निर्मल भाई आप के साथ हम भी यही दुआ करते हैं|
भाई राजीव भरोल जी:-
मेरे दर पे आए फकीर को................ ये वाकई आला दर्जे का शे'र है|
कई दिन हुए मैं उठा नहीं...........बड़ी ही सादगी के साथ कही गयी इस बात के लिए विशेष बधाई राजीव भाई|
तेरे तल्ख़ लहजे की चोट से.............वाह वाह वाह| बहुत ही सही राजीव भाई|
सभी शायरों के साथ साथ भाई समीर लाल जी को भी खूब खूब बधाई|
कपूर साहब तीर तो खाने वाले पर निर्भर करता है...जरूरी नहीं के जो तीर पंकज जी को सीधे जा लगा हो उसे ही तीर कहें और बाकी को तुक्का...हम तो राजीव जी के पांचवे शेर से घायल हुए बैठे हैं...इस शेर का तीर बकौल ग़ालिब तीरे नीमकश है, जिसकी खलिश कम नहीं होती ...अरे वोही जिसका जिक्र हम पहले अपने कमेन्ट में कर चुके हैं...
जवाब देंहटाएंबाकी सारे शायरों के तीर बाकायदा कलेजे पर लगे लेकिन पार हो गए....:-)
नीरज
हर दिल अज़ीज़ गुरु साब हठीला जी, किसी ना किसी रूप में हमारे साथ ही हैं.
जवाब देंहटाएं@ दिगम्बर जी,
न तो नफ़रतों की बिसात हो, न तो मज़हबों की ही बात हो
न उदास कोई भी रात हो, न चमन में कोई भी जंग हो
अच्छा शेर कहा है.
@ निर्मल जी,
कि ये ज़िन्दगी बने सादगी, बने आदमी नया आदमी
न रोये चमन रहे यूं अमन, नहीं फिर कभी कोई जंग हो
वाह मिसरा-ए-उला तो लाजवाब बना है, खूबसूरत शेर.
@ राजीव जी,
आप की अपने बारे में क्या भविष्यवाणी है? क्या खूब शेर कहते हैं आप, लाजवाब हूँ.
आप की कहन बेजोड़ बन रही है, शेर छन छन के निकल रहे हैं.
तंग काफिये को क्या खूब निभाया है "मेरे दर पे आये फ़कीर को मेरी झोंपड़ी से ना कुछ मिले"
इस शेर में ज़ंग काफिया....अहा
"कई दिन हुए मैं उठा नहीं........"
"तेरे तल्ख़ लहज़े कि चोट से किसी ..........", "मैं बुलंदियों की मिसाल था.........." उम्दा शेर
आखिरी में कमाल कर दिया है,
मुझे आसमां का सफर मिले, हाँ रहें ज़मीं से भी निस्बतें,
तेरे हाथ में मेरी डोर हो, मेरी जिंदगानी पतंग हो.
मेरे अनुमान से तीर की तरह चुभने वाला शेर ये हो सकता है शायद,
"कई दिन हुए मैं उठा नहीं, कहीं पर्वतों से भिड़ा नहीं,
मेरे हौसलों में पड़े पड़े ही न लग गया कहीं ज़ंग हो."
जिस के बारे में कुछ भी कहूं तो कम लग रहा है, कुछ कहना भी चाहुगा तो ये शेर ही कह दूंगा दोबारा. वाह वा राजीव जी.
सर्वप्रथम हठीला जी को श्रद्धांजलि
जवाब देंहटाएंअब बात ग़ज़लों की नासवा जी की शायरी और शख़्सियत किसी त’आरुफ़ की मोहताज नहीं उन के शेर
न तो नफ़रतों की बिसात ............
जो कभी हुए थे.............
बहुत उम्दा हैं
कि ये ज़िंदगी बने..........
चले वो लहर............
बहुत ख़ूब निर्मल जी
राजीव जी तो अधिकतर कमाल ही करते हैं ,
मेरे दर पे आए ...........
तेरे तल्ख़ लह्जे..........
मैं बुलंदियों की.........
बहुत ख़ूब !सुबहान अल्लाह !
तीनों कवियों को शुभ कामनाएं!
शुक्रिया सुबीर जी
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमुशायरे को हसीन रखने के लिये सर्व प्रथम तीनों अदब जन को मुबारकबाद।
जवाब देंहटाएंराजीव भरोल जी ्का - मैं बुलन्दियों की मिसाल था, मेरी ईंट ईंट बिखर गई,
है उरूज तो है जवाल भी,मुझे देख कर यूं न दंग हो। (शे'र बहुत पसंद आया)
सवेरे , दो अलग-अलग टिप्पणियाँ की थीं
जवाब देंहटाएंएक ही नज़र आ रही है...
शायद कोई तकनीकी कारण ही रहा होगा
मेरी ओर से सम्माननीय (स्व) रमेश हठीला जी
के लिए विनम्र श्रद्धांजली .......
और ग़ज़लों के लिए ,,,
श्री दिगंबर जी का शेर
ना तो नफरतों की बिसात हो, न तो मजहबों की ही बात हो
न उदास कोई भी रात हो. न चमन में कोई भी जंग हो
बहुत ज्यादा पसंद आया ....
उनका लेखन हमेशा प्रभावित करता है
और सिधु जी का ये शेर
चले वो लहर, मिटे सब ज़हर लुटे फिर कभी न कोई शहर
न हो बेबसी न हो बेकली न जीवन कोई भी बेरंग हो
ग़ज़ल को चार चाँद लगा रहा है
और अब भारोल साहब
मेरे दर पे आये फकीर को मेरी झोपडी से न कुछ मिले
मेरा हाथ ऐ मेरे आसमाँ कभी इस क़दर भी न तंग हो
बहुत खूब ....
राजीव की ग़ज़ल अचंभित कर रही है। क्या शेर निकाले हैं...उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़! अजीब-सी एक जलन का अहसास दिला रहे हो राजीव भाई!....बहुत अच्छे!
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी और निर्मल जी की ग़ज़लें भी अच्छी लगीं। कहीं-कहीं दोनों ही किंतु बहर से जा रहे हैं। गुस्ताखी के लिये माफी, किंतु गुरूजी क्योंकि बार-बार बता रहे हैं तरही की ग़ज़लों को प्रस्तुतु करते हुये भी...तो मुझे लगा कि बता दूं।
हठीला जी के बारे में कुछ भी नहीं कह पाऊंगा बस नमन उनको !
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी ने वाकई अच्छी ग़ज़ल कही है , सिधु जी ने भी ग़ज़ल अच्छी कही है मगर बेबाकी से कहूँगा कि राजीव जी ने अपनी ग़ज़ल से इस आज कि महफ़िल को लूट लिया है ! आह क्या ग़ज़ल कही है इन्होने वाकई रश्क की बात है! सारे ही सारे शे'र अचंभित कर रहे हैं ! क्या सुख़न कहे हैं इन्होने वाह इतना तो तय है की गुरु जी को इनकी ग़ज़ल से ही वो शे'र पसंद आया होगा ! ज्यादा उम्मीद है की तेरे तल्ख़ लहजे की चोट से ....
समीर जी की किताब देख लूँ तो चलूँ वाकई एक चमत्कृत कर देने वाली कृति है ! इनका ये रूप पढ़ कर वाकई सुखद अनुभूति से तरबतर हो जाये कोई भी ! बहुत बहुत बधाई इन्हें इस कमाल की किताब को लिखने के लिए !
अर्श
गुरु जी प्रणाम,
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय हठीला जी की यायावरी अंदाज़ से मैं कितना प्रभावित हुआ था यह उस समय तो समझ नहीं आया था क्योकि आप सभी से पहली मुलाक़ात का नशा ही नहीं उतर रहा था
मगर बाद में जब उनकी याद आती थी और आती है, तो सोचता हूँ उनके जीने का अंदाज़ भी क्या निराला था, एज अजीब फक्कडपने के साथ खुशी बाँटते हुए, सबको हसाते हुए अपनी जिंदगी को जी जान बड़े हौसले की बात है जो हर इंसान के बूते की बात नहीं है
आदरणीय हठीला जी को विनम्र श्रद्धाँजली अर्पित करता हूँ
रमेश जी का संसार के जाना बहुत ही दुखद रहा|साहित्य जगत में उनकी कमी हमेशा रहेगी|
जवाब देंहटाएंपंकज जी, अब मुशायरा अपने चरम पर है| पिछली बार नीरज जी और तिलक जी को पढ़ा बहुत ही खास और बेहतरीन ग़ज़लें थी|
आज की प्रस्तुति भी लाजवाब है| अपने देश से बाहर रहकर हिन्दी और उर्दू की सेवा करने वाले तीनों ग़ज़लकारों को नमन है| पहले भी आप सब की ग़ज़लें पढ़ता रहा हूँ| इस बार कठिन बाहर में भी खूबसूरत शेर गढ़े है|
सभी ग़ज़लकार को हार्दिक बधाई| और बढ़िया मुशायरे के लिए आप को भी बहुत बहुत धन्यवाद...प्रणाम
रमेश जी से मैं मिला तो नहीं लेकिन जितना भी उनके बारे में इन्टरनेट पर जाना है, यही कहूँगा की ऐसे जिंदादिल और स्वाभिमानी इंसान कम ही होते हैं. उन्हें विनम्र श्रधांजली.
जवाब देंहटाएंसभी टिप्पणीकर्ताओं का हौसला-अफजाई के लिए धन्यवाद. यही कहूंगा की अगर कोई शेर अच्छा बन पड़ा है तो यह गुरूजी और गुणीजनों के मार्गदर्शन और आशीर्वाद का परिणाम है और जो त्रुटियाँ हैं वो मेरी नालायकी है.
दिगंबर जी और सिद्धू जी कि ग़ज़लें पसंद आयीं.
दिगंबर जी के "न तो नफरतों की बिसात हो.." और "कहीं खो ना जाऊं शहर में मैं.." शेर बहुत अच्छे लगे.
निर्मल सिद्धू जी के "कि ये जिंदगी बने सादगी.." और "चले वो लहर, मिटे सब ज़हर.." भी बहुत अच्छे लगे. बहुत बहुत बधाई.
दिगम्बर नासवा जी, निर्मल सिद्धू जी और राजीव भरोल जी की बेहतरीन ग़ज़लें पढ़ने को मिलीं, तीनों को बधाई
जवाब देंहटाएंसभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हठीला जी का निधन एक बहुत बड़ी क्षति है ... उनसे मिलना तो नहीं हुवा पर आपसे और सभी से जो सुना है उसके बल बल पर कह सकता हूँ की वो हमेशा सबके दिलों में जीते रहेंगे ....
जवाब देंहटाएंआज का मुशाइरा राजीव जी के नाम है ... क्या कमाल के शेर निकाले हैं ... मेरे दर पे आये फ़कीर को ..... बस इसी एक शेर ने मेरा दिल भी घायल कर दिया .... वैसे बाकी सभी शेर भी लाजवाब हैं ...
निर्मल जी ने बहुत ही कमाल के शेर कहे हैं ... अमन और भाई चारे का पैगाम देते हुवे शेर बार बार पढने को दिल करता है ... की ये जिंदगी बने सादगी ...या फिर .. चले वो लहर ... कमाल है निर्मल जी का ...
ये मुशायरा अपनी उड़न पर है ....गुरुदेव ...... आशा है इस बार आपकी ग़ज़ल भी पढने को मिलेगी ...
सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं"रमेश हठीला जी को श्रद्धांजलि"
जवाब देंहटाएंदिगम्बर जी,निर्मल जी और राजीव जी को खूबसूरत ग़ज़लें लिखने के लिए बधाई........
सभी को "गणतंत्र दिवस" की हार्दिक हार्दिक शुभकामनायें..........
रमेश हठीला जी को विनम्र श्रृद्धाँजलि के साथ...........
जवाब देंहटाएंश्री दिगम्बर जी, श्री निर्मल जी, और श्री राजीव जी की खुबसूरत गज़लों को पढ़ रहे है, गुनगुना रहे हैं और कुछ तो कहना मेरे बस की बात नही अलबत्ता शब्दों के बहुत अच्छे प्रयोग देखे।
यह कारवाँ यूँ ही चलता रहे.......
गुरूवर को प्रणाम के साथ,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
रमेश हठीला जी को विनम्र श्रृद्धाँजलि के साथ...........
जवाब देंहटाएंश्री दिगम्बर जी, श्री निर्मल जी, और श्री राजीव जी की खुबसूरत गज़लों को पढ़ रहे है, गुनगुना रहे हैं और कुछ तो कहना मेरे बस की बात नही अलबत्ता शब्दों के बहुत अच्छे प्रयोग देखे।
यह कारवाँ यूँ ही चलता रहे.......
गुरूवर को प्रणाम के साथ,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सबसे पहले तो रमेश जी को श्रद्धांजलि,
जवाब देंहटाएंआज की ग़ज़लों में राजीव जी और दिगमबर जी की ग़ज़लें बहुत क़ाबिले तारीफ़ हैं। रजीव जी का हर शेर अपने आप में बामिसाल है। दिगम्बर जी ने भी बहुत ख़ूबसूरत शेर कहे हैं। बधाई हो।
हठील जी का मस्तमौला स्वभाव और बीमारियों से लड़ने की जिद मुझे अपने बड़े भईया की याद दिलाती है।
जवाब देंहटाएंबस... बाकी सरहद पार के मित्रों को फेसबुक पर संदेश दूँगी।
हठील जी का मस्तमौला स्वभाव और बीमारियों से लड़ने की जिद मुझे अपने बड़े भईया की याद दिलाती है।
जवाब देंहटाएंबस... बाकी सरहद पार के मित्रों को फेसबुक पर संदेश दूँगी।
हठील जी का मस्तमौला स्वभाव और बीमारियों से लड़ने की जिद मुझे अपने बड़े भईया की याद दिलाती है।
जवाब देंहटाएंबस... बाकी सरहद पार के मित्रों को फेसबुक पर संदेश दूँगी।