गुरुवार, 13 जनवरी 2011

नये साल का तरही मुशायरा मकर संक्रांति की दहलीज़ तक आ पहुंचा है और आज की युगल जोड़ी एक बार फिर से दो शानदार शायरों की है ।

तरही मुशायरा अपनी रफ्तार से चल रहा है । हालांकि अभी भी कुछ लोगों को ये समझने में समस्‍या आ रही है कि बहरे रजज और बहरे कामिल के रुक्‍नों के बीच में वो बारीक सा अंतर क्‍या है । अभी भी ये समझने में दिक्‍कत आ रही है कि जो बहरे रजज का रुक्‍न है वो कामिल में नहीं आ सकता है । कई लोगों ने जो ग़ज़लें भेजी हैं वो बजाय कामिल के रजज पर जा रही हैं । या फिर ऐसा हो रहा है कि बहरे रजज का रुक्‍न बीच बीच में आ रहा है । हम, तुम, अब, कब, कुछ, हर, इक, बस, दिल, जैसे शब्‍दों का उपयोग रुक्‍न की पहली मात्रा बनाने में नहीं किया जा सकता है । क्‍योंकि ये रुक्‍न 11212 है बहुत ही स्‍पष्‍ट है कि रुक्‍न की ठीक पहली मात्रा दो लघु हैं ना कि एक दीर्घ । ऊपर जिन शब्‍दों का जिक्र आ रहा है वे सारे वे शब्‍द हैं जिनमें एक मात्रा साइलेंट हो गई है इसलिये इसे एक दीर्घ में माना जाता है । ग़ज़ल का सफर के तीसरे अंक में मुत‍हर्रिक तथा साकिन  का जिक्र हुआ है । वो मात्रा जो कि डामिनेंट होती है उसे मुतहर्रिक कहते हैं और जो रेसेसिव होती है उसे साकिन कहते हैं । और इसी के कारण ये होता है कि इस पूरे दो लघु को एक दीर्घ के रूप में मान लिया जाता है । इसी के कारण ये होता है कि बहरे कामिल के रुक्‍न की शुरूआत इनसे नहीं हो सकती । इस बहर में ये किया जा सकता है कि एक रुक्‍न यदि दीर्घ पर खत्‍म हुआ लेकिन शब्‍द खत्‍म नहीं हुआ है उसमें अभी एक लघु बाकी है तो उसको अगले रुक्‍न की शुरूआत के लिये रख सकते हैं । जैसे नीचे आ रही ग़ज़ल में श्री नीरज जी ने किया है जिसे कल की कोई फिकर नहीं,  जिसे 11 कल 2 की 1 को 2 ( 11212) ई फि 11 कर 2 न 1 हीं 2 ( 11212 ) अब नीरज जी ने क्‍या किया इसमें कि कोई  के को  पर पहले रुक्‍न को समाप्‍त कर   को अगले रुक्‍न की पहली लघु बना लिया है । इस प्रकार काम आसान हो गया । ये भी बहुत अच्‍छा तरीका है  ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

नये साल में, नये गुल खिलें, नई खुश्‍बुएं, नया रंग हो

DSC_6315( फोटो सौजन्‍य श्री बब्‍बल गुरू )

आज मकर संक्रांति की पूर्व संध्‍या पर एक बार फिर से दो जबरदस्‍त शायरों की जोड़ी धमाल करने आ रही है । दोनों ही अपने रंग के शायर हैं । नीरज गोस्‍वामी जी और तिलक राज कपूर जी की ये जोड़ी अपनी ही तरह की जोड़ी है । आइये आज इन दोनों के साथ नये साल का ये कारवां आगे बढ़ाते हैं ।

 

TRK Small

श्री तिलक राज कपूर

नए साल में नए गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
नए राग हों, नई ताल हो, नया जोश और उमंग हो

तू समझ रहा था थका हुआ कहीं रुक न जाए ये राह में
मैं खड़ा हूँ इक नये वर्ष में, मुझे देखकर यूँ न दंग हो।

वो जिसे समझते हैं लोग सब, कि नसीब उसका खराब है
उसे दे खुदा तू वो नेमतें कि नसीब उसका दबंग हो।

भले सरहदों में बँटी हुई है ज़मीन हिन्‍द औ पाक की
उठे थाप चंग की उस तरफ़ तो इधर भी बजता मृदंग हो।

हमें दिख रही हैं बुराईयॉं, जो बसी हुई हैं समाज में
करें इस बरस नया काम ये कि खिलाफ़ इनके ही जंग हो।

अभी तक तो है ये इबारती, मेरे रब तू ऐसा कमाल कर
रहे डोर जनता के हाथ में, मेरा देश ऐसी पतंग हो।

मेरे दोस्‍त सरहद पार के, तुझे दे रहा है सदाऍं दिल,
मेरे दिल में जोश हो ‘सिंध’ का तेरे दिल में प्‍यार की ‘गंग’ हो।

main2

श्री नीरज गोस्‍वामी जी

नया गीत हो, नया साज़ हो, नया जोश और उमंग हो

नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक नया रंग हो

है जो मस्त अपने ही हाल में, कोई फिक्र कल की न हो जिसे

उसे रास आती है जिंदगी, जो कबीर जैसा मलंग हो

वही रंजिशें वही  दुश्मनी, है मिला ही क्या हमें जीत के

तेरी हार में मेरी हार है, यही सोच लें तो न जंग हो

करें जो सभी वही हम करें, तो है बेसबब सी ये जिंदगी

है मजा अगर करें कुछ नया, जिसे देख ये जहाँ दंग हो

तुझे देख कर मुझे यूँ लगा कोई संदली सी है शाख तू

जो न रह सके, तुझे छोड़ कर, मेरा दिल ये जैसे भुजंग हो

जो झुके नहीं किसी खौफ से, कभी मौत से वो डरे नहीं

ऐ खुदा दे मुल्क को रहनुमा, जो दिलेर और दबंग हो

इस बार का तरही तो ऐसा लग रहा है कि मेरी क़सम को तुड़वा कर ही मानेगा । मैंने तय किया है ग़ज़लों पर श्रोता टिप्‍पणी करेंगें संचालक नहीं । लेकिन अभी तक ये हो रहा है कि संचालक टिप्‍पणी करने के लिये कसमसा कर रह रह जा रहा है । आज फिर वही हो रहा है । लेकिन आप लोग जिस प्रकार जोर शोर से टीप लगा रहे हैं उससे संचालक का काम हो रहा है । तो आज की ग़ज़लें भी वैसी ही हैं शानदार और जानदार । दिल से दाद दीजिये और इंतज़ार कीजिये अगले अंक का ।

27 टिप्‍पणियां:

  1. हमें दिख रही हैं बुराइयां..........
    बहुत ख़ूब तिलक जी !
    वाक़ई जंग इन्हीं बुराइयों के ख़िलाफ़ होनी चाहिये न कि एक दूसरे के ख़िलाफ़

    ख़ूबसूरत ग़ज़ल है नीरज जी !
    वही रंजिशें वही दुश्मनी.............
    बहुत उम्दा !ख़ास तौर पर
    "तेरी हार में मेरी हार है "

    शेर का ये हिस्सा कमाल का है
    दोनों शायरों को बधाई !

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  2. भाई तिलक राज जी अभिनंदन|

    सुर हों नये.......... ये मिसरा हमें कुछ सिखाने की कोशिश कर रहा है शायद|
    तू समझ रहा था................ सर जी कमाल की बात कही है आपने|
    मृदंग............ वाह वाह वाह, बड़ा ही जबरदस्त काफिया है ये तो भाई| मेरी पसंद वाला|
    सिंध............. गंग ............... वाह वाह वाह, कमाल है श्रीमान कमाल|

    भाई नीरज जी अभिनंदन|
    तरही के दूसरे वाले मिसरे की बखूबी गिरह बाँधी है आपने|
    कबीर जैसा मलंग........ भई वाह|
    तेरी हार में मेरी हार......... ओहोहोहो सर जी क्या बात कह गये हैं आप| जय हो|
    करें जो सभी.................. सादर दंडवत प्रणाम इन पंक्तियों के लिए|
    दबंग काफ़िए का प्रयोग हट कर किया है आपने, बधाई श्रीमान|

    इन दो ग़ज़लों की खूबी मेरे हिसाब से ये रही कि बिना दिमाग़ पर ज़ोर डाले पूरी की पूरी ग़ज़ल्स समझ में आ गयीं वो भी दिल पर करारी चोट करने वाले निहितार्थों के साथ|

    दोनो रचनाधर्मियों को पुन: सादर अभिवादन|

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  3. @नीरज भाई
    खोपाली के जंगल से ये मलंग और भुजंग वाले कातिलाना शेर पैदा करना; क्‍या कमाल है भाई।

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  4. आप दोनों का ही दमदार संगम इस पोस्ट पर।

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  5. दोनों वरिष्ठ शायरों ने अपने ख़ूबसूरत कलामों से तरही की फ़िज़ा को और ख़ुशगवार कर दिया है , आप दोनों मुबारक बाद के मुस्तहक़ हैं। आप दोनों शायरों के मतले और मक्ते मुझे बहुत रास आये। आदरणीय "नीरज गोस्वामी" जी ने दूसरे मिसरे में लगता है जान बूझकर या बह्र में रहने के लिये "फ़िक्र"को "फिकर" लिखा है , पता नहीं ये कहां तक उचित है। उर्दू अदबदां को ये पसंद आये न आये कहना मुश्किल है।

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  6. क्या कमाल के शे’र कहे हैं दोनों वरिष्ठ शायरों ने और भाषा भी गजब की कि मेरे जैसा ग़ज़ल का विद्यार्थी भी एक ही पठन में समझ जाए। वाह वाह

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  7. संजय जी फिकर नहीं को हम अपभ्रंश की तरह उपयोग करने की छूट ले सकते हैं । हालांकि अस्‍ल शब्‍द तो फिक्र ही है, हो सकता है ये बात शायद उर्दू अदबदां को पसंद ना आये...मैं उनसे इस गुस्ताखी के लिए उनसे माफ़ी मांग लेता हूँ...

    मेरी ग़ज़ल को भाई तिलक राज कपूर की ग़ज़ल के साथ लगा कर जो सम्मान मुझे पंकज जी ने दिया है मैं उसका हकदार नहीं हूँ...उन्होंने हकीकत में अर्श और फर्श को मिलाने की कोशिश की है...ये बहर वाकई मुश्किल थी और इसे साधने में मैंने जो पसीना बहाया है वो मैं ही जानता हूँ...आप सब को मेरा लिखा पसंद आ रहा है देख कर लगता है के मेरी मेहनत सफल हुई है...आप सब का शुक्रिया.

    नीरज

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  8. मत्‍ले के शेर में एक गंभीर त्रुटि मुझसे हुई है, यह वस्‍तुत: ऐसा होना चाहिये:
    नए साल में नए गुल खिलें नई हो महक नया रंग हो
    नए राग हों, नई ताल हो, नया जोश और उमंग हो।
    नीरज भाई की विनम्रता और सादगी, 'मर जावॉं गुड़ खा के' वाली है। इसमें कोई शक नहीं है कि यह बह्र मेरे लिये ऐसी चुनौती रही कि कुछ बात ही नहीं निकल रही थी, फिर एकाएक एक सुब्‍ह कुछ बना और उसे पंकज भाई को भेजने के बाद मैनें उसकी तरफ़ मुड़कर नहीं देखा, अभी हो सकता और भी त्रुटियॉं हों आप उपकार ही करेंगे त्रुटियॉं बताकर, इसलिये पूर्ण सहृदयता से व्‍यक्‍त हों।
    सिंध और गंग के शेर में मैनें जो कहना चाहा है वह हो सकता है प्रथमदृष्‍ट्या अजीब लगे लेकिन इसमें अदावत से दावत की एक स्थिति निर्मित करने की कोशिश की है।

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  9. बचपन में पढ़ा हुआ श्‍लोक आज याद आ गया ' विद्या ददाति विनयम' तिलक जी और नीरज जी आप दोनों ही जिस प्रकार उदार मना होकर बात स्‍वीकार कर रहे है उसके लिये साधुवाद । यही तो वो बात है जो विद्या के साथ गुणी जनों में आती है । वैसे आप दोनों के संदेश के अनुसार मैंने इच्छित परिवर्तन कर दिये हैं । संजय दानी जी ने बहुत अच्‍छा प्रश्‍न उठाया है । फिक्र का मूल रूप 21 ही है । किन्‍तु बाज स्‍थानों पर उसे फिकर रूप में भी बांधा गया है । लेकिन मूल तो वही है । एक बहुत बारीक सा अंतर फिक्र और फिकर इन दोनों शब्‍दों में भी है । उसकी चर्चा बाद में ।

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  10. पंकज जी, तिलक जी, नीरज जी और संजय जी आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया, हम विद्यार्थियों को, बारीकियों से रु-ब-रु कराने के लिए|

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  11. आन्नदित और निशब्द हूँ, सुन्दर कलाम पढकर!दोनो दिग्गजों की सुन्दर रचनायें!

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  12. बड़ा मुश्किल हो जाता है हम जैसे अदनों के लिये दो-दो महारथियों की ग़ज़लों को एक साथ पढ़ना और फिर उस पर दाद भी देना।

    तिलक साब का दूसरा शेर तो इतना भाया कि पूछिये मत। दूसरे की सफलता पर जलने वाली दुनिया पर किया हुआ कटाक्ष बड़े ही लाजवाब तरीके से शेर में ढ़ाला गया है....हुजूर को इस शेर पर खूब खूब सारी दाद! फिर वो सरहदों वाली और आखिरी शेर भी गज़ब के बुने गये हैं। सिंध और गंगा के बिम्बों के जरिये इतनी अच्छी कहन अपने आप में अनूठा है।

    नीरज जी की खास अपनी ही मस्त मौला वाली छवि उनकी तरही में एकदम से उभर कर आयी है। चाहे वो कबीर जैसा मंलग हो वाला शेर हो या फिर है मजा अगर करे कुछ नया वाला शेर....जबरदस्त नीरज जी, जबरदस्त! और भुजंग वाले शेर का अनूठा प्रयोग तो एकदम से हैरान कर गया....

    इसके बाद तो तरही जैसे संपन्न कर देना चाहिये...अभी तक की आयी इन छः बेमिसाल ग़ज़लों के बाद अपनी हल्की-फुल्की सी काफ़िया-पैमाई को इस मंच पे देखना शर्मिंदगी होगी!

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  13. Bahut hi kamaal ... aapke samjhaane ka andaz aur Tilak ji aur Neeraj ke likhne ka andaaz itna kamaal hai ki aaj aur nayi baaten samajh samajh aa gayeen ... pata nahi ham jaise nousikhiyon ka kya hone waala hai ...
    aapko aur poore pariwaar ko lohdi ki bahut bahut badhaai ...

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  14. लोहड़ी और उत्तरायणी की सभी को शुभकामनाएँ!

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  15. दोनों महारथियों से जैसी अपेक्षायें थी वैसी ही गज़लें उभर कर आईं हैं.दोनों शायरों के साथ साथ आपको भी बधाईयाँ ऐसे खूसूरत आयोजन के लिये

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  16. श्री तिलकराज कपुर जी और श्री नीरज जी
    दोनों की शानदार गज़लें पढ़ कर मन को
    असीम आनंद की अनुभूति मिली ....
    तिलक जी का "तू समझ रहा था थका हुआ..."
    वाला शेर किसी तक भी बे हिचक पहुँच जाने वाला
    कामयाब शेर बन पडा है
    "उठे थाप चंग की उस तरफ, तो इधर भी बजती मृदंग हो.."
    ये मिसरा ही ग़ज़ल की शान में चार चाँद लगा रहा है
    और नीरज जी का शेर "है जी मस्त अपने ही हाल में..."
    उन्हिकी ताज़ा और नेक तबियत का शेर है...वाह !
    और .... "तेरी हार में मेरी हार है, यही सोच लें, तो न जंग हो.."
    साहित्य के अनुपम पन्नों पर हमेशा हमेशा लिखा/पढ़ा जाने वाला
    शेर हो गया है ... उन्हें बधाई
    इस बार का तरही मुशायरा , एक बहुत ही कामयाब मुशायरे की तरह
    याद रखा जाने वाला है , इस में ज़रा भी संदेह नहीं है
    और इसका सारा श्रेय आदरणीय श्री पंकज जी के
    कुशल नेतृत्व और उचित मार्गदर्शन का ही परिणाम है .

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  17. दोनों ग़ज़लें पढ़ कर मुंह से अंग्रेज़ी कि "Wow" निकली.. किस तरह से मुश्किल लगने वाली बह्र में मुश्किल से काफिओं को लेकर खूबसूरत शेर कहे हैं.
    तिलक जी के मृदंग, जंग, गंग वाले शेर तो एकदम कमाल हैं. मैं तो तिलक जी के द्वारा काफिये बता देने की वावजूद इन काफियों को प्रयोग ही नहीं कर पाया!
    नीरज जी कि गज़ल में मलंग का प्रयोग बहुत ही खूबसूरती से हुआ है."वही रंजिशें..", "करें जो सभी..", "जो झुके नहीं.." वाले शेर तो लाजवाब है.
    बहुत बहुत बधाई.

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  18. aआज केवल दोनो उस्ताद शायरों को सलाम कर के जा रही हूँ। दोनो गज़लें बुकमार्क कर ली हैं मन ठीक होते ही पढती हूँ। धन्यवाद।

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  19. पूरा दिन दोनो गज़लें दिमाग पर छाई रही। अभी कहीं से आयी और आते ही पहले गज़लें पढने लगी। इन दोनो उस्ताद शायरों की गज़लें पढ कर मुझे नही लगता कि मुझे गज़ल लिखनी आयेगी। तिलक भाई साहिब ने तो कमाल किया है
    हैं जो मस्त अपने----
    कबीर जैसे मस्त मलंग ही तो वो खुद हैं क्या शेर लिखा
    वही रंजिशें वही----- सच मे अब शान्ति चाहिय्ते अच्छा सन्देश दिया है
    करें जो सभी वही----
    वाह ये शेर मुझे सब से अच्छा लगा। यूँ तो सभी शेर लाजवाब हैं।भाई साहिब को इस लाजवाब गज़ल के लिये बधाई

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  20. पिछले कमेन्ट मे नीरज जी की गज़ल को तिलक भाई साहिब की लिख दिया। दिमाग कुछ परेशान होने से जल्दी मे गलती हुयी क्षमा चाहती हूँ। नीरज जी वहाँ आप अपना नाम मन से पढ लें। तिलक भाई साहिब की पूरी गज़ल ही कोट करने का मन है फिर भी
    भले सरहदों मे----- वाह बहुत सुन्दर शेर है
    हमे दिख रही बुराईयाँ----
    समाज की बुराईयों के लिये तो नये साल मे जरूर कुछ होना चाहि9ये।
    अभी तक तो है-----
    जनता के हाथ से तो हर बार डोर छूट जाती है लेकिन नये साल मे उमीद करते हैं जरूर कुछ नया हो।
    नीरज जी और तिलक भाई साहिब को इन लाजवाब गज़लों के लिये बधाई।

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  21. मैं तो यह मानत हूँ कि यहाँ आकर सिर्फ गज़लें ही नही बल्कि कमेंट्स को पढ़कर कोई इतना सीख सकता है जितना की किसी पाठशाला में भी संभव नही है।

    लिखने वाले विद्जन और पढ़ने वाले गुणीजन ऐसा अद्भुत संगम कहीं और देखने को नही मिलता।

    यह सफर यूँ ही चलता रहे.....

    गुरूवर की जय हो!!!

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  22. नीरज सर और तिलक सर की ग़ज़लें हमेशा की तरह शानदार और अर्थपूर्ण है.

    यहाँ जो भुजंग का रूप दिखा वो अनूठा है.

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  23. हाँ बिलकुल हमारे नेताओं को झुकना नहीं चाहिए चाहे वो झुकना किसी भी वजह से हो । सिर्फ इश्वर के सामने झुकना चाहिए और मौत से नहीं डरना चाहिए क्यूंकि वह तो आणि ही है ।

    मिनिस्टर का लड़का फ़ैल हो। क्या वो मिनिस्टर उसे गोली मार देगा ? क्लिक कीजिये और पढ़िए पूरी कहानी और एक टिपण्णी छोड़ देना

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  24. ये युगल जोड़ी जब से बनी है तब से कमाल पे कमाल और धमाल पे धमाल करती जा रही है.
    @ तिलक जी,
    भले सरहदों में बँटी हुई है ज़मीन हिन्‍द औ पाक की
    उठे थाप चंग की उस तरफ़ तो इधर भी बजता मृदंग हो।
    ये शेर बेहद पसंद आया.
    ये शेर सीधे दिल तक गया है...............वाह वा
    मेरे दोस्‍त सरहद पार के, तुझे दे रहा है सदाऍं दिल,
    मेरे दिल में जोश हो ‘सिंध’ का तेरे दिल में प्‍यार की ‘गंग’ हो।

    @ नीरज जी,
    "है जो मस्त अपने ही हाल में, कोई फिक्र........" वाह वा
    "वही रंजिशें वही दुश्मनी, है मिला ही क्या..............." कई सारी बातों का निचोड़ एक शेर में लाके रख दिया है आप ने.
    आखिरी शेर में आप की मांगी हुई दुआ ज़रूर क़ुबूल हो.........आमीन

    "जो झुके नहीं किसी खौफ से, कभी मौत से वो डरे नहीं
    ऐ खुदा दे मुल्क को रहनुमा, जो दिलेर और दबंग हो"

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  25. तिलकराज जी और नीरज जी की गज़लों को पढ़ना ही अपनी आप में सुखद अनुभूति है...
    और विलंब से आने के लिए...क्या कहा जाए?
    कुछ तो मजबूरियां रही होंगी....
    सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  26. तिलक जी ने जो सरहद पार के अंजाने दोस्त को आवाज़ दी है, वो बहुत दूर तक और देर तक रहने वाली है

    और नीरज जी....! मुझे बस संदली हवाओं में भटकते भुजंग दिख रहें हैं और कुछ नही...!

    वाह वाह वाह वाह...!

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  27. तिलक जी ने जो सरहद पार के अंजाने दोस्त को आवाज़ दी है, वो बहुत दूर तक और देर तक रहने वाली है

    और नीरज जी....! मुझे बस संदली हवाओं में भटकते भुजंग दिख रहें हैं और कुछ नही...!

    वाह वाह वाह वाह...!

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