शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

चलो सब के हक में दुआ करें, चलो दुश्मनों से वफ़ा करें, नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो. आइये आज से शुरू करते हैं नव वर्ष का तरही मुशायरा ।

वैसे तो ये मुशायरा सोमवार से ही प्रारंभ हो जाना था लेकिन नहीं हो पाया तो उसके पीछे कई सारे कारण हैं । सबसे पहला कारण तो ये कि शिवना के आधार स्‍तंभ श्री रमेश हठीला जी जो कि इन दिनों हैदराबाद में अपना इलाज करवाने गये हैं उनके स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर एक गंभीर समाचार मिला जो कि मन को दुखी कर गया । किन्‍तु कल जो समाचार मिला वो कुछ राहत देने वाला था । और उसी के कारण आज तरही को लिखने की हिम्‍मत कर पा रहा हूं । दूसरी बात ये कि इन दिनों शहर में म्‍यूनिसिपल चुनाव चल रहे हैं । कल वोटिंग हो गई है । कई सारे मित्र चुनाव लड़ रहे थे सो मित्रों के लिये व्‍यस्‍तता बनी हुई थी । तीसरा कारण ये कि मेरे शहर ने पिछले दिनों इतिहास में पहली बार शून्‍य से नीचे का तापमान देखा जब तापमान शून्‍य से दशमलव तीन डिग्री नीचे ते पहुंच गया । खेतों में बर्फ जम गई, पक्षी मर गये और जाने क्‍या क्‍या हुआ । कड़ाके की ठंड ने सब कुछ रोक दिया है । माइनस0.3 डिग्री तापमान वो भी सीहोर में, ऐसा कभी नहीं सोचा था लेकिन हो गया ।

मुशायरे से पहले एक अनुरोध सब लोग श्री रमेश हठीला जी के लिये दुआ करें कि वे स्‍वस्‍थ होकर जल्‍द घर लौटें, कल रात उनके स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में जो सकारात्‍मक समाचार मिला है वो और सकारात्‍मक हो ।

hathila

इस बार का तरही मुशायरा कुछ खास है । खास इसलिये कि इस बार सारी ग़ज़लें यथा रूप का मतलब कि जैसी आईं हैं उनको उसी प्रकार दिया जा रहा है । बहर या कहन में कहीं कोई छेड़ छाड़ नहीं की जा रही है ।ऐसा आप सब लोगों के अनुरोध पर किया जा रहा है । वैसे भी तरही का ये क़ायदा होता है कि उसमें ग़ज़लें उसी तरह प्रस्‍तुत की जाती हैं जिस प्रकार आती हैं । सो इनको हम उसी प्रकार सुनेंगें । और हां सारे शायर अब परिचित हैं सो परिचय नहीं केवल फोटो । और मेरा काम होगा प्रस्‍तुतिकरण का आपका काम होगा टिप्‍पणी का । टिप्‍पणी मेरी नहीं होगी ।

नव वर्ष तरही मुशायरा

DSC_6432

( चित्र श्री बब्‍बल गुरू द्वारा )

नये साल में नये गुल खिलें नई खुश्‍बुएं नये रंग हों

नये साल में नये गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो

आज हम नये साल की शुरूआत कर रहे हैं दो एक से शायरों से । एक से इसलिये कि ये बहुत ही गुणी शायर हैं । नये तरीके से अपनी बात कहते हैं । मुस्‍तफा माहिर और डा आज़म का नाम हम सबके लिये अपरिचित नहीं है सो इनका परिचय नहीं दूंगा सीधे सुनें इनकी ग़जल़ें ।

mustafa1 hussain

मुस्तफा माहिर

ये भी है कि राह का हुस्न सब, कोई रास्ते का ही संग हो

प ये शर्त भी है निगाह को उसे देख पाने का ढंग हो.

है कमाल तेरी निगाह में, मैं सदा से हूँ इसी चाह में,

मेरी जिंदगानी के फूल पर तेरी चाहतों का ही रंग हो.

मैं हूँ बेहिसी के जहान में, मेरी चाह! रख तू ये ध्यान में,

मेरी सोच की कोई शक्ल हो, मेरे अश्क का कोई रंग हो.

जो कि आँधियों में भी डट सके, जो कभी किसी से न कट सके,

तेरे क़ल्ब का जो छुए फलक , मेरी डोर में वो पतंग हो.

ये सियासतों की हैं कोशिशें, ये सियासतों की हैं ख्वाहिशें,

किसी बात को कोई तूल दे, किसी बात पर कोई जंग हो.

कभी रिश्ते याँ जो बनाईये, तो वो दूर ही से निभाइए,

ये मकां जो आगे बढा लिए, तो गली यकीन है तंग हो.

तुझे वक़्त का भी ख़याल है? अभी चाहतों पे ज़वाल है,

ये न हो जो मुझपे गुज़र गया, वो ही हादसा तेरे संग हो.

तेरी रौशनी के दयार का, मैं हूँ मुन्तजिर तेरे प्यार का,

मुझे इस तरह से नवाजना, जो भी देख ले मुझे, दंग हो.

सभी मुश्किलों को कुबूल कर, मैं भी चल पढ़ा हूँ ये भूल कर,

मेरे रास्तों में बिछी हुई किसी हादसे की सुरंग हो.

चलो सब के हक में दुआ करें, चलो दुश्मनों से वफ़ा करें,

नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो.

ajam ji1

डॉ मोहम्‍मद आज़म

कोई यार हो, कोई ख्‍़वाब हो, कोई याद तो मिरे संग हो

मैं उदास हूं, मैं निराश हूं, मिरी जिंदगी में भी रंग हो

रहें साथ साथ यहां सभी, हैं खुदा के बंदे ही जब सभी

न कोई यहां पे दबंग हो, न कोई किसी से भी तंग हो

उसे आज़मा के भी देख ले, तिरा जिस पे अंधा यक़ीन है

तिरा दोस्‍त ही तिरी आस्‍तीं में छुपा हुआ न भुजंग हो

न मलाल हो, न ही रंज हो, नये साल में गये साल का

नई मंजिलों की हो जुस्‍तजू, नया जोश और उमंग हो

कहें 'आज़म' आप ग़ज़ल कोई, रहे आपको ये ख़याल भी

नई फिक्र हो, नई सोच हो, नया रंग हो, नया ढंग हो

तो आनंद लीजिये इन दोनों शायरों की ग़ज़लों का और इंतजार कीजिये अगले अंक का । नया साल शुरू हो गया है सो आप सब को नये साल की मंगल कामनाएं ।

29 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन आग़ाज़ के लिये बधाई,
    मुस्तफ़ा साहब -मेरी सोच की कोई शक्ल हो मेरे अश्क का कोई रंग हो व
    डा:आज़म साहब की -नई मन्ज़िलों की हो जुस्तजु, नया जोश और उमंग हो।

    मुझे ये दोनों शे'र बहुत ही पसंद आये।

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  2. श्री रमेश हठीला जी शीघ्र ही स्वस्थ होकर लौटें।

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  3. इंतज़ार की घड़ियाँ समाप्त हुईं! :)
    रमेश जी के स्वास्थ्य लाभ के लिए हमारी प्रार्थनाएं भी साथ हैं.

    मुस्तफा जी को पहली बार पढ़ रहा हूँ. बड़े अच्छे शेर निकाले हैं. आज़म जी की गज़ल भी बहुत बढ़िया है. बधाई.

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  4. आदरणीय रमेश हठीला जी के लिए मंगलकामनाएं !!
    --
    तरही का आगाज़ शानदार है. दोनों ही शायरों ने अपने फ़न का मुजाहरा किया है.

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  5. sसब से पहले तो रमेश हठीला जी के स्वास्थ्य के लियेभगवान से दुआ करती हूँ कि उन्हें जल्दी से स्वस्थ कर हमारे बीच भेजें। मुस्तफा माहिर जी और डा. आजम जी की गज़लें पढ कर हैरान हूँ। सच कहूँ ते मै इन गज़लों पर कमेन्ट देने के लायक नही हूँ। इतनी खूबसूरत और लाजवाब गज़लों के लिये दोनो को बहुत बहुत बधाई।
    मुस्तफा जी के ये शेर---
    जो आँधियों मे भी डट सके-----
    ये सियासतों की हैं कोशिशें----
    ये तो केवल कोट करने के लिये हैं वर्ना हर एक शेर दिल को छूता हुया है
    ड. आजम जी के ये शेर --
    रहें साथ साथ यहाँ सभी----
    न मलाल हो न ही रंज हो---
    नये साल के लिये सुन्दर सन्देश। ड.. साहिब की उस्तादना गज़ल लाजवाब है। बधाई और हमे पढवाने के लिये सुबीर जी का धन्यवाद। अगली कडी का इन्तजार। शुभकामनायें।

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  6. ख़ुदा करे रमेश जी जल्द अज़ जल्द सेहतयाब हों (आमीन)
    दोनों ही ग़ज़लें बहुत ख़ूबसूरत हैं
    ये सियासतों की हैं................
    बहुत उम्दा माहिर साहब

    मक़ता बहुत ख़ूबसूरत है आज़म साहब

    ख़ूबसूरत आग़ाज़ मुबारक हो सुबीर जी

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  7. सबसे पहले तो हठीला जी के जल्द स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ...मैंने पहले भी कहा था मुझे इश्वर से चमत्कार की आशा है...और देखिये आपने चमत्कार की खबर दे दी...वो शीघ्र घर लौटें बस इसी समाचार का इन्तेज़ार है.

    आज़म साहब पुराने अज़ीज़ हैं और उनकी ग़ज़लें पढ़ने का सौभाग्य आपके माध्यम से पहले भी मिल चूका है...बेहतरीन शायरी करते हैं और इस बार भी उन्होंने अपनी कलम का लोहा एक बार फिर मनवाया है.
    "तेरा दोस्त ही..." मिसरे में भुजंग का प्रयोग कमाल का है और दर्शाता है के वो किस पाए के शायर हैं.

    मुस्तफा माहिर साहब की शायरी से रूबरू होने का मौका पहली बार मिला है और उन्होंने ने साबित कर दिया है के उनके नाम में "माहिर" लफ्ज़ क्यूँ जुड़ा हुआ है...
    "मैं हूँ बेहिसी के जहान में..."
    "जो कि आँधियों में भी..."
    " कभी रिश्ते याँ जो..."
    जैसे शेर कोई माहिर ही कह सकता है. मेरी दिली दाद उनतक पहुंचा दीजियेगा.

    इस बार की तरही के काफिया में बहुत ज्यादा लफ्ज़ ढूँढने मुश्किल हैं इसलिए देखना ये है के एक जैसे काफियों से कैसे अलग अलग रंग के शेर पढ़ने को मिलते हैं.

    आगाज़ तो अच्छा है...अंजाम हमें पता है (खुदा से पूछने कि जरूरत नहीं )

    नीरज

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  8. चलते चलते: सिहोरे में पारा शून्य के नीचे चला गया याने अब कभी भी बर्फ गिरने कि सम्भावना हो सकती है...बर्फ़बारी कि सूचना मोबाइल पर दीजियेगा ताकि तुरंत वहाँ देखने पहुंचा जाए...कौन शिमला मनाली भीड़ में जाए बर्फ देखने जब अपने सीहोर में वो उपलब्ध हो रही हो तो...प्रभु तेरी लीला अपरम्पार...लेकिन प्रभु को तब मानें जब वो खोपोली में बर्फ गिरा दे...यहाँ तो पारा पच्चीस तीस के बीच चल रहा है...मौसम सुहावना है चले आईये...

    बब्बल गुरूजी ने गुलाबों की बेहद खूबसूरत फोटो खींची है...मेरी और से उन्हें बधाई दीजियेगा...

    नीरज

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  9. रमेश भाई के लिये दुआ:
    ऐ मेरे खुदा, मेरी ये दुआ, तेरी आस्‍तॉं में कुबूल हो
    रहें स्‍वस्‍थ, भाई रमेश जी, किसी रोग से नहीं तंग हों।

    ग़ज़ल, संवाद का ही स्‍वरूप है, इसलिये मैं शेर की धारियॉं गिनने में विश्‍वास नहीं रखता, मुझे बोलते हुए शेर पसंद हैं; और दोनों ग़ज़लों में अश'आर बहुत खूबसूरती से इसे निबाह रहे हैं।

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  10. भगवान् जल्दी ही हठीला जी को स्वस्थ लाभ दे और वो सबके बीच आयें ... सीहोर में मीनास .३ डिग्री ... लगता है बर्फ के आने की दस्तक है ...

    बहुत धमाकेदार शुरुआत है तरही की ... इस बार तो लग रहा है कमाल होने वाला है ... मुस्तफा साहब का शेर "ये सियासतों की हैं कोशिशें ..." बहुत ही कमाल है ...
    और आज़म साहब का शेर .. न मलाल हो न ही रंज हो ... उनके तेवाव से परिचय करा रहा है ...
    आगे आगे और मज़ा आने वाला है ..

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  11. वाह! क्या शुरुआत है!कमाल के कलाम है!वाह! वाह!

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  12. सबसे पहले ईश्वर से प्रार्थना कि आदरणीय रमेश हठीला जी को यथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें| ठंडी इस बार पूरे देश में ही महसूस की जा रही है पंकज भाई| रण में होने के कारण सीहौर की हालत हम समझ सकते हैं| बहरहाल एक और मुशायरे के लिए बधाई स्वीकार करें|

    माहिर भाई और आज़म भाई को बहुत बहुत बधाई| माहिर भाई के ये शे'र / मिसरे काफ़ी दिलचस्प लगे:-
    है कमाल तेरी निगाह में................
    डोर पतंग..............
    गली यकीन है तंग...........
    मुझे इस तरह से नवाजना...........

    आज़म भाई के ये शे'र / मिसरे बेहद खूबसूरत लगे:-
    मेरी जिंदगी में भी रंग हो............
    न कोई यहाँ पे दबंग हो...........
    खास कर मकते में आज़म भाई ने लीक से हट कर चलने वाले तमाम तरक्की पसंद लोगों के दिल की बात कह दी है| बहुत बहुत बधाई आजम भाई| परंतु इस पूरी ग़ज़ल में तरही का मिसरा नहीं मिला|

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  13. ईश्वर से यही प्रार्थना है कि आदरणीय रमेश हठीला जी को यथा शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें| बहुत ही बेहतरीन शुरुआत हुई है इस मुशायरे की। माहिर भाई और आजम भाई को बहुत बहुत बधाई

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  14. हठीला जी को कुछ नहीं होगा। देखियेगा, अभी वो हँसते-मुस्कुराते वापस आयेंगे और आप दोनों की जोड़ी फिर से कहकहे लगायेगी। शेष, ये नया साल आपकी सारी दुश्वारियों को दूर करे...

    शुभ-शुभ करके मुशायरा शुरू हुआ। आज़म साब की तो बात ही अलग है। मेरी जिंदगी में भी रंग हो वाला शेर खूब भाया। ...और उस भुजंग काफ़िये का इस्तेमाल तो हैरान कर गया।

    माहिर साब की ग़ज़ल बता रही है कि वो कितने मंजे हुये शायर हैं। गली तंग वाले शेर पे उनको खूब सारा दाद अलग से।

    मेरे ख्याल से गुरूदेव, हमजैसे नौसीखुओं की तरही में कमियाँ नीरज जी और तिलक जी और अन्य तो टिप्पणी के जरिये बता ही सकते हैं, यदि सारी ग़ज़लें लग रही हैं यहाँ तो।

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  15. श्री रमेश हठीला के शुभ स्वस्थ के लिए प्रथाओं में शामिल नव वर्ष की शुभकामनयें भी ज़रूर रंग लाएगी.
    ये नया साल आपकी खुशिओं में इजाफा लाये इसी कमान के saath...
    नए साल में जो हो शुभ हो
    न किसी खशी में भी भंग हो

    मेरी सोच की कोई शक्ल हो मेरे अश्क का कोई रंग हो व
    डा:आज़म साहब की ईनेदारी की मिसाल है..नई मन्ज़िलों की हो जुस्तजु, नया जोश और उमंग हो।वाह!!
    मुस्तफा साहब का शेर "ये सियासतों की हैं कोशिशें ..." अपने आप में एक सशक्त अभिव्यक्ति है,
    साल की शुरोवात ज़बरदस्त हस्ताक्षरों से एक आला आहाज़ है
    दाद कबूल हो !

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  16. रमेश जी को शीघ्र स्वास्थ लाभ हो ईश्वर से यहीं कामना है..रही बात तरही मुशायरा की तो वाकई आगाज़ बेहतरीन है....माहिर जी को पहली बार पढ़ा कमाल के शेर पेश किए हैं आपने...आज़म जी के तो कहने ही क्या हमेशा की तरह लाज़वाब....आगे बढ़ता हुआ बढ़िया मुशायरा...

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  17. हमारे हठीला जी पूरी तरह से स्वस्थ होकर लौटेंगे , कुछ नहीं होगा उन्हें ! नए साल पर सभी को एक बार फिर से ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं !
    डा. आज़म साब को पहले भी सुनता रहा हूँ और उनकी गजलियत के बारे में क्या कहने ! भुजंग वाला काफिया वाकई चौकाने वाला था !
    मुस्तफा जी के बारे में बहुत सुना था , वेसे पढ़ा तो पहले भी था मगर इस बारी के शे'र वाकई शेर हैं , कमाल के शे'र हैं सभी ... ख़ास तौर से , तेरी रौशनी के दयार का .. वाले शे'र ने झुमा दिया ! इस शे'र पर अनेको शुभकामनाएं !

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  18. हठीला जी के स्वस्थ होने की खबर सुन के थोड़ी राहत महसूस हुई, ईश्वर उन्हें जल्द ही अच्छा कर देगा.
    तरही मुशायेरे का आगाज़ हुआ है और हर बार की तरेह ज़ोरदार अंदाज़ में. जब मिसरा दिया गया था तो काफी मुश्किल लग रहा था और सच में था भी मगर आज इन दोनों हुनरमंद शायरों के अशआरों को देख के ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा, देखिये कितनी खूबसूरती से शेर निकाले हैं.

    @ मुस्तफा माहिर,
    मतले से शुरू कर के गिरह तक हर शेर कमाल है, मतला बेहद खूबसूरत है, काफिये को इतना अच्छा निभाया है और साथ में जो बात कही है शेर में और जिस अंदाज़ में मतला बना है वो उस्तादों से कम नहीं है.
    हर एक काफिया इतनी अच्छे से निबाह किया है चाहे वो रंग हो......"है कमाल तेरी निगाह में........." में हो या फिर "मैं हूँ बेहिसी के जहान में.........." हो.
    पतंग काफिया का बहुत खूबसूरत इस्तेमाल किया है,"................मेरी डोर में वो पतंग हो"
    "ये सियासतों की हैं कोशिशें............", वाह-वा
    इस शेर के बारे में क्या कहूं दोस्त............गले लग जा

    कभी रिश्ते याँ जो बनाईये, तो वो दूर ही से निभाइए,

    ये मकां जो आगे बढा लिए, तो गली यकीन है तंग हो.


    अभी पिछले शेरों का खुमार कम ना हुआ थ कि ये
    सभी मुश्किलों को कुबूल कर, मैं भी चल पढ़ा हूँ ये भूल कर,
    मेरे रास्तों में बिछी हुई किसी हादसे की सुरंग हो
    .................बेमिसाल कहन
    गिरह भी बहुत उम्दा बाँधी है.
    तरही की पहली ग़ज़ल होने की पूरी हक़दार है ये ग़ज़ल.

    @ आज़म साहेब,
    मतला क्या खूब कहा है,

    कोई यार हो, कोई ख्‍़वाब हो, कोई याद तो मिरे संग हो

    मैं उदास हूं, मैं निराश हूं, मिरी जिंदगी में भी रंग हो
    "उसे आज़मा के भी देख ले, तिरा ............." में भुजंग काफिये का इतना सुन्दर प्रयोग........वाह-वा
    ये शेर तो जबरदस्त कहा है,
    "न मलाल हो, न ही रंज हो, नये साल में गये साल का..........."
    गिरह, मक्ता उम्दा........बेहद उम्दा

    कहें 'आज़म' आप ग़ज़ल कोई, रहे आपको ये ख़याल भी

    नई फिक्र हो, नई सोच हो, नया रंग हो, नया ढंग हो

    बधाई स्वीकार करें.

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  19. जो कि आँधियों में भी डट सके, जो कभी किसी से न कट सके,
    तेरे क़ल्ब का जो छुए फलक , मेरी डोर में वो पतंग हो.

    ये सियासतों की हैं कोशिशें, ये सियासतों की हैं ख्वाहिशें,
    किसी बात को कोई तूल दे, किसी बात पर कोई जंग हो.

    कभी रिश्ते याँ जो बनाईये, तो वो दूर ही से निभाइए,
    ये मकां जो आगे बढा लिए, तो गली यकीन है तंग हो.

    सभी मुश्किलों को कुबूल कर, मैं भी चल पढ़ा हूँ ये भूल कर,
    मेरे रास्तों में बिछी हुई किसी हादसे की सुरंग हो.

    चलो सब के हक में दुआ करें, चलो दुश्मनों से वफ़ा करें,
    नए साल में नए गुल खिलें, नई हो महक, नया रंग हो.

    मुस्तफ़ा जी कमाल कर दिया है ये शेर तो इतने पसन्द आये हैं कि कई कई बार पढा

    जिस अंदाज़ में आपने काफ़ियाबंदी की है बय यही शब्द ध्यान में आता है

    ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद

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  20. आजम जी,

    उसे आज़मा के भी देख ले, तिरा जिस पे अंधा यक़ीन है
    तिरा दोस्‍त ही तिरी आस्‍तीं में छुपा हुआ न भुजंग हो

    न मलाल हो, न ही रंज हो, नये साल में गये साल का
    नई मंजिलों की हो जुस्‍तजू, नया जोश और उमंग हो

    कहें 'आज़म' आप ग़ज़ल कोई, रहे आपको ये ख़याल भी
    नई फिक्र हो, नई सोच हो, नया रंग हो, नया ढंग हो

    ये तीन शेर बहुत पसन्द आये और भुजंग काफ़िया बहुत पसन्द आया

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  21. हठीला जी,

    आप से पहली बार गुरु जी के आफ़िस में मिला था और फ़िर घर में आपने बैठक जमाई थी, तब ही आपके अंगूठे की चोट पर मैने कहा था इस पर विशेष ध्यान दें शुगर के पेशेन्ट को कोताही नहीं बरतनी चाहिये
    और आपने कहा
    ये मुई उंगली की चोट मुझ हठीले को क्या रोकेगी
    और फ़िर आपका ठहाका

    आपका वो ठहाका मुझे अब तक याद है
    बहुत जल्द हम सब सिहोर में फ़िर से मिलेम्गे और बैठक जमेगी
    बस आप जल्दी से स्वस्थ हो जाईये

    आमीन

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  22. 'माहिर' जी ने बहुत बढ़िया शेर कहें हैं..........सबसे पसंदीदा ये लगा :

    "मैं हूँ बेहिसी के.........."


    आज़म जी की ग़ज़ल का मक़ता बहुत अच्छा लगा , उन्होंने सचमुच 'नयी सोच' 'नया ढंग' का इस्तेमाल किया है



    कहें 'आज़म' आप ग़ज़ल कोई, रहे आपको ये ख़याल भी
    नई फिक्र हो, नई सोच हो, नया रंग हो, नया ढंग हो

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  23. bahut bahut shukriya ap sab ka dr sahab ne bhi bahut acche sher nkaale hai. khuda se dua hai htheela ji jaldi hi theek honge

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  24. आनन्द आ गया शुरुवात में ही.



    रमेश हठीला जी शीघ्र ही पूर्ण स्वस्थ होकर हमारे बीच अपने गीत गाते लौटें।

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  25. दोनों ही गज़लों का एक एक शेर अपने आप में मुकम्मल गज़ल का असर लिये है, आदरणीय रमेशजी के स्वास्थ्य लाभ के लिये शुभकामनायें.
    आप विवरण भेजें ,इसके लिये याद दिला रहा हूँ

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  26. शुरुआत ही उस्तादों से ???

    आज़म जी को आदाब ! उनके बारे में क्या कहूँगी ?

    फिर भी मतला और उसे आजमा के भी देख ले.... याद रहने वाले शेर हैं

    मुस्तफा जी को शायद पहली बार पढ़ रही हूँ, पर गज़ल बता रही है कि वो कतने पुराने लिक्खाड़ होंगे।

    उनका सुरंग वाला शेर और उनकी गिरह....! अगर सारे शेर ९५ अंक के हैं, तो ये दोनो ९९ अंक के।

    (मेरे अनुसार)

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  27. शुरुआत ही उस्तादों से ???

    आज़म जी को आदाब ! उनके बारे में क्या कहूँगी ?

    फिर भी मतला और उसे आजमा के भी देख ले.... याद रहने वाले शेर हैं

    मुस्तफा जी को शायद पहली बार पढ़ रही हूँ, पर गज़ल बता रही है कि वो कतने पुराने लिक्खाड़ होंगे।

    उनका सुरंग वाला शेर और उनकी गिरह....! अगर सारे शेर ९५ अंक के हैं, तो ये दोनो ९९ अंक के।

    (मेरे अनुसार)

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  28. शुरुआत ही उस्तादों से ???

    आज़म जी को आदाब ! उनके बारे में क्या कहूँगी ?

    फिर भी मतला और उसे आजमा के भी देख ले.... याद रहने वाले शेर हैं

    मुस्तफा जी को शायद पहली बार पढ़ रही हूँ, पर गज़ल बता रही है कि वो कतने पुराने लिक्खाड़ होंगे।

    उनका सुरंग वाला शेर और उनकी गिरह....! अगर सारे शेर ९५ अंक के हैं, तो ये दोनो ९९ अंक के।

    (मेरे अनुसार)

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