पिछली बार का तरही मुशायरा काफी शानदार रहा है और उसके बाद से ही ग़ज़ल की कक्षाओं में कुछ सुस्ती आ गई है । किसी भी सफल आयोजन के बाद ऐसा होता ही है कि कुछ दिनों के लिये मन कुछ करने को नहीं होता है । ग़ज़ल की कक्षाओं में वैसे तो हम काफी कुछ काम करते ही रहते हैं लेकिन फिर भी कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि अप्रत्यक्ष की जगह पर प्रत्यक्ष रूप से कार्य करना चाहिये । वैसे तरही मुशायरा एक बहुत ही अच्छा तरीका होता है अपने आप को निखारने का । अलग अलग बहरों पर काम करते समय हम बहुत कुछ सीख जाते हैं उन बहरों के बारे में । दूसरा ये कि जब हम दूसरों को अच्छे शेर निकाल के लाते देखते हैं तो हमें भी लगता है कि उफ हम क्यों नहीं सोच पाये इस एंगल से । वैसे भी ग़ज़ल की कक्षाओं में हम हर बार एक नयी बहर पर काम कर रहे हैं और उस बहर की उप बहरों के बारे में भी जानने का प्रयास करते हैं । हम अब तक काफी बहरों पर काम कर चुके हैं तथा अभी भी काफी बहरें शेष हैं । मेरे विचार में तरही मुशायरे के माध्यम से बहरों के बारे में जानने का ये कार्य ज्यादा बेहतर है फिर भी आप सबके विचार आमंत्रित हैं कि आप क्या चाहते हैं । यदि आप चाहें तो तरही को बंद करके सीधे सीधे कक्षाओं के माध्यम से भी कार्य किया जा सकता है ।
खैर 2009 भी बीत रहा है और देहरी पर आकर खड़ा हो रहा है 2010 । साल बीतते रहते हैं और नये साल आते रहते हैं । ऐसा लगता है कि अभी तो आया था 2009 और इतनी जलदी बीत भी गया । दिसंबर के भी सात दिन बीत गये और अब केवल 23 दिन बाकी हैं वर्ष के समापन में । पृथ्वी ने अपना चक्र पूरा भी कर लिया और हमारे कई वे सारे काम जो हमने 2009 में करने के सोचे थे अभी अधूरे ही हैं । 2010 के स्वागत के लिये जनवरी के प्रथम दिन से ही तरही मुशायरे का आयोजन किया जायेगा । अनुरोध है कि अंतिम समय में भेजने की प्रतीक्षा न करें । दीपावली में भी ये ही हुआ कि कई लोगों ने तरही की अंतिम किश्त लगने के बाद भी ग़ज़लें भेजीं, जिनको शामिल करना फिर संभव नहीं था ।
इस बार के तरही के लिये बहर तो पूर्व में ही बताई जा चुकी थी । मेरी सबसे पसंदीदा बहर बहरे मुतक़ारिब । और उसमें भी मुसमन सालिम बहर । इसी बहर पर मिसरा बनाने का प्रयास कर रहा थ नये साल को लेकर । कुछ सूझ नहीं रहा था । तभी डॉ आज़म का आगमन हुआ और उनको समस्या बताई गई । कुछ देर की माथा पच्ची के बाद उन्होंने ही मिसरा बना दिया । न जाने नया साल क्या गुल खिलाए मिसरे को लेकर फिर दोनों ने विचार किया तो निर्णय लिया कि इसको ग़ैर मुरद्दफ ही जाने देते हें । अर्थात बिना रदीफ की ग़ज़ल जिसमें केवल काफिया है खिलाए । अर्थात आए की ध्वनि पर ही काम करना है । ये बात बताने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिये कि यदि आपने मतले में मिलाए और खिलाए जैसा काम्बिनेशन ले लिया दोनों मिसरों में तो फिर आपका काफिया लाए हो जाएगा ।
बहरे मुतक़ारिब मुसमन सालिम का वज़न 122-122-122-122 होता है जिसे हम फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन-फऊलुन या सामान्य भाषा में ललाला-ललाला-ललाला-ललाला कह सकते हैं । मुगले आज़म का गीत मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोए तथा नमामी शमीशान निर्वाण रूपं तो हम सबके लिये परिचित हैं हीं । मुहब्बत ( ललाला) की झूठी ( ललाला) कहानी ( ललाला) पे रोए ( ललाला)
पहले सुनिये शिव रुद्राष्टक नमामी शमीशान निर्वाण रूपं श्री रमेश भाई ओझा जी की आवाज़ में
रविकांत ने इस पर कई उदाहरण छांट के भेजे हैं ये सब कुछ रविकांत के सौजन्य से हैं आपकी सुविधा के लिये ताकि आपको बहर समझ में आ जाये । उदाहरणों के लिये धन्यवाद देना हो तो रवि को ही दें
१. तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं ,वफ़ा कर रहा हूं वफ़ा चाहता हूं २. तुम्ही मेरी मंदिर तुम्ही मेरी पूजा, तुम्ही देवता हो, तुम्ही देवता हो, ३. बहुत देर से दर पे आंखें लगी थीं, हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी, ४. तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं, कि खुद अपनी हस्ती मिटाने चला हूं, ५. यूं ही दिल ने चाहा था रोना रुलाना, तेरी याद तो बन गई इक बहाना, ६. चुरा ले न तुमको ये मौसम सुहाना, खुली वादियों में अकेली न जाना ,७. ये माना मेरी जां मुहब्बत सज़ा है, मज़ा इसमें इतना मगर किसलिये है, और इसी धुन पर ये भजन भी जो हिंदी प्रदेशों में अच्छा लोकप्रिय है- अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो, कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है, भटकते-भटकते न जाने कहां से, तुम्हारे महल के करीब आ गया है
यह छंद हिंदी में भी समादृत है, कुछ उदाहरण-
८. आचार्य शंकर का चर्चित श्लोक-
न पुण्य़ं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मंत्रो न तीर्थं न वेदाः न यज्ञाः
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता, चिदानंद रूपः शि्वोऽहं शिवोऽहं
९. शिवाष्टक, जो पंडित जसराज जी की आवाज में यहां उपलब्ध है-
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं, जगन्नाथ्नाथं सदानंदभाजं
भवत्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं, शिवं शंकरं शम्भुमीशानमीडे
और वेद सार शिव स्तोत्र सुनिये श्री रमेश भाई ओझा जी के स्वर में
१०. एक उदाहरण जो संभवतः बच्चन जी की कविता से है-
अकेला चला था अकेला चलूंगा, सफ़र के सहारों न दो साथ मेरा
सहज मिल सके वो नहीं लक्ष्य मेरा, बहुत दूर मेरी निशा का सवेरा
अगर थक गये हो तो तुम लौट जाओ, गगन के सितारों न दो साथ मेरा
तो होमवर्क दिया जा चुका है और अब काम प्रारंभ करने का समय है । उदाहरण इतने सारे दिये जा चुके हैं कि कुछ और बताने की आवश्यकता नहीं है । सब कुछ तैयार है । अब तो आपको जल्दी से अपनी अपनी रचनाएं तैयार करके भेजनी हैं । तो चलिये शुरू करिये होमवर्क ।
आखिर प्रतीक्षा खत्म हुई। इस विस्त्रित जानकारी के लिये बहुत बहुत धन्यवाद । अपने परिवार मे मुझे शामिल करने के लिये तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ। रविकान्त जी का भी धन्यवाद ।ाब आबका ये सबक याद करने च्लती हूँ। शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआदरणीय गुरूवर,
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम,
मुझ जैसे अकिंचन को भी आपने अपनों में शामिल कर लिया, मैं कृतज्ञ हूँ।
सही कहा है कि अब इंतजार की घड़ियाँ खत्म अब तैयारी की बारी है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
मजा आ गया गुरूदेव। वैसे इस उलझन में हूँ कि बगैर रदीफ़ के कार्य मुश्किल होगा या आसान।
जवाब देंहटाएंरवि ने तो पूरा खजाना लुटा दिया है इस बहर पर।
एक-दो जो मुझे याद आते हैं...एक तो मेहदी हसन का गाया "मुझे तुम नजर से गिरा तो रहे हो" और एक मेरा पसंदीदा रफ़ी साब का युगल गीत "वो जब याद आये बहुत याद आये" है।
कार्य शुरु करते हैं। आज एक नये टर्मिनौलोजी से भी परिचय हो गया ।
बहर तो बढ़िया है ... पसंद भी बहुत है मुझे...! अभ बस कुछ बढ़िया लिख भी पाऊँगी या नही यही बात है....!
जवाब देंहटाएंप्रयास जारी है...!
गुरूजी,
जवाब देंहटाएंये हुई ना बात. अब सफ़र सुहाना हो ही जाएगा.
बहुत लाजवाब गुरुदेव ...... कुछ कुछ समझ आती जा रही है मुझे भी बहर की ..........
जवाब देंहटाएंऔर रविकान्त जी ने सच में समा बाँध दिया ...... आनंद आ गया ........
"सत्यं शिवम् सुन्दरम्"
जवाब देंहटाएंजय हो गुरूदेव!
प्रणाम गुरुदेव।
जवाब देंहटाएंबहर पसंद है। प्रयास करते हैं।
तरही में ही कक्षा हो, ये तो बहुत अच्छी बात है।
जवाब देंहटाएंक्या मैं ठीक समझ रही हूँ? - अगर मत्ले में हम ने "बुलाये" और "मिलाये" ऐसे क़ाफ़िये ले लिये तो क़ाफ़िया "आये" हुआ, है न? तो हम आगे के शेरों में "बिताये", "गिराये" आदि क़ाफ़िये इस्तेमाल कर सकते हैं।
सादर
गुरु देव को सादर प्रणाम,
जवाब देंहटाएंबह'र तो मेरी सबसे चाहिती है , मिसरा भी खूब निकला है आपने .. रंग खूब ज़माने वाला है .. बहुतों ने तो लिख के तैयार भी कर लिए होंगे ... मगर गुरु देव मैं क्या करूँ इस बेवजह की मसरूफियत का .. समझ नहीं आरहा ... खैर मैच खेल नहीं पाया तो बौन्द्री लाइन पे खडा होकर मैच का आनंद उठाऊंगा और खूब तालियाँ बजाऊंगा ....
आपके कामनाओं की प्रार्थना के साथ आपको सदर चरणस्पर्श
आपका
अर्श
गुरुदेव आज अभी जयपुर से लौटा हूँ...दिलो दिमाग पर मिष्टी छाई हुई है...उसका सरूर थोडा कम हो...जिसकी सम्भावना कम है...तो कुछ लिखने की सोचूं...वैसे गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल लिखने का आनंद ही कुछ और है...कोशिश करता हूँ...आपने जो उदहारण दिए हैं वो विलक्षण हैं...उन्हीं में डूबा हूँ...
जवाब देंहटाएंनीरज
ई भयल हमार गजलवा :
जवाब देंहटाएं"गवा साल भइयन बहुत गुल खिलाए
कि बाई सुबीरन स रेखा मिलाए"
एक ठो टाफी का दुई टुकड़ा कर खाय लियो :)
शुभाशीष :) :)
१० दिसम्बर
सुबीर जी,
जवाब देंहटाएंशादी की सालगिरह पर हार्दिक शुभकामनाएं!
गुरु जी को शादी की सालगिरह पर हार्दिक शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंसुबीर जी ,
जवाब देंहटाएंशादी की सालगिरह मुबारक हो .....रेखा जी को भी ढेरों शुभकामनाएं .....!!
प्रिय सुबीर जी
जवाब देंहटाएंरेखा जी और आपको शादी की सालगिरह पर मेरी और मेरे परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं.
डॉ. आज़म जी का तरही का मिसरा बहुत ही पसंद आया -
'न जाने नया साल क्या गुल खिलाए' - बहुत ख़ूब!
गैर मुरद्दफ़ की छूट देने से लिखने में थोड़ी और भी आसानी हो जाती है जिससे भावाव्यक्ति में भी आसानी हो जायेगी.
पंडित जस राज जी की आवाज़ ने तो मन्त्रमुग्ध कर दिया. आज शास्त्रीय संगीत में तो पंडित जी का सानी कोई
शायद ही हो. श्री रमेश भाई ओझा जी की आवाज़ भी बहुत अच्छी है.
रविकांत जी के उदाहरणों की खोज सराहनीय है. उन्हें बधाई.
महावीर शर्मा
(मानोशी ने अपनी टिपण्णी में एक प्रश्न पूछा है, उन्हें यही कहाँ चाहता हूँ कि इस पोस्ट के तीसरे पैरे की अंतिम पंक्तियाँ पढ़ें तो
उनका उत्तर मिल जायेगा.)
गुरु जी प्रनाम
जवाब देंहटाएंआपको वैवाहिक वर्षगाठ की हार्दिक बधाई
मिसरा नोट कर लिया है प्रयास करता हू
रवि भाई को विशेष धन्यवाद
वीनसअ केशरी