कई सारे लोगों के मेल मुझे भी प्राप्त हुए हैं और समीर जी को भी प्राप्त हो रहे हैं । दरअसल में समीर लाल जी की लोकप्रियता जिस प्रकार ब्लाग जगत में है उसको देखते हुए ये तो होना ही था । पूर्व में श्री समीर लाल जी ने इसका विमोचन वहीं कनाडा में ही करने का निर्णय लिया था लेकिन फिर बाद में उसका एक अंतरिम विमोचन उन्होंने जबलपुर में संपन्न करने का विचारा और दो दिन पूर्व उसका अंतरिम विमोचन जबलपुर की ब्लागर्स मीट http://sanjusandesha.blogspot.com/ में सम्पन्न हुआ ।
समीर जी का ये काव्य संग्रह उनके एक नये रूप को सामने लाता है । एक ऐसा रूप जो कि गहन है गम्भीर है । जिसमें कहीं हास्य नहीं है । ये पुस्तक उनकी छंदमुक्त कविताओं, गीतों, ग़ज़लों, मुक्तकों और क्षणिकाओं का संचय है । पुस्तक की भूमिका लिखी है वरिष्ठ गीतकार त्रय सर्वश्री राकेश खण्डेलवाल जी, कुंअर बेचैन जी तथा रमेश हठीला जी ने । पुस्तक का आवरण डिजाइन किया है छबी मीडिया के सर्वश्री संजय तथा पंकज जी बैंगाणी जी । ये तो बताने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये कि शिवना प्रकाशन द्वारा इसे प्रकाशित किया गया है । पुस्तक सजिल्द संस्करण में है । पुस्तक का मूल्य 200 रुपये भारतीय मूल्य तथा 15 यूएस डालर है । पुस्तक को श्री समीर लाल जी ने अपनी स्वर्गीय माताजी को समर्पित किया है । पुस्तक में श्री समीर लाल जी का जो रंग देखने को मिलता है वो एक क्षण को ये सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ये वहीं समीर लाल जी हैं उड़नतश्तरी वाले । पुस्तक में शामिल ग़ज़लें तथा मुक्तक श्री समीर जी की सामयिक दृष्टि को बताते हैं ।
बिखरे मोती का मूल्य 200 रुपये है तथा पोस्टल चार्जेस 25 रुपये भारत में कहीं भी के लिये हैं । इस प्रकार कुल 225 रुपये डाक द्वारा मंगवाने हेतु है । इस हेतु या तो भुगतान पंकज सुबीर के नाम से पंकज सुबीर, पी सी लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, न्यू बस स्टेंड, सीहोर, मध्यप्रदेश 466001 मोबाइल 09977855399 पर भेजें अथवा यदि इंटरनेट बैंकिंग या कोर बैंकिंग से भेजना चाहें तो केवल एक मेल subeerin@gmail.com पर कर दें ताकि आपको खाता क्रमांक भेजा जा सके । पुस्तक कोरियर द्वारा भेजी जायेगी तथा मिलने में एक दो दिन का समय लगेगा ।
sir, please give your account no so that i can deposit money and get the book.
जवाब देंहटाएंregards
गुरु देव पाय लागूं ,
जवाब देंहटाएंये पुस्तक सबसे पहले मेरे नाम से बुक होनी चाहिए ,... सबसे पहले मैं इसे लेना चाहूँगा... साथ में श्री समीर लाल जी का हस्ताक्षर भी .. समीर जी को इस पुस्तक के लिए ढेरो बधाई तथा आपका आभार...मैं आज ही कुरिओर करता हूँ...
आपका
अर्श
देश से बाहर भेजने का कुल कितना kharch आएगा pankaj जी और पेमेंट का क्या तरीका है............कृपया बताएं
जवाब देंहटाएंगुरुदेव सूचना के लिए धन्यवाद...किताब भेजने के लिए तैयार रहें...
जवाब देंहटाएंनीरज
@ दिगम्बर:
जवाब देंहटाएंदेश के बाहर भेजने का कुल कितना खर्च आयेगा...
दिल से मांग कर तो देख, लिफाफा पहुँच जायेगा.
--गुरुदेव से मुआफी के साथ.
(दरअसल दिग्मबर हमारे बहुत पुराने मित्र है इसलिये मजाक की बनती है.. :))
सुबीर जी,
जवाब देंहटाएंआज बहुत दिनों के बाद आपका ब्लाग खोला। समीर लाल जी के 'बिखरे मोती' यहां और २ अप्रैल की पोस्ट में देखकर बहुत प्रसन्नता हुई कि यह संग्रह 'शिवना प्रकाशन' द्वारा ही प्रकाशित की गई है। यह देखकरऔर भी सुखद लगा कि इस पुस्तक में उनकी गम्भीर रचनाएं संगृहीत की गई हैं। आपने कालजयी राजकपूर की फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' का ज़िक्र किया है जिसकी छाप दिल में ऐसी अंकित हो गई है कि जब भी कभी किसी सर्कस की बात होती है तो इस फ़िल्म का अंतिम सीन आंखों के सामने आजाता है। यह विडंबना थी कि राज कपूर को समय की अनुकूलता और मिडिया का साथ नहीं मिल सका, लेकिन हमारे 'जोकर' समीर के 'बिखरे मोती' को सभी का साथ और सद्भावनाएं मिल रही हैं - 'शिवना प्रकाशन', पाठक-गण, सही सलाहकार, आप, नारायण कासट जी, रमेश हठीला जी, हरिओम शर्मा जी, पंकज बैंगाणी जी का द्वारा सुंदर आवरण पृष्ठ, कुंवर बेचैन जी जैसे दिग्गज की समीक्षा, कवि राकेश खण्डेलवाल जी की भूमिका और सर्वोपरि समीर जी की काव्यत्मकता की बहुमुखी प्रतिभा का दूसरा पहलू- 'प्रेम कवि' का रूप।
विचारों के बिना भाव खोखले दिखाई देते हैं। मैंने उनका संग्रह अभी पढ़ा नहीं है लेकिन निश्चय से कह सकता हूं कि इस में भावों और विचारों का सुंदर सामंजस्य होगा जिससे यह सारगर्भित संग्रह सिद्ध होगा।
रमेश हठीला जी ने सही कहा है कि नेट पर जिस प्रकार उड़नतश्तरी लोकप्रिय हुई उसी प्रकार साहित्य में बिखरे मोती उसी कहानी को दोहराने जा रही है।
मेरे परिवार और मेरी ओर से 'बिखरे मोती' की सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाओं सहित
महावीर शर्मा
Sameer Bhai
जवाब देंहटाएंAapke dil par to ikhtiyaar hai...........par ye kitaab khareed kar padhna chahta hun.........prakaashak ke dil ko bhi samajhnaa chahta hun.
Vaise agar aap bhej doge apne signature ke saath to vo anmol bhent hogi.....
गुरुदेव जब से आप ये दो मिसरे पढें हैं...कींकर्तव्य विमूड़ हूँ...कैसे आप इन शब्दों और भाव को ले आते हैं अपनी रचना में...समझ नहीं आ रहा..."विलक्षण" शब्द आपकी इस क्षमता के समक्ष अधूरा है...सोच रहा हूँ जिस ग़ज़ल के दो मिसरे इतने कमाल हैं वो ग़ज़ल कैसी होगी...इंतज़ार है...और जो ज्ञान आप बाँट रहे हैं उसे पूरा अपने पास रखने के लिए झोली कम पड़ रही है...
जवाब देंहटाएंनीरज