समीर लाल जी के सामने दुविधा ये थी कि वे अगले सप्ताह वापस कनाडा लौट रहे हैं और वहीं पर बिखरे मोती का विमोचन होना है मई में । लंकिन समस्या ये आ रही थी कि जबलपुर में सब पुस्तक लेना चाह रहे हैं । और एक बार समीर जी के जाने के बाद वहां कौन वितरित करेगा ये समस्या सामने थी । शिवना प्रकाशन के सामने भी ये समस्या आ रही थी कि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में समीक्षा के लिये पुस्तक भेजनी होती है सो उसमें भी विलम्ब हो रहा था । उस पर ये कि कई लोग जो पुस्तक प्राप्त करना चाह रहे थे उनके भी मेल आ रहे थे । इन सभी समस्याओं का समाधान ये निकला कि जबलपुर में ही एक ब्लागर्स मीट में पुस्तक का अंतरिम विमोचन सम्पन्न किया गया । क्या हुआ कैसे हुआ ये तो समीर जी के ब्लाग पर आपको पूरी जानकारी मिल पायेगी मैं तो बस ये शुभ सूचना देना चाहता हूं कि समीर जी की पुस्तक बिखरे मोती का अंतरिम विमोचन हो चुका है । बधाये गाये जाएं ।
तरही को लेकर ये तो मुझे पता था कि थोड़ा मुश्किल है इस बार का मिसरा । मुश्किल दो कारणों से था । आइये उन कारणों की चर्चा की जाये ।
मिसरा तो ये था ' आज महफिल में कोई शम्अ फरोजां होगी'
इसमें रदीफ था होगी और काफिया था आं । अब चर्चा करते हैं कि क्या समस्या थी इस काफिये में । दरअस्ल में पूरा काफिया था फरोजां अर्थात 122 का मात्रा क्रम । इसका मतलब ये हुआ कि आसमां, बागबां, सायबां, जैसे कई सारे काफिये तो हट गये । अब बचे केवल गुरेजां, फरोजां, बयाबां जैसे काफिये जिनके साथ काम करना मुश्किल है । उस पर ये भी कि ये काफिये भर्ती के लग रहे थे । अब बात करते हैं दूसरी समस्या कि रदीफ महोदय हमारी दूसरी समस्या थे । और समस्या थी स्त्रीलिंग होने के कारण । स्त्रीलिंग होने के कारण परेशानी ये आ रही है कि हम जो भी कहते हैं उसे किसी स्त्रीलिंग के संदर्भ मे ही कहा जाना उचित होगा । क्योंकि आखिर में हमको तुक मिलानी है होगी के साथ। बाद में जब मैंने बहुत गौर किया तो पाया कि सचमुच ही कुछ मुश्किल है तो फिर मैंने मिसरा बदलने का निर्णय लिया दो कारणों से पहला तो ये कि मैं स्वयं ही ऐसे शब्दों का विरोधी हूं जिनका अर्थ नीचे देना पड़े और उसके चक्कर में ग़ज़ल का रसभंग ही हो जाये । इस काफिये के साथ हो रहा ये था कि आपको भर्ती के काफिये ही लेने पड़ते । तो काफी सोच समझ के मैंने तय किया कि आदरणीय दीदी नुसरत मेहदी का ही कोई दूसरा मिसरा दूं । तो उनकी ही एक ग़ज़ल का मिसरा यहां पर दे रहा हूं जिसको कि परिवर्तित मिसरे के तौर पर ले लिया जाये । पहले नुसरत मेहदी जी का परिचय दे दूं वे वर्तमान में मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव हैं तथा बहुत अच्छी शायरा हैं । बहुत अच्छी का अर्थ ये कि लिखती भी बहुत अच्छा हैं और गाती तो ऐसा हैं कि मंत्रमुग्घ कर देती हैं । मंच पर चल रही गंदगी से व्यथित रहती हैं तथा मंच को सुधारने के लिये प्रयत्नशील हैं । उर्दू अकादमी की सचिव के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने इतने मुशायरों का आयोजन किया है कि साहित्यिक माहौल पूरे प्रदेश में बना दिया है । अभी कुछ दिनों पूर्व ही उनकी पुस्तक भी आई है जिसका विमोचन दुबई में हुआ था । बहुत जल्द उनकी मीठी आवाज से भी आपका परिचय करवाता हूं ।
नुसरत मेहदी जी
मिसरा
कितनी जानलेवा है दोपहर की ख़ामोशी
( फाएलुन-मुफाईलुन-फाएलुन-मुफाईलुन ) बहरे हजज़ मुसमन अशतर 212-1222-212-1222
बहुत सुंदर और गायी जाने वाली बहर है ये शायरात अक्सर ही इस बहर में लिखती हैं इसकी धुन भी बहुत प्यारी होती है । रदीफ है की खामोशी और काफिया है स्वर अर का अर्थात नज़र, सफर जैसे काफिये ।
हजज़ के बारे में शायद मैं पहले ही कह चुका हूं कि ये सबसे लोकप्रिय बहर है । लोकप्रिय इसलिये की इसकी सालिम और मुजाहिब बहरों में कई कई ऐसी हैं जो कि गाने के लिये होती हैं । खींच कर पढ़ने वाले इन बहरों को बहुत पसंद करते हैं । हजज़ का सालिम रुक्न होता है मुफाईलुन 1222 इस बहर पर हमने कई सारी ग़ज़ले कहीं हैं । और हिंदी के कई सारे कवि भी बहरे हजज़ मुसमन सालिम पर कविताएं लिखते हैं । हजज़ की एक और मुजाहिफ बहर हैं बहरे मुसमन अख़रब मुकफूफ महजूफ जिसका वज़न होता है 221-1222-1222-122 ये नीरज गोस्वामी जी की पसंदीदा बहरों में से है । ये बहर सबसे संकट वाली बहर हैं क्योंकि इसकी कई सारी जुड़वीं बहने और भी मौजूद हैं जिनमें एक दो मात्राओं का ही अंतर होता है । मजे की बात ये है कि ये जो सारी जुड़वी हैं उनको गाने की धुन एक ही है सो वे लोग जो गाकर ग़ज़लें लिखते हैं वे मात खा जाते हैं । मुजारे की बहर है जिसमें 221-2121-1221-212 है अब देखा जाये तो मात्राएं तो वही हैं । केवल क्रम में अंतर है सो कई लोग एक ही ग़ज़ल में एक शेर मुजारे का रख देते हैं और दूसरा हजज़ का । हजज़ की एक और गाई जाने वाली मुजाहिफ बहर है मुसद्दस महजूफ अल आखिर मुफाईलुन-मुफाईलुन-फऊलुन 1222-1222-122 । बहरे हजज़ इस प्रकार से गाने वालों के लिये हमेश पसंदीदा बहर रही है । इस बार का जो मिसरा है वो भी बहरे हजज़ की सबसे ज्यादा गायी जाने वाली बहर का है ।
अगले अंक में जानिये बहरे हजज़ के बारे में और जानकारियां ।
आज का चित्र मेरी बिटिया पंखुरी का
गूरू जी पाय लागूं,
जवाब देंहटाएंबच्चा लिया आपने .. वरना क्या करते कुछ बही नहीं कर पाते..उस मिसरे के साथ मुन्सफी में ... बात ये थी की ग़ज़ल के कहनपे ध्यान ही नहीं रहता बस उसके काफिये के बारे में ही सोचते रहते और धुन्द्ते रहते... नए मिसरे पे थोडा कोशिश करी जा सकती है..मजा आएगा अब इस मिसरे के साथ काम करने में ... जैसा की मुलाक़ात के दौरान आपसे बात हुई थी आपकी बिटिया के बारे में बहोत ही प्यारी है भगवान् इसे हमेशा ही खुशिया दे यही दुआ है...
साथ ही समीर जी को उनके पुस्तक के लिए बधाई तथा ये पुस्तक कैसे ली जाये ... मेरे लिए भी अग्रिम बुकिंग चाहिए और हां साथ में समीर जी का हस्ताक्षर भी चाहिए... ये मेरी दिली खईश है ....
आपका
अर्श
53 साल की उमर में गजलें सुनते कम से कम 40 हो गए हैं। गजल अच्छी लगती है। गणित भी समझ आती है। पर अपुन से फिट नहीं होती। इस लिए अपने लिए नज्म ही अच्छी। वह भी तब जब कोई जरूरी बात कहनी ही हो।
जवाब देंहटाएंवैसे आप गजल सिखा रहे हैं। लिखने वालों को शउर आ जाए वही बहुत है। लोग नागजल को गजल कहना तो बंद करें।
पंकज जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर सूचना..............बधाई आपके माध्यम से समीर जी को
ग़ज़ल की बारीकियों के लिए धन्यवाद,
अभी से लिखना शुरू नए मिसरे पर. बिटिया बहुत प्यारी है............मेरी तरफ से भी गुलाल
समीर भाई व शिवना प्रकाशन को बधाई ! चि. पँखुरी बिटीया की तस्वीर बहुत भाई - आशिष उसे ...
जवाब देंहटाएं- लावण्या
आहह्हा...गुरूदेव जान बच गयी...वैसे तो मैंने परेशां, हैरां और आसां जैसे काफ़िये लेकर काम शुरू कर दिया था, लेकिन यहा~म अपनी इस नयी ड्यूटी में व्यस्तता कुछ इतनी रही है कि वक्त उतना नहीं मिल पा रहा....नये मिस्रे पे अब आसानी हो जायेगी थोड़ी सी,वैसे बहर तो ये भी तनिक मुश्किल ही है...
जवाब देंहटाएंऔर "बिखरे मोती" के लिये कितने का ड्राफ्ट भेजना पड़ेगा?
और "पंखुरी" से पहला परिचय हुआ आज...एकदम से भा गयी
पंखुरी की मुस्कान यूं ही कायम रहे सदैव-सदैव
बहर-हज़ज के इस विस्तृत चरचा पर बहुत-बहुत शुक्रिया गुरू जी
अगली कक्षा का इंतजार है
वाह गुरुदेव आज की आपकी पोस्ट तो खुशियों का खजाना ले कर आयी है...पहली ये की समीर जी की पुस्तक का लोकार्पण हो गया है...याने अब हम भी उसे पढ़ पाएंगे...दूसरी ये की आपने तरही मुशायरे का मिसरा बदल दिया है...याने अब हम भी इसमें शिरकत करने की सोच सकते हैं...और तीसरा ये की आपने अपनी फूल सी बिटिया से मिलवाया है जो जितनी सुन्दर है उतना ही उसका नाम है...इन दोनों बातों के लिए आपको बधाई...
जवाब देंहटाएंनीरज
गुरु जी प्रणाम
जवाब देंहटाएंशिवना प्रकाशन को हार्दिक बधाई
(आपने पिछली पोस्ट में शिवना प्रकाशन के अन्य सदस्यों का भी उल्लेख किया था इसलिए प्रकाशन को बधाई दे रहा हूँ )
समीर जी को भी हार्दिक बधाई
जैसा की आपने कहाँ काफिया फिट नहीं बैठ रहा था (हमें तो उर्दू हिंदी शब्दकोष का ही सहारा था)
देख कर अच्छा लगा की आपने मिश्रा बदल दिया (पिछले मिसरे के अभी एक लाइन भी नहीं लिखी थी)
बहरे हजज की बहरों की जानकारी रोचक रही (इंतज़ार है नियमित क्लास का)
पंखुरी की फोटो देख कर अच्छा लगा (आपके व्यक्तित्व के बारे में और जानने की प्रबल इच्छा है )
नुसरत जी की गजल सुनवाने के साथ साथ अपनी भी कुछ नई गजलें पढ़वाइये (निवेदन है )
आपका वीनस केसरी
समीर जी को बधाई। बहर के बारे में गहरी जानकारी देने का शुक्रिया। तरही के लिये लिखने का मन बन रहा है, बड़ा सुंदर मिस्रा है।
जवाब देंहटाएंसमीर जी को बधाई ... बिटिया की तस्वीर अच्छी लगी ... अच्छी पोस्ट रही।
जवाब देंहटाएंपंखुरी बेटे (बिटिया) की तस्वीर को देखकर दिल से दुआ निकली "चेहरे पे मुस्कान व सतरंगी रंग जीवन मे सदा बिखरे रहें, अपने आस-पास सदा खुशियाँ बिखेरती रहे" ... ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंरंगों से खेलती आपकी बेटी बहुत प्यारी लगी...
जवाब देंहटाएंसमीर जी को ढ़ेरों बधाई आपका आभार...
समीर जी की पुस्तक की एक प्रति मेरे लिये बुक कर दें और कैसे प्रप्त करना है बतायें. पंखुरी की तस्वीर अत्यंत प्यारी है.बहरे हजज तो सच में बहुत मनभावन है.
जवाब देंहटाएंप्रिय गुरु जी
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो समीर जी कॊ बधाइया। शिवना प्रकाशन का अच्छा तोह्फ़ा हम सभी के लिये; मिसरा बदलने के लिये भी शुक्रिया
बिटिया की तस्वीर उसके जितनी ही सुन्दर हॆ,