मित्रों ब्लाग से दूर रहना मुझे भी खल रहा था पर क्या करें होता है कभी कभी कुछ ऐसा कि हम चाह कर भी कुछ नहीं कर पाते हैं और वो ही होता है जो कि होना होता है । खैर अब तो कफद दिनों से सुब्ह की बिजली की कटौती नहीं हो रही है और अगर ऐसा ही रहा तो हम भी वापस अपनी ब्लाग की दुनिया में आ जाऐंगें । 23 जुलाई को एक कवि सम्मेलन और मुशायरे का संचालन करने का मौका मिला । मुशायरे की कुछ विशेषताएं जो कि मेरे लिये आकर्षण का केंद्र थीं वो थी कि पहले तो ये मुशायरा पुष्प की अभिलाषा लिखने वाले कवि दादा माखनलाल चतुवर्पेदी जी के कस्ब्े बाबई में था और फिर दूसरा ये कि ये मेरे एक मनपसंद कवि दादा ब्रजमोहन सिंह ठाकुर की स्मृति में था और तीसरा ये कि इसमें विट्ठल भाई पटेल जैसे कवि और बेकल उत्साही जैसे शायर मौजूद थे । पहले तो संचालन किसी और को करना था लेकिन मुशायरे से एन पहले ही मुझसे कहा गया कि आप चूंकि हिंदी और उर्दू दोनों क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं अत: आप ही करें । ये तो मेरे लिये सोने पर सुहागे की बात हो गई थी । उस मुशायरे का संचालन जिसमें बेकल उत्साही और विट्ठल भाई हों । ब्रजमोहन सिंह जी के नाम से शायद हिंदी कविता के लोग परिचित हों । वे एक अलग ही कवि हुए । जिन्होंने अपनी ही विधा में अपने ही तरीके से कविता लिखीं । उनकी कविता जब जब चढ़ी अधर पर प्याली हर प्याली बदनाम हो गई, एक ऐसी कविता है जो अपने दौर में मंचों पर खूब सुनी जाती थी । उसके अलावा सतपुड़ा की गोरियां और छैला ज्वांर के भी उनकी मशहूर कविताएं हैं । उनका जनवरी में निधन हो गया । मुझे उनका काफी स्नेह मिला और शायद उसका ही परिणाम था कि कार्यक्रम से ठीक पांच मिनट पहले मुझसे कहा गया कि उर्दू के शायर संचालन नहीं करेंगें आपको करना है । खैर जो भी हुआ हो जैसा भी हुआ हो पर ये तो है कि बेकल उत्साही जी को सुनना हर बार ही एक निराला अनुभव होता है । अभी वहां की सीडी नहीं मिली है पर मिलते ही मैं वहां के अंश दिखाने का प्रयास करूंगा । मुशायरा रात भर चला और मुझे लगा कि दादा ब्रजमोहन जी की आत्मा मुझे आशीष देती रही और हौसला बढ़ाती रही । जाने अब वैसे कवि होंगें कि नहीं अब । जल्द ही मैं उनकी कविताएं यहां पर दूंगा ताकि आप भी जान सकें कि बाबई जैसे छोटे से कस्बे ने दादा माखनलाल जी और ब्रजमोहन ठाकुर जैसे कवि दिये हैं। और हां मेरी वेब साइट http://www.subeer.com लांच हो गई है हालंकि अभी अधूरी है पर फिर भी देखें और सलाह दें कि वहां पर और क्या किया जा सकता है ।
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जवाब देंहटाएंसुबीर भाई...ये मेरे लिए बहुत इर्षा का विषय है...आप अकेले अकेले मुशायरे का मजा लेते रहे और हमें भनक तक नहीं होने दी...अब इसकी भरपाई के लिए आप से अनुरोध है की सी.डी. की एक प्रति कोपी कर के मुझे जरूर भेज दें...वरना आप से लड़ने सीहोर आना पड़ेगा...बेकल जी को जयपुर में कई बार रात रात जग कर सुना है..उनका निराला अंदाज और तरन्नुम ऐसा है की सारी रात सुनते जायें तब भी मन नहीं भरता...मेरे पास उनकी शिरकत किए हुए मुशायरे की सी.डी. है लेकिन आप को तब ही भेजूंगा यदि आप मुझे पहले अपने वाले मुशायरे की भेजें. बोलिए है मंजूर?
जवाब देंहटाएंनीरज
नई साईट में आपकी पुरानी गज़लें पढ़ी अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंइस दौर - में इंसान - क्युं बेहतर न - हीं मिलते
रेह्ज़न मि - लेंगे राह - में रहबर न - हीं मिलते
इस ग़ज़ल की बहर जानने की उत्सुकता है बताए कृपा होगी आपने २७ मई की पोस्ट में इसको बहरे रजज मुसमन मुजाहिफ बताया था जो एक मुफ़दर बहर है जो सही भी लगती है लेकिन बाद मे आपने बहर बदल दी ऐसा क्यो?
माखनलाल चतुर्वेदीजी की कविता की सुरभि अमर है
जवाब देंहटाएंब्रजमोहन सिंह ठाकुरजी के बारे में क्या कोई बोले
बेकल उत्साही जी का जब बहता है कलाम माईक से
तो फिर रात ठहर जाती है सुनने की अभिलाषा को ले
और आपका संचालन ! ये सोने में हो गया सुहागा
आवश्यक है सुनना, पल पल उत्कंठा बढ़ती जाती है
नजर बिछ गई है राहों पर कैलेन्डर के किस पत्ते पर
नाम लिखाकर यह सीडी अब मेरे पास चली आती है
और हाँ एक विनती है या तो बहर के बारे में आगे कुछ बताईये या तो मेरे रहने खाने का बंदोबस्त करिए मै सिहोर आ जाता हूँ प्रत्यछ कुछ तो सीखूगा...........वीनस
जवाब देंहटाएंलगे रहिये सुबीर भाई, सभी उपलब्धियों और wesite के लिए बधाइयाँ
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