गुरुवार, 5 जून 2008

ग़जल की पाठशाला एक नाजुक मसले पर उलझी है, उड़नतश्‍तरी ता करके भाग चुकी है अभिनव ने हिम्‍मत दिखाई है तो नीरज जी जूड़ी फैंक चुके हैं , अल्‍लाह जाने क्‍या होगा आगे

अच्‍छा होमवर्क हमको किसी भी उम्र में मिले उसको देख कर ही हमारे अंदर कुछ कुछ होने लग जाता है । होमवर्क आज भी हमें वैसा ही लगता है जैसे कि सौ किलो का बोझ हमारे सिर पर लाद दिया गया हो। परसों के होमवर्क को लेकर भी ये ही हुआ है कई सारे विद्यार्थियों ने तो कक्षा में झांकने की भी हिम्‍मत नहीं दिखाई ताकि कल को कह सकें कि माड़साब हम तो उस रोज आए भी नहीं थे जिस दिन आपने होमवर्क दिया था । उड़नतश्‍तरी ने होमवर्क तो ले लिया है पर उसे पूरा करके वापस भी किया जाता है ये शायद याद नहीं रहा है ।

सबसे पहले बात की जाए अभिनव की  जिसने कि कुछ करने  का प्रयास किया है

अभिनव सर, होम वर्क: संभावित बाहर है,
मफऊलु-मुफाईलु-मुफाईलु-फऊलुन 221-1221-1221-122
बहर है :- हजज़ मुसमन अखरब मकफूफ महजूफ
इस दौर - में इंसान - क्युं बेहतर न - हीं मिलते
रेह्ज़न मि - लेंगे राह - में रहबर न - हीं मिलते

अभिनव ने काफी हद तक जाने का प्रयास किया है और 90 प्रतिशत तक प्रयास सटीक भी रहा है लेकिन फिर भी कुछ कमियां जो रहा गईं हैं वो उच्‍चारण के कारण हैं । जैसे

इस 2, दौ 2, र 1, 221 ( सही निकाला है ) मफऊलु

में 1, ( में गिर कर म रह गया है ), इन्‍ 2, सा 2, न 1 ,  1221 ( सही निकाला है ) मुफाईलु

क्‍युं ( बाज लोग क्‍यों को इतना गिरा के पढ़ते हैं कि वो लघु में गिना जाए लेकिन उस्‍तादों के हिसाब से वो ठीक नहीं है, फिर भी उसको लेकर विद्वानों की राय में एकमत नहीं है ) 1, बेह 2, तर 2, न 1,  1221 मुफाईलु ( फिर भी क्‍युं के स्‍थान पर किसी अन्‍य शब्‍द का प्रयोग कर ग़ज़ल को दोषमुक्‍त किया जा सकता है )

हीं 1 ( यहां पर हीं गिर गया है और लघु में गिना जाएगा ) मिल 2, ते 2, 122 ( सही निकाला है ) फऊलुन

रह 2, जन 2,  मि 221 ( सही निकाला है ) मफऊलु

अब जो क्‍युं  है उसको लेकर हम कभी परेशानी में पड़ सकते हैं । इसलिये ऐसा ठूंठ ही मत पालो जिस पर कल कहीं उल्‍लू बैठ जाए । तो हमें कुछ ऐसा करना होगा ये केवल उदाहरण है कि ऐसा कुछ किया जा सकता है ।

इस दौर में इन्‍सां कहीं बेहतर नहीं मिलते

इस 2, दौ 2, र 1  221

में 1 (गिरकर), इन्‍ 2, सां 2, क 1, 1221

हिं 1 (गिरकर), बेह 2, तर 2, न 1, 1221

हिं 1 (गिरकर) , मिल 2 , ते 2 , 122

 

अब आइये दूसरे मिसरे की बात करें जहां पर कुछ संकट पैदा हो रहा है । हालंकि संकट केवल उच्‍चारण का है और कुछ नहीं मगर ये एक ऐसी समस्‍या है जो ठीक कर ली जानी चाहिये ।

रेहजन मिलेंगे राह में रहबर नहीं मिलते

रह 2, जन 2, मि 1, 221 मफऊलु ठीक है

लेंगे ये समस्‍या की जगह आ गई है अब इसमें समस्‍या क्‍या है कि अगर आप पढ़ते समय लें  को खींच कर पढ़ेंगें तों वो दीर्घ हो जाएगा और गजल बहर से बाहर हो जाएगी । अगर आप लें  को गिरा कर गे  को खींचते हैं तो समस्‍या नहीं आएगी पर दिक्‍कत क्‍या है कि आप पढ़ते समय लें को ही खींचेंगें क्‍योंकि वही ठीक ध्‍वनि आपको लगेंगी । यदि आप लें  को खींचते हैं तो वो बहर दूसरी हो जाएगी । अगर आप लें को खींचते हैं तो जाहिर सी बात है कि आप गे  को गिराकर ही बोलेंगे और उस स्थिति में दूसरा रुक्‍न हो जाएगा 2121 फाएलातु जो कि बहरे मुजारे का रुक्‍न है । अर्थात आपका मिसरा बहर से बाहर हो जाएगा । अब इससे बचना है तो सीधी सी बात है कि आप मिलेंगे  शब्‍द को ही बदल दें ना रहेगा बांस और ना होगी पींपीं ।

एक उदाहरण दे रहा हूं हालंकि ये केवल उदाहरण है इसे मैं मात्रा की दृष्टि से लिख रहा हूं ।

रहजन ही यहां मिलते हैं रहबर नहीं मिलते

रह 2, जन 2, हि 1 ( गिरकर) 221

य 1, हां 2, मिल 2, ते 1( गिरकर) 1221

हें 1 (गिरकर), रह 2, बर 2, न 1, 1221

हिं 1 (गिरकर) मिल 2, ते 2, 122

आज हमने केवल मतले का ही सुधारा है अगली कक्षा में हम आगे के शेरों को भी देखेंगें । हो सकता है तब तक उड़न तश्‍तरी पूरी ग़ज़ल को ही सुधार के दे दे कि लो माड़साब येल्‍लो पूरी की पूरी ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. इस दौर में इन्‍सां कहीं बेहतर नहीं मिलते
    रहजन ही यहां मिलते हैं रहबर नहीं मिलते
    मैंने जो होम वर्क किया था वो जमा करते ही लग गया था की ग़लत है...जल्दी का काम शैतान का काम...अभिनव जी की बहार मुझे सही लगी थी और आप ने भी उसे ही ठीक करार दिया है. याने इस ग़ज़ल की बहर हुई २२१ १२२१ १२२१ १२२. मुझे क्या जरूरत पढी थी इतनी मुश्किल बहर के साथ कुश्ती लड़ने की जिसके कारण माड़साब और और क्लास के बाकि बच्चे भी परेशां हो गए हैं...खैर इसके कारण जो ज्ञान में वृद्धि हो रही है उसका तो कोई जवाब ही नहीं है...एक गलती ही इंसान को असली सबक सिखाती है...
    प्राण शर्मा जी ने मतला कुछ यूं कहा है:
    संसार में इंसान अब बेहतर नहीं मिलते
    रेह्ज़न तो मिले हैं हमें रहबर नहीं मिलते
    कक्षा में आनंद आ रहा है...गुरूजी को कोटिश धन्यवाद.
    नीरज

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  2. इस दौर में इन्‍सां कहीं बेहतर नहीं मिलते
    रहजन ही यहां मिलते हैं रहबर नहीं मिलते
    मैंने जो होम वर्क किया था वो जमा करते ही लग गया था की ग़लत है...जल्दी का काम शैतान का काम...अभिनव जी की बहार मुझे सही लगी थी और आप ने भी उसे ही ठीक करार दिया है. याने इस ग़ज़ल की बहर हुई २२१ १२२१ १२२१ १२२. मुझे क्या जरूरत पढी थी इतनी मुश्किल बहर के साथ कुश्ती लड़ने की जिसके कारण माड़साब और और क्लास के बाकि बच्चे भी परेशां हो गए हैं...खैर इसके कारण जो ज्ञान में वृद्धि हो रही है उसका तो कोई जवाब ही नहीं है...एक गलती ही इंसान को असली सबक सिखाती है...
    प्राण शर्मा जी ने मतले को यूं सुधारा है
    संसार में इंसान अब बेहतर नहीं मिलते
    रेह्ज़न तो मिले हैं हमें रहबर नहीं मिलते
    कक्षा में आनंद आ रहा है...गुरूजी को कोटिश धन्यवाद.
    नीरज

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  3. लगा हूं माड़स्साब. आता हूँ. :)

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  4. आप की क्लास मुझे गणित की क्लास से कम जटिल नहीं लगती, कुछ पल्ले नहीं पड़ता शायद बीच में से पड़ना शुरु किया इस लिए, पहली क्लास से शुरु करना पड़ेगा, देख कर हैरां हूँ कि गजल लिखने के लिए भी गणित का आना जरूरी है हम तो समझे थे कविता हो या गजल ये दिल का मामला है जो दिल को अच्छा लगे और कानों को प्रिय वही अच्छी गजल है यहां तो सब अच्छे बच्चे के जैसे होमवर्क कर रहे है। हैरां तो तब भी हुई थी जब मास्टर साहब ने अपनी गंभीर कुर्सी छोड़ अपना मन पसंद गीत सुनाया था वो तो समझ में आया था। ये टिप्पणी क्युं लिख रही हूँ, मुझे भी नहीं मालूम, जैसे क्लास के बाहर बैठ कोई अंदर होती सारी लीलाएं देखे, सॉरी क्लास डिस्टर्ब कर दिया, कभी दाखिला लेने की हिम्मत करुंगी,अभी के लिए मास्साब प्रणाम

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