मंगलवार, 29 अक्तूबर 2024

आइए आज तरही मुशायरे का आरंभ करते हैं चार रचनाकारों देवी नागरानी, डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर, गिरीश पंकज और डॉ. संजय दानी के साथ।

आइए आज से दीपावली का यह तरही मुशायरा प्रारंभ करते हैं। अब लगभग बीस वर्ष होने जा रहे हैं इस ब्लॉग पर हम सभी को साथ रहते हुए, साथ चलते हुए। जैसी की रीत होती है, कुछ नये जुड़ते हैं तो कुछ पुराने छूट जाते हैं। मिलना बिछड़ना रीत यही है। ख़ैर यह क्रम तो चलता ही रहेगा। हम पर्व पर इसी प्रकार मिलते रहेंगे, जो लोग समय निकाल कर आ जायेंगे उनके साथ पर्व की ख़ुशियों को साझा कर लेंगे। इस बार जिन रचनाकारों ने समय निकाल कर पर्व पर उपस्थिति दर्ज करवाई है उनके साथ आइए आज से हम यह पाँच दिवसीय ज्योति पर्व का शुभारंभ करते हैँ। 
इन चराग़ों को जलना है अब रात भर


आइए आज तरही मुशायरे का आरंभ करते हैं चार रचनाकारों देवी नागरानी, डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर, गिरीश पंकज और डॉ. संजय दानी के साथ।

देवी नागरानी

“इन चरागों को जलना है अब रात भर”
आँच में उनको गलना है अब रात भर
देती क़ुदरत इशारे मुसलसल हमें
उन इशारों पे चलना है अब रात भर

नीम बेहोशी भी इतनी अच्छी नहीं
होश रहते संभलना है अब रात भर
फ़लसफ़ा ज़िंदगी का समझ लीजिए
उस समझ में ही ढलना है अब रात भर

ज़िन्दगी एक जलता हवन ही तो है
जागकर ही पिघलना है अब रात भर
कैसे कह दूँ कथा इन चराग़ों की मैं
इनको ‘देवी’ यूँ जलना है अब रात कर

मतले के मिसरा ऊला से ही गिरह लगा कर शुरुआत की है। और मिसरा सानी में उन चराग़ों की आँच में गलने का दृश्य सुंदर है। और यह भी सच है कि क़ुदरत तो हमें लगातार इशारे कर रही है, मगर हम ही उन इशारों को नहीं समझ पा रहे हैं। एक विचित्र प्रकार की बेहोशी में हम सब चले जा रहे हैं, शायद दीप पर्व पर सँभल जायें। ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझ कर उसमें ढलना ही ज़िंदगी है। ज़िंदगी एक अनवरत सा हवन है जिसमें हमें पिघलते रहना है। और मकते के शेर में चराग़ों की कथा की बात बहुत सुंदर आयी है। वाह, वाह, वाह, सुंदर ग़ज़ल।


डॉ. रजनी मल्होत्रा नैय्यर 

लो शमा को पिघलना है अब रात भर
इन चरागों को जलना है अब रात भर
मेरे ख्वाबों में तुम सामने आ गए
दिल का मौसम बदलना है अब रात भर

तुम हक़ीक़त में मुझसे मिलो न मिलो
ख़्वाब में संग चलना है अब रात भर
नींद आयेगी कैसे तेरी याद में
करवटें ही बदलना है अब रात भर

मैने शब्दों में कब से तराशा तुम्हें
तुमको ग़ज़लों में ढलना है अब रात भर

रात भर अँधेरे से लड़ने के लिए शमा और दीपक दोनों को ही जलना और पिघलना होता है, बहुत सुंदर मतला। कोई रात को सोते में ख़्वाब में आ जाये तो दिल का मौसम एकदम बदल जाता है। और कोई सचमुच मिले या नहीं मिले मगर यह भी सच है कि वह ख़्वाब में हमारे संग चलता रहता है। और किसी की याद में करवट बदलने का नाम ही तो प्रेम होता है, और जब प्रेम होता है तब नींद आँखों से उड़ जाती है। जिसे शब्दों में तराशा है वही रात भर ग़ज़ल में ढलेगा, बहुत सुंदर। वाह, वाह, वाह, सुंदर ग़ज़ल।


गिरीश पंकज 

स्याह सूरत बदलना है अब रात भर
दीप लेकर ही चलना है अब रात भर
वो अँधेरे से लड़ने चले आए हैं
"इन चिरागों को जलना है अब रात भर"

देख इसको अँधेरा भी घबराएगा
एक दीपक को बलना है अब रात भर
चाँद की रौशनी हमको भी मिल सके
बन के बच्चा मचलना है अब रात भर

ये बुरा है समय पर बदल जाएगा
हाँ इसे ही बदलना है अब रात भर
अब ये सपने हमें खूब तरसाएँगे
खुद को ही हमको छलना है अब रात भर

एक बेहतर समय कल खड़ा सामने
मेरे सपने को पलना है अब रात भर 

स्याह सूरत को बदलने के लिए दीप लेकर ही चलना होता है। और जो दीप अँधेरे से लड़ने आये हैं, उनको रात भर जलना ही होता है। यह भी सच है जब दीपक बाला जाता है तो अँधेरा उसे देख कर घबरा जाता है। उम्र कुछ नहीं होती, जब भी आप चाँद पाने को मचल जायें तभी आपका बचपन एक बार फिर से वापस आ जाता है। हर बुरा समय कभी न कभी बदल जाता है बशर्ते हम उसे बदलने का प्रयास करें। सपने तरसाते भी हैं और वही रात भर आँखों में पलते भी हैं। वाह, वाह, वाह, सुंदर ग़ज़ल।


डॉ. संजय दानी दुर्ग

हम चराग़ों को जलना है अब रात भर
हाँ अँधेरे से लड़ना है अब रात भर
ख़ूब दीपावली ये मनाएँ मगर
ग़ैर का दुःख भी हरना है अब रात भर

सो गये लोग, सन्नाटे का शोर है
फिर भी हमको न डरना है अब रात भर
रावणों की अदालत से बचने हमें
राम का नाम जपना है अब रात भर

मान सम्मान हमको मिले ना मिले
काम बस अपना करना है अब रात भर
अहमियत अपनी समझे न समझे जहाँ
घर उजालों से भरना है अब रात भर

क़ाफिया में थोड़े हेर-फेर के साथ ग़ज़ल कही गयी है। चराग़ों को जब जलाया जाता है तब यही उम्मीद होती है कि ये अब रात भर जलेंगे। मगर जब आप दीपावली मना रहे हों तो यह याद रहे कि दूसरों के लिए भी कुछ करना है। जब रात गहरी हो जाती है और सन्नाटा छा जाता है, तब भी डरना मना होता है। और बड़ी बात यह कही गयी है कि हमें बस अपना काम ही करते रहना है, मान सम्मान की परवाह किये बग़ैर। कोई अहमियत समझे न समझे हमें उजालों से सबके घर भरना है। वाह, वाह, वाह, सुंदर ग़ज़ल।

तो ये आज के चारों शायरों की दीपावली है। बहुत सुंदर ग़ज़लें चारों ने कही हैं। आप दिल खोल कर इनको दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।



7 टिप्‍पणियां:

  1. सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक। सभी रचनाकारों को बधाई।

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  2. सभी रचनाएँ एक से बढ़ कर एक। सभी रचनाकारों को बधाई।

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  3. आभार. तमाम शायर मित्रों को बधाई

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  4. बहुत ही शानदार ग़ज़ल आप सभी ka👌

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  5. बन के बच्चा मचलना है रात भर

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  6. दीपावली की पूर्व संध्या और धनत्रयोदशी की शुभकामनाओं के साथ तर ही मुशायरा प्रारंभ हुआ।
    सभी रचनाकार अपनी-अपनी प्रस्तुतियों से माहौल को गुंजायमान कर रहे हैं।
    हार्दिक बधाइयाँ

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