दीपावली पर्व की आप सभी को शुभकामनाएँ। दीपावली का यह पर्व आप सभी की जीवन में सुख शांति और समृद्धि लाए यही प्रार्थना है। आप सब ख़ूब रचनात्मकता के प्रकाश से जगमगाते रहें, आपके जीवन में सुख शांति और समृद्धि का उजास बना रहे।
आइए आज दीपावली के तरही मुशायरे में सुनते हैं धर्मेन्द्र कुमार सिंह, दिगम्बर नासवा, रजनी मल्होत्रा नैयर, अश्विनी रमेश, रेखा भाटिया तथा राकेश खण्डेलवाल जी को।
धर्मेन्द्र कुमार सिंह
वो दलालों के मसीहा वो निपुण व्यापार में
देखिए कितने हुनर हैं आजकल सरकार में
थरथरायेंगे सभी चमचे भरे दरबार में
आज भी इतना असर है आपकी हुंकार में
फ़ायदा ही फ़ायदा नफ़रत के कारोबार में
है अगर दम ये ख़बर दे दो जरा अख़बार में
बाँटता है देश को वो धर्म, भाषा, जाति से
ये कला पाई ही जाती है सदा गद्दार में
हाथ में बंदूक देकर सरहदों पर भेजिए
मन लगे है ख़ूब जिनका देश के विस्तार में
देर तक मुट्ठी में रख पाये नहीं तो क्रुद्ध हो
नाम लिख डाला उन्होंने बर्फ़ का अंगार में
कुछ कबूतर शांति के बैठें झरोखों में सदा
छेद कम से कम रहें इतने तो हर दीवार में
बात अब करने लगा है देश, भाषा, धर्म की
ये हुनर भी आ गया है आजकल बाज़ार में
सोचिएगा बात क्या है या कहीं कुछ कष्ट है
हाँ कभी मत ढूँढिएगा यार के इंकार में
जिंदगी चलती रहेगी मस्त यूँ ही सर्वदा
बस कमी मत कीजिएगा प्यार में आभार में
पीत हल्दी श्वेत चूने से गले मिल जाएगी
कुमकुमे यूं खिल उठेंगे नूर के त्योहार में
बक रहा सज्जन बहुत वाही तबाही किसलिए
फ़र्क़ कुछ पड़ना नहीं है सत्य से संसार में
मौसम-ए-बारिश में बचकर घूमना सज्जन ज़रा
इश्क़ ने गर डस लिया मर जाओगे बेकार में
देखिए कितने हुनर हैं आजकल सरकार में
थरथरायेंगे सभी चमचे भरे दरबार में
आज भी इतना असर है आपकी हुंकार में
फ़ायदा ही फ़ायदा नफ़रत के कारोबार में
है अगर दम ये ख़बर दे दो जरा अख़बार में
बाँटता है देश को वो धर्म, भाषा, जाति से
ये कला पाई ही जाती है सदा गद्दार में
हाथ में बंदूक देकर सरहदों पर भेजिए
मन लगे है ख़ूब जिनका देश के विस्तार में
देर तक मुट्ठी में रख पाये नहीं तो क्रुद्ध हो
नाम लिख डाला उन्होंने बर्फ़ का अंगार में
कुछ कबूतर शांति के बैठें झरोखों में सदा
छेद कम से कम रहें इतने तो हर दीवार में
बात अब करने लगा है देश, भाषा, धर्म की
ये हुनर भी आ गया है आजकल बाज़ार में
सोचिएगा बात क्या है या कहीं कुछ कष्ट है
हाँ कभी मत ढूँढिएगा यार के इंकार में
जिंदगी चलती रहेगी मस्त यूँ ही सर्वदा
बस कमी मत कीजिएगा प्यार में आभार में
पीत हल्दी श्वेत चूने से गले मिल जाएगी
कुमकुमे यूं खिल उठेंगे नूर के त्योहार में
बक रहा सज्जन बहुत वाही तबाही किसलिए
फ़र्क़ कुछ पड़ना नहीं है सत्य से संसार में
मौसम-ए-बारिश में बचकर घूमना सज्जन ज़रा
इश्क़ ने गर डस लिया मर जाओगे बेकार में
बहुत ही अच्छा मतला है, राजनीति पर गहरा कटाक्ष करता हुआ मतला। और उसके बाद का हुस्ने मतला भी उसी कटाक्ष के प्रवाह को आगे बढ़ा रहा है। देर तक मुट्ठी में रख नहीं पाए शेर में भी बहुत गहरा तंज़ है वर्तमान राजनीति पर, जिसको अपने पक्ष में करना संभव नहीं है उसे देशद्रोही घोषित कर दिया जाए। और शांति के कबूतरों के लिए दीवारों में छेद होने की बात भी बहुत सुंदर है। बाज़ार आजकल भाषा और धर्म की बात करने लगा है यह एकदम सच है। पीत हल्दी और श्वेत चूने के मिलने से नूर के त्योहार के सजने की बात बहुत ही सुंदर बनी है। और अंत में दोनो मकते के शेर भी सुंदर बने हैं। वाह वाह वाह बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।
हम भले ही ज़िन्दगी में हों किसी किरदार में
पर मिलेंगे दोस्तों की जीत में हर हार में
एक दिन हम भी लगेंगे तुमको शुभ-चिंतक सनम
जब कभी बदलाव होगा आपके व्यवहार में
सुरमई हो रात जब, पट खोलना पलकों के तब
क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
वक़्त, मजबूरी, ज़रूरत, हादसे, कमबख़्त दिल
उम्र भर तो रह नहीं सकते किसी के प्यार में
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा तो खोज लेंगे मिल के हम
इस विषय पर बात जब होगी कभी विस्तार में
लोग जो अच्छे हैं सब सुखमय करेंगे ज़िन्दगी
और हैं अपने भी ग़म दे जाएँगे जो प्यार में
कुछ शरद की सुग-बुगाहट, और कम कम ताप कुछ
मौसमों का खेल है सब वक़्त की तकरार में
मतले में ही दोस्ती को बहुत अच्छे से परिभाषित किया गया है। सच्चा दोस्त अपने दोस्त की जीत और हार दोनों में शामिल होता है। बदलाव के बाद ही हम समझ पाते हैं कि जिनको हम अपना दुश्मन समझ रहे थे, वे तो हमारे शुभचिंतक थे। और किसी की आँखों के पट खुलने से कुमकुमों के जल उठने का प्रतीक बहुत ही सुंदर है बहुत ही सुंदर गिरह लगाई है। जीवन में बहुत सी परेशानियाँ होती हैं इसलिए हम किसी के प्यार में उम्र भर नहीं रह सकते। बातचीत से नए रास्तों के निकलने का शेर भी बहुत सुंदर बना है। शरद की सुगबुगाहट का शेर मौसम का सुंदर चित्रण लिए हुए है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर
सब तरफ है छाई मंदी आजकल व्यापार में
हैं नहीं पहले सी अब तो रौनकें बाजार में
कुछ ज़रा बदलाव आए, दाम शेयर के गिरें
ढूँढ़ने लग जाते हैं जी ऐब हम सरकार में
आप भी कुछ हल निकालें बात बन ही जाएगी
क्यों भड़क कर दोष देते वक्त को बेकार में
चाटुकारी, बेईमानी मिलती बेग़ैरत में है
दोष ये मिलता नहीं है आदमी ख़ुद्दार में
हर तरफ होगा उजाला होगी रोशन रात ये
क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
हैं नहीं पहले सी अब तो रौनकें बाजार में
कुछ ज़रा बदलाव आए, दाम शेयर के गिरें
ढूँढ़ने लग जाते हैं जी ऐब हम सरकार में
आप भी कुछ हल निकालें बात बन ही जाएगी
क्यों भड़क कर दोष देते वक्त को बेकार में
चाटुकारी, बेईमानी मिलती बेग़ैरत में है
दोष ये मिलता नहीं है आदमी ख़ुद्दार में
हर तरफ होगा उजाला होगी रोशन रात ये
क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
मतले के साथ ही हमारे समय का कड़वा सच सामने आ रहा है, व्यापार पर मंदी और त्योहार पर रौनकों की कमी, यही हमारा समय है। और वक्त को दोष देने वाला शेर भी बहुत सुंदर है, सच है हम जो कुछ सामने है उसका हल तलाशने के बजाया वक्त को ही दोष देने लगते हैं। चाटुकारी और बेईमानी जैसे दोष उस में नहीं होंगे जो अंदर से ख़ुद्दारी का नूर लिए हुए होगा। और अंत में गिरह का शेर भी बहुत सुंदरता के साथ बनाया गया है। एक अँधेरी रात को रोशनी के फूलों से भर देना ही तो दीपावली का नाम है। हर तरफ़ जब होता है केवल उजाला ही उजाला तो उसी को हम दीवाली कहते हैं। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
अश्विनी रमेश
काम हो सकता नहीं कुछ व्यर्थ की तकरार में
हर सफलता है छुपी बस इक मृदुल व्यवहार में
राह तकने की तड़प में है छिपा आनंद जो
वो मज़ा आखिर कहाँ है आपके दीदार में
थाम तुमने जब लिया है हाथ मेरा यार तो
छोड़ना फिर अब न मुझको तुम कहीं मझधार में
कब गुज़रते रात और दिन इससे हम अनजान हैं
खो गए जिस दिन से हैं हम आपके इस प्यार में
आम जन के दर्द से अनजान हैं जो लोग वो
कर नहीं पाएँगे कुछ भी बैठ कर सरकार में
इससे बढ़कर और कुछ मैं दे सकूँगा तुमको क्या
ये ग़ज़ल तौहफ़ा मेरा दीपावली त्योहार में
मतले में ही एक बड़ी सीख छिपी है कि यदि काम को सफल करना है तो तकरार से काम नहीं चलने वाला एक दूसरे के साथ व्यवहार ठीक करने से ही काम बनेगा। और एक प्रेम का सत्य यह भी है कि किसी का रास्ता देखने में जो आनंद आता है वह आनंद उसके मिल जाने में नहीं है। और फिर यह भी सत्य ही है कि जब हम किसी के प्यार में खो जाते हैं तब हमें इस बात का पता ही नहीं चलता है कि रात और दिन कब और किस प्रकार से गुज़र रहे हैं। राजनीति में वही लोग शामिल हो रहे हैं जो आम जनता के दुख दर्द से बिलकुल नावाक़िफ़ हैं इनके सरकार में आने से क्या होगा भला। और अंत में रचनाकार की रचना ही तोहफ़ा होती है। वाह वाह वाह बहुत सुंदर ग़ज़ल।
रेखा भाटिया
अप्रितम, अतुल्यनीय, अलौकिक पल उतरा ख़ुशी का
थका सूरज दे रहा था न्यौता, नर्म पड़ी किरणें पल में
भावविभोर आनंदित बहारों ने किया आलिंगन मौसम का
रंग बदला पत्तियों ने अभिभूत हो ऋतुओं ने ओढ़ लिया घूँघट
फूलों संग पत्तियाँ भी सजसँवर पतझड़ का उत्सव मना रही
भरमाता है दृश्य अपलक, मानो धुँधला हो बसंत बहारों से
आ लिपटा है नए रूप में लाल, पीले, नारंगी, बैंगनी रंगों में
शीत की नीरसता से पहले वसुधा सज रही, विनती कर रही
दरख़्तों से, मौन धारण करने से पहले खूब मनाओ उत्सव
आई है दिवाली, सजधज रहे घर-आँगन रंगोली की छाप से
फूलों की लड़ियों से दरवाज़ों, खिड़कियों ने नया रूप धरा
नए-नए वस्त्र, आभूषणों में जन-जन सँवर कर खिल रहा
मिष्ठानों की महक, उपहारों के ढेर से बाज़ार अब दोहरे हुए
रंगबिरंगी टिमटिमाती रौशनी की मालाएँ स्वागत में अधीर
पूजा की थालियों में दीप कर चुके प्रण अंतिम साँस तक
जलते रहेंगे फैलाएँगे उजियारा अमावस दूर कर जीवन से
हम भी बन कर कुमकुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
अज्ञान का तिमिर मिटाकर जगमगाएँ जन-जन के मन में
रेखा जी ने दीपावली के मौसम का पूरा का पूरा शब्दचित्र ही बना दिया है अपनी इस कविता में। सच में दीपावली के समय जो मौसम होता है वह अपने आप में ही एक उत्सव होता है। लाल, पीले, नारंगी और बैंगनी रंग के फूलों और पत्तों से पूरी वसुधा सज जाती है, और उसी बीच सूरज की किरणें भी नर्म पड़ जाती हैं।इन्हीं सब के बीच में घर आँगन सज-धज कर रंगोली और फूलों की लड़ियों से तैयार होकी दीपावली का स्वागत करते हैं। बाज़ार में मिष्ठान्नों की महक और उपहारों के ढेर तथा रंगबिरंगी रौशनी की मालाएँ सज जाती हैं। मगर इन सब के बीच एक संकल्प कि हम भी अज्ञान के अंधकार को हटाने के लिए ज्ञान के क़ुमक़ुमे बन कर जल उठेंगे। वाह वाह वाह बहुत सुंदर कविता।
राकेश खंडेलवाल
एक सन्नाटा छाया हुआ आजकल,
अपने ब्लागिंग के अनुराग संसार में
फ़ेसबुकिया हुई मित्रता अब सभी
प्रीत के रंग से वंचिता प्यार में
व्हाट्सअप की बढ़ी संस्कृति इस तरह
कोई टिकता नहीं दो घड़ी से अधिक
क़िसमें धीरज कहे इक मुकम्मल ग़ज़ल
नूर के कुमकुमों के भी त्योहार में
आज पंकज के आदेश को मानकर
चल पड़ी ये कलम शेर इक कह सके
वरना कुव्वत कहाँ कि ग़ज़ल पढ़ सके
इस दफ़ा आज की महफ़िले यार में
अब जले तो जलें कुमकुमें इस कदर.
तीरगी का न कोई निशा भी रहे
आओ मिलकर करें अब दुआएँ सभी
नूर के आज रंगीन त्योहार में
पाँच दिन के लिए पाँच रचना लिखी,
सोच कर एक कोई पसंद आ सके
कल न जाने कहीं मौन रह ले कलम
और कह न सकूँ लफ़्ज़ दो चार मैं
हमारे समय के बदलते हुए रूपों को बहुत सुंदरता के साथ अपनी रचना में पिरोया है राकेश जी ने। सच कहा कि अब ब्लागिंग का दौर बात चुका है और अब तो फ़ेसबुक तथा व्हाट्सएप का ही ज़माना चल रहा है। जहाँ कोई दो घड़ी टिकता ही नहीं है, वहाँ कैसे कोई कुछ कह सकता है। क़ुमक़ुमे इस कदर जलना चाहिए कि तीरगी का कोई निशाँ ही शेष न रहे। यही दुआ इस बार नूर के इस त्यौहार पर की जा सकती है। राकेश जी आप पाँच क्या पचास रचनाएँ एक ही रंग में लिख सकते हैं, आपकी क्षमता तो अपरंपार है। और जहाँ तक कलम के मौन रह जाने की बात है, वह आप पर लागू ही नहीं होती है। बहुत ही सुंदर रचना वाह वाह वाह।
आप सभी को दीपपर्व की शुभकामनाएँ। स्वस्थ रहें प्रसन्न रहें तथा हमेशा जमगमगाते रहें झिलमिलाते रहें। भले ही देर से पकड़ें, दौड़ते हुए पकड़ें लेकिन तरही की ट्रेन को इसी प्रकार पकड़ते रहें। कुछ रचनाएँ अभी भी बाक़ी हैं, जिनको हम बासी मुशायरे में सुनेंगे।
सभी रचनाकार अभिनन्दन योग्य हैं। सब को बधाई। शुभ दीपावली।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंवाह! वाह! बधाई व शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंबहुत ख़ूब सभी की रचनाएँ ,सभी को शुभ दीपोत्सव की बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंछ: विभूतियों की सशक्त रचनाएँ ! .. वाह वाह वाह !!
जवाब देंहटाएंआ० धर्मेंद्र सज्जन जी, आ० दिगम्बर नासा जी, डॉ० रजनी मल्होत्रा नैय्यर जी, आ० अश्विनी रमेश जी, आ० रेखा भाटिया जी और आ० राकेश खण्डेलवाल जी के नाम ही पठनीय प्रस्तुतियों के लिए आश्वस्त हैं. लेकिन धर्मेंद्र जी ने तो जैसे कलम ही तोड़ दी है. गिरह का शेर इसकी बानगी है.
यही कुछ दिगम्बर भाई के लिए कहा जा सकता है. एक दिन हम भी लगेंगे जैसा शेर गहन चिंतन और सुहृद भाव का प्रस्तुतीकरण है. वाह, वाह.
डॉ० रजनी के मतले से उनके विदेश में बसे होने का इशारा कर रहा है. जाने सच क्या है?
अश्विनी जी, रेखा जी और राकेश भाईजी को उनकी सारस्वत उपस्थिति का हार्दिक धन्यवाद.
प्रकाश-पर्व की अशेष शुभकामनाएँ..
सौरभ
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंख़ूबसूरत और उम्दा रचनाओं के लिये सभी शो'अरा और शाएरात को बहुत मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंसारे रचनाकारों को उनकी रचनाओं के लिए बधाइयों के साथ दीपावली की भी बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंसभी रचनाकारों की सुन्दत कृतीयप\ों ने कुमकुमों के नूर को और भी बढ़ा दिया है और पंकज जी के मेहनत और सजावट सचमुच ब्लॉग को दीपमय बना रखे है.
जवाब देंहटाएंसभी ो शुभकामनाये.
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंसबका अलग अंदाज़ और कलेवर ...
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन संकलन गज़ल का जैसे तैयार हो रहा है ... धर्मेन्द्र जी, रजनी जी, रेखा जी, अश्विनी जी ... और फिर दिवाली के मीठे की तारः राकेश जी का गीत ... बहुत कमाल की गजलें .... सभी को बहुत बहुत बधाई ...
बहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंआदरणीय राकेश जी जैसे कलम के जादूगर और वरिष्ठ रचनाकारों के साथ मंच साझा करना सुखद अनुभव है। सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई शानदार रचनाओं के लिए।
जवाब देंहटाएं