दीपावली का त्योहार आ ही गया है और हम भी अपना तरही मुशायरा आज से प्रारंभ करने जा रहे हैं। इस बार दीपावली के पर्व पर हमने जो मिसरा तरही के लिए रखा था वह थोड़ा सा मुश्किल तो था लेकिन उसमें काफ़ी संभावनाएँ भरी हुई थीं। चुनौती को स्वीकार कर जिन रचनाकारों ने ग़ज़लें कहीं हैं उनको शुक्रिया।
सर्वजीत सर्व
क़ुमक़ुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
ज्यूँ सितारे जगमगाते रात के अँधियार में
मानना ही था अगर उसका कहा आखिर मुझे
वक़्त ज़ाया क्यूं किया फिर ख़ामख़ा तक़रार में,
होश गर थोड़ा भी बाकी है तो मतलब साफ है ,
तुम नहीं पूरी तरह डूबे किसी के प्यार में
जो पढ़ा करती थी बरसों मां की खाली आंख में,
वो कहानी हो गयी शामिल मेरे किरदार में
मत हिकारत की नजर से 'सर्व' उसको देखिए
रब गुलाबों में भी उतना ही है जितना खार में
मतले में ही गिरह का प्रयोग बहुत ही सुंदरता के साथ किया गया है। क़ुमक़ुमे और सितारों की तुलना बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ किया है। और अगले शेर में जिस प्रकार से अंत में मानने की बात को लेकर तकरार की व्यर्थता की बात कही गई है, वह बहुत ही सुंदर है। और अगले शेर में जिस प्रकार होश बाकी रहने की बात पर जो कहा गया है कि तुम पूरी तरह किसी की प्यार में डूबे नहीं हो। और अंदर तक भावुक करने वाला शेर है जो माँ की खाली आँख को शेर है। और मकते का शेर बहुत ही सुंदर विचार लेकर आया है कि केवल गुलाबों से ही प्यार नहीं करना है बल्कि काँटों से भी करना है क्योंकि रब तो गुलाबों और काँटों सब में है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
ज्यूँ सितारे जगमगाते रात के अँधियार में
मानना ही था अगर उसका कहा आखिर मुझे
वक़्त ज़ाया क्यूं किया फिर ख़ामख़ा तक़रार में,
होश गर थोड़ा भी बाकी है तो मतलब साफ है ,
तुम नहीं पूरी तरह डूबे किसी के प्यार में
जो पढ़ा करती थी बरसों मां की खाली आंख में,
वो कहानी हो गयी शामिल मेरे किरदार में
मत हिकारत की नजर से 'सर्व' उसको देखिए
रब गुलाबों में भी उतना ही है जितना खार में
मतले में ही गिरह का प्रयोग बहुत ही सुंदरता के साथ किया गया है। क़ुमक़ुमे और सितारों की तुलना बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ किया है। और अगले शेर में जिस प्रकार से अंत में मानने की बात को लेकर तकरार की व्यर्थता की बात कही गई है, वह बहुत ही सुंदर है। और अगले शेर में जिस प्रकार होश बाकी रहने की बात पर जो कहा गया है कि तुम पूरी तरह किसी की प्यार में डूबे नहीं हो। और अंदर तक भावुक करने वाला शेर है जो माँ की खाली आँख को शेर है। और मकते का शेर बहुत ही सुंदर विचार लेकर आया है कि केवल गुलाबों से ही प्यार नहीं करना है बल्कि काँटों से भी करना है क्योंकि रब तो गुलाबों और काँटों सब में है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
सुधीर त्यागी
दीपकों का कारवां है, रात के बाजार में,
जैसे आहुति जुगनुओं की, सूर्य के इंकार में।
ढूंढते हो क्यूं सहारा, मतलबी संसार में,
आस का दीपक जलाओ, राम के दरबार में।
जेह्न में तहज़ीब रखना, रक्स के इसरार में,
सिसकियों के घूंघरू है, देह के व्यापार में।
खो गया मिलना मिलाना, हर बशर अंजान सा,
हमसफ़र त्योहार ही है, वक्त की रफ़्तार में।
हर तरफ उल्लास खुशियां, इस दिवाली देखकर,
कुमकुमे यूं जल उठेंगे, नूर के त्योहार में।
धरती अम्बर जीतने में, चैन खोकर क्या मिला,
जो मजा मन जीतने में, वो कहां आकार में।
अपहरण हत्या डकैती,लूट या धोखाधड़ी,
जोर से पढ़कर सुनाओ, क्या लिखा अख़बार में।
बहुत ही सुंदर मतला है रात के बाज़ार में दीपकों का कारवाँ और जुगनुओं की आहुति की बात बहुत ही सुंदर है। और हुस्ने मतला भी बहुत सुंदर है जिसमें मतलबी संसार से हट कर राम के साथ लौ लगाने की बात कही गई है। और एक कड़वा सच अगले शेर में सामने आया है कि त्योहार पर मिलना-मिलाना सब खो गया है अब तो बस वक्त की रफ़्तार है। अगला शेर जो गिरह का शेर है उसमें बहुत सुंदरता के साथ गिरह को बाँधा गया है। और अगले ही शेर में दुनिया को जीत आने के बाद कुछ हाथ नहीं आने की बात बहुत सुंदरता के साथ कही गई है, सच है कि मन को जीतने से ही सब कुछ मिलता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
दीपकों का कारवां है, रात के बाजार में,
जैसे आहुति जुगनुओं की, सूर्य के इंकार में।
ढूंढते हो क्यूं सहारा, मतलबी संसार में,
आस का दीपक जलाओ, राम के दरबार में।
जेह्न में तहज़ीब रखना, रक्स के इसरार में,
सिसकियों के घूंघरू है, देह के व्यापार में।
खो गया मिलना मिलाना, हर बशर अंजान सा,
हमसफ़र त्योहार ही है, वक्त की रफ़्तार में।
हर तरफ उल्लास खुशियां, इस दिवाली देखकर,
कुमकुमे यूं जल उठेंगे, नूर के त्योहार में।
धरती अम्बर जीतने में, चैन खोकर क्या मिला,
जो मजा मन जीतने में, वो कहां आकार में।
अपहरण हत्या डकैती,लूट या धोखाधड़ी,
जोर से पढ़कर सुनाओ, क्या लिखा अख़बार में।
बहुत ही सुंदर मतला है रात के बाज़ार में दीपकों का कारवाँ और जुगनुओं की आहुति की बात बहुत ही सुंदर है। और हुस्ने मतला भी बहुत सुंदर है जिसमें मतलबी संसार से हट कर राम के साथ लौ लगाने की बात कही गई है। और एक कड़वा सच अगले शेर में सामने आया है कि त्योहार पर मिलना-मिलाना सब खो गया है अब तो बस वक्त की रफ़्तार है। अगला शेर जो गिरह का शेर है उसमें बहुत सुंदरता के साथ गिरह को बाँधा गया है। और अगले ही शेर में दुनिया को जीत आने के बाद कुछ हाथ नहीं आने की बात बहुत सुंदरता के साथ कही गई है, सच है कि मन को जीतने से ही सब कुछ मिलता है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
मंसूर अली हाशमी
सोचता है पा लिया है तूने सब संसार में
खो दिया है जबकि ख़ुद को विश्व के विस्तार में
रंग, मज़हब, तफ़रक़े की बात बिसरा दे अगर
कुमकुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
मान क्यों लेता नही सृष्टि का रचनाकार है
क्यों भरम में मुब्तिला हाँ-ना कि तू तकरार में
तू हि नादाँ बेच ना पाया सुख़न अपने यहां
बिक रही हर इक मताअ इस झूठ के बाज़ार में
यूँ बढ़ी महंगाई जीना सबका दूभर हो रहा
यह ख़बर छपती नही क्यों आज के अख़बार में
'भारती बाबा' का घोड़ा ले उड़ा दस्यु मगर
जब हृदय पलटा, समझ आया विजय थी हार में
'हाश्मी' नक़्दो-नज़र ही रह गया इक काम है?
कर रहे जद्दोजहद क्या लोग सब बेकार में!
फलसफे के साथ ही मतले द्वारा शुरू होती है ग़ज़ल। हम सोचते हैँ कि सब कुछ पा लिया है हमने मगर होता यह है कि हम सब कुछ खो चुके होते हैं। और अगला ही शेर गिरह का शेर है जिसमें त्योहार के वास्तविक रूप का दर्शन होता है। और सुख़न को बेच नहीं पाने की बात तथा सब कुछ बिक रहे होने की बात बहुत सुंदर बन पड़ी है। गहरे तंज़ के साथ अगले शेर में समाचारों की दुनिया पर कटाक्ष है कि जो छपने वाली ख़बरें हैं वह क्यों नहीं छपती हैं। और हार की जीत कहानी को शेर में बहुत ही सुंदरता के साथ पिरोया गया है बाबा भारती और खड्ग सिंह की याद आ गई। मकते का शेर भी बहुत सुंदर बन पड़ा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
सोचता है पा लिया है तूने सब संसार में
खो दिया है जबकि ख़ुद को विश्व के विस्तार में
रंग, मज़हब, तफ़रक़े की बात बिसरा दे अगर
कुमकुमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
मान क्यों लेता नही सृष्टि का रचनाकार है
क्यों भरम में मुब्तिला हाँ-ना कि तू तकरार में
तू हि नादाँ बेच ना पाया सुख़न अपने यहां
बिक रही हर इक मताअ इस झूठ के बाज़ार में
यूँ बढ़ी महंगाई जीना सबका दूभर हो रहा
यह ख़बर छपती नही क्यों आज के अख़बार में
'भारती बाबा' का घोड़ा ले उड़ा दस्यु मगर
जब हृदय पलटा, समझ आया विजय थी हार में
'हाश्मी' नक़्दो-नज़र ही रह गया इक काम है?
कर रहे जद्दोजहद क्या लोग सब बेकार में!
फलसफे के साथ ही मतले द्वारा शुरू होती है ग़ज़ल। हम सोचते हैँ कि सब कुछ पा लिया है हमने मगर होता यह है कि हम सब कुछ खो चुके होते हैं। और अगला ही शेर गिरह का शेर है जिसमें त्योहार के वास्तविक रूप का दर्शन होता है। और सुख़न को बेच नहीं पाने की बात तथा सब कुछ बिक रहे होने की बात बहुत सुंदर बन पड़ी है। गहरे तंज़ के साथ अगले शेर में समाचारों की दुनिया पर कटाक्ष है कि जो छपने वाली ख़बरें हैं वह क्यों नहीं छपती हैं। और हार की जीत कहानी को शेर में बहुत ही सुंदरता के साथ पिरोया गया है बाबा भारती और खड्ग सिंह की याद आ गई। मकते का शेर भी बहुत सुंदर बन पड़ा है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
राकेश खंडेलवाल
कुमकुमे यूं उठेंगे नूर के त्यौहार में
हट गई चादर तिमिर की जो कुहासा बन घिरी थी
यूं लगा था डूब जाएगा सभी अंधियार में
एक आशा की किरण ने सूर्य नूतन बो दिया है
झिलमिलाने लग गए सब इस नए उजियार में
सज रही हैं महाफ़िलें फिर साज की धुन ले यहां
रंग भी आने लगा है इश्किया अशआर में
आओ हम तुम मुस्कुरा कर बाँट लें खुशियां पुनः
कुमकुमे फिर जल उठेंगे नूर के त्यौहार में
अब भुला बीते दिवस को सूर्य को आवाज़ दो तुम
तो न उनको भूलना जो जा चुके लेकर विदा
वे बुझे उन बातियों से, प्राण का उत्सर्ग करके
ये नई आशाएं लाकर ज़िन्दगी में हैं उगा
यज्ञ में बन आहुति इक शक्ति को जिनने संवारा
नाम लिख, विज्ञान के फिर एक आविष्कार में
जुलती के ये पुंज नभ में हर घड़ी रोशन रहेंगे
कुमकूमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
आओ चंदन दीप लेकर थाल पूजा के सजाएँ
ला खिलौने खाँड़ के कुछ खील भर लें हथरियों में
द्वार, देहरी आंगना में पूर लें रांगोलियाँ नव
ला रखें कलदार, जो हैं बंद रक्खे गठरियों में
खोल कर दिल साथ ले लें अब सभी सम्बन्धियों को
एक होकर फिर जुटें सब एक ही परिवार में
तो उतर कर देवता भी भूमि पर आ जाएंगे
कुमकुमे यूं जल उठेंगे नूर के त्यौहार में.
राकेश जी के गीत तो मानों बारहमासी त्योहार होते हैं। इन गीतों में उत्सव के सारे रंग भरे होते हैं। पहले ही बंद में तिमिर की चादर के हटने और कुहासे की छँटने का बिम्ब बहुत सुंदर है। आशा की किरण द्वारा नया सूरज बोने की बात भी कमाल है। इश्किआ अशआर की तो बात ही क्या कही जाए। अगले बंद में सूर्य को आवाज़ देने की बात बहुत ही सुंदर बनी है। लेकिन उनको न भूलने की बात भी जो विदा लेकर चले गए हैं। विज्ञान के आविष्कार भी आहुति की माँग करते हैं। अगले बंद में त्योहार का पूरा चित्र है चंदन दीप के साथ खील भरी हथेलियाँ हैँ। द्वार पर राँगाली है और सारा परिवार एक साथ जुट गया है। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।
कुमकुमे यूं उठेंगे नूर के त्यौहार में
हट गई चादर तिमिर की जो कुहासा बन घिरी थी
यूं लगा था डूब जाएगा सभी अंधियार में
एक आशा की किरण ने सूर्य नूतन बो दिया है
झिलमिलाने लग गए सब इस नए उजियार में
सज रही हैं महाफ़िलें फिर साज की धुन ले यहां
रंग भी आने लगा है इश्किया अशआर में
आओ हम तुम मुस्कुरा कर बाँट लें खुशियां पुनः
कुमकुमे फिर जल उठेंगे नूर के त्यौहार में
अब भुला बीते दिवस को सूर्य को आवाज़ दो तुम
तो न उनको भूलना जो जा चुके लेकर विदा
वे बुझे उन बातियों से, प्राण का उत्सर्ग करके
ये नई आशाएं लाकर ज़िन्दगी में हैं उगा
यज्ञ में बन आहुति इक शक्ति को जिनने संवारा
नाम लिख, विज्ञान के फिर एक आविष्कार में
जुलती के ये पुंज नभ में हर घड़ी रोशन रहेंगे
कुमकूमे यूँ जल उठेंगे नूर के त्योहार में
आओ चंदन दीप लेकर थाल पूजा के सजाएँ
ला खिलौने खाँड़ के कुछ खील भर लें हथरियों में
द्वार, देहरी आंगना में पूर लें रांगोलियाँ नव
ला रखें कलदार, जो हैं बंद रक्खे गठरियों में
खोल कर दिल साथ ले लें अब सभी सम्बन्धियों को
एक होकर फिर जुटें सब एक ही परिवार में
तो उतर कर देवता भी भूमि पर आ जाएंगे
कुमकुमे यूं जल उठेंगे नूर के त्यौहार में.
राकेश जी के गीत तो मानों बारहमासी त्योहार होते हैं। इन गीतों में उत्सव के सारे रंग भरे होते हैं। पहले ही बंद में तिमिर की चादर के हटने और कुहासे की छँटने का बिम्ब बहुत सुंदर है। आशा की किरण द्वारा नया सूरज बोने की बात भी कमाल है। इश्किआ अशआर की तो बात ही क्या कही जाए। अगले बंद में सूर्य को आवाज़ देने की बात बहुत ही सुंदर बनी है। लेकिन उनको न भूलने की बात भी जो विदा लेकर चले गए हैं। विज्ञान के आविष्कार भी आहुति की माँग करते हैं। अगले बंद में त्योहार का पूरा चित्र है चंदन दीप के साथ खील भरी हथेलियाँ हैँ। द्वार पर राँगाली है और सारा परिवार एक साथ जुट गया है। बहुत ही सुंदर गीत वाह वाह वाह।
आज के चारों रचनाकारों ने रंग जमा दिया है दाद देते रहिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।
कमाल कर दिया सभी ने। बधाई।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गिरीश जी
हटाएंसभी बहुत उम्दा रचनाएँ !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रेखा भाटिया जी.
हटाएंदीपावली के शुभ अवसर पर आयोजित मुशायरा प्रारम्भ हो गया, इसकी बधाई. यह बधाई हम सभी को है.
जवाब देंहटाएंमुशायरे की पहली प्रस्तुति ही इसके स्तर का निर्धारण कर गयी. आने वाले दिनों में रचनाकारों को इसका विशेष ख्याल रखना होगा. आदरणीया सर्व जी को हार्दिक बधाइयाँ.
सुधीर जी ने राम के दरबार में आस का दीपक जलाने की बात कर उम्मीदों के बीज रोप दिये हैं. अच्छी प्रस्तुति बन पड़ी है.
जनाब मंसूर अली हाशमी साहब के सभी अश'आर में
सुदर्शन की कथा 'हार की जीत' का स्मरण कराता शेर सबसे निराला है. मतले के लिए विशेष दाद लाजिमी है.
आदरणीय राकेश खण्डेलवाल जी की प्रस्तुति पर उनकी गहरी छाप होती है, जो उनके विशद अनुभव और उनकी संवेदनशीलता की साक्षी है.
मुशायरे का संयत प्रारम्भ सुखद है.
सौरभ पाण्डेय
शुक्रिया सौरभ पाण्डेय जी, आपकी दाद हौसला अफ़्ज़ा करने वाली है.
हटाएंअब इस मंच पर पाठकों की ख़ामोशी खलती है, शोअरा तो बहरहाल क़द्र कर ही रहे है. शिकायत नही बस एसे ही लिख दिया है .
बहुत अच्छी रचनाएँ। । सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई व शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय दानी जी.
हटाएंकोई जमाना था जब इस ब्लॉग पर होली, दिवाली नव वर्ष के मुशायरे के होने की बात सुनते ही दिमाग के घोड़े सरपट दौड़ने लगते थे आज आलम ये है है घोड़े दौड़ना तो दूर की बात है हिनहिनाना भी छोड़ दिए हैं ।समय समय की बात है जब यह घोड़े फिर दौड़ने लगेगें हम भी शिरकत करेंगे तब तक सिर्फ पढ़ते हैं वाह-वाह करते हैं ।
जवाब देंहटाएंएक और मौक़ा बाक़ी है नीरज जी, एक शेर या रुबाई के साथ ही तशरीफ़ ले आईये, आपके बग़ैर महफिल सूनी लगती है.
हटाएंबहुत सुंदर। सभी रचनाकारों ने एक से बढ़कर रचनाएँ प्रस्तुत की हैं ढेरों बधाईयाँ सभी को
जवाब देंहटाएंशुक्रिया डाॅक्टर साहिबा.
हटाएंसर्व जी, त्यागो जी , हाशमी साहब के अद्भुत कलाम की क्या बात काही जाए। एक से बढ़ कर एक खोबसूरत आशा आर॥ सभी को दी पर्व की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंराकेश जी, ख़ुद आपकी रचनाएं लाजवाब कर रही है सभी को. हौसलाअफज़ाई के लिए आभार.
हटाएंदीपावली के बेहतरीन सुगबुगाहट शुरू हो गई ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब गिरह पर बेमिसाल गजलों का सिलसिला शुरू हो गया जो कमाल है ...
अभी तक निरंतर चल रहा है ये सिलसिला जो आपके ही बस की बात है अन्यथा थक हार कर बैठ जाते हैं सब ...
सितारों के साथ सर्व जी की लाजवाब शुरुआत ... जिसको त्यागी जी ने दीपों के कारवां के साथ आगे बढ़ाया बहुत ही खूबसूरती से ...
हाशमी जी हमेशा ही बहुत चुटीले और बेहतरीन शेरो से आमद करते हैं ... इस बार भी तीखे शेर बाखूबी कहे हैं ... मेरा प्रणाम ...
राकेश जी के गीतों का आनंद ही अलग है ... हर कोई झूम उठता है पढने के बाद ...
सभी को दीपावली पर्व की बहुत बहुत बधाई ....
बहुत शुक्रिया दिगम्बर नासवा साहब. व्यस्तता प्रतिक्रिया देने में विलम्ब करवा रही है, वर्ना मुशायरा तो ख़ूब शानदार चल रहा है !
हटाएंसर्व जी, सुधीर जी, हाशमी साहब और राकेश जी को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, आदरणीया.
हटाएंबहुत ही सुंदर रचनाएं हैं सभी रचनाकारों की। सभी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी.
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