दोस्तो यह सच है कि ब्लॉग पर अब कम आना-जाना हो रहा है। कई बार लगता है कि यह विधा अब समाप्त हो रही है। लेकिन नॉस्टेल्जिया है कि बार-बार यहाँ पर खींच कर ले आता है। जब भी कोई त्योहार सामने आता है, कोई पर्व आता है तो सबसे पहले ब्लॉग की ओर भागने का मन करता है। हाँ यह बात अलग है कि अब बस वार-त्योहार ही ब्लॉग की याद आती है। मगर फिर भी कोई रिश्ता ऐसा है कि जो यहाँ खींच लाता है। मेरे लिए यह ब्लॉग परिवार बहुत महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर आकर ऐसा लगता है कि परदेस कमाने गए लोग त्योहार पर घर लौटे हैं और एकत्र हुए हैं। बतिया रहे हैं, हाहा-हीही कर रहे हैं, गा रहे हैं, नाच रहे हैं, मज़े कर रहे हैं। कल वापस परदेस निकलना है काम पर इसलिए आज को पूरी तरह से जी रहे हैं। हम सब भी तो ऐसे ही हो गए हैं। साल में कुछ बार यहाँ ब्लॉग पर एकत्र होते हैं, आनंद लेते हैं और उसके बाद फिर परदेसी हो जाते हैं। मगर सबसे अच्छी बात यह है कि आपस में जुड़े रहते हैं। एक दूसरे के सुख-दुख में भागीदारी बनाते रहते हैं।
इस बार सोचा है कि तरही मुशायरे को प्रेम, इश्क़, महब्बत के पक्के रंग में रँगा जाए। वह रंग जो एक बार चढ़ता है तो फिर उम्र भर उतरता नहीं है। और मिसरा ऐसा भी हो कि जिसको चाहो तो हास्य और व्यंग्य में भी गूँथ लो होली के अनुसार। तो ऐसा ही एक मिसरा है जो दोनों प्रकार के रंगों में गूँथा जा सकता है। इस पर होली की हजल भी कही जा सकती है और प्रेम की ग़ज़ल भी। मिसरा बहुत ही कॉमन बहर पर दिया जा रहा है। वही हमारी बहरे हजज मुसमन सालिम 1222-1222-1222-1222
और मिसरे के साथ रदीफ-क़ाफिया का भी कॉम्बिनेशन सरल दिया जा रहा है। काफिया है ध्वनि “आनी” मतलब सुहानी, पुरानी, निशानी, कहानी, जवानी, रानी, राजधानी, ज़िंदगानी, आदि आदि आदि। और रदीफ है “याद आएगी” और पूरा मिसरा यहाँ दिया जा रहा है।
इसे देखेंगे तो अपनी जवानी याद आएगी
मिसरा ऐसा है कि आपको जो चाहे वो कर लो आप इसके साथ। प्रेम से लेकर होली तक सारे रंग भरे जा सकते हैं इस मिसरे में। कुछ लोग कहेंगे कि रदीफ का स्त्रीलिंग होना इस सीमित करेगा, लेकिन यदि आप दिमाग़ पर ज़ोर डालेंगे तो पता चलेगा कि लगभग सारे काफिये जो आनी की ध्वनि के साथ हैं वे स्त्रीलिंग ही हैं। पानी जैसे एकाध को छोड़कर। इसलिए शिकायत करने से बेहतर है होली की तैयारी में जुट जाया जाए।
अब जो लोग पूछते हैं कि इस बहर पर कौन सा फिल्मी गीत है तो उनके लिए ये ढेर सारे गीत नीचे दिए जा रहे हैं। यह तो कुछ ही गीत हैं, इनके अलावा भी बहुत से गीत और ग़ज़ल इस बहर पर हैँ। कुमार विश्वास का मशहूर मुक्तक कोई दीवाना कहता है भी इसी पर है। तो आपको जो भी धुन पसंद आए उस पर ग़ज़ल कहिए। बाकी बहाने बनाने के लिए तो फिर बहुत से बहाने हैं।
चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हमदोनों, बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, मुझे तुम याद करना और मुझको याद आना तुम, किसी पत्थर की मूरत से महब्बत का इरादा है, मुझे तेरी महब्बत का सहारा मिल गया होता, भरी दुनिया में आखिर दिल को समझाने कहाँ जाएँ, कभी तन्हाईयों में यूँ हमारी याद आएगी, सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है, बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, खुदा भी आस्माँ से जब जमीं पर देखता होगा, है अपना दिल तो आवारा न जाने किस पे आयेगा
तो तैयार हो जाइए और होली पर ग़ज़ल कह ही दीजिए। होली का तरही मुशायरा अब आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।
इस बहर पर कौनसा फिल्मी गीत है पूछने वाले लोगों की तरफ से शुक्रिया। हा हा हा । कोशिशें करेंगे ग़ज़ल कहने की जरूर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ये तो मज़ा ही आ गया ...
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी पे कोई पोस्ट नहीं आयी तो लगा शायद अब यहाँ की मस्ती को भूलना पड़ेगा पर अभी अभी पोस्ट देखी तो सुखद आश्चर्य हुआ ...
होली का आनंद भी तभी है जब सब सब मिल के खेलें और इस तरही के बहाने सब से मुलाक़ात हो जाती है ... शब्दों की होली खेली जाती है ...
आज की पोस्ट हरकत करने के लिए जोश जगाती हुई पोस्ट है। शिशिर-शरद के कोप के दिन बीत चले। अब तो धूप और उजालों के उल्लास भरे दिन हैं।
जवाब देंहटाएंशुभ-शुभ
ट्विटर हो, फ़ेसबुक हो या, हो महफ़िल वाट्स एप्प वाली
जवाब देंहटाएंब्लागी इस निकटता को कभी भी छू न पायेगी
तरही अंगड़ाइयां फिर ले रही संवाद सेवा पर
इसे देखेण्गे तो अपनी जवानी याद आयेगी
कोशिश करते है, अछ्छा मिसरा है
जवाब देंहटाएंआज एक मार्च को आपका मेल और यह पोस्ट देख पाया। देढ़ माह से बाहर था....आज दो हफ़्ते बाद वतन लौट कर भी होली का ख़्याल आया भी तो फेसबुक पर नीरज जी की रचना देख कर! 'सुबीर संवाद सेवा' पर तरही मिसरा देखा। शानदार है। कौशिश अब शुरू करना है....पंचमी तक भी कुछ कह पाया थो शरीक होने की कौशिश करूंगा। बधाई, शुभकामनायें ।
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