मंगलवार, 27 जून 2017

मुशायरा आज से शुरू कर रहे हैं, क्योंकि ग़ज़लें अधिकांश कल ही प्राप्त हुई हैं। तो आइये आज से हम ईद मनाना शुरू करते हैं यहाँ। और आज दिगंबर नासव तथा नुसरत मेहदी जी की ग़ज़लों के साथ मनाते हैं ईद।

ब्लॉग परिवार के सभी सदस्यों को ईद मुबारक, ईद मुबारक, ईद मुबारक।

मित्रों इस बार ईद के मुशायरे का मिसरा कुछ कठिन तो था यह तो ज्ञात था लेकिन इतना कठिन हो जाएगा कि ईद के एक दिन पूर्व तक भी ग़ज़लें नहीं के बराबर आएँगी यह पता नहीं था। इसी कारण ईद का त्यौहार अब हम बासी ही मनाएँगे। अच्छा भी है कम से कम कुछ दिनों तक और त्यौहार का माहौल बना रहेगा। जिंदगी में और उसके अलावा है भी क्या। जो भी पल हम खुशी में जी लेते हैं वही जिंदगी की असली पल होते हैं। बाकी तो हम सबने अपनी जिंदगी को इतना कठिन बना लिया है कि हम खुश होना ही भूलते जा रहे हैं। त्यौहारों पर हम खुश होते हैं और उसके बाद फिर जिंदगी पुराने ढर्रे पर आ जाती है।

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आइये आज से हम ईद का तरही मुशायरा शुरू करते हैं। और मनाते हैं ईद का त्यौहार हिलमिल कर।

कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक

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दिगंबर नासवा

रमजान में लौटेंगे वो घर, ईद मुबारक
सरहद से अभी आई खबर, ईद मुबारक

मुखड़ा है मेरे चाँद का, है चाँद की आमद
अब जो भी हो सबको हो मगर, ईद मुबरक

देखेंगे तो वो इश्क ही महसूस करेंगे
वो देख के बोलें तो इधर, ईद मुबारक

साजिश ने हवाओं की जो पर्दा है उड़ाया
आया है मुझे चाँद नज़र, ईद मुबारक

इंसान ही इंसान का दुश्मन जो बनेगा
तब किसको कहेगा ये शहर, ईद मुबारक

लो बीत गए दर्द की परछाई के साए
कहती है ये खुशियों की सहर, ईद मुबारक

वाह क्या बात है मतले में ही उन लोगों के लौटने के संकेत मिल रहे हैं जो अपने घर से साल भर दूर रहे और अब ईद के त्यौहार पर अपने घर लौट रहे हैं। सरहद से खबर आई है और ईद मन गई है। मुखड़ा है मेरे चांद का, है चांद की आमद, वाह वाह क्या मिसरा गढ़ा है। खूब। और अगले शेर में मासूमियत के साथ कहना कि वो देख के बोलें तो इधर ईद मुबारक। वाह सच बात है कि किसी के देखने और उसके ईद मुबारक कहने से ही तो ईद होती है। और साजिश से हवाओं की परदे का उड़ना और उसके बाद ईद मन जाना वाह क्या बात है। ग़ज़ब। और अंत के शेर में बहुत सुंदर तरीके से गिरह बांधी है। वाह वाह वाह क्या सुंदर ग़ज़ल खूब।

nusrat mehdi

नुसरत मेहदी

रक़सां हैं दुआओं के शजर ईद मुबारक
हैं नग़मासरा बर्ग ओ समर, ईद मुबारक

हर सम्त फ़ज़ाओं में उड़ाती हुई ख़ुशबू
"कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक"

लो फिर से महकने लगीं उम्मीद की कलियां
खुलने लगे इमकान के दर, ईद मुबारक

कुछ लोग हैं लेकिन पसे दीवारे अना भी
जा कह दे सबा जाके उधर ईद मुबारक

ये तय है कि हम ईद मनाने के नहीं हैं
मिलकर न कहा तुमने अगर ईद मुबारक

जो प्यास के दरिया में भी सेराब थे 'नुसरत'
दामन में हैं अब उनके गुहर ईद मुबारक

बात तीसरे शेर से ही शुरू की जाए पहले, कुछ लोग हैँ लेकिन पसे दीवार अना भी में मिसरा सानी घप्प से कलेजे में आकर कटार की तरह बैठ जाता है। जा कह दे सबा जाके उधर ईद मुबारक। कमाल कमाल क्या सुंदर और मासूम मिसरा है। वाह। मतला बहुत ही खूब बना है रकसां हैं दुआओं के शजर ईद मुबारक और मिसरा सानी ने मिलकर मानों ईद का एक पूरा चित्र ही बना दिया है। पहले ही शेर में बहुत ही सुंदर तरीके से गिरह बांधी है। गिरह बांधने में बहुत नफासत का उपयोग किया गया है। और अगले ही शेर में इमकान के दर खुलने का चित्र भी बहुत ही सुंदर तरह से बनाया गया है। और एक और आहा और वाह वहा टाइप का शेर है ये तय है कि हम ईद मनाने के नहीं हैं में मिसरा सानी मोहित कर ले रहा है मिलकर न कहा तुमने अगर ईद मुबारक। और मकते का शेर सब के जीवन में ईद के त्यौहार द्वारा बिखेरी गई खुशियों की बात कर रहा है। सच में यही तो त्यौहार होता है जो सबके जीवन में रंग और नूर ले आता है। वाह वाह वाह क्या बात है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल।

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तो मित्रों ये हैं आज के दोनों शायर। इन कमाल की ग़ज़लों पर दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का। सबको ईद मुबारक।

14 टिप्‍पणियां:

  1. किसी किसी मिसरे पर तरही कठिन इसलिये भी हो जाती है कि ग़ज़ल ग़ज़ल जैसी न दिखकर विषय विशेष का स्तुतिगान सी लगने का भय समाया रहता है और इसी भय में शुरुआत ही नहीं हो पाती! शायद यही कारण रहा हो कम ग़ज़ल आने का लेकिन प्रस्तुत दोनों ग़ज़ल पुष्ट करती हैं कि जहाॅं न पहुॅंचे रवि वहाॅं पहुॅंचे कवि!

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  2. साजिश ने हवाओं की जो पर्दा है उड़ाया
    आया है मुझे चाँद नज़र, ईद मुबारक

    इंसान ही इंसान का दुश्मन जो बनेगा
    तब किसको कहेगा ये शहर, ईद मुबारक
    दिगम्बर नासवा जी बहुत खूब।

    लो फिर से महकने लगीं उम्मीद की कलियां
    खुलने लगे इमकान के दर, ईद मुबारक

    ये तय है कि हम ईद मनाने के नहीं हैं
    मिलकर न कहा तुमने अगर ईद मुबारक
    बहुत खूब नुसरत मेहदी जी।

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  4. मुशायरे की शानदार शुरुआत के लिएबहुत बहुत बधाई.
    वाह क्या कहने!देखेंगे तो वो इश्क........ और
    इंसान ही इंसान...दिगंबर जीवाह.
    आदरणीया नुसरत जी गजब मतला. और ये तय है कि....अति सुन्दर

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  5. खूबसूरत गज़लोम की प्रस्तुति के लिये आपको और दोनोम शायरोम को बधाइ और इड मुबारक

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  6. मतले से मकते तक ईद मुबारक का सफर दिगंबर जी ने यादगार बना दिया है, हर शेर कमाल का है. दिगंबर जी का ये रंग निहायत दिलकश और खुशगवार है.
    नुसरत जी का 'कुछ लोग जो हैं... 'शेर, अपने आप में पूरी ग़ज़ल है...इसकी जितनी तारीफ़ करें कम ही रहेगी.
    बेहतरीन शेरों से सजी मुकम्मल ग़ज़ल के लिये नुसरत जी को ढेरों दाद .

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  7. इलाहाबाद में एक मान्यता है कि ईद का मौसम महीने भर चलता है. यानी, ईद एक रोज़ा त्यौहार नहीं है. उस हिसाब से मुशायरा समय पर ही है. वैसे, हम कल सुबह से उन्तीसे-तीसे के चाँद पर नज़र रखने की तरह पटल पर नज़र जमाये हुए थे.

    आदरणीय दिगम्बर नासवा जी की ग़ज़ल का मतला ही आशाओं-उम्मीदों से भरा हुआ सामने आया है. वाह वाह !
    इसी तरह, देखेंगे तो वो इश्क़ ही .. भी दिल के नज़दीक का शेर हुआ है
    मगर दिल जीत गया, इन्सान ही इन्सान का दुश्मन जो बनेगा.. केलिए ढेरों दाद. बहुत खूब भाई साहब.
    कुछ इसी अंदाज़ में हमने भी कहने की कोशिश की है. देखिएगा.

    आदरणीया नुसरत मेहँदीं की ग़ज़लों का इंतज़ार तो रहता ही है. वो तो पूरा हुआ ही. अलबत्ता क्या ग़ज़ल आयी है ! वाह वाह ! एक-एक शेर कमाल ! महीन बुनाई का सुंदर नमूना हैं सारे शेर ..
    खुलने लगे इमकान के दर .. इस एक मिसरे ने भावनाओं की तरंगों को बेहतरीन ढंग से शाब्दिक कर दिया है.
    ये तय है कि हम ईद मनाने के नहीं हैं.. जैसे शेर से जैसी आत्मीयता छलकी बाहर आ रही है, वह मुग्ध कर देती है.
    लेकिन, दिल जीत लिया .. कुछ लोग हैं लेकिन पसे दीवारे अना भी .. वाह वाह वाह ! इस एक शेर में हठ, नाज़, अपनत्व, उम्मीद और भरोसे को जैसे बाँध कर आपा ने शब्दबद्ध कर दिया है. दिल खुश हो गया है और मुशायरा बन गया !

    ईद की मुबारक़बाद के साथ-साथ अगले एपीसोड की प्रतीक्षा है..
    शुभ-शुभ

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  8. बहुत बेहतरीन गज़लें हैं दोनों ही..ईद मुबारक!!

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  9. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (29-06-2017) को
    "अनंत का अंत" (चर्चा अंक-2651)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  10. वाह वाह और वाह...क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है नुसरत जी ने... वाकई कमाल कर दिया हौ..
    ये तय है कि हम ईद मनाने के नहीं हैं
    मिलकर न कहा तुम ने अगर ईद मुबारक.
    और बाकी के सभी अशआर भी बेहद खूबसूरत बने हैं ..

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  11. आदरणीय दिगम्बर जी ने भी हमेशा कि तरह बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है..बहुत ही असरदार मतले से शुरू होती हुई सारी ग़ज़ल ही अपनी छाप छोड़ रही है..वाह बहुत खूब

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  12. बहुत सुंदर ग़ज़लें दोनों ही। बहुत बहुत बधाई

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  13. बहुत ही सुन्दर ग़ज़लें हैं दोनों। बहुत बहुत बधाई

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