मित्रों कहा जाता है कि सात आसमान हैं, सात समंदर हैं, सात महाद्वीप हैं सात सुर
हैं और सात ही रंग हैं। जी हां होली तो वैसे भी रंगों का ही त्योहार है तो आज होली
पर हम भी सात रंग ही लेकर आए हैं। सात रचनाकारों के सात रंग। यह भी एक संयोग ही है
कि यह सात रचनाकार आज होली पर सात रंग की ग़ज़लें लेकर आए हैं। आज की ग़ज़लें आपकी
होली को मुकम्मल कर देंगी। यह काव्य रस की पिचकारियां हैं जो तन पर एक बूँद नहीं
डालतीं लेकिन मन को पूरा का पूरा सराबोर कर देती हैं रंग में। इनमें सारे रंग हैं।
इस बार की हमारी होली एक और मामले में भी विशिष्ट है कि इसमें सारा भारत समाया हुआ
है। इस ब्लॉग की विशेषता यह है कि यह सबका ब्लॉग है। यह एक संयुक्त परिवार के
जैसा है। जहां सब दौड़े चले आते हैं। आते हैं और त्योहार मना लेते हैं। इस बार भी
कुछ लोगों ने अंतिम समय पर दौड़ कर गाड़ी पकड़ी है। तो आइये मनाते हैं सात रंगों की
सात ग़ज़लों के साथ होली ।
हौले हौले बजती हो बांसुरी कोई जैसे
नुसरत मेहदी जी
छा रही है तन मन पर बेख़ुदी कोई जैसे
रुत हुई है रंगों की बावरी कोई जैसे
रुत हुई है रंगों की बावरी कोई जैसे
फागुनी हवाओं की मदभरी ये सरगोशी
"हौले हौले बजती हो बांसुरी कोई जैसे"
"हौले हौले बजती हो बांसुरी कोई जैसे"
क़ुर्बतों के मौसम में लम्स वो मोहब्बत का
हो गई बयां पल में अनकही कोई जैसे
हो गई बयां पल में अनकही कोई जैसे
लिख रहा है फिर कोई दास्तान उल्फ़त की
फिर खुली कहीं दिल की डायरी कोई जैसे
फिर खुली कहीं दिल की डायरी कोई जैसे
ख़्वाहिशों की कश्ती फिर ढूंढने चली मंज़िल
और उफ़ान पर आई फिर नदी कोई जैसे
और उफ़ान पर आई फिर नदी कोई जैसे
हाथ हाथ में डाले बे ख़बर हैं दीवाने
तोड़कर रिवाजों की हथकड़ी कोई जैसे
तोड़कर रिवाजों की हथकड़ी कोई जैसे
आज जश्न होली का यूँ मनाएं हम नुसरत
ग़म न पास आएगा अब कभी कोई जैसे
ग़म न पास आएगा अब कभी कोई जैसे
वाह वाह वाह, क्या कमाल की ग़ज़ल है। होली का पूरा वातावरण निर्मित करती है यह
ग़ज़ल। काफिये में नुसरत जी ने 'ई' की एक शब्द पीछे वाली मात्रा को पकड़ लिया है।
मतला ही मानो होलीमय होकर लिखा गया है। लेकिन जो कमाल गिरह लगाने में किया गया है
वह तो लाजवाब है। फागुनी हवाओं की मदभरी ये सरगोशी। कमाल कमाल। अगले ही शेर में
मोहब्बत का लम्स बाकमाल आया है। स्तब्ध कर देता हुआ। दास्तान उल्फ़त की लिखने
के लिये दिल की डायरी का खुल जाना भी एक अनूठा ही प्रयोग है। कश्ती का निकलना और
नदी का उफनना वाह क्या बिमब है। और उस पर मकते का शेर भी एक बार फिर से होलीमय
होकर ही लिखा गया है। सच में होली मनाने के लिये आवश्यक है कि हम बस यह सोच लें कि
अब कभी कोई भी ग़म नहीं आएगा। यही जीवन की सच्चाई है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या
बात है, वाह वाह वाह।
शार्दुला नोगजा जी
आपका लगे नाता, हमसे हो कोई जैसे
कौन वरना घुलता है, दूध में दही जैसे
कौन वरना घुलता है, दूध में दही जैसे
रंग से तेरे जालिम, अंग यूँ महकते हैं
गुनगुनाने लगती है, ओस छू कली जैसे
गुनगुनाने लगती है, ओस छू कली जैसे
होलिका की आँचों से, बचपनों में गर्मी थी
पर्व बिन हुई ठंडी, शहरी ज़िन्दगी जैसे
पर्व बिन हुई ठंडी, शहरी ज़िन्दगी जैसे
गीत माँ यूँ गाती हैं, नीपते हुए आंगन
कर रही हों बच्चे की, दाई माँ लोई जैसे
कर रही हों बच्चे की, दाई माँ लोई जैसे
बेटियाँ हैं या कोई, रूह हैं ये खरगोशी
नर्म-नर्म बाहें हैं, गाल हैं रुई जैसे
नर्म-नर्म बाहें हैं, गाल हैं रुई जैसे
याद तेरे जाने की, यकबयक चली आए
रात डर के उठ जाए, लाडली सोई जैसे
रात डर के उठ जाए, लाडली सोई जैसे
डूबते उतरते हैं, यों कमल सरोवर में
जिन्दगी के सागर में, ढूँढे मन खुशी जैसे
जिन्दगी के सागर में, ढूँढे मन खुशी जैसे
राधिका हैं कान्हा मन, युद्ध के नगाड़ों में
हौले हौले बजती हो, बांसुरी कोई जैसे
हौले हौले बजती हो, बांसुरी कोई जैसे
श्याम श्याम रटती हैं, बावरी हुई गलियाँ
रेणु रेणु गोकुल की, बिरहिनी सखी जैसे
रेणु रेणु गोकुल की, बिरहिनी सखी जैसे
दही, सोचा नहीं था कि इस काफिये का भी इतना खूबसूरती के साथ उपयोग किया जाएगा।
एक बिल्कुल नये प्रयोग ने मतले को खूब बना दिया है। और उसके बाद के शेर में रंगों
से अंगों का महकना, वाह। कविता रंगों से रंगती नहीं है, महकाती है। सचमुच मां के
लिये उसका घर उसका बच्चा ही तो होता है और आंगन को लीपना बच्चे को लोई करना ही
होता है उसके लिये। बेटियों को लेकर बहुत ही सुंदर शेर कहा है। गाल हैं रुई जैसे।
रुई भी काफिया बिल्कुल अलग से निकल कर आया है। महाभारत के युद्ध में खडे़ हुए
कृष्ण के मन में राधिका का होना और वह भी हौले हौले बजती हुई बांसुरी के समान
होना, वाह वाह क्या कमाल का प्रयोग किया गया है, कमाल की गिरह। और उसके बाद अंतिम
शेर भी उसी प्रकार से कृष्ण के प्रेम में बावरी गोपियों की मनोदशा का चित्रण है।
वाह वाह वाह क्या सुंदर ग़ज़ल । खूब।
गौतम राजरिशी
छू लिया जो उसने तो सनसनी उठी जैसे
धुन गिटार की नस-नस में अभी-अभी जैसे
धुन गिटार की नस-नस में अभी-अभी जैसे
पागलों सा हँस पड़ता हूँ मैं यक-ब-यक यूँ ही
करती रहती है उसकी याद गुदगुदी जैसे
करती रहती है उसकी याद गुदगुदी जैसे
जैसे-तैसे गुज़रा दिन, रात की न पूछो कुछ
शाम से ही आ धमकी, सुब्ह तक रही जैसे
शाम से ही आ धमकी, सुब्ह तक रही जैसे
तुम चले गये हो तो वुसअतें सिमट आयीं
ये बदन समन्दर था अब हुआ नदी जैसे
ये बदन समन्दर था अब हुआ नदी जैसे
फुसफुसा के कुछ कहना वो किसी का कानों में
"हौले हौले बजती हो बाँसुरी कोई जैसे"
"हौले हौले बजती हो बाँसुरी कोई जैसे"
सुब्ह-सुब्ह को उसका ख़्वाब इस क़दर आया
केतली से उट्ठी हो ख़ुश्बू चाय की जैसे
केतली से उट्ठी हो ख़ुश्बू चाय की जैसे
डोलते कलेंडर की ऐ ! उदास तारीख़ों
रौनकें मेरे कमरे की हैं तुम से ही जैसे
रौनकें मेरे कमरे की हैं तुम से ही जैसे
राख़ है, धुआँ है, इक स्वाद है कसैला सा
इश्क़ ये तेरा है सिगरेट अधफुकी जैसे
इश्क़ ये तेरा है सिगरेट अधफुकी जैसे
धूप, चाँदनी, बारिश और ये हवा मद्धम
करते उसकी फ़ुरकत पर लेप मरहमी जैसे
करते उसकी फ़ुरकत पर लेप मरहमी जैसे
गौतम हमारे इस परिवार का एक होनहार बिरवा है। गौतम के बिम्ब और उसके शब्द
ग़ज़लों की शब्दावली को बदलने में लगे हैं। मतला ही एकदम झन्नाटे से गुज़रता है।
चौंकाता हुआ कि अरे ! यह क्या हुआ। ग़ज़ब। जैसे तैसे गुज़रा दिन में रात का शाम से
ही आ धमकना, यह गौतम के ही बस की बात है। ग़ज़ब का टुकड़ा है। और बदन का समन्दर से
वापस नदी हो जाना, क्या उदास शेर है। दो शब्द गौतम के पेटेंट हैं ग़ज़लों में चाय
और सिगरेट तथा इस ग़ज़ल में भी दोनों शब्दों का बहुत ही खूबसूरत उपयोग किया है।
सिगरेट वाला शेर गौतम के बाकी सिगरेट वालों पर भारी है। लेकिन जिस शेर ने मोह लिया
है वह है डोलते कलेंडर की उदास तारीखों वाला शेर। बहुत ही सुंदर तरीके से रिश्ता
स्थापित किया है। खूब। गौतम को यह कमाल खूब आता है कि एक शेर में शुद्ध मिलन और
दूसरे में ही विरह । वाह वाह वाह, खूबसूरत ग़ज़ल। खूब ।
नीरज गोस्वामी जी
जब उठीं वो पलकें तो, धूप सी खिली जैसे
बह रही है आंखों से, नूर की नदी जैसे
श्याम को बुलाती है, लोकलाज तज राधा
फागुनी बयारों से, बावरी हुई जैसे
गीत वो सुनाती है, तोतली जबाँ में यूँ
हौले हौले बजती हो, बांसुरी कोई जैसे
वस्ल में बदन महके, इस तरह तेरा जानम
मोगरे के फूलों से, डाल हो लदी जैसे
है नहीं मुकम्मल कुछ, शै हर इक अधूरी सी
आपके बिना सबमें, आपकी कमी जैसे
रोशनी का झरना सा, फूटता है झर झर झर
मोतियों की बारिश है, आपकी हँसी जैसे
दुश्मनों पे डालो तुम, रंग प्रेम के "नीरज"
यूँ मिलो कि बरसों की, हो ये दोस्ती जैसे
वाह इस प्रकार की ग़ज़लें कहना नीरज जी का ही रंग है। जीवन के संदर्भों से भरी हुई ग़ज़ल। श्याम को बुलाना और राधा का बावरी होना यह होली का स्थाई भाव है और इस स्थाई भाव का बहुत खूबी से प्रयोग किया है शेर में। अगले शेर में गिरह को बांधने के लिये प्रेमिका के स्थान पर बेटी का प्रयोग किया है। यह अपने आप में एक कमाल है। नन्हीं सी बेटी जब तोतली जबां में गीत सुनाती है तो वह भी बांसुरी जैसा ही होता है। वाह क्या बात है। वस्ल में बदन का महकना और उसमें नीरज जी के पसंदीदा फूलों का आना बहुत ही सुंदर बन पड़ा है। मोगरे की डाली पर नीरज जी का पेटेंट है। और उस पर होली के रंगों से दुश्मनी के मैल को साफ कर देने का भाव लिये मकते का शेर भी खूब है। नीरज जी के भी कुछ भाव हैं जो केवल और केवल उनकी ही ग़ज़लों में मिलते हैं । एक स्थाई भाव है सकारात्मकता। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल खूब, वाह वाह वाह ।
द्विजेन्द्र द्विज जी
सबसे पहले तो यह सूचना कि द्विजेन्द्र जी की एक और भी रचना
है जो बासी होली में लगाई जाएगी।
सबसे यूँ मुख़ातिब है एक बेरुख़ी जैसे
चुप्पियाँ सुनाती है बेहिसी कोई जैसे
चुप्पियाँ सुनाती है बेहिसी कोई जैसे
नींद से जगाती है रोज़ हड़बड़ी जैसे
बस गई हो सीने में एक बेकली जैसे
बस गई हो सीने में एक बेकली जैसे
रंग जब उलझते हैं मतलबों की साज़िश में
शहर ओढ़ लेता हैं रंग कत्थई जैसे
शहर ओढ़ लेता हैं रंग कत्थई जैसे
वो जो एक पर्बत है वो भी टूट सकता है
उसमें भी तो रहती है कुछ न कुछ नमी जैसे
उसमें भी तो रहती है कुछ न कुछ नमी जैसे
आइने की पत्थर से दोस्ती नहीं होती
ढो रहे हों दोनों ही एक बेबसी जैसे
ढो रहे हों दोनों ही एक बेबसी जैसे
ऐसे फेंक देते हैं लोग अपने ईमाँ को
साँप उतार देता है अपनी केंचुली जैसे
साँप उतार देता है अपनी केंचुली जैसे
यह सफ़ेद अँधेरा है या सियाह उजाला है
रोशनी अब आँखों को साथ ले गई जैसे
रोशनी अब आँखों को साथ ले गई जैसे
उसमें मेरे सपने थे, उसमें मेरा बचपन था
आज भी बुलाती है मुझको वो गली जैसे
आज भी बुलाती है मुझको वो गली जैसे
यह वजूद रहता है अश्कों के समन्दर में
फिर भी ज़िन्दा रहती है कोई तिश्नगी जैसे
फिर भी ज़िन्दा रहती है कोई तिश्नगी जैसे
ख़ुद के रू-ब-रू मैंने ख़ुद को जब भी पाया है
घूरता-सा दिखता है अजनबी कोई जैसे
घूरता-सा दिखता है अजनबी कोई जैसे
यूँ भी लोग जीते हैं मर भी जो नहीं सकते
उनका साँस लेना ही 'द्विज’ हो लाज़िमी जैसे
उनका साँस लेना ही 'द्विज’ हो लाज़िमी जैसे
सबसे पहले तो बात मतले की और हुस्ने मतला की। दोनों ही कमाल हैं। दोनों मतलों
में बहुत सुंदर काफियों का भी उपयोग किया गया है। खूब। पहले ही शेर में कत्थई रंग
को खूब बिम्ब के रूप लिया है। कविता की भाषा में शेर कहा है। लेकिन पर्बत के अंदर
नमी और उसका टूटना, कमाल है द्विज भाई । ग़ज़ब ही कहा है यह तो। आईने की पत्थर से
दोस्ती में बेबसी शब्द को अंत में अनूठे जोड़ से लगाया है। और उसके बाद सफेद
अंधेरा और सियाह उजाले में रोशनी का आंखों को ले जाना। बहुत ही खूब । उसमें मेरा
सपने थे उसमें मेरा बचपन था। ठिठका दिया इस शेर ने तो। उँगली पकड़ कर ले गया
स्मृतियों में। वाह । एक और ग़ज़ब का प्रयोग है खुद के रू ब रू खुद के आने का। और
उस पर भी अजनबी होना । वाह क्या प्रयोग किया है। अंतिम शेर में एक और अलग काफिया,
जीवन के फलसफे को शेर। वाह वाह वाह । क्या सुंदर ग़ज़ल है । बहुत खूब।
मन्सूर अली हाश्मी जी रतलामी
हौले-हौले बजती हो, बाँसुरी कोई जैसे
तार छिड़ गये मन के, मिल गई ख़ुशी जैसे.
तार छिड़ गये मन के, मिल गई ख़ुशी जैसे.
रंग की फुहारें है, चुलबुले इशारे हैं
तन से पहले ही मन ने, होली खेल ली जैसे.
तन से पहले ही मन ने, होली खेल ली जैसे.
दौश पर हवाओं के, ख़ुश्बूओं की आमद है
इन्तेज़ार की घड़ियां, ख़त्म हो रही जैसे.
इन्तेज़ार की घड़ियां, ख़त्म हो रही जैसे.
देश प्रेमी हो गर तुम 'जय' का सुर अलापोगे
इक नई परिभाषा अब तो बन गई जैसे.
इक नई परिभाषा अब तो बन गई जैसे.
अब नये कन्हैया हैं, धुन भी कुछ निराली है
कैसा सुर ये निकला है, रोई बाँसुरी जैसे.
कैसा सुर ये निकला है, रोई बाँसुरी जैसे.
अब तो भक्त किरपा से, जन ही बन रहे 'भगवन'
आश्वासनों की यां, बह रही नदी जैसे.
आश्वासनों की यां, बह रही नदी जैसे.
धर्म - आस्थाओं के, मूल्य घटते-बढ़ते है
'हाश्मी' थे कल तक जो, अब 'श्री-श्री' जैसे.
'हाश्मी' थे कल तक जो, अब 'श्री-श्री' जैसे.
मंसूर भाई व्यंग्य की ग़ज़लें कहते हैं और खूब कहते हैं। होली पर उनका इंतज़ार
इसलिये सबको रहता है। रंग की फुहारें हैं, चुलबुले इशारे हैं में तन से पहले ही मन
द्वारा होली खेल लिये जाने की बात बहुत खूब है। सच है होली में रंग तन पर नहीं मन
पर ही डाले जाते हैं। देशप्रेमी हो गर तुम जय का सुर में बहुत ही करारा व्यंग्य
कसा है मंसूर जी ने । कवि वही होता है जो इशारे में अपनी बात कह देता है। इतने
सलीके के साथ कि बस अश अश हो जाए। नए 'कन्हैया' के रूप में पलट कर दूसरे पक्ष पर
भी सटीक व्यंग्य कसा है मंसूर जी ने। यही तो साहित्यकार की विशेषता होती है कि
वह किसी का नहीं होता और सबका होता है। भकत किरपा से जन का भगवन हो जाना हो या फिर
हाशमी का श्री श्री हो जाना हो अपने समय पर बहुत ही गहरा कटाक्ष किया है दोनों
शेरों में। पैना और सटीक। बहुत ही सुंदर खूब वाह वाह वाह।
अभिनव शुक्ल
उम्र यूँ कटी, हो धुन, अनसुनी कोई जैसे,
लिख के फिर मिटा दी हो शायरी कोई जैसे।
लिख के फिर मिटा दी हो शायरी कोई जैसे।
उनके साथ अब अपने ताल्लुकात ऐसे हैं,
दुश्मनों से रखता हो दोस्ती कोई जैसे।
दुश्मनों से रखता हो दोस्ती कोई जैसे।
उसने मुझको देखा फिर, देखती रही मुझको,
गिन रही हो फंदों को सांवरी कोई जैसे।
गिन रही हो फंदों को सांवरी कोई जैसे।
याद उनकी गलियों से इस तरह गुज़रती है,
हौले हौले बजती हो बांसुरी कोई जैसे।
हौले हौले बजती हो बांसुरी कोई जैसे।
भूख से बिलख सोया, लाल, माँ निरखती है,
कोहीनूर पढ़ता हो जौहरी कोई जैसे।
कोहीनूर पढ़ता हो जौहरी कोई जैसे।
इस तरह हमें सुनना, फिर मिलें, मिलें न मिलें,
गीत हो पपीहे का आखिरी कोई जैसे।
गीत हो पपीहे का आखिरी कोई जैसे।
अभिनव और नुसरत जी दोनो ने ही एक प्रकार से ग़ज़ल कही है, एक शब्द पीछे की ई
को काफिया बना कर। बहुत ही रूमानी मतला है जिस रूमान में विरह शामिल हो उसका तो
वैसे भी कहना ही क्या। अनसुनी धुनें हम सबके पास होती हैं। और हम सब उनके सुने
जाने की प्रतीक्षा करते हैं। एक कमाल का शेर इस ग़ज़ल में है उसने मुझको देखा फिर
देखती रही मुझको। इसमें बहुत ही सुंदर प्रयोग है, देखते रहने का भी और फंदों को
गिनने का भी। बहुत ही सुंदर। और उसी प्रकार से गिरह का मिसरा भी बहुत ही अच्छे
लगाया है। याद का उनकी गलियों से गुज़रना और बांसुरी बजना, बहुत ही सुंदर। मां से
बड़ा जौहरी और कौन होता है भला और हर मां के लिये उसका लाल कोहीनूर ही होता है। और
आखिरी का शेर वाह, मिसरा ऊला ही अंदर तक गहरे उतरता जाता है। बहुत ही डूब कर लिखा
है। क्या कमाल की ग़ज़ल कही है, खूब वाह वाह वाह।
आप सबको होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं। आपके जीवन में रंग और उमंग बने रहें।
होली के बाद भी बासी होली होती है सो हम मिलेंगे बासी होली में कुछ और रचनाकारों के
साथ।
वाह्ह्ह्ह बहुत खूब 1 पहले तो आप सब को होली की हार्दिक शुभकामनायें 1 बहुत देर से ब्लाग से दूर थी मगर गुरूदेव ने बुला लिया तो हुकम कैसे टाला जाता 1नुसरत जी को पहली बार पढा शायद और फैन हो गयी
जवाब देंहटाएंकुर्बतों के ----
ख्वाहिशों की कश्ती---- मे तो हम सवार हो गये अब
बहुत खूब सूरत गज़ल बधाई नुस्रत ही होली की हार्दिक बधाई
वाह्ह्ह शर्दूला जी मै तो मतले पर ही अटकी रह गयी1 दिली दाद मतले के लिये
जवाब देंहटाएंऔर मकते तक मै भी गज़ल रटने की कोशिश कर रही हूँ मगर बुढापा है कि समय मांगता है सो मतले से मक्ते तक बहुत बडी वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
गौतम जी को देखते ही पहले मन से आशीश निकली फिर शत शत नमन भी किया नमन एक सिपाही को 1 इनके लिये शेर कहना तो खेल है सो आज खूब रंग खिलाये हैं जीवन के हर शेर दिल को छूता हुया
जवाब देंहटाएंडोलते कलैंडर की-----
राख धुयां------
वाह्ह्ह्ह्ह लाजवाब गज़ल्1
लीजिये ;जैसे; जी वाह्ह कमाल है आपकी मोगरे की डाली क्या खूब खिला हुयी है लेकिन मुझे तक फूल नही पहुंचे अभी तक
जवाब देंहटाएंमोतिओं की बारिश
फाल्गुनी बहारे
किस किस बात पर दाद दूँ लाजवाब गज़ल वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
द्विजेन्द्र द्विज जी की गज़ल पर कुछ कहूँ इतनी अभी तक भी काबलियत नही1 गज़ल आती नही थी जब उन्की गज़ल की पुस्तक मिली तब मन मे आया कि मुझे सीखनी चाहिये तो आद गुरूदेव सुबीर जी की शर्ण ली लेकिन लगातार सम्पर्क मे नही रह पाई ब्लाग छूट गया फिर कुछ कहने लिखने की कोशिश के साथ दोबारा इसी गुरूकुल मे आयी हूँ
जवाब देंहटाएंद्विज जी हर सानी मिसरे के लिये दिली दाद है बस यही कह सकती हूँ वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
आद मन्सूर अली हाशमी जी बहुत खूब हर शेर कुछ नया कहता हुया
जवाब देंहटाएंदौश पर हवाओं के ----- वाह्ह्ह्ह्ह बहुत खूब
अब तो भक्त किरपा----- वाह्ह्ह्ह
और मक्ता ? इसके लिये जितनी तारीफ की जाये कम 1 आज के सच को ब्यां करती गज़ल बाधाई आपको वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
अभीनव जी बहुत खूब इस उम्र मे इतना उम्दा कलाम आगे आगे क्या होगा लाजवाब गज़ल
जवाब देंहटाएंउनके साथ अपने तल्लुकात्----- वाह्ह्ह्ह
भूख से बिलख के सोया----- वाह्ह्ह्ह्ह बहुत खूब
हर शेर उम्दा दिली दाद 1 वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
गुरूदेव! बहुत शानदार आयोजन होली पर बहुत बहुत बधाई 1 अगले आयोजन की जानकारी दे कृ्प्या 1
जवाब देंहटाएंनुसरत जी की फ़ैन हूँ । ये कहना ग़ुरूर सा देता है और उनकी ये ताज़ा ग़ज़ल पढ़ ये ग़ुरूर और बढ़ गया है। हर एक शेर मीठे पानी का बहता झरना सा बाकमाल ग़ज़ल नुसरत जी। बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंशर्दुला जी की गजलों मे ऐतिहासिक चरित्र बहुत ख़ूबसूरती से आते हैं । सरोवर मे कमल वाला शेर बहुत सुन्दर बन पड़ा है।
गौतम जी का नाम पढ़ते ही दिमाग़ मे अगला ख़्याल जो आता है वो है सिगरेट। चाय, सिगरेट, मोगरे के तो पैटेन्ट हो गए आगे ख़ैर हो हा हा । कमाल ग़ज़ल है गौतम जी । पागलो सा हँसना, फुसफुसाना ,वुसअतो का सिमटना, इश्क़ कसैला स्वाद । चाँदनी ,बारिश सब कमाल ।
नीरज सर की ग़ज़ल क्या कहें निशब्द हैं। मतला ही आगे नही बढ़ने देता। नूर की नदी का बहना वाह। राधा का लोकलाज तजना, तोलती जुबां सब कमाल पर दो शेर ... " है नही मुकम्मल कुछ..." "रोशनी का झरना.." तो बहुत खूबसूरत । बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंद्धिज जी की ग़ज़ल का मतला आह क्या खूब वाह वाह ।
उसके बाद रंगो का मतलब की साज़िशों से उलझने वाला शेर बहुत दूर तक जाता है , दो ख़ास रंगो से मिलकर कत्थई रंग ही बनता है। जीवन व सरोकारों पर बहुत उम्दा ग़ज़ल । द्धिज जी को प्रणाम ।
हाशमी जी की गजलों ही नही टिप्पणियों का भी इन्तज़ार रहता है ।
रंग की फुआरें, देशप्रेमी हो तो , हाशमी से श्री श्री सब शेर कमाल कमाल कमाल।
दुश्मनों से दोस्ती, उसने मुझको देखा, याद की गलियाँ सब कमाल पर आख़िर के दो शेर तो क्या कंहू .....
पढ़ कर रोंगटे खड़े हो गए इनमें भी भूख से बिलख सोया ... शेर कालजयी शेर है मेरे नज़दीक । पूरी ग़ज़ल ना कह कर अभिनव जी ने बस ये शेर ही कहा होता तो भी बहुत था। आँसू भी पत्थर हो जाएँ इसे पढ़ तो। अभिनव जी को बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएँ । और इस शेर के लिए अलग से बधाई।
पंकज जी का शुक्रिया उन्होंने होली मे काव्य का रंग घोलने को जुटाया ये परिवार । आज की गजलों ने क्या ही खूब समा बाँधा । पढ कर बहुत रंगमय हो गया मन ।
वाह वाह वाह क्या रंगबिरंगा तोहफा दिया है होली पर आपने गुरुदेव - लाजवाब बेमिसाल बेजोड़-- कुछ सूझ ही नहीं रहा.क्या ग़ज़ब का आयोजन हुआ है यहाँ होली पर सुभानअल्लाह !!
जवाब देंहटाएंनुसरत जी के नफ़ासत से भरे शेर जिनमें से "कुर्बतों के मौसम --और ख्वाइशों की कश्ती --वाले तो जान लेवा है। कमाल कर दिया है नुसरत बहन ने वाह वाह वाह
शार्दुला जी जब भी ऐसे आयोजन में आई हैं अपनी धमाकेदार रचना हमेशा साथ लाईं हैं , ना यकीन आये तो पुराना इतिहास उठा कर देख लें , इस बार भी दूध में दही और राधिका है कान्हा मन जैसे शेर कह कर हमें अवाक कर दिया है
गौतम - अहा हां !!! क्या कहूँ इसके बारे में ये तो भाई कमाल का शायर कर्नल है "तुम चले गए हो तो ---और "डोलते कैलेंडर की --" जैसे शेर कहना इसी के बस की बात है , कैसे कैसे शेर निकलते हैं इसके ज़ेहन से हद है , ऊपर वाला भी इसे बना कर अब तक इतराया घूम रहा होगा !! वाकई ये चीज़ बड़ी है मस्त मस्त !!
द्विज जी के बारे में कहने की तब मेरी कलम में , वो मेरे छोटे भाई बाद में हैं उस्ताद पहले हैं ," रंग कत्थई कोई--और वो जो एक पर्वत है --- जैसे शेर कोई उस्ताद ही कह सकता है
मंसूर भाई पे जानो-दिल सदके , मुहब्बत की चाशनी में डूबा ये अलबेला शायर अपने आप में अकेला है , मौजूं हालात पर इतनी ख़ूबसूरती से तब्सरा करते शेर कहे हैं की क्या कहूँ ? पूरी ग़ज़ल कोट करने लायक है - जियो मंसूर भाई जियो
अभिनव ने अभिनव ग़ज़ल कही इस उम्र में "उसने मुझे देखा फिर ---और इस तरह हमें मिलना --जैसे शेर कह कर हमें अपना दीवाना बना लिया है ---कमाल अभिनव कमाल - जियो बरखुरदार और ऐसे ही लिखते रहो
अब मेरी बारी - सच्ची बात तो ये है कि ये ग़ज़ल मैंने नहीं कही - कहलवाई गयी है , गुरुदेव ने इमोशनल ब्लेकमेल किया और गौतम ने सीधे ही पिस्तौल कनपटी पे तान दी और कहा कि कहो ग़ज़ल कहो - अब जो कुछ कहा गया है उस ग़ज़ल में वो जान बचाने के लिए कहा गया है - मरता क्या न करता वाली बात थी वरना मैंने तो बहुत पहले ही अपने हाथ खड़े कर दिए थे।
तरही में मेरा अब तक साथ निभाने वाले लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के जोड़ीदार प्यारेलाल याने तिलक राज तिलक जो को न देख कर घोर निराशा हुई। अगर उनकी ग़ज़ल कल पोस्ट होने वाली है तो ये बहुत ही गलत बात होगी वो हमेशा मेरे आगे पीछे छपे हैं अगर उन्हें पंकज जी ने अलग किया है तो मुझे कहना पड़ेगा " दो हंसो का जोड़ा बिछुड़ गयो रे ग़ज़ब भयो रामा जुलम भयो रे "
आप सभी को होली की शुभकामनाएं !!!!!
नीरज
हुजूर कहने के लिए कुछ खोपड़ी में घुसे तो ग़ज़ल हो। ग़ज़ल हो तो प्रविष्टि पहुंचे। पहुंचे तो पंकज जी का काम शुरू हो। शुरू हो तो ख़त्म हो।
हटाएंअब एक हंस ही कौवे की चाल चले तो दो हंसों के बिछुड़ने का दोष किसे?
हुजूर कहने के लिए कुछ खोपड़ी में घुसे तो ग़ज़ल हो। ग़ज़ल हो तो प्रविष्टि पहुंचे। पहुंचे तो पंकज जी का काम शुरू हो। शुरू हो तो ख़त्म हो।
हटाएंअब एक हंस ही कौवे की चाल चले तो दो हंसों के बिछुड़ने का दोष किसे?
तिलक भाइ आप बडे बडों की खोपडी खोल देते है ये नही मानती कि आपकी खोपडी मे बात नही घुसी वो सब से अच्छी गज़ल होगी जो सब के बाद आयेगी और होली की छाप छोड जायेगी1
हटाएंआदरणीया, यह तो आपकी भावना है जिसके पालन का प्रयास अवश्य रहेगा। सादर स्वीकार कर प्रयास अवश्य रहेगा।
हटाएंआहा आज तो समा ही बांध गया ...
जवाब देंहटाएंनुसरत जी ने तो जैसे भांग मस्ती घोल दी है हर के माध्यम से ... मतले के शेर से ही झूम उठने का मन करता है ... उल्फत की दास्ताँ में दिल की डायरी का खुलना ... गज़ब का समा बाँध रहा है ... बहुत लाजवाब शेर हैं सभी ....
शार्दुल जी ने तो शहरों की असलियत बयान कर दी है अपने शेर में ... सच में जब तक शहर कसबे थे ... होली का मज़ा ही कुछ और था ... माँ के गीत और बेटियों की नर्म नर्म गालों को बहुत कमाल से गूंथा है शेरो में ... और कान्हा के मन में क्या है ... सच में जैसे उसको पढ़ लिया है शार्दूला जी के इस गिरह के शेर ने .... बहुत बहुत लाजवाब ग़ज़ल ...
गौतम जी की शायरी के तो सब दीवाने हैं ... हर शेर में नए बिम्ब नगीने की तरह जोड़ते हैं ... कोमल, नासाफत अदायगी उनकी पहचान है ... गिटार की धुन और यादों की गुदगुदी पूरा दिन सच में रहती है ...केतली से उठता ख्वाब और अधजली सिगरेट सी यादें .... उफ़ कल्पना का जैसे कोई अंत ही नहीं है गौतम जी ... जिंदाबाद ... जिंदाबाद ...
जवाब देंहटाएंनीरज जी ... राधा तो वैसे भी बांवरी है श्याम के प्रेम में ... क्या गज़ब का शेर है ... मोंगरे के फूल और उनकी मासूम हंसी ... सच मिएँ भूली नहीं जा सकती ... हर शेर महकता हुआ और आखरी शेर भी कमाल है .... सबको अपना बनाता हुआ ... जय हो नीरज जी ...
जवाब देंहटाएंजहाँ हर शेर स्वयं ही सब कुछ कह रहा हो वहां मेरा कुछ कहना न कहना?
जवाब देंहटाएंक्या खूबसूरत ग़ज़ल सप्तक प्रस्तुत हुआ है।
ग़ज़ल कहने में अनुभव का पूर्ण ईमानदारी से प्रयोग हर शेर में देखा जा सकता है।
द्विज जी के शेर तो जैसे सीधे प्रवेश कर रहे हैं दिल मिएँ ... लगता है इतनी सहजता से कहे हैं की स्वतः बह रहे हो जैसे ...मतलबों की साजिश और आईने की पत्थर ... ऐसे शेर का बस मजा ही लिया जा सकता है ... ईमान और केंचुली का अध्बुध प्रयोग और बचपन की गलियों की यादें ... मिल के इस होली का मजा दूना कर रहे हैं ... हर शेर कीमती खजाना है ...
जवाब देंहटाएंजहाँ हर शेर स्वयं ही सब कुछ कह रहा हो वहां मेरा कुछ कहना न कहना?
जवाब देंहटाएंक्या खूबसूरत ग़ज़ल सप्तक प्रस्तुत हुआ है।
ग़ज़ल कहने में अनुभव का पूर्ण ईमानदारी से प्रयोग हर शेर में देखा जा सकता है।
जिंदाबाद मंसूर साहब ... अपने इतनी सादगी से व्यंग बुने हैं की दाँतों टेल उन्ली दब जाती है अपने आप ही ... हर शेर आज की पीड़ी को कुछ कहता हुआ है ... कन्हैया के निराले सुर और आज के भगवानों पर मस्त प्रहार है ... मतले का शेर दिल को छु के गुज़रता है ... समा बाँध दिया आपने बहुत मुबारक ...
जवाब देंहटाएंअभिनव जी ने कमाल का मतला बुना है ... मिटी हुयी शायरी सी उम्र ... वाह छा गए अभिनव जी जियो ... दुश्मनों से दोस्ती और फंडों का गिनना ... वाह क्या अंदाज है ... और गलियों से गुज़रती यादें सच में होल होल जैसे बांसुरी का बजना ... अलग ही दुनिया मिएँ ले जाता है ये शेर ... बहुत बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंआदरणीया नुसरत जी ने बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है। सचमुच होली का वातावरण बना दिया इस ग़ज़ल ने। ‘कोई जैसे’ को रदीफ़ लेकर इतनी अच्छी ग़ज़ल कहने के लिए बारंबार बधाई।
जवाब देंहटाएंआदरणीया शार्दूला जी की ये विशेषता है कि वो उनका एक न एक शे’र कृष्ण पर जरूर होता है। बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीया शार्दूला जी ने। बेटियों पर क्या कमाल का शे’र हुआ है और सोई लाडली का रात में डर कर उठ जाना ये शे’र कोई माँ ही कह सकती है। नमन है शार्दूला जी को इस शे’र के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय गौतम जी सिगरेट और चाय को जिस तरह ग़ज़ल में बाँधते हैं उस तरह कोई और नहीं बाँध सकता। यूँ तो हर शे’र कमाल है और ग़ज़ल धमाल है लेकिन सिगरेट और चाय का जवाब नहीं। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय नीरज जी ने मोगरे की डाली का जबरदस्त और बेहद सटीक प्रयोग एक बार फिर किया है। बिटिया वाला शे’र कमाल हुआ है और ‘आप के बिना सबमें, आपकी कमी जैसे’ भाई इस शे’र के तो क्या कहने। बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी को इस शानदार ग़ज़ल के लिए।
जवाब देंहटाएंआदरणीय द्विज जी ने लंबी मगर शानदार ग़ज़ल कही है। पर्वत के भीतर की नमी वाला शे’र कोई पहाड़ पर रहने वाला ही कह सकता है। इस लाजवाब शे’र के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई। शहर का कत्थई रंग ओढ़ना, आइने की पत्थर से दोस्ती, सफेद अँधेरा और सियाह उजाला, अश्क के समंदर में तिश्नगी का जिन्दा रहना जैसे बिम्बों से सजी इस ग़ज़ल के लिए आदरणीय द्विज जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंआजकी ग़ज़लें बस वाह वाह वाह !
जवाब देंहटाएंनुसरतजी की ग़ज़लें वैसे भी बाँध लेती हैं, उन्होंने इस बार की ग़ज़ल को अपनी ओर से तनिक और बाँध लिया है । काफ़िया तो वही रखा है, लेकिन रदीफ़ को ’कोई जैसे’ कर लिया है । यानी रदीफ़ का विस्तार और कम हो गया ।
क्या ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है !
’ख़्वाहिशों की कश्ती फिर.. ’ क्या शेर हुआ है ! वाह वाह !
और ’हाथ-हाथ में डाले बेख़बर हैं दीवाने..’ पर कुछ भी कहूँ थोड़ा होगा ।
लेकिन टूट कर जीने को न्यौत रहा है मक्ता । ध्यान से एक शब्द-शब्द को पढ़िये और उम्मीद से भर कर आज को जीते चले जाइये !
कमाल की ग़ज़ल केलिए दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीया !
मंसूर जी ने तंज-ओ-मिज़ाह की जो ग़ज़ल कही है वो भी ऐसे मिसरे पर इसके लिए उन्हें बारंबार बधाई।
जवाब देंहटाएंशार्दुला जी, कमाल ! कमाल !! .. मतले ने ही बाँध लिया, आगे का क्या ! दूध में दही को जामन की तरह जिसने घुलते और फिर उस दूध को चुपचाप दहीमय होते देखा हो वह इस मतले की महीनी से कुछ विशेष ही मुग्ध हो जायेगा । इसे कहते हैं ऑब्ज़र्वेशन !
जवाब देंहटाएंनिरीक्षण का यही रूप दिखता है अगले ही शेर में, जहाँ ’ओस छुई कली’ का गुनगुनाना कितनी रूमानियत के साथ अभिव्यक्त हुआ है । वाह !
या फिर आँगन का ’नीपा’ जाना !.. यौ मोन टा धन्न भ गेल ! आब किछु बजनाइयो मोस्किले बुझियौ !
सभी शेर आला हुए हैं .. दाद दाद दाद !
जिस शाइर से अभी महज़ पाँच-छः दिनों पहले ही चैटिंग के दौरान मैं ये बोल रहा था कि वे ज़रूर गज़लियायें ! उस शाइर की ग़ज़ल जब आयी तो क्या आयी ! वल्लाह !
जवाब देंहटाएंगिटार, बाँसुरी, कलेंडर, सिगरेट, धूप, चाँदनी, बारिश जैसे बिम्बों ने दिल के मानों तार झंकृत कर दिये ! पाठकों की महसूसियात को ही जैसे स्वर मिला है - ’धुन गिटार की नस-नस में (बजी) अभी-अभी जैसे’ !
भाई, किस एक शेर को सिंगल आउट किया जाय ? ’इश्क़ ये तेरा है सिगरेट अधफुकी जैसे..’ .. :-))
दाद दाद दाद !
नीरज भाई साहब का मतला मुशायरे के बेहतरीन मतलों में से एक है । लेकिन जिस अभिव्यक्ति से हम जैसे चकित हैं, वह ग़िरह का शेर है । आप बहुत अच्छे हैं नीरज भाई ! कहते हैं न, दिल से एकदम हीरा ! इसी बिना पर तो ’मोगरे के फूलों से लदी डाल’ की महीनी समझ में आती है । तभी तो यह शेर आध्यात्मिक की ओर डेग भरता दिखता है - ’है नहीं मुकम्मल कुछ, शै हर इक अधूरी-सी..’ बहुत खूब, नीरज भाई साहब ! और ये कुछ और भी ऐसे, आप ही के बूते की बात है .. ’रोशनी का झरना-सा फूटता है झर झर झर !’ अह्हाह ! क्या ध्वन्यात्मक शेर हुआ है, आदरणीय ! वाह वाह वाह !!
जवाब देंहटाएंदिल से मुबारकबाद ! दिल से मुबारकबाद इस मक्ते के लिए भी जो इस उक्ति को किस सहजता से ज़ाहिर कर रहा है - उदार चरितान्तु.. वसुधैव कुटुम्बकम् !
फिर आता हूँ..
जवाब देंहटाएंआदरणीय अभिनव जी ने अच्छी ग़ज़ल कही है। भूख से बिलखता वाला शे’र तो इतना कमाल हुआ है कि पूरी ग़ज़ल के बराबर है। बहुत बहुत बधाई अभिनव जी को।
जवाब देंहटाएंकाफी समय के बाद तरही की रौनक से दिल खुश हो गया..
जवाब देंहटाएंसभी ग़ज़लें शानदार. नुसरत जी का डायरी और हथकड़ी के काफिये वाले शेर खूब हैं. बहुत सुंदर.
शार्दूला जी के 'दूध में दही जैसे' मिसरे ने चौंका दिया. बहुत खूबसूरत. 'रुई जैसे', 'लोई जैसे'.. बहुत सुंदर प्रयोग.
गौतम का अपना अलग अंदाज़ है और वो उसमे कमाल करते हैं. 'बदन का समंदर से नदी होना..', 'चाय की खुशबू..', 'सिग्रेट..'वाह.
नीरज जी.. 'मोतियों की बारिश है आपकी हसी जैसे..' बहुत बढ़िया मिसरा. गिरह खूब है. बहुत बढ़िया ग़ज़ल.
द्विज जी की ग़ज़लें हमेशा प्रभावित करती हैं. हर ग़ज़ल में उस्तादाना अंदाज़ झलकता है. बेहद उम्दा. नतमस्तक!
हाश्मी जी. बहुत बढ़िया अंदाज़ है. हमेशा आपकी ग़ज़ल अलग होती है और मन को भाती है. बढ़िया.
अभिनव. "दुश्मों से रखता हो दोस्ती कोई जैसे.. बहुत बढ़िया. सुंदर ग़ज़ल.
सभी आदरणीय मित्रों को ह्रदय से धन्यवाद l
जवाब देंहटाएंमैं जानती हूँ सबका विशेष स्नेह मिला है, जबकि ग़ज़ल की नोक पलक इतनी बारीकी से नहीं संवार पाई l
पंकज में लिखवा लेने की ग़ज़ब सलाहियत है, हुनरमंद भाई है अपना l
शर्दुला जी, नीरज जी, गौतम, द्विजेन्द्र जी, मंसूर अली हाश्मी जी, अभिनव जी, सबकी ग़ज़लों में होली का मूड और ग़ज़ल का अपना ख़ास रंग है शुरू से आखिर बना हुआ हैlहोली की मस्ती का दामन किसी ने हाथ से नहीं जाने दिया l
आप सबको होली की शुभकामनाओं के साथ खूबसूरत ग़ज़लों के लिए भी मुबारकबाद l
बहुत समय के बाद ब्लॉग पर रौनक देखकर सुखद लगा
अन नोन जी जरा नकाब उठायें अइसे नही चलेगा1
हटाएंनुसरत मेहदी :
जवाब देंहटाएंमुकम्मल ग़ज़ल, बहुत ख़ूब.
ख़्वाहिशों की कश्ती फिर ढूंढने चली मंज़िल
और उफ़ान पर आई फिर नदी कोई जैसे
.... उफानो और तूफानों को पार कर आप तो मंज़िल पा ही लेगी. जो इस 'मंज़र' की ताब नही ला पायेगा वह तो किनारे पर ही डूब मरेगा!
नुसरत मेहदी :
जवाब देंहटाएंमुकम्मल ग़ज़ल, बहुत ख़ूब.
ख़्वाहिशों की कश्ती फिर ढूंढने चली मंज़िल
और उफ़ान पर आई फिर नदी कोई जैसे
.... उफानो और तूफानों को पार कर आप तो मंज़िल पा ही लेगी. जो इस 'मंज़र' की ताब नही ला पायेगा वह तो किनारे पर ही डूब मरेगा!
Itne gap ke baad blog ne bhi Unknown ghoshit kar diya.......
जवाब देंहटाएंNusrat Mehdi
Shukriya Mansoor Hashmi sb..
जवाब देंहटाएंद्विजेन्द्र द्विक भाई जी ने ये जता दिया कि ग़ज़लें कहना एक बात है और बात की बात में उस्तादाना शेर उतार देना हुनर माँगता है । कहाँ तो एक अदद मतले के लिए लोगों की हाँफ चढ़ी थी, यहाँ हुस्नेमतला पेश हो रहा है ! तिसपर सूचना ये कि मुशायरे का समापन अंक भाईजान की एक और ग़ज़ल से समृद्ध होगा ! जय हो !
जवाब देंहटाएं’रंग जब उलझते हैं, मतलबों की साज़िश में..’ जैसे एकाध शेर किसी आम शाइर को मशहूर कर दे ! यहाँ इसी ग़ज़ल में ’वो जो एक पर्बत है वो भी टूट सकता है.. ’ और ’खुद के रू-ब-रू ऐंने खुद को जब भी पाया है..’ जैसे शेर भी हैं !
’यह सफ़ेद अँधेरा है या सियाह उजाला है.. ’ पर, लेकिन, मैं ख़ास तौर पर अपनी बातें कहूँगा । मगर इसके पहले द्विजेन्द्र भाईजान से.. कि, हुज़ूर ! आप सही में बेइंतहा झन्नाटेदार चोट को गहराई से भोगे-झेले और उससे उबरे हैं क्या ! वर्ना आमतौअर पर ऐसे अहसास का शाब्दिक होना मुश्किल है.. कि.. ये रंगीन दुनिया जब छूटने के कग़ार पर होती है, तो दीखता आलम ब्लैक-एन-वाइट ही हुआ करता है ! अद्भुत और अहसास के लिहाज़ से बहुत बड़ा शेर है ये ! और ऐसे लोगों के जीवन को बताता हुआ है मक्ता !
दिल से आदाब है भाईजान !
आजका, नहीं-नहीं, मुशायरे का एक और कमाल बड़े भाईजान मन्सूर अली हाश्मी जी की कलम से हुआ है ! हालिया दौर की विसंगतियों को जिस चुलबुलेपन के साथ साझा किया है आपने कि आँखों में अदब के लिए तारी मुहब्बत एक बार और पानीदार हो जाती है !
जवाब देंहटाएं’देश प्रेमी हो गर तुम ’जय’ का सुर अलापोगे..’ क्या शेर हुआ है ! क्या शब्द प्रयुक्त हुए हैं ! वाह वाह ! विशेष कर ’अलापोगे’ का तो ज़वाब ही नहीं है ।
’अब नये कन्हैया हैं, धुन भी कुछ निराली है..’ इस शेर से निस्सृत व्यंग्यधार से बच पाना सहज नहीं है । क्या तेवर हैं ! बेतुके मताये हुए लोगों को झकझोरती हुई ये धार न केवल भिगोती है, बल्कि थपथपाती हुई आश्वस्त करती है -- बुरा न मानों होली है ! .. :-)))
और इस शेर पर क़ुर्बान - ’अब तो भक्त किरपा से, जन ही बन रहे भगवन..’ ! सही बात है । उम्मीद है आश्वासनों का कुछ प्रतिशत ही सही यथार्थ बनकर सामने आयेगा.. हा हा हा.. :-))
लेकिन, जिसे भिगा कर दागना कहते हैं, वह तो मक्ता है ! हा हा हा.. हुज़ूर वक़्त-वक़्त की बात है !
क्या कमाल के ग़ज़ल है, वाह ! एक जागरुक नागरिक क्या कहता है उसकी बानग़ी है मन्सूर हाश्मी साहब का यहा शेर !
भाई अभिनव शुक्ल जी छन्द कविताओं और ग़ज़लों में समान दखल रखते हैं । आपकी ग़ज़ल के ये दो अश’आर तो दिल को छू गये - ’उसने मुझको देखा फिर देखती रही मुझको..’ और भूख से बिलख सोया, लाल, माँ निरखती है..’
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा शाइरी हुई है, अभिनव भाई !
ऐसे ही लाभान्वित करते रहें ।
शुभ-शुभ
शार्दुला नोगजा :
जवाब देंहटाएंराधिका हैं कान्हा मन, युद्ध के नगाड़ों में
हौले हौले बजती हो, बांसुरी कोई जैसे
बहुत ख़ूब, ग़ज़ब किया है... युद्ध में कान्हा मन का राधिका मय होने का एहसास कोई भावुक शायरा ही कर सकती है.... इसी को तो ग़ज़ल कहते है.
मतला और पहला शेर भी ख़ालिस ग़ज़ल के शेर है.
बहुत बधाई.
आह...अरसे बाद तरही में शामिल होने का सुख | दिग्गजों की ग़ज़लों का लुत्फ़ | परम आनंद !!!
जवाब देंहटाएंकमाल और कमाल ... आहा ! आनंद और आनंद ...
जवाब देंहटाएं