दीपावली का तरही मुशायरा बहुत ही सफलता के साथ पूरा हुआ । इस बीच बहुत दिनों से ब्लाग पर कुछ भी नहीं लगाया गया । भभ्भड़ कवि भौंचक्के कुछ लिखना चाह रहे थे लेकिन कुछ नहीं लिख पाये । और बस यूं ही होता रह गया । इस बीच ये हुआ कि फेसबुक पर अक्सर कुछ न कुछ होता रहा । और बस यूं लगा कि मित्रों से संपर्क तो हो ही रहा है । इस बीच देखा कि दिसंबर भी आ चुका है और अब तो नया साल भी दहलीज पर आकर खड़ा हो गया है । तो लगा कि कुछ हो जाये ।
पिछले दो दिनों से कुछ व्यस्तता रही । पहले तो बात इन्दौर की हो जाये । रविवार को इन्दौर जाना हुआ । वहां की लेखिका श्रीमती ज्योति जैन के कविता संग्रह में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था । अच्छा लगा ये जानकर कि लोग अब इस योग्य समझने लगे हैं कि मुख्य अतिथि या मुख्य वक्ता के रूप में बुलाएं । ज्योति जी के पूर्व में दो कहानी संग्रह आ चुके हैं तथा ये तीसरी पुस्तक उनकी आई है । जब मंच पर जाकर बैठा तो वहां से जिन लोगों पर नज़र पड़ी श्रोताओं में वो सब साहित्य के दिग्गज बैठे थे । आदरणीय सरोज कुमार जी ( जिन्होंने मेरी कहानियां छाप छाप कर मुझे यहां तक पहुंचाया ), दादा चंद्रसेन विराट जी, दादा नरहरि पटेल जी, पुरुषोत्तम दुबे जी, प्रभु जोशी जी और ऐसे ही कितने ही नाम । वे सब जो दिग्गज हैं वे सब श्रोताओं के रूप में बैठे थे और मैं मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर था । क्या बोलता और कैसे बोलता । वे लोग जिनको तब से पढ़ रहा हूं जब लिखना आता तक नहीं था, वे श्रोता बने सामने बैठे थे । खैर जैसे तैसे जो कुछ बोल सकता था बोल दिया । कार्यक्रम की सबसे बड़ी विशेषता ये थी कि कार्यक्रम अपने निर्धारित समय पर ठीक घड़ी की सुइयों के हिसाब से शुरू हुआ और समय से दस मिनिट पहले समाप्त हो गया ( क्योंकि अध्यक्ष और मुझे 20-20 मिनिट बोलना था और हम 15-15 मिनिट ही बोले ।) ।
और फिर उसके बाद दूसरा कार्यक्रम जो कि वहीं पास के दूसरे सभागृह में होना था । उसमें मध्यप्रदेश लेखक संघ द्वारा मेरा सम्मान तथा मेरा एक छोटा सा भाषण होना था । वहीं उसी कार्यक्रम में श्री मुकेश तिवारी जी से पहली बार मुलाकात हुई । कार्यक्रम के पूर्व चर्चा के दौरान दादा चंद्रसेन विराट जी ने कहा -पूरा भाषण ग़ज़ल विधा पर ही देना है । मैं एक बार फिर से दुविधा में पड़ गया । खैर जैसे तैसे करके नैया पार हुई । कुछ बीच में बहस और प्रश्नोत्तर की स्थिति भी बनी । जो मेरा ज्ञान था उस अनुसार मैंने उत्तर दिये । हां वहां इता पर भी मैंने अपनी राय व्यक्त की और उर्दू हिंदी को लेकर काफी कुछ कहा । काफी कुछ जो विवाद खड़े करने वाला हो सकता था । दूसरे दिन उसी सब को समाचार पत्रों ने प्रकाशित भी किया ।
और फिर देर रात तक वापसी हुई इन्दौर से । फिर अगले दिन बरसों बाद अपने ननिहाल जाना हुआ । मेरा ननिहाल भोपाल से लगभग 25 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है दिल्लोद नाम का । बरसों बाद वहां जाना हुआ । अपने खेत देखे । वो खेत जो अब अपने नहीं रहे । मन बहुत दुखता है ऐसी जगहों पर जाकर । दिन भर वहां रहना हुआ । नानी से और बाकी सबसे मिलना जुलना होता रहा ।
वहीं पर एक मिसरा बना दिमाग में ''कुछ पुराने पेड़ बाक़ी हैं अभी तक गांव में'' और लगा कि मिसरा तो ठीक है और इस पर एक तरही मुशायरा तो करवाया ही जा सकता है । तरही मुशायरा जो कि श्री रमेश हठीला जी की स्मृतियों को समर्पित हो । जिनकी पुण्यतिथि 13 जनवरी आने ही वाली है । आप क्या कहते हैं । क्या इस मिसरे पर जिसमें ई की मात्रा को ( बाकी ) क़ाफिया बनाया जाये और 'हैं अभी तक गांव में'' को रदीफ बना कर काम किया जाये । बहर तो बहुत सीधी है । हां ये हो सकता है कि कुछ लोगों को बहुवचन से परेशानी हो और वे एकवचन में काम करना चाहें 'इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गांव में'' जैसा कुछ । बताइये कि क्या किया जा सकता है । ये भी हो सकता है कि दोनों मिसरों पर काम हो । जिसको एकवचन के साथ सहजता लग रही हो वो एकवचन पर काम करे और जिसे बहुवचन पर काम करना हो वो उस प्रकार करे ।
और अंत में एक बात ये कि दूसरों की तरह मुझे भी धनुष द्वारा गाया गया गीत कोलावरी बहुत बहुत पसंद आया है । उसकी बीट्स के कारण । कई बार सुन चुका हूं और अभी भी सुन रहा हूं ।
अजी कोलावरी के तो हम भी दीवाने हैं आप कैसे न होते...गीत मधुर है...और क्या चाहिए...? तरही का विचार उत्तम है...गाँव की यात्रा आपके साथ हमने भी कर ली...आनंद आया
जवाब देंहटाएंनीरज
कोलावारी धनुष के साथ साथ सोनू निगम के बेटे का भी छाया हुवा है आजकल ...
जवाब देंहटाएंलगता है अब फेस बुक पे अकाउंट बनाना ही पड़ेगा नहीं तो महीनों महीनों संपर्क नहीं हो पायगा ... तरही का इन्तेज़ार था बहुत दिनों से ... दोनों ही मिरसे ठीक हैं ... इसी बहाने कुछ छूट मिल गई ... गाँव के चित्र और पूरा माहोल अच्छा लगा ... आशा है जल्दी ही आप इस तरही विधिवत घोषणा करेंगे ...
आह एक सुन्दर यात्रा वृत्तांत है. नए साल का स्वागत तरही ग़ज़ल से होने पर आनंद दुगुना हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुतीकरण की तमाम कठिन कार्य एक बार फिर आपके ही कन्धों पर होगा. सो इस बार थोडा प्रोसेसिंग आसान रखियेगा.
रही बात कोलावारी की, ये समय की मांग है जम के सुना जाए.
बातें पुरानी, माहौल नया.. कुछ ऐसा ही होता है जब उन गुजर गये दिनों से दुबारा गुजरते हैं. आपकी ननिहाल की यात्रा, वर्तमान गोया भूतकाल की गलियों से गुजर रहा होगा.
जवाब देंहटाएंसाहित्य-मंच पर सम्मान हेतु हार्दिक बधाई.
तरही का मिसरा समीचीन बन पड़ा है. ऐसा लगता है, अवश्य कुछ विशेष खींच लायेगा.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
आपका मुशायरा कोलावेरी का क्रोध भी शान्त कर देगा।
जवाब देंहटाएंइंदौर के सफल कार्यक्रमों की बधाई. फोटो लाजवाब है.
जवाब देंहटाएंदोनों ही मिसरे अच्छे हैं, पिछली दफा भकभौं जी ने वादा करके भी तरही ग़ज़ल नहीं सुनाई, लेकिन इस दफा तो गाँव की यादें ताज़ा हैं तो जबरदस्त ग़ज़ल की उम्मीद है.
हठीला जी का ख्याल ज़ेहन में एक नई उमंग और जोश जगा देता है निश्चय ही हठीला जी को समर्पित ये तरही मुशायेरा यादगार रहेगा.
यक़ीनन मिसरा अच्छा है,क्योंकि यह जमीनी मोह्बत्त से जुड़ा है,खासकर इन हालात में जब हम ज़मीनी हकीकत से कटकर शहरों में बसते जा रहें हैं !
जवाब देंहटाएंKhoob Maza aayega shahar se gaanv ki or jaate jaate..............!!
जवाब देंहटाएंमिसरा भी शानदार, फोटो भी शानदार और कोलावरी भी सुनने में शानदार। सब कुछ शानदार है, जल्दी से तरही की घोषणा करें। ईश्वर करे ऐसे लाखों सम्मानों, भाषणों और बधाइयों का ताँता जीवन भर लगा रहे। मेरे विचार में भी तरही में दोनों मिसरे एक साथ दिए जा सकते हैं।
जवाब देंहटाएंGurudev meri tippani kaha gayab ho gai ...... Lagta hai spem mein chali gayee ... Nazar nahi AA rahi ...
जवाब देंहटाएंगुरुदेव प्रणाम,
जवाब देंहटाएंइंदौर कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी
बहुत खुशी हुई
............."काफी कुछ जो विवाद खड़े करने वाला हो सकता था । दूसरे दिन उसी सब को समाचार पत्रों ने प्रकाशित भी किया । "
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(सरल बह्र + कठिन मिसरा) या (कठिन बह्र + सरल मिसरा)
इसमें से एक बात के लिए तो अब लोग तैयार ही रहते हैं
मिसरा बढ़िया लग रहा है
"कोलावेरी D" के नए नए वर्ज़न आ रहे हैं प्रयोगधर्मिता देखते बनती है
इंदौर की रिपोर्ट पढ़ कर अच्छा लगा. तस्वीरें बहुत अच्छी हैं. गज़ल के बारे में जो आपने वहाँ कहा वो सब हमें भी बतायें!
जवाब देंहटाएंकोलावरी की बीट्स अच्छी हैं. बस बोल समझ नहीं आते. एक और गीत सुनिए जो हाल ही में कोलावारी जैसा ही हिट हुआ था.. आपने सुना ही होगा. बेगैरत ब्रिगेड का 'आलू अंडे'.. पाकिस्तान के हालात को लेकर.
http://www.youtube.com/watch?v=ZEpnwCPgH7g
तरही मिसरे आप दोनों ही दे दें तो अच्छा हो. कुछ फ्लेक्सिबिलिटी मिल जायेगी.
तो ये तय होता है कि तरही मुशायरा दोनों ही मिसरों पर होगा 'इक पुराना पेड़ बाक़ी है अभी तक गांव में' और 'कुछ पुराने पेड़ बाक़ी हैं अभी तक गांव में' किसी भी एक मिसरे को लेकर ग़ज़ल कहनी है । ई की मात्रा (बाक़ी, होती, रहती, उड़ती, आती, चलती) को क़ाफि़या बनाना है और 'है अभी तक गांव में' या 'हैं अभी तक गांव में' को रदीफ । ज़ाहिर सी बात है कि पहले मिसरे में बात एकवचन में होगी और दूसरे में बहुवचन में । और हां बहर तो सीधी है 2122-2122-2122-212 ( बहरे रमल मुसमन महजूफ) यथा रामसीता-रामसीता-रामसीता-रामरे । या सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा । और हां 13 जनवरी को श्री रमेश हठीला जी की प्रथम पुण्यतिथि पर मुशायरा होना है । तो रचनाएं 7 जनवरी के पूर्व भेजनी होंगीं । 7 जनवरी से पूर्व । अर्थात एक माह का समय है ।
जवाब देंहटाएंापने गाँव जाना और कुछ पुरानी यादों को फिर से जीवित करना बहुत अच्छा लगता है\ इस बार कोशिश करती हूँ अगर शब्दों ने साथ दिया\ आजकल दिमाग खाली सा ही है। इंदौर की रिपोर्ट बहुत बडिया आपको मुख्यातिथी बनने की बधाई। शुभकामनायें\
जवाब देंहटाएंलंबे समय बाद एक कार्यशाला के सिलसिले में बाहर आना हुआ और केवल चार कार्यदिवस का सप्ताह होने से आठ दिन कार्य से अलग रहने का मौका मिला लेकिन लीजिये मिल गया होमवर्क। स्वागत है।
जवाब देंहटाएंफ़ायलातुन्,फ़ायलातुन्, फ़ायलातुन्, फ़ायलुन् मेरी प्रिय बह्र है अब देखना है रदीफ़ काफि़या कितना साथ देता है।
पहले तो ख़ूब सारी बधाइयाँ स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंअच्छे मिसरे हैं दोनों ,अच्छे इसलिये भी कि गाँव की सोंधी मिट्टी की ख़ुश्बू बसी है इन में
ख़ूबसूरत ग़ज़लों का इंतेज़ार रहेगा ........
प्रयास के लिए ...आप की शुभकामनाएँ चाहियें होंगी !
जवाब देंहटाएंआभार !
गुरु जी सम्मान के लिए बहुत बहुत बहुत बधाई|पिछले मुशायरे में अनुपस्थित था ...इस बार दोनों मिसरे ऐसे हैं कि कलम अपने आप कुछ लिखने को बाध्य हो जाए| बस आपका आशीर्वाद चाहिए|
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