सोमवार, 24 अप्रैल 2023

आइए आज ईद का तरही मुशायरा आगे बढ़ाते हैं तिलक राज कपूर, चरनजीत लाल और मंसूर अली हाशमी के साथ।

दोस्तों ईद की भी परंपरा रही है कि हम ईद को बासी भी मनाते हैं। बासी ईद का अपना ही आनंद होता है। असल में सब कुछ जो त्यौहार पर बनाया गया था खाने के लिए, उसे एक दिन बाद, दो दिन बाद खाने का अपना ही मज़ा होता है। बासी त्यौहार असल में त्यौहार को जीवन में बनाए रखने का एक प्रयास होता है। तो हम भी ईद के इस त्यौहार को कुछ दिन और बनाए रखते हैं अपने जीवन में।

"हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है”
आइए आज ईद का तरही मुशायरा आगे बढ़ाते हैं तिलक राज कपूर, चरनजीत लाल और मंसूर अली हाशमी के साथ।

तिलक राज कपूर
प्रयास-1
न पाने की तमन्ना है न अब खोने का ही डर है
समझ में आ गया जबसे कि ये दुनिया ही नश्वर है।
किसी को सिर्फ़ इक टुकड़ा ज़मीं रेशम का बिस्तर है
किसी को रेशमी बिस्तर पे नींद आना भी दुष्कर है।
ज़माने को समझने की बहुत कोशिश तो करता हूं
मगर इसको समझना छोड़ना लगता है बेहतर है।
नुमाइंदा चुनूं अपना मुझे अधिकार है लेकिन
कोई लंपट, कोई मक्कार है तो कोई जोकर है।
तुम्हें भी उसके आने पर यही धोखा हुआ होगा
"हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है।"
प्रयास-2
तुम्हारी ज़िद, कि सच कह दूं, जो मेरे दिल के अंदर है
बिखर जाएंगे सब रिश्ते, मुझे इस बात का डर है।
वो नन्हे हाथ जिनको हम थमा आए थे मुस्तकबिल
समय का फेर है कैसा, उन्हीं हाथों में पत्थर है।
लगा था पेट जब तक पीठ से, कुछ और थे तेवर
जरा सा पेट भरते ही तेरा बदला हुआ स्वर है।
मेरे अंदर उतर कर देखना क्या चाहते हो तुम
कोई अंतर न पाओगे जो अंदर है वो बाहर है।
यकीं उसपर हमें खुदसे अधिक रहता था लेकिन अब
समझ में कुछ नहीं आता, वो रहजन है कि रहबर है।
समझदारी का परिचय है संभलकर खोलना मुंह को
सुनाऊं दास्तां किसको न श्रोता हैं न अवसर है।
पहली ग़ज़ल में मतला ही क्या कमाल का है, दुनिया के फ़ानी होने की बात और जीवन को जीने की बात। रेशम और ज़मीं पर सोने के अंतर को बहुत सुंदर तरीक़े से दिखाया है। सबसे बड़ा सच यह कि दुनिया को बदलने की कोशिश मत करो, दुनिया नहीं बदलने वाली। लंपट, मक्कार और जोकर नुमाइंदे चुनने की बात गहरी है। और अंत के शेर में क्या कमाल है क्या सुंदर गिरह है। वाह। दूसरी ग़ज़ल में मतले में दुविधा का सुंदर चित्रण है। नन्हें हाथों में पत्थर होना हम सब की चिंता है, जिस पर सुंदर शेर कहा गया है। एक कड़वी सच्चाई पेट ख़ाली होने और भरने की, बहुत कमाल। रहजन और रहबर के बीच अंतर नहीं कर पाने की बात और भरोसे का टूटना, यही तो हम सबका जीवन है। और अंतिम शेर एक चेतावनी नहीं है बलिक एक समझाइश है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

मंसूर अली हाशमी
किये रोज़े इबादत भी कि जिस्मो-जां मुतह्हर है
हिलाले ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
कहे ईश्वर, कोई मालिक, विधाता, कोई शंकर है
पुकारे गॉड तो कोई कहे अल्लाह अकबर है
हुआ है ऑनलाइन जॉब अब दफ्तर ही घर पर है
हुआ करते थे पहले बॉस अब बीवी भी सिर पर है
पड़ा है गर्द में हीरा अंगूठी में जड़ा पत्थर
वो क्या है किस जगह पर है इसी पे सारा निर्भर है
लिखो एसा कि हाकिम को पड़े पल्ले नहीं कुछ भी
हुआ है कार्यरत ई डी तो मोहतात अब सुख़नवर है
बड़ी ही बे नियाज़ी से पुकारा तो सही आख़िर
ख़ुलासा इसका रहने दे वो बरतर है कि कमतर है
ज़मीं है आशिक़ाना औ'र संजीदा सुख़न तेरा!
है करना फ़लसफ़ा तो 'हाश्'मी' चोला मयस्सर है!!

मतले में ही बहुत सुंदर तरीक़े से गिरह बाँधी गई है। अगले शेर में सबका मालिक एक की भावना बहुत अच्छे से आई है। और वर्क फ्राम होम का एक दूसरा पहलू दिखाता हुआ मज़ाहिया शेर सच में कमाल है। अगला शेर बहुत कमाल है, जिसे जहाँ होना चाहिए वो वहाँ नहीं है, असल में सब कुछ जगह का ही खेल है। और अगला शेर एक बार फिर गहरा तंज़ कस रहा है। बरतर और कमतर के बीच के अंतर को मिटाता हुआ शेर सुंदर है। मकते का शेर भी बहुत सुंदर बन पड़ा है। वाह, वाह, वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल।

चरनजीत लाल, यू.एस.ए
हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
ख़ुदाई नूर दिखने का यही तो दिन मुक़र्रर है
करो सब ख़ैर-मक़दम है फ़लक पर माहताब आया
कहो मत चाँद इसको ये तो ख़ुशियों का समंदर है
इबादत का महीना रफ़्ता-रफ़्ता ईद तक पहुँचा
क़मर पैग़ाम ख़ुशियों का लिये देखो उजागर है
किया आदाब कुछ यूँ गुल-फ़िशाँ ने गुल खिले हर सू
लबों की सुर्ख़ियों से गुलमोहर का लाल पैकर है
हमारी ज़िंदगी नेमत ख़ुदा की, प्यार में बीते
इरादे नेक हों तो फिर क़यामत का भी क्या डर है
गिले-शिकवे हज़ारों थे, भरी थीं नफ़रतें दिल में
गले मिलने के बाद उन पर दिलो-जाँ सब निछावर है
किया दीदार उसने चाँद का जब बाम पर आकर
कहा ये चाँद ने- 'अल्लाह मेरा क्या मुक़द्दर है'
गली से उनकी गुज़रे ईद पर, झाँके वो चिलमन से
मोहब्बत से 'चरन' अब जिस्मो-जाँ सब कुछ मो'अत्तर है

मतले में ही बहुत सुंदर तरीक़े से गिरह को बाँधा गया है। उसके बाद चाँद के स्वागत के लिए आह्वान करता हुआ शेर ख़ूबसूरत है। इबादत का महीना बीत जाना और उसके बाद चाँद का दिखना, सुंदर मंज़रकशी है। किसी के बस आदाब करने से चारों तरफ़ फूल खिल जाना और गुलमोहर का लाल हो जाना। हम सबकी ज़िंदगी ख़ुदा की नेमत है, इसे प्रेम में बिताने वालों को क़यामत का भी डर नहीं होता। जिनसे गिले शिकवे थे, उनसे ईद पर गले मिलने के बाद प्यार उमड़ पड़ना यही तो त्यौहार होता है। और मकते के शेर में मोहब्बत की कहानी को बहुत सुंदरता के साथ स्वर मिले हैं। वाह, वाह, वाह, बहुत सुंदर ग़ज़ल।

तो आज के शायरों ने रंग जमा दिया है। सेंवई खाते रहिए और दाद देते रहिए। मिलते हैं बासी ईद में कुछ और रचनाकारों के साथ। तब तक सबको ईद मुबारक।

6 टिप्‍पणियां:

  1. तिलक राज कपूर जी:

    न पाने की तमन्ना है न अब खोने का ही डर है
    समझ में आ गया जबसे कि ये दुनिया ही नश्वर है।
    किसी को सिर्फ़ इक टुकड़ा ज़मीं रेशम का बिस्तर है
    किसी को रेशमी बिस्तर पे नींद आना भी दुष्कर है।
    हक़ीक़त शायरी से परिचय करवाते उम्दा अशआर.

    लगा था पेट जब तक पीठ से, कुछ और थे तेवर
    जरा सा पेट भरते ही तेरा बदला हुआ स्वर है।
    मेरे अंदर उतर कर देखना क्या चाहते हो तुम
    कोई अंतर न पाओगे जो अंदर है वो बाहर है।
    बहुत ख़ूब, हक़ीक़त बयानी.

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  2. चरनजीत लालजी
    हिलाले-ईद जलवागर हुआ हर घर मुनव्वर है
    ख़ुदाई नूर दिखने का यही तो दिन मुक़र्रर है
    करो सब ख़ैर-मक़दम है फ़लक पर माहताब आया
    कहो मत चाँद इसको ये तो ख़ुशियों का समंदर है
    इबादत का महीना रफ़्ता-रफ़्ता ईद तक पहुँचा
    क़मर पैग़ाम ख़ुशियों का लिये देखो उजागर है

    तरही मिसरे के पैग़ाम को ख़ूब अच्छा विस्तार दिया है अपने अशआर में, सुब्हानल्लाह.

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  3. सभी रचनाएँ पढ़ीं , एक से बढ़ कर एक उम्दा उच्च स्तर की रचनाएँ। पंकज जी के ब्लॉग पर लिखने से ज़्यादा दूसरे लेखकों को पढ़ने और सीखने का सुख है ,यही बात इस ब्लॉग को ख़ास बनती है। सभी रचनाकारों को उम्दा रचनाओं के लिए अनंत बधाई !

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  4. बहुत ख़ूब। हर रचना सराहनीय 👌🙏सभी को रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

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  5. आदरणीय तिलक राज जी, मंसूर अली साहब और चरनजीत जी आप सभी को बहुत बहुत बधाई ईद के मुबारक मौके पर ऐसी खूबसूरत रचनाएं पेश करने के लिए।

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  6. ईद के ख़ुशगवार मौक़े पर सुंदेर ग़जलों को पढ़ते हुए सभी को मेरी हार्दिक बधाई

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