शनिवार, 8 जनवरी 2022

आइए आज मुशायरे का समापन करते हैं दो रचनाकारों रेखा भाटिया और मन्सूर अली हाशमी की चार रचनाओं के साथ।

धीरे-धीरे हम अंतिम किश्त तक आ ही गए। इस बार का मुशायरा आप सब के उत्साह के कारण इतना सफल रहा है। ठंड के मौसम को समर्पित मुशायरा हमने पहली बार किया है हालांकि नए साल का जो मुशायरा होता रहा है, वह ठंड के मौसम में ही होता रहा है, मगर वह नए साल को समर्पित रहता था। इस बार ठंड के मौसम में मुशायरे का आनंद रहा। कोरोना फिर पैर पसार रहा है, अपना बहुत ध्यान रखिए।

यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम 

आइए आज मुशायरे का समापन करते हैं दो रचनाकारों रेखा भाटिया और मन्सूर अली हाशमी की चार रचनाओं के साथ। 

रेखा भाटिया
इस सर्दी मन बना कबीरा

कभी पहाड़ हुए आत्मीय महकती बहारों से
जब वसंत की खनक में गर्मी ने ली अंगड़ाई
रेशम की धूप से ढकी खिली नटखट प्रकृति
मीलों ख़ुशगवार हरियाली ,मैं करता इंतज़ार
आभास में तुम्हारा रेशमी बदन लेता अंगड़ाई
पीली धूपों से चुरा रंग बहारें ओढ़ाएँगी तुम्हें
कैसा होगा आलम सूरज का देख मेरी प्रियतमा
तुम शरमाकर हँस पड़ोगी गम देख सूरज का
ख़्वाब थे मैं मोहब्बत के परचम फहराऊँगा हरदम
फ़ना हो जाऊँगा, किसी गम को तुझे छूने से पहले
मैं करता था ग़रूर तुम्हारे हुस्न और मेरे इश्क़ पर
 
मन की पगडडियाँ बेदम हो चलीं वक्त में फ़ना
दम भर थम गई पुरवाई साँसों की, बरहम हम
दम-ख़म जिस्मों का टूटता, मौत के पैग़ाम से
चंचलता खो गई मौन में, टूटे थे ख़्वाब मेरे
मातम में नम नयन प्रकृति के, झरे शबनम आसमानों से
रंग बदल-बदल आसमान हुआ शामल, नभ घन काले
गंभीरता ओढ़ी प्रकृति ने, ऋतु आती-जाती न होश में हम
ख़ामोशी से उन्स हुई ऋतुएँ झुर-झुर धुंध में ढक खुद को
उनके चमकते चहेरे धुँधले,पीली धूप का रंग हुआ गुलाबी

एक पल चुरा कर सिहरती प्रकृति ने भर मुठ्ठी में
इश्क़ के पैग़ग्बर को पैगाम भिजवाया,हाल-ए-दिल सुनाया
फरिश्तों का प्यार जिस्मों से आगे रूहों का सफ़र है
आ लगा मन को मरहम बोला पैग़म्बर
आशिक मन का फ़कीर, इस सर्दी मन को बना कबीरा
ताहम खोल दे दरवाज़े, खोल दे खिड़कियाँ मन की
बन जा रसिक जीवन की सर्दी ढलने से पहले
कर स्वागत तू भी, यहाँ इश्क़ का गुलाबी है मौसम

खुल गए दरवाज़े, खुल गई खिड़कियाँ
प्रकृति में शीतल शीत के स्वागत में
मेरा मन भी इंतज़ार में खुल रहा तुम्हें समेटने
देखो न ठहर दम भर रहा जाड़ों की आगोश में
बादलों ने ओढ़ा दिया कम्बल प्रकृति को
मरहम लगाते उसे, यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम
राहें खिलीं हैं, झड़ पत्ते शहीद हैं, उन्स हम भी इश्क़ को !
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हम तुम किसी से कम नहीं

आ री सखी ! तू क्यों उदास है
किस बात का गम है
क्या हम-तुम किसी से कम हैं
जीवन में सर्दी से घबरा रही है

देख सखी री ,महसूस कर
महकती ऋतुएँ आती-जाती
शीत की सिरहन क्या सिखलाती
समर्पण पत्तियों का , रंग बदलता

ख़ामोशी से विदा होकर
नए जीवन को जीवन दान देता
सर्दी अनमोल है ,नीरसता में मोल है
शामल रंग में सभी रंग हैं

साल के अंत में आता क्रिसमस
आनंदित घर-आँगन औ जग जगमग
सांता लाता भेंट सभी की, पोटली भर-भर
दोस्त,परिवार मुस्कराते करते नए साल का स्वागत

आ सखी, ओढ़ाऊँ तुझे उम्मीदों का कम्बल
यहाँ सर्दियों का गुलाबी मौसम है जीवन का
याद है माँ कितने जुगाड़ लगाती थी सर्दी में
पुराने कम्बलों को धूप दिखा भर देती थी ऊर्जा

फ़टे स्वेटरों में रंगीन फूल काढ़ नया कर देती
छोटे स्वेटरों से गरीब की सर्दी गर्मा देती
गाजर हलवा ,सौंठ के लड्डू ,तिल की चिक्की
फिर कड़वे काढ़े से पूरी बीमारी भगा देती

आ सखी री इस सर्दी जुगाड़ लगाते हैं
साल बीता, अब है जीवन का क्रिसमस
आने वाले नए का जश्म मनाने के लिए
इस गुलाबी ठंड में हाथ थाम लें एकदूजे का !
दोनों ही कविताएँ बहुत सुंदर है। पहली कविता में तो एक तरह से प्रेम की पूरी कहानी लिख दी गई है। सबसे अच्छी बात यह है कि यह कविता प्रेमिका की दृष्टि से नहीं लिखी गई है बल्कि प्रेमी की आँखों से लिखी गई है। प्रकृति के साथ-साथ प्रेम के बदलते दृश्यों का बहुत अच्छे से चित्रण किया गया है कविता में। पत्तों के झरने और मन के कबीर हो जाने का चित्रण बहुत ख़ूबसूरती के साथ किया गया है। दूसरी कविता किसी अपने को नकारात्मकता से सकारात्मकता की तरफ़ ले जाने का प्रयास बहुत सुंदरता से किया गया है। सर्दियों के प्रतीकों का उपयोग करते हुए बहुत अच्छे से मन को उदासी से बाहर लाने का प्रयास किया गया है। उम्मीदों का कंबल  और जीवन का क्रिसमस जैसे बिम्ब कविता को मौसम से जोड़ देते हैं। गुलाबी ठंड में एक दूसरे का हाथ थामने की चाह में कविता समाप्त होती है। बहुत ही सुंदर रचनाएँ, वाह, वाह, वाह।


मन्सूर अली हाश्मी  

लो, ख़ुद फूल पर गिर रही आ के शबनम
'यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम'
करे बात कैसे वो है ग़ैर महरम
है खटका यहीं कि न हो जाये बरहम
तसव्वुफ़ में जो तशनगी को मिटा दे
वही गंगाजल है वही आबे ज़मज़म
है 'नाताल' खुशियों की अपनी विरासत
सिख, हिंदू, मुसलमान, ईसाई सब हम
हो पाकीज़गी या कि क़ुर्बानी हक पर
हमें याद आते है ईसा व मरियम
ख़ुशी भी मिले और हो दूर सब ग़म
अगर कर ले हम जो इरादा मुसम्मम
तफ़र्क़ा भला कैसे जाइज़ हो जबकि
है इन्सान सारे अगर इब्ने आदम
जो हो धर्मों-मज़हब ही नफ़रत का बाइस
तो बेहतर है बन जा क़लन्दर दमादम
'कोरोना' की ज़द में अगर आ गये फिर
तो बेकार सारे ये दीनारो-दरहम
मोहब्बत है शै क्या यह कैसे बताएं
जो सिमटे तो क़तरा जो फैले तो क़ुलज़ुम
नही ये अगर ख़ुदनुमाई तो क्या है
फ़क़त 'सेल्फी' से भरा तेरा 'अल्बम

वफ़ाश्आर है औ' वफ़ा दोस्त भी हम
नही जज़्बा ईसार का हम में कुछ कम
न हठ तुम करो औ' न ज़िद हम करेंगे
वतन है यह सबका रहे मिल के सब हम
तक़ाज़ा है सौजन्यता का यह कह ले
श्रीमान हम, आप भी मोहतरम
करे ईश वन्दन कि भू अपनी पावन
करे नाज़ जिस पर है सारा ये आलम
लताफ़त, कसाफ़त, नफासत, ख़बासत
अनासिर से इन्सॉं बना है मुजस्सम*
मोहब्बत, अदावत, अताअत, बग़ावत
है इन्सान इन फ़ितरतो का समागम
करो हक़ बयानी मिले गरचे सूली
हो 'मन्सूर' गर तो बनो फिर मुकर्रम**
नया साल भी अब क़रीब आ गया है
बजे ढोल तासे ढमाढम-ढमाढम
नही 'हाश्मी' ठीक बैचेनी इतनी
यहाँ सर्दियों का गुलाबी है मौसम।
*देहधारी
**आदरणीय 
मन्सूर अली हाशमी जी ने मिसरे पर दो प्रकार से ग़ज़लें कही हैं। एक ग़ज़ल उनकी पहले ही हम सुन चुके हैँ। दोनों ही ग़ज़लें मानवता की बात करती हैं। धर्म अगर नफ़रत की बात सिखा रहा हो तो कलन्दर बन जाने तक की बात ग़ज़ल में शायर कह रहा है। और कोरोना की ज़द में आने पर सारा पैसा धरा का धरा रह जाने की बात बहुत सुंदर है। मोहब्बत का फैल कर सारी दुनिया को समेट लेने की बात बहुत अच्छी है। दूसरी ग़ज़ल में दोनों पक्षों से कहा जा रहा है कि तुम भी हठ मत करो हम भी ज़िद नहीं करेंगे, मिल कर रहेंगे। अनासिर से इन्सान के इन्सान बन जाने की बात बहुत अच्छे से कही गई है। सच की बात कहने पर अगर सूली पर भी चढ़ना पड़े तो भी कहना चाहिए इस बात को बहुत अच्छे से कहा गया है शेर में। नए साल के आने पर ढोल के बज उठने की बात और अंत में गिरह का शेर मकते में आना बहुत सुंदर है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह, वाह, वाह।
तो मित्रो आज के दोनों रचनाकारों ने बहुत अच्छे से अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया है। आप भी इन रचनाओं पर दाद दीजिए। मिलते हैं होली के मुशायरे में। अपने स्वास्थ्य का ख़ूब ध्यान रखिए।

7 टिप्‍पणियां:

  1. रेखा जी का लेखन अत्यधिक प्रभावशाली लगा। अद्भुत भावभिव्यक्ती है।भावों को जिसतरह शब्दों में बाँधा है उसका जवाब नहीं।
    पहाड़ गर्मी धूप हरियाली सूरज ,पगडंडी पुरवाई शबनम के माध्यम से जहाँ उन्होंने अपनी पहली रचना से सर्दी का बखान किया वहीं क्रिसमस स्वेटर और सौंठ के लड्डू के जिक़्र से दूसरी रचना में कमाल कर दिया। इसके लिए वाह वाह और वाह...

    मंसूर भाई तो कमाल पर कमाल कर रहे हैं। हर बार पहले ज्यादा खूबसूरत ग़ज़लें लाते जा रहे हैं। पहले तो मैं और ये एक ही चक्की का आटा खाते थे अब लग रहा है इन्होंने या तो चक्की बदल ली है या आटा खाना छोड़ दिये हैं। एक एक शेर कोहीनूर हीरे की तरह तराशा लग रहा है जिसकी चमक से आँखें तो चुँधिया ही रही हैं दिमाग भी अपनी जगह से हिल गया है। भाईसाहब ग़ज़ब कर दिया आपने। मेरा फर्शी सलाम क़ुबूल करें। अहाहा ढेरों दाद भाईजान... जिंदाबाद...

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  2. आदरणीय रेखा जी और जनाब मन्सूर साहब ने जिस ऊँचाई पर ले जाकर इस मुशायरे का समापन करवाया है वो लाजवाब है। इस बार का मुशायरा वाकई बेहद सफल रहा। नीरज जी और भभ्भड़ जी की कमी खल रही है। बहुत बहुत बधाई सभी शायरों को इतनी ख़ूबसूरत रचनाओं से रू-ब-रू करवाने के लिये और बहुत बहुत धन्यवाद सुबीर जी का इस मुशायरे के आयोजन के लिये।

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    1. समापन तक 2-2 खूबसूरत रचनाएँ लेकर 2 उपस्थिति। नीरज जी और भभ्भड़ जी की कमी की बात आपने सही उठाई। मैं सहमत हूँ। अभी तरही में दम बाकी है और सर्दी भी कायम है।

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  3. दोनों रचनाकारों ने बेहतरीन प्रस्तुति दी हैं । रेखा जी की रचना में सर्दी के मौसम में प्रकृति का साथ है वहीं आदरणीय मंसूर जी की रचना हमें मानवता से जोड़ती हैं ।

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  4. कमाल और बेमिसाल ! पहले रेखा जी द्वारा सर्दियों पर ख़ूबसूरत दृश्य, भाव, वक्तव्य और फिर मंसूर जी द्वारा अशआर की बारिश। हम पूरा भीगे, मजा आ गया।  एक यादगार मुशायरा , आयोजन के लिए सुबीर सर को बहुत बहुत बधाई।  

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  5. सभी मित्रों की रचनाएँ पढ़कर ह्रदय गदगद हो गया। पंकज जी का ह्रदय से आभार मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए। सभी मित्रो की रचनाएँ पढ़ीं , एक से बढ़कर एक बेहतरीन रचनाएँ थीं। पढ़ने का और साथ में नया कुछ सीखने का भी लाभ मिला। पंकज जी का प्रयास बहुत प्रशंसनीय है। सभी मित्रों का उन्हें बहुत सहयोग भी मिलता है , इस मुशायरे में उनकी रचना की कमी महसूस कि। पंकज जी कृपया आपकी लिखी रचना हर बार डालने का प्रयास करें , यह गुज़ारिश है।

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