सोमवार, 1 नवंबर 2021

आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी के इस रौशनी से भरे गीत के साथ आइये दीप पर्व का शुभारंभ करते हैं।



 
आइये आज दीपावली के तरही मुशायरे का शुभारंभ करते हैं। इस बार जैसा कि मैंने कहा था कि हमने यह तरही मुशायरा उन सब की स्मृति को समर्पित किया है, जिन्हें कोरोना की क्रूर लहर ने हमसे छीन लिया। दीपावली का यह त्यौहार उन सबको को शक्ति प्रदान करे, जिन्होंने पिछले दिनों किसी अपने को खोया है। दीपावली अँधेरे से प्रकाश की तरफ़ जाने का पर्व है। अँधेरा एक प्रतीक होता है, जिससे लड़ने की बात यह पर्व कहता है। इस बार लड़ाई कुछ मुश्किल हो गई है और इस लड़ाई के आगे ज़िंदगी का प्रकाश कई बार हारता दिखाई देता है। मगर फिर भी हौसला फिर से अपने अंदर पैदा करने का जज़्बा दीपक से लेकर लड़ाई लड़नी ही होगी। 
उजाले के मुहाफ़िज़ हैं तिमिर से लड़ रहे दीपक

आज तरही मुशायरे का शुभारंभ हम कर रहे हैं आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी के गीत के साथ, आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी हमारे इस तरही मुशायरे का सबसे मज़बूत स्तंभ हैं, उनके इस रौशनी से भरे गीत के साथ आइये दीप पर्व का शुभारंभ करते हैं।

 

राकेश खण्डेलवाल जी

यहाँ तारीख़ साक्षी है, कभी अँधियार घिरता है
तो जुगनू भी बड़े ही हौसले के साथ लड़ता है
अंधेरी सल्तनत को भी चुनौती बन गया है जो
वही विश्वास है मन का, सदा संकल्प बनता हो
यहाँ झंझाओं से लड़ते अकेले नाव ले धीवर
उजालों के मुहाफ़िज़ हैं तिमिर से लड़ रहे दीपक

हज़ारों वर्ष बीते हैं मगर यह युद्ध जारी है
अकेला एक दीपक ही, घिरी मावस पे भारी है
दिया कह लो या दीपक तुम, या दे दो नाम ढिबरी का
मशालों की लपट कह लो या फिर अंगार सिगड़ी का
यही एकत्व करता है तमस के धज्जियाँ चीवर
उजालों के मुहाफ़िज़ हैं तिमिर से लड़ रहे दीपक

कहो शमअ, दिया-बाती या फिर फोटान इस युग का
ये ऐसा है अजब पाखी, सघन तम के ही कण चुनता
यही  आदर्श है मन का उदासी के अंधेरों में
निराशा को बदलता है नए कल के सवेरों में
नए प्रतिमान रचते हैं, सुबह मर, साँझ फिर जीकर
उजालों के मुहाफ़िज़ हैं तिमिर से लड़ रहे दीपक

 

 वाह क्या गीत है, पूरा गीत एकदम उसी सकारात्मक ऊर्जा से भरा हुआ है, जिसकी हमें आज सबसे ज़्यादा आवश्यकता है। यह जो चारों तरफ़ महामारी का अंधकार फैला है, इसके सामने इसी प्रकार का हौसला लेकर जाना होगा। जैसा कि इस गीत में कहा गया है कि जुगनू भी हौसले के साथ लड़ता है।और अकेली नाव लेकर मल्लाह तूफ़ान से भी भिड़ जाते हैं। गीत कह रहा है कि हज़ारों साल से यह युद्ध जारी है, मगर एक अकेला दीपक ही हज़ारों साल से यह युद्ध कर रहा है। उस आग को कुछ भी नाम दे लो मगर वह है तो प्रतीक रोशनी की ही। और अंतिम बंद में क्या ग़ज़ब का भाव है, मरने या जीने से कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता, फ़र्क़ पड़ता है लड़ने से। हर समय लड़ने से ही अँधेरा दूर होता है। बहुत ही शानदार गीत के साथ दीपावली के मुशायरे की शुरुआत हुई है। वाह वाह वाह।


 तो इस प्रकार शुरुआत होती है दीपावली 2021 के तरही मुशायरे की। आज राकेश जी के गीत को सुनिए और खुल कर दाद दीजिए इस सुंदर गीत पर। और इंतज़ार कीजिए अगली कड़ियों का।

 




24 टिप्‍पणियां:

  1. हौसलों और उम्मीदों से भरा अति सुन्दर गीत। राकेश जी की समृद्ध भाषा सदैव सीखने को प्रेरित करती हैं। तरही मुशायरे व त्यौहारों की शुरुआत की सभी को शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय सादर आभार। पंकज भाई की विशेषता है की तरही का मिसरा ऐसा देते हैं कि शब्द अपने आप संवारने लगते हैं

      हटाएं
  2. यह राकेश जी की शब्द सम्पदा है जो एक नदी की तरह सभी को तृप्त करते हुए विशाल शब्द सागर में जा मिलते हैं.
    बहुत सुन्दर शुरुआत हुयी है दीवाली तरही की।
    - सुलभ जायसवाल

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर शुरूआत हुई है तरही दिवाली की... बेहतरीन गीत।

    जवाब देंहटाएं
  4. जब से राकेश जी को पढ़ना शुरू किया है तब से हर बार चमत्कृत होता रहा हूँ। यह गीत भी उनके अभूतपूर्व शब्द कौशल का एक नमूना है। फोटान का उपयोग तो गजब ढा रहा है, फोटान ही परम सत्य है, अंततः फोटान ही तम से लड़ता है, बाकी सब तो केवल फोटान पैदा करने का साधन भर हैं। जैसे किसी भी महामारी से अंततः इंसान के प्रति इंसान का प्रेम ही लड़ता है। बाकी सब तो केवल संसाधन भर हैं। तो बहुत सुंदर शुरुआत हुई है तरही की। बहुत बहुत बधाई आदरणीय राकेश जी को।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद धर्मेंद्र
      समय के साथ। अपनी विचारधारा को भी वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में विज्ञान के सत्य की कसौटी पर परखना भी आवश्यक है ।
      माँ शारदा का आशीष ही शब्दों को गति देता है

      हटाएं
  5. "अकेला एक दीपक ही, घिरी मावस पे भारी है"
    अनगिनत अर्थों को समेटे हुए यह पंक्ति ही शायद हमारी इस महफ़िल की उप्लब्धि रहेगी। सब कुछ तो कह दिया आपने। बहुत ख़ूब।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया आदरणीय
      कलम जब अपने आप चलाती हो तो शब्दों पर उसका ही अधिकार होता है जैसे चाहे चुन कर लगा दे. हमारी तो बिसात ही नहीं

      हटाएं
  6. वाह वाह नमन है राकेश जी की कलम को। कितनी सहज और उतनी ही परभावशाली, मन में घर कर जाने वाली पंक्तियों से सजा यह गीत

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद गुरप्रीत भाई. ये पंकज भाई का करिश्मा है जो चुन कर ऐसे मिसरे देते हैं जो अपने आप रचना करवा लेते हैं

      हटाएं
  7. भरतपुर की मिट्टी इतनी उपजाऊ है ये मुझे राकेश भाई को पढ़ने के बाद मालूम हुआ। पिछले चौदह वर्षों से उन्हें पढ़ रहा हूँ और मजाल है कभी उन्होंने अपनी रचनाओं से चमकृत न किया हो। संदीजा गीतों का ये कवि कमाल का हास्य रचनाकार भी है। खुदा जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है ये कहावत राकेश भाई पर खरी उतरती है। क्या ग़ज़ब की प्रतिभा है उफ!!! जय हो राकेश भाई...सलामत रहें।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. गुरुदेव,
      गलता जी में तो होली पर भांग घोली जाती है आप दिवाली पर ही उस मूड में आ गए क्या ? राजस्थान की आबो-हवा तो किसी को भी शायर बना देती है आहार भूल गएँ हों तो आइना देख लीजियेगा।
      धन्यवाद

      हटाएं
  8. इस तरही का आरंभ इससे बेहतर क्या हो सकता था। राकेश जी के गीत नए शब्दों और प्रतीकों से मित्रता का आरंभ कराते रहे हैं, वही बात इस बार भी है।

    जवाब देंहटाएं
  9. गज़ब की शुरुआत ...
    राकेश जी को पढना तो हमेशा ही किसी बटेर के हाथ लगने सामान ही होता है ... आशा, विश्वास और उम्मीद से भरपूर ... हर शब्द कितना कुछ उढेल जाता है काव्य धारा को ... सभी को दीपावली की बहुत बहुत बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिगंबर भाई, माँ शारदा का आशीष ही शब्दों को लिखती है. हम तो केवल एक निमित्त हैं
      धन्यवाद

      हटाएं
  10. भाव प्रवण गीत, आदरणीय राकेश जी को सुंदर गीत के लिए हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं

परिवार