बहुत कठिन था पिछला समय और आने वाला समय भी कैसा होगा कोई नहीं जानता है। ऐसा लग रहा था मानों हर तरफ़ केवल और केवल मृत्यु का ही तांडव चल रहा हो। बहुत से लोगों ने अपनों को खोया है। उन अपनों को जो अभी बस दो दिन पहले ही पूरी शिद्दत के साथ सफ़र में साथ बने हुए थे। जो चले गए उनकी बस यादें ही शेष रह गई हैं। हमारे इस ग़ज़ल परिवार से भी बहुत से लोगों ने अपनों को खोया है। अभी तक स्तब्ध हैं वे लोग जो अपनों को खो चुके हैं। इसलिए इस बार का यह तरही मुशायरा बस एक दीपांजलि होगा उन लोगों को जो असमय चले गए। और एक प्रार्थना कि वह समय फिर से लौट कर न आए, जो हम सब ने अप्रैल से जून तक देखा है।
इस बार का तरही मुशायरा एक बहुत ही प्रचलित बहर पर हो रहा है।
1222-1222-1222-1222
मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन-मुफाईलुन
बहरे हज़ज मुसमन सालिम
इस बार जो मिसरा दिया जा रहा है, उसकी विशेषता यह है कि उसके दो हिस्से है। मतलब यह कि शुरू के दो रुक्न और बाद के दो रुक्न। पहला हिस्सा मतलब शुरू के दो रुक्न उर्दू में हैं और बाद के दो रुक्न हिन्दी में। वैसे तो हिन्दी और उर्दू अब एक ही ज़बान हो चुकी हैं, फिर भी इस मिसरे में प्रयोग किया है कि गंगा और जमना का पानी संगम पर दिख सके। दिख सके कि यहाँ संगम पर गंगा-जमनी तहज़ीब एकाकार होती हे, और इसके बाद जो कुछ आगे बहता है, उसमें न गंगा होती है, न जमना, बस हिन्दुस्तानी भाषा होती है।
उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक
इस मिसरे में रदीफ़ है “दीपक” और क़ाफ़िया है “रहे” में आ रही “ए” की मात्रा, मतलब सुने, कहे, बचे, ये, वे, ले, रतजगे, पड़े, भरे, पहचानते, जानते, जागते, काटते, पूछते, और इसी तरह के बहुत बहुत क़ाफ़िये आप उपयोग में ला सकते हैं। बहुत कठिन नहीं है इस बार क़ाफ़िया, क्योंकि रदीफ़ के लिए अंत की दो मात्राएँ 22 सुरक्षित हैं तथा उसके पहले की मात्राओं का जो विन्यास है, वह आपको स्वतंत्रता देगा कि आप 2 या 12 या 212 या 2212 के वज़न पर कोई भी क़ाफ़िया उपयोग कर सकते हैं। बस ध्यान रखियेगा कि इस बार जो क़ाफ़िया है उसमें आपको मतले पर बहुत ध्यान देना होगा, नहीं तो ईता का दोष बन सकता है। जैसे यदि आपने मतले में रहे के साथ सुने या कहे या भरे को बाँधा तो उससे ईता को दोष बनेगा। आपको बस मतले में एक क़ाफ़िया ऐसा रखना है जिसमें “ए” की मात्रा हटाने के बाद कोई प्रचलित शब्द न बचे। जैसे रहे में से ए हटेगा तो रह बचेगा, जो एक शब्द है। जागते में से ए हटेगा तो जागत बचेगा जो कोई शब्द नहीं है। तो बस मतले में यह सावधानी रखनी है कि एक मिसरे का क़ाफ़िया ऐसा हो, जिसमें से “ए” हटाने पर कोई प्रचलित शब्द नहीं बचे।
तो देर किस बात की, बस कह डालिए एक ग़ज़ल इस मिसरे पर, और आपकी ग़ज़ल के साथ हम मनाएँगे इस बार की दीपावली।
बहरे हज़ज मुसमन सालिम और "उजाले के मुहाफ़िज़ हैं, तिमिर से लड़ रहे दीपक" जैसा खूबसूरत मिसरा। इस बार धमाल की तैयारी है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी पहल ज़िन्दगी की ओर मुड़ने की। बढ़िया तरही मिसरा।
जवाब देंहटाएंनमस्कार गुरु जी । शुक्रिया। आपके द्वारा आयोजित इस तरही मुशायरे से एक अलग ही ऊर्जा मिलती है।
जवाब देंहटाएंउचित भूमिका के साथ तरही-मुशायरे की घोषणा का स्वागत है.
जवाब देंहटाएंसच्ची बात तो यह है, कि भारतीयता को सचेत जनों का सक्षम और समर्थ प्रयास ही अक्षुण्ण रख सकता है. सुबीर संवाद सेवा के पटल पर तरही-मुशायरे का आयोजन इसी हिलमिल प्रयास का सार्थक प्रारूप है.
सौरभ
बहुत झेला तिमिर को अब उजालों की ज़रुरत है....
जवाब देंहटाएंवापिस जीवन की ओर मुड़ने का स्वागत है। मैं ग़ज़ल तो नहीं लिखती पर तरही मुशायरे का खूब आनंद लेती हूँ।
जवाब देंहटाएंअब आपने इब्तिदा कर दी है तो सम्भव है हम भी कुछ कोशिश कर ही लेंगे
जवाब देंहटाएंवाह ....कोशिश की गारंटी है --ग़ज़ल की नहीं
जवाब देंहटाएंजय जय गुरुवर...
जवाब देंहटाएंकुछ आपको ही काम पे लगाने का मन है...हरबार की तरह टूटे-फूटे शब्दों को जोड़ना/रफूगरी करने की महारत हांसिल है आपको....और हम जैसे लोगों को यह लगता है कि, वो गज़ल कह बैठें हैं..।
वाह … लाजवाब मिसरा है और दिवाली की धूम तो साथ है .॥॥
जवाब देंहटाएंमज़ा आने वाला है हमेशा की तरह इस मुशायरे का …
ज़बरदस्त है। भेजूँगा जल्द ही।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मिसरा है आदरणीय पंकज भईया
जवाब देंहटाएंकोशिश रहेगी
जवाब देंहटाएंwaah
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