बुधवार, 6 नवंबर 2019

भभ्भड़ कवि भौंचक्के की इस ग़ज़ल के साथ आज दीपावली 2019 के तरही मुशायरे का विधिवत समापन

 दीपावली का त्यौहार अब धीरे-धीरे बीत रहा है। देवप्रबोधिनी एकादशी बस आने को ही है और भभ्भड़ कवि भौंचक्के जाग गए हैं। भौंचक्के इस मुशायरे का समापन कर रहे हैं। असल में इस बार भौंचक्के तो दीपावली के दिन ही आना चाहते थे लेकिन नहीं आ पाए। आने के लिए जागना पड़ता है और भभ्भड़ तो देवों के साथ ही जागते हैं। ख़ैर जो भी हो आज हम विधिवत मुशायरे का समापन करेंगे। भभ्भड़ कवि जैसी की उनकी बुरी आदत है, कि छोटी ग़ज़ल नहीं कह पाते हैं, आते हैं तो अपनी पूरी भड़ास निकाल कर ही जाते हैं। इस बार तो मन्सूर अली हाश्मी जी ने बाक़ायदा उनको आमंत्रित भी कर दिया है।
मन्सूर अली हाश्मी
क़ित्आत:
द्विज आये नही,  इस्मत न पारूल के हुए दर्शन
न जल पाये ये दीपक तो दीये कैसे तलाशेंगे?
निभाना ही पड़ेगा तुमको वादा इस दफा ए मित्र
तुम्हें भभ्भड़ कवि हम अंक में अगले तलाशेंगे
तो जब आमंत्रित कर ही दिया है तो ज़ाहिर सी बात है कि झेलना भी पड़ेगा और साथ में भले ही बिना मन के ही सही पर दाद भी देनी ही पड़ेगी। चूँकि बुलाया गया है तो अब झेलना ही पड़ेगा भभ्भड़ कवि भौंचक्के को। ग़ज़ल इतनी लम्बी है कि अभी सुनना शुरू करेंगे तो देव प्रबोधिनी एकादशी आ ही जाएगी। तो सुनिए भभ्भड़ कवि भौंचक्के की यह ग़ज़ल।

उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे



भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के' 

कभी फिर लौट कर इस इश्क़ के क़िस्से तलाशेंगे
पुराने पानियों में चाँद के टुकड़े तलाशेंगे

नहीं अब ज़िंदगी भर दूसरा कुछ काम करना है
वो जब मिल जाएगा तो उसको ही फिर से तलाशेंगे

अब इसके बाद मौसम हिज्र का आएगा, ये तय है
अब इसके बाद हम इस वस्ल के पुर्ज़े तलाशेंगे

तुम्हारे लम्स भी शायद हों इस यादों की गुल्लक में
कभी तोड़ेंगे इसको और वो सिक्के तलाशेंगे

ये बच्चे चहचहा के, चुग के उड़ जाएँगे कल और हम
फिर उसके बाद बस बीते हुए लम्हे तलाशेंगे

मिलेगा सिर्फ़ सन्नाटा किसी शहर-ए-ख़मोशाँ का
हमारे बाद जब घर में हमें बच्चे तलाशेंगे*

तुम्हारी बज़्म से उठ कर चला जाऊँगा कल जब मैं
तुम्हारी बज़्म में सब फिर मेरे नग़मे तलाशेंगे

तेरे माथे की बिंदिया में तलाशेंगे कभी सूरज
तेरी आँखों की झिलमिल में कभी तारे तलाशेंगे

सितारों के जहाँ में जा के बस जाओ भले ही तुम
तुम्हें फिर भी तुम्हारे चाहने वाले तलाशेंगे

है मंज़िल एक ही पर मज़हबों के फेर में पड़ कर
सफ़र के वास्ते सब मुख़्तलिफ़ रस्ते तलाशेंगे

बड़ी क़िस्मत से हमको है मिला फ़ुर्सत का पूरा दिन
चलो यूट्यूब पर गुलज़ार के गाने तलाशेंगे

कहानी है सभी की ये, सभी का है यही क़िस्सा
तलाशेंगे तो खो देंगे, जो खो देंगे, तलाशेंगे

बदन इक कड़कड़ाता नोट है बचपन के हाथों में
जवानी आएगी तो नोट के छुट्टे तलाशेंगे

तलाश अपनी अज़ल से अब तलक जारी मुसलसल है
ख़ुदा तुझको क़यामत तक तेरे बन्दे तलाशेंगे

तुम्हारे चाहने वाले तुम्हारी दीद की ख़ातिर
गुमी हो चीज़ घर में पर उसे छत पे तलाशेंगे

पता तो दूर उसका नाम तक भी तो नहीं पूछा
बताएँ हज़रत-ए-दिल अब उसे कैसे तलाशेंगे

बुझा दें चाँद का कंदील और तारों के सब दीपक
"उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीये तलाशेंगे"

वही चेहरा कि जिसकी इक झलक ही देख पाए बस
'सुबीर' उसको ही अब ताउम्र ढूँढ़ेंगे, तलाशेंगे

* नीरज गोस्वामी जी से उधार लिया हुआ मिसरा


अब इतनी लम्बी ग़ज़ल पर अपने तो बस की नहीं कि पूरी भी पढ़ें और टिप्पणी भी करें अगर आप लोगों को कोई शेर ठीक-ठाक लगा हो तो औपचारिकता पूरी कर दें। नहीं भी देंगे दाद तो कोई बात नहीं, अगले को ख़ुद ही सोचना था कि इत्ती लम्बी ग़ज़ल भी कही जाती है भला ? 
तो मित्रों दीपावली का यह तरही मुशायरा अब विधिवत समाप्त घोषित किया जाता है। इस बार भी हमेशा की तरह बहुत उल्लास और आनंद का माहौल रहा। ख़ूब अच्छे से लोगों ने आकर यहाँ अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। कोशिश करते हैं कि अब अगले मुशायरे के लिए इतनी लम्बी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़े और हम जल्दी-जल्दी मिलते रहें। तो मित्रों मिलते हैं अगले तरही मुशायरे में। 





23 टिप्‍पणियां:

  1. अगले ने इत्ती लम्बी ग़ज़ल कह दी ये तब पता चला जब पूरी ग़ज़ल पढ़ ली...कमबख्त़ ये भभ्भड़ कवि खाता किस चक्की का आटा है...भई हद है !! कभी ईश्वर पकड़ में आया तो कालर पकड़ के पूछूंगा कि एक इंसान के भेजे में ही सारी अक्कल उंड दी दूसरों को यूं खाली ही टरका दिया...क्यों भाई हमने कौनसी तुम्हारी भैंस चुरा ली थी.
    अब समझा ये मुशयरा भभ्भड़ करवाते ही इसलिए हैं कि लोग उन्हें पढ़ें और दांतों तले ऊंगलियां दबाएँ.
    मतले से जो पाठक को हाथ पकड़ के इस ग़जल ने बिठाया है तो फिर उसके मन में उठने की बात ही नहीं आने दी.
    वो जब मिल जाएगा तो उसको ही फिर से तलाशेंगे, तुम्हारे लम्स भी शायद हूं इस यादों की गुल्लक में ,तलाशेंगे तो खो देंगे जो खो देंगे तलाशेंगे ,जवानी आएगी तो नोट के छुट्टे तलाशेंगे, गुमी हो चीज घर में पर उसे छत पे तलाशेंगे
    मतलब कमाल किया है भभ्भड़ कवि ने...मेरा मिसरा उधार लेकर मुझे अमर कर दिया...जय हो..
    हे भभ्भड़ कवि तेरी बारंबार जय हो...

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय, आपका मिसरा ही इतना कमाल था कि उसे ले उड़ने का मन हुआ। डाली मोगरे की पर ऐसे कई फूल हैं जिनको तोड़ कर ले उड़ने का मन होता है।

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  3. ये बच्चे चहचहा के, चुग के उड़ जाएँगे कल और हम
    फिर उसके बाद बस बीते हुए लम्हे तलाशेंगे

    मिलेगा सिर्फ़ सन्नाटा किसी शहर-ए-ख़मोशाँ का
    हमारे बाद जब घर में हमें बच्चे तलाशेंगे*

    तुम्हारी बज़्म से उठ कर चला जाऊँगा कल जब मैं
    तुम्हारी बज़्म में सब फिर मेरे नग़मे तलाशेंगे

    वाह वाह ! क्या शेर हुए है ,बहुत खूब । यूँ तो सारी ग़ज़ल ही बहुत खूब है ।

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  4. क्या बात है। इतनी लम्बी ग़ज़ल और हर शे’र जानदार। ये तो केवल भभ्भड़ कवि के ही बस की बात थी। इससे शानदार समापन इस मुशायरे का हो ही नहीं सकता था। बहुत बहुत बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिये

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    1. शुक्रिया धर्मेंद्र आपका। आपकी लगातार अनुपस्थिति लग रही है मुशायरे में। आइये अगली बार

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  5. # कभी फिर लौट कर इस इश्क़ के क़िस्से तलाशेंगे
    # नहीं अब ज़िंदगी भर दूसरा
    # अब इसके बाद मौसम हिज्र का
    # तुम्हारे लम्स भी शायद हों इस यादों की गुल्लक में
    कभी तोड़ेंगे इसको और वो सिक्के तलाशेंगे
    # तेरे माथे की बिंदिया
    # सितारों के जहाँ में
    # कहानी है सभी की ये, सभी का है यही क़िस्सा
    तलाशेंगे तो खो देंगे, जो खो देंगे, तलाशेंगे
    # तुम्हारे चाहने वाले तुम्हारी दीद की ख़ातिर
    गुमी हो चीज़ घर में पर उसे छत पे तलाशेंगे
    # पता तो दूर उसका नाम तक भी तो नहीं पूछा
    # वही चेहरा कि जिसकी इक झलक ही देख पाए बस
    'सुबीर' उसको ही अब ताउम्र ढूँढ़ेंगे, तलाशेंगे

    सबसे पहले शुक्रिया, फर्माइश पूरी करने के लिये।
    मुबारकबाद बेहतरीन ग़ज़ल के लिये।
    उपरोक्त दसों अशआर यह चुग़ली खा रहे है कि "अभी (भी) आप इश्क़ में है"। (इश्क़ की चाशनी में डूबे हुए अश्आर)
    ग़ज़ल की परिभाषा को आपने वास्तव में निभाया है।
    हम तो व्यवहारिक शायरी करने के नाम पर जाने क्या-क्या परोस जाते है।
    # 'यादों की गुल्लक' के सिक्कों पर लम्स तलाशना ग़ज़ब ढा रहा है!
    # 'तलाशेंगे तो खो देंगे, जो खो देंगे, तलाशेंगे'
    ख़ूब बन पड़ा है।
    # दीद की चाह और गुमशुदा को छत पर तलाशना..... जुनून के किस दर्जे पर जा कर ऎसे शेर हो पाते है?
    # 'पता तो दूर उसका नाम तक भी तो नहीं पूछा'
    .... इस सादगी पे कौन न मर जाए ए ख़ुदा!
    # 'वही चेहरा कि जिसकी इक झलक ही देख पाए बस'
    आपकी तलाश जल्द पूरी हो। आमीन। - ख़ूबसूरत मक्ता।
    निवेदन: भभ्भड़ कवि जी अगर जल्द पधार जाये तो प्रेरणा पा कर और दसों महारथी मैदान में आ जाए। (आपका कलाम मार्ग दर्शक का काम करेगा).


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    1. आदरणीय हाश्मी जी आपकी इस टिप्पणी के लिए शुक्रिया। यूँ ही बस आप लोगों को देखकर हौसला हो जाता है कहने का। आपको पसंद आया तो लिखना सार्थक हुआ मेरा।

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  6. गज़ल बस एक बारी पढ़ के हम रहने नहीं वाले,
    तुम्हें हर दौर में म्भकभौं, सभी शायर तलाशेण्गे”

    नये दरवेश लेकर अब नये मिसरे निकलते हैं
    बुढ़ाती शाम के दर पर नयी सुबहो तलाशेंगे

    तुम्हें कुछ दाद दे पाये, न ये सम्भव लुगातों को
    तो इस खातिर नये अल्फ़ाज़ हम सब मिल तलाशेंगे.

    बहुत बेहतरीन अदायगी. मुबारक

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  7. अगर उलटे तो सीधे भी, खड़े तनकर तो टेढ़े भी
    पटाखा शेर कह भभ्भड़ कहाँ छिपते, तलाशेंगे

    मगर पहले बधाई हो ...
    जय हो, जय हो !

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    1. कहीं नहीं छिपे हैं जनाब आपके आस पास ही ता हैं।

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  8. वाह भभ्भड़ साहब, वाह.
    गज़ब और खूब सारा दौनों खूबियां
    मेरे पसंदीदा शेर.....
    वो जब मिल जाएगा......
    तुम्हारे लम्स भी शायद.....
    गुमी हो चीज घर.....
    बुझा दें चांद का कंदील....
    भई वाह

    आपने इतनी लम्बी ग़ज़ल लिख दी और हम अधूरी ग़ज़ल तक ठहर गए.

    विरासत के उजाले अपने तन मन मे तलाशेंगे
    उजालों के लिए मिट्टी के फिर दीए तलाशेंगे

    गुज़ारिश है सनम निकला करें पर्दे मेंं ही घर से

    नहीं तो सुब्ह से ही लोग मयखाने तलाशेंगे

    हवा का रुख अगर हक में न हो तो हर डगर मुश्किल
    सफर की ठान ली ज़िद तो,नई राहें तला


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    1. शुक्रिया सुधीर जी । आपका तो इस बार हम सब इंतज़ार ही करते रह गए। उम्मीद है आगे से यह अनुपस्थिति नहीं लगेगी।

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    2. बहुत अच्छे शेर डॉ सुधीर जी। शुभकामनाएं।

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  9. भभ्भड़ कवि उर्फ़ पंकज सुबीर जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल। काफ़ी मशक़्क़त की है आपने। बच्चे चहचहा के, सितारों के जहाँ में, पता तो दूर वाले शेर बहुत ख़ास लगे। इन्हें जतन से सम्हाल कर रखना।

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    1. शुक्रिया नवीन जी आपकी सलाह अवश्य ध्यान में रखी जाएगी।

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  10. सर्वप्रथम हाशमी जी का शुक्रिया जो हमें याद रखा गया आपकी रचना मे। थोड़ा भावुक होकर कुछ कहना चाहा तो ज़्यादा दूर नही जाना पड़ा। भभ्भड जी कहते हैं।

    तुम्हारी बज़्म से उठ कर चला जाऊँगा कल जब मैं
    तुम्हारी बज़्म में सब फिर मेरे नग़मे तलाशेंगे


    सितारों के जहाँ में जा के बस जाओ भले ही तुम
    तुम्हें फिर भी तुम्हारे चाहने वाले तलाशेंगे

    इस आती गुलाबी सर्दी की कुनकुनी धूप जैसी गुनगुनाती महकती ग़ज़ल को एक वीडियो मे पढ़ने के सर्वाधिकार हम सधिकार अपने नाम सुरक्षित करते हैं। वैसे रे बैन का नीला चश्मा पहने शायर साहब से पूछना चाहते हैं कि इतना हैंडसम लगने का हक़ उन्हें किस ने दिया।
    चश्मेबद्दूर ।। बहुत अच्छी ग़ज़ल आपकी अनवरत लेखन की ढेर सारी दुआएँ।


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  11. शेरों की चमक दीपावली के दीपों की चमक से कहीं आगे जा कर हर दिल को ... हर अशआर पढने वाले के मन रोशन कर रही हैं ... ये महक दूर दूर तक जा रही है ... कहाँ तो एक शेर भी बारी होता है कहाँ गंगा बह निकलती है ... बहुत ही कमाल का हर शेर ... कई कई बार पढ़ने को मन कर जाता है ... कविराज को बहुत बहुत बधाई ... दीपावली के मुशायरे में चार नहीं ... आठ चाँद लगाने की बहुत बहुत बधाई ... जितना लाजवाब आगाज़ था उतना ही लाजवाब अंजाम है इस मुशायरे का ...
    ढेरों शुभकामनायें ...

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  12. 6 नवंबर की मेल मुझसे मिस हो गयी। अभी तीन चार दिन पहले लगा कि एक अंतिम पोस्‍ट तो आयी ही होगी। बस तबसे चार पॉाच बार पढ़ चुका हूँ। काफिया ही काफिया, मुझै तो मिल ही नहीं रहे थे, वह भी पूरी नफ़ासत से बंधे हुए। अब आपका लेखकीय अनुभव इतना हो चुका है क‍ि कहन पर कुछ कहना व्‍यर्थ होगा। बहुत खूबसूरत समाप्ति हुई तरही मुशायरा की।
    सभी को बहुत बहुत बधाई।

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