ईद का त्यौहार इसी सप्ताह आया और चला गया। लेकिन हम अभी भी उसके आनंद में डूबे हुए हैं। हमारे लिए तो ईद अभी भी चल रही है। हमारे मोहल्ले में ईद का त्यौहार अभी भी मनाया जा रहा है। असल में हम लोग ज़रा पुराने किस्म के लोग हैं हमारे लिए त्यौहार एक दस दिन तक चलने वाला उत्सव होता है। कम से कम दस से पन्द्रह दिनों तक नहीं मने तो वह त्यौहार ही कैसा। हम दीपावली को देव प्रबोधिनी एकादशी तक मनाते हैं, क्रिसमस को एक जनवरी तक मनाते हैं तो फिर ईद को क्यों नहीं। त्यौहार एक मनोदशा है जिसमें हम केवल आनंद ही तलाशते हैं। तो आइये आज भी हम इसी आनंद की खोज में निकलते हैं ईद के बहाने से।
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक
आज हम तीन शायरों के साथ तरही के क्रम को आगे बढ़ा रहे हैं। तिलकराज कपूर जी, गिरीश पंकज जी और डॉ. सुधीर त्यागी के साथ हम ईद का आनंद मना रहे हैं।
तिलक राज कपूर
माँ तेरी दुआओं का असर "ईद मुबारक"
हैं दूर बहुत मुझसे ख़तर - ईद मुबारक
किस चाँद पे किसका है असर "ईद मुबारक"
पूछा तो ये कहती है सहर - ईद मुबारक़
अल्लाह की बंदों पे नज़र "ईद मुबारक"
आसान करे सबका सफ़र "ईद मुबारक"
दहकां तेरी मुश्किल नहीं समझेगा ज़माना
है भूख इधर और उधर "ईद मुबारक"
हर मोड़ पे कुछ प्रश्न खड़े रोक रहे थे
मुमकिन हुआ फिर भी ये सफ़र - ईद मुबारक
जो सुब्ह का भूला हुआ घर छोड़ गया था
आया है वही लौट के घर - ईद मुबारक
प्रश्नों की क़तारों में खड़ी भीड़ को देखो
मिलती है जिसे बनके सिफ़र "ईद मुबारक"
इक बार सभी दर्द भुलाकर उन्हें कहदे
"खुशियों से भरे आपका घर" - ईद मुबारक
कोशिश तो बहुत है कि कभी उनसे कहूं मैं
"हम पर हो इनायत की नज़र" - ईद मुबारक
पूरब में दिखा चाँद ये ऐलान हुआ है
जाते हैं भला आप किधर - ईद मुबारक
आग़ोश में इक ख़्वाब भरे सोच रहा हूँ
वो चांद कहे देख क़मर - ईद मुबारक
हम राह के काँटों को हटा उनसे कहेंगे
अब तुमको मुबारक हो डगर - ईद मुबारक
तन्हाई में डूबे हुए इंसा के लिए है
बीते हुए लम्हों का सफ़र "ईद मुबारक"
तिलक जी हर बार अपने शेरों से महफिल में चार चाँद लगा देते हैं। इस बार भी उन्होंने मतले में ही माँ की दुआओं के साथ शुरूआत की है। सच में माँ की दुआएँ साथ हों तो हर दुख हर गम दूर ही रहता है। जो सुब्ह का भूला हुआ घर छोड़ गया था में मिसरा सानी बहुत उम्दा बना है किसी के लौट के घर आ जाने पर सबकी ईद हो जाती है। किसी से बिछड़ कर भला कैसे ईद मन सकती है। और अगले शेर में प्रश्नों की कतारों में खड़ी भीड़ जिसे सिफर बन कर ईद मिल रही है उसका दर्द भी बहुत अच्छे से अभिव्यक्त हुआ है। बहुत खूब। अगले दोनों शेरों में दो वाक्यों को बहुत खूबी के साथ मिसरे में गूँथा गया है। खुशियों से भरे आपका घर और हम पर हो इनायत की नज़र ये दोनों वाक्य बहुत ही सुंदरता के साथ मिसरे में गूँथे गए हैं। बहुत ही सुंदर प्रयोग। पूरब में चाँद के दिखने के साथ हुआ ऐलान बहुत खूब है। अगले दोनों शेर प्रेम के शेर हैं। चाँद का क़मर को देख कर ईद मुबाकर कहना, वाह और हम राह के काँटों को हटा उनसे कहेंगे बहुत ही सुंदर प्रयोग। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।
गिरीश पंकज
खुशहाल रहे आपका दर ईद मुबारक
"कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक"
हिद्दत सही रमजान में दय्यान के लिए
महका रहा है तुमको इतर ईद मुबारक
(दय्यान - स्वर्ग का वो दरवाज़ा जो रोजेदारों के लिए खुलता है)
तुमको नहीं देखा है ज़माने से दोस्तो
इस बार तो आना मेरे घर ईद मुबारक
अल्लाह ने बख्शी है हमें एक ये नेमत
मिलजुल के ज़िन्दगी हो बसर ईद मुबारक
छोटा - बड़ा है कोई नहीं सब हैं बराबर
रमजान दे रहा है ख़बर ईद मुबारक
गिरीश पंकज जी की ग़ज़ल हर मुशायरे में सबसे पहले प्राप्त होती है और इस बार भी ऐसा ही हुआ। मतले में ही गिरह को बहुत कमाल के साथ लगाया गया है। खुशहाल रहे आपका दर और उसके बाद गिरह का मिसरा बहुत सुंदर। अगला शेर रवायती शेर का एक बहुत ही खूबसूरत उदाहरण है। ईश की इबादत और उसके बाद खुलने वाला स्वर्ग का दरवाज़ा जिसके कारण रोज़ेदार इतर से महक रहा है। बहुत सुंदर। अगला शेर गहरे अर्थ की बात कह रहा है। इन दिनों जो कुछ हवाओं में फैला हुआ है उसकी और इशारा कर रहा है यह शेर। और अगला शेर एक दुआ है, एक प्रार्थना है, एक सीख है जो हम सबके लिए है। अंतिम शेर में सब के बराबर होने सबके इन्सान होने और मिल जुल कर जीने की जो बात कही गई है वो सारी दुनिया को समझने की ज़रूरत है। बहुत सुंदर ग़ज़ल क्या बात है वाह वाह वाह।
डॉ. सुधीर त्यागी
खुशहाल हो हर एक बशर ईद मुबारक।
बख्शे खुदा रहमत की नज़र ईद मुबारक।
दुश्मन भी अगर हो तो गले उसको लगा ले।
कहती है ये खुशियों की सहर ईद मुबारक।
कुछ लोग जो भटके हुए हैं राहे नबी से।
उनको भी चलो कह दें मगर ईद मुबारक।
कल छत पे मेरी चाँद लगा आ के टहलने,
और हँस के कहा जाने जिगर ईद मुबारक।
मिलने से गले पहले ज़रा आँख मिलाओ।
कहने का ज़रा सीखो हुनर ईद मुबारक।
इस बार गले लगने में दोनों को झिझक है।
सोलहवें बरस का है असर ईद मुबारक।
मतला एक दुआ के साथ खुलता है और दुनिया के हर इन्सान के लिए खुदा से खुशियों की और रहमत की माँग करता है। सच में त्यौहार का यही तो मतलब है कि हम सब एक स्वर में सभी के लिए खुशियों की माँग करें। अगले शेर में दुश्मन को भी गले लगाकर ईद के असली संदेश प्रेम को फैलाने की बात कह कर गिरह को लगाया गया है जो बहुत सुंदर बन पड़ा है। राहे नबी से भटके हुए लोगों को भी ईद मुबारक कहना और उनको भी अमन की राह पर लाने की बात करना ही तो असली ईद है। जाने जिगर काफिया इस मिसरे पर सबसे सटीक काफिया है जिसे बहुत सुंदर तरीके से सुधीर जी ने लगाया है। चाँद का छत पर टहलना और हंस के कहना वाह क्या बात है। और अगला शेर जिसमें मिलने से पहले आँख मिलाने का हुनर सीखने की नसीहत है बहुत ही सुंदर है। अंतिम शेर हम सबके जीवन की कहानी है मानों, बचपन से लेकर किशोरावस्था तक का साथा अचानक अजनबी क्यों बना देता है सोलहवें तक आते आते, क्यों ऐसा हो जाता है। यह झिझक ही सारी कहानी कह रही है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
तो यह हैं आज की तीनों शानदार ग़ज़लें। तीनों शायरों ने कमाल के प्रयोग किये हैं। अब आपको भी टिप्प्णियों में कमाल करना है, यदि आपके पास समय हो तो। क्योंकि इन दिनों लगता है कि आपके पास बहुत व्यस्तता है। खैर मिलते हैं अगले अंक में।
बहुत ही नायाब गजलें,वक्त के साथ अंदाज भी बदल जाये हैं. पर धागों में जो बात है वो सेल्फ़ी में कहां? सेल्फ़ी वक्त बीतने के साथ कहां गुम हो जायेगी पता भी नही चलेगा पर धागे आजीवन साथ निभा सकते हैं.
जवाब देंहटाएं#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०१६
सुन्दर शेर
जवाब देंहटाएंलेकिन हम तो कहेंगे
ताऊ के डंडे ने कमाल कर दिया
ब्लोगर्स को बुला कमाल कर दिया
#हिंदी_ब्लोगिंग जिंदाबाद
यात्रा कहीं से शुरू हो वापसी घर पर ही होती है :)
समझ नहीं आता कि ईश्वर ने ऐसा अन्याय क्यों किया ? सारी प्रतिभा कम बालों वाले इंसानों को ही क्यों अता की ? 'तिलक' जी की प्रतिभा से मैं हमेशा मन ही मन इर्षा करता रहा हूँ और करता रहूँगा ---अब ये भी कोई बात हुई कि जहाँ हमारी खोपड़ी में एक शेर भी नहीं घुस पा रहा वहीँ इस बन्दे ने ढेर लगा दिये , ये भाई जरूर किसी जरूरी काम से कहीं चले गए होंगे वरना तिलक जी के लिए सौ दो सौ शेर कह देना बाएं हाथ का खेल है-- और भाई शेर भी ऐसे ऐसे कि दांतों तले ऊँगली दबानी नहीं चबानी पड़ती है। एक एक शेर में क्या तो ग़ज़ब किया है भाई ने , ज़िंदाबाद !!!
जवाब देंहटाएंगिरीश जी की छोटी लेकिन मुकम्मल ग़ज़ल बहुत प्यारी लगी।
सुधीर जी का 'कल छत पे मेरी चाँद ---" वाला शेर अकेला ही सौ ग़ज़लों पर भारी है -- ढेरों दाद।
गंजा होना मुश्किल नहीं, बस जितना समय बाहर वालों को देते हैं उसका चौथाई समय पत्नी को दे दें, साल भर में सर पर बाल बचें तो बताएं।
हटाएंग़ज़ल कहने में इस बार पसीने छूट रहे थे, रदीफ़ बंधन कठिन हो रहा था। पता नहीं कहाँ से अंदर ही अंदर एक गीत बजने लगा पुराने ज़माने का:
तारों की ज़बां पर है मुहब्बत की कहानी
ऐ चान्द मुबारक हो तुम्हें रात सुहानी।
बस ग़ज़ल हो गयी।
100-200 शेर क्या, आजकल ग़ज़ल हो ही नहीं पा रही है।
हृदय से आभारी हूँ आपकी मोहब्बतों का।
हर मोड़ पे कुछ प्रश्न खड़े रोक रहे थे
जवाब देंहटाएंमुमकिन हुआ फिर भी ये सफ़र - ईद मुबारक़ .. .
वल्लाह ! किस खूबसूरती से इस शेर में ज़िन्दग़ी के फ़लसफ़े को पिरोया गया है ! वाह वाह ! ऐसे शेर ज़िन्दाबद हुआ करते हैं।
इस पूरी ग़ज़ल के एक-एक शेर पर देर तक मनन किया जा सकता है।
आदरणीय तिलकराज जी, दिल से दाद कुबूल कीजिए।
आदरणीय गिरीश जी अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावज़ूद इस पटल के मुशायरे के लिए आवश्यक समय निकाल ही लेते हैं। इस बर का मौक़ा भी आपने जाने नहीं दिया है। आपकी ग़ज़ल के लिए हार्दिक धन्यवाद।
भाई सुधीर त्यागी जी के इस शेर की मुलामियत पर दिल ख़ुश हो गया -
कल छत पे मेरी चाँद लगा आ के टहलने
और हँस के कहा जाने-जिगर ईद मुबारक़ !
और, इस शेर का क्या गुरुआना अंदाज़ है ! -
मिलने से गले पहले ज़रा आँख मिलाओ
कहने का ज़रा सीखो हुनर.. ईद मुबारक़ ..
वाह !
आज के तीनों ग़ज़लकारों को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएँ
शुभ-शुभ
हृदय से आभारी हूँ सौरभ जी। आप सबकी मोहब्बतों का परिणाम है।
हटाएंगिरीश पंकज जी ने जिस खूबसूरती से दय्यान की बात कही वह कहन सीखने वालों के लिए एक पढ़ है कि शेर जिस विषय पर कहा जाए उस विषय का अध्ययन होना और जिस भाषा का प्रयोग किया जाए उसकी शब्द-प्रयोग विधि को समझना कितना ज़रूरी होता है।
जवाब देंहटाएंईद में दुआ का विशेष महत्व है, इस विचार को बल देती हुई ग़ज़ल में तीसरे शेर का निमंत्रण बहुत खूबी से एक उम्र विशेष की ज़रूरत पर केंद्रित है।
बधाई गिरीश जी।
ईद हो और दुआ न हो यह असंभव है, स्वाभाविक है हर ग़ज़ल में दुआ तो आनी ही है। डॉ. सुधीर त्यागी जी का मत्ले का शेर बखूबी इस दुआ को प्रस्तुत कर रहा है।
कल छत पे मेरी चाँद लगा आ के टहलने,
और हँस के कहा जाने जिगर ईद मुबारक।
भाई, क्या लाजवाब शेर हुआ वाह।
ईद पर गले से पहले नज़र मिलने की बात, वाह।
और आखिरी शेर तो शायद सभी की हक़ीक़त है।
वाह-वाह, क्या बात है।
आदरणीय तिलक जी की ग़ज़ल के सहारे बारीकियां सीख रहा हूँ ... कितना सहज और एक से बढ़ के एक शेर निकले हैं कलम से ... माँ की दुआओं का असर और फिर हर मोड़ पे कुछ प्रश्न खड़े रोक रहे थे ... क्या बात है ... शेरों का सिलसिला बहुत ही लाजवाब है ...
जवाब देंहटाएंगिरीश जी ने भी बहुत ही कमाल के शेर कहे हैं ... तुमको नहीं देखा है जमाने से ... बहुत ही खूबसूरत शेर ...
दुआ और दोस्ती का सन्देश लिए त्यागी जी की ग़ज़ल भी खुत लाजवाब है .. और इस मुशायरे में चार चाँद ;आगा रही है ...
मुशायरा एक से बढ़ कर एग ग़ज़ल ले के आ रहा है और यही इसकी खूबी है की एक ही मंच पर अनेक दिग्गजों का कलाम पढने को मिल जाता है ...
आदरणीय तिलकजी की ग़ज़ल पढ़ कर हर शायर के दिल से यही दुआ निकलेग्गी
जवाब देंहटाएंहम पर हो इनायत की नजर, ईद मुबारक
गिरीशजी
इस बार तो आना मेरे घर----
नहीं हर बार तुम्हें आना है इधर.
सुधीर जी,
इस बार गले लगाने में दोनों को झिझक है -- बेहतरीन
वाह वाह आदरणीय तिलक राज जी,
जवाब देंहटाएंहर मोड़ पे कुछ.......
आगोश में इक ख्वाब......
बेहतरीन शेर
आदरणीय गिरीश पंकज जी वाह
अल्लाह ने बख्शी है.... उम्दा
यहां सभी मूर्धन्य शायर है. आप सभी का,मुझ अदने से कलमकार की होसलाअफजाई के लिए कोटि कोटि प्रणाम एवं आभार
जवाब देंहटाएंवाह वाह ,,, बहुत ही शानदार रचनाएँ,,, वाक़ई आयोजन में चार चाँद लगा रही हैं आज की तीनों ग़ज़लें,,, ग़ज़लकारों को बहुत बहुत बधाई
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