शनिवार, 10 जनवरी 2009

ग़ज़ल में कहन का ही सारा खेल है, बहर तो उस्‍ताद के सिखाने पर आ जाती है ।

पिछले दिनों ये देखने में आया कि काफी लोग अच्‍छी ग़ज़लें लिख रहे हैं । ग़ज़ल को लेकर अब कुहासा छंट रहा है । लोग अब ये मानने लगे हैं कि हिंदी में भी और आसान शब्‍दों को लेकर भी ग़ज़लें लिखी जा सकती हैं । बस एक ही बात है कि ग़ज़ल में कहन का आनंद होना ही चाहिये । दूसरी बात ये कि कहा गया है कि साहित्‍य समाज का दर्पण है, तो दर्पण का अर्थ है कि जो कुछ सामने है उसकी ही छवि, उसका ही बिम्‍ब दिखाने का काम करने वाला । उसमें कोई छेड़ छाड़ नहीं हो । दर्पण वो जो मेकअप करने का काम नहीं करे जो कुछ भी सामने हो उसीको दिखा दे । मगर होता है ये कि हमारा साहित्‍य दर्पण न बन कर तस्‍वीर बन जाता है, एक सुहानी तस्‍वीर । आइये इसको जानें कि दर्पण साहित्‍य और तस्‍वीर साहित्‍य में क्‍या फर्क है । समाज की विसंगतियों, समाज की बुराइयों, और उसकी अच्‍छाइयों को निरपेक्ष रूप से दिखाना मतलब दर्पण के समान साहित्‍य । ये मेरा व्‍यक्तिगत मत है कि मैं वाल्‍मीकि के राम को तुलसी के राम से जियादह पसंद करता हूं क्‍योंकि वाल्‍मीकि ने राजा राम की कहानी लिखी और तुलसी ने प्रभु राम की कहानी लिखी । 

यदि साहित्‍य समाज को चूल्‍हे में डाल कर एक ही बात कर रहा है इश्‍क की, मुहब्‍बत की, जाम की, शराब की तो इसका मतलब है कि साहित्‍य स्थिर हो गया है । कुछ भी उसका दृष्‍य बदल ही नहीं रहा है ठीक वैसा जैसा कि तस्‍वीर में होता है । देश में आग लगी हो, समाज विघ्‍टन पर हो, सांप्रदायिक द्वेष फैला हो और आप ऐसे में हुस्‍न, इश्‍क, मुहब्‍बत की बाते करें तो आप दर्पण कहां रहे, आप तो तस्‍वीर हो गये हैं । तस्‍वीर जिसके फ्रेम में कभी भी दृष्‍य नहीं बदलता । कभी कभी दर्पण मेकअपमेन का भी काम करता है । ये परंपरा भारत में ही बहुत हुई है । राजाओं ने, महाराजाओं ने अपने हिसाब से साहित्‍य रचवाया है मतलब ये कि साहित्‍यकार ने पैसे लेकर शब्‍दों से मेकअप करने का काम किया । मैं चारण परंपरा के पूरे साहित्‍य को खारिज करता हूं कि वो वास्‍तव में साहित्‍य है ही नहीं । ये तो वैसा ही है जैसा आज भी लालू चालीसा या वसुंधरा चालीसा लिखा जा रहा है । दादा हरिशंकर परसाई जी ने कहा था कि जब आग लगी हो तब यदि आप राग जय-जयवंती गा रहे हैं तो आप कम से कम साहित्‍यकार तो नहीं है ।

ये पूरी बात इसलिये कि इन दिनों कुछ अच्‍छी ग़ज़लें देखने को मिली हैं । और अच्‍छी बात ये है कि सीखने की ओर पुन: ध्‍यान दिया जा रहा है । मुझे बहुत आश्‍चर्य हुआ जब नीरज गोस्‍वामी जी को मैंने किसी ग़ज़ल पर कड़े शब्‍दों में मेल किया और उन्‍होंने जो उत्‍तर दिया वो विस्‍मय कारी था । जबकि मैंने संभवत: बहुत कड़े शब्‍द लिख दिये थे । फिर जब उनका फोन आया और मैंने कहा ''नीरज जी आपका मतला बहुत घटिया है ''  तो वे ठठाकर हंस पड़े और बोले आनंद आ गया । चाहे गौतम हों, वीनस हों, अंकित हों, कंचन हों या रविकांत इन सबमें सीखने की अद्भुत ललक है । और अच्‍छी बात ये है कि कहन पर ये लोग बहुत ध्‍यान दे रहे हैं । बस एक ही बात मैं कहना चाहूंगा कि अपनी ग़ज़ल को लिखने के बाद तुरंत सार्वजनिक न करें । उसे दो दिन रखे रहने दें उसकी तरफ देखें भी नहीं । ये होता है कुम्‍हार के भट्टे में ईंट का पकाना । दो दिन बाद जब आप अपनी ही ग़ज़ल को देखेंगें तो उसमें आपको कई सारे ऐब दिखेंगें । अब बारी है ऐबों को दूर करने की ये चाहें तो आप स्‍वयं कर सकते हैं या फिर इस्‍लाह भी एक तरीका है । मगर ये याद रखें कि पहली बार की लिखी को इस्‍लाह न  करवायें एक बाद खुद करें फिर ही किसी से इस्‍लाह करवायें । दूसरी बार तराशने के बाद ही ग़ज़ल का हुस्‍न निखरेगा और वो बनेगी ग़ज़ल । दूसरी बार देखने पर आपको यदि ऐसा लग रहा है कि ग़ज़ल तो दोयम दर्जे की है तो बिना पुत्रमोह में फंसे उसे फाड़ दें, उसकी नींव पर एक नई ग़ज़ल तैयार करें । सबसे कठिन है अपने लिखे को फाड़ कर फैंक देना, मगर यदि इसकी आदत हो गई तो हम अपने को ऊंचाइयों की ओर ले जाना प्रारंभ कर देंगें ।

कहन की यदि बात करें तो हमेशा याद रखें कि साहित्‍य को दर्पण होना चाहिये । अब अगर आप आज के दौर में शेर कह रहे हैं कि परदा हटाइये ज़रा जलवा दिखाइये तो आज तो मुंह का परदा तो छोड़ें जाने परदा तो कहीं नहीं है । इसका मतलब है कि आप आज के दौर पर नज़र नहीं रखे हैं । कहन का अर्थ है कि आज के दौर की नब्‍ज पर उंगली रखें । कहन का अर्थ है घिसी पिटी परंपराओं को छोडें अचानक कुछ नया सा लिख कर चौंका दें लोगों को । इसका मतलब ये भी नहीं कि प्रेम की कवितायें ही नहीं हों । प्रेम तो काव्‍य का स्‍थायी भाव है मगर कुछ नया तो कहिये । एक शेर जो पिछले दिनों नीरज जी के ब्‍लाग पर बहुत पसंद किया गया कृष्‍ण को तो व्‍यर्थ ही बदनाम सबने कर दिया, राधिका का प्रेम तो था बांसुरी की तान से ।  अब आप कहेंगें कि इसमें नया क्‍या है वही कृष्‍ण वही राधा । मगर इसको लोगों ने इसलिये पसंद किया कि कुछ नया कह कर लोगों को चौंकाने का काम किया है । अगर कहा जाता कि कृष्‍ण से राधिका को प्रेम था तो लोग कहते नया क्‍या है सब जानते हैं । हमारे पहले के शायर इतनी ज़मीनों पर हल चला चुके हैं कि हमें बहुत मेहनत करके अपने लिये नई ज़मीन तलाश करनी पड़ती है । नहीं करोंगे तो लोग कहेंगें ठीक है पर ऐसा ही कुछ तो गालिब ने भी कहा था । ऐसा ही कुछ  का अर्थ ये है कि कहने वाला आपका सम्‍मान रखते हुए ये नहीं कह रहा है कि आपने ग़ालिब का चरबा कर दिया है ।

कुछ वादे जो टूट गये उनके लिये खेद

1 समीर लाल जी के पुत्र की शादी में नहीं पहुंच पाया ।

2 हिंद युग्‍म के कार्यक्रम में नहीं जा पाया । ( वादा करने के बाद भी )

5 हिंद युग्‍म पर ग़ज़ल की कक्षायें नहीं लगा पा रहा ।

पहले दो वादे इसलिये टूटे कि 27 को कवि सम्‍मेलन था और केंकड़ों की कहानी के हिसाब से उसे असफल करने का काम मेरे परम मित्रों ने प्रारंभ कर दिया था । मजबूरी थी कि यदि सीहोर छोड़ देता तो कुछ भी हो सकता था । फिर बुखार और स्‍वास्‍थ्‍य ने साथ छोड़ा । पिछले सप्‍ताह जब हिंद युग्‍म पर पुन: कक्षायें लगाने की तैयारी में था तो पत्‍नीपक्ष के एक अत्‍यंत निकटस्‍थ का निधन हो गया । चूंकि वो मेरे दुख में मेरे साथ खड़ी होती है सो मेरा कर्तव्‍य मुझे वहां खींच ले गया ।

कुछ नया जो हो रहा था

पिछला सप्‍ताह धूप, गंध, चांदनी का था । शिवना प्रकाशन की अगली पुस्‍तक जो अमेरिका में बसे भारतीय मूल के पांच कवियों सर्वश्री घनश्‍याम गुप्‍ता, बीना टोडी, राकेश खण्‍डेलवाल, अर्चना पंडा और डा विशाखा ठाकर की कविताओं का संग्रह है । उसके प्रकाशन पूर्व की तैयारियां चल रहीं थीं । और कल ही वो संग्रह प्रिंट में चला गया है । अब समीर लाल जी के संग्रह बिखरे मोती को अंतिम रूप दिया जा रहा है ।

कुछ इच्‍छा है

तरही मुशायरा वसंत पंचमी पर आयोजित किया जाये । मां सरस्‍वती के प्राकट्य दिवस पर । मिसरा दिया जा चुका है

मुहब्‍बत करने वाले ख़ूबसूरत लोग होते हैं

14 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी तारीफ़ सुनी है आपकी, अब आगे आपसे कुछ सीखने की उम्मीद बनी रहेगी

    ---मेरा पृष्ठ
    चाँद, बादल और शाम

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  2. निहायत जरुरी सलाह पर यह आलेख देने का आभार.

    पुत्र की शादी में न आने का हिसाब यहाँ नहीं, अलग से किया जायेगा.

    भाभी जी के परिवार में हुए दुख में हमारी संवेदनाऐं.

    आपसे शाम को बात करते हैं.

    तब तक, जय हो!!

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  3. गुरु जी को मेरा सादर प्रणाम,
    बहोत दिनों के बाद कुछ पढ़ने को मिला,आपकी व्यस्तता को समझ सकता हूँ ...
    कुछ भी सिखाने के इंतज़ार में बैठा हूँ ये इसी ताक में रहता हूँ की कहीं से कुछ सीखूं आपके लिखे से ही सही एक्लाब्या की तरह ...

    आभार
    अर्श

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  4. ग़ज़ल के उत्थान, स्वरुप और आज के परिवेश में आए बदलाव का ग़ज़ल के स्वरुप पर क्या असर हो रहा है, इस के बारे में आपके सामयिक विचार और गहरा अध्यन ही आप को ग़ज़ल गुरु के नाम से प्रख्यात कर रहा है. इसमे में कोई अतिशयोक्ति नही है की आप की इस विषय में गहरी पकड़ है और आज के दौर में आप ग़ज़ल के आदर्श है जिनकी और नए गज़लकार देख और सीख सकते हैं

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  5. उस्ताद जी को सादर प्रणाम!
    आप वाकई उस्ताद हैं।
    बहरें तो सभी आती हैं, मगर ग़ज़ल कहना वह अभी तक नहीं आया।
    सब से पहले तो बात हो कहने के लिए, फिर अंदाज हो अपना, फिर बहर हो जो दोनों को ग़ज़ल बनाए।
    आप के इस आलेख के लिए शुक्रिया।
    और कुछ नहीं तो नाग़ज़ल को लोग ग़ज़ल कहना बंद कर दें तो बहुत सकून मिल जाए।

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  6. aapako gurU banaanaa hI paDega maiM to gazal ke baare meM kuchh nahi jaanti jaan kaarI ke liye dhanyabaad

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  7. गुरूजी, आपके लेख का तो शीर्षक ही सब कुछ कह गया. सच कहा आपने जी, के कहन का सारा खेल है. बहर के विषय में जो प्राण साहब ने दर्ज किया पिछले दिनों उससे भी सीखा जाए. ऐबों के बारे में आप ने पहले भी लिखा है कई बार, यदि उस पर ध्यान दिया जावे तो बहुत बात बन सकती है. इस्लाह के विषय में जो आप कहते हैं यही हमारे उस्ताद शेख़ लुक़्मान भी फ़रमाया करते थे. अब वो नहीं है मगर शुक्र है के आप मिले. इन बारीकियों को समझाने वाले नहीं मिलते जनाब. आप हैं तो आपका फ़ायदा नए लोगों को ज़रूर उठाना चाहिये.

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  8. नमस्कार गुरु जी,
    हर लफ्ज़ मोती है. आपकी कही हुई बात को अमल में लाऊंगा.

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  9. मुझे याद है मेरे स्कूल के अध्यापक कहा करते थे की बेटा जिस मास्टर की तुमने छड़ी नहीं खाई समझो उस का प्रेम तुम्हें नहीं मिला...आप की डांट डांट नहीं होती प्रेम होता है...आप देखते है की रचना स्तर की नहीं है तो आहत होते हैं और आहत हमेशा कोई अपना ही होता है...गैर को फुर्सत कहाँ? आप की डांट मेरे लिए आशीर्वाद है...
    बहुत ही सार गर्भित लेख लिखा है आपने...कोशिश करेंगे की की आपके कठिन माप दंडों पर खरे उतरें...
    नीरज

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  10. आपकी बातों में जादू है गुरूवर.इन तमाम बातों को इतनी आसानी से आप समझा देते हैं,कि हमें अपनी खुशनसीबी पर रश्क होने लगता है कभी-कभी तो.आप नहीं मिलते तो जाने क्या बनता हमारा.
    महावीर शर्मा जी की टिप्पणी उद्धृत करना चाहता हूं यहां पर
    "...ख़ूबसूरत ग़ज़ल है और हो भी क्यों ना हो, पंकज सुबीर जैसे अनुभवी उस्ताद की शागिर्दी में यही तो लाभ है। हिंदी-साहित्य से जुड़े हुए ग़ज़ल-प्रेमी पंकज सुबीर के ऋणी हैं। उर्दू और रोमन में ग़ज़ल की पाठशाला मैंने देखी हैं। लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत में इस क़िस्म की पाठशाला पंकज भाई ने ही शुरू की थी।
    वो बात अलग है कि कुछ लोग बीच में ही छोड़ गये और अधूरे ज्ञान की वजह से ग़लत ग़ज़लें लिखीं और पंकज भाई की रहनुमाई का ज़िक्र करते रहे जो ठीक नहीं था।
    जहां आपकी बात है, साफ़ दिखाई देता है कि मेहनत की है और मुझे पूरा यक़ीन है कि आप इस मंझे हुए गुरू का नाम पैदा करोगे।
    उम्र अब इस क़ाबिल नहीं रही कि तुम्हें कुछ सलाह दे सकूं पर फिर भी यह कहूंगा कि
    टिप्पणियों के नंबर बढ़ाने के चक्कर में अपनी रचनाओं का स्तर कभी भी नीचे मत गिराना।
    टिप्पणियों के नंबर की बजाय ग़ज़ल के तख़्खयुल और तग़ज़्ज़ुल दोनों पर ध्यान रखना।
    महावीर शर्मा"

    होमवर्क लगभग पूरा हो गया है,आपके निर्देशानुसार अभी दो दिन पलट कर नहीं देख रहा.
    "ईस्ट इंडिया कंपनी" की उद्‍घोषणा फिर से पढ़ी.कब आ रही है ये गुरू जी?इसके विमोचन में आना चाहता हूं.

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  11. गुरूजी,
    नमस्कार! यह बारीक विश्लेषण पढ़ने के बाद कौन होगा जो आपका कायल न हो जाये।

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  12. is kaksha ki bato ko yaad rakh ke koshish karungi ki jald se jald aapko tarahi mushayare ke liye gazal bheju.n

    pranaam

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  13. भाई सुबीर जी, आपका लेख अच्छा लगा। ख़ास कर मुझे राहत इसलिए महसूस हुई कि आपने इस बात को अहम माना कि कथ्य अधिक ज़रूरी है बाकी बाद की बातें हैं। आपने जिस ईमानदारी से कुछ वादे न निभाने को भी कबूला है वो आपके भीतर एक नेक और ईमानदार आदमी की छवि को दिखाता है। आपको लोहड़ी की शुभकामनाएं।

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