मंगलवार, 8 नवंबर 2022

आज भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के'की एक मुसलसल घटिया ग़ज़ल के साथ हम समापन करते हैं दीपावली 2022 के तरही मुशायरे का।

तो दोस्तो आज हम  तरही मुशायरे के आख़िरी पड़ाव पर आ गए हैं। आज कार्तिक पूर्णिमा है आज प्रकाश पर्व है, आज गुरुनानक जयंती है, तो आज हम पन्द्रह दिवसीय प्रकाश पर्व का समापन करने जा रहे हैं। दीपावली से आज पूर्णिमा तक पूरा पखवाड़ा प्रकाश को समर्पित रहा है। बहुत अच्छा मुशायरा रहा और बहुत सुंदर रचनाएँ पढ़ने को मिली हैं। 

क़ुमकुमे यूँ जल उठेंगे, नूर के त्यौहार में
आज भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के'की एक मुसलसल घटिया ग़ज़ल के साथ हम समापन करते हैं दीपावली 2022 के तरही मुशायरे का।

भभ्भड़ कवि 'भौंचक्के'
कल घटा था दिन-दहाड़े और कुछ बाज़ार में
पर छपा है और ही कुछ आज के अख़बार में
कुछ नहीं रक्खा सुनो ! इस व्यर्थ हाहाकार में
स्वर्ग का आनंद है राजा की जय-जयकार में

हो गया अपराध कितना ही बड़ा तो क्या हुआ
सर झुका कर बैठ जाओ शाह के दरबार में
हम ही बहरे हैं जो हमको कुछ सुनाता ही नहीं
कह रहे हैं लोग डंका बज रहा संसार में

भूख, बेकारी, ग़रीबी, कुछ नहीं आता नज़र
आजकल खोए हैं सारे कलयुगी अवतार में
सीधी, तिरछी, ढाई घर, हर चाल चल लेता है वो
गुण हैं राजा से अधिक उसके सिपहसालार में

जो मुख़ालिफ़ आपके हैं, मूर्ख हैं कमबख़्त सब
इन दीवानों को है सुख मिलता रसन और दार में
ख़ानदान अपने को अब के कैसा ये मुखिया मिला
आग लगवा दी है जिसने पुरखों के कोठार में

आप से पहले हुकूमत थी ही कब कोई यहाँ
जाने किसने लिख दिया इतिहास सब बेकार में
उफ़! ये राजा, उफ़! ये मंत्री, क्या छटा दरबार की
"क़ुमक़ुमे ज्यों जल रहे हों नूर के त्योहार में"

कुछ घृणा की नागफनियाँ, केक्टस अलगाव के
आपके स्वागत में गूँथे हैं ये बंदनवार में
सीबीआई, ईवीएम, ईडी, ज्यूडिशरी, आईटी
जान हर तोते की है महाराज के अधिकार में

जब क़बीले से कहा सरदार ने- 'आभार हो'
बिछ गई सारी प्रजा कालीन बन आभार में
वो ही हैं अब पक्ष भी और वो ही हैं प्रतिपक्ष भी
अब नहीं है भेद कुछ भी जीत में और हार में

फिर 'सुबीर' इस शह्र में बाग़ी नहीं होगा कोई
गोलियाँ पड़ जाएँगी जिस दिन यहाँ दो-चार में
 
तो यह है भभ्भड़ कवि की ग़ज़ल, आप कह सकते हैं कि यह तो पन्द्रह दिन से खाए जा रहे सुस्वादु भोजन के बाद कंकर वाली दाल की तरह है। ख़ैर झेल लीजिए इसे और गालियाँ भभ्भड़ को व्हाट्सएप से भेज दीजिए। मिलते हैं अगले मुशायरे में, तब तक, जय जय।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बात कह दी है भभ्भड़ ने एक प्रहार मे । बहुत अच्छे विषयों पर चोट की गई है पूरी ग़ज़ल मे। ये आवश्यक है कि समय की सच्चाई लिखी जाए। और भभ्भड़ अपनी इस ज़िम्मेदारी को हमेशा निभाते हैं। इस लिए हमें उन पर गर्व है। बेबाक भभ्भड़ के शुभकामनाएं कि वो इस ब्लॉग पर ऐसे ही चहल पहल बनाये रखें। मैंने इस बार रस से पहले की पोस्ट्स नही पढ़ी है जल्द ही पढ़ कर कमेंट्स करती हूँ।

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  2. समय की सच्चाई को उजागर करती एक सशक्त ग़ज़ल वाह और वाह!

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  3. क्या बात है। गजब, गजब, गजब। मुशायरे तो बहुत हैं मगर इस मुशायरे जैसा कोई नहीं। बहुत ही धमाकेदार समापन। एटम बम तो आज फटा है दीवाली का। इसकी गूंज संसद तक जाएगी। बहुत बहुत बधाई। हम तो शेयर कर रहे हैं इसे facebook पर

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  4. भभ्भड़ जी, आपकी ग़ज़ल का इंतज़ार था, बाकी सबको तो पढ़ लिया था, टिप्पणी नहीं लिख सकी तबियत साथ नहीं दे रही थी. समय की सच्चाई पर लिखना भभ्भड़ जी की विशेषता है. अपनी निरंतरता को सलाम! हार्दिक बधाई!

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  5. भभ्भड़ जी गोया गोंता मारे कम्बल में गुड़के हुए थे. बिन ठंडी के. अचानक अदबदाए हुए बाहर झांके हैं. और क्या झांके हैं ! .. कमाल. कमाल.

    खुरपेंच करने की ऐसी महारत ही तो भभ्भड़जी को भभ्भड़जी बनाती है.
    राजा, शाह, दरबार, अखबार आदि- आदि की बिना पर जो कुछ इन्होंने कह डाला है, वह कइयों को तो पुलकित, तो कइयों को सीधा चित्त करने वाली है.

    जो पुलकित हैं, उनको राम-राम
    और जो सीधा चित्त हो गये हैं, उनको आराम..
    भइये, इसे ही कहते हैं, मुशायरे का आयोजनी समापन.
    दीवाली हो ली..

    अगले सत्र की प्रतीक्षा में..
    सौरभ

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  6. वाह वाह क्या ही अद्भुत मुसलसल ग़ज़ल पेश की है. सोच शब्दों को सुरताल के साज़ों से झंकरित किया है
    दाद के साथ

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