कुछ दीवाने से पाठकों का होना हिन्दी के लिए और लेखक के लिए दोनों के लिए ज़ुरूरी है। दीवानापन यह कि पुस्तक के ऑनलाइन उपलब्ध होते ही उसका सबसे पहला ऑर्डर पाठक बुक करे, एक ही सिटिंग में उसे पूरा पढ़ भी ले। पढ़ने के बाद लेखक का लम्बा सा पत्र भी लिखे। हिन्दी के लेखक को और क्या चाहिए भला ? हिन्दी के गरीब लेखक की यही तो पूँजी होती है।
नकुल गौतम का यह पत्र पूँजी ही तो है-    
"ऐसा बहुत कम होता है कि आप कोई किताब हाथ में लें, और बुकमार्क ग़ैर ज़ुरूरी लगे। और जिन किताबों में एक से अधिक विधा की रचनाएँ हों, उनके साथ तो ऐसा कभी नहीं होता। लेकिन हुआ, क्योंकि अभी हम इश्क़ में हैं।    
हुआ यूं कि डाकिये ने जिस दिन घण्टी बजाई उस दिन हम सिक लीव पर थे और सोफ़े पर पसरे हुए थे। दरवाज़ा खोला और डाकिये को देखकर मुस्कुराये, क्योंकि मुझे जिस ख़त का इंतज़ार था, वो आ गया। आजकल डाकिये की ख़ाकी वर्दी देखने को मिलती ही कहाँ है। या तो कूरियर आते हैं या डिलिवरी बॉय।    
ख़ैर, सबसे अच्छी बात यह कि इस बार हमें न जाने क्यों, यह अहसास ही नहीं था कि इस किताब में ग़ज़लें भी होंगी। चूंकि मुझे इंतज़ार था सिर्फ एक कहानी संग्रह का, यह जान कर ख़ुशी दोगुनी हुई कि ग़ज़लें, गीत, कवितायेँ और कहानियाँ, सब हैं इस छोटे से संग्रह में।    
ग़ज़लों की नयी किताब लगभग साल भर बाद मिली, और उस पर छुट्टी का दिन। हम सोफ़े पर फिर से पसरे कि बेग़म जान का फरमान कानों में पड़ा। "यह कैसी किताब पढ़ रहे हो, घर में बच्चे हैं, सवाल करेंगे"। मैंने कहा कि यह शायरी की ही किताब है जी, पर...    
बहरहाल अख़बार का cover चढ़ा कर हम फिर से सोफ़े पर पसर गए। बीच में कुछ ज़ुरूरी कामों के लिए छोड़ कर अभी तक यहीं पसरे हैं क्यों कि "अभी हम इश्क़ में हैं"।    
चलो अब सोच कर ये ही शराफ़त से बिछड़ जाएँ     
ये दिल -विल तो जवानी में सभी ने ही लगाया है...    
लीजिये, अब ऐसे शेर् पढ़ कर अपने सफ़ेद होते जा रहे बालों का ध्यान आ गया। अभी तक तो स्वयं को जवां ही मान रहा था।    
वो जब कहते हैं कि जोड़ा गया है     
समझिये कुछ न कुछ तोड़ा गया है    
...लाजवाब    
सभी का ज़िक्र है, बातें सभी की     
हमारा नाम बस छोड़ा गया है    
...उफ़्फ़ उफ़्फ़    
पिटेंगे सारे मोहरे, सब्र तो कर     
अभी तो सिर्फ़ इक घोड़ा गया है    
...क्या कहने, लाजवाब ग़ज़ल    
कोई उस्ताद मिलना इश्क़ में बेहद ज़ुरूरी है     
जो ग़लती पर ये समझाए, 'मियाँ ऐसे नहीं होगा'    
...बहुत वाजिब सलाह, ज़िन्दगी के हर इश्क़ के लिए    
तुम्हारे हाथ में जलती रहे सिगरट मुसलसल     
कलेजे को ज़रा फूंको अभी तुम इश्क़ में हो    
... बहुत ख़ूब।    
हैं आँखें चार और दिल दो, मगर जोड़ो तो इक आये     
मियाँ अब इस पहली का बताओ तो ज़रा मतलब    
... सिर्फ़ और सिर्फ़ इश्क़। है ना?    
न अब वो खिलखिलाती है, न अब जादू चलाती है     
न जाने कब समय के साथ औरत बन गयी लड़की    
... हृदयस्पर्शी शेर्    
तेरे आशिक़ को आता बस यही है     
तेरी बातें सुना कर बोर करना      
हमें इज़हार करना आ गया जब      
उन्हें भी आ गया इग्नोर करना    
... लाजवाब ये क़वाफ़ी ज़ुरूरी हैं इस विधा को ज़िंदा रखने के लिये।    
इश्क़ में दरिया पार नहीं उतरा जाता     
इश्क़ में दरिया का रुख़ मोड़ा करते हैं    
... वाह वाह। ये उनके लिए ज़ुरूरी है जिन्हें इश्क़ आसानी से चाहिए। कि जब तक जूनून न बने तो इश्क़ ही क्या किया।    
किसी का ज़ुल्फ़ से पानी झटकना     
इसी का नाम बारिश है महोदय    
... यह है शायरी    
मिलन को मौत आखिर कैसे ख दूँ     
नदी सागर से मिलने जा रही है    
... क्या ज़ावीया है... लाजवाब।    
इससे न झूट की कोई उम्मीद करो तुम     
ये आइना है, सामने अख़बार नहीं है    
... बहुत उम्दा, बहुत उम्दा शेर्    
ख़ैर, मैं जैसा भी हूँ, हँस कर गले मिलता तो हूँ     
माफ़ करना आपको इतना सलीक़ा भी नहीं    
और...    
खेतों में हल लेकर निकलो, रस्ते पर पत्थर तोड़ो     
फ़र्क़ समझ आजायेगा ख़ुद पानी और पसीने में    
...बेहतरीन शेर्    
और ये वाला तो गज़ब का शेर् हुआ है कि...    
पड़े हो इश्क़ में तो इश्क़ की तहज़ीब भी सीखो     
किसी आशिक़ के चेहरे पर हँसी अच्छी नहीं लगती    
... यह शेर् चुराने का दिल कर गया    
लिपट कर पहाड़ों से कोहरा है सोया     
ये कह दो हवा से न उसको जगाये    
... यह शेर् मुझे अपने घर की याद दिला गया।    
आपके गीत पहली बार पढ़े। क्या लाजवाब शैली है आपकी। इनमे भी शायरी का जादू बिखेरते हैं आप मसलन...    
आ समन्दर, तुझको कुछ मीठा करूं     
कह रही छू छू के इक मीठी नदी    
या फिर    
ये मौसम हैं मौसम, कहाँ ये रुकेंगे     
गुज़रते रहे हैं, गुज़रते रहेंगे    
... लाजवाब    
कविताओं में भी लिफ़ाफ़ा, तुम, स्वप्न... सभी में लबालब इश्क़ घुला हुआ मिला। अंतिम बाला, एक बहुत ही हृदय स्पर्शी रचना है। मार्मिक। लेकिन 'अंतिम' का अर्थ समझ नहीं पाया। अपने अल्पज्ञान पर दुखी हूँ।    
घास के फूल भी हृदय स्पर्शी रचना है। एक दम अलग। हाँ, मैंने भी ये फूल देखे हैं, और मुझे भी ये पसन्द हैं। हाँ इस प्रकार कभी इन्हें express नहीं कर पाउँगा शायद।    
रही बात कहानियों की, तो sir, इन्ही के लिए तो हम आपके fan हैं।    
आपकी कहानियों की ख़ास बात यह है कि इनमे पाठक को कठिनाई नहीं होती। एक पर्दा दिखता है जिन पर ये शॉर्ट फिल्म्स की तरह चलती हैं।    
"उसी मोड़ पर" में एक अधूरा ख़्वाब पूरा होता है, जो बस कुछ पल में फिर से अधूरा हो जाता है। यही होता है अस्ल ज़िंदगी में।    
"मुट्टी भर उजास"... प्रश्न उठा रही है कि क्यों होता है ऐसा ज़िन्दगी में।    
"क्या होता है प्रेम"... एक कुशोर के निश्छल प्रेम की कल्पना है। बहुत हृदयस्पर्शी कहानी है यह कहानी।    
'सुनो माँडव' और 'खिड़की' पहले भी पढ़ चुका हूँ, लेकिन फिर से ताज़ा लगीं।    
अतीत के पन्ने तो कुछ यूँ लगे जैसे किसी फ़िल्म का एक दृश्य हो, या किसी खोई हुई डायरी का पन्ना। दरअस्ल सब के साथ होता यही है कि जब साथ होते हैं तो बहुत कुछ छूट सा जाता है। और जब उस छूटे हुए का एक छोर हाथ लगता है तो माज़ी हमें उसी उम्र में ले जाता है। बेशक कुछ ही पल के लिए...    
आखिरी कहानी, "अभी तुम इश्क़ में हो", कुछ बाउंसर टाइप रही। कोई ऐसा क्यों करेगा, और कब तक यह चलेगा... कुछ अधूरापन है इस कहानी में। शायद पाठकों को अपनी सोच के घोड़े दौड़ाने पर विवश करने का प्रयास है।    
शायरी, कहानी या अन्य... यह किताब मेरी अलमारी के किस सेक्शन में रखूँ, कृपया सलाह दीजियेगा।    
हार्दिक शुभकामनाओं सहित...सादर नकुल
