सोमवार, 4 नवंबर 2024

आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन रचनाकारों तिलक राज कपूर, मन्सूर अली हाशमी, और पारुल सिंह के साथ।

दीपावली का पर्व बीत भी गया और उसके साथ ही पाँच दिनों का रौशनी का पर्व समाप्त हो गया। मगर देर से गाड़ी पकड़ने वालों को देर से ही गाड़ी पकड़ कर बासी त्योहार मनाने में आनंद आता है। तो आज भी कुछ रचनकार अपनी रचनाएँ लेकर आ रहे हैं, इन्होंने देर से गाड़ी पकड़ी है, मगर रचनाएँ दुरुस्त हैं। मतलब यह कि कहावत को पूरा किया है कि देर आयद दुरुस्त आयद। वैसे भी हमारे यहाँ तो परंपरा रही है बासी त्योहार मनाने की। तो आइए आज बासी दीपावली के पटाखे चलाते हैं।

इन चराग़ों को जलना है अब रात भर  
आइए आज तरही मुशायरे को आगे बढ़ाते हैं तीन रचनाकारों तिलक राज कपूर, मन्सूर अली हाशमी, और पारुल सिंह के साथ।

तिलक राज कपूर

आदतों को बदलना है अब रात भर
उलझनों से निकलना है अब रात भर।
अवसरों से भरी दोपहर में उठी
चाहतों को कुचलना है अब रात भर।

सूर्य की रौशनी में जमी बर्फ़ ने
धीरे-धीरे पिघलना है अब रात भर।
ख़्वाब की जिंदगी हम बहुत जी लिए
इक हक़ीक़त में ढलना है अब रात भर।

दिल को समझा रहा हूँ कि ए दिल तुझे
पिय मिलन को मचलना है अब रात भर।
शाम तक तो न जाने कहाँ गुम रहे
तेरी राहों पे चलना है अब रात भर।

युग प्रवर्तन की आशा इन्हें सौंप दी
'इन चराग़ों को जलना है अब रात भर।

मतले में ही बहुत अच्छे से आदतों को बदल कर उलझनें समाप्त करने की बात कही गयी है। और उसके बाद दिन के उजाले में जागी हसरतों को रात के अँधेरे में कुचलने का प्रयोग बहुत अच्छा है। एक विरोधाभास के रूप में सूर्य की रौशनी में बर्फ़ का जमना और रात को पिघलना बहुत सुंदर है। और ख़्वाब की दुनिया से वापस हक़ीक़त में आना बहुत​ अच्छे से शेर में आया है। पिय मिलन को मचलने को उतारू दिल को रात की सच्चाई बताने का शेर भी सुंदर बना है। जो शाम तक कहीं दिखाई दिए उनकी राहों पर चलने का प्रयोग अच्छा है। और अंतिम शेर में गिरह के साथ मिसरा ऊला बहुत सुंदर बना है। विशेष कर युग-प्रवर्तन यह शब्द युग्म बहुत सुंदरता के साथ मिसरे में बाँधा गया है। बहुत सुंदर ग़ज़ल वाह वाह वाह।
 
 
मन्सूर अली हाश्मी

शौर कर के पटाख़े तो बुझ भी गये
'इन चराग़ों को जलना है अब रात भर'
कुछ मुरादें न बर आईं दिन ढल गया
कुछ इरादों को टलना है अब रात भर

जूँए* होतीं अमल-पैरा क्यूँ रात में *Lice
करवटें ही बदलना है अब रात भर
शब्द के अर्थ दिन में, न ढूँढे मिले
काफ़िये में तो ढलना है अब रात भर

गर्मी-ए-शम्स, शबनम उड़ा ना सकी
चाँदनी में पिघलना है अब रात भर
बन सके ना दरोग़ा न सैनिक तो फिर
लठ ही लेकर टहलना है अब रात भर

'हाश्मी' दिन में सोये! चलो ठीक है
ग़फ़्लतों से निकलना है अब रात भर

हाश्मी जी की ग़ज़लों में व्यंग्य का पुट हमेशा होता है, इस बार भी है। उनकी व्यंग्य की ही भाषा में कहा जाये तो उन्होंने इस बार सिरकटी (बे-मतला) ग़ज़ल कही है। पहले ही शेर में पटाखों और दीपक की तुलना के साथ सुंदर गिरह बाँधी है। और अगले ही शेर में मुरादों में दिन का बीतना और इरादों को रात आने पर टालना, बहुत अच्छे से व्यक्त हुआ है। रात भर अगर सिर में जूँए काटती रहेंगी तो करवटें बदलने के अलाव और चारा ही क्या है। सूरज की तपिश को शबनम उड़ाने में असमर्थ हो जाये तो चाँद की चाँदनी में पिघलना ही होता है। और यदि आप दरोग़ा या सैनिक नहीं बन सके तो लठ हाथ में लेकर यूँ ही टहलना है। और मकते में दिन में सोने वालों को रात की ग़फ़लतों से होशियार करने की बात अच्छी है। बहुत सुंदर ग़ज़ल, वाह वाह वाह।

पारुल सिंह

रौशनी ले के चलना है अब रात भर
इन चरागों को जलना है अब रात भर
मेहँदी लगने लगी है किसी नाम की
ख़्वाब आँखों में पलना है अब रात भर

चेहरा उनका है और हैं दो आँखें मेरी
सुब्ह को तो टलना है अब रात भर
चाँद आया तो छक कर के पी चाँदनी
बाँहों में ही पिघलना है अब रात भर

बेख़ुदी पूछ बैठी पता आपका
हमको काँटों पे चलना है अब रात भर
जिस पे दुनिया मरे मुझपे मरता है वो
मुझको मुझ से ही जलना है अब रात भर

ज़िन्दगी रात काली, बुझी दोस्ती
हिम्मतों को ही बलना है अब रात भर
चारा-गर कह गया रात भारी है ये
दिल को गिरना सँभालना है अब रात भर

चराग़ रात भर जलते नहीं हैं, वे तो रौशनी का एक कारवाँ लेकर चलते हैं, यह बात मतले में बहुत अच्छे से सामने आयी है। और जब हाथों में किसी के नाम की मेहँदी लग जाये तो आँखों में ख़्वाब ही पलते हैं। अगले ही शेर में किसी का चेहरा और उसे देखते हुए सुब्ह के टलने की बात बहुत सुंदर है। बेखुदी ने किसी का पता पूछ लिया तो रात भर काँटों पर चलना, बहुत सुंदर। अगले शेर में सारी दुनिया के चहेते की चाहत पाकर ख़ुद से ही जलने की बात बहुत ही सुंदरता के साथ कही गयी है। ज़िंदगी और दोस्ती ये दोनों जब साथ छोड़ दें तो हिम्मतों के सहारे रात काटी जाती है, बहुत ही सुंदर। और अंतिम शेर में चिकित्सक के कहने पर कि आज की रात भारी है, दिल को रात भर गिरना और सँभलना ही तो है। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल, वाह, वाह वाह।

तो ये आज के तीनों शायरों की दीपावली है। बहुत सुंदर ग़ज़लें तीनों ने कही हैं। आप दिल खोल कर इनको दाद दीजिए और इंतज़ार कीजिए अगले अंक का।

परिवार