tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post4115080587364982965..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: क्या करें हालात बस में नहीं हों तो । खैर देर आयद दुरुस्त आयद, आज मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी की सचिव, बहुत अच्छी शायरा और मेरी बड़ी बहन नुसरत मेहदी जी की शानदार ग़ज़ल के साथ आरंभ करते हैं वर्षा मंगल तरही मुशायरा ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger29125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-48150600516789484282010-07-19T08:47:23.660+05:302010-07-19T08:47:23.660+05:30नुसरत दीदी की गज़ल उनकी आवाज की तरह ही बेमिशाल है। ...नुसरत दीदी की गज़ल उनकी आवाज की तरह ही बेमिशाल है। तरही का इससे सुंदर आगाज़ और क्या होता? और यूट्यूब पर आपको सुना और सुनकर जाना कि नीरज जी ने अपने आखिरी कमेंट में बिल्कुल ठीक लिखा है--किश्तों में खुदकुशी....<br />और हां बारिश की फोटो बहुत सुंदर-सुंदर है, इतना कि चुराने का मन हो रहा है। देर से आने के लिये क्षमाप्रार्थी हूं।रविकांत पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/14687072907399296450noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-24400005383084343442010-07-18T11:00:25.656+05:302010-07-18T11:00:25.656+05:30किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा...आपके ब्लॉग ने दिलवा...किश्तों में ख़ुदकुशी का मज़ा...आपके ब्लॉग ने दिलवाया है...एक बार ही पूरा मुशायरा न देकर टुकड़ों में हमें हलाल किया जा रहा है और छुरी भी बहुत आहिस्ता आहिस्ता चलाई जा रही है...मार डालो गुरुदेव तडपाओ मत...अगली किश्त आने में इतने दिनों का इंतज़ार...उफ्फ्फ्फ़...:))<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-55304825677009853772010-07-17T10:18:02.192+05:302010-07-17T10:18:02.192+05:30Subeer ji
aapke blog se judi hamari aashayein hari...Subeer ji<br />aapke blog se judi hamari aashayein hari bhari ho jaati hai.urdu hindi ki mili juli ganga jaman nirantar bahti hai par tishnagi vahin ki vahin!<br />मिलके बहतीं है यहाँ गंगो- जमन<br />हामिए-अम्नो-अमाँ मेरा वतन<br />Nusarat ji ko padna aur sunna ..kya kahiye!!!bas sunte h jaiye! daad hi daad dete jaiye..Devi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-62872511606313915572010-07-16T21:51:41.382+05:302010-07-16T21:51:41.382+05:30नुसरत जी की ग़ज़ल वाह-वाह
है कैसा दौर के फ़न और कल...नुसरत जी की ग़ज़ल वाह-वाह<br />है कैसा दौर के फ़न और कलम भी बिकने लगे...<br />बधाई..बहुत बढ़ियाDr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-6039099001126472752010-07-16T19:46:13.686+05:302010-07-16T19:46:13.686+05:30इस तरही मुशायरा में उस्ताद फनकारों से परिचय हो रहा...इस तरही मुशायरा में उस्ताद फनकारों से परिचय हो रहा है. नुसरत दीदी जी के कलाम को पढ़ बहुत आनंद आया.<br /><br />मैं यात्राओं के चपेट में होने के कारण नेट पर उपलब्ध नहीं हो पा रहा हूँ... जब भी थोडा समय मिलेगा मैं दस्तक जरुर दूंगा...<br /><br />- सुलभSulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-70517563060560802222010-07-16T08:47:18.929+05:302010-07-16T08:47:18.929+05:30है कैसा दौर कि फ़न और क़लम भी बिकने लगे
हर एक सिम...है कैसा दौर कि फ़न और क़लम भी बिकने लगे <br />हर एक सिम्त मफ़ादात की हवाएं हैं<br /><br />ख़ूबसूरत शायरी से तरही का आग़ाज़ हुआ है ,<br />एख़्तेताम तक पहुंचते पहुंचते तो पूरा ख़ज़ाना इकट्ठा होने की उम्मीद नज़र आ रही है<br /><br />शुक्रियाइस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-73073027553155995682010-07-16T07:13:23.715+05:302010-07-16T07:13:23.715+05:30पहली बार मुशायरे में आये हैं आज तक केवल मुशायरा शब...पहली बार मुशायरे में आये हैं आज तक केवल मुशायरा शब्द ही सुना है, और ये पता है कि शायरी कही जाती है, बहुत ही अच्छी गजल पढ़ने को मिली नुसरत जी की। इस मुशायरे में हम भी रोज शामिल होंगे पाठक की हैसियर से..<br /><br />गजल कुछ भारी लगी हमें परंतु फ़िर भी बहुत अच्छी लगी।विवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-39111559160386461492010-07-16T01:25:29.044+05:302010-07-16T01:25:29.044+05:30पोस्ट पढ़ने के बाद काफी कुछ वो बात जो मैं कहना चाह...पोस्ट पढ़ने के बाद काफी कुछ वो बात जो मैं कहना चाहता था वो तो कंचन दीदी नें पहले ही अपने कमेन्ट में कह दी है, <br /><br />कल से इलाहाबाद भी बारिश की चपेट में आ गया :)<br /><br />नाम पढ़ कर मजा आ गया कि मुझ सहित २३ गजल आ चुकी है<br /><br />आज सुबह अर्श भाई से बात हुई, उन्होंने अभी तक गजल नहीं भेजी है, गुरु जी उनको भी नोटिस भेजिए :) <br /><br />सुखनवर का नया अंक डाउनलोड करता हूँ<br /><br />७० काफिए बाप रे, कहीं ऐसा ना हो भभ्भड़ जी ७० काफिए को प्रयोग करके ७० शेर भी लिख चुके हों, क्योकि सूचना नंबर तीन से आसार तो कुछ कुछ यही लग रहे हैं :)वीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-66829564839245974342010-07-16T01:15:03.993+05:302010-07-16T01:15:03.993+05:30गुरु जी प्रणाम,
हुर्रे तरही मुशायरा शुरू हो गया,औ...गुरु जी प्रणाम,<br /><br />हुर्रे तरही मुशायरा शुरू हो गया,और क्या शानदार आगाज़ हुआ है <br /><br />तेरी निगाहे करम की है मुन्तजिर कबसे<br />झुकाए सर तेरे दर पर मेरी वफाएं हैं<br /><br />इस शेर के लिए मैं क्या कह दूं कि मेरा हालेदिल बयान हो जाए, दिल बागबाग हो गया <br /><br />है कैसा दौर के .... बहुत गहरा कटाक्ष, बहुत पैना व्यंग <br /><br />गुरु जी, आदरणीया नुसरत जी को पहली बार मैंने आपके घर पर देखा था और पहली बार सीहोर के मंच पर सूना था<br /><br />सच कहूँ तो उस मंच से सुनाई गई मुझे पूरी की पूरी याद जो एकमात्र गजल है वो नुसरत जी की दिलकश आवाज में गई गई "कतरा के जिंदगी से गुजर जाऊं क्या करूँ" है<br /> <br />इस गजल को तब से आज तक मैंने इतनी बार दुहराया है, गुनगुनाया है और आपकी भेजी वीडियो इतनी बार देखी है कि अभी भी आँखों के सामने मंच का वो मंज़र घूम रहा है <br /><br />और सिद्धार्थ नगर में फिर से नुसरत जी को सुन पाना, और मेरी प्रिय गजल में एक और नया शेर सुन पाना<br />सब कुछ जैसे आँखों के सामने है <br /> <br />क्रमशः ....वीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-44849967059464340002010-07-16T01:08:55.367+05:302010-07-16T01:08:55.367+05:30नुसरत मेहदी जी उर्दू अदब की जानी-मानी हस्ती हैं. त...नुसरत मेहदी जी उर्दू अदब की जानी-मानी हस्ती हैं. तरही पर उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा.<br />सुबीर जी, तरही की सफलता के लिए मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें. तस्वीरें बहुत अच्छी लग रही हैं.<br />'तिरे' , 'तेरे' आदि बातों पर टिप्पणियां पढ़ीं हैं. इस विषय में संक्षिप्त में दो बातें कहना चाहूँगा:<br />कुछ अरसा हुआ डॉ. अहमद अली 'बर्क़ी' आज़मी पी.एच. डी. (फ़ारसी,) जो ऑल इंडिया रेडियो में फ़ारसी विभाग के हैड हैं, मेरे ब्लॉग पर उनकी एक ग़ज़ल लगी थी. उन्होंने 'तिरा' शब्द की जगह 'तेरा' शब्द का प्रयोग किया. हमारे एक पाठक जो ख़ुद अच्छी ग़ज़ल कहते हैं, इस पर ऐतराज़ किया. डॉ. 'बर्क़ी' साहब ने ईमेल द्वारा कहा कि 'तिरा' शब्द न तो हिन्दी में है और न ही उर्दू में है.<br />ग़ज़ल जब बह्र में कही जाती है तो स्वत: ही शब्द ठीक वजन में आजाता है. इस बात का इससे अंदाजा हो जाता है कि लिखा हुआ शब्द बोलने में किस तरह बदल जाता है. उदहारण के तौर पर इन शब्दों को देखिये: जानता, पहचानता, सरलता आदि. लेकिन हम जब ऐसे शब्दों को बोलते हैं तो सुविधानुसार इनका रूप बदल जाता है. बोलने में हम इन्हें जान्ता, पहचान्ता, सरल्ता ही कहते हैं.<br />कहने का तात्पर्य यह है कि यदि 'तेरे' 'मेरे' आदि शब्द लिखें तो कहने में वज़न में अपने आप मुख़्तसर हो जायेंगे.<br />वज़न की वजह से आप जिस तरह 'तिरा' लिखते हैं तो कभी कभी वज़न के कारण 'तेरा' को 'तेर' भी कहना पड़ता है. उस हालात में क्या हम 'तेरा' की जगह 'तेर' लिखेंगे?<br />खैर, मेरे ख़याल में शब्दों को तोड़-मोड़ कर उनका रूप बिगाड़ने की आवश्यकता नहीं है. मैं भी पहले इसी तरह तिरा मिरा का प्रयोग करता था लेकिन जिन हिन्दी ग़जलकारों ने शब्दों को उनके मूल रूप में प्रयोग किये हैं, उनकी ग़ज़लें कहने में वज़न में कोई आपत्ति नहीं आई.<br />महावीर शर्मामहावीरhttps://www.blogger.com/profile/00859697755955147456noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-35956056541541936492010-07-15T23:19:27.192+05:302010-07-15T23:19:27.192+05:30बेहतरीन ग़ज़ल..... बेहतरीन..... कमाल की शख्सियत है...बेहतरीन ग़ज़ल..... बेहतरीन..... कमाल की शख्सियत है नुसरत मेहंदी साहिबा..........Shah Nawazhttps://www.blogger.com/profile/01132035956789850464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49075106492380403032010-07-15T22:25:33.059+05:302010-07-15T22:25:33.059+05:30नुसरत दीदी के हम तो दीवाने हो गये हैं और ये बात जब...नुसरत दीदी के हम तो दीवाने हो गये हैं और ये बात जब मैं कह रही हूँ तो इसमें चौथाई प्रतिशत भी झूठ नही है।<br /><br />उनकी शैली, उनकी वाणी की मिठास उनका व्यक्तित्व हर एक चीज़ मुझे भूल नही रही। उनकी गज़लों की गहराई। छोटी बहर में गहरी बात। उनका दर्शन.. सब छाया हुआ है मेरे मन पर। मेरे तो पूरे घर पर उनकी गज़ल तुमने कुछ कह कहा दिया है क्या छाई हुई है।<br /><br />और आज की गज़ल का ये शेर<br /><br />ऐ खुद परस्त मुसाफिर तेरे तआकुब से,<br />रवाँ दवां मेरे अहसास की सदाएं हैं।<br /><br />क्या शेर है...! <br /><br />जहाँ तक मैं जानती हूँ उस्ताद कभी तरही के मिसरे पर गिरह नही लगाते और उर्दू अकादमी की अध्यक्षा किस स्तर की उस्ताद होंगौ हमें समझने समझाने की ज़रूरत नही शायद। <br /><br />दुःख हो रहा है कि मैं पहले क्यों नही आई इस पोस्ट पर और इतनी छोटी सी बात पर मेरे गुरू जी को अपना मौन तोड़ना पड़ा।<br /><br />जब गलती करके सज़ा भुगतने का दौर चल ही पड़ा है तो मैं भी एक तल्ख बात कह कर सज़ा भुगतने को तैयार हूँ कि अपनी शंकाएं रखना और किसी शेर पर सीधे अँगुली उठा देने के दो अलग तरीके होते हैँ। कोई बात समझ में ना आये ये ठीक है मगर जब हम जान रहे हैं कि लिखने वाले व्यक्ति का दर्ज़ा क्या है तो उसमें ये कह देना कि मेरे हिसाब से ये नही ये होना चाहिये थोड़ा धृष्ट रवैया है।<br /><br />दोनो हथेली आगे है, सिर झुका है। सजा मंजूर।कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-78902680779035634412010-07-15T22:15:56.283+05:302010-07-15T22:15:56.283+05:30Tera aur Mera ko Tira aur Mira
likhna upyukt nahi...Tera aur Mera ko Tira aur Mira <br />likhna upyukt nahin hai.Kabhee-<br />kabhee tere, mera ke " Ra" ko<br />giraanaa padta hai.Us soorat mein<br />kya ter, mer ya teri ,meri likhna<br />achchha lagega? kabhee- kabhee<br />tera ,mera ke "Te , Me aur " Ra"<br />donon ko giraanaa padtaa hai yani<br />tera ,mera ko 2 yaa 11 ke wazan mein istemaal kiyaa jaataa hai us <br />soorat mein kya tera,mera ko <br />" tar " aur mar ke roop mein likhna<br />sahee hoga?pran sharmahttps://www.blogger.com/profile/14658673113780007596noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-17958127214865182482010-07-15T18:53:29.132+05:302010-07-15T18:53:29.132+05:30जनाब पंकज सुबीर जी, और मोह्तरमा नुसरत मेह्दी साहिब...जनाब पंकज सुबीर जी, और मोह्तरमा नुसरत मेह्दी साहिबा, आदाब और मुबारकबादी.<br />गज़ल बहुत खूबसूरत है और उसकी पेशकश भी.<br />देर से हुई शुरुआत मगर बहुत अच्छी हुई<br />मुझे ये शेर बहुत पसन्द आये<br />"है कैसा दौर कॅ फ़न और क़लम भी बिकने लगे <br />हर एक सिम्त मफ़ादात की हवाएं हैं "<br />"ये अश्क और ये आहें तुम्हारी याद का गम<br />ये धडकने किसी साईल की बद्दुआयें हैं"<br /><br />सुबीर जी, शानदार आगाज़ के लिये शुक्रिया.Dr.Ajmal Khanhttps://www.blogger.com/profile/13002425821452146623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-80158388368563156462010-07-15T17:59:51.344+05:302010-07-15T17:59:51.344+05:30जब आगाज़ इतना सुंदर है अंजाम खुदा जाने…………………आभार्।...जब आगाज़ इतना सुंदर है अंजाम खुदा जाने…………………आभार्।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-15660439276071839852010-07-15T16:09:19.714+05:302010-07-15T16:09:19.714+05:30भाईजी पंकज सुबीर जी
नमस्कार !
निगाहे करम / तिरे मि...भाईजी पंकज सुबीर जी<br />नमस्कार !<br />निगाहे करम / तिरे मिरे का अंतर्निहित उद्देश्य सफल हो गया , मेरे साथ आपका मौनव्रत टूटा तो सही । अब मैं भेजी गई तरही ग़ज़ल के साथ आज की अपनी मेल के जवाब को ले'कर आश्वस्त हो सकता हूं ।<br />आपने और अन्य गुणीजन ने जो श्रम किया , आभारी हूं ।<br />- राजेन्द्र स्वर्णकार <br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">शस्वरं</a></b>Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-40781441423616873982010-07-15T16:01:33.060+05:302010-07-15T16:01:33.060+05:30सच पूछिए तो यहाँ लखनऊ में हम अभी भी बारिश को तरस ...सच पूछिए तो यहाँ लखनऊ में हम अभी भी बारिश को तरस रहें हैं..मगर ब्लॉग की रिमझिम फुहारें मनमोहक हैं जिससे कुछ राहत महसूस हो रही है... नुसरत दीदी जी की ग़ज़ल तो बेहद खूबसूरत है..वैसे तो सभी शे'र एक से बढ़कर एक हैं लेकिन मुझे<br />"है कैसा दौर के फ़न और कलम भी बिकने लगे<br />हर एक सिम्त मफ़ादात की की हवाएं हैं" बहुत पसंद आया ...गीत और दीदी जी की आवाज में ग़ज़ल भी पसंद आए...शुक्रियाअर्चना तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04130609634674211033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-43996142285059559352010-07-15T15:08:33.536+05:302010-07-15T15:08:33.536+05:30देश में कई जगह अभी भी पारा उँचा है .... पर ब्लॉग-ज...देश में कई जगह अभी भी पारा उँचा है .... पर ब्लॉग-जगत में तो मौसम बदल गया आज से .....<br />शुरुआत इतनी धमाकेदार हुई है की अब लग रहा है अपनी ग़ज़ल क्यों भेजी .... नुसरत जी का हर शेर उर्दू ज़बान का खालिस रंग लिए है ... अदब लिए है .... वाह वाह तो हर शेर पढ़ने के बाद अपने आप ही निकल जाता है मुँह से .... <br />जब इतना लाजवाब है आगाज़ .... तो अंजाम की इंतहा क्या होगीदिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-86585300390575056162010-07-15T14:53:40.679+05:302010-07-15T14:53:40.679+05:30ग़ज़ल की तक्तीअ का काम लगता बहुत सरल है, मगर है न...ग़ज़ल की तक्तीअ का काम लगता बहुत सरल है, मगर है नहीं। मुझे नहीं मालूम 'ग़ज़ल का सफ़र' और इसी ब्लॉग पर किसने किस पाठ को कितनी गंभीरता से पढ़ा है लेकिन मैनें इसे जितना समझा उससे मुझे तो लगता है कि 1 2 के दायरे में रहकर की गयी तक्तीअ का तरीका सही नहीं है। क्यूँ नहीं है, जानने के लिये एक बार फिर सबब, वतद और फासिला पर लौटना होगा, सारा खेल वहीं है। एक और बात जो जरूरी है जानना, संगीत शास्त्र की है कि संगीत आरोह, अवरोह, ठहराव, सुर, लय और ताल का खेल है। <br />इतना अवश्य कहूँगा कि प्रस्तुत ग़ज़ल बह्र और कहन की दृष्टि से दोषरहित है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-16330020839436729652010-07-15T14:31:57.889+05:302010-07-15T14:31:57.889+05:30गुरूजी प्रणाम,
तरही की शुरुआत हो गई. बहुत अच्छा लग...गुरूजी प्रणाम,<br />तरही की शुरुआत हो गई. बहुत अच्छा लगा. मैं कल शाम आपको मेल कर के पूछने वाला था. नुसरत जी की गज़ल बहुत अच्छी है. आपने मुश्किल शब्दों के अर्थ देकर समझाने में आसान कर दिया.Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-85907396383730730302010-07-15T13:33:05.169+05:302010-07-15T13:33:05.169+05:30तिरे तथा तेरे दोनों ही सही होते हैं । लेकिन आसानी ...तिरे तथा तेरे दोनों ही सही होते हैं । लेकिन आसानी के लिये तिरे लिख देते हैं ताकि नये लिखने पढ़ने वाले को बहर को लेकर उलझन न हो । और जहां तक निगाहे करम की बात है तो उसका अर्थ होता है करम की निगाह तथा निगाह चूंकि स्त्रीलिंग शब्द है इसलिये उसके साथ तेरे नहीं आ सकता तेरी ही आयेगा । आप शायद निगाहे करम का अर्थ निगाहों का करम लगा रहे हैं । एक सुप्रसिद्ध शेर है शायद आपने सुना हो <br />ग़ुनाह से हमें रग़बत न थी मगर या रब <br />तेरी निगाहे करम को तो मुंह दिखाना था <br /><br />फिराक गोरखपुरी साहब का एक शेर है<br />वो जिंदगी के कड़े कोस याद आते हैं <br />तेरी निगाहे-करम का घना-घना साया।<br /><br />और इस बात के लिये मेरी थोड़ी तो प्रशंसा कर ही सकते हैं कि मैं निगाहे करम के उदाहरण के लिये दोनों शेर एक ही बहर पर लाया कौन सी यही अपनी वाली ।<br />आशा है आपका प्रश्न हल हो गया होगा ।पंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-28535167206629764812010-07-15T13:28:02.949+05:302010-07-15T13:28:02.949+05:30प्रणाम गुरु जी,
चलिए मुंबई वालों का शोर कुछ काम आय...प्रणाम गुरु जी,<br />चलिए मुंबई वालों का शोर कुछ काम आया और आपने तरही मुशायेरे को आग़ाज़ दे दिया.<br /><br />जिस ग़ज़ल का बेसब्री से इंतज़ार था उसी से शुरुआत हो रही है, लग रहा है मुहमांगी मुराद पूरी हो गयी.<br />नुसरत मेहंदी साहिबा जी की ग़ज़ल और उसका हर शेर वक़्त और अनुभव की कसौटी पे तराशा हुआ है,<br />मतला पूरी ग़ज़ल की बुनियाद से रूबरू करवा रहा है, ख्वाहिशों की सुलगती हुई चिताएं, काफिये का बहुत सुन्दर प्रयोग और कहन का जादू ही है ये और कुछ नहीं.<br />"ये अश्क और ये आहें............." और "तिरी निगाहें करम की................" क़यामत ढा रहे हैं, और मक्ता तो ग़ज़ब है, "तपिश के साथ ........" वाह वाह वाह. नुसरत मेहंदी साहिबा जी को बहुत बहुत बधाई और शुक्रिया, इस बेहतरीन ग़ज़ल से मिलवाने के लिए.<br />इस तरही से बहुत कुछ सीखने को मिलने वाला है और साथ में पढने के लिए अच्छी ग़ज़लें भी.<br /><br />भौचक्के जी हर बार ही नया करते हैं और दूसरों का जीना भी दूभर कर देते हैं अब बताइए जहाँ ४-५ काफिये भी यहाँ निकालने मुश्किल हो रहे हैं वहां ७० काफिये लग रहा है..........अब क्या बताऊँ, आप भी समझ सकते हैं.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-83307503053451149192010-07-15T13:21:07.867+05:302010-07-15T13:21:07.867+05:30तेरी मेरी...नहीं नहीं... तिरी मिरी बात...अक्सर देख...तेरी मेरी...नहीं नहीं... तिरी मिरी बात...अक्सर देखा गया है के हिंदी ग़ज़लों में तिरे या मिरे शब्द का प्रयोग तेरे या मेरे के लिए किया जाता है...जो अखरता है....तिरे या मिरे हिंदी भाषा के शब्द नहीं हैं जबकि उर्दू में तेरे मेरे और तिरे मिरे दोनों प्रयोग किये जाते हैं...ये स्पष्ट नहीं है के कहाँ तेरे कहना है और कहाँ तिरे? मुझे लगता है के मूल रूप से उर्दू में कही ग़ज़ल के हिंदी संस्करण में शायद तिरे मिरे का प्रयोग किया जाता हो...शुद्ध हिंदी या देवनागरी में लिखी गयी ग़ज़ल के लिए तेरे या मेरे लिखना ही शायद उचित है...मैं स्वयं एक पिछली बैंच पर बैठने वाले विद्यार्थियों में से हूँ इस लिए मेरे (मिरे ...नहीं) लिए अधिकारपूर्वक इस विषय पर कुछ कहना दृष्टता होगी...गुणी जन शायद इस पर कुछ प्रकाश डालें...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-31000523433727229072010-07-15T12:45:47.009+05:302010-07-15T12:45:47.009+05:30आदरणीया बड़ी बहन नुसरत मेहदी जी
की ग़ज़ल पढ़ कर तबीअत...आदरणीया बड़ी बहन नुसरत मेहदी जी <br />की ग़ज़ल पढ़ कर तबीअत ख़ुश हो गई ।<br />क्या ख़ूब शे'र है …<br /><b>ऐ ख़ुदपरस्त मुसाफ़िर तेरे तआकुब से<br />रवां दवां मेरे एहसास की सदाएं हैं </b><br />और यह भी …<br /><b>है कैसा दौर कॅ फ़न और क़लम भी बिकने लगे <br />हर एक सिम्त मफ़ादात की हवाएं हैं </b><br />वाह वाह !<br />नीरजजी की तरह मैं भी ढूंढ रहा था कि गिरह कैसे बांधी है बहनजी ने ।<br />… मैं एक दो बात और भी जानना चाह रहा था …<br />आपने इस शे'र में तो लिखा <br />ऐ ख़ुदपरस्त मुसाफ़िर <b>तेरे</b> तआकुब से<br />रवां दवां <b>मेरे</b> एहसास की सदाएं हैं <br />जबकि यहां तिरी , तिरे , मिरी <br /><b>तिरी</b> निगाहे - करम की है मुंतज़िर कबसे <br />झुकाये' सर <b>तिरे</b> दर पर <b>मिरी</b> वफ़ाएं हैं <br />वज़्न के लिहाज़ से तो तक़्तीअ करते वक़्त तेरे मेरे के स्थान पर भी तिरे मिरे ही आ रहा है ।<br />फिर भेद क्यों ?<br />… और मेरे विचार से तिरे / तेरे निगाहे - करम होना चाहिए था … निगाह से नहीं , निगाह के करम से तअल्लुक है । <br />आपका क्या कहना है ?<br />बड़े भाई साहब नीरज जी की तरह मैं भी अपनी गुस्ताख़ी की सज़ा पाने को तैयार हूं ।<br />बस , सीखा ये है कि गुणीजन सामने हों तो झिझक छोड़ कर कुछ सीखने का अवसर नहीं गंवाना चाहिए ।<br />उम्मीद है , नादानी के लिए मुआफ़ कर दिया जाऊंगा ।<br /><br />- राजेन्द्र स्वर्णकार <br /><b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">शस्वरं</a></b>Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-12983972891419508612010-07-15T11:57:02.297+05:302010-07-15T11:57:02.297+05:30ग़ालिब साहब और नुसरत जी को एक साथ समर्पित:
अगर हों...ग़ालिब साहब और नुसरत जी को एक साथ समर्पित:<br />अगर हों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले<br />तो कोशिश कीजिये उनसे, धुऑं निकले तो कम निकले।<br /><br />यूँ तो हर शेर उम्दा है लेकिन 'ये अश्क..' में बद्दुआऍं का प्रयोग बहुत खूबसूरत बन पड़ा है। <br />इस तरही में ग़ज़ल सीखने वालों के लिये एक पाठ खुलकर सामने आने वाला है और वह है उर्दू शब्दों पर हिन्दी व्याकरण का उपयोग कर बहुवचन बनाने का। इस बार शायद ही कोई ग़ज़ल इस खूबसूरत गंगा-जमुनी प्रयोग से बच पाये।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.com