tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post963945807535544626..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: नये साल का तरही मुशायरा आज कुछ आगे बढ़ता है । और आज आधी आबादी अर्थात महिलाओं की बारी है । दो संवेदनशील शायराओं को सुनिये आज मुशायरे में ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-21558833182094303002014-02-04T17:48:36.853+05:302014-02-04T17:48:36.853+05:30सबसे पहले आदाब, दोनों बहनों यानी इस्मत जैदी साहिबा...सबसे पहले आदाब, दोनों बहनों यानी इस्मत जैदी साहिबा और नुसरत मेंहदी साहिबा को / ये बात सच है की आज के शायर गली मुहल्लों में आसानी से मिल जातें है ..पर अच्छी शायरी कहाँ सुनने को मिलती है.अल्लाह का शुक्र है की आप बहनों की शायरी दिल छु गयी है हर वो इंसान जो हिन्दुस्तान का मुस्तकबिल खुशहाल. मिल जुल कर रहने की मिसाल का नजरिया जैसा मेरे हबीब शायर आली जनाब मुनव्वर राना साहेब का एक शेर है :- सगी बहनों का जो रिश्ता है हिंदी और उर्दू में/ कहीं दुनिया की दो जिंदा जबानों में नहीं मिलता .....या यूँ कहलें की -'लिपट जाता हूं माँ से और मौसी मुस्कुराती है<br />मैं उर्दू में गजल कहता हूं हिंदी मुस्कुराती है'। ठीक वैसे ही आपका शेर भी बहुत अच्छा लगा की ' ये दुआ हमारी है ऐ ख़ुदा , कि न फ़सल ए ग़म कोई उग सके/ नये साल में नये गुल खिलें , नयी खुशबुएँ नये रंग हों .....शुक्रिया <br />इकबाल खां (रियाध , सऊदी अरब से)IQBAL KHANhttps://www.blogger.com/profile/09801052186879137607noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-79145088771183171252011-01-29T19:19:47.623+05:302011-01-29T19:19:47.623+05:30हम जिन्हे प्यार और सम्मान देते हैं, उनकी बातें यूँ...हम जिन्हे प्यार और सम्मान देते हैं, उनकी बातें यूँ भी अच्छी लगती हैं और हमें जिनकी बातें अच्छी लगती हैं, उनकी बातें सबको भी उतनी ही अच्छी लगती हों तो खुद की पसंद पर फक्र होता है।<br /><br />यहाँ दोनो दीदियों के लिये यही बात है। <br /><br />इस्मत दी जितना अच्छा लिखती हैं, उतने ही अच्छे दिल की मालिक हैं।<br /><br />और नुसरत दी... मैं उनके वीडियो देख देख मुग्ध होती रहती हूँ ... लाख बार नकल करना चाहती हूँ, उनकी प्रस्तुति के तरीके की ... उनकी मीठी बोली की... मगर... :( :( :(<br /><br />अब तक तो आप लोग समझ ही गये होंगे कि मैं इन छवियों में इतनी मुग्ध हूँ कि गज़ल की बात कर ही नही पा रही या फिर इतनी औक़ात ही नही है।<br /><br />आदाब दोनो आपाओं को....!कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-51620842477204850992011-01-25T14:31:36.062+05:302011-01-25T14:31:36.062+05:30दोनों ग़ज़लें बहुत खूब कही गयी हैं, जिनसे सीखने के...दोनों ग़ज़लें बहुत खूब कही गयी हैं, जिनसे सीखने के लिए, खासकर मेरे लिए तो बहुत कुछ है.<br />आदरणीय इस्मत जी, आदरणीय नुसरत जी आप दोनों का शुक्रिया इतनी खूबसूरत ग़ज़लें पढवाने के लिए. किसी एक शेर के बारे में कहूँगा तो कम ही होगा, पूरी ग़ज़लें ही एक मिसाल है.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-20915791885807334282011-01-15T09:40:34.269+05:302011-01-15T09:40:34.269+05:30बहुत ख़ूब
ख़ुदा सलामती बख़्शे इन शम्मों को जिनसे हुनर...बहुत ख़ूब<br />ख़ुदा सलामती बख़्शे इन शम्मों को जिनसे हुनर की इस क़दर बेपनाह रोशनी हमें मिलती है।निर्मल सिद्धु - हिन्दी राइटर्स गिल्डhttps://www.blogger.com/profile/00687131788304321412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-88368498117604783472011-01-15T09:40:33.781+05:302011-01-15T09:40:33.781+05:30बहुत ख़ूब
ख़ुदा सलामती बख़्शे इन शम्मों को जिनसे हुनर...बहुत ख़ूब<br />ख़ुदा सलामती बख़्शे इन शम्मों को जिनसे हुनर की इस क़दर बेपनाह रोशनी हमें मिलती है।निर्मल सिद्धु - हिन्दी राइटर्स गिल्डhttps://www.blogger.com/profile/00687131788304321412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-61529312002076132762011-01-12T12:02:15.280+05:302011-01-12T12:02:15.280+05:30टिप्पणियों की दौड़ में साहिल का प्रश्न पीछे कहीं...टिप्पणियों की दौड़ में साहिल का प्रश्न पीछे कहीं छूट गया 'क्या हम 'अब' 'कब', 'जब' को भी ११ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं? जैसे की 'अ' 'ब'.........या ये शब्द हमेशा दीर्घ ही रहते हैं?'<br />भाई शब्द जाल में पड़े बिना पहले 'ग़ज़ल का सफ़र' पर हो आयें, वहॉं इस पर आधार जानकारी है।<br />सारा खेल ध्वनियों का है जिसमें क्या देखना होता है यह आपको 'ग़ज़ल का सफ़र' में मिल जायेगा।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-18224951735054773702011-01-12T08:16:24.466+05:302011-01-12T08:16:24.466+05:30गजलें और टिप्पणियां पढ़कर मजा आ गया। इस्मतजी की तो ...गजलें और टिप्पणियां पढ़कर मजा आ गया। इस्मतजी की तो हम बहुत सारी गजलें पढ़ चुके हैं और प्रशंसक हैं उनके। यहां नुसरत जी की गजल भी पढ़कर आनन्दित हुये।<br /><br />गौतम की बात की तरह कहें - धत इसई लिये अच्छा करता हैं कि हम गजल नहीं लिखते। कहां से लायेंगे ये हुनर। :)अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-38967083191096944502011-01-11T22:33:56.424+05:302011-01-11T22:33:56.424+05:30इन दोनों दीदी ने जिस तरह के शे'र निकाले हैं उस...इन दोनों दीदी ने जिस तरह के शे'र निकाले हैं उस पर कुछ भी कहना लाज़मी नहीं होगा मेरे लिए ख़ास कर ! सच कहूँ तो हिमाक़त नहीं कर सकता ! अपनी ग़ज़ल पर बेचारगी नज़र से देख रहा हूँ , ! वाकई नए लिखने वालों के लिए वरदान जैसी हैं दोनों गज़लें !<br /><br />अर्श"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-40486053812989068162011-01-11T22:06:09.681+05:302011-01-11T22:06:09.681+05:30दोनों मोहतरमाओं की ग़ज़लें पढ़ने के बाद लग रहा है कि ...दोनों मोहतरमाओं की ग़ज़लें पढ़ने के बाद लग रहा है कि धत! हम तो बेकार में कोशिश कर रहे हैं ग़ज़ल कहने की....<br /><br />दोनों ही ग़ज़लें अपने तगज्जुल और अदायगी से ग़ज़ल के क्लासिक दौर की याद दिला रही हैं।गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-60660699276772067652011-01-11T18:07:48.968+05:302011-01-11T18:07:48.968+05:30नुसरत जी से मिली तो नहीं हूँ लेकिन उन्हें पढा सुना...नुसरत जी से मिली तो नहीं हूँ लेकिन उन्हें पढा सुना जरूर है मुझे तो उनकी गज़ल पर कमेन्ट देते हुये भी झिझक सी हो रही है। मुझे तो इस्मत जी और नुसरत जी दोनो बहने ही लग रही हैं। पूरी गज़ल दिल को छू गयी<br />तेरी आहटें तेरी दस्तकें तेरी धड़कनें मेरे हमसफ़र<br />रहें उम्र भर तो न बे हवा मेरी हसरतों की पतंग हो<br />वाह क्या शेर है बहुत ही अच्छा लगा।<br />तिरा इल्म लोहो कलम तलक तू मुशाहिदे की न बात कर <br />जो शऊरे फिकरो नज़र मिले तुझे ज़िन्दगी का भी ढंग हो। यहाँ ढंग का इतना सुन्दर प्रयोग ! वाह्! <br />इस्मत जी और नुसरत जी दोनो की गज़लें दिल को छू गयी बधाई दोनो को।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-89684588506111773002011-01-11T18:00:29.581+05:302011-01-11T18:00:29.581+05:30उन्हें ज़ा’म ए क़ुवत ओ ज़र हि है,जो कुचल रहे हैं ग...उन्हें ज़ा’म ए क़ुवत ओ ज़र हि है,जो कुचल रहे हैं ग़रीब को<br />वो नवा ए दर्द सुनेंगे क्यों ?जो मक़ाम ए क़ल्ब पे संग हों<br /> सच कहूँ तो इस्मत जी की मै बहुत बडी फैन हूँ केवल गज़लों के लिये नही बल्कि उनके व्यक्तित्व के लिये भी। उनकी प्यारी मेल भी मै डिलीट नही करती। रहम दिल और प्यारी सी बहन के मन मे समाज और गरीबों के लिये कितनी चिन्ता है। लाजवाब शेर लिखा है<br /><br />तेरा साथ है मेरी ज़िंदगी ,तेरा इल्तेफ़ात भी हो ’शेफ़ा’<br />नहीं याद मुझ को फिर आएंगे ,सहे तंज़ के जो ख़दंग हों<br />हर इक शेर कमाल का है। इस्मत जी को बधाई। कल फिर कम्प्यूटर मे वाईरस आने से पूरादिन कुछ काम नही हो पाया। इस लिये देर से ये पोस्ट पढी। इस सुन्दर मुशायरे के लिये आपको भी बधाई।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-28963403507979377382011-01-11T12:32:59.076+05:302011-01-11T12:32:59.076+05:30क्या खूब पेशकश दी हैं दोनो मँझी हुई शायराओं ने| बह...क्या खूब पेशकश दी हैं दोनो मँझी हुई शायराओं ने| बहुत ही जबरदस्त| इस्मत जी के द्वारा उर्दू लफ़्ज़ों के मायने भी साथ में देना मेरे जैसे कई लोगों के लिए सुविधाजनक रहेगा|<br /><br />इस्मत जी के ये मिसरे दिल के ज़्यादा करीब लगे:-<br />हो हमारे बीच............<br />हुजूम, हुकूक, हुसूल........ ग़रीब जान से तंग................<br />जह्न-ओ-दिल की गुफ़्तेगू............<br />मकाम-ए-कल्ब पे संग............<br />तरही की गिरह तो क्या बाँधी है आपने, इस्मत जी इस के लिए आपका बारम्बार सादर अभिवादन|<br /><br />नुसरत जी को पहले भी ओबिओ पर पढ़ने का मौका मिल चुका है और शायद फेसबुक पर भी| आपकी पेशकश हमेशा प्रभावित करने में कामयाब रहती है| तरही की जोरदार गिरह बाँधते हुए, दिलकश मतले के साथ एक और बेहतरीन ग़ज़ल की शुरुआत, वाह क्या बात है|<br />यहाँ बे गरज जो मिलें सभी............<br />मेरी जिंदगी तेरी दोस्ती...............<br />शहरेतिलिस्म..............<br /><br />बहुत बहुत मुबारकबाद नुसरत जी| आपको बार बार पढ़ने का मौका मिलता रहे यही कामना है|<br /><br />इस मुशायरे में अब तक की चारों ग़ज़ल काफ़ी अच्छी लगीं, इस में कोई शक नहीं| दोस्तो आप लोगों को भी याद होगा पिछले मुशायारे में एक मित्र ने 'टॉवेल' जैसे सब्जेक्ट के साथ बेहतरीन पेशकश दी थी और हम में से अधिकतर ने उसे सराहा भी था| <br /><br />पंकज भाई आज के दौर में जबकि साहित्य से जुड़ने वाले लोग गिने चुने ही रह गये हैं, ऐसे में आप के द्वारा किए जा रहे साहित्यिक प्रयासों के लिए शत शत नमन|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-31237966762229655302011-01-11T11:56:16.453+05:302011-01-11T11:56:16.453+05:30गजब की ग़ज़लें और गजब के शे’र। कई कई बार पढ़ा फिर भी ...गजब की ग़ज़लें और गजब के शे’र। कई कई बार पढ़ा फिर भी मन नहीं भरा। अभी कई बार और पढूँगा। बधाई हो।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-32994160588102218242011-01-11T09:23:30.312+05:302011-01-11T09:23:30.312+05:30वाह! बेहतरीन! इस्तम जैदी जी और नुसरत मेहँदी जी, दो...वाह! बेहतरीन! इस्तम जैदी जी और नुसरत मेहँदी जी, दोनों की ही गजले गज़ब ढाने लायक गज़ब की हैं... हर एक शेअर ज़बरदस्त है!!!! बहुत खूब!Shah Nawazhttps://www.blogger.com/profile/01132035956789850464noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-91884586046879711112011-01-11T08:48:33.545+05:302011-01-11T08:48:33.545+05:30दोनों शायरा मुबरकबाद के मुस्तहक़ हैं ।
इस्मत ज़ैदी ...दोनों शायरा मुबरकबाद के मुस्तहक़ हैं ।<br /><br />इस्मत ज़ैदी जी का -मतला और<br />नुसरत जी का - सभी रंजिशों सभी कुल्फ़तों सभी ज़ह्मतों को तू भूल जा,मेरी ज़िन्दगी तेरी दोस्ती तेरी चाहतों के ही संग हो।<br /> बहुत ही शीरीं शे'र लगे।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-7652519109022284672011-01-11T07:12:21.823+05:302011-01-11T07:12:21.823+05:30navlekhan puraskar ke liye aapko bahut bahut badha...navlekhan puraskar ke liye aapko bahut bahut badhai aur shubhkamnayen nav varsh aapke liye dheron khushiyan layeजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-73057804540234982692011-01-11T01:03:10.583+05:302011-01-11T01:03:10.583+05:30नुसरत जी की भरपूर ग़ज़ल के ये तीन शेर बहुत बहुत बह...नुसरत जी की भरपूर ग़ज़ल के ये तीन शेर बहुत बहुत बहुत पसंद आये तीनों शेर का हर रुक्न स्वतंत्र है जिसे पढने में बड़ा मज़ा आ रहा है <br /><br />नए हौसले नए वलवले नई ज़िन्दगी की तरंग हो<br />नए साल में नए गुल खिलें नई खुशबुएँ नया रंग हो<br /><br />तेरी आहटें तेरी दस्तकें तेरी धड़कनें मेरे हमसफ़र<br />रहें उम्र भर तो न बे हवा मेरी हसरतों की पतंग हो<br /><br />सभी रंजिशों सभी कुल्फतों सभी ज़हमतों को तू भूल जा<br />मेरी ज़िन्दगी तेरी दोस्ती तेरी चाहतों के ही संग हो<br /><br />मक्ता तो अलग ही रंग लिए ही है मज़ा आ गया...<br /><br />बहुत ख़ूबसूरत<br /><br />अब इसके आगे क्या कहूं समझ ही नहीं आ रहा :)वीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-10975103163160640592011-01-11T00:48:42.414+05:302011-01-11T00:48:42.414+05:30मेरे ज़ह्न ओ दिल की ये गुफ़्तगू ,वो ख़िरद भी जज़्ब...मेरे ज़ह्न ओ दिल की ये गुफ़्तगू ,वो ख़िरद भी जज़्बे के रू ब रू<br />कि मैं फ़ैसला कोई कैसे लूं, जो ये दोनों बर सर ए जंग हों<br /><br />उन्हें ज़ा’म ए क़ुवत ओ ज़र हि है,जो कुचल रहे हैं ग़रीब को<br />वो नवा ए दर्द सुनेंगे क्यों ?जो मक़ाम ए क़ल्ब पे संग हों<br /><br />तेरा साथ है मेरी ज़िंदगी ,तेरा इल्तेफ़ात भी हो ’शेफ़ा’<br />नहीं याद मुझ को फिर आएंगे ,सहे तंज़ के जो ख़दंग हों<br /><br />इस्मत जी aapके ये तीन शेर लाजवाब लगे ख़ास कर मक्ता बहुत प्यारा लगा <br />खदंग शब्द मेरे लिए बिलकुल नया है जिसने मुझे चौंका दिया <br /><br />गिरह भी बहुत अच्छी बंधी है <br /><br />बहुत बहुत बधाईवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-2427877404324286952011-01-10T23:39:18.121+05:302011-01-10T23:39:18.121+05:30कमाल की ग़ज़लें हैं दोनों. इस्मत की तो हर ग़ज़ल उन...कमाल की ग़ज़लें हैं दोनों. इस्मत की तो हर ग़ज़ल उनके व्यक्तित्व का आइना होती हैं. बधाई.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-89225769580303510242011-01-10T23:38:47.527+05:302011-01-10T23:38:47.527+05:30नहीं संभव मुझे अशआर मैं दो चार चुन पाऊँ
कहे दिल रा...नहीं संभव मुझे अशआर मैं दो चार चुन पाऊँ<br />कहे दिल रात दिन ये ही गज़ल सुन्दर मैं दुहराऊँ<br />कहा है खूब इस्मतजी ने,नुसरतजी ने दिल बोले<br />कबूलें दाद मेरी भी, मुकर्रर कह न थक पाऊँराकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-77147309686843763692011-01-10T23:20:32.125+05:302011-01-10T23:20:32.125+05:30इस्मत ज़ैदी
न तो आरती में ख़लल पड़े,
न इबादतें कभी...इस्मत ज़ैदी<br />न तो आरती में ख़लल पड़े, <br />न इबादतें कभी भंग हों<br />हों हमारे बीच रेफाक़तें, जो उदू भी देख के दंग हों<br /><br />मतला खुद इस बात को <br />तसदीक़ करना चाह रहा है कि<br />ग़ज़ल, ख़ालिक़ के हर हुक्म की तामील करना चाहती है ...<br />और<br />ये दुआ हमारी है ऐ खुदा <br />क न फ़स्ल ए गम कोई उग सके<br /><br />अकेला मिसरा अपनी मुकम्मल बात<br />कह पाने में कामयाब हो गया है ... वाह<br />ज़बान ओ बयान का उम्दा और खूबसूरत इस्तेमाल<br />शानदार ग़ज़ल ...<br /><br />नुसरत मेहदी<br />तेरी आहटें, तेरी दस्तकें, <br />तेरी धडकनें, मेरे हमसफ़र<br />रहे उम्र भर, तो न बे हवा <br />मेरी हसरतों की पतंग हो <br /><br />शेर.में ... <br />शिगुफ्त्गी और शाईस्त्गी ...<br />दोनों का इम्तेज़ाज झलक रहा है<br /><br />यहाँ बेगरज जो मिलें सभी <br />तो हँसी ख़ुशी कटे ज़िंदगी<br />न हो इख्तिलाफ दिलों में फिर, <br />न किसी के बीच में जंग हो<br /><br />इस पाकीज़ा दुआ में<br />कैसे ना हर पढने वाला, शामिल होने से इनकार कर पाएगा<br />सुख़नवरों की सोच को ताज़ा सोच बख्शने वाली<br />हर-दिल अज़ीज़ शाईरा को सलाम<br /><br />मुझे "नुसरत" उस से नहीं गिला....<br />शेर में बानगी और क़ायदा<br />दोनों का कमाल दिख रहा हैdaanishhttps://www.blogger.com/profile/15771816049026571278noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-64943543241736377232011-01-10T22:39:03.754+05:302011-01-10T22:39:03.754+05:30इस्मत जी और नुसरत जी ने बेमिसाल अशआर कहे हैं.
तरही...इस्मत जी और नुसरत जी ने बेमिसाल अशआर कहे हैं.<br />तरही अपने उफान पर है. हम जैसों के लिए ये सीखने का सही समय है.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-45892892464734395122011-01-10T19:13:45.194+05:302011-01-10T19:13:45.194+05:30वाह! क्या खूब ग़ज़लें कहीं हैं इस्मत जी और नुसरत ज...वाह! क्या खूब ग़ज़लें कहीं हैं इस्मत जी और नुसरत जी ने, मज़ा आ गया..............नए नए शब्द और विचार पढने को मिले.<br />उस पर पंकज जी ने इस बहर के बारे में जो विस्तार से जानकारी दी वो भी ग़ज़ल के माध्यम से मुझ जैसे नौसिखिये को भी समझ आ गयी.<br /><br />एक शंका हैं मुझे.....मुझ जैसे नए शायर के लिए तो यहाँ पर सारे उस्ताद हैं, कृपया कोई इसका समाधान बताएं.<br /><br />क्या हम 'अब' 'कब', 'जब' को भी ११ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं? जैसे की 'अ' 'ब'.........या ये शब्द हमेशा दीर्घ ही रहते हैं?<br /><br />शुक्रिया!'साहिल'https://www.blogger.com/profile/13420654565201644261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-59773092093959645972011-01-10T18:06:13.081+05:302011-01-10T18:06:13.081+05:30वाक़ई पंकज जी,
कमाल का हुनर कहें...
या हुनर का कमा...वाक़ई पंकज जी,<br />कमाल का हुनर कहें...<br />या हुनर का कमाल...<br />मोहतरमा इस्मत साहिबा और मोहतरमा नुसरत साहिबा की इन तरही ग़ज़लों में कलाम की पुख्तगी साफ़ ज़ाहिर हो रही है...<br />दोनों को मुबारकबाद...<br />सभी को नए साल की मुबारकबाद.शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद''https://www.blogger.com/profile/09169582610976061788noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-16834271292465425852011-01-10T16:40:52.575+05:302011-01-10T16:40:52.575+05:30आज की पोस्ट पर जहाज़ के पंछी की तरह फिर लौट लौट कर...आज की पोस्ट पर जहाज़ के पंछी की तरह फिर लौट लौट कर आ जाता हूँ...क्या करूँ एक बार में जी जो नहीं भर रहा...ये बात बिलकुल सही है शायरी की मिठास उर्दू जबान में बढ़ जाती है...<br />इस्मत जी की ग़ज़ल के मतले से मकते तक का सफ़र बेहद खूबसूरत मंज़रों से हो कर गुज़रता है, मतले में उन्होंने ने इस सच्चाई को बेहद असरदार तरीके से पेश किया है,की अगर मंदिर-मस्जिद का झगडा न हो और हम में आपसी भाईचारा हो तो आतंकवादी ताकतें अपने आप नेस्तनाबूत हो जाएँ और फिर उसके बाद के शेर आपको पढ़ते वक्त अपने साथ बहा कर ले जाते हैं...जेहन ओ दिल की जंग में कोई फैसला लेने में मुश्किल आती है ये बात इस्मत जी ने लाजवाब ढंग से पेश की है... उनकी ग़ज़ल में आया खदंग लफ्ज़ मैंने पहली बार पढ़ा है...लफ्ज़ भी पहली बार पढ़ा और उसका इस्तेमाल भी पहली बार देखा है...टोकरी भर के दाद मेरी तरफ से उन्हें पहुंचा दीजियेगा...<br />नुसरत जी को जब पढ़ा जहाँ पढ़ा या सुना हर बार एक नए अनुभव से गुजरने जैसा लगा. अपनी बात कहने का उनका अंदाज़ बहुत दिलकश और सबसे जुदा है. ग़ज़ल का आगाज़ उन्होंने एक नयी आशा उम्मीद के साथ किया है, ये उम्मीद उनके हर शेर में दिखाई देती है...पूरी ग़ज़ल एक ताजगी के एहसास से लबरेज़ है...हिम्मत और उम्मीद जगाती है...इस ग़ज़ल से अगर कोई सीखना चाहे तो बहुत कुछ सीख सकता है. ये aes इ ग़ज़ल है जिसका सुरूर पढने वालों के दिल पर मुद्दतों तक तारी रहेगा.<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com