tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post7482194062928745938..comments2024-03-08T17:02:04.713+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: दिगम्बर नासवा और निर्मला कपिला जी कह रहे हैं -क्या किया इतने दिनों तक दूर रह के गाँव से, घूमती ये रूह रहती है अभी तक गाँव मेपंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-79000756253199256532012-01-31T00:40:31.436+05:302012-01-31T00:40:31.436+05:30दिगंबर जी ने सही कहा कि खंडहर में तब्दील हो गई तो ...दिगंबर जी ने सही कहा कि खंडहर में तब्दील हो गई तो क्या हम भी एक हवेली के मालिक तो हैं गाँव में.... जिसे देखने वाला कोई नही, जिसकी मरम्मत करनवाने वाला कोई नही....यहाँ एक वर्गफिट जमीन दो हजार रु० और वहाँ सैकड़ों वर्गफिट जमीन कोई देखने वाला नही। ये शेर मुझे अंदर तक छू गया.....<br /><br />माँ ने तो ऐसा लिखा कि समझ नही आ रहा किस शेर को सराहूँ... कितनी संवेदना है, कितनी कचोट.... प्रणाम करती हूँ और कुछ न कह सकने की विवशता हेतु क्षमा माँगती हूँ.....कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-44022232015315148462012-01-31T00:40:29.464+05:302012-01-31T00:40:29.464+05:30दिगंबर जी ने सही कहा कि खंडहर में तब्दील हो गई तो ...दिगंबर जी ने सही कहा कि खंडहर में तब्दील हो गई तो क्या हम भी एक हवेली के मालिक तो हैं गाँव में.... जिसे देखने वाला कोई नही, जिसकी मरम्मत करनवाने वाला कोई नही....यहाँ एक वर्गफिट जमीन दो हजार रु० और वहाँ सैकड़ों वर्गफिट जमीन कोई देखने वाला नही। ये शेर मुझे अंदर तक छू गया.....<br /><br />माँ ने तो ऐसा लिखा कि समझ नही आ रहा किस शेर को सराहूँ... कितनी संवेदना है, कितनी कचोट.... प्रणाम करती हूँ और कुछ न कह सकने की विवशता हेतु क्षमा माँगती हूँ.....कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-35976049797411119302012-01-30T13:06:08.017+05:302012-01-30T13:06:08.017+05:30दिगम्बर जी ने बहुत सुन्दर शेर बांधे हैं,
"चाय...दिगम्बर जी ने बहुत सुन्दर शेर बांधे हैं,<br />"चाय तुलसी की, पराठे, मूफली गरमा गरम.......", वाह वा क्या खूब मंज़र कशी की है.<br />"याद है घुँघरू का बजना रात के चोथे पहर..............", अद्भुत शेर.<br />हठीला जी को समर्पित ये शेर अपनी अलग ही खुशबू बिखेर रहा है,<br />"गीत ऐसे कह गए हैं कुछ हठीला जी यहाँ............."<br />खूबसूरत शेरों के लिए दिगम्बर जी को ढेरों बधाइयाँ.<br /><br />निर्मला कपिला जी जिजीविषा वाकई बहुत कुछ सिखा जाती है,<br />"बदरिया बरसी, धरा झूमी, पवन महकी चले ............." अच्छा शेर कहा है.<br />"साथ जिसके खेलती गुडिया, पटोले वो सखी........." वाह वा<br />"आँख से आँसू टपक जायें किसी को याद कर .........." खूब शेर कहा है.<br />बहुत बहुत बधाइयाँ.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-81504505273631478702012-01-30T11:19:09.903+05:302012-01-30T11:19:09.903+05:30क्या विडम्बना है कि गाँव में होने के कारण गाँव का ...क्या विडम्बना है कि गाँव में होने के कारण गाँव का उत्सव मना रहे इस जलसे से हफ्ते भर दूर रहा. खैर देर से आने से आनंद हरगिज कम नहीं हुआ. दोनों आला ग़ज़लकारों की भावों में डूबी हुई ग़ज़लें मर्मस्पर्शी है.....शुक्रिया और इनायत .....सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-75245440642342222782012-01-27T11:20:06.730+05:302012-01-27T11:20:06.730+05:30आदर्णीय द्विज जी की टिप्पनी पढ कर मुझे वो वाक्या य...आदर्णीय द्विज जी की टिप्पनी पढ कर मुझे वो वाक्या याद आ गया जब मैन्3ए सोचा कि अब तो गज़ल सीखनी पडेगी\ मुझे जब इन्हों ने अपनी पुस्तक जन गन मन भेजी तो मै उसके बारे मे इनसे कुछ न कह सकी असल मे मुझे गज़ल के बारे मे कुछ भी नही पता था। तब मैने सोचा कि मुझे गज़ल भी सीखनी ही है\ मेरे भाईयों ने मेरी मदद की कुछ न कुछ सीख ही रही हूँ। धन्यवाद द्विज जी।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-52362110691116309032012-01-26T23:42:29.950+05:302012-01-26T23:42:29.950+05:30रोज आटा गूंथ के सब्जी चढ़ा देती है वो
और तेरी राह ...रोज आटा गूंथ के सब्जी चढ़ा देती है वो<br />और तेरी राह तकती है अभी तक गाँव में <br /><br />भेज बेटे को शहर मे धन कमाने के लिये<br />माँ अकेली रोज रोती है अभी तक गाँव में<br /><br />उफ़ ...<br />अशआर ने ऐसा मंज़र पेश किया है कि बार बार पढता रहा <br /><br />तरही की पाठशाला से बहुत कुछ सीख रहा हूँ <br />नासवा जी और निर्मला जी को हार्दिक बधाईवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-79114512590086831072012-01-26T17:57:24.222+05:302012-01-26T17:57:24.222+05:30गुरुदेव आपका बहुत बहुत शुक्रिया मुझे इस तरही में ज...गुरुदेव आपका बहुत बहुत शुक्रिया मुझे इस तरही में जगह देने का ... शेरों का सागर उमड़ रहा है और हर कोई आनंद ले रहा अहिं इनमें गोते लगा के ...<br />आदरणीय निर्मला जी के जीवन से तो मैं अक्सर प्रेरणा लेता हूँ और ये मेर सम्मान है की उनके साथ मेरी गज़ल लगी है आज ....<br />हर शेर उनकी गज़ल का बीते हुवे घर, माहोल, परिवेश को याद करा है ... जब से अपना गाँव छोड़ा ... मुझ जैसे परदेसी की तो ये हकीकत है ... और गुडिया पटोले के साथ खेलना ... कोयल के विरह के गीत सुनना ... गाँव की सोंधी खुशबू की याद करा देती है ... <br />आखरी वाला शेर ... चाहती हूँ आखिरी में सांस लू जाकर वहाँ ... ये शेर तो बहुत देर तक गूंजता रहा मन में ...<br />इस तरही में लगता है जैसे पावन हवन चल रहा हो और शेरों की आहूति और तेज़ और तेज़ करती जाती है अग्नि को .....<br />सभी गुरुकुल में पढ़ने वालों का शुक्रिया मेरा होंसला बढाने का ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-71379693779938482512012-01-26T17:46:01.393+05:302012-01-26T17:46:01.393+05:30गुरुदेव आपका बहुत बहुत शुक्रिया मुझे इस तरही में ज...गुरुदेव आपका बहुत बहुत शुक्रिया मुझे इस तरही में जगह देने का ... शेरों का सागर उमड़ रहा है और हर कोई आनंद ले रहा अहिं इनमें गोते लगा के ...<br />आदरणीय निर्मला जी के जीवन से तो मैं अक्सर प्रेरणा लेता हूँ और ये मेर सम्मान है की उनके साथ मेरी गज़ल लगी है आज ....<br />हर शेर उनकी गज़ल का बीते हुवे घर, माहोल, परिवेश को याद करा है ... जब से अपना गाँव छोड़ा ... मुझ जैसे परदेसी की तो ये हकीकत है ... और गुडिया पटोले के साथ खेलना ... कोयल के विरह के गीत सुनना ... गाँव की सोंधी खुशबू की याद करा देती है ... <br />आखरी वाला शेर ... चाहती हूँ आखिरी में सांस लू जाकर वहाँ ... ये शेर तो बहुत देर तक गूंजता रहा मन में ...<br />इस तरही में लगता है जैसे पावन हवन चल रहा हो और शेरों की आहूति और तेज़ और तेज़ करती जाती है अग्नि को .....<br />सभी गुरुकुल में पढ़ने वालों का शुक्रिया मेरा होंसला बढाने का ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-44327011148637153572012-01-26T17:20:12.872+05:302012-01-26T17:20:12.872+05:30atyant sundar gazleinatyant sundar gazleinOnkarhttps://www.blogger.com/profile/15549012098621516316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-87586508878211679672012-01-26T15:48:23.665+05:302012-01-26T15:48:23.665+05:30इतनी भावप्रधान गज़लें हैं कि मज़ा ही आ गया, और क्य...इतनी भावप्रधान गज़लें हैं कि मज़ा ही आ गया, और क्यों न हों, आखिर शायर कौन हैं ! बहुत आभार आप दोनों का निर्मला दी और दिगंबर जी इतने सुन्दर शेर कहने के लिए. <br />-----<br />"खंडहरों में हो गई तब्दील.... " ये शेर ज़ाती तौर से आपने बहुत करीब लगा मुझे...बहुत सुन्दर!<br />"रोज़ आता गूंथ के..."--- बहुत ही सुन्दर इमेज और ये प्रश्न कि कौन...माँ, काकी, बहन,पत्नी, प्रेयसी ...कौन?... ये जो निर्णय छोड़ दिया है पढ़ने वालों पे ...ये मुझे बहुत अच्छा लगा!<br />"चाय तुलसी की, ...." -- इसके लिए तो बस वाह! वाह!<br />"याद है घुँघरू बजाना ..." ये आपके नाम से याद रह जाएगा कि भूतों का जिक्र ग़ज़ल में पहली बार आपके शेर में पढ़ा था दिगंबर जी! बहुत मुबारकबाद बचपन के इस नटखट पहलू को याद कराने के लिए. <br />" क्या किया इतने दिनों तक दूर रह के गाँव से" ये एक पानी कि तरह बहने वाला खूबसूरत और भावुक मिश्रा है. <br />मक्ता भी सुन्दर! <br />=======<br />निर्मल दी, " जब से अपना..." बहुत खूबसूरत शेर.<br />" बदरिया बरसी, धरा..." ये इतना गतिमय शेर है कि बिना हाथ हिलाए ओला ही नहीं गया...बहुत प्यारी बात , बहुत प्यारे ढंग से कही है आपने.<br />"साथ जिसके खेलती गुडिया..." ये बहुत खूबसूरत मिसरा...ये तो हम महिलाएं ही लिखा सकती हैं... (गिल्ली-डंडा और पतंग के साथ साथ :). आपकी ग़ज़ल में ये बिम्ब पा के बहुत सुखद लगा.<br />"आँख से आँसू टपक..." ये भी बहुत खूबसूरत शेर ...कितना अच्छा लिखती हैं आप!<br />" भेज बेटे को...." अच्छा मिसरा.<br />"चाहती हूँ आखिरी...." ये बहुत ही सशक्त शेर!<br />========<br />कुल मिला के मज़ा आ गया आप दोनों को पढ़ के! जय हो! <br />निर्मला दी २०१२ में और आगे भी आपका स्वास्थ बहुत अच्छा रहे और आप तन-मन से लिख सकें ! ...सादर शार्दुलाShardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-11780687581971697992012-01-26T11:46:24.680+05:302012-01-26T11:46:24.680+05:30दिगम्बर नासवा जी ने लाजवाब शब्दों और भावों के साथ...दिगम्बर नासवा जी ने लाजवाब शब्दों और भावों के साथ सुकवि हठीला जी को श्रद्धांजलि दी है।<br />और यह ‘मूफली’ शब्द तो हमारे प्रदेश में भी प्रयुक होता है यथावत । बचपन से रिश्ता कायम रखे हुए यह शब्द इस शेर को और भी नास्टेल्जिक बना रहा है । <br />अपने शेरों निर्मला दी ने जो नास्टेल्जिया रचा है, बहुत हाँटिंग है । यह पीड़ा सबकी पीड़ा है । बधाई नासवा जी और निर्मला दी !द्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-61462875173680049352012-01-26T11:28:03.243+05:302012-01-26T11:28:03.243+05:30भाई हों तो ऐसे! मुझे नास्वा जी के साथ स्थान दे कर ...भाई हों तो ऐसे! मुझे नास्वा जी के साथ स्थान दे कर मेरा जो मान बढाया उसके लिये धन्यवाद। मेरे उत्साहवर्द्धन के लिये भी सभी का धन्यवाद।अजकल लिखने का क्रम बहुत कम हो गया है---पता नही क्यों शायद सेहत की वजह से निराश सी हो गयी थी लेकिन आज फिर से नया उत्साह लेकर जा रही हूँ।<br />नास्वा जी की गज़ल हो या कविता दिल की गहराइयों मे डूब कर लिखते हैं मै तो हमेशा सोचने पर मजबूर हो जाते4ए हूँ-------<br />खन्दहरों मे हो गयी----<br />चाय तुलसी की---- वाकई तुलसी वाली चाय पीने का मन हो आया\ शहरों मे हर जगह कहाँ मिलती है तुलसी<br />याद है घुंघरू का बजना---- बचपन के भूत प्रेतों के किस्से अभी तक जहन मे हैं। लाजवाब गज़ल नास्वा जी को बधाई। सुबीर जी को ढेरों आशीश जो मुझे आगे बढने की प्रेरन देते हैं खुश रहो मेरे भाई।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-20103468322661211182012-01-26T11:16:22.569+05:302012-01-26T11:16:22.569+05:30दिगम्बर नासवा जी ने लाजवाब शब्दों और भावों के साथ...दिगम्बर नासवा जी ने लाजवाब शब्दों और भावों के साथ सुकवि हठीला जी को श्रद्धांजलि दी है।<br />और यह ‘मूफली’ शब्द तो हमारे प्रदेश में भी प्रयुक होता है यथावत । बचपन से रिश्ता कायम रखे हुए यह शब्द इस शेर को और भी नास्टेल्जिक बना रहा है । <br />अपने शेरों निर्मला दी ने जो नास्टेल्जिया रचा है, बहुत हाँटिंग है । यह पीड़ा सबकी पीड़ा है । बधाई नासवा जी और निर्मला दी !द्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-21715423444217747002012-01-26T01:27:00.871+05:302012-01-26T01:27:00.871+05:30बढिया रचनाएं।
गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय...बढिया रचनाएं। <br /><br />गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....<br /><br />जय हिंद... वंदे मातरम्।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-43582876746777379222012-01-26T00:49:33.495+05:302012-01-26T00:49:33.495+05:30गणतंत्र दिवस की बहुत बधाईयाँ सभी को सबसे पहले !
आ...गणतंत्र दिवस की बहुत बधाईयाँ सभी को सबसे पहले ! <br />आज की इन दोनों ग़ज़लों ने जैसे धमाल मचा दिया है , दिगम्बर जी के छ्न्द मुक्त कविताओं का तो मैं पहले से ही प्रशंसक रहा हूँ और ग़ज़लों का अलग से , आज की ग़ज़ल मे भी उन्होने कमाल किया है... खंडहरों मे और रोज़ आटा.. इन दोनों शे'रों ने इन्हे एक अलग उँचाई बक्शी है ... बेहद खुब्सूरत शे'र कहे हैं ... बहुत बधाई... <br /><br />निर्मला माँ के लिये क्या कहूँ... जिजीविषा की ये पर्यायवाची हैं, आप सही कह रहे हैं की इनकी तबीयत बहुत ही ख़राब थी.. मगर इसके बावज़ूद इन्होने ग़ज़ल कही और क्या ग़ज़ब की ग़ज़ल कही इन्होनें... जब से अपना गाँव छोड़ा , आँख के आँसू... खूब बदला.. सादगी,,, चाहती... क्या खूब शे'र कहे हैं इन्होनें... बहुत बधाई.. <br /><br /><br />अर्श"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-72659780332477598632012-01-25T19:59:31.657+05:302012-01-25T19:59:31.657+05:30क्या किया इतने दिनों तक दूर रह के गाँव से
दास्तां ...क्या किया इतने दिनों तक दूर रह के गाँव से<br />दास्तां अपनी तो ठहरी है अभी तक गाँव में<br /><br />गीत ऐसे कह गए हैं कुछ हठीला जी यहाँ<br />रुत सुहानी गुनगुनाती है अभी तक गाँव में<br /> --दिगम्बर नासवा<br /><br />जब से अपना गाँव छोड़ा सो न पाई चैन से<br />गोद दादी की बुलाती है अभी तक गाँव में<br /><br />भेज बेटे को शहर में धन कमाने के लिये<br />माँ अकेली रोज़ रोती है अभी तक गाँव में<br /><br />चाहती हूँ आखिरी में साँस लूँ जाकर वहाँ<br />घूमती ये रूह रहती है अभी तक गाँव में<br /> --निर्मला कपिला<br />दोनों शायरों की ग़ज़लें उम्दा हैं,और उपरोक्त शेर तो बहुत ही असरदार हैं ! मुझे खुशी है कि हमारे हिमाचल की शायरा निर्मला कपिला जी इतनी अच्छी गज़ल कहती हैं !Ashwini Rameshhttps://www.blogger.com/profile/16656626915061597542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-82567672182482413182012-01-25T18:47:22.695+05:302012-01-25T18:47:22.695+05:30Shandar dono gajalon ko sundar dhang se prastuti k...Shandar dono gajalon ko sundar dhang se prastuti karne ke liye aapka aabhar!कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-55724513975528267052012-01-25T17:21:50.437+05:302012-01-25T17:21:50.437+05:30वाह-वाह! बहुत ख़ूब
ग़ज़लों में बहुत ही ख़ूबसूरत और...वाह-वाह! बहुत ख़ूब<br />ग़ज़लों में बहुत ही ख़ूबसूरत और अनूठे भावों और अन्दाज़े-बयाँ के लिए दिगम्बर नासवा जी को तथा निर्मला दी को बधाई ।<br />हठीला जी स्मृति को समर्पित नासवा जी का शेर बहुत खूब लगा। निर्मला दी ने जो नॉस्टेल्जिया अपने अशआर में बुना है बहुत <br />हाँट करने वाला है बचपन का एक एक पल याद दिलाने वाला ।<br />कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन......!!!!!!द्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-30760846671954228542012-01-25T16:26:07.868+05:302012-01-25T16:26:07.868+05:30चाय तुलसी की, परॉंठे...का खिंचाव, याद है घुँघुरू.....चाय तुलसी की, परॉंठे...का खिंचाव, याद है घुँघुरू......., का रोंगटे खड़े करने वाला भाव, क्या किया ..... का पराजय भाव......... और अंत में हठीला जी का स्मरण; दिगम्बर भाई, बहुत संदर भाव हैं, बधाई। <br /><br />निर्मला जी की ग़ज़ल स्पष्ट करती है कि अहसास शेर को कैसे रूप देता है। दादी से लेकर गुडि़या पटोले तक के साथ-साथ कोयल के विरह गीत और मॉं का अकेले रोना तक एक भाव-इनद्रधनुष है विभिन्न छटायें लिये हुए।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-20484907837880249332012-01-25T15:49:06.154+05:302012-01-25T15:49:06.154+05:30गुरूवर,
दिगम्बर जी के लिए जितना भी अभी तक टिप्पणि...गुरूवर,<br /><br />दिगम्बर जी के लिए जितना भी अभी तक टिप्पणियों में कहा गया है उससे कहीं ज्यादा असरदार अश’आर कहें हैं।<br />रोज आटा गूंथ के सब्जी चढ़ा देती है वो <br />और तेरी राह तकती है अभी तक गाँव में <br /><br />कुछ ऐसा लगा जैसे किसीने अभी छोंका लगाया हो धांस से आँसू बह निकले हों। लाजवाब......<br /><br />निर्मला जी, के लिए भी जो कुछ कहा गया है वो बिल्कुल अपने ब्लॉग "वीर बहुटी" की तरह ही अपने हिस्से की जंग लड़ती हैं और जीतती भी हैं।<br />इस शे’र ने बहुत कुछ याद दिला दिया :-<br /><br />जब से अपना गाँव छॊड़ा सो न पाई चैन से <br />गोद दादी की बुलाती है अभी तक गाँव में <br /><br />तरही की इन उँची पेंगों को देखके मुझे तो खड़े होने का भी साहस नही हो रहा है.....<br /><br />सादर,<br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53256125369353091262012-01-25T14:20:45.341+05:302012-01-25T14:20:45.341+05:30नि:शब्द कर दिया ..शब्द नहीं है तारीफ़ के लिए ..नासव...नि:शब्द कर दिया ..शब्द नहीं है तारीफ़ के लिए ..नासवा जी और निर्मला जी को हार्दिक बधाईनिर्झर'नीरhttps://www.blogger.com/profile/16846440327325263080noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53850924765113171242012-01-25T13:12:29.455+05:302012-01-25T13:12:29.455+05:30waaah.waaah.Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03953850203726679051noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-25176544108440086052012-01-25T11:25:15.855+05:302012-01-25T11:25:15.855+05:30वाह, बहुत सुन्दर!वाह, बहुत सुन्दर!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-54203215807188028402012-01-25T11:15:56.420+05:302012-01-25T11:15:56.420+05:30जैसे जैसे आगे बढ़ता जा रहा है यह मुशायरा और ऊँचाइया...जैसे जैसे आगे बढ़ता जा रहा है यह मुशायरा और ऊँचाइयाँ प्राप्त करता जा रहा है। क्या शे’र कहे हैं दिगंबर नासवा जी और निर्मला जी ने।<br />ये शे’र हो....<br />रोज आटा गूंथ के सब्जी चढ़ा देती है वो<br />और तेरी राह तकती है अभी तक गाँव में <br />या ये हो....<br />याद है घुँघरू का बजना रात के चौथे पहर<br />भूत की क्या वो कहानी है अभी तक गाँव में<br />या....<br />चाय तुलसी की, पराठे, मूफली गरम गरम<br />धूप सर्दी की बुलाती है अभी तक गाँव में <br />छूते ही अपने जादू से गाँव में पहुँचा देते हैं। सभी शे’र बहुत अच्छे हैं। बहुत बहुत बधाई दिगंबर नासवा जी को।<br /><br />अपनी दादी से तो मेरा भी बहुत लगाव है इसलिए भैया हम तो मर मिटे इस शे’र पर...<br />जब से अपना गाँव छोड़ा सो न पाई चैन से<br />गोद दादी की बुलाती है अभी तक गाँव में <br />और इस शे’र के तो क्या कहने...<br />आँख से आँसू टपक जायें किसी को याद् कर<br />यूं विरह कोयल सुनाती है अभी तक गाँव में<br />बाकी के शे’र भी बहुत शानदार हैं, यहाँ कोट करने का यह मतलब नहीं कि कोई शेर कमजोर है। बहुत बहुत बधाई निर्मला जी को इस शानदार ग़ज़ल के लिए।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-84181543593374805542012-01-25T11:01:02.988+05:302012-01-25T11:01:02.988+05:30ये मेरी ही टिप्पणी स्पैम में क्यूँ जाती है? कहीं त...ये मेरी ही टिप्पणी स्पैम में क्यूँ जाती है? कहीं तिलक राज कपूर साहब की कल कही हुई बात में सच्चाई तो नहीं ? <br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com