tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post6410494282706039341..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: आज वसंत पंचमी है और आज ही 14 फरवरी भी है तो आइये आज से ही शुरू करते हैं तरही मुशायरा ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-55532880533158987472013-02-21T12:04:02.291+05:302013-02-21T12:04:02.291+05:30कंचन इस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद कम अज़ कम मैं कुछ भी...कंचन इस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद कम अज़ कम मैं कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं हूं बस अल्लाह से दुआ है कि वो तुम्हें इस ग़म से उबार ले <br />पंकज ने सही कहा है की ये ग़ज़ल सिर्फ़ मह्सूस करने के लिये है इसे पढ़ने के बाद कुछ कहना सुनना एख़्तियार से बाहर है इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-20442296206382354232013-02-17T21:59:07.910+05:302013-02-17T21:59:07.910+05:30अत्यंत कठिन है इस असीम पीड़ा के क्षण में खुद को संभ...अत्यंत कठिन है इस असीम पीड़ा के क्षण में खुद को संभालना। जब शब्द अर्थहीन हो जाएं और वक्त आपकी हर कोशिश में नाकामयाबी ढूंढ निकालने में लगा हो....मनुष्य अपने प्रयासों में कितना सीमित है....कुछ तथ्य ऐसे हैं जो बतलाए नहीं जाते, <br />कुछ प्रश्न ऐसे हैं जो दुहराए नहीं जाते, बनाया था स्वर्ग तक हमने भी सोपान सपनों का, चादर से अधिक पांव फैलाए नहीं जाते....RAVI KANThttps://www.blogger.com/profile/07664160978044742865noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-55693454816464528742013-02-17T07:44:03.049+05:302013-02-17T07:44:03.049+05:30बेहतरीन...वाह!बेहतरीन...वाह!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-61552828519038635312013-02-16T07:59:41.372+05:302013-02-16T07:59:41.372+05:30ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की अता है
ह्रदय के भा...ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की अता है <br /><br />ह्रदय के भावों से ही किसी भी रचना का जन्म होता है , स्व वेदना में सम्पूर्ण लोक की व्यथा कह गयी कंचन जी की रचना.... हार्दिक आभार कंचन जी का |<br />पंकज जी ,और वीनस केशरी जी को भी आभार | डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) https://www.blogger.com/profile/00271115616378292676noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-62346886933291621332013-02-16T07:56:32.494+05:302013-02-16T07:56:32.494+05:30@कंचन,
किसी का यूँ चले जाना अचानक चले जाना और रह ...@कंचन,<br /><br />किसी का यूँ चले जाना अचानक चले जाना और रह गए लोगों का उस बिछोह के दर्द को शब्दों द्वारा सी लेना और अवयक्त की गूँज को तरंगों की तरह विस्तार देना। ऐसा जज्बा है जिसमें न जाने कितनी पीढ़ियाँ खत्म होने के बावजूद नहीं सीख पायी हैं । <br /><br />अपने श्रद्धा सुमनों के साथ आपकी वेदना में सहभागी <br /><br />मुकेश कुमार तिवारी <br />मुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-21860981949439084292013-02-15T15:17:57.481+05:302013-02-15T15:17:57.481+05:30दीदी की स्मृतियों को नमन।किसी अपने से बिछड़ने का दु...दीदी की स्मृतियों को नमन।किसी अपने से बिछड़ने का दुःख शब्दों में बयान नहीं हो सकता।ग़ज़ल ने भी आपके दग्ध ह्रदय के उदगार ही व्यक्त किये हैं।ईश्वर आपको इस अपार दुःख को सहने की शक्ति प्रदान करे।सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-4457110749367910342013-02-15T13:02:30.202+05:302013-02-15T13:02:30.202+05:30बड़ी दीदी के जाने के बाद कंचन दीदी का हर एक पल कैसे...बड़ी दीदी के जाने के बाद कंचन दीदी का हर एक पल कैसे गुज़र रहा होगा उसका बस थोड़ा बहुत ही अंदाज़ा लगा सकता हूँ। पिछले कुछ सालों से बड़ी दीदी के साथ-साथ पूरा परिवार भी जूझ रहा था। हर पल एक दुआ उम्मीद भरी नज़रों से उठती थी और आते हुए लम्हें कभी-कभी उम्मीद की लौ को ज़ोर भी देते थे मगर 27 जनवरी वो लौ बुझ गई, मगर बुझने से पहले वो लौ इतना उजाला कर गई है कि उसकी रौशनी में उस लौ के अपने परिवार के सदस्यों के लिए देखे हुए कई सपने दिखते हैं।<br /><br />कंचन दीदी का पहला प्यार ....... बड़ी दीदी, जिन्होंने कंचन दी को हर वक़्त संबल दिया, उनकी प्रेरणा और बनकर हमेशा उनके साथ खड़ी रही और उनका वो विश्वास कंचन दी के व्यक्तित्व में झलकता है, उनकी लेखनी में वो उम्मीद जगमगाती है जिसे बड़ी दीदी ने देखा था। आज वो शरीर रूप में ज़रूर हम सब के बीच में नहीं है लेकिन वो आज कई रूपों में मौजूद हैं। इस ग़ज़ल का हर लफ्ज़ जब कंचन दी से फ़ोन पर सुन रहा था तो उसके पीछे छिपा दर्द खुदबखुद झलक पद रहा था। आँसुओं से लिखी ये ग़ज़ल अपने में कितना दर्द समेटे है ये कंचन दी को अगर कोई जानता है तो जान सकता है।Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-65161953250266739062013-02-15T12:44:34.807+05:302013-02-15T12:44:34.807+05:30प्रिय कंचन
शब्द मौन हो जाते हैं जब दर्द गहराइयों ...प्रिय कंचन <br />शब्द मौन हो जाते हैं जब दर्द गहराइयों में धंस जाता है...भगवान के बाद शायद माँ या उसके स्थान पर ऐसा अपना हो जो हमारी आस्थाओं को पनाह दे, या वह रिक्तता पूर्ण कर दे । यह पाने का बाद खोने का पड़ाव दुखड़ाई होता है...माना "पर मैं हूँ ना" कितनों को अपने आस पास मिलते है.... यह मंच सुबीर जी ने इन रिश्तों की पुख्तगी की नीव पर रखा है, स्नेह और मृदुल प्यार के ये रिश्ते हमारी यादों में हमारा सहारा बनते है...<br />जब जब मन घबराये तुम प्रार्थना करो <br />कोई राह नज़र न आए तुम प्रार्थना करो...आराधना करो॥ Devi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-6797135637102680372013-02-15T07:02:06.150+05:302013-02-15T07:02:06.150+05:30हैं लफ्ज़ ख़त्म सारे कहने को क्या बचा है
जो दर्द द...हैं लफ्ज़ ख़त्म सारे कहने को क्या बचा है<br /><br /> जो दर्द दिल में उमडा उसको ग़ज़ल कहा है <br /><br /><br />कंचन तपा है जब भी कुंदन ही होक निखरा <br /><br />यह मोड़ ज़िंदगी का इससे कहाँ जुदा है <br /><br /><br />आंसू पिघल के रचते ग़ज़लों में इक मुजस्सम <br /><br />होठों पे तैरती बस रुन्धती हुई सदा है <br />राकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-65778335920819238342013-02-15T06:43:07.075+05:302013-02-15T06:43:07.075+05:30ऐसे तेरे बग़ैर.. . ?
ऐसे तेरे बग़ैर.. . ?<br />Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49883509794986463802013-02-15T01:25:41.012+05:302013-02-15T01:25:41.012+05:30गुरुदेव प्रणाम,
बरबस दुष्यंत का एक शेर याद हो आया...गुरुदेव प्रणाम, <br />बरबस दुष्यंत का एक शेर याद हो आया, देखिये न कैसा मौजूँ हो रहा है ... <br /><br />हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए| <br />इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए |......<br /><br />इस ग़ज़ल के रूप में ऐसा ही किया गया है, पीर के पर्वत से एक गंगा निकाली गई है <br /><br />// मैं नहीं जानता कि मैंने कंचन से ये जिद क्यों की, कि इस बार का तरही मुशायरा कंचन की ही गज़ल से होगा //<br /><br />यही कारण था गुरुदेव, बस यही ... एक गंगा निकालनी बहुत जरूरी थी वीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-88693058302914737152013-02-15T00:42:34.574+05:302013-02-15T00:42:34.574+05:30आचार्य चतुरसेन के उपन्याजस ‘गोली’ के जैकेट पर एक ट...आचार्य चतुरसेन के उपन्याजस ‘गोली’ के जैकेट पर एक टिप्पणी पढ़ी थी 70 के दशक में ‘आप इतने कठोर-हृदय कैसे हो सकते हैं कि ये लिख सके’ उस उपन्या्स में व्यक्तिगत वेदना की पराकाष्ठा जी गयी थी। कुछ वही स्थिति है आज की ग़ज़ल में। जब अंतस में बह रही वेदना को व्यक्त करने के अन्य साधन असमर्थ हो जाते हैं तब ऐसा काव्य़ जन्मता है। <br />मेरा निजि अनुभव रहा है उस द्वन्द का जो ऐसे क्षणों में चल रहा होता है। मृत्यु की ओर अग्रसर किसी अपने के उन पीड़ादायक क्षणों में एक ओर जब चिकित्सक इंगित कर रहा होता है कि मरीज़ किस दिशा में बढ़ रहा है हृदय किसी चमत्कार की आशा में होता है और हर तरह से दुआ कर रहा होता है मरीज़ के यथाशीघ्र ठीक होने के लिये; दूसरी ओर मरीज़ का बढ़ रहा कष्ट देख दुआ कर होता है कि अब इस कैद-ए-बामशक्करत से मरीज को बिना कष्ट के मुक्ति मिले। बहुत कठोर हो जाता है हृदय इस द्वन्द में और फिर यकायक वो पल आता है जब सोच भी कुछ देर के लिये मौन हो जाती है। अर्न्तवेदना की वही पराकाष्ठा इस ग़ज़ल में जी गयी है जिसपर कुछ कहने को शब्द पर्याप्त नहीं हैं। <br />तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-47915041120373588502013-02-14T21:45:29.353+05:302013-02-14T21:45:29.353+05:30बेहतरीन ग़ज़ल, मतला और गिरह का शे"र लाजवाब लगा।...बेहतरीन ग़ज़ल, मतला और गिरह का शे"र लाजवाब लगा।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-85888704549821629762013-02-14T21:17:59.253+05:302013-02-14T21:17:59.253+05:30 माफ़ी , गलती से फातिहा को फतहा लिख दिया माफ़ी , गलती से फातिहा को फतहा लिख दिया Tapan Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/00282230931401465601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-34869960604017607102013-02-14T19:40:06.608+05:302013-02-14T19:40:06.608+05:30कंचन जी इस मुश्किल समय में हम सब आपके साथ है . और ...कंचन जी इस मुश्किल समय में हम सब आपके साथ है . और आपकी इस गजल के बारे में क्या कहूँ। में बहुत ज्यादा गजल नहीं जानता पर ये कहुगा की आपकी इस गजल को पड कर आपके दर्द को मैंने महसूस किया है और सच कहूँ तो आँख नम हो गई है इसे पड़ कर . <br /><br />सारे शहर में मेरा बस एक था ठिकाना,<br />जाना ये आज ही है, जब तू नही रहा है। <br /><br /><br />कुछ भी तो कह न पाए, कुछ भी तो सुन न पाए<br />झटके से फेरना मुँह, ये कैसा कायदा है। <br /><br /><br />इक बार चूम लेते, इक बार लग के रोते,<br />इक बार ये तो कहते, बस अब ये अलविदा है। <br /><br /><br /><br />एक शेर सुना था मैंने कभी वो याद आ रहा है ...<br />तुम्हारी कब्र पर मैं फ़तहां पड़ने नहीं आया .<br />मुझे मालूम था तुम मर नहीं सकते<br />तुम्हारी मोत की सच्ची खबर जिसने उड़ाई थी<br />वो झुटा था वो झुटा था वो झुटा था Tapan Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/00282230931401465601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-22854979444495387302013-02-14T19:36:20.763+05:302013-02-14T19:36:20.763+05:30लगता है जैसे आँसू, खूँ बन टपक गया है,
क्या लिख दिय...लगता है जैसे आँसू, खूँ बन टपक गया है,<br />क्या लिख दिया है तुमने, क्या तुमने लिख दिया है !Mansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-57116181419257382042013-02-14T19:19:48.532+05:302013-02-14T19:19:48.532+05:30ब्लॉग की छटा हर मौसम में हर त्यौहार में देखने लायक...ब्लॉग की छटा हर मौसम में हर त्यौहार में देखने लायक होती है, मन खुश हो जाता है ! इस निहायत ही मसरूफ ज़माने में भागते दौड़ती दुनिया में बचपन की बातें बचपन के वो दिन कहाँ याद आते हैं ! पर त्यौहार में इस ब्लॉग पर जो तरही मनाई जाती है वो अपने आप में एक सकून देने वाली बात होती है ! मरते एहसास को अचानक से ज़िंदा कर देने वाली बात होती है !<br /><br />ग़ज़ल पर बात करने से पहले यह कहूंगा की ग़ज़ल लिखते वक़्त शे'र दर शे'र मेरी बहन रोई होगी ! हज़ार बार हुक उठ्ठी होगी , हज़ार बार ख़ुद को कोसा भी होगा !<br />सच कह रहे है आप गुरु देव कि इस ग़ज़ल को महसूस करने की बात है ! लफ्ज़ दर लफ्ज़ मुहब्बत को टूटते होने का एहसास है ! <br />मतला ही ऐसा है कि क्या कहूँ ! मौत की अर्जी और ज़िस्त की सज़ा,.. क्या कहने !<br />जहां तक शे'र ख़ुद कह रहा है ये शे'र दीदी के हवाले से है ... !<br />और गिरह , ख़ुद में कठोरतम बात ख़ुद को तद्पाने की बात है , ख़ुद को सज़ा देने की बात की गई है !<br /><br />सारे शहर में मेरा .... इसमे ख़ुद के अकेलेपन की बात है , एक ऐसी बात जो धुरी से छूटने जैसी हो !<br /><br />दफ्तर में ... दुनियादारी की बातें है !<br /><br />डोली चढी... इस शे'र में बिछड़ने के दो वक़्त-ओ-हालात पर है , एक तब जब घर से बेटी विदा हो रही हो और दूसरी तब जब इस संसार से ! यह शे'र बहुत मुश्किल हुआ होगा लिखते वक़्त !<br /><br />एक बार चूम लेते .... यह शे'र इस ग़ज़ल का सबसे ज़बरदस्त शे'र है हासिले ग़ज़ल शे'र मेरे तरफ से है ! <br /><br />और आखिर का शे'र एक पुरे युग के हवाले से है ! <br /><br />बहन जी और दीदी के मुहब्बत के बारे बस यही कहूंगा की वो बहन जी की माँ , पिता जी , भाई और साथ में बहन सब कुछ थीं ! <br />और एक साथ इन सबका एक ही बार में एक ही झटके में चले जाने के दुःख को हम महसूस भी नहीं कर सकते , बहुत मुश्किल है ! श्रधांजलि !<br /><br />अर्श "अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-61266654745113684492013-02-14T19:01:59.028+05:302013-02-14T19:01:59.028+05:30आज तब की सुनी हुई एक ग़ज़ल याद आ रही है । तक की जब...आज तब की सुनी हुई एक ग़ज़ल याद आ रही है । तक की जब ये भी नहीं समझ पड़ता था कि ग़ज़ल क्या होती है । शायद कॉलेज के दौर की बात है । चाचा ने एक वॉकमेन उपहार दिया था उप पर टी सीरीज के सस्ते वाले कैसेट पर चंदन दास को सुना था । निदा फाज़ली की ग़ज़ल गाते हुए । http://www.youtube.com/watch?v=lbIgzprZ1rs इस लिंक पर आप भी ग़जल़ को सुनें। सुनें आज की कंचन की ग़ज़ल के संदर्भ में । पंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-8571667427738814202013-02-14T19:00:04.076+05:302013-02-14T19:00:04.076+05:30बुद्धि प्रदाम् शारदाम्..बुद्धि प्रदाम् शारदाम्..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-68419005095624309042013-02-14T18:44:42.042+05:302013-02-14T18:44:42.042+05:30आज ही तरही शुरू हो गई ! हर त्यौहार पर ब्लॉग की छटा...आज ही तरही शुरू हो गई ! हर त्यौहार पर ब्लॉग की छटा देखते ही बनती है ! ग़ज़ल क्या करूँ बस ये कि हर शे'र पर वो हज़ार बार रोई होगी ! बड़ी दीदी को भावभीनी श्रधांजलि ! <br /><br /><br />अर्श "अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-31410517238812160772013-02-14T18:31:18.740+05:302013-02-14T18:31:18.740+05:30दर्द का कोई रूप नहीं होता पर क्या प्रभावित करता है...दर्द का कोई रूप नहीं होता पर क्या प्रभावित करता है ! रचनाकार का इसे शब्दबद्ध करना अपने और अपने इतर के दुःखों को जीना है. एकाकी पीड़ा प्रस्तुत ग़ज़ल के होने का कारण अवश्य हो, लेकिन इसकी टीस हर पाठक महसूस कर रहा है. <br />जीवन का समुच्चय रूप, कंचनजी, सदा से शिव-स्वरूप है. सदा से सुन्दर है. <br /><br />कंचनजी, इस ग़ज़ल के हो जाने पर अतिशय बधाइयाँ. <br /><br />Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-13780850165673391882013-02-14T16:53:42.285+05:302013-02-14T16:53:42.285+05:30कंचन की ग़ज़ल पढ़ते हुए बशीर बद्र का शेर याद आ गया...कंचन की ग़ज़ल पढ़ते हुए बशीर बद्र का शेर याद आ गया " पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है, खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है" जो ग़म कंचन की आँख से टपकने से रह गए वो ग़ज़ल बन के बह निकले हैं। ये ग़ज़ल अकेली कंचन की नहीं है हर उसकी है जिसने जीवन में अपना कोई प्रिय खोया है। ये ग़ज़ल सीधे दिल को छूती है और गला रुंध सा जाता है।<br /><br />किसी प्रिय के वियोग से उपजी पीड़ा को भुक्त भोगी ही जान सकता है। <br /><br />मैं बहुत कुछ कहना चाहता था इस ग़ज़ल पर लेकिन क्या करूँ शब्द कहीं अटक से गए हैं और जो मिल रहे हैं वो मेरी बात कहने में असमर्थ हैं। अभी चलता हूँ फिर लोटूंगा थोडा संभल लूं।<br /><br />नीरज नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-46699859920944869452013-02-14T16:19:29.197+05:302013-02-14T16:19:29.197+05:30
@कंचन दी, आपकी इस बेमिसाल ग़ज़ल को सलाम करता हूँ।...<br />@कंचन दी, आपकी इस बेमिसाल ग़ज़ल को सलाम करता हूँ। <br /><br />आपके लिए दो शब्द - <br />देखो सफ़र हमारा अब एक काफिला है <br />हिम्मत की दास्ताँ है लफ़्ज़ों में जो घुला है <br />सीखा है तुमसे बहना जबजब ग़ज़ल बुना है <br />बातें है याद सारी रिश्तों से जो मिला है <br />Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-59085634230924229582013-02-14T15:45:08.413+05:302013-02-14T15:45:08.413+05:30दर्द ही दर्द है। इस दर्द को नमन है। इस ग़ज़ल को नमन ...दर्द ही दर्द है। इस दर्द को नमन है। इस ग़ज़ल को नमन है। बड़ी दीदी को भावभीनी श्रद्धांजलि। ‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-10397760321965766212013-02-14T14:52:53.119+05:302013-02-14T14:52:53.119+05:30Lucknow ki tehzeeb apne me sameti hui ye gazal. ha...Lucknow ki tehzeeb apne me sameti hui ye gazal. har sher behtareen hai. didi ko dher sari badahayiaan. ek sher bahut pasand aya hai " saare shahr me mera........". umada gazal ke liye mubarakbaadMustfa Mahir https://www.blogger.com/profile/10331348847474946105noreply@blogger.com