tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post6400605796247406503..comments2024-03-08T17:02:04.713+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू, दीपावली विशेष तरही मुशायरे में आज तीन और शायरों से सुनते हैं उनकी ग़ज़लें श्री मुकेश कुमार तिवारी, श्री धर्मेंद्र कुमार सिंह सज्जन और प्रकाश अर्श ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger33125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-27732379022060487452011-10-22T19:37:08.389+05:302011-10-22T19:37:08.389+05:30आपके जगमगाते इस ब्लॉग में
दीपक से शेर टिमटिमाते ह...आपके जगमगाते इस ब्लॉग में <br />दीपक से शेर टिमटिमाते हर सूँ .....मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-43750955481696445762011-10-21T18:59:30.901+05:302011-10-21T18:59:30.901+05:30मुकेश जी की ग़ज़ल ने तो दिल लूट लिया।
बद्दुआ चाँदनी....मुकेश जी की ग़ज़ल ने तो दिल लूट लिया।<br />बद्दुआ चाँदनी.... में जो कल्पना है वो लाजवाब है।<br />बहुत बहुत बधाई उन्हें इस ग़ज़ल के लिए‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-605302019033044012011-10-21T18:49:10.226+05:302011-10-21T18:49:10.226+05:30गजब की गजल कही है अर्श जी ने।
सब्ज़ दूबों से.... जो...गजब की गजल कही है अर्श जी ने।<br />सब्ज़ दूबों से.... जो समाँ बाँधा है वो तेरी यादों..., जिस्म से.... होता हुआ हमने गुल्लक में.... पर पूरी तरह जवान हुआ है और हर शे’र पर और ऊपर चढ़ता हुआ मकते पर जो उँचाई प्राप्त की है, इसके लिए बहुत बहुत बधाई अर्श जी को।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-88738486949856367182011-10-21T18:46:11.682+05:302011-10-21T18:46:11.682+05:30राजीव भरोल जी, नीरज गोस्वामी जी,शार्दूला जी, दिगंब...राजीव भरोल जी, नीरज गोस्वामी जी,शार्दूला जी, दिगंबर नासवा जी, सौरभ जी, वंदना जी, सुलभ जी, अंकित जी, मुकेश जी, तिलक राज जी, अश्विनी जी, कंचन जी, वीनस जी, इस्मत जी, चैन सिंह जी, नवीन भाई, देवी नागरानी जी, गौतम जी और सौरभ पांडेय जी, अश’आर आपको पसंद आए लिखना सार्थक हुआ। इस ज़र्रानवाजिश का बहुत बहुत शुक्रिया।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-10969772460540844612011-10-21T11:54:57.432+05:302011-10-21T11:54:57.432+05:30पंकजजी की भूमिका समाँ सा बाँध देती हैं. प्रतिदिन अ...पंकजजी की भूमिका समाँ सा बाँध देती हैं. प्रतिदिन अलग-अलग तरह और तासीर की चित्रकारी एक अभिनव प्रयोग है जो पंकजजी की कलाप्रियता को उजागर कर रही है. <br /><br />धर्मेन्द्रजी को सुनता रहा हूँ. आज फिर मुग्ध हुआ हूँ.<br />फूल हैं आग के खिले हर सू<br />रौशनी की महक बहे हर सू<br />वाह-वाह ! क्या सोच, क्या अंदाज़ ! आतिशबाज़ी की चकाचौंध, दीवटों की नरम रौशनी और ये दिलकश नज़ारा ! बहुत खूबसूरत मतला है खुदही मोहक महक बिखेरता हुआ.. ओह्ह !! इस मतले पर ढेरों-ढेरों बधाइयाँ. <br />पूरी ग़ज़ल खूबसूरत बन पड़ी है पर मुझे जो शे’र विशेषरूप से पसंद आये -<br />लौट कर मायके से वो आईं<br />दीप खुशियों के जल उठे हर सू<br /><br />वो दबे पाँव आज आया है<br />एक आहट सी दिल सुने हर सू<br /><br />दूसरों के तले उजाला कर<br />ये अँधेरा भी अब मिटे हर सू<br />और मतले पर कुछ कहना नहीं, चुपचाप गुनना बेहतर. धर्मेन्द्रजी एक कामयाब कोशिश के लिये पुनश्च बधाइयाँ.<br /><br />प्रकाश अर्शजी की पूरी ग़ज़ल गहरी सोच, आम व्यावहारिकता और रोज़ की ज़िन्दग़ी भरी रुमानियत से लबरेज़ है. दिल के करीब हैं सभी अश’आर. मतले में शब की रुमानियत खुल के निखर आयी है. बहुत अच्छे. आपके जिन अश’आर ने विशेष रूप से प्रभावित किया -<br />तेरी यादों के... हैं पड़े हर सू<br />जिस्म से आसमान... लबों का ये हर सू<br />हमने गुल्लक में... रतजगे हर सू<br />कितनी पाक़ीज़ा... दिखे हर सू<br />होके शामिल... फिरे हर सू <br />मक्ता - ग़म भी सजदे.., उठे हर सू<br />अरे, सारे शे’र सूचीबद्ध हो गये क्या ! अर्शभाई, आपको अनेकानेक बधाइयाँ. मुग्ध हूँ.<br /><br />भाई मुकेशजी की ग़ज़ल सीधी ज़ुबान का एक उम्दा नमूना है. ऐसे अश’आर देर तक सात्विक पिनक देते हैं. <br />जो अश’आर विशेष पसंद आये हैं -<br />यूँ मिजाज-ए-खिजां... तके हर सू<br />घोंसले फिर... सजे हर सू<br />बद्दुआ चाँदनी... ढले हर सू<br />कश्तियों को किनारे... उठे हर सू<br /><br />तीनों शायरों को मेरा सादर अभिनन्दन. <br /><br />--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-3628727107037324832011-10-21T11:48:34.216+05:302011-10-21T11:48:34.216+05:30हर तरही के साथ ये जे अजब-गजब की पेंटिंग लगा रहे है...हर तरही के साथ ये जे अजब-गजब की पेंटिंग लगा रहे हैं आप, क्या कहें ...अद्भुत |<br /><br />धर्मेन्द्र जी की तरही खूब भाई| मायके वाला शेर तो सचमुच बेमिसाल है| ...और मकता भी एकदम हट के |<br /><br />अर्श के शेर तो पहले ही फोन पर सुन चुका था| एक बार फिर से जबरदस्त लुत्फ आया| बहुत ही सुंदर बिम्ब बांधे हैं शाहज़ादे ने | इश्क़ मे डूबा हुआ शायर ....हाय रे , लबो के लम्स को जिस्म से आसमान तक बिखरे होने की बात...उफ़्फ़! जीयो!<br /><br />मुकेश जी तो खैर लिखते ही लाजवाब हैं, जितने सुंदर मुक्त छंद में उतना ही छंद बद्ध भी...वाह, क्या बात है| छानदानी के बददुआ वाली बात फिर उसका शबनम में ढलने की सोच ...तालियाँ तालियाँ!!!!गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-18203135299495106072011-10-21T08:59:04.805+05:302011-10-21T08:59:04.805+05:30यूं बिछे आज आइने हर सू
आसमाँ सी जमीं दिखे हर सू
वा...यूं बिछे आज आइने हर सू<br />आसमाँ सी जमीं दिखे हर सू<br />वाह क्या कहने धर्मेंद्र कुमार जी? बहुत खूब ! <br />प्रकाश अर्श <br />जिस्म से आसमान तक बिखरा <br />लम्स तेरे लबों का ये हर सू <br />सोच की उड़ान हदों की सरहदें ढूँढ रही है!!! वाह!<br /> <br />मुकेश कुमार तिवारी का यह शेर <br />यूँ मिजाज-ए-खिजां बदल ही गया <br />अब बहारों को क्यूं तके हर सू <br />दीपावली की शुभकामनाओं के साथ<br />देवी नागरानीDevi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-63166286174802493242011-10-21T08:48:48.344+05:302011-10-21T08:48:48.344+05:30धर्मेन्द्र भाई आप की कविताओं को, छंदों को ग़ज़लों को...धर्मेन्द्र भाई आप की कविताओं को, छंदों को ग़ज़लों को पढ़ता रहा हूँ, और उन का प्रशंसक भी हूँ| एक और खुबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ| आसमां वाले शेर की कल्पना बेहद रोचक है| वो दबे पाँव, दूसरों के तले, वाले शेर भी ध्यानाकर्षण करते हैं| 'राजा कौ तेल जरै, मसालची कौ जी" वाली कहावत को आख़िरी शेर में उतारने की शानदार कोशिश|<br /><br />सुबीर जी के एक और शिष्य प्रकाश सिंह अर्श, 'वस्ल' वाले शेर पर सैंकड़ों शेर क़ुर्बान| ग़ज़ल का हर शेर अपनी रूमानियत खुद बयाँ कर रहा है| इस ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पड़ रहे हैं| आप अपने उस्ताद का नाम रोशन कर रहे हैं प्रकाश भाई| दिक्क़त ये आ रही है कि किस शेर को कोट करूँ, और सब को कट पेस्ट करना तो शायर की मेहनत के साथ मज़ाक साबित होगा| लिहाजा पूरी की पूरी ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारक़बाद|<br /><br />कुछ नयी बात अब चले हर सू - क्या बात है मुकेश भाई| 'घोंसले फिर बसेंगे शाखों पर' के अलावा 'बद्दुआ चान्दनी को किसने दी" वाला शेर भी दिमाग़ की घंटी बजा गया| बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-384366300812915552011-10-21T07:58:45.721+05:302011-10-21T07:58:45.721+05:30ये हैं ग़ज़लें...
एक से बढ़कर एक...
अरसे बाद ऑन लाइ...ये हैं ग़ज़लें...<br />एक से बढ़कर एक...<br />अरसे बाद ऑन लाइन मुशायरे में इस तरह की स्तरीय ग़ज़लें पढ़ीं हैं...<br />प्रकाश अर्श जी ने तो कहर ढा दिया हैं..<br />बिलकुल साँचे में ढली ग़ज़ल कही है..<br />उस्तादाना...चैन सिंह शेखावतhttps://www.blogger.com/profile/18079689283863767097noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-15712492791406921422011-10-21T07:19:10.020+05:302011-10-21T07:19:10.020+05:30दूसरों के तले उजाला कर
बहुत ख़ूब धर्मेंद्र जी !!...दूसरों के तले उजाला कर <br /> बहुत ख़ूब धर्मेंद्र जी !!<br /><br />धूप की धम्कियों से क्या डरना <br />वैसे तो पूरी ग़ज़ल अच्छी है लेकिन ये शेर ज़्यादा आकर्षित करता है<br />वाह !!<br /><br />गीत होंठों पे कुछ नज़र आएं<br />बहुत बढ़िया मुकेश जी !!इस्मत ज़ैदीhttps://www.blogger.com/profile/09223313612717175832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-21236221234711842592011-10-20T23:04:17.477+05:302011-10-20T23:04:17.477+05:30प्रकाश अर्श
तेरी यादों के सब हसीं मंज़र
मेरे कमरे ...प्रकाश अर्श<br /><br />तेरी यादों के सब हसीं मंज़र<br />मेरे कमरे में हैं पडे हर सू<br /><br />हमने गुल्लक में जो सहेजे थे <br />चल बिखेरें वो रतजगे हर सू<br /><br />कितनी पाकीज़ा हो गईं आंखें<br />तू ही तू बस मुझे दिखे हर सू<br /><br />हो के शामिल अब उसकी खुश्बू में <br />मेरी दीवानगी फिरे हर सू<br /><br />ग़म भी सज़दे मे जब हुआ शामिल<br />दीप खुशियों के जल उठे हर सू <br /><br />स्पीचलेस, मेरे पास वो शब्द ही नहीं हैं जिनसे इन शेअर् की तारीफ़ कर सकूं <br /><br />जब मुझे कोई शेर बहुत पसंद आता है तो एक ही शब्द कहता हूँ <br /><br />"जिंदाबाद" मगर आज आपकी ग़ज़ल के लिए वो भी कम लग रहा है <br />इस रदीफ़ के साथ मुहब्बत के शेर, वो भी इस मेयार के आपकी उम्र का कोई युवा शायर लिख रहा है तो इसके लिए केवल एक काम ही बचता है कि ..<br /><br />.. हैड्स आफ टू यूंवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-55717804594807680372011-10-20T22:50:33.273+05:302011-10-20T22:50:33.273+05:30मुकेश कुमार तिवारी जी,
दीप खुशियों के जल उठे हर स...मुकेश कुमार तिवारी जी,<br /><br />दीप खुशियों के जल उठे हर सू<br />हैं चरागों के सिलसिले हर सू<br /><br />सुन्दर मतले से शुरुआत हुई है <br /><br /><br />घोंसले फिर बसेंगे शाखों पर <br />अब नयी तान ये सजे हर सू<br />अचानक हरिवंश राय बच्चन जी की किताब "नीद का निर्माण फिर फिर " की याद हो आई, बढ़िया शेर है <br /><br />जैसे चाहोगे दुनिया बदलेगी<br />बात ये गूंज अब उठे हर सू<br />आशावादिता से लबालब भरपूर शेर कहा है मुकेश जी बहुत खूब <br /><br />कश्तियों को किनारे मिल जायें<br />दिल में इक मौज ये उठे हर सू <br />वाह वाह वाहवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53038783775669513512011-10-20T22:47:52.661+05:302011-10-20T22:47:52.661+05:30श्री धर्मेंद्र कुमार सिंह सज्जन
लौट कर मायके से ...श्री धर्मेंद्र कुमार सिंह सज्जन<br /><br />लौट कर मायके से वो आईं<br />दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू<br /><br />वाह वा,, क्या लाजवाब गिरह बांधी है दिल खुश हो गया <br /><br />वो दबे पाँव आज आया है<br />एक आहट सी दिल सुने हर सू<br /><br />बहुत खूब <br /><br />नाम दीपक का हो रहा ‘सज्जन’<br />तन मगर तेल का जले हर सू<br />लाजवाब मक्ता <br /><br />बहुत प्यारी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाईवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53130757055465507702011-10-20T22:42:17.339+05:302011-10-20T22:42:17.339+05:30बाजारवाद के लिए तो बार बार "सदी का महानायक......बाजारवाद के लिए तो बार बार "सदी का महानायक..." कहानी याद आती है, एक बार फी से पढूंगा आज <br /><br />टसर सिल्क की महीन और कारीगरी तो लाजवाब है <br /><br />दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ<br />बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ<br /><br />इस शेर में तो न जाने कितने शेर छुपे हुए है <br />लाजवाब शेर हैवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-4728293143438842492011-10-20T21:52:55.349+05:302011-10-20T21:52:55.349+05:30धर्मेंद्र जी का ये शेर
नाम का दीपक का हो रहा सज्ज...धर्मेंद्र जी का ये शेर<br /><br /><b>नाम का दीपक का हो रहा सज्जन<br />तन मगर तेल का जले हर सू</b><br /><br />क्या बात है, वो शेर याद आ गया<br /><br /><b>एक धागे का साथ देने को,<br />मोम का रोम रोम जलता है।</b><br /><br />और हमारे अनुज.....<br /><br /><b>तेरी यादों के सब हँसीं मंजर,<br />मेरे कमरे में हैं पड़े हर सू...... :) :) :) :)</b><br /><br />फिर<br /><br /><b>कितनी पाक़ीज़ा हो गईं आँखें,<br />तू ही तू, बस मुझे दिखे हर सू</b><br /><br />इस तरह के शेर मुझे यूँ भी पसंद ही हैं।<br /><br /><b>ग़म भी खुशीयों में जब हुआ शामिल,<br />दीप खुशियों के जल उठे हर सू।</b><br /><br />तुम जियो और तुम्हारी लेखनी जिये..... खूब खूब आशीष<br /><br />मुकेश तिवारी जी का शेर<br /><br />बद्दुआ चाँदनी को किसने दी,<br />बन के शबनम जो यूँ ढले हर सू.....कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53929568318142199062011-10-20T19:43:56.681+05:302011-10-20T19:43:56.681+05:30यूं बिछे आज आइने हर सू
आसमां से जमीं दिखे हर सू
...यूं बिछे आज आइने हर सू<br />आसमां से जमीं दिखे हर सू<br /> ---धमेंद्र सज्जन<br /><br />कितनी पाकीज़ा हो गयी हैं आँखे<br />तू ही तू बस मुझे दिखे हर सू<br /> ---प्रकाश अर्श<br /><br />कश्तियों को किनारे मिल जायें<br />दिल में इक मौज ये उठे हर सू<br /> ---मुकेश तिवारी<br /><br />तीनों शायरों के ये उपरोक्त शेर मुझे वजनी और काबले गौर लगे !Ashwini Rameshhttps://www.blogger.com/profile/16656626915061597542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-90031659269235343322011-10-20T19:30:49.607+05:302011-10-20T19:30:49.607+05:30आज के ये शेर विशेष पसंद आये:
श्री धर्मेंद्र कुमार...आज के ये शेर विशेष पसंद आये:<br /><br />श्री धर्मेंद्र कुमार सिंह सज्जन <br />फूल हैं आग के खिले हर सू <br />रौशनी की महक बहे हर सू<br />वो दबे पाँव आज आया है<br />एक आहट सी दिल सुने हर सू<br />दूसरों के तले उजाला कर<br />ये अँधेरा भी अब मिटे हर सू<br />नाम दीपक का हो रहा ‘सज्जन’<br />तन मगर तेल का जले हर सू<br />प्रकाश अर्श <br />सब्ज़ दूबों पे चाँद से हर सू <br />क़तरे शबनम के हैं बिछे हर सू <br />तेरी यादों के सब हसीं मंज़र <br />मेरे कमरे में हैं पडे हर सू <br />जिस्म से आसमान तक बिखरा <br />लम्स तेरे लबों का ये हर सू <br />हमने गुल्लक में जो सहेजे थे<br />चल बिखेरें वो रतजगे हर सू <br />कितनी पाकीज़ा हो गईं आंखें <br />तू ही तू बस मुझे दिखे हर सू <br />धूप की धमकियों से क्यूँ डरना, <br />हैं शज़र छतरियाँ लिये हर सू <br />हो के शामिल अब उसकी खुश्बू में <br />मेरी दीवानगी फिरे हर सू <br />ग़म भी सज़दे मे जब हुआ शामिल<br />दीप खुशियों के जल उठे हर सू <br />मुकेश कुमार तिवारी<br />दीप खुशियों के जल उठे हर सू <br />हैं चरागों के सिलसिले हर सू<br />घोंसले फिर बसेंगे शाखों पर <br />अब नयी तान ये सजे हर सू <br />गीत होठों पे कुछ नये आएं <br />कुछ नई बात अब चले हर सू <br />जैसे चाहोगे दुनिया बदलेगी <br />बात ये गूंज अब उठे हर सू <br />कश्तियों को किनारे मिल जायें <br />दिल में इक मौज ये उठे हर सूतिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-15438224084486018762011-10-20T17:55:02.486+05:302011-10-20T17:55:02.486+05:30रसिक श्रोताओं अगर आपको स्व. कुंदन लाल सहगल साहब की...रसिक श्रोताओं अगर आपको स्व. कुंदन लाल सहगल साहब की आवाज़ में "दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ...." जिसका जिक्र गुरुदेव ने इस पोस्ट के शुरू में किया है, सुनना है तो यहाँ क्लिक करें और आनंद लें:- <br /><br /><br />http://ww.smashits.com/k-l-saigal-ghazals/duniya-men-hoon/song-68580.htmlनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-37673054568858684722011-10-20T17:29:59.154+05:302011-10-20T17:29:59.154+05:30गुरूवर,
सज्जन जी कभी न्यूक्लीयर साईंस तो कभी कैमे...गुरूवर,<br /><br />सज्जन जी कभी न्यूक्लीयर साईंस तो कभी कैमेस्ट्री की बातें करते है आज सुन्दर सी गज़ल .....कमाल है :-<br /><br />"मिट न पाये वो तम अकेले से <br />जो तुम्हारे तले छुपे हर सू "<br /><br />संदेश देता हुए शे’र है।<br /><br />प्रकाश "अर्श" वैसे ही अपने ऊम्दा अश’आरों के लिए जाने जाते हैं एक बेहतरीन गज़ल पढ़ने को मिली......अब गुनगुनायेंगे भी। <br /><br />इस गज़ल के कई शे’र दिअल के बहुत करीब से लगे मसलन गुल्लक में सहेजे..., जिस्म से आसमान तक..., सब्ज दूबों पे चाँद...क्या कोमल भाव है नर्म दूब की छुअन सा....<br /><br />सादर,<br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-30793839465429125102011-10-20T17:28:13.163+05:302011-10-20T17:28:13.163+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.मुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-2311065779773257622011-10-20T17:14:28.983+05:302011-10-20T17:14:28.983+05:30अर्श भाई, पार्टी दे दो, बहुत खूब ग़ज़ल कही है.
हर शे...अर्श भाई, पार्टी दे दो, बहुत खूब ग़ज़ल कही है.<br />हर शेर बहुत कारीगरी से बुना है, हम्म......लम्बी रेस के घोड़े हो.<br /><br />क्या खूब मतला कहा है, थोडा जटिल लगा जब समझा तो आनंद आ गया.<br /><br />तेरी यादों के सब हसीं मंज़र...........अहा, वाह वा<br /><br />हमने गुल्लक में जो सहेजे थे.......... अच्छा शेर है<br /><br />कितनी पाकीज़ा हो गईं आंखें...........वाह वा<br /><br />धूप की धमकियों से क्यूँ डरना...................... जिंदाबाद जिंदाबाद, खतरू शेर<br /><br />गिरह भी खूब बाँधी है.<br /><br />हासिल-ए-ग़ज़ल शेर<br /><br />हो के शामिल अब उसकी खुश्बू में <br /><br />मेरी दीवानगी फिरे हर सू<br /><br /><br />आज का दिन हसीं हो गया, आपकी ग़ज़ल अर्श छु रही है.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-39661706750619584812011-10-20T17:09:36.450+05:302011-10-20T17:09:36.450+05:30वाह वा, गुरुदेव
बाजारवाद से निबटने का उपाय बहुत अच...वाह वा, गुरुदेव<br />बाजारवाद से निबटने का उपाय बहुत अच्छे से बता दिया, शुरूआती पंक्तियों ने आपकी कहानी "सदी का महानायक", की याद दिला दी, जो इसी बाजारवाद का एक चेहरा दिखाती है. उस पे अकबर इलाहाबादी का शेर..........उफ्फ्फ<br /><br />उड़ीसा की टसर सिल्क पर पट्टा पेंटिंग से बने गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की तस्वीरें कमाल हैं. भारतीय कला के विभिन्न रूप हर तरही में निखर रहे हैं.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-21817421682561808682011-10-20T17:09:08.411+05:302011-10-20T17:09:08.411+05:30श्री सज्जन जी, बधाई हो.
बहुत खूब गिरह बाँधी है. व...श्री सज्जन जी, बधाई हो.<br />बहुत खूब गिरह बाँधी है. वाकई कुछ कहने के लिए शब्द नहीं मिल रहे, बस बारहां पढ़े जाओ, यही लग रहा है और यही कर रहा हूँ.<br />वो दबे पाँव......अच्छा शेर बना है<br />मक्ता भी बहुत क्लास्सिक लिखा है.<br />बधाई स्वीकारें<br /><br />श्री मुकेश जी, अच्छी गिरह बाँधी है.<br />गीत होंठों पे.............अच्छा शेर कहा है<br />बद्दुआ चांदनी को................ वाह वा<br />कश्तियों को किनारे मिल...........वाह वा<br />अच्छी ग़ज़ल बनी है.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-85243669902099751232011-10-20T14:04:47.648+05:302011-10-20T14:04:47.648+05:30-- श्री मुकेश तिवारी जी के ग़ज़ल में "कुछ नयी...-- श्री मुकेश तिवारी जी के ग़ज़ल में "कुछ नयी बात चले...." सीधे दिल को छू रहे हैं. "कश्तियों को किनारे मिल जाए..." आमीन !<br /><br />आप तीनो को बहुत बहुत बधाई!!!Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49081056829503997842011-10-20T14:04:02.665+05:302011-10-20T14:04:02.665+05:30-- जमीन पर रहते हुए अर्श को छूने की कोशिश का क्या...-- जमीन पर रहते हुए अर्श को छूने की कोशिश का क्या मतलब होता है ये अर्श भाई ने फिर से साबित किया है.<br />"तेरी यादों के सब हसीं मंज़र...." "कितनी पाकीजा हो गयी आँखें...." "गम भी सजदे में जब हुआ शामिल..." क्या कहने...Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.com