tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post476325170706272268..comments2024-03-29T19:13:12.821+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: सब कुछ तेरे नाम लिखा कर बैठ गए, अपने दोनों हाथ्ा कटा कर बैठ गए, मौसम दरवाज़ों पर दस्तक देते थे , परदों का चुपचाप गिरा कर बैठ गएपंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-63098562690818265832007-12-13T20:36:00.000+05:302007-12-13T20:36:00.000+05:30निराला अंदाज़ हैऔर सुगम भी. क्या ऐसा हो सकता है कि...निराला अंदाज़ हैऔर सुगम भी. क्या ऐसा हो सकता है कि इस्किएक फाइल हो और हम जब चाहें वहां जाकर फिर फिर इसका लाभ उठा सकें. अभिनव कि बात से मैं बिल्कुल शामिल रे हूँ. क्या अपनी लिखी ग़ज़ल को दुरुस्त करने के लिए इस मंच कि मदद ली जा सकती है.<BR/>सादर <BR/>देवीDevi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-69813183529410250542007-12-12T12:27:00.000+05:302007-12-12T12:27:00.000+05:30आदरणीय गुरुदेव पूरे दो घंटे लगे इस क्लास को पूरा क...आदरणीय गुरुदेव पूरे दो घंटे लगे इस क्लास को पूरा करने में. <BR/><BR/>आपका बहुत धन्यवाद, मुझे नही लगता है की बड़े शायरों के उस्ताद भी उनको कभी इतने विस्तार से ग़ज़ल की बारीकियों को समझाते होंगे. अब इसके बाद भी यदि हम ग़लत ग़ज़ल लिखें तो फिर सारा दोष हमारी अल्पज्ञता का ही होगा.अभिनवhttps://www.blogger.com/profile/09575494150015396975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-10187403027943127432007-12-06T09:26:00.000+05:302007-12-06T09:26:00.000+05:30हाजिरी लगा लीजिये सर जी-अजयहाजिरी लगा लीजिये सर जी<BR/><BR/>-अजयAjay Kanodiahttps://www.blogger.com/profile/05724516220148761583noreply@blogger.com