tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post2185184534740887677..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: हर आँख में उदासी,हर दिल बुझा-बुझा है, ये भी कोई सफ़र है या कोई बद्दुआ है, आइये दो गुणी रचनाकारों द्विजेन्द्र द्विज जी और सौरभ शेखर से सुनते हैं उनकी ग़ज़लें ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger29125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-14147847084369242842013-03-24T12:40:23.855+05:302013-03-24T12:40:23.855+05:30पारुल सिंह जी
आभारपारुल सिंह जी<br />आभारद्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-79587754257357463312013-03-24T12:39:20.622+05:302013-03-24T12:39:20.622+05:30सुलभ भाई साहब
ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा और
स्नेह क...सुलभ भाई साहब<br />ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा और <br />स्नेह के लिए आभारी हूँद्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-69397434828213895512013-03-24T12:38:27.010+05:302013-03-24T12:38:27.010+05:30सुलभ भाई साहब
ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा और
स्नेह क...सुलभ भाई साहब<br />ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा और <br />स्नेह के लिए आभारी हूँद्विजेन्द्र ‘द्विज’https://www.blogger.com/profile/16379129109381376790noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-8331736179414966442013-03-08T13:44:23.082+05:302013-03-08T13:44:23.082+05:30bahut hi sundarbahut hi sundardr.mahendraghttps://www.blogger.com/profile/07060472799281847141noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-89710614146393472142013-03-07T16:35:13.863+05:302013-03-07T16:35:13.863+05:30आज के पोस्ट की भूमिका भी संग्रहणीय है। पंकज सुबीर ...आज के पोस्ट की भूमिका भी संग्रहणीय है। पंकज सुबीर सर का ह्रदय से अभिनन्दन कि वे अपने अति व्यस्त रचनात्मक समय में से हमारी ग़ज़लों के लिए भी वक्त निकाल रहे हैं।द्विज सर की पूरी ग़ज़ल बहुत उम्दा हुई है। दिली दाद हाज़िर है! मेरी ग़ज़ल पर की गई टिप्पणियों और उत्साह वर्धन के लिए सभी भाइयों और अग्रजों का अनुग्रही हूँ।सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-11458713057569321112013-03-07T12:43:10.104+05:302013-03-07T12:43:10.104+05:30Meri tippani shayad spam me chali gai.Meri tippani shayad spam me chali gai.सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-11650670151511771492013-03-05T20:42:01.169+05:302013-03-05T20:42:01.169+05:30श्री द्विजेन्द्र द्विज जी:
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मूल्...श्री द्विजेन्द्र द्विज जी:<br />------------------<br />मूल्यों के गिरावट ही की बात उभर कर आ रही है, द्विजेन्द्र जी के अश'आर में . आज की ज़िंदगी की हक़ीक़त बयान करती ग़ज़ल .शब्द 'चुटकुला' इन्होने अनोखे सन्दर्भ में प्रयोग किया है:<br />अब ख़त्म हो चुका है जादू तमाम उसका <br />जिसे सुन रहे हो अब वो सस्ता-सा चुटकुला है<br /><br />मुझे भी 'जनतंत्र' के सन्दर्भ में यह शब्द प्रयोग करने की प्रेरणा मिली . द्विज् जी को धन्यवाद देते हुए पेश कर रहा हूँ: <br /> <br />अपना लिखा हुआ है, हम खुद ही पढ़ रहे है,<br />जनतंत्र अबतो संता-बनता का चुटकुला है !<br /><br />सौरभ शेखर:<br />----------<br />इन बेड़ियों से यारी कर के मैं काट लूँगा <br />'ये क़ैदे बामशक्कत जो तूने की अता है'<br /><br />हमारे समझौतावादी चरित्र की बहुत अच्छी मिसाल पेश करता है सौरभ शिखरजी का यह शेर. Mansoor ali Hashmihttps://www.blogger.com/profile/09018351936262646974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-15572246031084647522013-03-05T20:33:07.913+05:302013-03-05T20:33:07.913+05:30उपर की भूमिका हम सब का अस्ल का चेहरा है!ख़ैर .... ...उपर की भूमिका हम सब का अस्ल का चेहरा है!ख़ैर .... <br />बडे भाई द्विज जी कि ग़ज़लों के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता ! क़माल की ग़ज़ल है यह ! हर शे'र बारीक़ है मह्फ़ूज़ रखने लायक़ है हर शे'र ! वाह वाह ... एक निहायत ही क़ामयाब ग़ज़ल है !बहुत बधाई !<br /><br />सौरभ ने जो गिरह लगाई है वो क़माल की है ! सौरभ ने इधर बहुत ही अच्छी ग़ज़ल लिखें हैं! एक वाकया ये कि सौरभ आज कल चर्चे में है और यह इस बात की ज़मानत है कि वह अच्छी ग़ज़ल लिख रहा है ! इस तरही में भी एक बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिये ! सौरभ को बहुत बधाई !<br /><br />"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-82032067918324212742013-03-05T15:30:53.987+05:302013-03-05T15:30:53.987+05:30हम सब का 'मैं' है जिस दिन 'हम' हो ...हम सब का 'मैं' है जिस दिन 'हम' हो जायेगा, उस दिन से समस्याएँ धीरे-धीरे कर के बगलें झाँकने लगेंगी। यूँ तो हर एक बदलाव की शुरुआत खुद से करना बहुत कष्ट दायक होता है जब कि हम भी ढल चुके होते हैं उसी में, लेकिन उस साँचे को तोड़ कर एक लहर बनना ही वो है जो हम सब बनना चाहते हैं मगर हम बन नहीं पाते।<br /><br />द्विज जी ने खूबसूरत ग़ज़ल कही है और खासतौर पर उनका कहा का ये शेर बेहद पसंद आया,<br />दरअस्ल खाइयाँ हैं जिनपे है नाज़ हमको<br />कैसी बुलन्दियाँ हैं हमने जिन्हें छुआ है<br /><br />सौरभ भाई मतला बहुत खूब कहा है, और "बाज़ार में ...........", वाला शेर भी बहुत उम्दा हुआ है।<br />Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-59663388885464275782013-03-05T13:58:51.291+05:302013-03-05T13:58:51.291+05:30आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 8 मार्च की नई ...आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 8 मार्च की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...<br /> आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।<br />भूलना मत <br /><br />htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com<br /> इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।<br /><br />सूचनार्थ।kuldeep thakurhttps://www.blogger.com/profile/11644120586184800153noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-54650874605780335492013-03-05T13:08:17.629+05:302013-03-05T13:08:17.629+05:30द्विज जी की तो हर ग़ज़ल शानदार होती है। ये भी अपवाद ...द्विज जी की तो हर ग़ज़ल शानदार होती है। ये भी अपवाद नहीं है। बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है और ऊपर से सुबीर जी की टिप्पणी तो सोने पर सुहागा है। <br />सारे बदन में जिसका...<br />दर’अस्ल खाइयाँ हैं...<br />अब खत्म हो चुका है...<br />मुझसे ही पिट रही हैं...<br />बहुत ही खूबसूरत शे’र हैं। मत्ला और गिरह तो लाजवाब है ही। बहुत बहुत बधाई द्विज जी को।<br /><br />सौरभ शेखर तो ग़ज़ल की दुनिया में तेजी से उभरता हुआ नाम है। शानदार ग़ज़लों से सबको अपना मुरीद बना रहे हैं सौरभ जी। शानदार ग़ज़ल कही है उन्होंने। गिरह भी बेहतरीन है। बहुत बहुत बधाई उन्हें इन शानदार अश’आर के लिए।<br />‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-24574851825395011552013-03-05T10:26:34.547+05:302013-03-05T10:26:34.547+05:30सड़क से हाइवे पर ला खड़ा किया है..... वाह दिगंबर भ...सड़क से हाइवे पर ला खड़ा किया है..... वाह दिगंबर भाई वाह क्या मिसाल दी है दिल खुश हो गया, इसके बाद कहने को कुछ बचा ही नहीं। हम जैसे तो जी उनके सामने पिछड़े से किसी गाँव की पगडंडियों जैसे हैं। नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-68659158434868668292013-03-05T01:18:05.205+05:302013-03-05T01:18:05.205+05:30//हम चाहते हैं कि प्रदेश का बिजली मंत्री इमानदार ह...<i>//हम चाहते हैं कि प्रदेश का बिजली मंत्री इमानदार हो किन्तु हमारे इलाके का बिजली विभाग का लाइनमैन भ्रष्ट हो..//</i><br /><br />और, हमारी सोच, हमारी मानसिकता, अव्यावहारिकता सबकुछ किसी सुगठित मणिभ की तरह सामने स्पष्ट है ! <br />बहुत खूब !<br /><br /><br />आजकी ग़ज़लें उन दो शायरों की हैं जिन्हें हम ’उन्होंने एक खास शैली विकसित कर ली है’ के साथ जानते-पढ़ते हैं. <br /><br />भाई द्विजेन्द्र जी की ग़ज़लों को मैं जब भी पढ़ता हूँ, जहाँ भी पढ़ता हूँ, मन देर तक उक्त ग़ज़ल के वातावरण में होता है. <br />अभीकी ग़ज़ल के सारे अश’आर झिंझोरते हुए हैं. हर शेर जैसे हामी लेता हुआ है. मतले और गिरह के शेर अपनी जगह, जो अश’आर विशेष रूप से विशिष्ट लगे, वे हैं - <br /><i>सारे बदन में जिसका.. . </i><br /><i>दरअस्ल खाइयाँ हैं जिनपे है नाज़.. . </i><br /><i>अब खत्म हो चुका है.. .</i><br /><i>मुझसे ही पिट रही हैं.. . </i><br />बहुत कुछ समझने के लिए है, बहुत कुछ जानने के लिए है. बहुत-बहुत बधाई, भाईजी. <br /><br /><br />भाई सौरभ शेखर की ग़ज़ल का अंदाज़ बतियाता हुआ अंदाज़ लगा है हमें. यही तो ग़ज़लों का गुणधर्म भी है. इस लिहाज से सौरभ शेखर भाई से हम खूब सुनते हैं. और वे खूब सुनाते हैं. <br />आज की ग़ज़ल का मतला सबके दिलों के कहे की नुमाइन्दग़ी करता है. ये कहाँ आगये हम.. कहने के जैसा !! <br />और खूब-खूब बधाई गिरह लगाने के लिए. कितनी आसानी से कहा हुआ शेर ! वाह-वाह !<br /><i>बाज़ार में खुशी के.. . </i><br /><i>मजबूरियाँ समझिये.. . </i><br /><i>जो लोग जीतते हैं .. . .</i> यह शेर तो गोया सौरभ शेखर भाई के माहौल से उपजा शेर है ! ... :-))<br />बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ भाई.<br /><br />Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-32859541110580434312013-03-05T00:07:44.478+05:302013-03-05T00:07:44.478+05:30द्विजेन्द्र द्विज जी की रगों में शायरी का फ़न जीता...द्विजेन्द्र द्विज जी की रगों में शायरी का फ़न जीता है। शेर-ओ-शायरी को जितना मैने समझा उसके अनूसार मैं एक अच्छा शेर उसको मानता रहा हूँ जो शब्दार्थ में भी पूर्ण हो और भावार्थ में उतरने को आमंत्रित करे। इसी बात को लेकर द्विज जी के शेर चलते हैं। चार मत्ले के शेर लिये यह ग़ज़ल भी इसकी तस्दीक करती है। <br />‘किसके लिये है मुमकिन.......’ पर यही कहूँगा कि व्यवस्था कितनी भी चरमराई हुई हो, कुछ लोग इतनी मज़बूत रीढ़ रखते हैं कि सर कॉंधे पे रहे। व्यवस्था का भार तो सही अर्थों में यही लोग उठाते हैं। <br />‘मुझसे ही पिट रही हैं ....’ निंरतर आत्मानिरीक्षण ही सतत् बदलाव ला सकता है। <br />सौरभ शेखर जी ने मतले में जो प्रश्न खड़ा किया शायद वह हर प्रबुद्ध नागरिक का प्रश्न है। <br />‘मजबूरियॉं समझिये, उस आदमी की साहब<br />कैसे उठाये सर, जो कर्जे़ तले दबा है’ <br />भी लगभग हर देशवासी की व्य्था-कथा है। <br />कुल मिला कर दोनों ग़ज़ल प्रभावकारी हैं। <br />तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-63529668804588388692013-03-04T21:35:53.030+05:302013-03-04T21:35:53.030+05:30अब आपकी ग़ज़ल के बारे में क्या कहूं आ. द्विज भाई ...अब आपकी ग़ज़ल के बारे में क्या कहूं आ. द्विज भाई साहब। सारी ग़ज़ल बहुत अच्छी। रोशनी वाला शे'र मेरे साथ है जो कह रहा है, मुझे रोशनी की सज़ा न दे। मैं चूंकि आपकी शायरी के पीछे के परिदृश्य का एक हिस्सा हूं इसलिए जानता हूं कि आपकी ग़ज़ल में जो संवेदना है वह अनुभूत है। इधर सौरभ शेखर भाई साहब की ग़ज़लें मुझे अपना बना रही हैं। आप दोनों को हार्दिक बधाई। <br />Navneet Sharmahttps://www.blogger.com/profile/17503086917617110754noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-1404854031275275092013-03-04T17:08:41.717+05:302013-03-04T17:08:41.717+05:30रूह तक आनंद आ गया इन अशआर को पढकर रूह तक आनंद आ गया इन अशआर को पढकर travel ufohttps://www.blogger.com/profile/15497528924349586702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-3142981111029500022013-03-04T16:57:59.564+05:302013-03-04T16:57:59.564+05:30सौरभ जी ने सभी शेर कमाल के कहे हैं ...
बाज़ार में ...सौरभ जी ने सभी शेर कमाल के कहे हैं ...<br />बाज़ार में सभी के ... बहुत ही सामयिक शेर है ... आज के बाजारवाद को रेखांकित करता <br />जो लोग जीतते हैं ... आज की व्यवस्था पे करार चोट करता है ये शेर ...<br />इन बेड़ियों से यारी ... जीवन में समझोता करना ही पड़ता है खुशी से करो या दुखी रह के ... खुशी से जीने की कला है ये शेर ... <br />पूरी गज़ल लाजवाब है सौरभ जी की ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-74054230427916231202013-03-04T16:41:50.913+05:302013-03-04T16:41:50.913+05:30द्विज जी उस्तादों के उस्ताद हैं ... उनकी गज़ल पे क...द्विज जी उस्तादों के उस्ताद हैं ... उनकी गज़ल पे कोई टिप्पणी करना सूरज को दिया दिखाने जैसा है ... खयालों के विस्तृत आकाश से नायाब शेर निकलते हैं उनकी कलम से ... हम जैसे या तो उसका अनद ले सकते हैं या कुछ न कुछ सीख सकते हैं ... इस गज़ल ने इस मुशायरे को सड़क से हाइवे पर ला खड़ा किया है ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-21379416182508779122013-03-04T16:34:32.241+05:302013-03-04T16:34:32.241+05:30एक बार फिर से इस भूमिका को आत्मसात करने का प्रयास ...एक बार फिर से इस भूमिका को आत्मसात करने का प्रयास कर रहा हूं ... अपने अंदर झाँकने का प्रयास क्योंकि मैं भी खुद को इन्ही लोगों में से एक पाता हूं अपने आप को ... खुद में बदलाव कब आएगा ये तो पता नहीं पर याद रखने का प्रयास निरंतर हो ऐसा सोचता हं ... तभी शायद बदलाव भी आ सके ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-61778053909634822092013-03-04T13:16:34.716+05:302013-03-04T13:16:34.716+05:30किसी कारण से फायर फाक्स में टिप्पणी नहीं दे पा रहा...किसी कारण से फायर फाक्स में टिप्पणी नहीं दे पा रहा हूँ!Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-19495679527954176022013-03-04T13:15:51.460+05:302013-03-04T13:15:51.460+05:30द्विज जी का मैं फैन हूँ. उनका गज़ल संग्रह 'जन ...द्विज जी का मैं फैन हूँ. उनका गज़ल संग्रह 'जन गण मन' कई बार पढ़ चुका हूँ. द्विज जी उस्ताद शायर हैं उनकी गज़लें जमीन से जुडी हुई होती हैं. इस गज़ल में भी द्विज जी ने हालात का सही चित्रण किया है. बहुत ही खूबसूरत गज़ल कही है. सभी शेर गजब के.<br />सौरभ जी की गज़ल भी कमाल है. बहुत ही प्यारा मतला और खूबसूरत गिरह. फिर "मजबूरियाँ समझिए..","बाजार में खुशी के..", "दुश्वारियां..." बहुत बढ़िया शेर हैं. बहुत ही अच्छी गज़ल. बहुत बहुत बधाई. Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-72062082697718457332013-03-04T13:04:08.835+05:302013-03-04T13:04:08.835+05:30हालिया दिनों में बड़ी तेजी से किसी शख्स ने अपना मु...हालिया दिनों में बड़ी तेजी से किसी शख्स ने अपना मुरीद बनाया है वो हैं "श्री सौरभ शेखर" <br />"बाज़ार" में से कितनी आसानी से ख़ुशी और ग़म को, दूध और पानी की तरह अलग कर दिया आपने। बहुत खूब वाह !!<br />"जो लोग जीतते हैं ..." ये मुझे रहस्मयी लग रहा है. दिमागी लड़ाइयों से दूर हमें वो ही पसंद आते हैं जो दिल से जीतने का जिगरा रखते हैं ... ग्लोबल वार्मिंग की भी खबर ली है आपने बातों बातों में। और मतला तो बस वो क्या कहते हैं "सुभान अल्लाह " एक आशा और उम्मीद भी है गिरह में, कि जब मुक्ति होगी सो होगी फिलवक्त तो सहजता से यारी कर लें ... हाँ भाई बिलकुल सफ़र को यादगार जो बनाना है तो क्यूँ न उत्साह से वक़्त काटा जाए, याराना निभाया जाये. बहुत सुन्दर। <br />Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-80242211881321503612013-03-04T13:02:40.744+05:302013-03-04T13:02:40.744+05:30श्री द्विजेन्द्र द्विज जी, क्यों हम सबके बीच आदरणी...<br />श्री द्विजेन्द्र द्विज जी, क्यों हम सबके बीच आदरणीय और बड़े भाई का दर्जा पाते है. ये तो पहले से ही स्पष्ट रहा है. <br />आज की ग़ज़ल अन्दर तक धंसती जा रही है। <br />मतला,,, वो जहर तो लहू में,,, अखबार और चैनल्स तो मुखौटो से भरे हैं। <br /><br />"इस तेज रौशनी में चुंधिया गयी है आँखे; इससे बड़ा बताओ क्या और हादिसा है." ये गागर में सागर है, एक तस्वीर में सारे दृश्य, समस्त वर्तमान। <br />"दरअस्ल खाइयां हैं जिनपे हैं नाज़ हमको ...." आइना दिखालाते हैं ये शे'र। कुछ याद आ गया " गुजरना चाहते हो तो गुजर जाओ नज़र बचाकर, मैं आइना हूँ अपनी जिम्मेदारी तो निभाऊंगा ही।" <br />"मुश्किल है हमारा इस साज़ से बहलना ..." ये आवाम और तमाम वोटरों का दर्द है. <br />"किसके लिए है मुमकिन ..." मजबूरियों की इन्तेहा है. <br />"मुझसे ही पिट रही है सारी मेरी दलीलें...." बहुत खूब कहा है आप ने . वाह सर जी वाह।<br />"जब इक नदी बनेंगे पलकों में कैद आंसू ..." ये सपने मैं अपने साथ ले जा रहा हूँ।।<br />Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-47652127588150216202013-03-04T12:18:40.255+05:302013-03-04T12:18:40.255+05:30गुरुदेव, आपकी भूमिका इतनी असरदार और सटीक है के बार...गुरुदेव, आपकी भूमिका इतनी असरदार और सटीक है के बार बार लगातार पढ़ रहा हूँ। कित्ती सच्ची बातें कहीं हैं आपने। बातें जिन्हें हम जानते तो हैं लेकिन उनके लिए कुछ करते नहीं। हम अपने स्वार्थ के बंदी हैं। नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-20862503404172710942013-03-04T12:18:36.372+05:302013-03-04T12:18:36.372+05:30मुझसे ही पिट रही हैं सारी मेरी दलीलें
मैं खुद खड़ा ...मुझसे ही पिट रही हैं सारी मेरी दलीलें<br />मैं खुद खड़ा हूँ जिसमें मेरा हि कटघरा है...नमन आपको और सुबीर साहब को जिनकी बदौलत ये ग़ज़ल हम तक पहुँची॥सतपाल ख़यालhttps://www.blogger.com/profile/18211208184259327099noreply@blogger.com