tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post1952397386646365100..comments2024-03-08T17:02:04.713+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: जुड़ गयी यारों की टोली, इस बरस जब दोस्त आये, और फिर से चहचहाई, गर्मियों की ये दुपहरी। भीषण गर्मी के इस दौर में सुनिये श्री तिलक राज कपूर जी की कूल कूल ग़ज़लें ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-60009858137027955392011-05-28T12:52:11.321+05:302011-05-28T12:52:11.321+05:30देर से आ रहा हूँ ब्लौग पर| व्यस्तता ही कुछ ऐसी रही...देर से आ रहा हूँ ब्लौग पर| व्यस्तता ही कुछ ऐसी रही|<br /><br />तिलक साब का दोनों मिसरों पे तरही लिखने की सोचना ही अपने-आप में बहुत बड़ी बात है| दोहराव का खतरा उत्पन्न हो जाता है| लेकिन उन्होने बखूबी निभाया है दोनों मिसरे को....सारे ही शेर अच्छे बन पड़े हैं|गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-72270649136928850602011-05-26T11:04:04.243+05:302011-05-26T11:04:04.243+05:30इंसान की जि़न्दगी का एक महत्वपूर्ण रूप है जिससे ...इंसान की जि़न्दगी का एक महत्वपूर्ण रूप है जिससे सभी परिचित हैं। छोटा बच्चा केवल प्यार की भावना चाहता है, फिर उम्र के साथ-साथ उसकी चाह भटकने लगती है और फिर एक समय आता है जब उसकी चाह सिमटने लगती है और सिमटते-सिमटते फिर वह केवल प्यार के भाव को महत्व देने लगता है। <br />हृदय से आभारी हूँ आप सबका, पढ़ने और सराहने के लिये।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49559922407489614782011-05-25T18:14:14.565+05:302011-05-25T18:14:14.565+05:30तिलक राज जी की ग़ज़ल पढ़ कर मन झूम गया ... बहुत दे...तिलक राज जी की ग़ज़ल पढ़ कर मन झूम गया ... बहुत देर तक पुरानी यादों में धकेल कर रक्खा उनके शेरों ने .... सात गिप्पी और लंगड़ी ... वाह तिलक जी ... कितने ही बचपन के खेल याद करा दिए आपने ... अब तो बच्चे भी मज़ाक उड़ाते हैं अगर उनसे इन खेलों को बात करो तो .... <br />और आज तो एक के साथ एक फ्री .... मज़ा ही आ गया ... इस अंदाज़ पर ... गुरुदेव ये मुशायरा अब जवानी की गर्मी में झूम रहा है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-79170100998038160112011-05-25T02:42:09.722+05:302011-05-25T02:42:09.722+05:30श्री तिलक भाई साहब ने दो उम्दा गज़लें पेश कीं और ह...श्री तिलक भाई साहब ने दो उम्दा गज़लें पेश कीं और हमे अतीत के दिनों की भावपूर्ण सैर करवायी <br />गुणी अनुज , पंकज भाई को हार्दिक बधाई के उन्होंने बेहतरीन रचनाकारों को उनके मंच पर <br />इतने आदर और स्नेह सहित प्रस्तुत किया है आज पंकज भाई की बदौलत ही हम नायाब रचनाओं को <br />पढकर नित नये नित पहचाने बिम्बों मे पहुंचकर , हमारे अपने अतीत से रूबरू हो पायें हैं . <br />भाई श्री तिलक राज जी इसी तरह लिखते रहें और हम उनका लिखा पढ़कर खुशी मनाते रहें ये दुआ है <br /> सादर, स स्नेह,<br />- लावण्यालावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`https://www.blogger.com/profile/15843792169513153049noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-29272845955994896772011-05-25T01:28:34.632+05:302011-05-25T01:28:34.632+05:30गुरु जी प्रणाम,
आपने पहले ही बताया न होता तो इन २७...गुरु जी प्रणाम,<br />आपने पहले ही बताया न होता तो इन २७ शेर को एकबारगी देखने वाला यही समझता कि ३-४ शायरों कि ग़ज़ल पोस्ट की गई है हे भगवान 27 शेर <br /><br />रोज सुनना इक कहानी, नींद के आग़ोश में फिर<br />रात सोना बिन मसहरी, गर्मियों की वो दुपहरी<br /><br />वो ज़माना और था जब कम न थे हम गुलमुहर से<br />और हमसे कम नहीं थी, गर्मियों की वो दुपहरी।<br /><br />साथियों से गप्पबाजी, छींटकर पानी छतों पर,<br />देर रातों तक न थमती, गर्मियों की ये दुपहरी।<br /><br />नौतपा पूरा न हो पाया दिखे पर मेघ काले<br />कुछ दिनों तो और रुकती, गर्मियों की ये दुपहरी।<br /><br />इस मंज़र काशी के क्या कहने <br /><br />- वीनस केशरी (आज तो कमेन्ट कर के रहूँगा)३ बार गायब हो गया यह चौथा प्रयास है :(Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-7632828512271150422011-05-24T14:09:50.117+05:302011-05-24T14:09:50.117+05:30मुसलसल ग़ज़ल और वो भी इस तरह के रद्दीफ के साथ, वाक...मुसलसल ग़ज़ल और वो भी इस तरह के रद्दीफ के साथ, वाकई चुनौती पूर्ण काम होता है| तिलक जी ने इस काम को बखूबी अंजाम दिया है| <br /><br />छींटकर पानी छतों पर............वाह क्या यादें हैं भाई जी<br />अष्ट-चंगा-पै...................अद्भुत यात्रा, यादों की बस्ती में<br />फल गिराना - पर - निशाना बाँधकर............वाह क्या खूब मंज़र निगारी है<br />ज्यूँ गिलहरी............गिलहरी वाले काफिया का उत्तम प्रयोग<br />मित्र छोड़ कर.........तरही के मिसरे की जबरदस्त गिरह, बहुत खूब सर जी<br /><br />और ये एक पर एक फ्री भी:-<br /><br />यहाँ भी मुसलसल का बेहतरीन नज़ारा<br />कद लिए बालिश्त भर.....<br />गुलेल-अंबिया......<br />दिन मसहरी...........<br />कम न थे हम गुलमुहर से......<br />पर कहाँ मानी थी बहरी.........<br /><br /><br />इस बार आप ने जो समा बाँधा है मंज़र निगारी का तिलक भाई साब, क्या तारीफ की जाए इस की| बस पढ़ते जा रहे हैं और मज़े लेते जा रहे हैं| वाह वाह वाह| <br /><br />इस बार की तरही में शायद ही किसी को किसी जगह शब्द कोष की सहायता लेनी पड़ी हो| मेरे हिसाब से इसे एक बड़ी उपलब्धि के रूप में आँका जाना चाहिए|<br /><br />तरही का मज़ा अब तो और भी बढ़ने लगा है| जय हो| उस्तादाना ग़ज़ल के लिए आदरणीय तिलक जी को नमन, और एक बार फिर से पंकज सुबीर जी को शुक्रिया इस बार की गर्मियों को यादगार बनाने के लिए|<br /><br />टिप्पणी:-<br />कुछ दिन पहले मेरी भी कुछ टिप्पणियाँ शुरुआत की पोस्ट्स पर नहीं दिख रहीं| हो सकता है, उस दरम्यान ब्लॉगेर की समस्या के चलते हुए ऐसा हुआ हो|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-84905225430645926332011-05-24T12:43:24.794+05:302011-05-24T12:43:24.794+05:30पता नहीं किस कारण से टिप्पणियां प्रकाशित नहीं हो ...पता नहीं किस कारण से टिप्पणियां प्रकाशित नहीं हो रही हैं । बेनामी टिप्पणियां तो हो रही हैं लेकिन किसी मेल पते के साथ नहीं हो रहीं हैं । फिलहाल उसी कारण से बेनामी टिपपणियों को खोल दिया है यदि आपकी टिपपणी प्रकाशित नहीं हो रही हो तो बेनामी करने का प्रयास करें ।पंकज सुबीरhttps://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53337540038120945022011-05-24T12:39:59.067+05:302011-05-24T12:39:59.067+05:30Ganesh Jee "Bagi" [ganesh3jee@gmail.com]...Ganesh Jee "Bagi" [ganesh3jee@gmail.com]<br />आदरणीय पंकज सर,<br />सादर अभिवादन <br /><br />मैं तरही में आदरणीय तिलक सर की ग़ज़ल पर टिप्पणी नहीं कर पा रहा हूँ जबकि मैं पूर्व से सदस्य हूँ .........उक्त टिप्पणी नीचे लिख रहा हूँ ....संभव हो तो पोस्ट करने की कृपा करे |<br /><br />आदरणीय तिलक सर को सुनना सदैव ही सुखकर रहा है, इन गर्मियों की दोपहरी में आपने तो जान फूक दिया है, दोनों मिसरों पर कही गई आपकी दोनों गज़ले उम्द्दा लगी, पहली ग़ज़ल का मतला बरबस ही यादों की दुनिया में पंहुचा देता है, यारों का जुटना, शाम में छत पर पानी डालने के बाद सोंधी सोंधी खुशबु की याद फिर बैठ कर गप्पबाजी... वाह उस्ताद वाह , क्या बेहतरीन ख्यालात है, मित्रों के छोड़कर जाने के फलस्वरूप आपने जितनी खूबसूरती से गिरह बाँधी है वह यक़ीनन तारीफ़ के काबिल है |<br />दूसरी ग़ज़ल में भी सभी शे'र काफी उम्द्दा और बुलंद ख्यालात से लबरेज लगे,<br />अब ना सादापन बचा वो, अब न अपनापन बचा है,<br />उम्र गुजरी फिर न चहकी, गर्मियों की वो दोपहरी |<br />इस शे'र के जिक्र के बगैर शायद मेरी टिप्पणी अधूरी होती, शायर ने पुरे उम्र के तजुर्बे को एक शे'र में बाँध दिया है, इस बेहतरीन प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये तिलक सर |<br />ऊपर बेंच पर सोये व्यक्ति के सर के बालों के घनत्व को देखकर बरबस आपका चेहरा सामने आ जाता है :-)<br />गणेश जी "बागी"<br />संस्थापक<br />www.openbooksonline.com<br />(एक सामाजिक और साहित्यिक वेब साईट)Ganesh Jee "Bagi"noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-80392110619768287762011-05-24T12:37:50.831+05:302011-05-24T12:37:50.831+05:30Tilak Raj Kapoor [kapoor.tilakraj@gmail.com]
kuchh...Tilak Raj Kapoor [kapoor.tilakraj@gmail.com]<br />kuchh samsya aa gayi hei tippani post nahin ho pa rahi hei.<br /> <br />'आप सबकी टिप्पaणियॉं पढ़कर यही कह सकता हूँ कि आप सबकी ज़र्रानवाज़ी है वरना खाकसार की बिसात क्या। एक अलग ही आनंद प्राप्ति होता है जब यह ज्ञात हो कि जिनसे आप कभी मिले ही नहीं वो आपको दिल से चाहते हैं। अभिभूत हूँ। <br />ग़ज़ल सभी बहुत अच्छीव आ रही हैं और ईमान की बात है कि मेरे अश'आर से बेहतर कई शेर आ चुके हैं और अभी आते भी रहेंगे। तरही ग़ज़लों में एक बात जो खुलकर सामने आ रही है वह है एक अच्छेअ मिसरे की ताकत। अच्छा रदीफ़ काफि़या खुद-ब-खुद मंज़र पैदा करता है और बह्र सरल हो तो अश'आर निकलते चले जाते हैं। यह तो सभी मानते होंगे कि निकले और निकाले हुए शेर में बहुत अंतर होता है।<br />इन तरही ग़ज़लों की आत्माअ दिये गये मिसरे में है। मुझे पूरा विश्वािस है कि आप सबकी राय भी यही होगीतिलक राज कपूरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-55809676279582154012011-05-24T10:39:12.384+05:302011-05-24T10:39:12.384+05:30उम्र गुजरी फिर न चहकी---- वाह सच है बचपन फिर न लौट...उम्र गुजरी फिर न चहकी---- वाह सच है बचपन फिर न लौटा और बचपन के बिना गर्मिओं की दुपहरी का आनन्द कहाँ<br /> गिलहरी सी----- <br /> दोनो गज़लों मे गर्मिओं का खूब आनन्द समाया हुया है शानदार गज़लों के लिये तिलक भाई जी को बधाई। और महफिल सजानेाउर इतने सुन्दर मुशायरे मे सब की गज़लों को पढवाने वाले भाई सुबीर जी का धन्यवाद और शुभकामनायें\निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-33282244423621105902011-05-23T23:33:49.904+05:302011-05-23T23:33:49.904+05:30धर्मेन्द्र जी ने मेरे दिल की बात कह दी...अब बाकी क...धर्मेन्द्र जी ने मेरे दिल की बात कह दी...अब बाकी क्या कहेंगे ये देखने वाली बात है...नीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-79682602540159745952011-05-23T22:48:09.746+05:302011-05-23T22:48:09.746+05:30आदरणीय तिलकराज जी ने मुशायरा लूट लिया है इस बार। ब...आदरणीय तिलकराज जी ने मुशायरा लूट लिया है इस बार। बाकी लोगों के लिए कुछ छोड़ा ही नहीं। छाँट छाँट कर सारे बिम्ब उड़ा ले गए। एक ग़ज़ल से जी नहीं भरा तो दूसरी भी लिख दी और अभी भी टिप्पणियों के माध्यम से बचा खुचा मुशायरा भी लूट रहे हैं। अब बाकी लोगों का क्या होगा। हर शे’र पर दिली दाद देने का मन कर रहा है। तिलकराज जी कुबूल फरमाएँ।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-85451477263641483922011-05-23T22:44:02.171+05:302011-05-23T22:44:02.171+05:30आज की पोस्ट के चित्रों के लिये दो विशेष शेर और एक...आज की पोस्ट के चित्रों के लिये दो विशेष शेर और एक मत्ले का शेर।<br />आज हमने फिर धधकती धूप में <br />छॉंव का टुकड़ा तराशा, सो गये। <br /><br />एक नंगे पॉंव बच्ची, सर पे गागर धारकर <br />यूँ चली कि देखकर उसको हवा भी थम गई। <br /><br />कौन सी मिट्टी भरी है जिस्म में इनके खुदा<br />धूप, बारिश, ठंड से डरते नहीं हैं ये खुदा।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-76992093268711835112011-05-23T21:15:49.995+05:302011-05-23T21:15:49.995+05:30बचपन में एक धारावाहिक देखा करता था "पोटली बाब...बचपन में एक धारावाहिक देखा करता था "पोटली बाबा की" अब यहाँ "सुबीर संवाद सेवा" पर कुछ ऐसी ही पोटलियाँ खुल रही है, और सहेजने लायक खजाने निकल रहे हैं.<br />तिलक जी के ग़ज़लों पर बैठ मैं बस सैर कर रहा हूँ. सभी शेर कहानी की तरह है.<br /><br />कौन अम्मा औ पिताजी की कहॉं था बात सुनता,<br />खेलने को जब बुलाती, गर्मियों की वो दुपहरी।<br />"<br />धूप थी जब चॉंदनी सी, गर्मियों की वो दुपहरी<br />देर घर आने में करती, गर्मियों की ये दुपहरी।<br />रात सोना बिन मसहरी, गर्मियों की वो दुपहरी<br />कुछ दिनों तो और रुकती, गर्मियों की ये दुपहरी।<br /><br />सभी जैसे एक लय में हैं. जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा. बहुत सुन्दर वर्णन. तरही जिंदाबाद !!Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-87613163108305520942011-05-23T14:31:42.882+05:302011-05-23T14:31:42.882+05:30तिलक जी के बारे में जैसे कहना मुश्किल है वैसे ही उ...तिलक जी के बारे में जैसे कहना मुश्किल है वैसे ही उनकी शायरी के बारे में...दोनों विलक्षण हैं...प्यारे हैं...अपने हैं...कहाँ तो एक एक मिसरे के लिए हमें ढेरों पसीना बहाना पड़ा वहीँ जनाब ने तरही में एक नहीं दो दो ग़ज़लें भेज दीं और वो भी दोनों ही बेजोड़...अब इसे कमाल नहीं तो क्या कहूँ?..गर्मियों के इतने रंग कभी एक जगह पढने को नहीं मिले...अपने इस गर्मियों के दीवान में तिलक जी ने बाकि लोगों को नया कुछ कहने के लिए को छोड़ा ही कहाँ हैं??? ये बहुत नाइंसाफी है ठाकुर ...<br />बचपन की सारी शैतानीयां और खेल इस ख़ूबसूरती से ग़ज़ल में समेट दिए हैं तिलक जी ने के सब कुछ छोड़ छाड़ कर चंगा पो, गिल्ली डंडा ,सितौलिया, लंगड़ी टांग फिर से खेलने को जी करने लगा है...ये शायरी है या बचपन की सुनहरी यादों की पोटली...किन शब्दों में प्रशंशा करूँ समझ नहीं पा रहा...बस आनंद में हूँ...आनंद नहीं परम-आनंद...जय हो जनाब आपकी सदा ही जय हो...<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-48200476378671003692011-05-23T12:34:56.227+05:302011-05-23T12:34:56.227+05:30'ये दुपहरी' और 'वो दुपहरी', दोनों ...'ये दुपहरी' और 'वो दुपहरी', दोनों ही आनंददायक<br />"जुड़ गयी यारों की टोली, इस बरस जब दोस्त आये................." वाह वा<br />सात गिप्पी , और लंगड़ी, खेलती नाजु़क वो लड़की ........, क्या खूब मिसरा है.<br />"कौन अम्मा औ पिताजी की कहॉं था बात सुनता,<br />खेलने को जब बुलाती, गर्मियों की वो दुपहरी।"<br />बहुत ही सुन्दर शेर, बचपन की एक खूबसूरत खिड़की खुल गयी फिर से.<br /><br />कद लिये बालिश्त भर, क्या कुछ नहीं थे कर गुजरते<br /><br />एक पल में थी गुजरती, गर्मियों की वो दुपहरी।<br />ये तो हासिले ग़ज़ल शेर है.<br />"बेवज़ह ही भर दुपहरी दूर खेतों में भटकना......." वाह वा<br />"अब कहॉं मुमकिन मगर दिन .........धूप थी जब चॉंदनी सी.............", बहुत उम्दा शेर.<br />दोनों ग़ज़लें ने समां बाँध दिया है.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-44662356656183744802011-05-23T12:09:02.638+05:302011-05-23T12:09:02.638+05:30ये दोनों ग़ज़ल कर्ज़दार हैं पंकज भाई की। इसलिये नह...ये दोनों ग़ज़ल कर्ज़दार हैं पंकज भाई की। इसलिये नहीं कि उन्होने तरही आयोजित की, बल्कि इसलिये कि जिस तरह से तरही आयोजन की भूमिका बॉंधी गयी वह मुझे अतीत में ले गयी और कुछ इस तरह ले गयी कि कुरेद-कुरेद कर उस समय की गर्मियों के हर अनुभव को निकालने और शेर में बॉंधने की कोशिश की। इस प्रयास में ग़ज़ल से कुछ ज्यादती तो हुई लेकिन मेरे बचपन की गर्मियों का एक दस्तावेज़ तैयार हो गया। <br />गर्मियों का मेरा विवरण 20 वीं सदी के 60 के दशक का हे।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-32781956945182431462011-05-23T11:11:12.425+05:302011-05-23T11:11:12.425+05:30तिलक जी ने दोनों ही मिसरों पर गजले कह डालीं और वो ...तिलक जी ने दोनों ही मिसरों पर गजले कह डालीं और वो भी खूबसूरत अश-आर से सजी हुईं..<br />यूँ तो किसी भी शेर को कोट करना असंभव है, फिर भी कुछ एक मिसरों और शेरों का ज़िक्र ज़रूर करना चाहूँगा..<br />"जुड़ गयी यारों की टोली, इस बरस जब दोस्त आये,और फिर से चहचहाई, गर्मियों की ये दुपहरी"<br />"बॉंधकर पक्का निशाना, फल गिराना और खाना.."<br />"कुछ दिनों तो और रुकती, गर्मियों की ये दुपहरी..",<br />"कौन अम्मा औ पिताजी की कहॉं था बात सुनता.." <br />बहुत ही खूबसूरत शेर हैं...<br />"अब न सादापन बचा वो, अब न अपनापन बचा है",<br />"बेवज़ह ही भर दुपहरी दूर खेतों में भटकना..",<br />"वो गुलेलों से निशाना बॉंधकर अंबियॉं गिराना..",<br />"आम, जामुन, बेर दिन भर, और फिर घर लौटने पर,शाम को मटके की कुल्फ़ीं, गर्मियों की वो दुपहरी",<br />"अब कहॉं मुमकिन मगर दिन काश फिर वो लौट आयें, धूप थी जब चॉंदनी सी, गर्मियों की वो दुपहरी",<br />"वो ज़माना और था जब कम न थे हम गुलमुहर से,और हमसे कम नहीं थी, गर्मियों की वो दुपहरी",<br />"इस बरस अच्छा हुआ जो गॉंव की फिर याद आई..",<br />"साथ सारी उम्र रहना, हर बरस हमने कहा था,<br />पर कहॉं मानी थी बहरी, गर्मियों की वो दुपहरी"<br />ये सब शेर तो मन को छू गए. इतनी खूबसूरत गज़लों के लिए तिलक जी तो बधाई और बहुत बहुत धन्यवाद.Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-69384912459275973812011-05-23T09:52:02.084+05:302011-05-23T09:52:02.084+05:30नौतपा पूरा न हो पाया दिखे पर मेघ काले ,
कुछ दिनों ...नौतपा पूरा न हो पाया दिखे पर मेघ काले ,<br />कुछ दिनों तो और रुकती , गर्मियों की ये दुपहरी।<br /><br />उम्दे गज़लियात में ये शे'र मुझे बहुत अच्छा लगा।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-27291612447580369182011-05-23T09:10:36.782+05:302011-05-23T09:10:36.782+05:30यूँ भटकती ज्यूँ गिलहरी...वाह!यूँ भटकती ज्यूँ गिलहरी...वाह!देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com