tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post1941700257791677763..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: नौ बजे हैं और अभी से, सख़्त गर्मी पड़ रही है आ गई क्या सुब्ह से ही, गर्मियों की ये दुपहरी, चलिये आज सुनते हैं डॉ. आज़म जी से उनकी तरही ग़जल़ ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger26125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-30081559877389759922011-05-18T11:05:51.591+05:302011-05-18T11:05:51.591+05:30आज़म साहब के जवाब ने उन जनाब की बोलती ही बंद कर दी...आज़म साहब के जवाब ने उन जनाब की बोलती ही बंद कर दी. अब वो कुछ बोलने लायक बचे ही नहीं या शायद कुछ अक्ल आ गयी हो.<br /><br />ग़ज़ल का हर शेर, गर्मी के हर बिम्ब को बहुत अच्छे से पिरो रहा है, ये शेर तो खूब बने हैं, वाकई क्या मंज़र उतारा है,<br /><br />"नौ बजे हैं और अभी से, सख़्त गर्मी पड़ रही है<br />आ गई क्या सुब्ह से ही, गर्मियों की ये दुपहरी" <br /><br />मिसरा-ए-सनी में 'ऐसी' लफ्ज़ को दो बार इतने अच्छे से पिरोया है कि शेर की सुन्दरता बहुत बढ़ गयी है, वाह वा<br /><br />"ताल पोखर, खेत जंगल, पेड़ पौधे सब सुखा दे<br />हाय ऐसी, उफ है ऐसी, गर्मियों की ये दुपहरी"Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-45832559297964754792011-05-17T10:50:57.039+05:302011-05-17T10:50:57.039+05:30अच्छी बरिश के लिये है धूप और गर्मी ज़रूरी,
फ़र्ज़ आज़म...अच्छी बरिश के लिये है धूप और गर्मी ज़रूरी,<br />फ़र्ज़ आज़म है निभाती , गर्मियों की ये दुपहरी।<br /><br />बहतरीन शे"र , आज़म साहब को मुबारकबाद।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-36676777286813613092011-05-17T01:53:26.255+05:302011-05-17T01:53:26.255+05:30जैसे आज़म जी से पूछा गया कि किसी हिंदू को देखा है ...जैसे आज़म जी से पूछा गया कि किसी हिंदू को देखा है नमाज़ पढ़ते वैसे ही किसी दरगाह पर जाने पर या मौला, मौला जैसे गीत हेलो ट्यून पर लगाने पर इधर भी पूछा जाता है, किसी मुस्लिम को देखा है मंदिर जाते और नाम गिनाने पड़ते हैं हाँ भाई देखा है और खूब देखा है.....<br /><br />खैर ऐसा लगता है कि अब बस ये सियासी लोग अँगुलियों पर ही रह गये हैं और वो भी खतम ही होने वाले हैं। हम सब इतने मैच्योर हो गये हैं कि समझ सकें इनके मंसूबे।कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-46804415850594421732011-05-17T01:53:23.778+05:302011-05-17T01:53:23.778+05:30जैसे आज़म जी से पूछा गया कि किसी हिंदू को देखा है ...जैसे आज़म जी से पूछा गया कि किसी हिंदू को देखा है नमाज़ पढ़ते वैसे ही किसी दरगाह पर जाने पर या मौला, मौला जैसे गीत हेलो ट्यून पर लगाने पर इधर भी पूछा जाता है, किसी मुस्लिम को देखा है मंदिर जाते और नाम गिनाने पड़ते हैं हाँ भाई देखा है और खूब देखा है.....<br /><br />खैर ऐसा लगता है कि अब बस ये सियासी लोग अँगुलियों पर ही रह गये हैं और वो भी खतम ही होने वाले हैं। हम सब इतने मैच्योर हो गये हैं कि समझ सकें इनके मंसूबे।कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-65476990402046281582011-05-16T22:08:33.298+05:302011-05-16T22:08:33.298+05:30हर शेर अपना अलग अंदाज़ लिये बखूबी बयान कर रहा है आज...हर शेर अपना अलग अंदाज़ लिये बखूबी बयान कर रहा है आजम साहब के अनुभवी नजरिये को.किसी भी एक शेर का चयन करना नामुमकिन है.<br /><br />प्रभावशाली गज़ल.राकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-14416991412087893442011-05-15T12:10:08.014+05:302011-05-15T12:10:08.014+05:30आज़म साहब की बेहतरीन ग़ज़ल,बहुत खूबसूरत शेर हैं बह...आज़म साहब की बेहतरीन ग़ज़ल,बहुत खूबसूरत शेर हैं बहुत बहुत बधाई...........Dr.Ajmal Khanhttps://www.blogger.com/profile/13002425821452146623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-60665906578786361622011-05-15T10:07:22.249+05:302011-05-15T10:07:22.249+05:30पढ रहि हूँ लेकिन दायेंहाथ से किसी तकलीफ की वजह् से...पढ रहि हूँ लेकिन दायेंहाथ से किसी तकलीफ की वजह् से आज कल कुछ लिख नही पा रहि बाये हाथ से मुश्किल से लिख रही हू इस लिये इसी से काम चलायें ।आजम जी को शुभ का.।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-89189268923826500602011-05-15T00:16:11.111+05:302011-05-15T00:16:11.111+05:30आज़म जी ने ' गर्मियों की दुपहरी' का पूरा p...आज़म जी ने ' गर्मियों की दुपहरी' का पूरा postmortem कर के रख दिया अपने खूबसूरत अशआरों से...'साहिल'https://www.blogger.com/profile/13420654565201644261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-16272661880445095372011-05-14T22:25:39.914+05:302011-05-14T22:25:39.914+05:30अच्छी बारिश के लिये हैं, धूप और गर्मी ज़रूरी
फ़र...अच्छी बारिश के लिये हैं, धूप और गर्मी ज़रूरी <br />फ़र्ज़ आज़म है निभाती , गर्मियों की ये दुपहरी <br /><br /><br />waah waah waah<br /><br />zindabad gazalवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-54135448601226001262011-05-14T19:47:26.753+05:302011-05-14T19:47:26.753+05:30बहुत ही खूबसूरत अशआर कहें हैं आज़र साहब ने। क़हर ढ़ात...बहुत ही खूबसूरत अशआर कहें हैं आज़र साहब ने। क़हर ढ़ाती, चिलचिलाती से शुरू करके फ़र्ज़ निभाती तक सभी शे’र बेहतरीन हैं। मेरे विचार में तरही के मिसरे वाला शे’र छूट गया है पोस्ट लगाते वक्त। आदरणीय सुबीर जी से अनुरोध है कि वो शे’र भी डाल दें ताकि उसका भी आनंद हम सभी ले सकें और इतने बड़े शायर द्वारा तरही की गिरह बाँधने के तरीकों से कुछ सीख सकें।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-9207436386958986832011-05-14T18:02:55.794+05:302011-05-14T18:02:55.794+05:30गंग जमुनवी संस्कृति के पैरोकार भाई आजम जी की गजल न...गंग जमुनवी संस्कृति के पैरोकार भाई आजम जी की गजल न सिर्फ पुरअसर है बल्कि इस ग्रीष्म ऋतु विशेषांक की शोभा भी बढ़ा रही है| बहुत बहुत मुबारकबाद|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-80941366979957244142011-05-14T17:36:14.145+05:302011-05-14T17:36:14.145+05:30आजम साब के जवाब पढ़ कर मजा आ गया| कौन थे ये महाशय ज...आजम साब के जवाब पढ़ कर मजा आ गया| कौन थे ये महाशय जी???<br /><br />ग़ज़ल के सारे बिम्ब एकदम अपने आस-पास से उठा कर जिस खूबसूरती से आजम साब ने शेरों में पिरोया है, वो लाजवाब है|<br /><br />राजीव की टिप्पणी जैसी ही कुछ कुछ मेरी टिप्पणी भी...हम ही मई में सर्दियों का आनंद ले रहे हैं|गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-86347217747195734412011-05-14T17:04:07.648+05:302011-05-14T17:04:07.648+05:30सागर वाली टिप्पणी को मेरी टिप्पणी समझें. अपने भांज...सागर वाली टिप्पणी को मेरी टिप्पणी समझें. अपने भांजे के घर आया हुआ हूँ, बुंडू रांची में.Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-66858733118853016532011-05-14T17:01:11.001+05:302011-05-14T17:01:11.001+05:30आज़म साहब की ग़ज़ल का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है. तरह...आज़म साहब की ग़ज़ल का मुझे हमेशा इंतज़ार रहता है. तरही में उनसे सीखने को मिलता है.<br /><br />गर्मियों का सजीब चित्रण किया है. बिलकुल मुसलसाल ग़ज़ल "गर्मियों की ये दुपहरी "Sagarhttps://www.blogger.com/profile/08806897081267898549noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-74508864434973517052011-05-14T13:26:03.223+05:302011-05-14T13:26:03.223+05:30दिगंबर भाई, आपके यहाँ सुबह आठ बजे ४२ डिग्री है? बा...दिगंबर भाई, आपके यहाँ सुबह आठ बजे ४२ डिग्री है? बाप रे! हमारे यहाँ तो मौसम विभाग के अनुसार, शनिवार और रविवार को अधिकतम १६ डिग्री और न्यूनतम १० डिग्री होने वाला है. मतलब मई के महीने में सर्दियों जैसा मज़ा.. .. ईश्वर की माया...Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-42047732057384551492011-05-14T13:17:40.606+05:302011-05-14T13:17:40.606+05:30आज़म साहब की जिंदादिली को सलाम ... उनके जज़्बे को ...आज़म साहब की जिंदादिली को सलाम ... उनके जज़्बे को सलाम .... और ग़ज़ल के क्या कहने सलाम सलाम सलाम ....<br />नौ बजे हैं और अभी से ... वाह .. क्या बात है ... सच है यहाँ दुबई में तो सुबह आठ बजे से ही पारा ४२ तक जा पंहुचा है ... ताल पोखर खेत जंगल ... वाह क्या बयान किया है गर्मियों को बस पढ़ते जाने को दिल कर रहा है ... <br />गुरुदेव ... अब ये मुशायरा गर्मयों के साथ साथ अपनी जवानी की तरफ कदम रख रहा है ... आप तो फोटो भी छान छान कर लाते हैं ... अपने आप ही गर्मियों का एहसास हो जाता है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-81638939586534745732011-05-14T11:08:12.846+05:302011-05-14T11:08:12.846+05:30@राणा प्रताप जी
भाई हमारे लिये तो ये सुनी सुनाई बा...@राणा प्रताप जी<br />भाई हमारे लिये तो ये सुनी सुनाई बाते हैं, आपको सही मानते हुए भी बात वही रहती है कि उदाहरण एक मुस्लिम ने ही कायम किया। <br />औरंगज़ेब की पहचान पॉंच वक्त के नमाज़ी कट्टर इस्लामिक के रूप में की जाती है, उनके समय में उनके परिवार से कोई ये कहे और उन्हें नागवार न गुजरे इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि औरंगज़ेब इस्लाम को समझते थे। <br />दुनिया का कोई धर्म हो मर्म एक ही है, मर्म तक जो पहुँच गया वह पचड़ों में नहीं पड़ता। <br />जानकारी शुद्ध करने के लिये धन्यवाद।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-84098569553635911992011-05-14T10:50:20.504+05:302011-05-14T10:50:20.504+05:30माफ कीजियेगा उनका नाम ताज बीबी था और तरही मिसरा था...माफ कीजियेगा उनका नाम ताज बीबी था और तरही मिसरा था "हैं वही काफिर नहीं मुश्ताक जो इस्लाम के"राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)https://www.blogger.com/profile/17152336988382481047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-27399369090245238492011-05-14T10:45:47.420+05:302011-05-14T10:45:47.420+05:30तिलक जी जहां तक मुझे पता है यह गिरह औरंगजेब की भां...तिलक जी जहां तक मुझे पता है यह गिरह औरंगजेब की भांजी चाँद बीबी ने लगाईं थी|राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)https://www.blogger.com/profile/17152336988382481047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-1644100577021796812011-05-14T10:41:12.167+05:302011-05-14T10:41:12.167+05:30नीरज भाई ने अल्लामा इकबाल का जि़क्र खूब किया।
एक...नीरज भाई ने अल्लामा इकबाल का जि़क्र खूब किया। <br />एक तरही नशिस्त में शरारतन मिस्रा-ए-तरह दिया गया 'वो सभी काफि़र हैं जो बन्दे नहीं इस्लाम के'। इकबाल साहब ने इसपर गिरह कुछ यूँ लगाई कि शरारती तत्वों की बोलती बंद हो गयी। उनका शेर था:<br /><br />'लाम के मानिंद हैं, गेसू मेरे घनश्याम के<br />वो सभी काफि़र हैं जो बंदे नहीं इस लाम के'<br /><br />जो उर्दू लिपि से परिचिल नहीं हैं उनके लिये बता रहा हूँ कि उर्दू में लाम का रूप ऐसा 'ل' होता है जिसकी तुलना इकबाल साहब ने श्याम के माथे पर लटकी ज़ुल्फ़ से करते हुए कहा कि वो सभी काफि़र हैं जो बन्दे नहीं इस लाम के।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-34733942391330410972011-05-14T10:30:35.805+05:302011-05-14T10:30:35.805+05:30आज़म भाई की ग़ज़ल क्या है रंग बिरंगे शब्द चित्र है...आज़म भाई की ग़ज़ल क्या है रंग बिरंगे शब्द चित्र है...गर्मियों का मंजर ज्यूँ का त्यूं आँखों के आगे घुमा दिया है उन्होंने...इसे कहते हैं कलम का जादू...वाह...लाजवाब ग़ज़ल कही है उन्होंने...एक भी शेर ऐसा नहीं जिस पर से पढ़ते हुए नज़र फिसल जाय...कमाल है कमाल...<br /><br />जहाँ तक संकीर्ण मनोवृति की बात है तो देखा ये गया है के इस वृति को राजनेता अपनी रोटी सकने को बढ़ावा देते हैं...आम इंसान में आपसी भाई चारे के ज़ज्बे को ये पनपने ही देना नहीं चाहते...इकबाल की कालजयी ग़ज़ल " मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा" स्कूल में पढाई जाती है और वहीँ बिसरा दी जाती है...जब इन पंक्तियों को हम हमेशा ज़ेहन में नहीं रखेंगे तब तक यूँ ही बहकते रहेंगे.<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-1032016778551128892011-05-14T10:04:07.018+05:302011-05-14T10:04:07.018+05:30यादों को कष्ट दिये बिना डॉ. साहब ने 'गर्मियों...यादों को कष्ट दिये बिना डॉ. साहब ने 'गर्मियों की ये दुपहरी' की नब्ज़ कुछ ऐसी पकड़ी है कि गर्मी खुद-ब-खुद शेर-दर-शेर अपने राज़ परत-दर-परत खोलती चली गयी।<br />खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-84540448276689151592011-05-14T09:54:51.689+05:302011-05-14T09:54:51.689+05:30जितना उन्नत व्यक्तित्व, उतनी उन्नत गज़ल।जितना उन्नत व्यक्तित्व, उतनी उन्नत गज़ल।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-52915153043839192442011-05-14T09:35:14.957+05:302011-05-14T09:35:14.957+05:30डा० आजम साहब की बेहतरीन गज़ल पढकर मंत्रमुग्ध हूँ
...डा० आजम साहब की बेहतरीन गज़ल पढकर मंत्रमुग्ध हूँ <br /><br />गर्मी के कहर को असाधारण तरीके से वर्णित किया है, मई और जून में घटने वाली हर एक घटना का सूक्ष्म विश्लेषण करने के उपरांत ही ऐसी गज़ल कही जा सकती है| इसके लिए आपको जितनी भी दाद दी जाए वो कम है|<br /><br />जहां तक चुनावी नतीजों का प्रश्न है ये तो समय ही बताएगा की ये सरकारें कैसी हैं ..क्योंकि अभी भी इन्हें विशवास जीतना बाकी है| हाँ इतना तो तय है की जनता बदलाव की राह पर चल पडी है|<br /><br />सांप्रदायिक सौहार्द की खबर सुन कर मन प्रसन्न हुआ है और आजम साहब और (UWM...इनका पूरा नाम क्या है )के बीच हुए वार्तालाप में आज़म साहब का जवाब इन तथाकथित अलमबरदारों के मुंह पर एक करारा तमाचा है|<br /><br />हाथी वाली तस्वीर भी गज़ब की है ....फोटोग्राफर को हमारा सलाम|राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)https://www.blogger.com/profile/17152336988382481047noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-47395301799516674602011-05-14T08:36:25.807+05:302011-05-14T08:36:25.807+05:30आज़म जी, आपको बहुत दिनों से पढ़ते आ रहा हूँ..क्या ...आज़म जी, आपको बहुत दिनों से पढ़ते आ रहा हूँ..क्या कमाल की शायरी है आपकी..आज भी उतने ही बेहतरीन शेर एक सरल ज़ुबान मे बेहतरीन ग़ज़ल जो पढ़ते ही दिल में बैठ जाए....बहुत बहुत बधाई हो इस सुंदर प्रस्तुति के लिए.विनोद कुमार पांडेयhttps://www.blogger.com/profile/17755015886999311114noreply@blogger.com