tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post1589259764182144140..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: शाम होते होते थक कर सो गई पहलू में मेरे, धूप की दिन भर सताई गर्मियों की वो दुपहरी. आज तरही में सुनिये सात समंदर पार से अपनी माटी की महक लिये आई राजीव भरोल राज की ग़ज़लपंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49171159155668986682011-05-18T20:30:47.598+05:302011-05-18T20:30:47.598+05:30मैं राजीव को १९९० से जानता हूँ लेकिन १९९४ के बाद औ...मैं राजीव को १९९० से जानता हूँ लेकिन १९९४ के बाद और करीब से. ग़ज़ल के शौक का एक उदहारण सुनिए. राजीव हम से छुप कर एक बार बहके हुए थे और कहा की दुआ करिए की मेरी थोड़ी उम्र मेहँदी हसन को लग जाये जिससे हम उनसे मिल सकें. बहुत बूढ़े हैं. शौक अभी तक जारी है . नौकरी, परिवार के साथ ग़ज़ल के शौक को जिंदा रखना एक मिसाल है. सभी शेर माशा अल्लाह ख़ूबसूरत हैं.Azamhttps://www.blogger.com/profile/07904087498239402411noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-71541569682664331802011-05-18T11:21:13.898+05:302011-05-18T11:21:13.898+05:30मैं तो राजीव जी का खतरनाक प्रशंशक बन गया हूँ, उफ्फ...मैं तो राजीव जी का खतरनाक प्रशंशक बन गया हूँ, उफ्फ्फ....क्या शेर निकालते हैं.<br /><br />मतला क्या खूब कहा है, उस पे सानी.........क़यामत ढा रही है.........."गुड़, शहद, मिसरी से मीठी, गर्मियों की वो दुपहरी"<br /><br />गाँव के बरगद की ठंडी छाँव की गोदी में मुझको,<br /><br />थपकियाँ दे कर सुलाती गर्मियों की वो दुपहरी,<br />वाह वा, क्या खूब मंज़रकशीं की है.<br /><br />मैंने इतना ही कहा, मुझको नहीं भाता ये मौसम,<br /><br />बस इसी पे रूठ बैठी गर्मियों की वो दुपहरी.<br />एक अजब सी मासूमियत है इस शेर में, मज़ा आ गया राजीव जी.<br /><br />शाम होते होते थक कर सो गई पहलू में मेरे,<br /><br />धूप की दिन भर सताई गर्मियों की वो दुपहरी.<br />अहा.........वाह राजीव जी, ढेरों दाद क़ुबूल करें.Ankithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-88492045358790889352011-05-18T00:58:55.958+05:302011-05-18T00:58:55.958+05:30सभी टिप्पणीकर्ताओं को तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ....सभी टिप्पणीकर्ताओं को तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ.कमियां भी बताते तो और भी अच्छा होता. आपको शेर अच्छे लगे, अच्छा लगा मगर श्रेय सारा गुरूजी को जाता है.<br />जैसे राहत इंदोरी साहब का शेर है:<br />"मेरे कारोबार में सबने बड़ी इम्दाद की<br />दाद लोगों की, गला अपना, ग़ज़ल उस्ताद की"Rajeev Bharolhttps://www.blogger.com/profile/03264770372242389777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-46320739118256978682011-05-17T23:35:38.606+05:302011-05-17T23:35:38.606+05:30कल जब पढ़ा था, तो कुछ शेर विशेष अंदाज में कुछ चित्...कल जब पढ़ा था, तो कुछ शेर विशेष अंदाज में कुछ चित्र खींच रहे थे. राजीव जी ये ग़ज़ल लग रहा है मानो आपने अपने आप से बातें करते हुए कह डाली. उस्तादों वाली बात है.<br />बहुत खूब कही !!Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-2850815847716920252011-05-17T16:39:28.796+05:302011-05-17T16:39:28.796+05:30गुरु जी प्रणाम,
इस बार का मुशायरा जानलेवा होता जा...गुरु जी प्रणाम,<br /><br />इस बार का मुशायरा जानलेवा होता जा रहा है <br /><br />राजीव जी की जितनी तारीफ़ करून कम होगी खा खूब शेर कहें हैं<br />वाह वा .. करते दिल नहीं भर रहा है <br /><br />हम्म... <br /><br />कभी कभी रश्क भी होता है कभी कभी घोर जलन भी <br /><br />राजीव भाई बहुत बहुत बधाई, आपने एक बार फिर से खुद को कामयाब साबित कियावीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-13746271705577617642011-05-17T12:58:51.857+05:302011-05-17T12:58:51.857+05:30राजीव, बहुत सुंदर तरही! बहुत ही सुंदर...खास कर &qu...राजीव, बहुत सुंदर तरही! बहुत ही सुंदर...खास कर "मैंने इतना ही कहा..." वाले शेर पे तो जितनी दाद दूँ,कम होगी!<br /><br />परिचय जानकर बड़ा अच्छा लगा| सैनिक स्कूल वाली बात तो मालूम थी... समझ सकता हूँ , कैसे बीतेंगे होंगे :-)गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-44786201758712156492011-05-17T11:57:34.115+05:302011-05-17T11:57:34.115+05:30rajiv ji ke kya kahane. badhai.rajiv ji ke kya kahane. badhai.निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-22834540612832122802011-05-17T10:47:57.470+05:302011-05-17T10:47:57.470+05:30राजीव जी की ख़ूबसूरत गज़ल के लिए मेरी तरफ से बहुत ...राजीव जी की ख़ूबसूरत गज़ल के लिए मेरी तरफ से बहुत बहुत मुबारकबाद....................Dr.Ajmal Khanhttps://www.blogger.com/profile/13002425821452146623noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-58189551106932491142011-05-17T10:45:32.382+05:302011-05-17T10:45:32.382+05:30शाम होते होते थक कर सो गई पहलू में मेरे,
धूप की दि...शाम होते होते थक कर सो गई पहलू में मेरे,<br />धूप की दिन भर सतायी गर्मियों की वो दुपहरी।<br />वैसे तो सारे मिसरे ख़ूबसूरत हैम पर मुझे मक़्ता सबसे अच्छा लगा , राजीव जी को ढेरों बधाई।ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηιhttps://www.blogger.com/profile/05121772506788619980noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-16859360724006805612011-05-17T01:38:16.484+05:302011-05-17T01:38:16.484+05:30मैंने इतना ही कहा, मुझको नहीं भाता ये मौसम,
बस इसी...<b>मैंने इतना ही कहा, मुझको नहीं भाता ये मौसम,<br />बस इसी पे रूठ बैठी गर्मियों की वो दुपहरी.</b><br /><br />कहा ही क्यों हुज़ूर.... ????? :) :)<br /><br />मेरे अनुसार सबसे सु्ंदर शेर है ये इस ग़ज़ल का।<br /><br />संगीत और ज्योतिष में रुचि ??? कुछ आदतें मिलती जुलती हैं अपनी... ये जानकर अच्छा लगा। :)कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-8735261591714551152011-05-16T22:05:44.649+05:302011-05-16T22:05:44.649+05:30एक एक शेर पूरी ईमानदारी से बिना किसी वनावट के कहा ...एक एक शेर पूरी ईमानदारी से बिना किसी वनावट के कहा गया है. राजीव के लेखन में उत्तरोत्तर निखार आ रहा है.<br /><br />शाम होते होते थक कर.......<br /><br />वि हवा में उड़ रहे...........<br /><br />खूबसूरत.राकेश खंडेलवालhttps://www.blogger.com/profile/08112419047015083219noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-76986875037213518852011-05-16T20:23:49.013+05:302011-05-16T20:23:49.013+05:30गाँव के बरगद की ठंडी छाँव की गोदी में मुझको
थपकिया...गाँव के बरगद की ठंडी छाँव की गोदी में मुझको<br />थपकियाँ दे कर सुलाती गर्मियों की वो दुपहरी<br /><br />वाह! बहुत ही खूब शेर हैं राजीव जी की ग़ज़ल में!'साहिल'https://www.blogger.com/profile/13420654565201644261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-68636476322117936022011-05-16T17:59:01.359+05:302011-05-16T17:59:01.359+05:30ह्म्म्म , पिछले कुछ दिनों में राजीव जी ने चौंकाया ...ह्म्म्म , पिछले कुछ दिनों में राजीव जी ने चौंकाया है अपनी ग़ज़लों से और उसके कहन से ! बहुत ही कम समय में जिस तरह की ये ग़ज़ल कह रहे हैं आश्चर्यचकित कर रहे हैं ! तरही में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है ! वाकई सारे ही शे'र कमाल के हैं मगर जो गिरह इन्होने लगे है वो मुझे ख़ास पसंद है !"अर्श"https://www.blogger.com/profile/15590107613659588862noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-11217211702757730012011-05-16T12:50:37.678+05:302011-05-16T12:50:37.678+05:30राजीव भाई तुम तो छुपे रुस्तम निकले यार| ज्योतिष्, ...राजीव भाई तुम तो छुपे रुस्तम निकले यार| ज्योतिष्, शास्त्रीय संगीत सभी कुछ| चलो अब किसी की कुंडली मिलवानी होगी अंतरराष्ट्रीय ज्योतिष् से, तो अपना एक मित्र मौजूद है| इलेक्ट्रॉनिक्स और सॉफ्टवेर इंजिनियर तो आप हैं ही पहले से|<br /><br />धूप में तपती सुनसान गलियाँ ........ क्या बात है यार , हिन्दुस्तान उतर के आ रहा है इस ब्लॉग पर<br />बरगद की गोदी........ओहोहोहो| ये तो भाई टाइगर पटौदी के सिक्सर टाइप का शेर है|<br /><br />बहुत खूब यार बहुत ही खूब| चौका दिया तुमने तो| दिमाग़ की बजाय दिल से लिखी गई इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ की जाए, कम ही होगी|<br /><br />पंकज भाई के चित्रों के बारे में मैं नीरज भाई से सहमत हूँ|www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-56982328343674786272011-05-16T11:22:35.338+05:302011-05-16T11:22:35.338+05:30गाँव के बरगद के नीचे ... क्या बात है राजीव जी ... ...गाँव के बरगद के नीचे ... क्या बात है राजीव जी ... गर्मियों की दोपहरी की ज़्यादा यादें नही है फिर भी जैसे शेर बोल रहे हैं आपके ... <br />छिचीलाती धूप थी ... इतना लाजवाब तो कोई इस धूप को भोग कर ही लिख सकता है ... बहुत ही कमाल के शेर निकाले हैं आपने ... और वैसे भी गुरुदेव से कई बार आपकी ग़ज़लों की तारीफ सुनी है ... आपकी ग़ज़ल विधा पे पकड़ आपकी लगन की जिंदा मिसाल है .... बहुत बहुत शुभकामनाएँ ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-91588533670888361282011-05-16T10:43:36.149+05:302011-05-16T10:43:36.149+05:30भाई वाह, हर शे’र लाजवाब है। क्या गिरह बाँधी है तरह...भाई वाह, हर शे’र लाजवाब है। क्या गिरह बाँधी है तरही की। बधाई हो। गाँव के बरगद वाला शे’र तो दिल चीरकर निकल गया। शाम होते होते वाले शे’र ने गजब ढा दिया। बहुत बहुत बधाई हो राजीव भरोल जी को।‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-22846137368916729182011-05-16T10:15:01.610+05:302011-05-16T10:15:01.610+05:30इतनी सहजता से कही राजीव जी की ग़ज़ल पढ़ कर ये अंदा...इतनी सहजता से कही राजीव जी की ग़ज़ल पढ़ कर ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं के आने वाले वक्त में वो किस पाए के शायर होने वाले हैं. गर्मियों की दुपहरी का मंज़र बला की ख़ूबसूरती से उन्होंने खींचा है. मैं गुरुदेव की इस बात से शतप्रतिशत सहमत हूँ के किसी एक शेर को अलग से कोट करना बाकी के शेरों के साथ नाइंसाफी होगी. अब आप रोज एक शायर को पेश करने वाले हैं जानकार ख़ुशी हुई याने पूरी गर्मियां शायरी का अनमोल खज़ाना खुलता रहेगा...हुर्रे... <br /><br />अंत में आपके चित्र....उफ्फ्फ...अगर अलग से उन्हें एक जगह पेश कर दें तो गर्मियों का दुपहरी का दीवान बन जायेगा.<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-74767492811206142032011-05-16T09:57:46.190+05:302011-05-16T09:57:46.190+05:30राजीव में एक गंभीर शायर मौज़ूद है और उसे कुछ कहने ...राजीव में एक गंभीर शायर मौज़ूद है और उसे कुछ कहने के लिये जि़द्दोज़हद में नहीं पड़ना होता है, एक स्वत: प्रेरित सुगम प्रवाह जो निरंतर गतिमान है। <br />ग़ज़ल को जानने की जो गंभीर ललक राजीव में है वही शायर को अंदर से खींच कर लाती है और खुलकर व्यक्त होने की प्रेरणा देती है। <br />शब्द शिल्प की बारीकियों का ध्यान रखते हुए इस तरही का निर्वाह आसान नहीं है, लेकिन अब तक बड़ी खूबसूरत प्रस्तुति सामने आयी हैं, और अभी तो पाठशाला के पुराने शिष्य भी आने शेष हैं। <br />मत्ले का शेर और उसके बाद के दोनों शेर विशेष रूप से अच्छे लगे।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-7079543781440033482011-05-16T09:47:35.773+05:302011-05-16T09:47:35.773+05:30ghazal toh khair theek hi hai. magar sunndar-pyare...ghazal toh khair theek hi hai. magar sunndar-pyare-dulare bachcho vala parivaar dekh ka samajh men aa rahaa hai ki itani pyare-pyare sher kaise avatarit hote hain..badhai...girish pankajhttps://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-83740129976502991822011-05-16T09:21:42.330+05:302011-05-16T09:21:42.330+05:30आपके परिवार का चित्र देख मन प्रसन्न हो गया। हँसते ...आपके परिवार का चित्र देख मन प्रसन्न हो गया। हँसते परिवार, हिन्दी से लगाव, सृजनशीलता, बस और क्या चाहिये?प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-73269690269157532522011-05-16T08:44:49.353+05:302011-05-16T08:44:49.353+05:30राजीव जी की इस ख़ूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबा...राजीव जी की इस ख़ूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद<br /><br />गाँव के बरगद की ठंडी छाँव की गोदी में मुझको<br />थपकियाँ दे कर सुलाती गर्मियों की वो दुपहरी,<br /><br />इस शेर पर तो कुर्बान जाऊं<br /><br />मैंने इतना ही कहा, मुझको नहीं भाता ये मौसम,<br />बस इसी पे रूठ बैठी गर्मियों की वो दुपहरी.<br /><br />ये शेर भी बड़ी नज़ाकतों से पाला गया है <br /><br />मेरी तरफ से खूब सारी दाद कबूलिये|राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)https://www.blogger.com/profile/17152336988382481047noreply@blogger.com