tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post1027197596377385751..comments2024-03-27T10:03:10.997+05:30Comments on सुबीर संवाद सेवा: वो मेरे बचपन का साथी है अभी तक गाँव में, प्यार से लबरेज माजी है अभी भी गाँव में, सुकवि रमेश हठीला स्मृति तरही मुशायरे में आज सुनते हैं संदीप साहित और सौरभ शेखर को ।पंकज सुबीरhttp://www.blogger.com/profile/16918539411396437961noreply@blogger.comBlogger27125tag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-84473037786446985942012-01-22T12:23:48.756+05:302012-01-22T12:23:48.756+05:30टिपण्णी दुबारा से स्पैम में पहुँच गयी ... इसलिए दु...टिपण्णी दुबारा से स्पैम में पहुँच गयी ... इसलिए दुबारा ...<br /><br />कइ दिन बाद आज शहर लौटा तो पता चला बहुत कुछ मिस किया अपनी तरही की पाठशाला में ...<br /><br />साहिल जी को पढता रहता हूँ उनके ब्लॉग के जरिये और यकीनन कमाल के शेर निकलते हैं ... कागजों में हो रही है बस तरक्की गाँव की ... जैसे शेर गंभीर सोच से ही निकल पाते हैं ... आम कच्चे जिसके आँगन से चुराते थे कभी ... ये शेर भी बहुत दिल के करीब लगता है ...<br />सौरभ जी ने भी बहुत ही सार्थक ... सच में ज़ेहन में उभरते गाँव के बहुत करीब से लगते हैं ... तह किए रक्खे हैं जिसमें ... घर के पिछवाड़े ... बहुत ही जबरदस्त शेर हैं पर सच कहूँ तो वक्त की मौजें हमें परदेस तो ले आ गयीं ... इस शेर बो सुबह से बार बार पढ़ रहा हूँ ... <br /><br />बहुत ही रफ़्तार से दौड़ रहा है ये मुशायरा और कहाँ रुकने वाला है पता नहीं ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-36573234138634660472012-01-22T12:19:37.770+05:302012-01-22T12:19:37.770+05:30कइ दिन बाद आज शहर लौटा तो पता चला बहुत कुछ मिस किय...कइ दिन बाद आज शहर लौटा तो पता चला बहुत कुछ मिस किया अपनी तरही की पाठशाला में ...<br /><br />साहिल जी को पढता रहता हूँ उनके ब्लॉग के जरिये और यकीनन कमाल के शेर निकलते हैं ... कागजों में हो रही है बस तरक्की गाँव की ... जैसे शेर गंभीर सोच से ही निकल पाते हैं ... आम कच्चे जिसके आँगन से चुराते थे कभी ... ये शेर भी बहुत दिल के करीब लगता है ...<br />सौरभ जी ने भी बहुत ही सार्थक ... सच में ज़ेहन में उभरते गाँव के बहुत करीब से लगते हैं ... तह किए रक्खे हैं जिसमें ... घर के पिछवाड़े ... बहुत ही जबरदस्त शेर हैं पर सच कहूँ तो वक्त की मौजें हमें परदेस तो ले आ गयीं ... इस शेर बो सुबह से बार बार पढ़ रहा हूँ ... <br /><br />बहुत ही रफ़्तार से दौड़ रहा है ये मुशायरा और कहाँ रुकने वाला है पता नहीं ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-47052080447866163142012-01-19T22:15:03.725+05:302012-01-19T22:15:03.725+05:30इस मुशायरे में पहली बार आना हुआ. चलिए आया तो .सौरभ...इस मुशायरे में पहली बार आना हुआ. चलिए आया तो .सौरभ जी को काफी पहले से पढ़ रह हूं.. और जो वो डिज़र्व करते हैं अभी नहीं मिला है... ग़ज़ल की समझ उतनी भर है कि दिल को छू ले तो ग़ज़ल है... सौरभ के ग़ज़ल की संवेदना से गहरे से जुड़ा हूं...चाहे वो कुए पर दीपक हो या तय कर रखे बालपन.... साहिल के शेर भी दमदार है...अरुण चन्द्र रॉयhttps://www.blogger.com/profile/01508172003645967041noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-53287813002721027872012-01-19T17:32:23.383+05:302012-01-19T17:32:23.383+05:30संदीप साहिल जी
सुनते हैं वो बूढ़ी नानी
और पत्थरों ...संदीप साहिल जी<br /><br />सुनते हैं वो बूढ़ी नानी<br />और पत्थरों पर सिर पटकने वाली बावली नदी<br /><br /> के लिये बधाइयाँ क़ुबूल कीजिये....<br /><br />और सौरभ जी आप<br /><br />पाँव के सीवान पर <br />तथा<br />प्यार से लबरेज़ माज़ी है, अभी तक गाँव में<br /><br />के लिये<br /><br />अच्छी शुरुआत के बाद अच्छा प्रवाह भी...कंचन सिंह चौहानhttps://www.blogger.com/profile/12391291933380719702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-26126310918932296902012-01-19T14:32:32.919+05:302012-01-19T14:32:32.919+05:30दोनों ग़ज़ल खूबसूरत और काबिले दाद।
सीखने के नज़रि...दोनों ग़ज़ल खूबसूरत और काबिले दाद। <br />सीखने के नज़रिये से से देखें तो दोनों में जो देखने को है वह है कि पढ़ने और सुनने वाले स्वयं को शेर से कैसे जोड़ते हैं; सरल प्रवाह का सरल प्रभाव भी होता है ख़याल का नाज़ुक होना और सरोकार इस दो पंक्तियों की विधा में बहुत अधिक महत्व रखते हैं। <br /><br />पॉंव को सीवान पर रखते हुए ज़ेऱे बदन अपना पूरा प्रभाव छोड़ता अगर 'सीवान' का अर्थ साथ में ही दे दिया जाता। मेरे लिये यह शब्द नया है। कुछ धुँधला सा स्मरण है कि यह भोजपुरी शब्द है जिसका अर्थ सीमारेखा है। शायद प्रेमचंद की किसी कहानी में कभी पढ़ा था। <br />साहिल की संक्षिप्त ग़ज़ल ने तो प्रभावित किया ही, सौरभ के 'तह किये..', 'नफ़रतो से तर....' तथा 'खुश्बुऍं जिनकी...' ने विशेष प्रभावित किया। <br /><br />इस बार अपेक्षा तो 'गर्मियों की वो/ये दुपहरी...' की है। 'अभी तक गॉंव में' रदीफ़ की खूबसूरती देखें कैसे खिलती है।तिलक राज कपूरhttps://www.blogger.com/profile/03900942218081084081noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-34814234155140893662012-01-19T11:53:03.750+05:302012-01-19T11:53:03.750+05:30आ.नागरानी जी का स्नेह-सिक्त टिपण्णी और शार्दूला ज...आ.नागरानी जी का स्नेह-सिक्त टिपण्णी और शार्दूला जी का सुन्दर विवेचन के लिए शुक्रिया.जहाँ तक सीवान की बात है तो सीवान यानि वह बिंदु जहाँ से गाँव की सीमा शुरू होती है.आपको और दूसरे मित्रों को यह शेर शायद इसीलिए पसंद आया कि उसमे अपनी जड़ों से दूर हो जाने की कचोट दर्ज है.और हम में से अधिकतर इस दर्द से बावस्ता हैं.दरअसल देखा जाये तो स्मिसरा-ए-सानी थोड़ी ambiguity भी पैदा करता है,जिससे यह लगता है मानो सिहरन मेरे बदन में नहीं बल्कि गाँव में होती है.इस लिहाज से यह शेर की त्रुटी है. बहरहाल गाँव में प्रवेश के साथ ही रोम रोम में उत्पन्न होने वाली झुरझुरी के एहसास को मैं हर सूरत में बयान करना चाहता था.आ.पंकज जी ने भी इसे शायद इसी दृष्टि से ओके किया होगा.सादर.सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-64255230662530866382012-01-19T10:31:26.345+05:302012-01-19T10:31:26.345+05:30दोनों गज़लें खूबसूरत है और दोनों शायरों को हार्दि...दोनों गज़लें खूबसूरत है और दोनों शायरों को हार्दिक बधाई.<br />जब बहुत दिन बीत जाते हैं किसी ग़ज़ल को पढ़े तब भी ऐसे शेर, कभी पूरे, कभी अधूरे, अपने खूबसूरत बिम्बों को लिए मानस में रहते हैं...<br /><br />याद में 'साहिल' तुम्हारी, बावली है वो नदी<br />पत्थरों पर सर पटकती है अभी तक गाँव में -- बहुत ही ग्राफिक सा शेर, ढेर चित्र खींचता हुआ!<br />------<br />पाँव को सीवान पर----- एक सिहरन दौड़ सी जाती ...ये बहुत ही खूबसूरत और सूक्ष्म शेर ...हकीकती !<br />यहाँ 'सीवान' का अर्थ 'outfield' से है सौरभ जी या सीवान जगह ? <br />तह किये रक्खे हैं जिसमे बालपन के रात-दिन<br />याद की वो आलमारी है अभी तक गाँव में --- बहुत प्यारा सा बिम्ब... यादों को तह करना.<br /><br />घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुँए पर दो दिए<br />रोज काकी बार आती है अभी तक गाँव में --'बार आना' का इस्तेमाल बहुत सुन्दर लगा और ऐसा लगा कि राकेश जी के गीत का उजड़ा मंदिर, जहाँ दीप धर आता है अब तक कोई,...मुस्कुरा रहा है.<br /><br />हर तरफ... कुफ्र लेकिन जल्दबाजी ....बहुत ही मासूम सा, मुस्कुराता हुआ और गाँव की दिनचर्या याद दिलाता हुआ सा शेर.<br /><br />नफरतों से लबरेज़ ...प्यार का माज़ी... सुन्दर द्रष्टिकोण और एक नोस्टेल्जिया!<br />जाफरानी लोग... बहुत सुन्दर!<br />बधाई स्वीकारें!<br />सादर शार्दुलाShardulahttps://www.blogger.com/profile/14922626343510385773noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-3773953968120230732012-01-19T09:28:27.897+05:302012-01-19T09:28:27.897+05:30Apne dili jazbon ko kasaawat ke saath bunkar pesh ...Apne dili jazbon ko kasaawat ke saath bunkar pesh karne ke liye meri dili shubhkamanyein,<br />anbujhi pyaas rooh ki hai Ghazal<br />Khusk honton ki tishnagi hai ghazal!!<br /> <br />Saurabh mera maun bhi chakit hua hai is soch par..bahut hi ache sher, ache nahin ati sunder, saleekedaar bhi!! <br />तह किये रक्खे हैं जिसमे बालपन के रात-दिन<br />याद की वो आलमारी है अभी तक गाँव में<br />*<br />sandeep Bahut hi daad ho is sher ke liye, Har bharteey ka sapna saja hai in shabdon mein <br />एक दिन लौट आऊँगा यकीं है ये उसे<br />रास्ता मेरा वो तकती है अभी तक गाँव में<br />Shubhkamnaon sahitDevi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-34300508812781289752012-01-18T22:22:41.937+05:302012-01-18T22:22:41.937+05:30मुशायरे में मेरी रचना को स्थान देने के लिए गुरुदेव...मुशायरे में मेरी रचना को स्थान देने के लिए गुरुदेव का हार्दिक आभार. बाकी विद्वान मित्रों ने जो हौसला आफजाई की है उसके लिए भी बहुत-बहुत शुक्रिया. संदीप भाई की वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है,लेकिन क्या लासानी मक्ता निकाला है आपने जनाब.ढेरों बधाई.सौरभ शेखर https://www.blogger.com/profile/16049590418709278760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-82768268969162044852012-01-18T21:46:40.674+05:302012-01-18T21:46:40.674+05:30बहुत ही खूबसूरत ग़ज़लें हैं। बहुत बहुत बधाई संदीप जी...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़लें हैं। बहुत बहुत बधाई संदीप जी और सौरभ जी को। विशेषकर ये शे’र तो लाजवाब हैं।<br /><br />आम कच्चे, जिसके आँगन से चुराते थे कभी<br />सुनते हैं, वो बूढ़ी नानी है अभी तक गाँव में<br /><br />एक दिन मैं लौट आऊंगा यक़ीं है ये उसे<br />रास्ता मेरा वो तकती है अभी तक गाँव में<br /><br />याद में 'साहिल' तुम्हारी, बावली है वो नदी<br />पत्थरों पर सर पटकती है अभी तक गाँव में <br />--<br />तह किये रक्खे हैं जिसमे बालपन के रात-दिन<br />याद की वो आलमारी है अभी तक गाँव में<br /><br />बेमेहर हालात हैं यूँ मौसमों के वास्ते<br />मौसमों की मेहरबानी है अभी तक गाँव में<br /><br />घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुँए पर दो दिए<br />रोज काकी बार आती है अभी तक गाँव में‘सज्जन’ धर्मेन्द्रhttps://www.blogger.com/profile/02517720156886823390noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-37688936300977427522012-01-18T19:56:46.173+05:302012-01-18T19:56:46.173+05:30संदीप 'साहिल' जी एवं सौरभ शेखर जी को बहुत ...संदीप 'साहिल' जी एवं सौरभ शेखर जी को बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर तरही में ख़ूबसूरत अशआर कहने के लिए. <br /><br />"इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में" सुन्दर मतले के साथ जो शेर बुने हैं...<br /><br />आम कच्चे, जिसके आँगन से चुराते थे कभी<br />सुनते हैं, वो बूढ़ी नानी है अभी तक गाँव में<br /><br />एक दिन मैं लौट आऊंगा यक़ीं है ये उसे<br />रास्ता मेरा वो तकती है अभी तक गाँव में<br />--<br />तह किये रक्खे हैं जिसमे बालपन के रात-दिन<br />याद की वो आलमारी है अभी तक गाँव में<br /><br />बेमेहर हालात हैं यूँ मौसमों के वास्ते<br />मौसमों की मेहरबानी है अभी तक गाँव में<br /><br />घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुँए पर दो दिए<br />रोज काकी बार आती है अभी तक गाँव में <br /><br />....क्या कहूँ, लाजवाब !!Sulabh Jaiswal "सुलभ"https://www.blogger.com/profile/11845899435736520995noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-64788433180860608952012-01-18T19:56:06.992+05:302012-01-18T19:56:06.992+05:30तरही की ज़ोरदार शुरुआत के साथ संदीप और सौरभ की ग़ज़ले...तरही की ज़ोरदार शुरुआत के साथ संदीप और सौरभ की ग़ज़लें बहुत खूब |<br />'कागज़ों में हो रही बस तरक्की गाँव की/ आबो दाना है न बिजली है अभी तक गाँव की'<br />प्रवास का नास्टेल्जिया सिर्फ नास्टेल्जिया नहीं होता, भावनाओं की तीव्र अभिव्यक्ति होती है जो कई बार भारत में बैठे लोग महसूस नहीं कर पाते | साहित्य में इसकी भी ज़रुरत होती है | अगर इसके साथ यथार्थ और सच्चाई जुड़ जाए तो नास्टेल्जिया का रूप बदल जाता है | संदीप बहुत -बहुत बधाई |<br />'पाँव को सीवान पर रखते' ,'उस सूखे कुएँ पर दो दिए', 'नफरतों से तर हमारा' बहुत खूबसूरत | सौरभ बहुत -बहुत बधाई |Dr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-16139118690920508852012-01-18T19:44:52.556+05:302012-01-18T19:44:52.556+05:30वो मेरे बचपन का साथी है अभी तक गाँव में
इक पुराना ...वो मेरे बचपन का साथी है अभी तक गाँव में<br />इक पुराना पेड़ बाकी है अभी तक गाँव में <br /><br />एक दिन लौट आऊँगा यकीं है ये उसे<br />रास्ता मेरा वो तकती है अभी तक गाँव में<br /> <br /><br /> --संदीप साहिल<br /><br />तह किये रक्खे जिसमे बालपन के रात दिन<br />याद की वो आलमारी है अभी तक गाँव में<br /><br />वक्त की मौजे हमें परदेस तो ले आ गईं<br />पर हमारी खेत बाड़ी है अभी तक गाँव में<br /> --सौरभ शेखर<br /><br />दोनों शायरों के ये उपरोक्त अशार दिल की गहरायियों तक असर कर देने वाले हैं !Ashwini Rameshhttps://www.blogger.com/profile/16656626915061597542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-56603401715915917822012-01-18T19:02:36.764+05:302012-01-18T19:02:36.764+05:30शुक्र है, इस बार मुझे तरही कहने का समय नहीं मिल रह...शुक्र है, इस बार मुझे तरही कहने का समय नहीं मिल रहा॥वरना जिस तरह का आगाज़ हुआ है साहिल और सौरभ के अशआर से, हमारी तरही तो बगलें झाँकती मिलती|<br /><br />साहिल का "रास्ता मेरा वो तकती" वाला शेर और सौरभ का "सूखे कुए प दो दिये" वाला शेर बहुत पसंद आया है...<br /><br />...और टिप्पणी में "उफ़्फ़" लिखने वालों को आखिरी चेतावनी - इस पर मेरा कॉपी-राइट है और पूरे ब्लौग-जगत को मालूम है ये बात !गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-76509978321066611592012-01-18T18:42:44.297+05:302012-01-18T18:42:44.297+05:30वाह! सौरभ की ग़ज़ल पढ़ कर तो अपनी वाली की तरफ देखने क...वाह! सौरभ की ग़ज़ल पढ़ कर तो अपनी वाली की तरफ देखने का मन भी नहीं हो रहा!<br />क्या शेर कहें हैं सौरभ ने!<br /><br /><br />घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुएँ पर दो दिये<br />रोज़ काकी बार आती है अभी तक गाँव में <br /><br />ये शेर तो वही कह सकता है जिसने गाँव की ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा है!<br /><br />बाकी रचनाओं का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा!'साहिल'https://www.blogger.com/profile/13420654565201644261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-4923780408244655672012-01-18T17:42:26.049+05:302012-01-18T17:42:26.049+05:30एक सुन्दर सफर की ओर चल पड़े हैं हम... अब देखिये कै...एक सुन्दर सफर की ओर चल पड़े हैं हम... अब देखिये कैसी कैसी दिल को छूने वाली रचनाएं मिलती हैं पढ़ने को.<br /><br />संदीप जी का <br />एक दिन मैं लौट आऊंगा यकीं हैं ये उसे <br />रास्ता वो मेरा तकती है अभी तक गाँव में<br /> <br />यह भाव तो गाँव से जुड़े होने का आभास देता है ...<br /><br />और सौरभ जी का <br /><br />घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुएँ पर दो दिये<br />रोज़ काकी बार आती है अभी तक गाँव में <br /><br />वाह भाई सौरभ जी... "बार आती है"... क्या सुन्दर प्रयोग किया है आपने.... गाँव की ग़ज़ल में गाँव का शब्द.<br /><br />शेष धर तिवारी, इलाहबादशेषधर तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/09259183410687906285noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-71470808410946318022012-01-18T17:20:19.265+05:302012-01-18T17:20:19.265+05:30गुरुवर,
तरही की शुरूआत वैसी ही हुई है जैसेकि आशा ...गुरुवर,<br /><br />तरही की शुरूआत वैसी ही हुई है जैसेकि आशा थी।<br /><br />संदीप का शे’र " एक दिन मैं लौट आऊंगा यकीं हैं ये उसे <br />रास्ता वो मेरा तकती है अभी तक गाँव में " <br /><br />एक दर्द भरे अहसास को जगा गया। शेष गज़ल अच्छी कही है।<br /><br />सौरभ की गज़ल के बिम्ब इतने करीबी ऐं कि बहुत कुछ अपना सा याद आ जाता है चाहे वो काकी का बारा हुआ दिया हो, यादों की अल्मारी, बालपन के रातदिन तह किए हुए रखे हों। <br /><br />हठीला जी को समर्पित शे’र अपनी खुश्बू फैला रहा है। <br /><br />खासा पसंद आया ये शे’र :-<br /><br />" बेमेहर हालात हैं यूँ मौसम के वास्ते <br />मैसमों की मेहरबानी हैं अभी तक गाँव में "<br /><br />सादर,<br /><br />मुकेश कुमार तिवारीमुकेश कुमार तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04868053728201470542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-31524826427054247332012-01-18T16:55:33.110+05:302012-01-18T16:55:33.110+05:30साहिल जी ने क्या खूब मक्ता कहा है. वाह वा
"पत...साहिल जी ने क्या खूब मक्ता कहा है. वाह वा<br />"पत्थरों पर सर पटकती है अभी तक गाँव में"............... लाजवाब, वाह वा<br />इसका नशा ही अलग है.<br /><br />सौरभ शेखर जी ने भी अच्छे शेर कहें हैं,<br />"पाँव को ..................." वाह वा<br />"बेमेहर हालात हैं यूँ मौसमों के वास्ते .........", बहुत खूब<br />हासिल-ए-ग़ज़ल शेर<br />"घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुँए पर दो दिए" ...................<br />"हर तरफ इक........", इस शेर का सानी लाजवाब है, एक अलग ही अंदाज़े बयां "कुफ्र लेकिन जल्दबाजी है अभी तक गाँव में" वाह वा<br />हठीला जी को समर्पित शेर भी यादगार बना है.<br /><br />दोनों शायरों को बधाईAnkithttps://www.blogger.com/profile/08887831808377545412noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-49043334953384523742012-01-18T14:52:03.623+05:302012-01-18T14:52:03.623+05:30संदीप 'साहिल' जी,
भई वाह
शानदार शेर हुए ह...संदीप 'साहिल' जी,<br /><br />भई वाह<br />शानदार शेर हुए है <br />इन दो शेर ने दिल को बाग बाग कर दिया <br /> <br />कागज़ों में हो रही है बस तरक्की गांव की,<br />आबो-दाना है, न बिजली है, अभी तक गांव में<br /><br />याद में 'साहिल' तुम्हारी, बावली है वो नदी<br />पत्थरों पर सर पटकती है अभी तक गाँव में <br />>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>><br /><br />सौरभ शेखर जी,<br />ग़ज़ल का शेर खूब पसंद आया <br />गाँव के हर मंज़र को बखूबी पेश किया <br /><br />तह किये रक्खे हैं जिसमे बालपन के रात-दिन<br />याद की वो आलमारी है अभी तक गाँव में<br /><br />नफरतों से तर हमारा आज है तो क्या हुआ<br />प्यार से लबरेज माज़ी है अभी तक गाँव में .<br /><br />आनंद आ गया <br /><br /><br />खुशबुएँ जिनकी रहेंगी वो रहें या ना रहें<br />लोग ऐसे जाफरानी हैं अभी तक गाँव में <br /><br />इस शेर के लिए अलग से ढेरो दाद क़ुबूल फरमाएंवीनस केसरीhttps://www.blogger.com/profile/08468768612776401428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-86416273024559630582012-01-18T13:38:28.036+05:302012-01-18T13:38:28.036+05:30पहले भी एक टिप[पणी की मगर वो पोस्ट नही हो पाई इस ल...पहले भी एक टिप[पणी की मगर वो पोस्ट नही हो पाई इस लिये दोबारा त्राई करेक शब्द लिखा जो पोस्ट हो गया अब दोबारा लिख रही हूँ। सौरभ और साहिल जी को पढ कर लगता है मुझे अपनी गज़ल वापिस मंगवा लेनी चाहिये लेकिन फिर सोचती हूँ इतनी बडी क्लास मे एक स्तुडेन्ट तो नालायक हो ही सकता है। क्या कमाल के शेर कहे हैं दोनो ने। <br />एक दिन लौट आऊँगा---<br /> कागज़ों मे हो रही----- वक़ह साहि;ल जी <br />बचपन की यादें तो सदा गाँव आने के लिये सदा देती हैं<br />नफरतों से तप ---<br />वक्त की मौजें------घर के पिछवाडे--- समझ नही आ रही किस किस शेर की तारीफ करूँ। हठीला जी के लिये कहा गया शेर बहुत प्रभावित करता है। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें अब तीन दिन के लिये दिल्ली जा रही हूँ आ कर बाकी सब को पढती हूँ।ब्लागिन्ग तो आज कल बन्द ही है।<br /><br />बहुत खूबनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-76986160711003833412012-01-18T13:25:52.497+05:302012-01-18T13:25:52.497+05:30लाजवाब्लाजवाब्निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-23708725231238459212012-01-18T13:24:49.546+05:302012-01-18T13:24:49.546+05:30एक और गहन प्रस्तुति..एक और गहन प्रस्तुति..प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-26173337144844591782012-01-18T13:06:52.109+05:302012-01-18T13:06:52.109+05:30मुशायरे की शुरुआत ही जब आदरणीय राकेश जी के मुग्धका...मुशायरे की शुरुआत ही जब आदरणीय राकेश जी के मुग्धकारी गीत से हुई है तो फिर कही जा रही ग़ज़लों की कहन का असर कहाँ तक होगा यह आसानी से समझा जा सकता है. <br /><br />संदीप साहिल जी को इस बेहतर प्रयास के लिये हार्दिक शुभकामनाएँ. <br /><i>एक दिन मैं लौट आऊँगा..</i> में <i>रास्ता ताकना</i> दिल को बस छू गया.<br /><i>काग़ज़ों में हो रही है..</i> की हक़ीक़त बयानी पर दिल से दाद दे रहा हूँ.<br />और पत्थरों पर नदी का सर पटकना.. ओह, क्या ही मंज़रकशी है ! वाह-वाह !!<br /><br />सौरभ शेखरजी की ग़ज़ल बहुत कुछ कहती जाती है. <br />इस दफ़े भी क्या अंदाज़ हैं ! वाह !!<br />पाँव को सीवान पर रखते हुए बदन में झुरझुरी का होना ! अद्भुत !! इस अनुपम अनुभूति को साझा करने वाला भले ही भौतिक रूप से कहीं रहता हो, रगों में अवश्य ही गाँव को जीता है.<br /><i>तह किये रक्खे हैं..</i> के भाव भी शायर की उच्च भाव-समझ का अनुमोदन कर रहे हैं.<br />लेकिन प्रस्तुत शे’र पर मैं विशेष बधाइयाँ दे रहा हूँ - <br /><i>घर के पिछवाड़े के उस सूखे कुएँ पर दो दिये<br />रोज़ काकी बार आती है अभी तक गाँव में </i><br /><br />आशावादिता का आश्वस्तकारी दीप बालता हुआ यह शे’र चैन और सुकून दे रहा है.<br /><br />रमेश हठीलाजी की याद में कहा गया शे’र.. बस हृदय नम हुआ जाता है.<br /><br />वाकई आनन्द-आनन्द छाया है. इस आग़ाज़ के लिये समस्त मण्डल को हार्दिक बधाई.<br /><br />--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)--Saurabhhttps://www.blogger.com/profile/01860891071653618058noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-490021424230280702012-01-18T12:03:16.115+05:302012-01-18T12:03:16.115+05:30दोनों ही फनकारों ने गाँव से सम्बंधित कुछ मुद्दे शा...दोनों ही फनकारों ने गाँव से सम्बंधित कुछ मुद्दे शानदार ढंग से प्रस्तुत किये हैपी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7637784963342720274.post-22202373368185573592012-01-18T11:56:56.254+05:302012-01-18T11:56:56.254+05:30"कागजों में हो रही है बस तरक्की गाँव की....&q..."कागजों में हो रही है बस तरक्की गाँव की...." कमाल का शेर...ऐसा जिसे उस्ताद ही कह सकते हैं...संदीप की पूरी ग़ज़ल दाद की हकदार है. "घर के पिछवाड़े..." और "हरतरफ इक हड़बड़ी..." जैसे शेर कह कर सौरभ शेखर ने दिल जीत लिया. कमाल की शायरी. <br />तरही का बेहतरीन आगाज़ हुआ है और ये कामयाबी की नयी बुलंदियों को छुएगी इसमें कोई संदेह नहीं है.<br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com